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गुरुवार, 2 जुलाई 2020

गीत

एक गीत 
*
येन-केन जीते चुनाव हम
बनी हमारी अब सरकार
कोई न रोके, कोई न टोके
करना हमको बंटाढार
*
हम भाषा के मालिक, कर सम्मेलन ताली बजवाएँ
टाँगें चित्र मगर रचनाकारों को बाहर करवाएँ
है साहित्य न हमको प्यारा, भाषा के हम ठेकेदार
भाषा करे विरोध न किंचित, छीने अंक बिना आधार
अंग्रेजी के अंक थोपकर, हिंदी पर हम करें प्रहार
भेज भाड़ में उन्हें, आज जो हैं हिंदी के रचनाकार
लिखो प्रशंसा मात्र हमारी
जो, हम उसके पैरोकार
कोई न रोके, कोई न टोके
करना हमको बंटाढार
*
जो आलोचक उनकी कलमें तोड़, नष्ट कर रचनाएँ
हम प्रशासनिक अफसर से, साहित्य नया ही लिखवाएँ
अब तक तुमने की मनमानी, आई हमारी बारी है
तुमसे ज्यादा बदतर हों हम, की पूरी तैयारी है
सचिवालय में भाषा गढ़ने, बैठा हर अधिकारी है
छुटभैया नेता बन बैठा, भाषा का व्यापारी है
हमें नहीं साहित्य चाहिए,
नहीं असहमति है स्वीकार
कोई न रोके, कोई न टोके
करना हमको बंटाढार
*
२-७-२०१६
#हिन्दी_ब्लॉगिंग

रविवार, 5 अप्रैल 2020

खबरदार कविता

खबरदार कविता:
खबर: हमारी सरहद इंच-इंच कर कब्ज़ा किया जा रहा है.
दोहा गजल:
असरकार सरकार क्यों?, हुई न अब तक यार.
करता है कमजोर जो, 'सलिल' वही गद्दार..
*
अफसरशाही राह का, रोड़ा- क्यों दरकार?
क्यों सेना में सियासत, रोके है हथियार..
*
दें जवाब हम ईंट का, पत्थर से हर बार.
तभी देश बच पायेगा, चेते अब सरकार..
*
मानवता के नाम पर, रंग जाते अखबार.
आतंकी मजबूत हों, थम जाते हथियार..
*
५-४-२०१०

रविवार, 2 जुलाई 2017

नवगीत

एक रचना 
*
येन-केन जीते चुनाव हम 
बनी हमारी अब सरकार 
कोई न रोके, कोई न टोके 
करना हमको बंटाढार
*
हम भाषा के मालिक, 

कर सम्मेलन ताली बजवाएँ
टाँगें चित्र मगर 

रचनाकारों को बाहर करवाएँ
है साहित्य न हमको प्यारा, 

भाषा के हम ठेकेदार 
*
भाषा करे विरोध न किंचित, 

छीने अंक बिना आधार
अंग्रेजी के अंक थोपकर, 

हिंदी पर हम करें प्रहार
भेज भाड़ में उन्हें, आज जो 

हैं हिंदी के रचनाकार
लिखो प्रशंसा मात्र हमारी
जो, हम उसके पैरोकार
कोई न रोके, कोई न टोके
करना हमको बंटाढार
*
जो आलोचक उनकी कलमें 

तोड़, नष्ट कर रचनाएँ
हम प्रशासनिक अफसर से, 

साहित्य नया ही लिखवाएँ
अब तक तुमने की मनमानी, 

आई हमारी बारी है
तुमसे ज्यादा बदतर हों हम, 

की पूरी तैयारी है
सचिवालय में भाषा गढ़ने, 

बैठा हर अधिकारी है
छुटभैया नेता बन बैठा, 

भाषा का व्यापारी है
हमें नहीं साहित्य चाहिए,
नहीं असहमति है स्वीकार
कोई न रोके, कोई न टोके
करना हमको बंटाढार
*
२-७-२०१६

गुरुवार, 16 अप्रैल 2009

आज की बात आज ही: 'सलिल'

आज की बात आज ही:

ऐ मनुज!

बोलती है नज़र तेरी, क्या रहा पीछे कहाँ?

देखती है जुबान लेकिन, क्या 'सलिल' खोया कहाँ?


कोई कुछ उत्तर न देता, चुप्पियाँ खामोश हैं।

होश की बातें करें क्या, होश ख़ुद मदहोश हैं।

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सत्य यही है हम दब्बू हैं...

अपना सही नहीं कह पाते।

साथ दूसरों के बह जाते।

अन्यायों को हंस सह जाते।

और समझते हम खब्बू हैं...

निज हित की अनदेखी करते।

गैरों के वादों पर मरते।

बेटे बनते बाप हमारे-

व्यर्थ समझते हम अब्बू हैं...

सरहद भूल सियासत करते।

पुरा-पड़ोसी फसलें चरते।


हुए देश-हित 'सलिल' उपेक्षित-

समझ न पाए सच कब्बू हैं...


**********************

लोकतंत्र का यही तकाज़ा
चलो करें मतदान।

मत देना मत भूलना
यह मजहब, यह धर्म।

जो तुझको अच्छा लगे
तू बढ़ उसके साथ।

जो कम अच्छा या बुरा
मत दे उसको रोक।

दल को मत चुनना
चुनें अब हम अच्छे लोग।

सच्चे-अच्छे को चुनो
जो दे देश संवार।

नहीं दलों की, देश
अब तो हो सरकार।

वादे-आश्वासन भुला, भुला पुराने बैर।
उसको चुन जो देश की, कर पायेगा खैर।



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