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बुधवार, 20 अप्रैल 2022

सॉनेट,नींद,मुक्तिका,चिंतन,चार्ल्स लैम्ब,तुलसी, मानस और कोविद,नव गीत, मुक्तक

भाषा विविधा : अंग्रेजी-हिंदी
Sonnet -Charles Lamb
The Lord of Life shakes off his drowsihed,
And 'gins to sprinkle on the earth below
Those rays that from his shaken locks do flow;
Meantime, by truant love of rambling led,
I turn my back on thy detested walls,
Proud city! and thy sons I leave behind,
A sordid, selfish, money-getting kind;
Brute things, who shut their ears when Freedom calls.
I pass not thee so lightly, well-known spire,
That mindest me of many a pleasure gone,
Of merrier days, of love and Islington;
Kindling afresh the flames of past desire.
And I shall muse on thee slow journeying on
To the green plains of pleasant Hertfordshire.
1795.
जीवनदाता प्रभु ने दूर किया तंद्रा को
और किया आरंभ सींचना वसुंधरा पर
टूटे तालों से निसृत किरणें बह निकलीं
इसी बीच जूझते प्रेम का नायकत्व कर

घृणा योग्य दीवारों को मैं पीठ दिखाता
गर्वित शहर तुझे, तेरे सुत पीछे छोड़े
तजा घिनौना स्वार्थ, लोभ सी क्रूर वृत्तियाँ
स्वतंत्रता की सुन पुकार जो कान मूँद ले

शिखर नामवर, मैं न इसे हल्के में लेता
याद दिलाता बीच हुई कई खुशियों की
कामनाओं की अग्निशिखाओं को धधकाता
दिवस खुशनुमा, प्यार और इस्लिंग्टन की भी

धीमी गति से यात्रा कर तुझको सुमिरूँ मैं
हर्टफोर्डशायर के सुखद हरित मैदां में।
२०-४-२०२२
•••
सॉनेट
नींद
सोते-सोते उमर गँवाई।
रोज अनगिनत सपने देखे।
नींद न लेकिन आती भाई।।
करे मूढ़ मति स्वारथ लेखे।।

सोना चाहा; सो ना पाया।
आँख मुँदे ले घेर अँधेरा।
सोना खोना; रखे डराया।।
आँख खुले तो हुआ सवेरा।।

नींद न आए तो कठिनाई।
सौ-सौ जतन किए मैं हारा।
नींद न जाए तो कठिनाई।।
भव का मिलता नहीं किनारा।।

नींद न अपनी, नहीं पराई।
चाहा गई न, टेर न आई।।
२०-४-२०२२
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मुक्तिका
दर्द मन में; अधर पर तू हास रख।
मकां बिसरा; सदा घर में वास रख।।

मत उदासी ओढ़, मत पीड़ा बिछा।
मन न उन्मन हो, सुचेतन रास रख।।

नहीं मैं-तू दो; मिलें हम हो कभी।
भूल किलकिल सकल, अकल न त्रास रख।

आस का घर घाट बहती नरमदा।
करे कलकल सदानीरा श्वास रख।।

क्या पता कल हो न हो तू बावरे!
आज कलरव कर; उजास-हुलास रख।।
२०-४-२०२२
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चिंतन ३
क्या?
*
'क्या' सत्य को परखने और पाने का एक सोपान है।

'क्या' हो चुका है?
'क्या' हो रहा है?
'क्या' होना चाहिए?

व्यक्ति और समष्टि दोनों के संदर्भ में उक्त तीन प्रश्नों के उत्तरों का अपना-अपना महत्व है।
मैथिलीशरण गुप्त जी के शब्दों में-
हम कौन थे?, क्या हो गये हैं?, और क्या होंगे अभी?
आओ! विचारें आज मिलकर ये समस्याएँ सभी।।
मिलना-बैठना अच्छा है पर वह उद्देश्यपरक हो।
"मिलो-बैठो, खाओ-पिओ, चले जाओ" तक सीमित सम्मिलन/सम्मेलन हो या न हो, उसका कोई महत्व नहीं है।

- हम कौन थे?
इस पहलू से भूल-चूक का आकलन कर, सुधार के विचार और आचार का मार्ग मिल सकता है।
उपलब्धियों से प्रेरणा लेकर नव प्रयत्नों के प्रति उत्साहित हुआ जा सकता है।
केवल यहीं तक सीमित रहें तो यह मतभेदों का कारक बनता है। पुरखों ने राज्य किया, यह गाते रहने से बच्चों का पेट नहीं भरेगा, सम्मान और सफलता नहीं मिलेगी।

क्या हो गए हैं?
यह अपेक्षाकृत अधिक महत्व का बिंदु है। समकालीन परिस्थितियाँ सबके लिए लगभग समान होती हैं।
अतीत में हमसे बेहतर, हमारे समान और हमसे बदतर रहे व्यक्ति और समुदाय आज किस स्थिति में हैं?
उनकी तुलना में हमारी स्थिति कितनी बेहतर या बदतर हुई और क्यों?
क्या करें कि हमारी स्थिति और अधिक बेहतर और हो सके तो सबसे अधिक बेहतर हो?
क्या करें पर विचारण के बाद कैसे-कब-कहाँ पर विचार हो?

और क्या होंगे अभी?
यह सर्वाधिक महत्वपूर्ण बिंदु है।
भावी लक्ष्यों का निर्धारण, उनकी प्राप्ति में कठिनाइयाँ, कठिनाइयों को दूर करने के संसाधन तथा प्रक्रिया पर विचार कर योजनाएँ बनाई जाएँ, क्रियान्वित की जाएँ।

क्या हमारी संस्थाएँ और सम्मेलन इस तरह गतिशील हैं?
अगर नहीं तो हमारा भविष्य धूमिल है। युवा हमसे नहीं जुड़ेंगे।

क्या चाहता है युवा?
प्रशिक्षण
अवसर
चुनौती
संभावना

क्या यह उपलब्ध है? यदि नहीं तो हम जो कुछ कर रहे हैं वह बेमानी है।
२०-४-२०२२
•••
मुक्तिका
*
मेहनत अधरों की मुस्कान
मेहनत ही मेरा सम्मान
बहा पसीना, महल बना
पाया आप न एक मकान
वो जुमलेबाजी करते
जिनको कुर्सी बनी मचान
कंगन-करधन मिले नहीं
कमा बनाए सच लो जान
भारत माता की बेटी
यही सही मेरी पहचान
दल झंडे पंडे डंडे
मुझ बिन हैं बेदम-बेजान
उबटन से गणपति गढ़ दूँ
अगर पार्वती मैं लूँ ठान
सृजन 'सलिल' का है सार्थक
मेहनतकश का कर गुणगान
२०-४-२१
***
तुलसी, मानस और कोविद
भविष्य दर्शन की बात हो तो लोग नॉस्ट्राडेमस या कीरो की दुहाई देते हैं। गो. तुलसीदास की रामभक्ति असंदिग्ध है, वर्तमान कोविद प्रसंग तुलसी के भविष्य वक्ता होने की भी पुष्टि करता है। कैसे? कहते हैं 'प्रत्यक्षं किं प्रमाणं', हाथ कंगन को आरसी क्या? चलिए मानस में ही उत्तर तलाशें। कहाँ? उत्तर उत्तरकांड में न मिलेगा तो कहाँ मिलेगा? तुलसी के अनुसार :
सब कई निंदा जे जड़ करहीं। ते चमगादुर होइ अवतरहीं।
सुनहु तात अब मानस रोगा। जिन्ह ते दुःख पावहिं सब लोग।। १२० / १४
वाइरोलोजी की पुस्तकों व् अनुसंधानों के अनुसार कोविद १९ महामारी चमगादडो से मनुष्यों में फैली है।
मोह सकल ब्याधिन्ह कर मूला। तिन्ह ते पुनि उपजहिं बहु सूला।।
काम बात कफ लोभ अपारा। क्रोध पित्त नित छाती जारा।। १२० / १५
सब रोगों की जड़ 'मोह' है। कोरोना की जड़ अभक्ष्य जीवों (चमगादड़ आदि) का को खाने का 'मोह' और भारत में फैलाव का कारण विदेश यात्राओं का 'मोह' ही है। इन मोहों के कारण बहुत से कष्ट उठाने पड़ते हैं। आयर्वेद के त्रिदोषों वात, कफ और पित्त को तुलसी क्रमश: काम, लोभ और क्रोध जनित बताते हैं। आश्चर्य यह की विदेश जानेवाले अधिकांश जन या तो व्यापार (लोभ) या मौज-मस्ती (काम) के लिए गए थे। यह कफ ही कोरोना का प्रमुख लक्षण देखा गया। जन्नत जाने का लोभ पाले लोग तब्लीगी जमात में कोरोना के वाहक बन गए। कफ तथा फेंफड़ों के संक्रमण का संकेत समझा जा सकता है।
प्रीती करहिं जौं तीनिउ भाई। उपजइ सन्यपात दुखदाई।।
विषय मनोरथ दुर्गम नाना। ते सब स्कूल नाम को जाना।। १२०/ १६
कफ, पित्त और वात तीनों मिलकर असंतुलित हो जाएँ तो दुखदायी सन्निपात (त्रिदोष = कफ, वात और पित्त तीनों का एक साथ बिगड़ना। यह अलग रोग नहीं ज्वर / व्याधि बिगड़ने पर हुई गंभीर दशा है। साधारण रूप में रोगी का चित भ्रांत हो जाता है, वह अंड- बंड बकने लगता है तथा उछलता-कूदता है। आयुर्वेद के अनुसार १३ प्रकार के सन्निपात - संधिग, अंतक, रुग्दाह, चित्त- भ्रम, शीतांग, तंद्रिक, कंठकुब्ज, कर्णक, भग्ननेत्र, रक्तष्ठीव, प्रलाप, जिह्वक, और अभिन्यास हैं।) मोहादि विषयों से उत्पन्न शूल (रोग) असंख्य हैं। कोरोना वायरस के असंख्य प्रकार वैज्ञानिक भी स्वीकार रहे हैं। कुछ ज्ञात हैं अनेक अज्ञात।
जुग बिधि ज्वर मत्सर अबिबेका। कहँ लागि कहौं कुरोग अनेका।।१२० १९
इस युग (समय) में मत्सर (अन्य की उन्नति से जलना) तथा अविवेक के कारण अनेक विकार उत्पन्न होंगे। देश में राजनैतिक नेताओं और सांप्रदायिक शक्तियों के अविवेक से अनेक सामाजिक, राजनैतिक, आर्थिक विकार हुए और अब जीवननाशी विकार उत्पन्न हो गया।
एक ब्याधि बस नर मरहिं ए असाधि बहु ब्याधि।
पीड़हिं संतत जीव कहुँ सो किमि लहै समाधि॥१२१ क
एक ही व्याधि (रोग कोविद १९) से असंख्य लोग मरेंगे, फिर अनेक व्याधियाँ (कोरोना के साथ मधुमेह, रक्तचाप, कैंसर, हृद्रोग आदि) हों तो मनुष्य चैन से समाधि (मुक्ति / शांति) भी नहीं पा सकता।
नेम धर्म आचार तप, ज्ञान जग्य जप दान।
भेषज पुनि कोटिन्ह नहिं, रोग जाहिं हरिजान।। १२१ ख
नियम (एकांतवास, क्वारेंटाइन), धर्म (समय पर औषधि लेना), सदाचरण (स्वच्छता, सामाजिक दूरी, सेनिटाइजेशन,गर्म पानी पीना आदि ), तप (व्यायाम आदि से प्रतिरोधक शक्ति बढ़ाना), ज्ञान (क्या करें या न करें जानना), यज्ञ (मनोबल हेतु ईश्वर का स्मरण), दान (गरीबों को या प्रधान मंत्री कोष में) आदि अनेक उपाय हैं तथापि व्याधि सहजता से नहीं जाती।
एहि बिधि सकल जीव जग रोगी। सोक हरष भय प्रीति बियोगी।।
मानस रोग कछुक मैं गाए। हहिं सब कें लखि बिरलेहिं पाए।।१२१ / १
इस प्रकार सब जग रोग्रस्त होगा (कोरोना से पूरा विश्व ग्रस्त है) जो शोक, हर्ष, भय, प्यार और विरह से ग्रस्त होगा। हर देश दूसरे देश के प्रति शंका, भय, द्वेष, स्वार्थवश संधि, और संधि भंग आदि से ग्रस्त है। तुलसी ने कुछ मानसिक रोगों का संकेत मात्र किया है, शेष को बहुत थोड़े लोग (नेता, अफसर, विशेषज्ञ) जान सकेंगे।
जाने ते छीजहिं कछु पापी। नास न पावहिं जन परितापी।।
बिषय कुपथ्य पाइ अंकुरे। मुनिहु हृदयँ का नर बापुरे।। १२१ / २
जिनके बारे में पता च जाएगा ऐसे पापी (कोरोनाग्रस्त रोगी, मृत्यु या चिकित्सा के कारण) कम हो जायेंगे , परन्तु विषाणु का पूरी तरह नाश नहीं होगा। विषय या कुपथ्य (अनुकूल परिस्थिति या बदपरहेजी) की स्थिति में मुनि (सज्जन, स्वस्थ्य जन) भी इनके शिकार हो सकते हैं जैसे कुछ चिकित्सक आदि शिकार हुए तथा ठीक हो चुके लोगों में दुबारा भी हो सकता है।
तुलसी यहीं नहीं रुकते, संकेतों में निदान भी बताते हैं।
राम कृपाँ नासहिं सब रोगा। जौं एहि भाँति बनै संजोगा॥
सदगुर बैद बचन बिस्वासा। संजम यह न बिषय कै आसा॥ १२१ / ३
ईश्वर की कृपा से संयोग (जिसमें रोगियों की चिकित्सा, पारस्परिक दूरी, स्वच्छता, शासन और जनता का सहयोग) बने, सद्गुरु (सरकार प्रमुख) तथा बैद (डॉक्टर) की सलाह मानें, संयम से रहे, पारस्परिक संपर्क न करें तो रोग का नाश हो सकता है।
रघुपति भगति सजीवन मूरी। अनूपान श्रद्धा मति पूरी॥
एहि बिधि भलेहिं सो रोग नसाहीं। नाहिं त जतन कोटि नहिं जाहीं॥
ईश्वर की भक्ति संजीवनी जड़ी है। श्रद्धा से पूर्ण बुद्धि ही अनुपान (दवा के साथ लिया जाने वाला मधु आदि) है। इस प्रकार का संयोग हो तो वे रोग भले ही नष्ट हो जाएँ, नहीं तो करोड़ों प्रयत्नों से भी नहीं जाते।
***
नव गीत :
*
जीवन की जय बोल, धरा का दर्द तनिक सुन...

तपता सूरज आँख दिखाता, जगत जल रहा.
पीर सौ गुनी अधिक हुई है, नेह गल रहा.
हिम्मत तनिक न हार- नए सपने फिर से बुन...

निशा उषा संध्या को छलता सुख का चंदा.
हँसता है पर काम किसी के आये न बन्दा...
सब अपने में लीन, तुझे प्यारी अपनी धुन...

महाकाल के हाथ जिंदगी यंत्र हुई है.
स्वार्थ-कामना ही साँसों का मन्त्र मुई है.
तंत्र लोक पर, रहे न हावी कर कुछ सुन-गुन...
***
मुक्तक
पीर पराई हो सगी, निज सुख भी हो गैर.
जिसको उसकी हमेशा, 'सलिल' रहेगी खैर..
सबसे करले मित्रता, बाँट सभी को स्नेह.
'सलिल' कभी मत किसी के, प्रति हो मन में बैर..
२०-४-२०१०
***
चार्ल्स लैम्ब

अंग्रेजी लेखक, आलोचक और छोटे कवि चार्ल्स लैम्ब (१०.२.१७७५-२७.१२.१८३४) एलिया नाम के तहत लिखे गए निबंधों के लिए सबसे ज्यादा जाने जाते हैं। वह अंग्रेजी निबंधकारों में सबसे अधिक पसंद किए जाने वाले और पढ़े जाने वाले निबंधकारों में से एक हैं। वे एक अंग्रेजी निबंधकार, कवि, कथा लेखक और रोमांटिक काल के आलोचक थे। वह लेक पोएट्स के महत्वपूर्ण सदस्यों में से एक थे, जिनमें विलियम वर्ड्सवर्थ और सैमुअल टेलर कॉलरिज उनके करीबी दोस्त थे। हालाँकि वे अपनी कविता के लिए अपने दोस्तों वर्ड्सवर्थ और कोलरिज की तरह स्थायी लोकप्रियता हासिल नहीं कर सके, लेकिन बाद में उन्होंने अपनी ऊर्जा को गद्य लिखने में लगा दिया और इस खोज में अपने समय के सर्वश्रेष्ठ निबंधकारों में से एक के रूप में उभरे। उनके दो संग्रह, 'एसेज ऑफ एलिया' और 'टेल्स फ्रॉम शेक्सपियर' एक निबंधकार के रूप में उनकी सर्वश्रेष्ठ रचनाएँ मानी जाती हैं। 'एसेज ऑफ एलिया', जिसमें लेखक के एक काल्पनिक चरित्र एलिया के अनुभवों और निबंधों का आत्मकथात्मक रिकॉर्ड था, निबंधों और रचनाओं की अंग्रेजी शैली के सबसे उत्कृष्ट चित्रों में गिना जाता है। उनकी अन्य प्रमुख कृति 'टेल्स फ्रॉम शेक्सपियर', जिसे उन्होंने अपनी बहन मैरी लैम्ब के साथ निर्मित किया, में बच्चों के लिए शेक्सपियर के नाटक शामिल हैं। उनकी कुछ अन्य उल्लेखनीय कृतियाँ 'जॉन वुडविल', 'द एडवेंचर्स ऑफ यूलिसिस', 'ऑन द ट्रेजेडीज ऑफ शेक्सपियर' और 'विच्स एंड अदर नाइट फेयर्स' हैं।उनका जन्म 10 फरवरी, 1775 को लंदन में जॉन लैम्ब और एलिजाबेथ फील्ड के तीन जीवित बच्चों में उनके सबसे छोटे बच्चे के रूप में हुआ था। उनके पिता एक वकील के लिए एक क्लर्क के रूप में काम करते थे। उनके भाई जॉन और बहन मैरी उनसे कई साल बड़े थे। वह अपनी मौसी हेट्टी और नानी श्रीमती फील्ड के काफी करीब थे।
मैरी ने उन्हें पढ़ना सिखाया और उसके बाद वे श्रीमती रेनॉल्ड्स के मार्गदर्शन में आईं, जिनके साथ उन्होंने आजीवन संपर्क बनाए रखा।
वह सात बजे 'क्राइस्ट हॉस्पिटल' में शामिल हुए। यह इस मुफ्त बोर्डिंग स्कूल में था जहाँ वह सैमुअल टेलर कोलरिज से मिले और एक दोस्ती विकसित की जो जीवन भर बनी रही। उन्होंने 1789 तक स्कूल में पढ़ाई की।वह जीवन भर हकलाने की समस्या से पीड़ित रहे, जिसने उन्हें एक लिपिक कैरियर से अयोग्य घोषित कर दिया। लंदन के एक व्यापारी जोसेफ पेस के कार्यालय में एक छोटे से कार्यकाल के बाद, वह साउथ सी हाउस के परीक्षक कार्यालय में शामिल हो गए, जहां उन्होंने 8 फरवरी, 1792 तक एक छोटे से पद पर कार्य किया।
5 अप्रैल, 1792 को, वह 'ईस्ट इंडिया हाउस' में शामिल हुए, जो 'ईस्ट इंडिया कंपनी' का मुख्यालय था, इसके लेखा कार्यालय में एक क्लर्क के रूप में। उन्होंने 1825 में अपनी सेवानिवृत्ति तक तीन दशकों से अधिक समय तक कंपनी की सेवा की।
चार्ल्स शराब के अत्यधिक आदी हो गए। 1795 में एक बार उन्हें छह सप्ताह तक शरण में रहना पड़ा।
22 सितंबर, 1796 को, उनकी बड़ी बहन मैरी ने गुस्से में आकर उनकी मां एलिजाबेथ की चाकू मारकर हत्या कर दी। एक बाद की जांच में मैरी को अस्थायी मानसिक बीमारी से पीड़ित होने का पता चला। मैरी की कस्टडी चार्ल्स लैम्ब को दे दी गई।
मेम्ने और उनकी बहन ने कुछ उल्लेखनीय साहित्यिक और नाटकीय व्यक्तित्वों के साथ एक सक्रिय सामाजिक जीवन व्यतीत किया। कोलरिज बचपन के करीबी दोस्त थे और बाद में लैम्ब ने विलियम वर्ड्सवर्थ से दोस्ती की, ये दोनों जीवन भर उनके दोस्त बने रहे।
वह लंदन में लेह हंट, विलियम हेज़लिट और पर्सी बिशे शेली जैसे कई युवा लेखकों से परिचित हुए जिन्होंने राजनीतिक सुधार की वकालत की।
16 अप्रैल, 1796 को, उनकी पहली साहित्यिक कृति कोलरिज द्वारा प्रकाशित 'विभिन्न विषयों पर कविताएँ' के पहले खंड में सामने आई, जिसमें मेम्ने की चार कविताएँ थीं।
1798 में उनका रोमांटिक गद्य 'ए टेल ऑफ रोसमुंड' प्रकाशित हुआ था। उसी वर्ष उनकी रचनाएँ चार्ल्स लॉयड के साथ 'ब्लैक वर्स' पुस्तक में प्रकाशित हुईं।
1799 में अपने पिता की मृत्यु के बाद, मैरी हमेशा के लिए चार्ल्स के साथ रहने लगी। हालाँकि उसका पागलपन प्रकृति में बार-बार साबित हुआ और उसे कई बार शरण में जाना पड़ा।

अपने और अपनी बहन मैरी के लिए एक अच्छा जीवनयापन करने के लिए, उन्होंने लगभग 1801 से लंदन के समाचार पत्रों के लिए लघु लेख लिखना शुरू कर दिया।
उनका अगला प्रकाशन 1802 में काव्य त्रासदी 'जॉन वुडविल' था, जो सफलता हासिल करने में विफल रहा।
'श्री। एच', उनके दो-अभिनय वाले नाटक को 'ड्ररी लेन थिएटर' में 1807 में प्रदर्शित किया गया था।
उनकी उल्लेखनीय रचनाओं में से एक 'टेल्स फ्रॉम शेक्सपियर', जिसे उन्होंने अपनी बहन मैरी लैम्ब के साथ निर्मित किया था, 1807 में प्रकाशित हुई थी। यह बच्चों के लिए शेक्सपियर के नाटकों का एक रूपांतरण है जहाँ उन्होंने त्रासदियों पर काम किया था जबकि मैरी ने कॉमेडी पर काम किया था।
उन्होंने नाटकों के संबंध में अपने स्वयं के आलोचनात्मक विचारों को छिड़कते हुए शेक्सपियर के कार्यों को दोबारा बताया। शेक्सपियर और विलियम होगार्थ पर उनकी कई आलोचनात्मक समीक्षाएं हंट की एक त्रैमासिक पत्रिका 'रिफ्लेक्टर' पर प्रकाशित हुई थीं।
1808 में चार्ल्स लैम्ब बच्चों के लिए 'द एडवेंचर्स ऑफ यूलिसिस', 'ओडिसी' का एक रूपांतरण लेकर आए। उसी वर्ष उनके 'अंग्रेजी नाटकीय कवियों के नमूने जो शेक्सपियर के समय के बारे में जीते थे' जिसमें अलिज़बेटन नाटकों के चुनिंदा दृश्य शामिल थे।
इसके बाद चार्ल्स और मैरी ने 'श्रीमती' प्रकाशित किया। 1809 में लीसेस्टर स्कूल'।
निबंधों का एक संग्रह, 'एसेज ऑफ एलिया', जिसमें एलिया के अनुभवों का आत्मकथात्मक विवरण है, लैम्ब द्वारा बनाई गई एक काल्पनिक आकृति, 1823 में प्रकाशित हुई थी। निबंध पहले 'लंदन पत्रिका' में क्रमिक रूप से जारी किए गए थे, जो ब्रिटेन की सबसे पुरानी साहित्यिक पत्रिका है। रॉबर्ट साउथी ने 'त्रैमासिक समीक्षा' के जनवरी 1823 के अंक में 'एलिया के निबंध' की आलोचनात्मक समीक्षा की और लैम्ब को अधार्मिक के रूप में चित्रित किया। लैम्ब ने साउथी को एक पत्र लिखकर जवाबी कार्रवाई की और अक्टूबर 1823 को इसे 'लंदन पत्रिका' में प्रकाशित किया, जिसमें यह व्यक्त किया गया कि उनके चर्च से असंतुष्ट होने का मतलब यह नहीं है कि वह एक अधार्मिक व्यक्ति हैं।

'द यंग कैटेचिस्ट', 'ऑन द लॉर्ड्स प्रेयर', 'कम्पोज्ड एट मिडनाइट' और 'ए विजन ऑफ पश्चताप' उनकी कुछ कविताएँ हैं जो उनके विश्वास को दर्शाती हैं जबकि उन्होंने 'लिविंग विदाउट गॉड इन द वर्ल्ड' में नास्तिकता के लिए अपनी असहमति व्यक्त की थी। '।
उनकी कुछ अन्य उल्लेखनीय रचनाएँ 'ऑन द ट्रेजेडीज़ ऑफ़ शेक्सपियर' (1811), 'विच्स एंड अदर नाइट फ़ियर्स' (1821), 'द पॉनब्रोकर्स डॉटर' (1825) और 'द लास्ट एसेज़ ऑफ़ एलिया' (1833) हैं।अपनी बहन मैरी के साथ लैम्ब का काम, 'टेल्स फ्रॉम शेक्सपियर', विलियम गॉडविन की 'चिल्ड्रन्स लाइब्रेरी' में बेस्टसेलर के रूप में उभरा।
'एसेज ऑफ एलिया' में उनके निबंध संग्रह को निबंधों और रचनाओं की अंग्रेजी शैली पर सबसे उल्लेखनीय कार्यों में से एक माना जाता है।

1792 में उनकी पहली कथित प्रेमिका रुचि एन सीमन्स थी, जो छद्म नाम 'एलिस एम' के साथ अपने कई एलिया निबंधों में जगह पाती है। उनका प्रेम प्रसंग विफल हो गया और सीमन्स ने एक सुनार से शादी कर ली।
उन्हें फिर से अभिनेत्री फैनी केली से प्यार हो गया, लेकिन इस बार भी असफल रहे जब केली ने उनके शादी के प्रस्ताव को ठुकरा दिया।
1823 में उन्होंने और उनकी बहन ने एक अनाथ लड़की एम्मा इसोला को गोद लिया।
जैसे-जैसे उनकी बहन के पागलपन के झटके अधिक होते गए, वह 1833 में एडमोंटन में स्थानांतरित हो गए ताकि मैरी अपनी नर्स से निरंतर देखभाल प्राप्त कर सकें। उसी वर्ष एम्मा ने लैम्ब के मित्र एडवर्ड मोक्सन से विवाह किया और वह अधिक अकेला और उदास हो गया।

27 दिसंबर, 1834 को, सड़क पर गिरने के बाद एरिज़िपेलस से पीड़ित होने के बाद उनकी मृत्यु हो गई। उन्हें एडमॉन्टन में 'ऑल सेंट्स चर्चयार्ड' में दफनाया गया था। 1847 में उनकी मृत्यु के बाद मैरी को उनके बगल में रखा गया था।

7 साल की उम्र में उन्होंने क्राइस्ट हॉस्पिटल में प्रवेश किया, जो गरीब लेकिन सभ्य माता-पिता के बेटों के लिए एक मुफ्त बोर्डिंग स्कूल था। एक साथी छात्र सैमुअल टेलर कोलरिज के साथ आजीवन दोस्ती शुरू करने के बाद, लैम्ब ने 1789 में स्कूल छोड़ दिया। 1792 में उन्हें ईस्ट इंडिया कंपनी में एक क्लर्क के रूप में नियुक्त किया गया और अगले 33 वर्षों तक वहां काम किया।

22 सितंबर, 1796 को, मेम्ने की बहन, मैरी ने चिंतित क्रोध के क्षण में, अपनी मां की चाकू मारकर हत्या कर दी। एक जांच में मैरी को अस्थायी रूप से पागल पाया गया और उसे चार्ल्स की हिरासत में रखा गया। 1799 में अपने पिता की मृत्यु के बाद, मैरी जीवन भर चार्ल्स के साथ रहने आई। यह साहचर्य अंतराल पर तभी टूटता था जब मरियम की बीमारी के लक्षण फिर से प्रकट हो जाते थे कि उसे एक शरण में जाना पड़ता था। इस आजीवन संरक्षकता ने मेमने को कभी भी शादी करने से रोक दिया। उन्होंने खुद 1795 की सर्दियों के दौरान 6 सप्ताह एक शरण में बिताए थे, जीवन भर बुरी तरह से लड़खड़ाते रहे और शराब पर निर्भर होते गए। यह बहुत संभव है कि मरियम के प्रति उसकी जिम्मेदारी ने उसे अपने विवेक पर एक मजबूत पकड़ बनाए रखने में मदद की।

लैम्ब का साहित्यिक करियर 1796 में शुरू हुआ, जब कोलरिज ने लैम्ब के चार सॉनेट्स को अपने पहले खंड, पोएम्स ऑन वेरियस सब्जेक्ट्स में प्रकाशित किया। 1798 में लैम्ब ने अपना भावुक रोमांस, ए टेल ऑफ़ रोसमंड ग्रे प्रकाशित किया, और, चार्ल्स लॉयड, कोलरिज के एक मित्र के साथ, ब्लैंक वर्स नामक एक खंड निकाला। 1801 तक लैम्ब ने लंदन के अखबारों में छोटे लेखों का योगदान देना शुरू कर दिया था और गरीबी को दूर करने के प्रयास में नाटक लिखना शुरू कर दिया था, जिसे उन्होंने और मैरी ने सहन किया था। 1802 में उन्होंने जॉन वुडविल को प्रकाशित किया, एक खाली-कविता वाला नाटक, जिसे कोई सफलता नहीं मिली, और 10 दिसंबर, 1806 की रात को, उनके दो-अभिनय वाले मिस्टर एच। लेन थियेटर।

1807 में चार्ल्स और मैरी ने मिलकर शेक्सपियर के किस्से निकाले, जो युवा पाठकों के लिए शेक्सपियर के नाटकों के गद्य रूपांतरों का एक संग्रह था। यह पुस्तक युवा और वृद्ध दोनों के बीच लोकप्रिय साबित हुई, और लैम्ब्स ने इसी तरह दूसरों के साथ इस सफलता का अनुसरण किया। 1808 में चार्ल्स ने बच्चों के लिए होमर ओडिसी का अपना संस्करण प्रकाशित किया , द एडवेंचर्स ऑफ यूलिसिस, और 1809 में उन्होंने मैरी के साथ मिसेज लीसेस्टर स्कूल, बच्चों की कहानियों की एक पुस्तक, और पोएट्री फॉर चिल्ड्रेन पर फिर से सहयोग किया ।

इस बीच लैम्ब ने 1808 में शेक्सपियर के समय के बारे में रहने वाले अंग्रेजी नाटकीय कवियों के संकलन नमूने का संपादन करके अपने करियर का एक नया पहलू शुरू किया । उनके द्वारा चुने गए चयनों पर लैम्ब की शानदार टिप्पणियों ने एक आलोचक के रूप में उनकी प्रतिष्ठा शुरू की, और शेक्सपियर के समकालीनों में रुचि के पुनरुद्धार के लिए पूरी मात्रा काफी हद तक जिम्मेदार थी, जो इसके प्रकाशन के बाद हुई। लैम्ब ने 1811 में लेह हंट की पत्रिका, द रिफ्लेक्टर में प्रकाशित निबंध "ऑन द जीनियस एंड कैरेक्टर ऑफ हॉगर्थ" और "द ट्रेजेडीज ऑफ शेक्सपियर" के साथ अपने महत्वपूर्ण करियर को आगे बढ़ाया । 1818 में उन्होंने दो-खंडों का संग्रह द वर्क्स ऑफ चार्ल्स निकाला। मेमना। विडंबना यह है कि उनका वास्तविक साहित्यिक जीवन अभी शुरू होना बाकी था।

हालाँकि लैंब अभी भी प्रसिद्ध से दूर था, फिर भी ये वर्ष उसके जीवन के सबसे सुखद वर्षों में से थे। इनर टेम्पल लेन में अपने घर पर, उन्होंने और मैरी ने बुधवार की देर शाम कई सभाओं में अपने दोस्तों का मनोरंजन किया। कंपनी में रोमांटिक काल के कई प्रसिद्ध लेखक शामिल थे- कॉलरिज, विलियम वर्ड्सवर्थ, रॉबर्ट साउथी, विलियम हेज़लिट और हंट। फिर भी हेज़लिट के अनुसार, मेम्ने ने "हमेशा शाम की सबसे अच्छी वाक्य और सबसे अच्छी टिप्पणी" की। साथ ही, इन वर्षों के दौरान इन मित्रों को लैम्ब के पत्र उनके द्वारा लिखी गई सबसे अच्छी चीजों में से हैं। उत्कृष्ट आलोचनात्मक टिप्पणियों से भरे हुए, वे मेम्ने के स्वयं के व्यक्तित्व के बहुत से विनोदी हास्य को भी प्रकट करते हैं।

निस्संदेह इन पत्रों ने मेमने को एक परिचित निबंधकार के रूप में उसकी आगामी विजय के लिए तैयार करने के लिए बहुत कुछ किया। 1820 से 1825 तक उन्होंने लंदन पत्रिका में निबंधों की एक श्रृंखला का योगदान दिया जो बेहद लोकप्रिय थे। हालांकि उन्होंने छद्म नाम एलिया के तहत लिखा, ये निबंध, उनके पत्रों की तरह, मेम्ने के अपने विचारों, भावनाओं और साहित्य और जीवन के अनुभवों के अंतरंग रहस्योद्घाटन हैं। वह कुछ परेशान करने वाले विषयों को छूता है। वह इसके बजाय शांत, स्थिरता और परिवर्तनहीनता की भावना के लिए अतीत की ओर देखना पसंद करता है। फिर भी "ए निबंध ऑन रोस्ट पिग," "चुड़ैलों और अन्य रात-भय," और "ड्रीम चिल्ड्रन" जैसे निबंधों की बुद्धि, हास्य और मानवता के नीचे, एक को एक सौम्य उदासीनता और उदासी मिलती है। यह चुलबुला स्वर लैम्ब की शैली की पहचान बना हुआ है।

1823 में चार्ल्स और मैरी मिले और अंततः एक अनाथ लड़की, एम्मा इसोला को गोद लिया। अगस्त में लैम्ब्स पहली बार लंदन से इस्लिंगटन और फिर एनफील्ड चले गए। चार्ल्स का स्वास्थ्य कमजोर हो रहा था, और 1824 की सर्दियों के दौरान एक लंबी बीमारी के कारण उन्हें ईस्ट इंडिया कंपनी से स्थायी रूप से सेवानिवृत्त होना पड़ा। अब उन्होंने एम्मा इसोला के साथ हर्टफोर्डशायर के चारों ओर घूमने की यात्रा के साथ अपना समय बिताया।

1833 तक मैरी के हमलों की आवृत्ति और अवधि बढ़ गई थी, जिससे उन्हें लगभग निरंतर देखभाल की आवश्यकता थी, इसलिए लैम्ब्स मैरी की नर्स के पास रहने के लिए एडमोंटन चले गए। चार्ल्स ने उसी वर्ष एलिया के अंतिम निबंध के साथ अपने साहित्यिक जीवन का अंत किया। जुलाई में, चार्ल्स के दोस्त एडवर्ड मोक्सन से एम्मा की शादी ने उन्हें उदास और अकेला छोड़ दिया। एक साल बाद कॉलरिज की मृत्यु ने उस अकेलेपन को तीव्र बना दिया। "मुझे लगता है कि वह मेरा कितना बड़ा हिस्सा था," लैम्ब ने लिखा। पांच हफ्ते बाद, 27 दिसंबर, 1834 को, मेम्ना खुद मर गया था।

लैम्ब की एक उत्कृष्ट जीवनी एडवर्ड वी. लुकास, द लाइफ ऑफ चार्ल्स लैम्ब (2 खंड, 1905; 5वां संस्करण। रेव। 1921) है। क्योंकि लुकास मेमने के दोस्तों की यादों और मेम्ने के अपने पत्रों से बड़े पैमाने पर उद्धरण देता है, उसकी पुस्तक अपने विषय की असामान्य रूप से विस्तृत तस्वीर देती है, और सामग्री की विस्तृत तालिका पाठक को मेम्ने के जीवन में किसी विशेष प्रकरण का शीघ्रता से पता लगाने में सक्षम बनाती है। एडमंड ब्लंडेन, चार्ल्स लैम्ब (1954), एक उपयोगी, संक्षिप्त जीवनी और आलोचनात्मक परिचय है। लैम्ब के निबंधों का एक अच्छा आलोचनात्मक अध्ययन जॉर्ज एल बार्नेट, चार्ल्स लैम्ब: द इवोल्यूशन ऑफ एलिया (1964) है।एडमोंटन में 'द लैटिमर स्कूल' के छह घरों में से एक का नाम उनके नाम पर रखा गया है।
विलियम वर्ड्सवर्थ ने अपने मित्र को उनकी एपिटैफ कविता 'राइटन आफ्टर द डेथ ऑफ चार्ल्स लैम्ब' (1835; 1836) के साथ श्रद्धांजलि अर्पित की।

निबंधकार, आलोचक, कवि, और नाटककार चार्ल्स लैम्ब ने 1820-1825 के वर्षों के दौरान एक लेखक के रूप में स्थायी ख्याति प्राप्त की, जब उन्होंने लंदन पत्रिका में अपने व्यक्तिगत निबंधों के साथ समझदार अंग्रेजी पढ़ने वाले लोगों को मोहित किया, जिसे एलिया के निबंध (1823) के रूप में एकत्र किया गया था । एलिया के अंतिम निबंध (1833)। उनके आकर्षण, हास्य और धारणा के लिए जाना जाता है, और विशिष्टताओं से युक्त, ये निबंध मामूली दायरे में दिखाई देते हैं, लेकिन उनकी आवाज़ गहरी होती है, और उनकी लहरें मानव जीवन-विशेष रूप से कल्पना के जीवन को गले लगाने के लिए विस्तारित होती हैं। 20वीं शताब्दी में, मेम्ने को उनके आलोचनात्मक लेखन के लिए भी पहचाना जाता था; लैम्ब ऐज़ क्रिटिक (1980) पत्र सहित सभी स्रोतों से अपनी आलोचना एकत्र करता है।

जॉन और एलिजाबेथ फील्ड लैम्ब के बेटे, चार्ल्स लैम्ब, एक लंदनवासी जो उस शहर से प्यार करते थे और उसका जश्न मनाते थे, का जन्म लंदन के वकीलों के निवास मंदिर में हुआ था, जहां उनके पिता इनमें से एक सैमुअल साल्ट के लिए वास्तविक थे। परिवार अपने दो बेटों, जॉन और चार्ल्स के लिए महत्वाकांक्षी था, और 9 अक्टूबर, 1782 को लंदन चैरिटी स्कूल ऑफ मेरिट में क्राइस्ट हॉस्पिटल में चार्ल्स में प्रवेश करने में सफल रहा। यहां उनकी मुलाकात सैमुअल टेलर कोलरिज से हुई।, एक साथी छात्र जो जीवन भर मेमने का करीबी दोस्त था और जिसने कविता में उसकी बढ़ती रुचि को जगाने में मदद की। 1789 के अंत में मेम्ने ने जल्दी स्कूल छोड़ दिया। (क्योंकि वह एक गंभीर हकलाने वाला था, उसने विश्वविद्यालय के कैरियर की तलाश नहीं की, फिर इंग्लैंड के चर्च में युवा पुरुषों को आदेश के लिए तैयार करने का इरादा किया।) सितंबर 1791 में उन्हें एक क्लर्क के रूप में काम मिला। साउथ सी हाउस, लेकिन उन्होंने अगले फरवरी को छोड़ दिया, और अप्रैल में वे ईस्ट इंडिया कंपनी में एक क्लर्क बन गए, जहाँ वे 33 वर्षों तक रहे, कभी भी काम के लिए फिट महसूस नहीं किया और न ही "व्यवसाय" में ज्यादा दिलचस्पी ली, लेकिन जीवित रहने का प्रबंधन किया , हालांकि पदोन्नति के बिना।

स्कूल छोड़ने के तुरंत बाद, उन्हें हर्टफोर्डशायर उनकी बीमार दादी, एक हवेली में गृहस्वामी के पास भेज दिया गया, जो शायद ही कभी उसके मालिकों द्वारा देखी जाती थीं। यहां उन्हें एन सिमंस से प्यार हो गया, जो उनके शुरुआती सॉनेट्स का विषय था (हालांकि उनका पहला प्रकाशन, 29 दिसंबर, 1794 के मॉर्निंग क्रॉनिकल के अंक में , कोलरिज के साथ अभिनेत्री सारा सिडन्स के लिए एक संयुक्त प्रयास था- उनके आजीवन साक्ष्य लंदन थिएटर के प्रति समर्पण)। उनके "अन्ना" सॉनेट्स, जो कोलरिज की कविताओं के 1796 और 1797 संस्करणों में दिखाई दिए, एक भावुक, उदासीन गुण है: "क्या यह फेयरी का कोई मीठा उपकरण था / जिसने कई एकाकी ग्लेड के साथ मेरे कदमों का मज़ाक उड़ाया, / और एक गोरा-बालों वाली नौकरानी के साथ घूमने की कल्पना की?"; "सोचता है कि वह कितना प्यारा था, झुक गया"; "आखिरी बार जब मैंने इन घुमावदार लकड़ी-चलने वाले हरे रंग को घुमाया"; "एक डरपोक कृपा उसकी आँखों में कांप रही है।" प्रेम प्रसंग समाप्त होने के बाद, मेम्ने के पछतावे के लिए सभी लिखे गए थे। उनका प्रारंभिक उपन्यास, ए टेल ऑफ़ रोसमंड ग्रे (1798), भी एन एपिसोड में निहित है।

1792 में शमूएल साल्ट की मृत्यु के बाद मेम्ने बहुत कठिन परिस्थितियों में थे, माता और पिता दोनों बीमार थे। बड़ा भाई, जॉन स्वतंत्र रूप से रह रहा था और अपने परिवार के प्रति उदार नहीं था। चार्ल्स (एक अवैतनिक शिक्षुता के बाद) और उसकी बड़ी बहन, मैरी, एक ड्रेसमेकर, जो पहले से ही मानसिक अस्थिरता के लक्षण दिखा चुकी थी, पर परिवार के लिए प्रदान करने का बोझ गिर गया, और मैरी ने नर्सिंग भी संभाली। मेमने के दो शुरुआती सॉनेट्स उसे संबोधित किए गए हैं: मैरी, जो चार्ल्स से दस साल बड़ी थी, ने उसे एक बच्चे के रूप में पाला था, और उनका रिश्ता हमेशा एक करीबी था। चार्ल्स ने लिखना जारी रखा - एक स्कॉटिश विषय पर एक गाथागीत, दोस्तों को कविताएँ और विलियम काउपर को उस कवि के पागलपन से उबरने पर। "पश्चाताप की दृष्टि" ("मैंने अपने सपने में एक प्रसिद्ध फव्वारा देखा"रोमांटिक विषय - एक पश्चाताप करने वाले मानस के पाप के लिए भगवान की क्षमा की आशा।

22 सितंबर, 1796 की त्रासदी - जब मैरी, अधिक काम से थकी हुई और व्याकुल होकर, अपनी माँ को एक नक्काशीदार चाकू से मार डाला - ने दोनों के जीवन को हमेशा के लिए बदल दिया। उसे अस्थायी रूप से पागल करार दिया गया था, और 22 साल की उम्र में मेम्ने ने उसे स्थायी अस्पताल में भर्ती होने से बचाने के लिए जीवन भर के लिए पूरी कानूनी जिम्मेदारी ली। इसके बाद वह अक्सर स्पष्टवादी, गर्म, समझदार और निबंधकार विलियम हेज़लिट जैसे दोस्तों द्वारा बहुत प्रशंसा की जाती थी। उन्होंने एक लेखक के रूप में भी कौशल विकसित किया। लेकिन वह लगभग हर साल अवसादग्रस्त बीमारी के कारण आती थी, जिसके कारण उसे होक्सटन के एक निजी अस्पताल में एक सप्ताह के लिए कारावास में रखा गया था। (मेम्ने को भी 1795 में अपनी मानसिक स्थिति के लिए होक्सटन में कुछ समय के लिए सीमित कर दिया गया था, लेकिन बाद में कोई पुनरावृत्ति नहीं हुई थी।) दोनों को दोस्ती की क्षमता और लेखकों, वकीलों, अभिनेताओं की अपनी मध्य-जीवन साप्ताहिक सभाओं के लिए जाना जाता था।

फिलहाल लैम्ब ने कविता को पूरी तरह से "त्याग" दिया, लेकिन उन्होंने जल्द ही इसे फिर से लिया और शेक्सपियर के रिक्त पद, जॉन वुडविल (1802) में एक त्रासदी पर काम करना शुरू कर दिया, जिसमें आत्मकथात्मक तत्व हैं। जबकि कुछ महीन रेखाएँ हैं और सामान्य रूप से लेखन सक्षम है लेकिन मूल नहीं है, कथानक और चरित्र कमजोर हैं: इसे कभी निर्मित नहीं किया गया था। "द वाइफ्स ट्रायल", रिक्त पद्य में एक देर से नाटक, मामूली रुचि का है। यह ब्लैकवुड की पत्रिका के दिसंबर 1828 के अंक में प्रकाशित हुआ था । मंच पर पहुंचने के लिए उनका एकमात्र नाटक, मिस्टर एच ——(गद्य में), लंदन में जब यह 10 दिसंबर, 1806 को खोला गया था, तब इसे पूरी तरह से सुना गया था, लेकिन इसके बाद इसे संयुक्त राज्य अमेरिका में सफलतापूर्वक तैयार किया गया था।

हालाँकि अपनी माँ की मृत्यु के तुरंत बाद उन्होंने कविता को "मेरे बेटर्स के लिए" छोड़ने के अपने इरादे की घोषणा की, मेम्ने ने अपने पूरे जीवन में विभिन्न प्रकार के छंद लिखना जारी रखा: सॉनेट्स, लिरिक्स, ब्लैंक वर्स, लाइट वर्स, दोस्तों के नाटकों के लिए प्रस्तावना और उपसंहार, व्यंग्य कविता, पद्य अनुवाद, बच्चों के लिए पद्य, और अंत में एल्बम वर्सेज (1830), युवा महिलाओं को खुश करने के लिए लिखा गया, जिन्होंने इस तरह की श्रद्धांजलि की किताबें रखीं। 1820 तक उन्होंने अपनी "एलिया" गद्य शैली विकसित कर ली थी। वह पहले बेहद व्यक्तिगत, सही मायने में रोमांटिक निबंधकार थे, जो कभी भी अपने दोस्तों लेह हंट और विलियम हेज़लिट द्वारा लोकप्रियता में प्रतिद्वंद्वी नहीं थे । एलिया पर हस्ताक्षर करने से पहले लैम्ब के कई निबंध हंट के प्रकाशनों में सामने आए। जबकि वह अपने गद्य ईवी लुकास, एडमंड ब्लंडेन के लिए बेहतर जाने जाते हैंजॉर्ज एल. बार्नेट और विलियम कीन सीमोर ने उनकी कविता के आकर्षण, ईमानदारी, भावना की ताकत और मौलिकता की ओर इशारा किया है। "उनकी कविता," सीमोर लिखते हैं, "उनके निबंधों के लिए एक लटकन बनाता है, और यह एक चमकदार और महत्वपूर्ण लटकन है।" कलाकार और आलोचक की भूमिकाएँ, निश्चित रूप से, बहुत अलग क्षमताओं की माँग करती हैं: लैम्ब पत्राचार में, कोलरिज और वर्ड्सवर्थ की कविता के एक सक्षम आलोचक थे , जो कभी-कभी उनकी सलाह लेते थे। (वह 1797 में कोलरिज के माध्यम से वर्ड्सवर्थ से मिले, जो आजीवन मित्र बन गए।)"

मेम्ने की रिक्त-कविता कविताएँ काफी रुचिकर हैं, जो उनकी माँ की मृत्यु के बाद उनके आध्यात्मिक संघर्षों को प्रकट करती हैं क्योंकि उन्होंने धर्म में सांत्वना मांगी थी। एक में, उन्हें संदेह है कि नास्तिक या आस्तिक (जैसे उनके मित्र विलियम गॉडविन, उपन्यासकार, दार्शनिक और बच्चों की पुस्तकों के प्रकाशक) के पास जीवन के बड़े प्रश्नों के पर्याप्त उत्तर हैं; अन्य कविताएँ बूढ़ी चाची की मृत्यु पर रहती हैं, जिनकी पसंदीदा वह थी (वह अपने निबंध "चुड़ैलों और अन्य रात-भय" में भी दिखाई देती हैं), उनकी मृत माँ पर पछतावे के साथ, उनके पिता की बुढ़ापा पर, मैरी के भाग्य पर, और संस्थागत धर्म के बारे में उनके बढ़ते संदेह पर। उनके क्वेकर मित्र चार्ल्स लॉयड द्वारा उनकी ब्लैंक वर्स (1798) में कविताओं के साथ कई प्रकाशित किए गए थे।

इस समूह की रचना करने के तुरंत बाद उन्होंने अपनी दादी (बाद में "ड्रीम-चिल्ड्रेन" में विकसित) पर लॉयड्स पोएम्स ऑन द डेथ ऑफ प्रिसिला किसान (1796) में एक अंश का योगदान दिया। इस अवधि की परिणति " द ओल्ड फेमिलियर फेसेस " (1798 में लिखी गई और ब्लैंक वर्स में प्रकाशित ) थी, जो समाप्त होती है:

कुछ वे मर गए, कितनों ने मुझे छोड़ दिया,
और कितनों को मुझ से ले लिया गया; सभी चले गए हैं;
सब, सब चले गए, पुराने जाने-पहचाने चेहरे।

यह कविता अभी भी संकलित है; यह अनुग्रह के साथ अपने स्वयं के युवाओं की कहानी बताता है, जो एक सार्वभौमिक मानव राग को छूता है। 1803 में लिखा गया और लैम्ब के 1818 वर्क्स में प्रकाशित हुआ , "हेस्टर" अपने विषय के रूप में एक युवा क्वेकर को लेता है जिसे उसने अक्सर देखा था, लेकिन जिसे उसने कभी नहीं बोला था, हालांकि उसने कहा कि वह उसके साथ "प्यार में" था। उसने जल्दी शादी कर ली और जल्द ही उसकी मृत्यु हो गई; उनकी कविता, एक आकर्षक लड़की को एक कोमल श्रद्धांजलि, जो मृत्यु को भी बढ़ाती है, उसे संबोधित पंक्तियों के साथ समाप्त होती है:

मेरे चटपटे पड़ोसी, पहले चले गए
उस अनजान और खामोश किनारे पर,
क्या हम नहीं मिलेंगे, जैसा कि पहले था,
किसी गर्मी की सुबह,

जब तेरी खुशमिजाज आँखों से एक किरण
ने दिन पर एक आनंद मारा,
एक आनंद जो दूर नहीं जाएगा,
एक मीठा पूर्व चेतावनी?

ये उनकी काव्य विजय हैं। उनके बाद मित्रों के पास और कविताएँ आईं, और राजनीतिक छंद भी, जो अक्सर तीखे और चतुर, यहाँ तक कि विषैले भी होते हैं। प्रिंस रीजेंट पर "द ट्रायम्फ ऑफ द व्हेल", जिसे वह ईमानदारी से नफरत करता था, हंट्स एक्जामिनर (15 मार्च, 1812) में प्रकाशित हुआ था और हो सकता है कि वह मानहानि के लिए हंट के दो साल के कारावास में एक हिस्सा हो, हालांकि आधिकारिक आरोप आधारित था एक हफ्ते बाद हंट के संपादकीय पर। लैम्ब के बाद के वर्षों की एक और कठोर कविता, "द जिप्सी मैलिसन", बीमार पैदा हुए बच्चे पर, जिसे फांसी पर लटकाया जाना तय है, कभी-कभी संकलन किया जाता है। "द ट्रायम्फ ऑफ द व्हेल" की तरह, यह मेम्ने की जटिल प्रकृति के एक कड़वे पहलू को प्रकट करता है, जो उसके काम में शायद ही कभी लेकिन लगातार दिखाई देता है। मेमने के विनोदी प्रकाश-कविता के टुकड़ों में, " ए फेयरवेल टू टोबैको "" सर्वश्रेष्ठ में से एक है। उन्होंने कभी भी धूम्रपान नहीं छोड़ा या पीने के लिए अपना स्वाद नहीं खोया, हालांकि उन्होंने अक्सर कोशिश की।

1808 में उन्होंने अंग्रेजी नाटकीय कवियों के अपने नमूने प्रकाशित किए, जो शेक्सपियर के समय के बारे में रहते थे , टिप्पणी के साथ, जिसे बाद में रोमांटिक्स की युवा पीढ़ी, विशेष रूप से कीट्स द्वारा सराहा गया , और एक आलोचक के रूप में मेम्ने की स्थापना की। आवश्यक नकदी के लिए, उन्होंने और मैरी ने गॉडविन के अनुरोध पर, पोएट्री फॉर चिल्ड्रन (1809) लिखा, जिसमें बच्चों के प्रति उनका प्रेम नैतिक छंदों के माध्यम से चमकता है। यह दूसरे संस्करण तक नहीं पहुंचा, लेकिन श्रीमती लीसेस्टर स्कूल (1809) और टेल्स फ्रॉम शेक्सपियर (1807) के साथ लैम्ब्स अधिक सफल रहे , जो तब से कभी भी आउट ऑफ प्रिंट नहीं हुआ।

1818 में लैम्ब ने अपनी प्रारंभिक रचनाएँ प्रकाशित कीं , और 1819 में उन्होंने एक लोकप्रिय हास्य अभिनेत्री फैनी केली को प्रस्ताव दिया, जो बाद में डिकेंस की दोस्त और लड़कियों के लिए पहले नाटकीय स्कूल की संस्थापक थीं। उसने उसे मना कर दिया, एक दोस्त को यह विश्वास दिलाया कि वह मैरी की समस्याओं को भी नहीं उठा सकती। चार्ल्स और मैरी को 1823 में एक किशोर अनाथ, एम्मा इसोला के "गोद लेने" में एक प्रकार का पितृत्व पता था, जिन्होंने 1833 में लैम्ब के नए युवा प्रकाशक एडवर्ड मोक्सन से शादी करने तक अपने घर को अपना घर माना था।

1820-1825 के वर्षों में लैम्ब ने लंदन पत्रिका में एलिया के रूप में अपनी प्रतिष्ठा बनाई । 1825 तक, हालांकि वह अभी भी एक क्लर्क था, लंबी सेवा के बाद मेम्ने का वेतन बढ़ गया था, और वह मैरी के लिए एक अच्छी पेंशन और प्रावधान के साथ 50 साल की उम्र में सेवानिवृत्त होने में सक्षम था। उन्होंने ब्रिटिश संग्रहालय में कई वर्षों के लिए अपने नए अवकाश पर कब्जा कर लिया, और अधिक नाटकीय अंश संकलित किए, जो 1827 में विलियम होन की टेबल बुक में दिखाई दिए , और समय-समय पर अन्य लेखन में योगदान दिया। जब 1830 में एल्बम वर्सेज दिखाई दिया, उसके बाद एक पत्नी की खोज में हास्य गाथागीत शैतान (1831), उन्हें आलोचकों द्वारा खराब तरीके से प्राप्त किया गया; एलिया के अंतिम निबंध (1833), लंदन पत्रिका से , ने अधिक अनुकूल प्रभाव डाला।

मरियम की घर से बढ़ती अनुपस्थिति का कारण ज्ञात होने के कारण भाई-बहन को कई बार इधर-उधर जाना पड़ा। उनका अंतिम कदम 1833 में लंदन के पास एडमोंटन में एक तरह के सैनिटेरियम में था। यहां, 1834 में एक दिन चलते समय, मेम्ना गिर गया। कुछ दिनों बाद एक जीवाणु संक्रमण से उनकी मृत्यु हो गई। मैरी 1847 तक एक सशुल्क साथी के साथ रहीं।

लैम्ब के निबंध द्वितीय विश्व युद्ध तक स्कूलों में पढ़ाए जाते थे, जब एफआर लेविस जैसे आलोचकों ने आलोचनात्मक दृष्टिकोणों में बदलाव में योगदान दिया। फिर भी 1970 के दशक में गंभीर विद्वानों ने मेम्ने के पत्रों में नए गुणों की खोज की। आलोचना, और निबंध। 1980 के दशक के बाद से, लैम्ब के गद्य को विद्वानों के बीच नए सिरे से सराहना मिली है, जो व्यावहारिक आत्मकथाओं और महत्वपूर्ण अध्ययनों के प्रकाशन द्वारा चिह्नित है। लंदन की चार्ल्स लैम्ब सोसाइटी फलती-फूलती है, और एक बुलेटिन प्रकाशित करती है जो 1970 के दशक में अपनी नई श्रृंखला शुरू होने के बाद से प्रभावशाली रूप से विद्वतापूर्ण बन गया है।
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मंगलवार, 19 अप्रैल 2022

सॉनेट,चिंतन,छंद अमृतध्वनि, दोहे, आँख,ग़ज़ल

सॉनेट
हृदय गगरिया
हृदय गगरिया रीती है प्रभु!
नेह नर्मदा जल छलकाओ।
जो बीती सो बीत गई विभु!
नैन नैन से तनिक मिलाओ।।

राम सिया में, सिया राम में।
अंतर अंतर बिसरा हेरे।
तुम्हीं समाए सकल धाम में।।
श्वास-श्वास तुमको हरि टेरे।।

कष्ट कंकरी मारे कान्हा।
राग-द्वेष की मटकी फोड़े।।
सद्भावों सँग रास रचाए।
भगति जसोदा तनिक न छोड़े।।

चित्र गुप्त जो प्रकट करो प्रभु।
चित्र गुप्त कर शरण धरो प्रभु।।
१८-४-२०२२
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चिंतन १
*
- चमन में अमन के लिए नित नए प्रयास करना रहना उचित ही नहीं, आवश्यक भी है।
- प्रयास की सफलता के लिए नवता, उपयोगिता, समयबद्धता, सटीकता तथा सहभागिता जरूरी है।
नवता
- जो कुछ पहले बार-बार किया जा चुका हो, जिससे कोई स्थायी परिणाम न निकला हो, जो निरुपयोगी रहा हो- वही एक बार और करना निरर्थक है।
बेहतर है कुछ नया सोचें, कुछ नया करें।
उपयोगिता
- अतीत की उपयोगिता उससे सीख लेकर भविष्य को बेहतर बनाना है। अतीतजीवी उन्नति नहीं कर सकता। कब्र खोदें या समाधि, अस्थि पंजर के सिवा कुछ नहीं मिलेगा। नया इतिहास लिखा नहीं बनाया जाता है।
नया प्रयास करने के पहले आम आदमी और नई पीढ़ी के लिए उसकी उपयोगिता परखिए।
समयबद्धता
- किसी कार्य या कार्यक्रम को निर्धारित समय में पूर्ण करें मरीज मरने के बाद संजीवनी बूटी भी ले आएँ तो किसी काम की नहीं। अभी नहीं तो कभी नहीं, यह सोचकर संकल्प को सिद्धि बनाएँ।
सटीकता
- महाभारत का द्रोणाचार्य-अर्जुन प्रसंग बताता है कि सफलता के लिए सटीकता जरूरी है। लक्ष्य निर्धारित न हो तो बहुदिशायी प्रयास शक्ति, संसाधन तथा समय का अपव्यय मात्र है।
सहभागिता
- सहभागी को सहयोगी होना चाहिए। लंबे समय तक पदों से चिपके, लक्ष्य पाने में विफल रहे, मंच-माला-माइक- चित्र तथा खबरों तक खुद को रखनेवाले सहभागी साधक नहीं, बाधक होते हैं।
किसी कार्ययोजना पर विचार करते समय उक्त बिंदुओं का ध्यान रखा जाना आवश्यक है।
१८-४-२०२२
***
हिंदी छंद : अमृतध्वनि
*
अमृतध्वनि भी कुण्डलिनी का तरह षट्पदी (६ पंक्ति का) छंद है. इसमें प्रत्येक पंक्ति को ८-८ मात्राओं के ३ भागों में बाँटा जाता है. इसमें यमक और अनुप्रास का प्रयोग बहुधा होने पर एक विशिष्ट नाद (ध्वनि) सौन्दर्य उत्पन्न होने से इसका नाम अमृतध्वनि हुआ.
रचना विधान:
१. पहली दो पंक्तियाँ दोहा: १३-११ पर लघु के साथ यति.
२. शेष ४ पंक्तियाँ: २४ मात्राएँ ८, ८, ८ पर लघु के साथ यति.
३. दोहा का अंतिम पद तृतीय पंक्ति का प्रथम पद.
४. दोहा का प्रथम शब्द (शब्द समूह नहीं) छ्न्द का अंतिम शब्द हो.
नवीन चन्द्र चतुर्वेदी :
उन्नत धारा प्रेम की, बहे अगर दिन रैन|
तब मानव मन को मिले, मन-माफिक सुख चैन||
मन-माफिक सुख चैन, अबाधित होंय अनन्‍दित|
भाव सुवासित, जन हित लक्षित, मोद मढें नित|
रंज न किंचित, कोई न वंचित, मिटे अदावत|
रहें इहाँ-तित, सब जन रक्षित, सदा समुन्नत||
पं. रामसेवक पाठक 'हरिकिंकर' :
आया नाज़ुक समय अब, पतित हुआ नर आज.
करता निन्दित कर्म सब, कभी न आता बाज..
कभी न आता, बाज बेशरम, सत भी छोड़ा.
परहित भूला, फिरता फूला, डाले रोड़ा..
जग-दुःख छाया, अमन गँवाया, चैन न पाया.
हर्षित पुलकित, प्रमुदित हुआ न, कुसमय आया..
मनोहर शर्मा 'माया' :
पावस है वरदान सम, देती नीर अपार.
हर्षित होते कृषक गण, फसलों की भरमार..
झर-झर पानी, करे किसानी, कीचड़ सानी.
वारिद गरजे, चपला चमके, टप-टप पानी..
धान निरावे, कजरी गावे, बीते 'मावस.
हर्षित हर तन, पुलकित हर मन, आई पावस..
(दोहे का अंतिम चरण तीसरी पंक्ति का प्रथम चरण नहीं है, क्या इसे अमृतध्वनि कहेंगे?)
संजीव वर्मा 'सलिल'
जलकर भी तम हर रहे, चुप रह मृतिका-दीप.
मोती पाले गर्भ में, बिना कुछ कहे सीप.
सीप-दीप से, हम मनुज तनिक, न लेते सीख.
इसीलिए तो, स्वार्थ में लीन, पड़ रहे दीख.
दीप पर्व पर, हों संकल्पित, रह हिल-मिलकर.
दें उजियारा, आत्म-दीप बन, निश-दिन जलकर.
(दोहे का अंतिम चरण तीसरी पंक्ति का प्रथम चरण नहीं है, किन्तु दोहे का अंतिम शब्द तीसरी पंक्ति का प्रथम शब्द है, क्या इसे अमृतध्वनि कहेंगे?)
***
दोहे आँख के...




कही कहानी आँख की, मिला आँख से आँख.
आँख दिखाकर आँख को, बढ़ी आँख की साख..

आँख-आँख में डूबकर, बसी आँख में मौन.
आँख-आँख से लड़ पड़ी, कहो जयी है कौन?

आँख फूटती तो नहीं, आँख कर सके बात.
तारा बन जा आँख का, 'सलिल' मिली सौगात..

कौन किरकिरी आँख की, उसकी ऑंखें फोड़.
मिटा तुरत आतंक दो, नहीं शांति का तोड़..

आँख झुकाकर लाज से, गयी सानिया पाक.
आँख झपक बिजली गिरा, करे कलेजा चाक..

आँख न खटके आँख में, करो न आँखें लाल.
काँटा कोई न आँख का, तुम से करे सवाल..

आँख न खुलकर खुल रही, 'सलिल' आँख है बंद.
आँख अबोले बोलती, सुनो सृजन के छंद..

***
एक शेर
इन्तिज़ार दिल से करोगे जो पता होता.
छोड़कर शर्मो-हया मैं ही मिल गयी होती.
***
दोहा सलिला :
*
गीता रामायण समझ, जिसे रहा मैं बाँच.
उसे न हीरे की परख, चाह रही वह काँच.

दोहा-चौपाई सरस, गाया मैंने मीत.
नेह निभाने की नहीं, उसे सुहाई रीत.

नहीं भावना का किया, दो कौडी भी मोल.
मौका पाते ही लिया, छिप जेबों को तोल.

केर-बेर का संग यह, कब तक देता साथ?
जुडें नमस्ते कर सकें, अगर अलग हों हाथ.
***
ग़ज़ल
*
चल पड़े अपने कदम तो,मंजिलें भी पायेंगे.
कंठ-स्वर हो साज़ कोई, गीत अपने गायेंगे.

मुश्किलों से दोस्ती है, संकटों से प्यार है.
'सलिल' बनकर नर्मदा हम, सत्य-शिव दुहारायेंगे.

स्नेह की हर लहर हर-हर, कर निनादित हो रही.
चल तनिक अवगाह लें, फिर सूर्य बनकर छायेंगे.

दोस्तों की दुश्मनी की 'सलिल' क्यों चिंता करें.
दुश्मनों की दोस्ती पाकर मरे- जी जायेंगे.

चुनें किसको, तजें किसको, सब निकम्मे एक से.
मिली सत्ता तो ज़मीं से, दूर हो गर्रायेंगे.

दिल मिले न मिलें लेकिन हाथ तो मिलते रहें.
क्या पता कब ह्रदय भी हों एक, फिर मुस्कायेंगे.

स्नेह-सलिला में नहाना, 'सलिल' का मजहब धरम.
सफल हो श्रम साधना, हम गगन पर लहरायेंगे.
१८-४-२००९
***

सॉनेट, माटी, कंचन, अंग्रेजी, भाषा,चिंतन,कविता,दोहा,नज़र और नज़रिया

सॉनेट
कंचन और माटी
कंचन ले प्रभु दे दे माटी।
कंचन का सब जग दीवाना।
माटी से रहता अनजाना।।
माटी ही सच्ची परिपाटी।।

कंचन से संकट बढ़ जाए।
कंचन से होती है सज्जा।
माटी ढँक लेती है लज्जा।।
माटी से जुड़ हृदय जुडाए।।

कंचन झट सिर पर चढ़ जाए।
हार गला-आवाज दबाए।
कंगन श्रम से जान बचाए।।

माटी का सौंधापन न्यारा।
माटी से जन्मे जग सारा।
माटी मिलता सकल पसारा।।
१९-४-२०२२

•••
यह भी जानें -
दुनिया में ७१३९ भाषाएँ प्रचलित हैं।
कहाँ-कितनी भाषाएँ?
पापुआ न्यू गिनिया (मुख्य भाषा अंग्रेजी) - ८५१ (८० लाख जनसंख्या)
इंडोनेशिया - ७१२
नाइजीरिया ५२२
भारत ४५४
अमेरिका ३२६
आस्ट्रेलिया ३१४
चीन ३०८
मैक्सिको २९२
कैमरुन २७२
ब्राजील २२१
हर साल २०-२५ ३२६ भाषाएँ खत्म हो जाती हैं।
बोलनेवाले
चाइनीज मेंदारिन १२० करोड़
हिंदी- ८० करोड़
फ्रेंच ३९ करोड़
अंग्रेजी ३७.५ करोड़
जर्मन १४ करोड़
एक व्यक्ति जीवन में लगभग ६०, ००० शब्दों का प्रयोग करता है।
वर्णमाला में शब्द
खैमर (कंबोडिया) - ७४
अंग्रेजी २६ वर्ण
हिंदी में १३ स्वर और ३५ व्यंजन
अरबी (उर्दू) ३६ वर्ण
*
अंग्रेजी
१. अंग्रेजी भाषा में लगभग ८ लाख शब्द हैं जो संस्कृत भाषा के बाद सबसे ज्यादा हैं।
२. भारत में सबसे ज्यादा लोग अंग्रेजी बोलते-समझते है.
३. इंग्लिश डिक्शनरी में साल में करीब ४००० शब्द जोड़े जाते हैं। अंग्रेजी का पहलाशब्दकोष १७५५ में लिखा गया।
४. अंग्रेजी ६७ देशों की राज-भाषा है। अंग्रेजी हवाई जहाजों की भी भाषा है, सभी अंतर्राष्ट्रीय पाइलट को इंग्लिश आनी ज़रूरी है।
५. अंग्रेजी में आज तक जितना भी लिखा गया है उसके ९०% में केवल १,००० शब्दों का प्रयोग हुआ है।
7. अंग्रेजी शब्दों में गिनती लिखें ( One, two, three…) तो 1 billion (1 अरब) से पहले B वर्ण नही आएगा।
८. अंग्रेजी में सबसे ज्यादा इस्तेमाल होने वाला वर्ण ‘E’ है (1 in 8 words). और सबसे कम इस्तेमाल होने वाला शब्द ‘Q’ है (1 in 510 words), सबसे ज्यादा शब्द ‘S’ वर्णसे शुरू होते हैं।
९. Dutch और West Flemish language, English भाषा के सबसे नजदीक हैं।
१०. अंग्रेजी में ‘Happy’ शब्द ‘Sad’ से ३ गुना अधिक प्रयुक्त होता है।
११ . आज से ४५० साल पहले अंग्रेजी भाषा में orange colour के लिए कोई शब्द नहीं था।
१२. दुनिया के सभी कंप्यूटरों में stored ८०% जानकारी अंग्रेजी में है।
१३. एक आम इंसान की शब्दावली में ५ से ६ हजार शब्द होते है जबकि शेक्सपीयर की शब्दावली में २९,००० शब्द थे। एक अफ्रीकन हरे तोते की शब्दावली में २०० शब्द होते हैं।
१४. Data Scientists ने अंग्रेजी भाषा में सबसे अधिक खुशी का शब्द खोजने के लिए १०.२२२ शब्दों को Analyzed किया. सबसे खुश शब्द है ‘laughter’.
१५. noon (दोपहर) शब्द ३ बजे के लिए प्रयोग किया जाता है।
१६. ‘Forty’ इकलौती संख्या है जिसके अक्षर alphabetical order के अनुसार जबकि ‘one’ के alphabetical order से उल्ट हैं।
१७. इंग्लिश में सबसे छोटा complete sentence है “Go”.
१८. अंग्रेजी भाषा में सबसे ज्यादा परिभाषाओं (definations) वाला शब्द है “Set”. आप यकीन नही करेंगे इस अकेले शब्द की करीब 464 definations हैं.
१९. ‘Widow‘(विधवा) इंग्लिश भाषा का इकलौता ऐसा स्त्री लिंग है जो कि अपने पुरूष लिंग(widower) से छोटा है।
२०. ‘Malayalam’, ‘Liril’, ‘Madam’ शब्द ऊपर से नीचे पलटने पर भी वैसे ही रहेंगे। इन्हें ‘Ambigrams‘ कहते हैं।
२१. Keyboard की एक ही लाइन से टाइप होने वाला सबसे लम्बा शब्द ‘TypeWriter’ है. इसके बाद “proprietor”, “repertoire”, और “perpetuity” हैं।
२२. Alphabetical order (A to Z लगातार) में लिखा जाने वाला सबसे लंबा शब्द ‘Aegilops’ है (यह पौधों का एक टाइप होता है). वही reverse alphabetical order (Z to A लगातार) में लिखा जाने वाला सबसे लंबा शब्द ‘Spoonfeed’ है (इसे चम्मच कहते है)
२३. डिक्शनरी में प्रयोग होने वाला सबसे लंबा शब्द “Pneumonoultramicroscopicsilicovolcanoconiosis” जो ४५ अक्षरों का है। यह धूल मिट्टी में सांस लेने के कारण होने वाली फेफड़ो की बीमारी ‘Silicosis’ है।
२४. अंग्रेजी में ३ शब्द gry से खत्म होते है: Hungry, Angry and Hangry (गत वर्ष oxford dictionary में जोड़ा गया)।
२५. ‘The quick brown fox jumps over the lazy dog’. ऐसे sentence को ‘pangram’ कहा जाता है, इसमें अंग्रेजी भाषा के सभी २६ वर्ण आ जाते हैं। Typewriter, keyboard आदि को टेस्ट करने के लिए इसी वाक्य का प्रयोग किया जाता है.
२६. अंग्रेजी में बिना vowels (a, e, i, o और u) के सबसे लंबा शब्द है ‘Twyndyllyng’. यह आम बोल-चाल में प्रयोग नही होता. इसका अर्थ है ‘जुँडवा’.
२७. यदि पूरी इंग्लिश भाषा की बात की जाए तो ‘Pronunciation’ सबसे ज्यादा गलत उच्चारित होने वाला शब्द है.
२८. हमारे पास ७ अक्षर का “therein” एक ऐसा शब्द है जिसमें बिना छेड़छाड़ किए १० नए शब्द बन जाते है: the, there, he, in, rein, her, here, ere, therein, herein.
२९. इंग्लिश में ९ वर्ण का ‘Startling’ शब्द से एक समय पर एक letter पर हटाएँ तो नया शब्द बन जाएगा।
३०. पूरी अंग्रेजी भाषा में “bookkeeper” “bookkeeping” and “committee” ही तीन ऐसे शब्द है जिनमें ३ बार दोहरे अक्षर आते है। (Note: without hypen -).
३१. अंग्रेजी में ‘Dreamt’ ही ऐसा इकलौता शब्द है जो mt से खत्म होता है.
३२. अंग्रेजी का ‘queue’ इकलौता ऐसा शब्द है जिसके पिछले ४ अक्षर हटाने पर भी उच्चारण 'क्यू' ही रहता है।
३३. अंग्रेजी में केवल “Hydroxyzine” ही ऐसा शब्द है जिसमें X, Y और Z तीनों लगातार आते है.
३४. “Police police.” एक सही वाक्य है. police संज्ञा-क्रिया दोनों है।
३५. ‘Subdermatoglyphic’ ऐसा सबसे लंबा अंग्रेजी शब्द है जिसे बिना अक्षर दोहराए लिखा जा सकता है इसमें १७ letter है. यह उंगलियों की त्वचा की निचली परत का चिकित्सिय नाम है. इसके बाद ‘uncopyrightable’ ऐसा आसान शब्द है जिसमें एक भी अक्षर दुबारा नही आता. ये उससे थोड़ा छोटा है इसमें १५ letter है। वह चीज़ जिसे काॅपीराइट नही किया जा सकता।
३६. ‘Indivisibility’ ऐसा शब्द है जिसमे केवल १ vowel आता है वो भी ५ बार।
३७. ‘September’ नौवां महीना है और केवल यही ऐसा महीना है जिसके नाम में ९ वर्ण हैं ‘Four’ इकलौती ऐसी संख्या है जिसमें इतने ही वर्ण हैं।
३८. एक साँस में बोला जाने वाला सबसे लम्बा शब्द ‘sereeched’ है।
३९. ‘i’ और ‘j’ के ऊपर जो dot होता है उसे ‘tittle’ कहा जाता है।
४०. अंग्रेजी भाषा का सबसे पुराना शब्द है ‘Town’. मूल रूप से पुरानी इंग्लिश से लिया गया है। इसका अर्थ वही है।
४१. ‘Underground’ इकलौता ऐसा शब्द है जो ‘und’ से शुरू और समाप्त होता है.
४२. English में केवल दो ही ऐसे शब्द है जिन्मे पाँचो vowels अक्षर क्रमांक में हैं-‘abstemious‘(संयमी) और ‘facetious‘(मजाकिया).
४३. “OK” शब्द की खोज १८३९ में हुई थी. जब एक न्यूज़पेपर ने मजाक-मजाक में Oll Korrect को ok लिख दिया था। दरअसल, उस समय गलत स्पेलिंग लिखने का फैशन था और लोग All Correct की जगह Oll Korrect लिख रहे थे। यही से OK शब्द बना।
४४. हम कई बार कहते हैं क्या ‘moment’ था? moment = १ पल या90 सेकेण्ड।
४५. अंग्रेजी भाषा का ये सबसे मुश्किल टंग ट्विस्टर है “sixth sick sheik’s sixth sheep’s sick”।
कुछ चीजों के English meaning
जब हम किसी को दिमाग में याद करते है तो उसे ‘Apodyopsis’ कहते हैं।
बूँदों से बचने के लिए कहीं आश्रय लें तो उसे ‘Ombrifuge’ कहते हैं।
मन में एक सवाल उठा और आपने मन ही मन में उसका जवाब दे दिया तो उसे ‘Sermocination’ कहते हैं।
पत्तों से टकराकर जब हवा का शोर - ‘Psithurism’।
अपने ही बाल खुद काटना - ‘Self-tonsorialism’।
आइसक्रीम या कुछ ज्यादा ठंडा खाने पर सिर में दर्द - ‘Sphenopalatine ganglioneuralgia’।
किसी समझौते के बाद हाथ मिलाना ‘Famgrapsing’।
नया अंडरवियर पहनने के बाद जो uncomfortable feeling - ‘Shivviness’।
दूर तक चलने के बाद पैरों में दर्द ‘Hansper’ ।
ज्यादा बाल - ‘Dasypygal’।
सुंदर कूल्हे ‘Callipygian’ ।
गाली देने के बाद मन संतुष्टि - ‘Lalochezia’ ।
केला छीलने पर अंदर लंबी-सी पतली-सी लकीरें - ‘Phloem bundles’।
नाक के बिल्कुल नीचे होंठो पर दो लकीरों की नाली - ‘Philtrum’।
इंजेक्शन लगने की चुभन - ‘Paresthesia’ ।
लिखाई जो पढ़ी न जा सके - ‘Griffonage’ ।
पेंसिल के पीछे जो धातुवाला भाग - ‘Ferrule’।
मोमबत्ती के जल चुका भाग - ‘Snaste’।
जूतों की डोर के सिरे पर प्लास्टिक - ‘Aglet’ ।
***
चिंतन २ 
क्यों? 
• 
प्रसिद्ध दार्शनिक देकार्त के अनुसार सत्य को जानने का पहला चरण 'क्यों' है। 
'क्यों' घटती है कोई घटना? 
'क्यों' होता है कोई परिवर्तन? 
'क्यों' करना या नहीं करना चाहिए कोई काम? 
'क्यों' का सही उत्तर सही राह बताता है जिस पर चलना चाहिए। 
'क्यों' किसी 'विचार' को क्रियान्वित करें या न करें? 'क्यों' किसी 'संस्था' से जुड़ें या न जुड़ें? क्यों किसी को साथ लें या किसी का साथ दें? 
• सामान्यतः 'क्यों' पर विचार किए बिना, 'क्यों' का उत्तर पाए बिना, हम कदम उठा लेते हैं और फिर मनोनुकूल परिणाम न मिलने पर निराश हो औरों को दोष देने लगते हैं। 
• 'अग्रगामी सदा सुखी' अर्थात समय से पहले आगामी घटनाओं का अनुमान कर उसके अनुसार उपयुक्त आचरण करनेवाला सुखी रहता है, सफलता पाता है। 
• किसी कार्यक्रम की सार्थकता तब है जब उसका परिणाम बेहतर भविष्य बनाने में सहायक हो। 
• नगर में हर दिन विविध संस्थाएँ अनेक कार्यक्रम करती हैं। प्रति वर्ष हजारों कार्यक्रमों पर करोड़ों रुपए खर्च किए जाते हैं किंतु उनकी उपयोगिता शून्य होती है। 
• संस्थाओं के पदाधिकारियों को सोचना चाहिए कि सार्वजनिक निधि एकत्र और खर्च की जाए तो उससे किसी व्यक्ति, समाज या देश का कुछ भला भी हो। 
• आत्मप्रचार, मंच, माइक, माला, फोटो और खबर मात्र के किए किए जा रहे कार्यक्रम निरर्थक तथा हानिकारक होते हैं। इनमें लगा श्रम, धन आदि अपव्यय ही है। 
• महात्मा गाँधी सार्वजनिक धन का एक-एक पैसा सही उद्देश्य पर खर्च करने के प्रति सदा सजग रहे। 
 हमारी संस्थाओं के कर्णधारों को सार्वजनिक शुचिता तथा धन के सदुपयोग का ध्यान रखना चाहिए। 
१८-४-२०२२ 
•••
कविता
*
कविता क्या है?
मन की मन से
मन भर बातें।
एक दिया
जब काली रातें।
गैरों से पाई
कुछ चोटें,
अपनों से पायी
कुछ मातें,
यहीं कहानी ख़त्म नहीं है।
किस्सा अपना
कहें दूसरे,
और कहें हम
उनकी बातें।
गिरें उठें
चल पड़ें दबारा
नया हौसला,
नव सौगातें।
अभी कहानी शेष रही है।
कविता वह है।
*
१९-४-२०२०
***
दोहा सलिला:
*
स्मित की रेखा अधर पर, लोढ़ा थामे हाथ।
स्वागत अद्भुत देखकर, लोढ़ा जी नत-माथ।।
*
है दिनेश सँग चंद्र भी, देख समय का फेर।
धूप-चाँदनी कह रहीं, यह कैसा अंधेर?
*
एटीएम में अब नहीं, रहा रमा का वास।।
खाली हाथ रमेश भी, शर्मा रहे उदास।
*
वास देव का हो जहाँ, दानव भागें दूर।।
शर्मा रहे हुजूर क्यों? तजिए अहं-गुरूर।
*
किंचित भी रीता नहीं, कभी कल्पना-कोष।
जीव तभी संजीव हो, जब तज दे वह रोष।।
*
दोहा उनका मीत है, जो दोहे के मीत।
रीत न केवल साध्य है, सदा पालिए प्रीत।।
*
असुर शीश कट लड़ी हैं, रामानुज को देख।
नाम लड़ीवाला हुआ, मिटी न लछमन-रेख?
*
आखा तीजा में बिका, सोना सोनी मस्त।
कर विनोद खुश हो रहे, नोट बिना हम त्रस्त।।
*
अवध बसे या बृज रहें, दोहा तजे न साथ।
दोहा सुन वर दें 'सलिल' खुश हो काशीनाथ।।
*
दोहा सुरसरि में नहा, कलम कीजिए धन्य।
छंद-राज की जय कहें, रच-पढ़ छंद अनन्य।।
*
शैल मित्र हरि ॐ जप, काट रहे हैं वृक्ष।
श्री वास्तव में खो रही, मनुज हो रहा रक्ष।।
*
बिरज बिहारी मधुर है, जमुन बिहारी मौन।
कहो तनिक रणछोड़ जू, अटल बिहारी कौन?
*
पंचामृत का पान कर, गईं पँजीरी फाँक।
संध्या श्री ऊषा सहित, बगल रहे सब झाँक।।
*
मगन दीप सिंह देखकर, चौंका सुनी दहाड़।
लौ बेचारी काँपती, जैसे गिरा पहाड़।।
*
श्री धर रहे प्रसाद में, कहें चलें जजमान।
विष्णु प्रसाद न दे रहे, संकट में है जान।।
*
१९.४.२०१८
नज़र और नज़रिया 
*
श्रीधर प्रसाद द्विवेदी
सुरसरि सलिल प्रवाह सम, दोहा सुरसरि धार।
सहज सरल रसमय विशद, नित नवरस संचार।।
*
शैलमित्र अश्विनी कुमार
आधा वह रसखान है,आधा मीरा मीर।
सलिल सलिल का ताब ले,पूरा लगे कबीर।
*
कवि ब्रजेश
सुंदर दोहे लिख रहे, भाई सलिल सुजान।
भावों में है विविधता, गहन अर्थ श्रीमान।।
*
रमेश शर्मा
लिखें "सलिल" के नाम से, माननीय संजीव!
छंदशास्त्र की नींव हैं, हैं मर्मज्ञ अतीव!!
*

रविवार, 17 अप्रैल 2022

दोहा-जनक छंद, मुक्तक, छत्तीसगढ़ी दोहा,

नव प्रयोग
दोहा-जनक छंद
*
विधि-विधान से कार्य कर, ब्रह्मा रहें प्रसन्न
याद रखें गुरु-सीख तो, विपद् न हो आसन्न
बात मीठी ही कहिए
मुकुल मन हँसते रहिए
स्नेह सलिला सम बहिए
***
मुक्तक
*
पंडित को पेट हेतु राम की जरूरत है
मंदिर को छत हेतु खाम की जरूरत है
सीता को दंडित कर राजदंड ठठा रहा
काल कहे नाश परिणाम की जरूरत है
*
रोजी और रोटी ही अवाम की जरूरत है
हाथों को भीख नहीं काम की जरूरत है
स्वाति सलिल मोतियों के ढेर लगा देंगे पर
मोल लेने के लिए दाम की जरूरत है
*
शीत कहे सूर्य तपो घाम की जरूरत है
जेठ कहे अब न तपो शाम की जरूरत है
सूर्य ठिठक सोच रहा, जो कहते कहने दो
पहले कर काम फिर आराम की जरूरत है
*
आधुनिका को चिकने चाम की जरूरत है
मद्यप को साकी को जाम की जरूरत है
सत्ता को अमन-चैन से न रहा वास्ता
कैसे भी, कहीं भी हो लाम की जरूरत है
*
कोरोना को तुरत लगाम की जरूरत है
घर में खुश रह कहें विराम की जरूरत है
मदद करें यथाशक्ति, पढ़ें-लिखें, योग करें
साहस सुख शांति दे, अनाम की जरूरत है
*
१६-४-२०२०
***
छत्तीसगढ़ी दोहा
*
हमर देस के गाँव मा, सुन्हा सुरुज विहान.
अरघ देहे बद अंजुरी, रीती रोय किसान..
*
जिनगानी के समंदर, गाँव-गँवई के रीत.
जिनगी गुजरत हे 'सलिल', कुरिया-कुंदरा मीत..
*
महतारी भुइयाँ असल, बंदत हौं दिन-रात.
दाई! पैयाँ परत हौं. मूंडा पर धर हात..
*
जाँघर तोड़त सेठ बर, चिथरा झूलत भेस.
मुटियारी माथा पटक, चेलिक रथे बिदेस..
*
बाँग देही कुकराकस, जिनगी बन के छंद.
कुररी कस रोही 'सलिल', मावस दूबर चंद..
१६.४.२०१०

***

सॉनेट, नवगीत, मुक्तिका, भजन, चित्रगुप्त

सॉनेट
कौन?
कौन है तू?, कौन जाने?
किसी ने तुझको न देखा।
कहीं तेरा नहीं लेखा।।
जो सुने जग सत्य माने।।

देह में है कौन रहता?
ज्ञात है क्या कुछ किसी को?
ईश कहते क्या इसी को?
श्वास में क्या वही बहता?

कौन है जो कुछ न बोले
उड़ सके पर बिना खोले
जगद्गुरु है आप भोले।।

कौन जो हर चित्र में है?
गुप्त वह हर मित्र में है।
बन सुरभि हर इत्र में है।।
१७-४-२०२२
•••
भजन
*
प्रभु!
तेरी महिमा अपरम्पार
*
तू सर्वज्ञ व्याप्त कण-कण में
कोई न तुझको जाने।
अनजाने ही सारी दुनिया
इष्ट तुझी को माने।
तेरी दया दृष्टि का पाया
कहीं न पारावार
प्रभु!
तेरी महिमा अपरम्पार
*
हर दीपक में ज्योति तिहारी
हरती है अँधियारा।
कलुष-पतंगा जल-जल जाता
पा मन में उजियारा।
आये कहाँ से? जाएँ कहाँ हम?
जानें, हो उद्धार
प्रभु!
तेरी महिमा अपरम्पार
*
कण-कण में है बिम्ब तिहारा
चित्र गुप्त अनदेखा।
मूरत गढ़ते सच जाने बिन
खींच भेद की रेखा।
निराकार तुम,पूज रहा जग
कह तुझको साकार
प्रभु!
तेरी महिमा अपरम्पार
***
नवगीत:
बहुत समझ लो
सच, बतलाया
थोड़ा है
.
मार-मार
मनचाहा बुलावा लेते हो.
अजब-गजब
मनचाहा सच कह देते हो.
काम करो,
मत करो, तुम्हारी मर्जी है-
नजराना
हक, छीन-झपट ले लेते हो.
पीर बहुत है
दर्द दिखाया
थोड़ा है
.
सार-सार
गह लेते, थोथा देते हो.
स्वार्थ-सियासत में
हँस नैया खेते हो.
चोर-चोर
मौसेरे भाई संसद में-
खाई पटकनी
लेकिन तनिक न चेते हो.
धैर्य बहुत है
वैर्य दिखाया
थोड़ा है
.
भूमि छीन
तुम इसे सुधार बताते हो.
काला धन
लाने से अब कतराते हो.
आपस में
संतानों के तुम ब्याह करो-
जन-हित को
मिलकर ठेंगा दिखलाते हो.
धक्का तुमको
अभी लगाया
थोड़ा है
***
मुक्तिका
*
कबिरा जो देखे कहे
नदी नरमदा सम बहे
जो पाये वह बाँट दे
रमा राम में ही रहे
घरवाली का क्रोध भी
बोल न कुछ हँसकर सहे
देख पराई चूपड़ी
कभी नहीं किंचित् दहे
पल की खबर न है जरा
कल के लिये न कुछ गहे
राम नाम ओढ़े-बिछा
राम नाम चादर तहे
न तो उछलता हर्ष से
और न गम से घिर ढहे
१७-४-२०२०
***
नवगीत
आओ भौंकें
*
आओ भौंकें
लोकतंत्र का महापर्व है
हमको खुद पर बहुत गर्व है
चूक न जाए अवसर भौंकें
आओ भौंकें
*
क्यों सोचें क्या कहाँ ठीक है?
गलत बनाई यार लीक है
पान मान का नहीं सुहाता
दुर्वचनों का अधर-पीक है
मतलब तज, बेमतलब टोंकें
आओ भौंकें
*
दो दूनी हम चार न मानें
तीन-पाँच की छेड़ें तानें
गाली सुभाषितों सी भाए
बैर अकल से पल-पल ठानें
देख श्वान भी डरकर चौंकें
आओ भौंकें
*
बिल्ला काट रास्ता जाए
हमको नानी याद कराए
गुंडों के सम्मुख नतमस्तक
हमें न नियम-कायदे भाए
दुश्मन देखें झट से पौंकें
आओ भौंकें
*
हम क्या जानें इज्जत देना
हमें सभ्यता से क्या लेना?
ईश्वर को भी बीच घसीटे-
पालेे हैं चमचों की सेना।
शिष्टाचार भाड़ में झौंकें
आओ भौंकें
१७-४-२०१९
***
विमर्श
भारत में प्रजातंत्र, गणतंत्र और जनतंत्र की अवधारणा और शासन व्यवस्था वैदिक काल में भी थी. पश्चिम में यह बहुत बाद में विकसित हुई, वह भी आधी-अधूरी. पश्चिम की डेमोक्रेसी ग्रीस में 'डेमोस' आधारित शासन व्यवस्था की भौंडी नकल है, जो बिना डेमोस के बिना ही खड़ी की गई है.

१७-४-२०१०