- ''जो लोग नागरी अक्षर सीखते थे, वे फारसी अक्षर सीखने पर विवश हुए और हिंदी भाषा हिंदी न रहकर उर्दू बन गयी। हिंदी उस भाषा का नाम रहा जो टूटी-फूटी चाल पर देवनागरी अक्षरों में लिखी जाती थी।''
दिव्य नर्मदा : हिंदी तथा अन्य भाषाओँ के मध्य साहित्यिक-सांस्कृतिक-सामाजिक संपर्क हेतु रचना सेतु A plateform for literal, social, cultural and spiritual creative works. Bridges gap between HINDI and other languages, literature and other forms of expression.
कुल पेज दृश्य
गुरुवार, 28 फ़रवरी 2019
देवनागरी
तकनीकी आलेख कागनेटिव रेडियो शोभित वर्मा
कागनेटिव रेडियो
शोभित वर्मा
*
आज के इस आधुनिक युग में दूरसंचार के उपकरणों का उपयोग बढ़ता ही जा रहा है। इन उपकरणों के द्वारा सूचना को एक स्थान से दूसरे स्थान पर पहुँचाने के लिये वायरलैस माध्यमों द्वारा उपयोग किया जाता है। कई विकसित तकनीकें जैसे वाय-फाय, बलूटूथ आदि इस क्षेत्र में उपयोग की जा रही हैं।
इन सभी वायरलैस तकनीकों को साथ में उपयोग में लाने के कारण स्पेकट्रम की अनउपलब्धता एक बड़ी समस्या का रूप लेती जा रही है। वास्तव में स्पेकट्रम को लाइसेंस्ड उपयोगकर्ता ही उपयोग करता है। यह सुनिश्चित किया जाता है कि स्पेक्ट्रम का उपयोग केवल लाइसेंस्ड उपयोगकर्ता ही कर सके। इस कारण स्पेकट्रम का एक बहुत बड़ा हिस्सा अनुपयोगी ही रह जाता है। स्पेकट्रम का आवंटन सरकार की नीतियों के अनुसार किया जाता
है।
इस समस्या के निराकरण हेतु 1999 में जे. मितोला ने कागनेटिव रेडियो का सिंद्धात प्रस्तुत किया। कागनेटिव रेडियो सिंद्धात के अनुसार जब भी लाइसेंस्ड उपयोगकर्तो स्पेकट्रम का उपयोग न कर रहा ही ऐसे समय में अनलाइसेंस्ड उपभोक्र्ता उस स्पेकट्रम का उपयोग कर सकता है और जैसे ही लाइसेंस्ड उपयोगकर्ता की वापसी होगी, अनलाइसेंस्ड उपयोगकर्ता किसी दूसरे खाली स्पेकट्रम की सहायता से अपना कार्य करने लगेगा। यह प्रक्रिया इस तरह चलती रहेगी जब तक सूचना का आदान-प्रदान नहीं हो जाता।
कागनेटिव रेडियो के बहुत से आयाम हैं जैसे कि स्पेकट्रम सेंसिग, स्पेकट्रम शेयरिंग, स्पेकट्रम मोबीलिटी आदि । हर आयाम अपने आप में शोध का विषय है। कागनेटिव रेडियो पर बहुत से शोध कार्य राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर हो रहे हैं । अभी भी इस तकनीक को जमीनी स्तर पर लागू कर पाने में बहुत सी समस्याओं का सामाना करना पड़ रहा है। प्रयास यह भी हो रहे है कि कागनेटिव वायरलैस सेंसर नेटवर्क का विकास किया जाये ताकि वायरलैस संचार के क्षेत्र में प्रगति की जा सके।
भारत में भी इस विषय पर काफी कार्य हो रहा है। यहाँ तक कि इंजीनियरिंग पाठयक्रमों में भी इस विषय को पढ़ाया जा रहा है । यह एक सरहानीय प्रयास है युवा अभियंताओं में इस विषय पर रूचि जगाने का ताकि वह आगे चल कर इस तकनीक को और विकसित करने हेतु प्रयास कर सकें ।
नवगीत घमासान जारी है
*
सरहद से
संसद तक
घमासान जारी है
*
सरहद पर आँखों में
गुस्सा है, ज्वाला है.
संसद में पग-पग पर
घपला-घोटाला है.
जनगण ने भेजे हैं
हँस बेटे सरहद पर.
संसद में.सुत भेजें
नेता जी या अफसर.
सरहद पर
आहुति है
संसद में यारी है.
सरहद से
संसद तक
घमासान जारी है
*
सरहद पर धांय-धांय
जान है हथेली पर.
संसद में कांव-कांव
स्वार्थ-सुख गदेली पर.
सरहद से देश को
मिल रही सुरक्षा है.
संसद को देश-प्रेम
की न मिली शिक्षा है.
सरहद है
जांबाजी
संसद ऐयारी है
सरहद से
संसद तक
घमासान जारी है
*
सरहद पर ध्वज फहरे
हौसले बुलंद रहें.
संसद में सत्ता हित
नित्य दंद-फंद रहें.
सरहद ने दुश्मन को
दी कड़ी चुनौती है.
संसद को मिली
झूठ-दगा की बपौती है.
सरहद जो
रण जीते
संसद वह हारी है.
सरहद से
संसद तक
घमासान जारी है
***
२७-२-२०१८
गीत मानव और लहर
मानव और लहर
संजीव
*
लहरें आतीं लेकर ममता,
मानव करता मोह
क्षुब्ध लौट जाती झट तट से,
डुबा करें विद्रोह
*
मानव मन ही मन में माने,
खुद को सबका भूप
लहर बने दर्पण कह देती,
भिक्षुक! लख निज रूप
*
मानव लहर-लहर को करता,
छूकर सिर्फ मलीन
लहर मलिनता मिटा बजाती
कलकल-ध्वनि की बीन
*
मानव संचय करे, लहर ने
नहीं जोड़ना जाना
मानव देता गँवा, लहर ने
सीखा नहीं गँवाना
*
मानव बहुत सयाना कौआ
छीन-झपट में ख्यात
लहर लुटाती खुद को हँसकर
माने पाँत न जात
*
मानव डूबे या उतराये
रहता खाली हाथ
लहर किनारे-पार लगाती
उठा-गिराकर माथ
*
मानव घाट-बाट पर पण्डे-
झण्डे रखता खूब
लहर बहाती पल में लेकिन
बच जाती है दूब
*
'नानक नन्हे यूँ रहो'
मानव कह, जा भूल
लहर कहे चंदन सम धर ले
मातृभूमि की धूल
*
'माटी कहे कुम्हार से'
मनुज भुलाये सत्य
अनहद नाद करे लहर
मिथ्या जगत अनित्य
*
'कर्म प्रधान बिस्व' कहता
पर बिसराता है मर्म
मानव, लहर न भूले पल भर
करे निरंतर कर्म
*
'हुईहै वही जो राम' कह रहा
खुद को कर्ता मान
मानव, लहर न तनिक कर रही
है मन में अभिमान
*
'कर्म करो फल की चिंता तज'
कहता मनुज सदैव
लेकिन फल की आस न तजता
त्यागे लहर कुटैव
*
'पानी केरा बुदबुदा'
कह लेता धन जोड़
मानव, छीने लहर तो
डूबे, सके न छोड़
*
आतीं-जातीं हो निर्मोही,
सम कह मिलन-विछोह
लहर, न मानव बिछुड़े हँसकर
पाले विभ्रम -विमोह
*
समीक्षा भूदर्शन श्यामलाल उपाध्याय
नवगीत सूरज
संजीव
.
सूरज
मुट्ठी में लिये,
आया लाल गुलाल.
देख उषा के
लाज से
हुए गुलाबी गाल.
.
महुआ महका,
टेसू दहका,
अमुआ बौरा खूब.
प्रेमी साँचा,
पनघट नाचा,
प्रणय रंग में डूब.
अमराई में,
खलिहानों में,
तोता-मैना झूम
गुप-चुप मिलते,
खुस-फुस करते,
सबको है मालूम.
चूल्हे का
दिल भी हुआ
हाय! विरह से लाल.
कुटनी लकड़ी
जल मरी
सिगड़ी भई निहाल.
सूरज
मुट्ठी में लिये,
आया लाल गुलाल.
देख उषा के
लाज से
हुए गुलाबी गाल.
.
सड़क-इमारत
जीवन साथी
कभी न छोड़ें हाथ.
मिल खिड़की से,
दरवाज़े ने
रखा उठाये माथ.
बरगद बब्बा
खों-खों करते
चढ़ा रहे हैं भाँग.
पीपल भैया
शेफाली को
माँग रहे भर माँग.
उढ़ा
चमेली को रहा,
चम्पा लकदक शाल.
सदा सुहागन
छंद को
सजा रही निज भाल.
सूरज
मुट्ठी में लिये,
आया लाल गुलाल.
देख उषा के
लाज से
हुए गुलाबी गाल.
२६.२.२०१५
*
शिवताण्डवस्तोत्र
हिन्दी काव्यानुवाद तथा अर्थ - संजीव 'सलिल'
*
श्री गणेश विघ्नेश शिवा-शव नंदन-वंदन.
लिपि-लेखनि, अक्षरदाता कर्मेश शत नमन..
नाद-ताल,स्वर-गान अधिष्ठात्री माँ शारद-
करें कृपा नित मातु नर्मदा जन-मन-भावन..
*
प्रात स्नान कर, श्वेत वसन धरें कुश-आसन.
मौन करें शिवलिंग, यंत्र, विग्रह का पूजन..
'ॐ नमः शिवाय' जपें रुद्राक्ष माल ले-
बार एक सौ आठ करें, स्तोत्र का पठन..
भाँग, धतूरा, धूप, दीप, फल, अक्षत, चंदन,
बेलपत्र, कुंकुम, कपूर से हो शिव-अर्चन..
उमा-उमेश करें पूरी हर मनोकामना-
'सलिल'-साधन सफल करें प्रभु, निर्मल कर मन..
*
: रावण रचित शिवताण्डवस्तोत्रम् :
हिन्दी काव्यानुवाद तथा अर्थ - संजीव 'सलिल'
श्रीगणेशाय नमः
जटाटवीगलज्जलप्रवाहपावितस्थले गलेऽवलम्ब्य लम्बितां भुजङ्गतुङ्गमालिकाम् |
डमड्डमड्डमड्डमन्निनादवड्डमर्वयं चकार चण्ड्ताण्डवं तनोतु नः शिवः शिवम् || १||
पावन कंठ कराल काल नागों से रक्षित..
डम-डम, डिम-डिम, डम-डम, डमरू का निनादकर-
तांडवरत शिव वर दें, हों प्रसन्न, कर मम हित..१..
*
धगद्धगद्धगज्ज्वलल्ललाटपट्टपावके किशोरचन्द्रशेखरे रतिः प्रतिक्षणं मम|| २||
करें विलास जटा में शिव की भटक-घहरकर.
प्रलय-अग्नि सी ज्वाल प्रचंड धधक मस्तक में,
हो शिशु शशि-भूषित शशीश से प्रेम अनश्वर.. २
कृपाकटाक्षधोरणीनिरुद्धदुर्धरापदि क्वचिद्दिगम्बरे मनोविनोदमेतु वस्तुनि || ३||
संकट हर भक्तों को मुक्त करें जग-वन्दित!
वसन दिशाओं के धारे हे देव दिगंबर!!
तव आराधन कर मम चित्त रहे आनंदित..३..
*
लताभुजङ्गपिङ्गलस्फुरत्फणामणिप्रभा कदम्बकुङ्कुमद्रवप्रलिप्तदिग्वधूमुखे |
मदान्धसिन्धुरस्फुरत्त्वगुत्तरीयमेदुरे मनोविनोदमद्भुतं बिभर्तुभूतभर्तरि || ४||
पीताभा केसरी सुशोभा दिग्वधु-मुख की.
लख मतवाले सिन्धु सदृश मदांध गज दानव-
चरम-विभूषित प्रभु पूजे, मन हो आनंदी..४..
*
ललाटचत्वरज्वलद्धनंजस्फुल्लिंगया, निपीतपंचसायकं नमन्निलिम्पनायकं |
सुधामयूखलेखया विराजमानशेखरं, महाकलपालिसंपदे सरिज्जटालमस्तुनः ||५||
इन्द्रादिक देवों का गर्व चूर्णकर क्षण में.
अमियकिरण-शशिकांति, गंग-भूषित शिवशंकर,
तेजरूप नरमुंडसिंगारी प्रभु संपत्ति दें..५..
*
सहस्रलोचनप्रभृत्यशेषलेखशेखर प्रसूनधूलिधोरणी विधूसराङ्घ्रिपीठभूः |
भुजङ्गराजमालया निबद्धजाटजूटक श्रियै चिराय जायतां चकोरबन्धुशेखरः ||६||
सुमनराशि की धूलि सुगन्धित दिव्य धूसरित.
पादपृष्ठमयनाग, जटाहार बन भूषित-
अक्षय-अटल सम्पदा दें प्रभु शेखर-सोहित..६..
*
करालभालपट्टिकाधगद्धगद्धगज्ज्वलद्ध नञ्जयाहुतीकृतप्रचण्डपञ्चसायके |
धराधरेन्द्रनन्दिनीकुचाग्रचित्रपत्रक-प्रकल्पनैकशिल्पिनि त्रिलोचनेरतिर्मम || ७||
किया पंचशर काम-क्षार बस एक निमिष में.
जो अतिदक्ष नगेश-सुता कुचाग्र-चित्रण में-
प्रीत अटल हो मेरी उन्हीं त्रिलोचन-पद में..७..
*
अपने मस्तक की धक-धक करती जलती हुई प्रचंड ज्वाला से कामदेव को भस्म करनेवाले, पर्वतराजसुता (पार्वती) के स्तन के अग्र भाग पर विविध चित्रकारी करने में अतिप्रवीण त्रिलोचन में मेरी प्रीत अटल हो.७.
नवीनमेघमण्डली निरुद्धदुर्धरस्फुरत् - कुहूनिशीथिनीतमः प्रबन्धबद्धकन्धरः |
निलिम्पनिर्झरीधरस्तनोतु कृत्तिसिन्धुरः कलानिधानबन्धुरः श्रियं जगद्धुरंधरः || ८||
कृष्णकंठमय गूढ़ देव भगवती उमा के.
चन्द्रकला, सुरसरि, गजचर्म सुशोभित सुंदर-
जगदाधार महेश कृपाकर सुख-संपद दें..८..
*
प्रफुल्लनीलपङ्कजप्रपञ्चकालिमप्रभा-वलम्बिकण्ठकन्दलीरुचिप्रबद्धकन्धरम् |
स्मरच्छिदं पुरच्छिदं भवच्छिदं मखच्छिदं गजच्छिदांधकछिदं तमंतकच्छिदं भजे || ९||
नीलकंठ सुंदर धारे कंधे उद्भासित.
गज, अन्धक, त्रिपुरासुर भव-दुःख काल विनाशक-
दक्षयज्ञ-रतिनाथ-ध्वंसकर्ता हों प्रमुदित..
*
अखर्वसर्वमङ्गलाकलाकदंबमञ्जरी रसप्रवाहमाधुरी विजृंभणामधुव्रतम् |
स्मरान्तकं पुरान्तकं भवान्तकं मखान्तकं गजान्तकान्धकान्तकं तमन्तकान्तकं भजे || १०||
दक्ष-यज्ञ-विध्वंसक, भव-दुःख-काम क्षारकर.
गज-अन्धक असुरों के हंता, यम के भी यम-
भजूँ महेश-उमेश हरो बाधा-संकट हर..१०..
*
जयत्वदभ्रविभ्रमभ्रमद्भुजङ्गमश्वसद्विनिर्गमत्क्रमस्फुरत्करालभालहव्यवाट् |
धिमिद्धिमिद्धिमिध्वनन्मृदङ्गतुङ्गमङ्गल ध्वनिक्रमप्रवर्तित प्रचण्डताण्डवः शिवः || ११||
दह्काएं गरलाग्नि भाल में जब हुंकारें.
डिम-डिम डिम-डिम ध्वनि मृदंग की, सुन मनमोहक.
मस्त सुशोभित तांडवरत शिवजी उपकारें..११..
*
दृषद्विचित्रतल्पयोर्भुजङ्गमौक्तिकस्रजोर्गरिष्ठरत्नलोष्ठयोः सुहृद्विपक्षपक्षयोः |
तृणारविन्दचक्षुषोः प्रजामहीमहेन्द्रयोः समप्रवृत्तिकः कदा सदाशिवं भजाम्यहत || १२||
मृदा-रत्न या सर्प-मोतियों की माला को.
शत्रु-मित्र, तृण-नीरजनयना, नर-नरेश को-
मान समान भजूँगा कब त्रिपुरारि-उमा को..१२..
*
कदा निलिम्पनिर्झरीनिकुञ्जकोटरे वसन् विमुक्तदुर्मतिः सदा शिरस्थमञ्जलिं वहन् |
विमुक्तलोललोचनो ललामभाललग्नकः शिवेति मंत्रमुच्चरन् कदा सुखी भवाम्यहम् || १३||
सिर पर अंजलि धारणकर कब भक्तिलीन हो?
चंचलनयना ललनाओं में परमसुंदरी,
उमा-भाल-अंकित शिव-मन्त्र गुंजाऊँ सुखी हो?१३..
*
निलिम्पनाथनागरी कदंबमौलिमल्लिका, निगुम्फ़ निर्भरक्षन्म धूष्णीका मनोहरः.
तनोतु नो मनोमुदं, विनोदिनीं महर्नीशं, परश्रियं परं पदं तदंगजत्विषां चय:|| १४||
परिमलमय पराग-कण से शिव-अंग महकते.
शोभाधाम, मनोहर, परमानन्दप्रदाता,
शिवदर्शनकर सफल साधन सुमन महकते..१४..
विमुक्तवामलोचनों विवाहकालिकध्वनि:, शिवेतिमन्त्रभूषणों जगज्जयाम जायतां|| १५||
अष्टसिद्धि अणिमादिक मंगलमयी नर्मदा.
शिव-विवाह-बेला में सुरबाला-गुंजारित,
परमश्रेष्ठ शिवमंत्र पाठ ध्वनि भव-भयहर्ता..१५..
*
हरे गुरौ सुभक्तिमाशु याति नान्यथा गतिं विमोहनं हि देहिनां सुशङ्करस्य चिंतनम् || १६||
मुक्तकंठ से पाठ करें नित प्रति जो गायक.
हो सन्ततिमय भक्ति अखंड रखेंहरि-गुरु में.
गति न दूसरी, शिव-गुणगान करे सब लायक..१६..
*
पूजावसानसमये दशवक्त्रगीतं यः शंभुपूजनपरं पठति प्रदोषे |
तस्य स्थिरां रथगजेन्द्रतुरङ्गयुक्तां लक्ष्मीं सदैव सुमुखिं प्रददाति शंभुः || १७||
पढ़ दशमुखकृत शिवतांडवस्तोत्र यह अविकल.
रमा रमी रह दे समृद्धि, धन, वाहन, परिचर.
करें कृपा शिव-शिवा 'सलिल'-साधना सफलकर..१७..
नवगीत नक्सलवाद
व्यंग्य मुक्तिका
*
छप्पन इंची छाती की जय
वादा कर, जुमला कह निर्भय
*
आम आदमी पर कर लादो
सेठों को कर्जे दो अक्षय
*
उन्हें सिर्फ सत्ता से मतलब
मौन रहो मत पूछो आशय
*
शाकाहारी बीफ, एग खा
तिलक लगा कह बाकी निर्दय
*
नूराकुश्ती हो संसद में
स्वार्थ करें पहले मिलकर तय
*
न्यायालय बैठे भुजंग भी
गरल पिलाते कहते हैं पय
*
कविता सँग मत रेप करो रे!
सीखो छंद, जान गति-यति, लय
***
२६-२-२०१८
दोहे गाँधी दर्शन
सबसे आगे सकेगा, देश हमारा दीख
*
लोकतंत्र में जब न हो, आपस में संवाद
तब बरबस आते हमें, गाँधी जी ही याद
*
क्या गाँधी के पूर्व था, क्या गाँधी के बाद?
आओ! हम आकलन करें, समय न कर बर्बाद
*
आम आदमी सम जिए, पर छू पाए व्योम
हम भी गाँधी को समझ, अब हो पाएँ ओम
*
कहें अतिथि की शान में, जब मन से कुछ बात
दोहा बनता तुरत ही, बिना बात हो बात
*
समय नहीं रुकता कभी, चले समय के साथ
दोहा साक्षी समय का, रखे उठाकर माथ
*
दोहा दुनिया का सतत, होता है विस्तार
जितना गहरे उतरते, पाते थाह अपार
*
दोहा पहेली
दोहा पहेली
*
१.
बच्चों को देती मजा, बिन किताब दे ग्यान।
सब विषयों में पैठकर, कहे न कर अभिमान।।
सरल-कठिन रोचक-ललित, चाहे थोड़ी सूझ।
नाम बताना सोचकर, बूझ सको बूझ।।
= पहेली
२.
चश्मा चप्पल छड़ी ले, टॉफी लाते रोज।
चूड़ी पूजा कर उठे, भोग खिलाती खोज।।
झुकी कमर तन शिथिल दें, छाया जैसे झाड़।
'पूँजी से प्यारा अधिक, सूद' कहें कर लाड़।।
= दादा-दादी
३.
गोदी आँचल लोरियाँ, कंधा अँगुली छाँह
कभी न गिरने दें झपट, थाम पकड़कर बाँह।।
गुड़िया सी गुड़िया लड़े, रूठे जाए मान ।
कदम-कदम पर साथ दे, झगड़ छिड़कता जान।।
= माता, पिता, बहिन, भाई
४.
उषा दुपहरी साँझ सँग, कर डेटिंग रोमांस।
रजनी के सँंग रह रहा, लिव इन करता डांस।। घटता-बढ़ता निरंतर, ले-दे सतत उजास।
है प्रतीक सौंदर्य का, मामा सबसे खास।।
= सूरज-चाँद
५.
गिरि-तनया सागर-प्रिया, लहर-भँवर भंडार।
नहर -जननि को कर नमन, नाम बता साभार।। भेदभाव करती नहीं, हरती सब की प्यास।
तापस तट पर तप करें, कृष्ण रचाते रास।।
= नदी
६.
हम सबको दे रहा है, शांति-शौर्य संदेश।
केसरिया बलिदान दे , हरा-भरा हो देश।।
नील चक्र गतिमान रख, उन्नति करे अशेष।
जन गण मन सुन फहरता, करिए गर्व हमेश।।
= तिरंगा
७.
अंधकार को दूर कर, करता रहा उजास।
हिमगिरि -सागर सँग हँसे, होता नहीं उदास।।
रहा पुजारी ज्ञान का, सत्य अहिंसा चाह।
अवतारों को जन्म दे, सबसे पाई वाह।।
= भारत
८.
अनुशासन पर्याय है, शौर्य-पुंज धर धीर।
नित सरहद पर अड़ा है, बन उल्लंघित प्राचीर।। जान हथेली पर लिए, लोहा माने विश्व।
सौ पर भारी एक है , अरि का अरि बलवीर।।
= सैनिक
९.
बार-बार लड़-पिट रहा, किंतु न आता बाज।
केंद्र बना आतंक का, उसको तनिक न लाज।। लिए कटोरा घूमता, ले अल्ला' का नाम।
चाह रहा है हड़पना, कश्मीर का राज।।
= पाकिस्तान
१०.
केसरिया बलिदान की, करता है जयकार।
श्वेत शांति की चाह कर, कहे बढ़ाओ प्यार।।
हरी-भरी धरती रहे, करिए ठोस उपाय।
नील चक्र गतिमान हो, उन्नति का आधार।।
= तिरंगा
११.
व्यक्त करे हर भाग को, गद्य पद्य आगार।
मन के मन से जोड़ती, बिना तार ही तार।।
शब्दाक्षर दीवाल हैं , कथ्य भूमि छत छंद।
कह-सुन लिख-पढ़ जीव हर, करता है व्यवहार।। = भाषा
१२.
ध्वनि अंकित कर पटल पर, रखे सुरक्षित मीत। ताड़पत्र चट्टान या कागज रखना रीत।।
मुद्रित हो पुस्तक बनें, फैले ज्ञान अपार
ध्वन्यांकन संकेत का, नाम बताएं जीत।।
= लिपि
१३.
जगवाणी की राह पर, है जनवाणी आज।
जन गण मन पर कर रही, है सदियों से राज।। मुहावरे लोकोक्तियाँ, छंद व्याकरण सज्ज। तकनीकी सामर्थ्य का, पहन रही है ताज।।
= हिंदी
१४.
कंकर-कंकर में बसे, पर प्रलयंकर नाम।
नेत्र तीसरा खोल दें, होता काम तमाम।।
अवढरदानी मौन हैं, जो चाहे लो माँग।
शंकाओं के शत्रु हैं, विषपायी अभिराम।।
= शिव जी
१५.
सिर पर हिमगिरि ताज, है पग धोता वारीश।
लेने जन्म तरस रहे, यहाँ आप जगदीश।।
कोटि-कोटि जन की जननि, स्वर्गोपम सौंदर्य। जीवनदायी वस्तुओं, का रहता प्राचुर्य।।
= भारत
१६.
अपने धड़ पर धारते, किसी और का शीश।
पर नारी के साथ में, पुजते बनकर ईश।।
रखते दो दो पत्नियाँ, लड्डू खाते खूब।
मात-पिता को पूजते, खुश है सती-सतीश।।
= गणेश जी
१७.
कागज काले कर रही, रह स्याही के साथ।
न्यून मोल अनमोल है, थामे हरदम हाथ।।
व्यक्त करें अनुभूतियाँ, दिल से दिल दे जोड़।
गद्य-पद्य की सहचरी, लेखक इसके नाथ।।
= कलम
१८.
झाँक रहा है आँख में, होकर नाक सवार।
कान खींचता बेहिचक, फिर भी पाता प्यार।। दिखा रहा दुनिया कहे, देख सके तो देख।
राज कर रहा जेब पर, जैसे हो सरकार।।
= चश्मा
१९.
पुस्तक हो या पुस्तिका, है मेरा ही रूप।
नाम किसी का हो मगर, मैं ही सच्चा भूप।।
क्रय-विक्रय होता नहीं, मुझ बिन कहता सत्य।
नोट-वोट हैं पत्र भी, मेरे अपने रूप।।
= कागज
२०.
पुत्री है अपभ्रंश की, स्वर-व्यंजन-रस खान।
भारतेंदु करते रहे, इसका गौरव गान।।
जैसा बोले सुन लिखे, पढ़ती वैसा पाठ।
भारत माँ की लाड़ली, वाणी के हैं ठाठ।।
= हिंदी
***
_ विश्व वाणी हिंदी संस्थान
४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन
जबलपुर ४८२००१
चलभाष ९४२५२८३२४४।
बुधवार, 27 फ़रवरी 2019
समीक्षा: दोहा-दोहा निर्मला -अमरनाथ
इन दोहों में प्रेम के दोनों रूप, नारी सौंदर्य, राष्ट्रीय चेतना, भारतीय कानून, राजनीति, भ्रष्टाचार, आरक्षण, भारतीय देवी-देवता, भक्ति, गंगा-यमुना, जल और जल संरक्षण, प्रदूषण, गुरु महिमा, चाय, योग, वेदांत और अध्यात्म, ऋतुएँ, बरसात, सावन, त्योहार, हिंदी भाषा, रंगमंच, मोबाइल, सामाजिक सरोकार, सामाजिक रिश्ते, सर्वजन हिताय, हितोपदेश आदि विविध विषयों पर कलम सहभागियों की कलम चली है।

३. तुकांत दोड्ढ-ंउचय अधिकतर दोहे बहुत अच्छे तुकांत लेकर रचे गये है।लेकिन कहीं-ंकहीं पर समतुकांती बनाने में दोहाकार चूके भी हैं।
६. लय भंग- दोहे के १३ मात्रिक विषम चरणों में ४, ४, ३, २ अथवा ३, ३, २, ३, २ तथा सम चरणों में ४, ४, ३ अथवा ३, ३, २, ३ मात्राओं का क्रम अपनाया जाए तथा सम-विषम और लघु-गुरु नियमों का ध्यान रखा जाए तो लय भंग होने की सम्भावना नगण्य हो जाती है। अधिकतर दोहे पूर्ण लययुक्त हैं लेकिन कहीं-ंकहीं चूक भी हुई है। मूल लय / वैकल्पिक लय चाल फागुनी पवन सी / चाल पवन सी फागुनी पृष्ठ १८, मिलकर कोशिश यदि करें / यदि मिलकर कोशिश करें या कोशिश मिलकर यदि करें पृष्ठ २९, थोड़ा हर सकते न तो / हर सकते थोड़ा नहीं? पृष्ठ ४७, ओस-बूँद भागी, भिगा, कली कली का रूप / ओस-बूँद भागी, भिगो,कली कली का रूप पृष्ठ ५५, आना जाना सतत है / आना जाना है सतत पृष्ठ ७५।
निम्न परिवर्तन करने से ११ वी मात्रा लघु हो गयी है।
पृष्ठ ७५- नहा,मगर मन लगा मत / नहा, मगर, मन मत लगा पृष्ठ ७८- चौराहे पर खड़ा हो चौराहे पर हो
८. दोहों की पुनरावृत्ति- दो कवियों ने दो-दो दोहे लगभग समान भाव और समान शब्दों को लेकर रचे हैं।
१०. अन्य कमियाँ- व्याकरण सम्बन्धित सामान्य त्रुटियाँ जगह-जगह दृष्टिगत हैं। प्रश्नवाचक, सम्बोधन, आश्चर्यबोधक संयोजक चिह्नों पर अधिकतर असावधानी बरती गयी है। किसी भी कवि ने विषयवार दोहे संकलित नहीं किए। एक विषय पर एक ही कवि द्वारा लिखे गये सभी दोहे एक साथ रखने पर उस विषय को और अधिक गहराई से समझा जा सकता था और तारतम्यता भी भंग नहीं होती। पुस्तक के प्रारंभ मेंदी गई अनुक्रमणिका पर अगर हरेक कवि के नाम के आगे उसके रचित दोहों की संख्या दर्शा दी जाती तो यह स्पष्ट हो जाता कि पुस्तक में कुल कितने दोहे हैं। इसी प्रकार जहाँ पर दोहे प्रकाशित किए गए हैं प्रत्येक दोहे का क्रमांक अंकित होना चाहिए था ताकि किसी विशेष दोहे को उसके क्रमांक के साथ उद्धृत किया जा सके।