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मंगलवार, 6 अगस्त 2019

नवगीत- दलबन्दी की धूल

नवगीत :
संजीव 
*
संसद की दीवार पर 
दलबन्दी की धूल 
राजनीति की पौध पर
अहंकार के शूल
*

राष्ट्रीय सरकार की
है सचमुच दरकार
स्वार्थ नदी में लोभ की
नाव बिना पतवार
हिचकोले कहती विवश
नाव दूर है कूल
लोकतंत्र की हिलाते
हाय! पहरुए चूल
*
गोली खा, सिर कटाकर
तोड़े थे कानून
क्या सोचा था लोक का
तंत्र करेगा खून?
जनप्रतिनिधि करते रहें
रोज भूल पर भूल
जनगण का हित भुलाकर
दे भेदों को तूल
*
छुरा पीठ में भोंकने
चीन लगाये घात
पाक न सुधरा आज तक
पाकर अनगिन मात
जनहित-फूल कुचल रही
अफसरशाही फूल
न्याय आँख पट्टी, रहे
ज्यों चमगादड़ झूल
*
जनहित के जंगल रहे
जनप्रतिनिधि ही काट
देश लूट उद्योगपति
खड़ी कर रहे खाट
रूल बनाने आये जो
तोड़ रहे खुद रूल
जैसे अपने वक्ष में
शस्त्र रहे निज हूल
*
भारत माता-तिरंगा
हम सबके आराध्य
सेवा-उन्नति देश की
कहें न क्यों है साध्य?
हिंदी का शतदल खिला
फेंकें नोंच बबूल
शत्रु प्रकृति के साथ
मिल कर दें नष्ट समूल
***
[प्रयुक्त छंद: दोहा, १३-११ समतुकांती दो पंक्तियाँ,
पंक्त्यान्त गुरु-लघु, विषम चरणारंभ जगण निषेध]
salil.sanjiv@gmail.com
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#हिंदी_ब्लॉगर
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सोमवार, 17 सितंबर 2018

सामयिक नवगीत

नवगीत 
*
सरहद से 
संसद तक 
घमासान जारी है 
*
सरहद पर आँखों में 
गुस्सा है, ज्वाला है.
संसद में पग-पग पर 
घपला-घोटाला है.
जनगण ने भेजे हैं 
हँस बेटे सरहद पर.
संसद में.सुत भेजें 
नेता जी या अफसर.
सरहद पर 
आहुति है 
संसद में यारी है.
सरहद से 
संसद तक 
घमासान जारी है 
*
सरहद पर धांय-धांय 
जान है हथेली पर.
संसद में कांव-कांव 
स्वार्थ-सुख गदेली पर. 
सरहद से देश को
मिल रही सुरक्षा है.
संसद को देश-प्रेम 
की न मिली शिक्षा है.
सरहद है 
जांबाजी 
संसद ऐयारी है 
सरहद से 
संसद तक 
घमासान जारी है 
*
सरहद पर ध्वज फहरे 
हौसले बुलंद रहें.
संसद में सत्ता हित 
नित्य दंद-फंद रहें.
सरहद ने दुश्मन को 
दी कड़ी चुनौती है.
संसद को मिली 
झूठ-दगा की बपौती है.
सरहद है 
बलिदानी 
संसद-जां प्यारी है. 
सरहद से 
संसद तक 
घमासान जारी है 
***
२७-२-२०१८

शुक्रवार, 10 अगस्त 2018

bundeli navgeet

बुन्देली नवगीत :
जुमले रोज उछालें 
*
संसद-पनघट 
जा नेताजू 
जुमले रोज उछालें।
*
खेलें छिपा-छिबौउअल,
ठोंके ताल,
लड़ाएं पंजा।
खिसिया बाल नोंच रए,
कर दओ
एक-दूजे खों गंजा।
खुदा डर रओ रे!
नंगन सें
मिल खें बेंच नें डालें।
संसद-पनघट
जा नेताजू
जुमले रोज उछालें।
*
लड़ें नई,मैनेज करत,
छल-बल सें
मुए चुनाव।
नूर कुस्ती करें,
बढ़ा लें भत्ते,
खेले दाँव।
दाई भरोसे
मोंड़ा-मोंडी
कूकुर आप सम्हालें।
संसद-पनघट
जा नेताजू
जुमले रोज उछालें।
*
बेंच सिया-सत,
करें सिया-सत।
भैंस बरा पे चढ़ गई।
बिसर पहाड़े,
अद्धा-पौना
पीढ़ी टेबल पढ़ रई।
लाज तिजोरी
फेंक नंगई
खाली टेंट खंगालें।
संसद-पनघट
जा नेताजू
जुमले रोज उछालें।
*
भारत माँ की
जय कैबे मां
मारी जा रई नानी।
आँख कें आँधर
तकें पड़ोसन
तज घरबारी स्यानी।
अधरतिया मदहोस
निगाहें मैली
इत-उत-डालें।
संसद-पनघट
जा नेताजू
जुमले रोज उछालें।
*
पाँव परत ते
अंगरेजन खें,
बाढ़ रईं अब मूँछें।
पाँच अंगुरिया
घी में तर
सर हाथ
फेर रए छूँछे।
बचा राखियो
नेम-धरम खों
बेंच नें
स्वार्थ भुना लें।
***
salil.sanjiv@gmail.com
९४२५१८३२४४
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मंगलवार, 19 सितंबर 2017

geet

एक रचना-
बम भोले! मत बोलो भाई
मत कहना जय राम जी!!
*
लोकतंत्र का अजब तकाज़ा
दुनिया देखे ठठा तमाशा
अपना हाथ
गाल भी अपना
जमकर मारें खुदी तमाचा
आज़ादी कुछ भी कहने की?
हुए विधाता वाम जी!
बम भोले! मत बोलो भाई
मत कहना जय राम जी!!
*
जन का निर्णय पचा न पाते
संसद में बैठे गुर्राते
न्यायालय का
कहा न मानें
झूठे, प्रगतिशील कहलाते
'ख़ास' बुद्धिजीवी पथ भूले
इन्हें न कहना 'आम' जी
बम भोले! मत बोलो भाई
मत कहना जय राम जी!!
*
कहाँ मानते हैं बातों से
कहो, देवता जो लातों के?
जैसे प्रभु
वैसी हो पूजा
उत्तर दो सब आघातों के
अवसर एक न पाएं वे
जो करें देश बदनाम जी
बम भोले! मत बोलो भाई
मत कहना जय राम जी!!
salil.sanjiv@gmail.com
#दिव्यनर्मदा
#हिंदी_ब्लॉगर