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बुधवार, 24 जुलाई 2019

गले मिले दोहा-यमक

दोहा सलिला 
गले मिले दोहा-यमक ३ 
*
गरज रहे बरसे नहीं, आवारा घन श्याम
नहीं अधर में अधर धर, वेणु बजाते श्याम 
*
कृष्ण वेणु के स्वर सुने, गोप सराहें भाग
सुन न सके वे जो रहे, श्री के पीछे भाग
*
हल धर कर हलधर चले, हलधर कर थे रिक्त
चषक थाम कर अधर पर, हुए अधर द्वय सिक्त
*
बरस-बरस घन बरस कर, करें धरा को तृप्त
गगन मगन बादल नचे, पर नर रहा अतृप्त
*
असुर न सुर को समझते, अ-सुर न सुर के मीत
ससुर-सुता को स-सुर लख, बढ़ा रहे सुर प्रीत
*
पग तल पर रख दो बढें, उनके पग तल लक्ष्य
हिम्मत यदि हारे नहीं, सुलभ लगे दुर्लक्ष्य
*
ताल तरंगें पवन संग, लेतीं पुलक हिलोर
पत्ते देते ताल सुन, ऊषा भाव-विभोर
*
दिल कर रहा न संग दिल, जो वह है संगदिल
दिल का बिल देता नहीं, नाकाबिल बेदिल
*
हसीं लबों का तिल लगे, कितना कातिल यार
बरबस परबस दिल हुआ, लगा लुटाने प्यार
*
दिलवर दिल वर झूमता, लिए दिलरुबा हाथ
हर दिल हर दिल में बसा, वह अनाथ का नाथ
*
रीझा हर-सिंगार पर, पुष्पित हरसिंगार
आया हरसिंगार हँस, बनने हर-सिंगार
*

सोमवार, 22 जुलाई 2019

दोहा-यमक

दोहा-यमक 
*
गले मिले दोहा यमक, गणपति दें आशीष। 
हो समृद्ध गणतंत्र यह, गणपति बने मनीष।। 
*
वीणावादिनि शत नमन, साध सकूं कुछ राग ।
वीणावादिनि है विनत, मन में ले अनुराग। ।
*
अक्षर क्षर हो दे रहा, क्षर अक्षर ज्ञान।
शब्द ब्रह्म को नमन कर, भव तरते मतिमान।।
*
चित्र गुप्त है चित्र में, देख सके तो देख।
चित्रगुप्त प्रति प्रणत हो, अमिट कर्म का लेख।।
*
दोहा ने दोहा सदा, भाषा गौ को मीत।
गीत प्रीत के गुँजाता, दोहा रीत पुनीत।।
*
भेंट रहे दोहा-यमक, ले हाथों में हार।
हार न कोई मानता, प्यार हुआ मनुहार।।
*
नीर क्षीर दोहा यमक, अर्पित पिंगल नाग।
बीन छंद, लय सरस धुन, झूम उठे सुन नाग।।
*
गले मिले दोहा-यमक, झपट झपट-लिपट चिर मीत।
गले भेद के हिम शिखर, दमके ऐक्य पुनीत।।
*
ग्यारह-तेरह यति रखें, गुरु-लघु हो पद अंत।
जगण निषिद्ध पदादि में, गुरु-लघु सम यति संत।।
*
नाहक हक ना त्याग तू, ना हक पीछे भाग।
ना मन में अनुराग रख, ना तन में बैराग।।
*
ना हक की तू माँग कर, कर पहले कर कर्तव्य।
नाहक भूला आज को, सोच रहा भवितव्य।।
*

शुक्रवार, 19 जुलाई 2019

गले मिले दोहा-यमक

दोहा सलिला :
गले मिले दोहा-यमक
संजीव
*
चंद चंद तारों सहित, करे मौन गुणगान
रजनी के सौंदर्य का, जब तक हो न विहान
*
जहाँ पनाह मिले वहीं, बस बन जहाँपनाह
स्नेह-सलिल का आचमन, देता शांति अथाह
*
स्वर मधु बाला चन्द्र सा, नेह नर्मदा-हास
मधुबाला बिन चित्रपट, है श्रीहीन उदास
*
स्वर-सरगम की लता का,प्रमुदित कुसुम अमोल
खान मधुरता की लता, कौन सके यश तौल
*
भेज-पाया, खा-हँसा, है प्रियतम सन्देश
सफलकाम प्रियतमा ने, हुलस गहा सन्देश
*
गुमसुम थे परदेश में, चहक रहे आ देश
अब तक पाते ही रहे, अब देते आदेश
*
पीर पीर सह कर रहा, धीरज का विनिवेश
घटे न पूँजी क्षमा की, रखता ध्यान विशेष
*
माया-ममता रूप धर, मोह मोहता खूब
माया-ममता सियासत, करे स्वार्थ में डूब
*
जी वन में जाने तभी, तू जीवन का मोल
घर में जी लेते सभी, बोल न ऊँचे बोल
*
विक्रम जब गाने लगा, बिसरा लय बेताल
काँधे से उतरा तुरत, भाग गया बेताल
*

गुरुवार, 11 जुलाई 2019

दोहा यमक

दोहा यमक मिले गले 
तारो! तारोगे किसे, तर न सके खुद आप.
शिव जपते हैं उमा को, उमा भजें शिव नाम.
*
चंद चंद तारों सहित, करे मौन गुणगान
रजनी के सौंदर्य का, जब तक हो न विहान
*
एक दोहा 
जब भी 'मैं' की छूटती, 'हम' की हो अनुभूति.
तब ही 'उस' से मिलन हो, सबकी यही प्रतीति..
७-७-२०१०

बुधवार, 20 मार्च 2019

होली के दोहे

होली के दोहे
*
होली हो ली हो रही, होली हो ली हर्ष  
हा हा ही ही में सलिल, है सबका उत्कर्ष 
होली = पर्व, हो चुकी, पवित्र, लिए हो   
*
रंग रंग के रंग का, भले उतरता रंग 
प्रेम रंग यदि चढ़ गया कभी न उतरे रंग 
*
पड़ा भंग में रंग जब, हुआ रंग में भंग 
रंग बदलते देखता, रंग रंग को दंग 
*
शब्द-शब्द पर मल रहा, अर्थ अबीर गुलाल 
अर्थ-अनर्थ न हो कहीं, मन में करे ख़याल 
*
पिच् कारी दीवार पर, पिचकारी दी मार 
जीत गई झट गंदगी, गई सफाई हार 
*
दिखा सफाई हाथ की, कहें उठाकर माथ 
देश साफ़ कर रहे हैं,  बँटा रहे चुप हाथ 
*
अनुशासन जन में रहे, शासन हो उद्दंड 
दु:शासन तोड़े नियम, बना न मिलता दंड   
*
अलंकार चर्चा न कर, रह जाते नर मौन 
नारी सुन माँगे अगर, जान बचाए कौन?
*
गोरस मधुरस काव्य रस, नीरस नहीं सराह 
करतल ध्वनि कर सरस की, करें सभी जन वाह 
*
जला गंदगी स्वच्छ रख, मनु तन-मन-संसार  
मत तन मन रख स्वच्छ तू, हो आसार में सार 
*
आराधे राधे; कहे आ राधे! घनश्याम 
वाम न होकर वाम हो, क्यों मुझसे हो श्याम 
*
संवस 
होली २०१८ 

गुरुवार, 12 अप्रैल 2018

doha yamak

यमकीय दोहा सलिला 
*
​संगसार वे कर रहे, होकर निष्ठुर क्रूर 
संग सार हम गह रहे, बरस रहा है नूर
*
भाया छाया जो न क्यों, छाया उसकी साथ?
माया माया तज लगी, मायापति के हाथ
*
शुक्ला-श्यामा एक हैं, मात्र दृष्टि है भिन्न 
जो अभिन्नता जानता, तनिक न होता खिन्न
*

मंगलवार, 21 नवंबर 2017

doha-yamak

गले मिले दोहा यमक
.
बिल्ली जाती राह निज, वह न काटती राह
होते हैं गुमराह हम, छोड़ तर्क की थाह
.
जो जगमग-जगमग करे, उसे न सोना जान 
जो जग मग का तम हरे, छिड़क उसी पर जान
.
किस मिस किस मिस को किया, किस बतलाए कौन?
तिल-तिल कर तिल जल रहा, बैठ अधर पर मौन
.
समय सूचिका का करे, जो निर्माण-सुधार 
समय न अपना वह सका, किंचित कभी सुधार
.
वह बोली आदाब पर, वह समझा आ दाब 
लपक-सरकने में गए, रौंदे सुर्ख गुलाब
गले मिले दोहा-यमक, गले बर्फ मतभेद 
इतनी देरी क्यों करी?, दोनों को है खेद 
>>>

रविवार, 12 नवंबर 2017

doha aur yamak

दोहा सलिला
गले मिले दोहा यमक
*
जिस का रण वह ही लड़े, किस कारण रह मौन.
साथ न देते शेष क्यों?, बतलायेगा कौन??
*
ताज महल में सो रही, बिना ताज मुमताज.
शिव मंदिर को मकबरा, बना दिया बेकाज..
*
भोग लगा प्रभु को प्रथम, फिर करना सुख-भोग.
हरि को अर्पण किये बिन, बनता भोग कुरोग..
*
योग लगते सेठ जी, निन्यान्नबे का फेर.
योग न कर दुर्योग से, रहे चिकित्सक-टेर..
*
दस सर तो देखे मगर, नौ कर दिखे न दैव.
नौकर की ही चाह क्यों, मालिक करे सदैव?
*
करे कलेजा चाक री, अधम चाकरी सौत.
सजन न आये चौथ पर, अरमानों की मौत..
*
चढ़े हुए सर कार पर, हैं सरकार समान.
सफर करे सर कार क्यों?, बिन सरदार महान..
*
चाक घिस रहे जन्म से. कोइ न समझे पीर.
गुरु को टीचर कह रहे, मंत्री जी दे पीर..
*
रखा आँख पर चीर फिर, दिया कलेजा चीर.
पीर सिया की सलिल थी, राम रहे प्राचीर..
*
पी मत खा ले जाम तू, है यह नेक सलाह.
जाम मार्ग हो तो करे, वाहन इंजिन दाह..
*
कर वट की आराधना, ब्रम्हदेव का वास.
करवट ले सो चैन से, ले अधरों पर हास..
*

salil.sanjiv@gmail.com, ७९९९५५९६१८
www.divyanarmada.in, #हिंदी_ब्लॉगर

सोमवार, 18 सितंबर 2017

yamak alankaar

:अलंकार चर्चा ०९ :
यमक अलंकार
भिन्न अर्थ में शब्द की, हों आवृत्ति अनेक 

अलंकार है यमक यह, कहते सुधि सविवेक

पंक्तियों में एक शब्द की एकाधिक आवृत्ति अलग-अलग अर्थों में होने पर यमक अलंकार होता है. यमक अलंकार के अनेक प्रकार होते हैं.
अ. दुहराये गये शब्द के पूर्ण-आधार पर यमक अलंकार के ३ प्रकार १. अभंगपद, २. सभंगपद ३. खंडपद हैं.
आ. दुहराये गये शब्द या शब्दांश के सार्थक या निरर्थक होने के आधार पर यमक अलंकार के ४ भेद १.सार्थक-सार्थक, २. सार्थक-निरर्थक, ३.निरर्थक-सार्थक तथा ४.निरर्थक-निरर्थक होते हैं.
इ. दुहराये गये शब्दों की संख्या व् अर्थ के आधार पर भी वर्गीकरण किया जा सकता है.
उदाहरण :
१. झलके पद बनजात से, झलके पद बनजात 
अहह दई जलजात से, नैननि सें जल जात -राम सहाय 
प्रथम पंक्ति में 'झलके' के दो अर्थ 'दिखना' और 'छाला' तथा 'बनजात' के दो अर्थ 'पुष्प' तथा 'वन गमन' हैं. यहाँ अभंगपद, सार्थक-सार्थक यमक अलंकार है. 
द्वितीय पंक्ति में 'जलजात' के दो अर्थ 'कमल-पुष्प' और 'अश्रु- पात' हैं. यहाँ सभंग पद, सार्थक-सार्थक यमक अलंकार है.

२. कनक कनक ते सौ गुनी, मादकता अधिकाय 
या खाये बौराय नर, वा पाये बौराय 
कनक = धतूरा, सोना -अभंगपद, सार्थक-सार्थक यमक

३. या मुरली मुरलीधर की, अधरान धरी अधरा न धरैहौं 
मुरली = बाँसुरी, मुरलीधर = कृष्ण, मुरली की आवृत्ति -खंडपद, सार्थक-सार्थक यमक 
अधरान = अधरों पर, अधरा न = अधर में नहीं - सभंगपद, सार्थक-सार्थक यमक

४. मूरति मधुर मनोहर देखी 
भयेउ विदेह विदेह विसेखी -अभंगपद, सार्थक-सार्थक यमक, तुलसीदास 
विदेह = राजा जनक, देह की सुधि भूला हुआ.

५. कुमोदिनी मानस-मोदिनी कहीं 
यहाँ 'मोदिनी' का यमक है. पहला मोदिनी 'कुमोदिनी' शब्द का अंश है, दूसरा स्वतंत्र शब्द (अर्थ प्रसन्नता देने वाली) है.

६. विदारता था तरु कोविदार को 
यमक हेतु प्रयुक्त 'विदार' शब्दांश आप में अर्थहीन है किन्तु पहले 'विदारता' तथा बाद में 'कोविदार' प्रयुक्त हुआ है.

७. आयो सखी! सावन, विरह सरसावन, लग्यो है बरसावन चहुँ ओर से 
पहली बार 'सावन' स्वतंत्र तथा दूसरी और तीसरी बार शब्दांश है.

८. फिर तुम तम में मैं प्रियतम में हो जावें द्रुत अंतर्ध्यान 
'तम' पहली बार स्वतंत्र, दूसरी बार शब्दांश.

९. यों परदे की इज्जत परदेशी के हाथ बिकानी थी 
'परदे' पहली बार स्वतंत्र, दूसरी बार शब्दांश.

१०. घटना घटना ठीक है, अघट न घटना ठीक 
घट-घट चकित लख, घट-जुड़ जाना लीक

११. वाम मार्ग अपना रहे, जो उनसे विधि वाम 
वाम हस्त पर वाम दल, 'सलिल' वाम परिणाम 
वाम = तांत्रिक पंथ, विपरीत, बाँया हाथ, साम्यवादी, उल्टा

१२. नाग चढ़ा जब नाग पर, नाग उठा फुँफकार 
नाग नाग को नागता, नाग न मारे हार 
नाग = हाथी, पर्वत, सर्प, बादल, पर्वत, लाँघता, जनजाति 
जबलपुर, १८-९-२०१५ 
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शुक्रवार, 5 मई 2017

doha

दोहा दुनिया
सरहद पर सर काट कर, करते हैं हद पार
क्यों लातों के देव पर, हों बातों के वार?
*
गोस्वामी से प्रभु कहें, गो स्वामी मार्केट
पिज्जा-बर्जर भोग में, लाओ न होना लेट
*
भोग लिए ठाकुर खड़ा, करता दंड प्रणाम
ठाकुर जी मुस्का रहे, आज पड़ा फिर काम
*
कहें अजन्मा मनाकर, जन्म दिवस क्यों लोग?
भले अमर सुर, मना लो मरण दिवस कर सोग
*
ना-ना कर नाना दिए, है आकार-प्रकार
निराकार पछता रहा, कर खुद के दीदार
*

मंगलवार, 11 अप्रैल 2017

yamakeeya dohe

यमकीय दोहे
*
​संगसार वे कर रहे, होकर निष्ठुर क्रूर
संग सार हम गह रहे, बरस रहा है नूर
*
काया भीतर वह बसा, बाहर पूजें आप?
चित्रगुप्त का चित्र है गुप्त, दिखाना पाप.
*
​हर अपात्र भी पात्र हो, सच देखें ज्यों सूर
संगति में घनश्याम की, हो कायर भी शूर ​
*
तुनक ठुनक कर यमक ने, जब दिखलाया रंग
अमन बिखेरे चमन में, यमन न हो बेरंग
*
बेल न बेलन जब बनें, हाथों का हथियार
झाड न झाड़ू तब चले, तज निज शस्त्रागार
*
क्यों हरकत नापाक तज, पाक न होता पाक
उलझ, मात खा कटाता, बार-बार निज नाक
*
जो भूलें मर्याद वे, कभी न आते याद
जो मर्यादित हो जियें, वे आते मर-याद
*

रविवार, 5 फ़रवरी 2017

gale mile doha yamak

गले मिले दोहा-यमक
*
नारी पाती दो जगत, जब हो कन्यादान
पाती है वरदान वह, भले न हो वर-दान
*
दिल न मिलाये रह गए, मात्र मिलकर हाथ
दिल ने दिल के साथ रह, नहीं निभाया साथ
*
निर्जल रहने की व्यथा, जान सकेगा कौन?
चंद्र नयन-जल दे रहा, चंद्र देखता मौन
*
खोद-खोदकर थका जब, तब सच पाया जान
खो देगा ईमान जब, खोदेगा ईमान
*
कौन किसी का सगा है, सब मतलब के मीत
हार न चाहें- हार ही, पाते जब हो जीत
*
निकट न होकर निकट हैं, दूर न होकर दूर
चूर न मद से छोर हैं, सूर न हो हैं सूर
*
इस असार संसार में, खोज रहा है सार
तार जोड़ता बात का, डिजिटल युग बे-तार
*
५-२-२०१७



रविवार, 24 जुलाई 2016

doha-yamak 3

दोहा सलिला  
गले मिले दोहा-यमक 
*
गरज रहे बरसे नहीं, आवारा घन श्याम
 नहीं अधर में अधर धर, वेणु बजाते श्याम 
*
कृष्ण वेणु के स्वर सुने, गोप सराहें भाग 
सुन न सके वे जो रहे, श्री के पीछे भाग 
*
हल धर कर हलधर चले, हलधर कर थे रिक्त 
चषक थाम कर अधर पर, हुए अधर द्वय सिक्त 
*
 बरस-बरस घन बरस कर, करें धरा को तृप्त 
गगन मगन बादल नचे, पर नर रहा अतृप्त 
*
असुर न सुर को समझते, अ-सुर न सुर के मीत 
ससुर-सुता को स-सुर लख, बढ़ा रहे सुर प्रीत 
*
पग तल पर रख दो बढें, उनके पग तल लक्ष्य
हिम्मत यदि हारे नहीं, सुलभ लगे दुर्लक्ष्य
*  
ताल तरंगें पवन संग, लेतीं पुलक हिलोर 
पत्ते देते ताल सुन, ऊषा भाव-विभोर 
*
दिल कर रहा न संग दिल, जो वह है संगदिल 
दिल का बिल देता नहीं, नाकाबिल बेदिल 
*
हसीं लबों का तिल लगे, कितना कातिल यार 
बरबस परबस  दिल हुआ, लगा लुटाने प्यार 
*
दिलवर दिल वर झूमता, लिए दिलरुबा हाथ 
हर दिल हर दिल में बसा, वह अनाथ का नाथ 
*
रीझा हर-सिंगार पर, पुष्पित हरसिंगार 
आया हरसिंगार हँस,  बनने हर-सिंगार
*

शनिवार, 23 जुलाई 2016

doha -yamak

गले मिले दोहा यमक २
*
चल बे घर बेघर नहीं, जो भटके बिन काज
बहुत हुई कविताई अब, कलम घिसे किस व्याज?
*
पटना वाली से कहा, 'पट ना' खाई मार
चित आए पट ना पड़े, अब की सिक्का यार
*
धरती पर धरती नहीं, चींटी सिर का भार
सोचे "धर दूँ तो धरा, कैसे सके सँभार?"
*
घटना घट ना सब कहें, अघट न घटना रीत
घट-घटवासी चकित लख, क्यों मनु करे अनीत?
*
सिरा न पाये फ़िक्र हम, सिरा न आया हाथ
पटक रहे बेफिक्र हो, पत्थर पर चुप माथ
*
बेसिर-दानव शक मुआ, हरता मन का चैन
मनका ले विश्वास का, सो ले सारी रैन
*
करता कुछ करता नहीं, भरता भरता दंड
हरता हरता शांति सुख, धरता धरता खंड
*
बजा रहे करताल पर, दे न सके कर ताल
गिनते हैं कर माल फिर, पहनाते कर माल
*
जल्दी से आ भार ले, व्यक्त करूँ आभार
असह्य लगे जो भार दें, हटा तुरत साभार
*
हँस सहते हम दर्द जब, देते हैं हमदर्द
अपना पन कर रहा है सब अपनापन सर्द
*
भोग लगाकर कर रहे, पंडित जी आराम
नहीं राम से पूछते, "ग्रहण करें आ राम!"
*****

शुक्रवार, 22 जुलाई 2016

दोहा यमक १

दोहा-यमक
*
गले मिले दोहा यमक, गणपति दें आशीष।
हो समृद्ध गणतंत्र यह, गणपति बने मनीष।।
*
वीणावादिनि शत नमन, साध सकूं कुछ राग ।
वीणावादिनि है विनत, मन में ले अनुराग। ।
*
अक्षर क्षर हो दे रहा, क्षर अक्षर ज्ञान।
शब्द ब्रह्म को नमन कर, भव तरते मतिमान।।
*
चित्र गुप्त है चित्र में, देख सके तो देख।
चित्रगुप्त प्रति प्रणत हो, अमिट कर्म का लेख।।
*
दोहा ने दोहा सदा, भाषा गौ को मीत।
गीत प्रीत के गुँजाता, दोहा रीत पुनीत।।
*
भेंट रहे दोहा-यमक, ले हाथों में हार।
हार न कोई मानता, प्यार हुआ मनुहार।।
*
नीर क्षीर दोहा यमक, अर्पित पिंगल नाग।
बीन छंद, लय सरस धुन, झूम उठे सुन नाग।।
*
गले मिले दोहा-यमक, झपट झपट-लिपट चिर मीत।
गले भेद के हिम शिखर, दमके ऐक्य पुनीत।।
*
ग्यारह-तेरह यति रखें, गुरु-लघु हो पद अंत।
जगण निषिद्ध पदादि में, गुरु-लघु सम यति संत।।
*
ना हक हक ना त्याग तू, ना हक पीछे भाग।
ना मन में अनुराग रख, ना तन में बैराग।।
*
ना हक की तू माँग कर, कर पहले कर कर्तव्य।
नाहक भूला आज को, सोच रहा भवितव्य।।
*

शुक्रवार, 2 अक्टूबर 2015

alankar

: अलंकार चर्चा १५ :
शब्दालंकार : तुलना और अंतर
*
शब्द कथ्य को अलंकृत, करता विविध प्रकार
अलंकार बहु शब्द के, कविता का श्रृंगार
यमक श्लेष अनुप्रास सँग, वक्र-उक्ति का रंग
छटा लात-अनुप्रास की, कर देती है दंग
साम्य और अंतर 'सलिल', रसानंद का स्रोत
समझ रचें कविता अगर, कवि न रहे खद्योत
शब्दालंकारों से काव्य के सौंदर्य में निस्संदेह वृद्धि होती है, कथ्य अधिक ग्रहणीय तथा स्मरणीय हो जाता है. शब्दालंकारों में समानता तथा विषमता की जानकारी न हो तो भ्रम उत्पन्न हो जाता है. यह प्रसंग विद्यार्थियों के साथ-साथ शिक्षकों, जान सामान्य तथा रचनाकारों के लिये समान रूप से उपयोगी है.
अ. अनुप्रास और लाटानुप्रास:
समानता: दोनों में आवृत्ति जनित काव्य सौंदर्य होता है.
अंतर: अनुप्रास में वर्ण (अक्षर या मात्रा) का दुहराव होता है.
लाटानुप्रास में शब्द (सार्थक अक्षर-समूह) का दुहराव होता है.
उदाहरण: अगम अनादि अनंत अनश्वर, अद्भुत अविनाशी
'सलिल' सतासतधारी जहँ-तहँ है काबा-काशी - अनुप्रास (छेकानुप्रास, अ, स, क)
*
अपना कुछ भी रहा न अपना
सपना निकला झूठा सपना - लाटानुप्रास (अपना. सपना समान अर्थ में भिन्न अन्वयों के साथ शब्द का दुहराव)
आ. लाटानुप्रास और यमक:
समानता : दोनों में शब्द की आवृत्ति होती है.
अंतर: लाटानुप्रास में दुहराये जा रहे शब्द का अर्थ एक ही होता है जबकि यमक में दुहराया गया शब्द हर बार भिन्न (अलग) अर्थ में प्रयोग किया जाता है.
उदाहरण: वह जीवन जीवन नहीं, जिसमें शेष न आस
वह मानव मानव नहीं जिसमें शेष न श्वास - लाटानुप्रास (जीवन तथा मानव शब्दों का समान अर्थ में दुहराव)
*
ढाल रहे हैं ढाल को, सके आक्रमण रोक
ढाल न पाये ढाल वह, सके ढाल पर टोंक - यमक (ढाल = ढालना, हथियार, उतार)
इ. यमक और श्लेष:
समानता: दोनों में शब्द के अनेक (एक से अधिक) अर्थ होते हैं.
अंतर: यमक में शब्द की कई आवृत्तियाँ अलग-अलग अर्थ में होती हैं.
श्लेष में एक बार प्रयोग किया गया शब्द एक से अधिक अर्थों की प्रतीति कराता है.
उदाहरण: छप्पर छाया तो हुई, सर पर छाया मीत
छाया छाया बिन शयन, करती भूल अतीत - यमक (छाया = बनाया, छाँह, नाम, परछाईं)
*
चाहे-अनचाहे मिले, जीवन में तय हार
बिन हिचके कर लो 'सलिल', बढ़कर झट स्वीकार -श्लेष (हार = माला, पराजय)
*
ई. श्लेष और श्लेष वक्रोक्ति:
समानता: श्लेष और श्लेष वक्रोक्ति दोनों में किसी शब्द के एक से अधिक अर्थ होते हैं.
अंतर: श्लेष में किसी शब्द के बहु अर्थ होना ही पर्याप्त है. वक्रोक्ति में एक अर्थ में कही गयी बात का श्रोता द्वारा भिन्न अर्थ निकाला (कल्पित किया जाना) आवश्यक है.
उदहारण: सुर साधे सुख-शांति हो, मुँद जाते हैं नैन
मानस जीवन-मूल्यमय, देता है नित चैन - श्लेष (सुर = स्वर, देवता / मानस = मनस्पटल, रामचरित मानस)
कहा 'पहन लो चूड़ियाँ', तो हो क्यों नाराज?
कहा सुहागिन से गलत, तुम्हें न आती लाज? - श्लेष वक्रोक्ति (पहन लो चूड़ी - चूड़ी खरीद लो, कल्पित अर्थ ब्याह कर लो)
***

शुक्रवार, 18 सितंबर 2015

alankar charcha : yamak alankar

 :अलंकार चर्चा  ०९ :   

यमक अलंकार 

भिन्न अर्थ में शब्द की, हों आवृत्ति अनेक 
अलंकार है यमक  यह, कहते सुधि सविवेक 

पंक्तियों में एक शब्द की एकाधिक आवृत्ति अलग-अलग अर्थों में होने पर यमक अलंकार होता है. यमक अलंकार के अनेक प्रकार होते हैं.  

अ. दुहराये गये शब्द के पूर्ण- आधार पर यमक अलंकार के ३ प्रकार १. अभंगपद, २.  सभंगपद ३. खंडपद हैं. 

आ. दुहराये गये शब्द या शब्दांश के सार्थक या निरर्थक होने के आधार पर यमक अलंकार के ४ भेद १.सार्थक-सार्थक,  २. सार्थक-निरर्थक, ३.निरर्थक-सार्थक तथा ४.निरर्थक-निरर्थक होते हैं. 

इ. दुहराये गये शब्दों की संख्या  अर्थ के आधार पर भी वर्गीकरण किया जा सकता है. 

उदाहरण :
१.  झलके पद बनजात से, झलके पद बनजात 
    अहह दई जलजात से, नैननि सें जल जात   -राम सहाय 
    प्रथम पंक्ति में 'झलके' के दो अर्थ 'दिखना' और 'छाला' तथा 'बनजात'  के दो अर्थ 'पुष्प' तथा 'वन गमन'       हैं. यहाँ अभंगपद यमक अलंकार है. 
    द्वितीय पंक्ति में 'जलजात' के दो अर्थ 'कमल-पुष्प' और 'अश्रु- पात' हैं. यहाँ सभंग यमक अलंकार है.  

२. कनक कनक ते सौ गुनी, मादकता अधिकाय 
    या खाये बौराय नर, वा पाये बौराय  
    कनक = धतूरा, सोना -अभंगपद यमक 

 ३. या मुरली मुरलीधर की, अधरान धरी अधरा न धरैहौं 
     मुरली = बाँसुरी, मुरलीधर = कृष्ण, मुरली की आवृत्ति -खंडपद यमक 
     अधरान = पर, अधरा न =  अधर में नहीं - सभंगपद यमक 

४. मूरति मधुर मनोहर देखी 
    भयेउ विदेह विदेह विसेखी  -अभंगपद  यमक, तुलसीदास  
    विदेह = राजा जनक, देह की सुधि भूला हुआ.   

५. कुमोदिनी मानस-मोदिनी कहीं 
    यहाँ 'मोदिनी' का यमक है. पहला मोदिनी 'कुमोदिनी' शब्द का अंश है, दूसरा स्वतंत्र शब्द (अर्थ प्रसन्नता     देने वाली) है.   

६. विदारता था तरु कोविदार को 
   यमक हेतु प्रयुक्त 'विदार' शब्दांश  आप में अर्थहीन है किन्तु पहले 'विदारता' तथा बाद में 'कोविदार'  प्रयुक्त हुआ है.  

७. आयो सखी! सावन, विरह सरसावन, लग्यो है बरसावन  चहुँ ओर से 
    पहली बार 'सावन' स्वतंत्र तथा दूसरी और तीसरी बार शब्दांश है. 

८. फिर तुम तम में मैं प्रियतम में हो जावें द्रुत अंतर्ध्यान 
    'तम' पहली बार स्वतंत्र, दूसरी बार शब्दांश

९. यों परदे की इज्जत परदेशी के हाथ बिकानी थी  
    'परदे' पहली बार स्वतंत्र, दूसरी बार शब्दांश

१०. घटना घटना ठीक है, अघट न घटना ठीक 
     घट-घट चकित लख, घट-जुड़ जाना लीक   

११. वाम मार्ग अपना रहे, जो उनसे विधि वाम 
     वाम हस्त पर वाम दल, 'सलिल' वाम परिणाम 
     वाम = तांत्रिक पंथ, विपरीत, बाँया हाथ, साम्यवादी,  उल्टा 

१२. नाग चढ़ा जब नाग पर, नाग उठा फुँफकार 
     नाग नाग को नागता, नाग न मारे हार 
     नाग =  हाथी, पर्वत, सर्प, बादल, पर्वत, लाँघता, जनजाति  
जबलपुर, १८-९-२०१५ 
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