कुल पेज दृश्य

kakubh लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
kakubh लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं

रविवार, 10 नवंबर 2013

chhand salila: kakubh / kukabh

: छंद सलिला :
ककुभ / कुकुभ
संजीव
*
(छंद विधान: १६ - १४, पदांत में २ गुरु)
*
यति रख सोलह-चौदह पर कवि, दो गुरु आखिर में भाया
ककुभ छंद मात्रात्मक द्विपदिक, नाम छंद ने शुभ पाया
*
देश-भक्ति की दिव्य विरासत, भूले मौज करें नेता
बीच धार मल्लाह छेदकर, नौका खुदी डुबा देता
*
आशिको-माशूक के किस्से, सुन-सुनाते उमर बीती.
श्वास मटकी गह नहीं पायी, गिरी चटकी सिसक रीती.
*
जीवन पथ पर चलते जाना, तब ही मंज़िल मिल पाये
फूलों जैसे खिलते जाना, तब ही तितली मँडराये
हो संजीव सलिल निर्मल बह, जग की तृष्णा हर पाये
शत-शत दीप जलें जब मिलकर, तब दीवाली मन पाये
*
(ककुभ = वीणा का मुड़ा हुआ भाग, अर्जुन का वृक्ष)

Sanjiv verma 'Salil'
salil.sanjiv@gmail.com
http://divyanarmada.blogspot.in/
facebook: sahiyta salila / sanjiv verma 'salil'