कुल पेज दृश्य

मंगलवार, 31 जुलाई 2012

बाल गीत: बरसे पानी -- संजीव 'सलिल'

बाल गीत:

बरसे पानी



संजीव 'सलिल'
*



रिमझिम रिमझिम बरसे पानी.
आओ, हम कर लें मनमानी.



बड़े नासमझ कहते हमसे
मत भीगो यह है नादानी.



वे क्या जानें बहुतई अच्छा
लगे खेलना हमको पानी.



छाते में छिप नाव बहा ले.
जब तक देख बुलाये नानी.



कितनी सुन्दर धरा लग रही,
जैसे ओढ़े चूनर धानी.



काश कहीं झूला मिल जाता,
सुनते-गाते कजरी-बानी.



'सलिल' बालपन फिर मिल पाये.
बिसराऊँ सब अकल सयानी.
*



Acharya Sanjiv verma 'Salil'

http://divyanarmada.blogspot.com
http://hindihindi.in



लोकभाषा-काव्य में श्री गणेश : संजीव 'सलिल'

लोकभाषा-काव्य में श्री गणेश :



संजीव 'सलिल'
*
पारंपरिक ब्याहुलों (विवाह गीत) से दोहा : संकलित

पूरब की पारबती, पच्छिम के जय गनेस.
दक्खिन के षडानन, उत्तर के जय महेस..

*
बुन्देली पारंपरिक तर्ज:



मँड़वा भीतर लगी अथाई के बोल मेरे भाई.

रिद्धि-सिद्धि ने मेंदी रचाई के बोल मेरे भाई.

बैठे गनेश जी सूरत सुहाई के बोल मेरे भाई.

ब्याव लाओ बहुएँ कहें मताई के बोल मेरे भाई.

दुलहन दुलहां खों देख सरमाई के बोल मेरे भाई.

'सलिल' झूमकर गम्मत गाई के बोल मेरे भाई.

नेह नर्मदा झूम नहाई के बोल मेरे भाई.
*

अवधी मुक्तक:



गणपति कै जनम भवा जबहीं, अमरावति सूनि परी तबहीं.

सुर-सिद्ध कैलास सुवास करें, अनुराग-उछाह भरे सबहीं..

गौर की गोद मा लाल लगैं, जनु मोती 'सलिल' उर मा बसही.

जग-छेम नरमदा-'सलिल' बहा, कछु सेस असेस न जात कही..

*
Acharya Sanjiv verma 'Salil'

http://divyanarmada.blogspot.com
http://hindihindi.in



PRAYER : Dear Lord Hilton A Powell




PRAYER :

Dear Lord

Hilton A Powell




Dear Lord,

With my whole heart I ask 

That you look after my friends
 
Guide them in troubles
 
Lead them when lost
 
Give them your ear
 
When they just need to talk

Lend them a hand
 
When they’ve nowhere to turn
 
Show them a new road
 
When a bridge has been burned

Teach them to smile
 
When everything seems bad
 
And show them there is happiness
 
After all that seems sad


Dear Lord,
 
This is my prayer
 
I hope that every word you can hear
 
This message is from my heart
 
For my friends are so dear

Amen.


सोमवार, 30 जुलाई 2012

LIFE

LIFE

The paradox of our time in history is that we have taller buildings but 
shorter tempers, wider freeways, but narrower viewpoints. We spend more, 
but have less; we buy more, but enjoy less. We have bigger houses and 
smaller families, more conveniences, but less time. We have more degrees 
but less sense, more knowledge, but less judgment, more experts, yet more 
problems, more medicine, but less wellness. 

We drink too much, smoke too much, spend too recklessly, laugh too little, 
drive too fast, get too angry, stay up too late, get up too tired, read too 
little, watch TV too much, and pray too seldom. We have multiplied our 
possessions, but reduced our values. We talk too much, love too seldom, and 
hate too often. 

We've learned how to make a living, but not a life. We've added years to 
life not life to years. We've been all the way to the moon and back, but 
have trouble crossing the street to meet a new neighbor. We conquered outer 
space but not inner space. 

We've done larger things, but not better things. We've cleaned up the air, 
but polluted the soul. We've conquered the atom, but not our prejudice. 

We write more, but learn less. We plan more, but accomplish less. 

We've learned to rush, but not to wait. We build more computers to hold 
more information, to produce more copies than ever, but we communicate less 
and less. 

These are the times of fast foods and slow digestion, big men and small 
character, steep profits and shallow relationships. These are the days of 
two incomes but more divorce, fancier houses, but broken homes. 

These are days of quick trips, disposable diapers, throwaway morality, one 
night stands, overweight bodies, and pills that do everything from cheer, 
to quiet, to kill. 

It is a time when there is much in the showroom window and nothing in the 
stockroom. A time when technology can bring this letter to you, and a time 
when you can choose either to share this insight, or to just hit delete. 

Remember; spend some time with your loved ones, because they are not going 
to be around forever. Remember, say a kind word to someone who looks up to 
you in awe, because that little person soon will grow up and leave your 
side. 

Remember to give a warm hug to the one next to you because that is the only 
treasure you can give with your heart and it doesn't cost a cent. Remember, 
to say, "I love you" to your partner and your loved ones, but most of all 
mean it. A kiss and an embrace will mend hurt when it comes from deep 
inside of you. Remember to hold hands and cherish the moment for someday 
that person will not be there again. Give time to love, give time to speak 
and give time to share the precious thoughts in your mind

रविवार, 29 जुलाई 2012

दोहा सलिला सनातन - 2. दोहा सरस सुरम्य संजीव वर्मा 'सलिल'


दोहा सलिला सनातन - 2.

दोहा सरस सुरम्य

संजीव वर्मा 'सलिल'
*

शब्द-ब्रम्ह की साधना, करती कलम प्रणम्य.
पिंगल का वरदान है, दोहा सरस सुरम्य..

नाना भाषा-बोलियाँ, नाना भूषा-रूप.
पंचतत्वमय व्याप्त है, दोहा छंद अनूप.

"भाषा" मानव का अप्रतिम आविष्कार है। पूर्व वैदिक काल से उद्गमित भाषा उत्तरीय कालों के घटनाक्रम की साक्षी बनती हुई सहस्त्रों सदियों पश्चात् आज तक पल्लवित-पुष्पित हो रही है। भाषा विचारों और भावनाओं को शब्दायित करती है। संस्कृति वह अंतर्धारा है जो हमें एकसूत्रता में पिरोती है। भारतीय संस्कृति की नींव "संस्कृत" और उसकी उत्तराधिकारी हिन्दी ही है। "एकता" कृति में चरितार्थ होती है। कृति की नींव विचारों में होती है। विचारों का आकलन भाषा के बिना संभव नहीं। भाषा इतनी समृद्ध होनी चाहिए कि गूढ, अमूर्त विचारों और संकल्पनाओं को सहजता से व्यक्त कर सके। जितने स्पष्ट विचार, उतनी सम्यक् कृति; और समाज में आचार-विचार की एकरुपता याने "एकता"।
भाषा भाव विचार को, करे शब्द से व्यक्त.
उर तक उर की चेतना, पहुँचे हो अभिव्यक्त..

उच्चार :


ध्वनि-तरंग आघात पर, आधारित उच्चार.
मन से मन तक पहुँचता, बनकर रस आगार..

ध्वनि विज्ञान सम्मत् शब्द व्युत्पत्ति शास्त्र पर आधारित व्याकरण नियमों ने संस्कृत और हिन्दी को शब्द-उच्चार से उपजी ध्वनि-तरंगों के आघात से मानस पर व्यापक प्रभाव करने में सक्षम बनाया है। मानव चेतना को जागृत करने के लिए रचे गये काव्य में शब्दाक्षरों का सम्यक् विधान तथा शुद्ध उच्चारण अपरिहार्य है। सामूहिक संवाद का सर्वाधिक लोकप्रिय एवं सर्व सुलभ माध्यम भाषा में स्वर-व्यंजन के संयोग से अक्षर तथा अक्षरों के संयोजन से शब्द की रचना होती है। मुख में ५ स्थानों (कंठ, तालू, मूर्धा, दंत तथा अधर) में से प्रत्येक से ५-५ व्यंजन उच्चारित किए जाते हैं।

सुप्त चेतना को करे, जागृत अक्षर नाद.
सही शब्द उच्चार कर, वक्ता पाता दाद..

उच्चारण स्थान
वर्ग
कठोर(अघोष) व्यंजन
मृदु(घोष) व्यंजन




अनुनासिक
कंठ
क वर्ग
क्
ख्
ग्
घ्
ङ्
तालू
च वर्ग
च्
छ्
ज्
झ्
ञ्
मूर्धा
ट वर्ग
ट्
ठ्
ड्
ढ्
ण्
दंत
त वर्ग
त्
थ्
द्
ध्
न्
अधर
प वर्ग
प्
फ्
ब्
भ्
म्
विशिष्ट व्यंजन

ष्, श्, स्,
ह्, य्, र्, ल्, व्


कुल १४ स्वरों में से ५ शुद्ध स्वर अ, इ, उ, ऋ तथा ऌ हैं. शेष ९ स्वर हैं आ, ई, ऊ, ऋ, ॡ, ए, ऐ, ओ तथा औ। स्वर उसे कहते हैं जो एक ही आवाज में देर तक बोला जा सके। मुख के अन्दर ५ स्थानों (कंठ, तालू, मूर्धा, दांत, होंठ) से जिन २५ वर्णों का उच्चारण किया जाता है उन्हें व्यंजन कहते हैं। किसी एक वर्ग में सीमित न रहने वाले ८ व्यंजन स्वरजन्य विशिष्ट व्यंजन हैं।

विशिष्ट (अन्तस्थ) स्वर व्यंजन :

य् तालव्य, र् मूर्धन्य, ल् दंतव्य तथा व् ओष्ठव्य हैं। ऊष्म व्यंजन- श् तालव्य, ष् मूर्धन्य, स् दंत्वय तथा ह् कंठव्य हैं।

स्वराश्रित व्यंजन: अनुस्वार ( ं ), अनुनासिक (चन्द्र बिंदी ँ) तथा विसर्ग (:) हैं।

संयुक्त वर्ण : भाषा विज्ञान में विविध व्यंजनों के संयोग से बने संयुक्त वर्ण श्र, क्ष, त्र, ज्ञ, क्त आदि का स्वतंत्र अस्तित्व मान्य नहीं है।

मात्रा :
उच्चारण की न्यूनाधिकता अर्थात किस अक्षर पर कितना कम या अधिक भार ( जोर, वज्न) देना है अथवा किसका उच्चारण कितने कम या अधिक समय तक करना है ज्ञात हो तो लिखते समय सही शब्द का चयन कर दोहा या अन्य काव्य रचना के शिल्प को सँवारा और भाव को निखारा जा सकता है। गीति रचना के वाचन या पठन के समय शब्द सही वजन का न हो तो वाचक या गायक को शब्द या तो जल्दी-जल्दी लपेटकर पढ़ना होता है या खींचकर लंबा करना होता है, किंतु जानकार के सामने रचनाकार की विपन्नता, उसके शब्द भंडार की कमी, शब्द ज्ञान की दीनता स्पष्ट हो जाती है. अतः, दोहा ही नहीं किसी भी गीति रचना के सृजन के पूर्व मात्राओं के प्रकार व गणना-विधि पर अधिकार कर लेना जरूरी है।

उच्चारण नियम :

उच्चारण हो शुद्ध तो, बढ़ता काव्य-प्रभाव.
अर्थ-अनर्थ न हो सके, सुनिए लेकर चाव.

शब्दाक्षर के बोलने, में लगता जो वक्त.
वह मात्रा जाने नहीं, रचनाकार अशक्त.

हृस्व, दीर्घ, प्लुत तीन हैं, मात्राएँ लो जान.
भार एक, दो, तीन लो, इनका क्रमशः मान.

१. हृस्व (लघु) स्वर : कम भार, मात्रा १ - अ, इ, उ, ऋ तथा चन्द्र बिन्दु वाले स्वर।

२. दीर्घ (गुरु) स्वर : अधिक भार, मात्रा २ - आ, ई, ऊ, ऋ, ए, ऐ, ओ, औ, अं।

३. बिन्दुयुक्त स्वर तथा अनुस्वारयुक्त या विसर्ग युक्त वर्ण भी गुरु होता है। यथा - नंदन, दु:ख आदि.

४. संयुक्त वर्ण के पूर्व का लघु वर्ण दीर्घ तथा संयुक्त वर्ण लघु होता है अर्थात अर्ध अक्षर ध्वनि पूर्व अक्षर के साथ  पढ़ी जाती है। यथा: विद् + या = विद्या, उक् + त = उक्त

५. प्लुत वर्ण : अति दीर्घ उच्चार, मात्रा ३ - ॐ, ग्वं आदि। वर्तमान हिन्दी में लगभग अप्रचलित।

६. पद्य रचनाओं में छंदों के पाद का अन्तिम हृस्व (लघु) स्वर आवश्यकतानुसार गुरु माना जा सकता है।

७. शब्द के अंत में हलंतयुक्त अक्षर की एक मात्रा होगी।

पूर्ववत् = पूर् २ + व् १ + व १ + त १ = ५

ग्रीष्मः = ग्रीष् 3 + म: २ +५

कृष्ण: = कृष् २ + ण: २ = ४

हृदय: = १ + १ +२ = ४

अनुनासिक एवं अनुस्वार उच्चार :

उक्त प्रत्येक वर्ग के अन्तिम वर्ण (ङ्, ञ्, ण्, न्, म्) का उच्चारण नासिका से होने का कारण ये 'अनुनासिक' कहलाते हैं।

१. अनुस्वार का उच्चारण उसके पश्चातवर्ती वर्ण (बाद वाले वर्ण) पर आधारित होता है। अनुस्वार के बाद का वर्ण जिस वर्ग का हो, अनुस्वार का उच्चारण उस वर्ग का अनुनासिक होगा। यथा-

१. अनुस्वार के बाद क वर्ग का व्यंजन हो तो अनुस्वार का उच्चार ङ् होगा।

क + ङ् + कड़ = कंकड़,

श + ङ् + ख = शंख,

ग + ङ् + गा = गंगा

ल + ङ् + घ् + य = लंघ्य

२. अनुस्वार के बाद च वर्ग का व्यंजन हो तो, अनुस्वार का उच्चार ञ् होगा.

प + ञ् + च = पञ्च = पंच

वा + ञ् + छ + नी + य = वांछनीय

म + ञ् + जु = मंजु

सा + ञ् + झ = सांझ

३. अनुस्वार के बाद ट वर्ग का व्यंजन हो तो अनुस्वार का उच्चारण ण् (व्यवहार में न्) होता है.

घ + ण् + टा = घण्टा, घंटा, घन्टा

क + ण् + ठ = कण्ठ, कंठ, कन्ठ

ड + ण् + डा = डण्डा, डंडा, डंडा

४. अनुस्वार के बाद 'त' वर्ग का व्यंजन हो तो अनुस्वार का उच्चारण 'न्' होता है.

शा + न् + त = शांत, शान्त

प + न् + थ = पंथ, पन्थ

न + न् + द = नंद, नन्द

स्क + न् + द = स्कंद, स्कन्द

५ अनुस्वार के बाद 'प' वर्ग का व्यंजन हो तो अनुस्वार का उच्चार 'म्' होगा.

च + म्+ पा = चंपा, चम्पा

गु + म् + फि + त = गुंफित, गुम्फित

ल + म् + बा = लंबा, लम्बा

कु + म् + भ = कुंभ, कुम्भ

अनुनासिक-अनुस्वर का, अगर न हो अभ्यास.
भाषा शुद्ध न लिख सकें, होता है उपहास..

गौ भाषा को दुह रहा, दोहा कर पय-पान.

सही-ग़लत की 'सलिल' कर, सही-सही पहचान.

***


Happiness --ARVIND PATEL

 





As long as you are preparing to be happy, you will not be. 

If you continue to see happiness as some distant goal to be reached, you will not experience it. Happiness is now. 

The only time you can ever experience it is the moment that you are in. Happiness is unconditional. 

When you put conditions on happiness, it immediately disappears. 

Happiness makes no judgments or demands. 

When you focus on judging others and making demands of them, it drives happiness away from your life. 

Though happiness is simple and uncomplicated, it is at the same time profound and sophisticated. 

For when you allow yourself to be truly happy, the positive energy can reach into every corner of your life. 

Set aside the complaints, excuses, conditions and demands, and make a place for happiness in your world. 

Be happy, and you’ll discover a whole new level of life’s richness.

**********************************************************

मुक्तक : --संजीव 'सलिल'

: मुक्तक :
            
Photobucket
संजीव 'सलिल'
*
धर सकूँ पग धरा इतनी दे विधाता.
हर सकूँ तम त्वरा से चुप मुस्कुराता..
कर सकूँ कुछ काम हो निष्काम दाता-
मर सकूँ दम आख़िरी तक कुछ लुटाता..
**
स्नेह का प्रतिदान केवल स्नेह ही है.
देह का अनुमान केवल देह ही है..
मेह बनकर बरसना बिन शर्त सीखो-
गेह का निर्माण होना गेह ही है..
*
सुमन सम संसार को कर सुरभिमय हम धन्य हों.
सभी से अपनत्व पायें क्यों किसी को अन्य हों..
मनुज बनकर दनुजता के पथ बढ़े, पीछे हटें-
बनें प्रकृति-पुत्र कुछ कम सभ्य, थोड़े वन्य हों..
*
कुछ पल ही क्यों सारा जीवन साथ रहे संतोष.
जो जितना जैसा पाया पर्याप्त, करें जय घोष..
कामनाओं को वासनाओं का रूप न लेने दें-
देश-विश्व हित कर्म करें, हो रिक्त न यश का कोष..
*
दीप्तिमान हों दीप बनें कुछ फैलायें उजयारा.
मिलें दीप से दीप मने दीवाली, तम हो हारा..
सुता धरा से नभ गंगा माँ पुलकित लाड़ लड़ाये-
प्रकृति-पुरुष सुंदर-शिव हो सत का बोलें जयकारा..
*
आत्मज्योति को दीपज्योति सम, तिल-तिल मौन जलायें.
किसलय को किस लय से, कोमल कुसुम कली कर पायें?
वृक्षारोपण भ्रम है, पौधारोपण हो पग-पग पर-
बंजर भू भी हो वरदानी, यदि हम स्वेद बहायें..
*

871584
Acharya Sanjiv verma 'Salil'
http://divyanarmada.blogspot.com
http://hindihindi.in

When a MAN...

When a MAN...


      When a MAN looks at u with eyes full of questions ... he is wondering how long you will be around. 

      When a Man answers ' I'm fine ' after a few seconds ... he is not at all fine. 

      When a Man stares at you he is wondering why you are lying. 

      When a Man lays on your chest .. he is wishing for you to be his forever. 

      When a Man wants to see you everyday... he wants to be pampered. 

      When a Man says ' I love you ' .. he means it. 

      When a Man says ' I miss you ' .... no one in this world can miss you more than that. 

      Life only comes around once make sure u spend it with the right person .... Find a guy .. who calls you beautiful instead of hot, who calls you back when you hang up on him, who will stay awake just to watch you sleep. 

      Wait for the guy who ... kisses your forehead, Who wants to show you off to the world when you are in your sweats, Who holds your hand in front of his friends, Who is constantly reminding you of how much he cares about you and how lucky he is to have you, Who turns to his friends and says: 'That's her !'

*****

आज का विचार THOUGHT OF THE DAY:

आज का विचार  THOUGHT OF THE DAY:
*
तुम्हें भरोसा हो जिस पर
हो  साथ खड़े तुम उसके।
करो न चिंता  एकाकी या
भीड़ संग हो जमके।
*


आज की कविता: हम तो जो हैं वही रहेंगे --रेखा राजवंशी

आज की कविता 

हम तो जो हैं वही रहेंगे




रेखा राजवंशी
सिडनी, ऑस्ट्रेलिया
 
***
 
 चाहे हमको साहिल समझो
या फिर हमको कातिल समझो
या आवारा,
 जाहिल  समझो
समझ तुम्हारी, सोच तुम्हारी
हम तो जो हैं वही रहेंगे
फिर भी अपनी बात कहेंगे

चाहे हमको पागल समझो
या फिर बीत गया कल समझो
या आने वाला पल समझो
समझ तुम्हारी, सोच तुम्हारी
हम तो जो हैं वही रहेंगे
फिर भी अपनी बात कहेंगे

चाहे हमको मंजिल समझो
या फिर हमको महफ़िल समझो
या हमको आशिक दिल समझो
समझ तुम्हारी, सोच तुम्हारी
हम तो जो हैं वही रहेंगे
फिर भी अपनी बात कहेंगे

***

शनिवार, 28 जुलाई 2012

poem; LEARN TO WRITE

POEM:



LEARN TO WRITE

*

TWO FRIENDS WERE WALKING
THROUGH THE DESERT
DURING SOME POINT OF THE
JOURNEY, THEY HAD AN
ARGUMENT; AND ONE FRIEND
SLAPPED THE OTHER ONE
IN THE FACE

THE ONE WHO GOT SLAPPED
WAS HURT, BUT WITHOUT
SAYING ANYTHING,
WROTE IN THE SAND

TODAY MY BEST FRIEND
SLAPPED ME IN THE FACE

THEY KEPT ON WALKING,
UNTIL THEY FOUND AN OASIS,
WHERE THEY DECIDED
TO TAKE A BATH

THE ONE WHO HAD BEEN
SLAPPED GOT STUCK IN THE
MIRE! AND STARTED DROWNING,
BUT THE FRIEND SAVED HIM.

AFTER HE RECOVERED FROM
THE NEAR DROWNING,
HE WROTE ON A STONE:

'TODAY MY BEST FRIEND
SAVED MY LIFE'





THE FRIEND WHO HAD SLAPPED
AND SAVED HIS BEST FRIEND
ASKED HIM, 'AFTER I HURT YOU,
YOU WROTE IN THE SAND AND NOW,
YOU WRITE ON A STONE, WHY?'

THE FRIEND REPLIED
'WHEN SOMEONE HURTS US
WE SHOULD WRITE IT DOWN
IN SAND, WHERE WINDS OF
FORGIVENESS CAN ERASE IT AWAY.

BUT, WHEN SOMEONE DOES
SOMETHING GOOD FOR US,
WE MUST ENGRAVE IT IN STONE
WHERE NO WIND
CAN EVER ERASE IT'

LEARN TO WRITE
YOUR HURTS IN
THE SAND AND TO
CARVE YOUR
BENEFITS IN STONE.

 



THEY SAY IT TAKES A
MINUTE TO FIND A SPECIAL
PERSON, AN HOUR TO
APPRECIATE THEM

A DAY
TO LOVE THEM, BUT THEN
AN ENTIRE LIFE
TO FORGET THEM.

fast or far ?

fast or far ?

HEALTH TIPS : स्वास्थ्य सलाह ---Liez Jaq

View profile
  Liez Jaq

HEALTH TIPS :
      
      स्वास्थ्य सलाह 

United States have found new cancer in human beings caused by Silver Nitro Oxide. Whenever you buy recharge cards, don’t scratch with fingernails as it contains Silver Nitro Oxide coating and can cause skin cancer. 
 
अमेरिका में शोधों से यह ज्ञात हुआ है कि सिल्वर नाइट्रो ऑक्साइड से मनुष्यों में कैंसर फैलता है। रिचार्ज कार्ड का उपयोग करते समय चांदी के रंग की पाती को नाखून से मत खुरचें, इसमें सिल्वर नाइट्रो ऑक्साइड होता है।

Answer phone calls with the left ear. 
 
दूरभाष / चलभाष पर बात करते समय बाएं कान का उपयोग करें।

Don't take your medicine with cold water.... 
 
औषधि का सेवन ठन्डे पानी के साथ मत करें।

Don't eat heavy meals after 5pm. 
 
शाम या रात के समय भारी भोजन न करें।

Drink more water in the morning, less at night. 
 
जल का सेवन दिन में अधिक तथा रात्रि में कम करें।

Best sleeping time is from 10 pm to 4 am. 
 
नींद के लिए सबसे अच्छा समय रात्रि 10 बजे से सबेरे 4 बजे तक है।

Don’t lie down immediately after taking medicine. 
 
औषधि का सेवन कर तुरंत न सोयें।

When phone's battery is low to last bar, don't answer the phone, because the radiation is 1000 times stronger. 
 
फोन बैटरी ख़त्म हो रही हो तो बात न करें, इस समय रैडिएशन 100 गुना अधिक होता है।

***

चित्र पर कविता: संजीव 'सलिल'

चित्र पर कविता:

संजीव 'सलिल'



दिल दौलत की जंग में, किसकी होगी जीत?
कौन बता सकता सखे!, किसको किससे प्रीत??
किसको किससे प्रीत परख का पैमाना क्या?
रूहानी-जिस्मानी रिश्ता मन बहाना क्या??
'सलिल' न तू रूहानी रिश्ते से हो गाफिल.
जिस्मानी रिश्ता पल भर का मान न मंजिल..
*
तुला तराजू या इसको, बैलेंस कहें हम.
मानें इसकी बात सदा, बैलेंस रहें हम..
दिल-दौलत दोनों से ही, चलती है दुनिया.
जैसे अँगना की रौनक हैं, मुन्ना-मुनिया..
एक न हो तो दूजा उसको, सके ना भुला.
दोनों का संतुलन साधिये, कहे सच तुला..
*
धरती पर पग सदृश धन, बनता है आधार.
नभचुंबी अरमान दिल, करता जान निसार..
तनकर तन तौले तुला, मन को सके न तौल.
तन ही रखता मान जब, मन करता है कौल..
दौलत-दिल तन-मन सदृश, पूरक हैं यह सार.
दोनों में कुछ सार है कोई नहीं निस्सार..
****
तराज़ू

-- विजय निकोर                
*
                    मुझको थोड़ी-सी खुशी की चाह थी तुमसे
                    दी तुमने, पर वह भी पलड़े पर
                                                            तौल कर दी ?

                    मैंने तो कभी हिसाब न रखा था,
                    स्नेह, सागर की लहरों-सा
                    उन्मत्त था, उछल रहा था,
                                                     उसे उछलने दिया ।

                   जो  चाहता, तो  भी  रोक  न  सकता  उसको,
                   सागर के उद्दाम उन्माद पर कभी,
                                    क्या नियंत्रण रहा है किसी का ?

                   भूलती है बार-बार मानव की मूर्च्छा
                   कि तराज़ू के दोनों पलड़ों पर
                   स्नेहमय ह्रदय नहीं होते,
                   दूसरे पलड़े पर सांसारिकता में
                   कभी धन-राशि,
                   कभी विसंगति और विरक्ति,
                   कभी अविवेकी आक्रोश,
                   और, .. और भी तत्व होते हैं बहुत
                   जिनका पलड़ा
                   माँ के कोमल ममत्व से,
                   बहन  की  पावन  राखी से,
                   मित्र के निश्छल आवाहन से
                                 कहीं भारी हो जाता है ।

                                     ----------
                                                                    




YOUR SPECIAL ANGEL -Virgina Ellis

शुक्रवार, 27 जुलाई 2012

आज का विचार THOUGHT OF THE DAY:



आज का विचार THOUGHT OF THE DAY:


Gabrielle Maya

भाग्य कुछ होता नहीं है,
जो भी है संयोग है।
कुछ सहज हैं, 
कुछ कठिन हैं,
किन्तु  जो 
हमको बनाते आम  मानव  
वाकई  महत्व उनका।
 *

There's no such thing as destiny. There are only different choices. Some choices are easy, some aren't. Those are the really important ones, the ones that define us as people


 जब हम सेतुबंध तक आते 
करते पार, जलाते  पीछे ।
धूम्र-गंध  से अधिक न कुछ भी 
रहता शेष  दिखा पायें हम 
उन्नति कहकर। 
नयन हमारे सजल हुए थे 
रहती  है अनुभूति साथ यह।


~" We cross our bridges when we come to them and burn them behind us, with nothing to show for our progress except a memory of the smell of smoke, and a presumption that once our eyes watered.”~

कविता औरत, किला और सुरंग - मुकेश इलाहाबादी

कविता 

औरत, किला और सुरंग

- मुकेश इलाहाबादी

 
















औरत --
एक किला है
जिसमे तमाम
सुरंगे ही सुरंगे हैं.
अंधेरे और सीलन से
ड़बड़बाई
एक सुरंग मे घुसो
तो दूसरी
उससे ज्यादा भयावह
अंधेरी व उदासियों से भरी.
 


 
















एक सुरंग के मुहाने में  खडा़
सुन रहा था सीली दीवारों की
सिसकियों को.
दीवार से कान लगाये
हथेलियां सहलाते हुए                               
उस ताप और ठंड़क को
महसूस करने लगा,
एक साथ
जो न जाने कब से कायम थे?
शायद तब से जब से
जब से इस किले में अंधेरा है,
या तब से,
जब से ईव ने
आदम का हर हाल में
साथ देने की कसम खायी.
या फिर जब
प्रकृति से औरत का जन्म हुआ.
 


 
















तब से या कि जब से
ईव ने आदम के प्रेम में पड़ कर
सब कुछ निछावर किया था.
फिर सब कुछ सहना शुरू कर दिया था
सारे दुख तकलीफ
धरती की तरह,
या किले की सीली दीवारों की तरह.
मैं उस अँधेरे में
सिसकियां ओर किलकारियां
भी सुन रहा था एक साथ.
उस भयावह अंधेरे में
अंधेरा अंदर ही अंदर
सिहरता जा रहा था,
कान चिपके थे
किले की
पुरानी जर्जर दीवारों से,
जो
फुसफुसाहटों की तरह
कुछ कहने की कोशिश
मे थी, किन्तु कान थे कि सुन नहीं  पा रहे थे
मन बेतरह घबरा उठा और  मैं
बाहर आ गया.
उदास किले की सीली सुरंगों के भीतर से
जो उस औरत के अंदर मौजूद थीं
न जाने कब से
शायद आदम व हव्वा के जमाने से.

*****

__._,_.___

गुरुवार, 26 जुलाई 2012

CARTOON

123tagged.Com

आज का विचार THOUGHT OF THE DAY:

आज का विचार  THOUGHT OF THE DAY:



'सलिल' लगाती  गले सफलता 
जब होते हो तुम एकाकी.
सबके सम्मुख मिली विफलता-
चपत लगाती, धता बताती.
यही ज़िन्दगी है सच मानो...




 

कविता: पराकाष्ठा -- विजय निकोर

कविता:

पराकाष्ठा

-- विजय निकोर 
 
                         लगता है मुझको कि जन्म-जन्मान्तर से तुम
                         मेरे  जीवन  की  दिव्य आद्यन्त  ‘खोज’ रही  हो,
                         अथवा, शायद तुमको भी लगता हो  कि अपनी
                         सांसों के तारों में कहीं  तुम मुझको  खोज रही हो।
 
                         कि  जैसे  कोई  विशाल  महासागर  के  तट  पर
                         बिता दे  अपनी  सारी  स्वर्णिम अवधि आजीवन,
                         करता  अनायास,  असफ़ल   प्रांजल  प्रयास,
                         कि  जाने  कब  किस  दिन  कोई  सुन  ले  वहाँ
                         विद्रोही  मन  की  करुण  पुकार   दूर  उस  पार। 
 
                         अनन्त अनिश्चितता के झंझावात में भी
                         मख़मल-से  मेरे खयाल  सोच  में  तुम्हारी
                         सौंप देते हैं मुझको इन लहरों की क्रीड़ा में
                         और  मैं  गोते  खाता,  हाथ-पैर  मारता
                         कभी-कभी  डूब  भी  जाता  हूँ-
                         कि मैंने इस संसार की सांसारिकता में
                         खेलना  नहीं  सीखा,  तैरना  नहीं  सीखा।   
 
                         काश  कि  मेरे  मन  में  न  होता   तुम्हारे  लिए
                         स्नेह इतना, इस महासागर में है पानी जितना,
                         कड़क  धूप, तूफ़ान, यह  प्रलय-सी  बारिश
                         सह  लेता,  मैं  सब  सह  लेता, और
                         रहता मेरे स्नेह का तल सदैव समतल सागर-सा।
 
                         उछलती, मचलती, दीवानी लहरें मतवाली
                         गाती मृदुल गीत दूर उस छोर से मिलन का
                         पर मुझको तो दिखता नहीं है कुछ कहीं उस पार,
                         तुम .... तुम इतनी अदृश्य क्यों हो ?
                        
                         तुम हो मेरे जीवन के उपसंहार में
                         मेरी कल्पना का, मेरी यंत्रणा का
                                                                उपयुक्त उपहार।
                         इस  जीवन  में  तुम  मिलो  न  मिलो  तो  क्या?
                         जो न देखो मे्रा दुख-दर्द, न सुनो मेरी कसक
                                          और न सुनो मेरी पुकार तो क्या??
                         कुछ  भी  कहो, नहीं,  नहीं, मैं नहीं मानूंगा हार,
                         कि  तुम  हो  मेरे   जन्म-जन्मांतर  की  साध,
                         कि मेरे अंतरमन में जलता है तुम्हारे लिए
                         केवल तुम्हारे लिए, दिव्य  दीपक की लौ-सा,
                         मेरे  जीवन  के   कंटकित   बयाबानों  के  बीच
                         सांसों की माला में है पलता, हँसता अनुराग
                         केवल,  केवल  तुम्हारे  लिए,
                         और  जो  कोई  पूछे  मुझसे  कि  कौन  हो  तुम?
                         या,क्या है कल्पनातीत महासागर के उस पार??
                         तो कह दूंगा सच कि इसका मुझको
                                                                   कुछ पता नहीं,
                         क्योंकि मैं आज तक कभी उससे मिला नहीं।
 
                                              ----------
                                                                                              

चित्र पर कविता: ३

चित्र पर कविता: ३ 

चित्र पर कविता: २  की अभूतपूर्व सफलता के लिये आप सबको बहुत-बहुत बधाई. एक से बढ़कर एक रचनाएँ चित्र के स्वाद को जिव्हा तक पहुँचाने में सफल रहीं. 

चित्र और कविता की प्रथम कड़ी में शेर-शेरनी संवाद तथा कड़ी २ में मिर्च-पराठे  पर आपकी कलम के जौहर देखने के बाद सबके समक्ष प्रस्तुत है कड़ी ३ का चित्र.



इसे निरखिए-परखिये और कल्पना के घोड़ों को बेलगाम दौड़ने दीजिये.


मेघदूत की जल-धाराओं के साथ काव्यधाराओं का आनंद लेने के पल की प्रतीक्षा हम सब बहुत बेकरारी से कर ही रहे हैं. निवेदन है कि जो अब तक इस सारस्वत अनुष्ठान में सहभागी नहीं हो सके हैं, अब सबके साथ कलम से कलम मिलाकर  कलम-ताल करें.



प्रणव भारती  



  ओहो !.
         बड़ा मुश्किल है समझ पाना
         संभालें दिल या संभालें खजाना
         खजाने का पलड़ा लगता है भारी 
         दिल बेचारे की क्या बिसात जो 
         खजाने पर चोट कर सके करारी 
          ये तो दिल लगता है भोला भाला  
          इसीलिए तो तराजू ने दिल को 
          हलका  बना डाला ......||
          क्या बढिया हो दोनों पलड़े अपने हो जाएं 
          दिल भ़ी संभला रहे और करारों में भ़ी खो जाएँ  
          अब कोई और उतरे मैदान में 
           तब और कुछ कहा जाए तराजू की शान में ||
     
         *
एस. एन. शर्मा 'कमल'




भ्रष्टाचारी नेताओं को रुपयों से तौला जाता है  
बाहुबली अपराधी को वोटों से तौला जाता है
अब हाय राम यह कैसा समय आ गया है
मासूम दिल भी जो नोटों से तौला जाता है
*
 पैसा फेंको इज्ज़त लूटो नोटों की मारामारी है
 इस मायावी दुनिया में दिल की कैसी लाचारी है
 दिल के खरीदार फैले हैं शहरों में और गावों में
 प्यार बना व्यापार आधुनिकता की बलिहारी है  
*
न्याय कि मलिका एक तराजू पकडे हुए खडी है
आँखों पर पट्टी बँधी, नहीं डंडी पर नज़र गडी है
धर्म न्याय ईमान यहाँ भी नोटों में बिकता है
अब दिल भी तुलता नोटों से कैसी मक्कार घड़ी है

  ****


deepti gupta  



 
'दिल की आँखों ने' तराजू के पलडों को हल्का और भारी नहीं -  ऊंचा और नीचा देखा !

       दिल का पलड़ा सदियों से ऊँचा रहा - धन-दौलत,जात-पांत सब पे भारी पड़ता रहा .....!



            दिल  में भरा प्यार  बनाता हैं  उसे उन्नत
           निश्छल  संवेदनाएँ   बनाती   उसे जन्नत 
           हर  दिल  में  भरी होती हैं रुपहली मन्नत 
           दिल की लगी के आगे सिकंदर भी हुआ नत !!

         
                                                            ~ दीप्ति 
               drdeepti25@yahoo.co.in 
              (Alexander had  fallen in love with Roxane)
 ***
मधु सोसी

सच्ची है  तस्वीर , सच कहता तराजू
दिल से भारी पैसा , कैसा है  भा ,राजू 
रूपया तो भारी होना ही था 
शक नही इसमें , न कल था न आजू 

प्रणव की बात लगी सही दोनों ही हो पास तो क्या बात ? क्या बात ?
<sosimadhu@gmail.com>
***

किरण 




न तोलो दिल को किसी तराजू में

काफी वजन है इस छोटे से दिल में

धन दोलत से क्या इससे जीत पाओगे

पूरी कायनात बस जाती है इसकी एक धडकन में


kiran5690472@yahoo.co.in 
***  
चित्र और कविता ३
संजीव 'सलिल'
*


: मुक्तक :

जो न सुनेगा दिल की बात,
दौलत चुन पायेगा मात..
कहे तराजू: 'आँखें खोल-
दिल को दे दिल की सौगात..
*
दिल में है साँसों का वास.
दौलत में बसती है आस..
फल की फिक्र करे क्यों व्यर्थ-
समय तुला गह करो प्रयास..
*
जड़ धन का होगा ही ह्रास.
दिव्य चेतना भरे उजास..
दिल पर दिल दे खुद को वार-
होता है जग वृथा उदास..
*
चाहे पाना और 'सलिल' धन पाकर दिल.
इच्छाओं का होता जाता चाकर दिल..
दान करे, मत मान करे तो हो हल्का-
धन गिरता है, ऊपर उठता जाता दिल..
*
'सलिल' तराजू को मत थामो आँख बंद कर. 
दिल को नगमें सरस सुनाओ सदा छंद कर..
धन को पूज न निर्धन होना, ज्ञान-ध्यान कर-
जो देता प्रभु धन्यवाद कह, नयन बंद कर.. 
***