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मंगलवार, 9 जुलाई 2019

मुक्तिका: महापौराणिक जातीय, सुमेरु छंद

एक मुक्तिका: 
महापौराणिक जातीय, सुमेरु छंद 
विधान: १९ मात्रिक, यति १०-९, पदांत यगण 
*
न जिंदा है; न मुर्दा अधमरी है.
यहाँ जम्हूरियत गिरवी धरी है.
*
चली खोटी; हुई बाज़ार-बाहर
वही मुद्रा हमेशा जो खरी है.
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किये थे वायदे; जुमला बताते
दलों ने घास सत्ता की चरी है.
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हरी थी टौरिया; कर नष्ट दी अब
तपी धरती; हुई तबियत हरी है.
*
हवेली गाँव की; हम छोड़ आए.
कुठरिया शहर में, उन्नति करी है.
*
न खाओ सब्जियाँ जो चाहता दिल.
भरा है जहर दिखती भर हरी है.
*
न बीबी अप्सरा से मन भरा है
पड़ोसन पूतना लगती परी है.
*
slil.sanjiv@gmail.com
९.७.२०१८, ७९९९५५९६१८

रविवार, 29 जुलाई 2018

सुमेरु छंद

छंद परिचय : २ 
पहचानें इस छंद को, क्या लक्षण?, क्या नाम?
रच पायें तो रचें भी, मिले प्रशंसा-नाम..
*
भोग्य यह संसार हो तुझको नहीं 
त्याज्य भी संसार हो तुझको नहीं 
देह का व्यापार जो भी कर रहा 
गेह का आधार बिसरा मर रहा 
***
टीप: यह १९ मात्रिक छंद सुमेरु छंद है जिस पर उर्दू की बह्र फाइलातुं फाइलातुं फाइलुं (२१२२ २१२२ २१२) आधारित है। 
salil.sanjiv@gmail.com 
#दिव्यनर्मदा 
#हिंदी_ब्लॉगर