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शनिवार, 5 फ़रवरी 2022

आदमी अभी जिन्दा है संशोधन, समीक्षा, रोहिताश्व अस्थाना,

कृति चर्चा
'चुनिंदा हिंदी गज़लें' संग्रहणीय संकलन
आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल'
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[कृति विवरण : चुनिंदा हिंदी गज़लें, संपादक डॉ. रोहिताश्व अस्थाना, आकार डिमाई, आवरण सजिल्द बहुरंगी जैकेट सहित, पृष्ठ १८४, मूल्य ५९५/-, प्रकाशक - ज्ञानधारा पब्लिकेशन, २६/५४ गली ११, विश्वास नगर, शाहदरा, दिल्ली ११००३२]
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विश्ववाणी हिंदी की काव्य परंपरा लोक भाषाओँ प्राकृत, अपभृंश और संस्कृत से रस ग्रहण करती है। द्विपदिक छंद रचना के विविध रूपों को प्रकृत-अपभृंश साहित्य में सहज ही देखा जा सकता है। संस्कृत श्लोक-परंपरा में भिन्न पदभार और भिन्न तुकांत प्रयोग किए गए हैं तो दोहा, चौपाई, सोरठा आदि में समभारिक-संतुकांती पंक्तियों का प्रयोग किया जाता रहा है। द्विपदिक छंद की समतुकान्तिक एक अतिरिक्त आवृत्ति ने चतुष्पदिक छंद का रूप ग्रहण किया जिसे मुक्तक कहा गया। मुक्तक की तीसरी पंक्ति को भिन्न तुकांत किन्तु समान पदभार के साथ प्रयोग से चारुत्व वृद्धि हुई। भारतीय भाषा साहित्य अरब और फारस गया तो भारतीय लयखण्डों के फारसी रूपान्तरण को 'बह्र' कहा गया। मुक्तक की तीसरी और चौथी पंक्ति की तरह अन्य पंक्तियाँ जोड़कर रची गयी अपेक्षाकृत लंबी काव्य रचनाओं को 'ग़ज़ल' कहा गया। भारत में लोककाव्य में यह प्रयोग होता रहा किन्तु भद्रजगत ने इसकी अनदेखी की। मुग़ल आक्रांताओं के विजयी होकर सत्तासीन होनेपर उनकी अरबी-फारसी भाषाओं और भारतीय सीमंती भाषाओँ का मिश्रण लश्करी, रेख़्ता, उर्दू के रूप में प्रचलित हुआ। लगभग २००० वर्ष पूर्व 'तश्बीब' (लघु प्रणय गीत), 'ग़ज़ाला-चश्म' (मृगनयनी से वार्तालाप) या 'कसीदा' (प्रेयसी प्रशंसा के गीत) के रूप में प्रचलित हुई ग़ज़ल भारत में आने पर सूफ़ी रंगत में रंगने के साथ-साथ, क्रांति के आह्वान-गान और सामाजिक परिवर्तनों की वाहक बन गई। अरबी ग़ज़ल का यह भारतीय रूपांतरण ही हिंदी ग़ज़ल का मूल है।


डॉ. रोहिताश्व अस्थाना हिंदी ग़ज़ल के प्रथम शोधार्थी ही नहीं उसके संवर्धक भी हैं। कबीर, खुसरो, वली औरंगाबादी, ज़फ़र, ग़ालिब, रसा, बिस्मिल, अशफ़ाक़, सामी, नादां, साहिर, अर्श, फैज़, मज़ाज़, जोश, नज़रुल, नूर, फ़िराक, मज़हर, शकील, केशव, अख्तर, कैफ़ी, जिगर, सौदा, तांबा, चकबस्त, दाग़, हाली, इक़बाल, ज़ौक़, क़तील, रंग, अंचल, नईम, फ़ुग़ाँ, फ़ानी, निज़ाम, नज़ीर, राही, बेकल, नीरज, दुष्यंत, विराट, बशीर बद्र, अश्क, साज, शांत, यति, परवीन हक़, प्रसाद, निराला, दिनकर, कुंवर बेचैन, अंबर, अनंत, अंजुम, सलिल, सागर मीरजापुरी, बेदिल, मधुकर, राजेंद्र वर्मा, समीप, हस्ती, आदि सहस्त्राधिक हिंदी ग़ज़लकारों ने हिंदी ग़ज़ल को समृद्ध-संपन्न करने में कोई कसर बाकी नहीं रखी।


डॉ. रोहिताश्व अस्थाना ने हिंदी ग़ज़ल को लेकर शोध ग्रन्थ 'हिंदी ग़ज़ल : उद्भव और विकास', व्यक्तिगत ग़ज़ल संग्रह 'बांसुरी विस्मित है', हिंदी ग़ज़ल पंचदशी संकलन श्रृंखला आदि के पश्चात् 'चुनिंदा हिंदी गज़लें' के समापदं का सराहनीय कार्य किया है। इस पठनीय, संग्रहणीय संकलन में ४४ ग़ज़लकारों की ४-४ ग़ज़लें संकलित की गयी हैं। डॉ, अस्थाना के अनुसार "मैं आश्वस्त हूँ कि संकलित कवि अथवा गज़लकार किसी मिथ्याडंबर अथवा अहंकार से मुक्त होकर निस्वार्थ भाव से हिंदी ग़ज़ल के क्षेत्र में साधनारत हैं।'' इस संकलन में वर्णमाला क्रमानुसार अजय प्रसून, अनिरुद्ध सिन्हा, अशोक आलोक, अशोक 'अंजुम', अशोक 'मिज़ाज', ओंकार 'गुलशन, उर्मिलेश, किशन स्वरूप, सजल, कृष्ण सुकुमार, कौसर साहिरी, ख़याल खन्ना, गिरिजा मिश्रा, नीरज, विराट, चाँद शेरी, पथिक, वियजय, नलिन, याद राम शर्मा, महर्षि, रोहिताश्व, विकल सकती, निर्मम, श्याम, अंबर, बिस्मिल, विशाल, संजीव 'सलिल', मुहसिन, हस्ती, वहां, प्रजापति, विनम्र, दिनेश रस्तोगी, दिनेश सिंदल, दीपक, राकेश चक्र, विद्यासागर वर्मा, सत्य, भगत, मिलान, अडिग, रऊफ परवेज की सहभागिता है। ग़ज़लकारों के वरिष्ठ और कनिष्ठ दोनों ही हैं। ग़ज़लकारों और ग़ज़लों का चयन करने में रोहिताश्व जी विषय वैविध्य और शिल्प वैविध्य में संतुलन स्थापित कर संकलन की गुणवत्ता बनाए रखने में सफल हैं।


डॉ. अजय प्रसून 'हर कोई अपनी रक्षा को व्याकुल है' कहकर असुरक्षा की जन भावना को सामने लाते हैं। अनिरुद्ध सिन्हा 'दर्द अपना छिपा लिया उसने' कहकर आत्मगोपन की सहज मानवीय प्रवृत्ति का उल्लेख करते हैं। 'सच बयानी धुंआ धुंआ ही सही' - अशोक अंजुम, धीरे-धीरे शोर सन्नाटों में गुम हो जायेगा' - मिज़ाज, अपने कदमों पे खड़े होने के काबिल हो जा - उर्मिलेश, अंधियारे ने सूरज की अगवानी की - किशन स्वरूप, आँसू पीकर व्रत तोड़े हैं - गिरिजा मिश्रा, बढ़ता था रोज जिस्म मगर घाट रही थी उम्र - नीरज, कालिख है कोठरी की लगेगी अवश्य ही - विराट, शहर के हिन्दोस्तां से कुछ अलग / गाँव का हिन्दोस्तां है और हम - महर्षि, राहत के दो दिन दे रब्बा - श्याम, सुविधा से परिणय मत करना -अंबर, रिश्तों की कब्रों पर मिटटी मत डालो - विशाल, छोड़ चलभाष प्रिय! / खत-किताबत करो -संजीव 'सलिल', सच है लहूलुहान अगर झूठ है तो बोल - हस्ती, सर उठाकर न जमीन पर चलिए - वहम, सुख मिथ्या आश्वासन जैसा - विनम्र, रोज ही होता मरण है - राकेश चक्र, एक सागर नदी में रहता है - मिलन, घर में पूजा करो, नमाज पढ़ो - रऊफ परवेज़ आदि हिंदी जगत के सम सामायिक परिवेश की विसंगतियों, विडंबनाओं, अपेक्षाओं, आशंकाओं आदि को पूरी शिद्दत से उद्घाटित करते हैं।


डॉ. अस्थाना ने रचना-चयन करते समय पारंपरिकता पर अधुनातन प्रयोगधर्मिता को वरीयता ठीक ही दी है। इससे संकलन सहज ग्राह्य और विचारणीय बन सका है। हर दिन प्रकाशित हो रहे सामूहिक संकलनों की भीड़ में यह संकलन अपनी पृथक पहचान स्थापित करने में सफल है। आकर्षक आवरण, त्रुटिहीन मुद्रण, स्तरीय रचनाएँ इसे 'सोने में सुहागा' की तरह पाठकों में लोकप्रिय और शोधार्थियों के लिए उपयोगी सिद्ध करेगी।
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संपर्क - विश्ववाणी हिंदी संस्थान, ४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१, वॉट्सऐप ९४२५१८३२४४  

संशोधन 
सामने का फ्लैप  - ५ अंगूठा मांग - अँगूठा माँग, ७ प्रगत - प्रगट, ११ अंगूठा - अँगूठा, १५ अंगूठा - अँगूठा, १७  अंगूठा - अँगूठा, २० अंगूठा - अँगूठा  
2 / २ विश्व वाणी - विश्ववाणी,   salil.sanjiv@gmail.com
3 समर्पण के नीचे नाम तथा दिनाँक २५ जनवरी २०२२
५ / ४  तथा हिंदयुग्म.कॉम, साहित्यशिल्पी.कॉम, ओबीओ, 
          नीचे से ५ प्रमाणिकता - प्रामाणिकता,
६/५ लघ्वाकरी - लघ्वाकारी, 
10 / 5 यथा, तथ्यता - यथातथ्यता
12 /1 सिद्धहस्त करती हैं - सिद्धहस्त कलम ही करती है
12/6 है। किन्तु - है किन्तु
13/3 हरिशंकर प्रसाद??
14/6 दोनों आते - दोनों में नहीं आते
14/8 अब भी न आ सकी - अब भी आ सकी, यदि डिलीट
१५ अनुक्रमणिका - लघुकथा क्रमणिका 
पृष्ठ ३ से १९ तक पृष्ठ संख्या अंकित कर दें। 
१९ उत्सव २ - उत्सव  
20/1 बढ़ते कर और मँहगाई - बढ़ते कर, मँहगाई
20/6 ना - न
20/7 अहिनियमों -अधिनियमों
21/2 चेहरे वाले - चेहरेवाले
21/5 करने वालों - करनेवालों
21 नीचे से २ चुहल कर -चुहलकर
22/1 मनपसंद से - मनपसंद लड़की से
23/4 तैयार कर - तैयारकर
23/5 ना - न
२३/१२ बे-रहमी -बेरहमी 
23 नीचे से 9 रंगे - रँगे, जाने वालों - जानेवालों
23 नीचे से ८ ना - न
25 / 2 तुम पूजा - तुम न पूजा
25/3 ना - न, ना - न
25/6 सुनाता - सुनता
26/2 दूरदर्शन - दूरदर्शन सेट 
26 नीचे से 10 दिला कर - दिलाकर  
26 नीचे से 6 ना - न 
26 नीचे से 5 आने वाले - आनेवाले 
26 नीचे से 2 दिखा कर -दिखाकर, खानापूर्ती - खानापूर्ति   
27/2 ना - न 
28/6 माँग कर - माँगकर 
२९ नीचे से ३ वो - वह 
30/ नीचे से 7 ना - न 
30/ नीचे से 3 उठ जुम्मन - उठ रहे जुम्मन 
३२ / ५ ना - न, नीचे से २ पकड़ कर - पकड़कर 
33/4 मुश्किल काटी - मुश्किल से काटी 
33/8 रहें - रहे 
33/9 रवाना कर - रवानाकर 
33/11  ना - न 
33/13 लपक कर - लपककर 
33 नीचे से 4 वह डिलीट 
३४ /२ त्याग पत्र -त्यागपत्र 
नीचे से ५ का अवसर - का अवसर मिले 
३४ नीचे से ४ भी ये - भी कि ये 
३५/७ त्याग पत्र - त्यागपत्र, अंतिम पंक्ति अवस्था - अवस्था का कारण 
३७/२ फोटो - चित्र, ३७ /५ निकाल कर - निकालकर  
३७/७ वह पढ़ाई कर लेगा - मैं पढ़ाई कर लूँगा।
३७ नीचे से ९ - वो - वह, नीचे से ३ उतर कर  - उतरकर 
३८/१ बीनने वाले - बीननेवाले 
३८ नीचे से ९ की - कि, बीनने वाला - बीननेवाला
४०/७ आथित्य - आतिथ्य 
४० नीचे से ७ जीवन साथी - जीवन-साथी, नीचे से ६ तुम्हारा - आपका 
४१/४ विचार कर -विचारकर 
४२/४ टूट कर - टूटकर, ना - न 
४२/५ पूजा कर - पूजा करने के बाद   
४२ नीचे से २ पाकर - देखकर 
४४/७ बंद कर - बंदकर 
४५/२ ना - न, नीचे से ५ ना - न, नीचे से ४ ना - न   
४६ नीचे से ३ ना - न 
४८ / ७ - सामान - समान, नीचे से ६ कभी नहीं - कभी करना नहीं 
४९/४ खेंचा - खेंच 
४९ नीचे से २ एइकि - एकी 
५० नीचे से २ चाहने वालों - चाहनेवालों 
५२ / १० नगरिकों - नागरिकों 
५३/६ ना - न 
५३/८ ना - न 
५३ नीचे से ३ करने वाले - करनेवाले 
५४/५ उठाने वालों - उठानेवालों 
५७/१ निकलकर निकालकर, ४ ना - न 
५८/२  ना- न 
५८/७ ना - भी न  
५८ नीचे से ३ पलट कर - पलटकर 
५९/१ उतर कर - उतरकर 
६०/२ ना - न 
६०/८ ना - न 
६० नीचे से ३ पहुँची तो - पहुँची, 
६२/४ करने वाला - करनेवाला, ७ देने वाला - देनेवाला 
६३ नीचे से ४  मसोस कर - मसोसकर 
६४/५ ने - के 
६४/५ ब्रिटेन - ब्रिटेन के 
६४/६ उठवाने वालों - उठवानेवालों
६५ अंतिम पंक्ति स्थानंतरण - स्थानांतरण 
६६/५ बात कर - बातकर, ९ ना-न 
६८ अंतिम पंक्ति - भगवान - इंसान 
७१/७ उन्हें - उन्होंने 
७१ नीचे से ११ खरीद कर - खरीदकर 
७१ नीचे से ८ सौंप कर - सौंपकर 
७१ नीचे से ५ मिलाने - मिलने 
७२ / ७ ना बैठने वाले - न  बैठनेवाले 
७२ नीचे से ३ जिसमें - अंत में 
७२ डिलीट उन्हें शिकायत का स्पर्श हुए बिना 
७३/२ ऐसो जाड़े करो की - ऐसो जादू करो कि 
७३/३ कहें - खें 
७३ नीचे से २ काया- क्या 
७४/२ करने वालों - करनेवालों 
७४/५ गई। सरकार - गई सरकार को 
७५/७ ना - न 
८०/७ विभाध्यक्ष - विभागाध्यक्ष 
८२ / ६ थीं मैं - थीं कि मैं
८३ /४ प्रशंसा कर - प्रशंसाकर, नीचे से २ ना - न  
८७ नीचे से २  हैं।  वे - हैं; वे 
८८ अंतिम पंक्ति गूंगी - गूँगी 
८९/२ ना - न 
८९ नीचे से १० बताएं - बताएँ 
९१/४ ध्यान लगा - ध्यान लगाया 
९२/२ अंग्ररेजी - अंग्रेजी 
९३/८ कार्यक्रम वाला - कार्यक्रमवाला
९३/९ मिलने वाली - मिलनेवाली 
९३ नीचे से ५ ठगाई - ठगी गई 
९४ /२ मंडियां - मंडियाँ 
९५/१ ढ़ेर - ढेर 
९६ अंतिम २ पंक्तियाँ डिलीट कर दें। 
९७/१ रोग। - रोग, ५ ना - न, ६ कराए - कराएँ, १३ ना - न 
९८/४ चाह कर भी - चाहकर भी मिठाई 
९८/७ लौटने पर - लौटनेपर 
९८/८ किराने वाले -किरानेवाले 
९८/१४ किराने वाले -किरानेवाले
९८/१६ किराने वाला -किरानेवाला
९८/१८ ना - न 
९९/५ डाइबिटीज वालों-डाइबिटीजवालों 
१००/३ ख्रराब - ख़राब 
१०१/८ अब ही - अब साथ ही 
१०१/१४ मैं - वह 
१०२ / ५ ना - न 
१०२/६ जा कर - जाकर 
१०४/५ स्वीकार कर लिया - मान लिया 
१०५ नीचे से ५ लगाई, लगाई - 
१०७ नीचे से ४ दुनियावीं - दुनियावी 
१०७ अंतिम पंक्ति मरने वालों - मरनेवालों 
१०८ नीचे से ७ समान्य - सामान्य 
१०९/६ बहुसंखयक - बहुसंख्यक, नीचे से ३ सौंप कर - सौंपकर 
११०/१० प्रोफे सर  -प्रोफेसर
११०/१२ थी - ली 
११०/१५ अनूवादित - अनुवादित
११०/१६ अनूवादित - अनुवादित 
११२/१ परिंदा - परिंदों, ना - न 
११३ अंतिम पंक्ति साथ। अब - साथ अब 
११४/१ ना - न 
११४/२ ना - न
११५/नीचे से २ इंटर्नेशनल - इंटरनेशनल
११७  उत्सव - २ - उत्सव 
१२३ नीचे से २ डिलीट तुर्की 
१२४/८ बेचूं - बेचूँ 
१२६/१ चोंक - चौंक 
पिछला आवरण - ९. २१ श्रेष्ठ लोककथाएँ मध्य प्रदेश, १०. २१ श्रेष्ठ बुंदेली लोक कथाएँ मध्य प्रदेश।  



 
 
 








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