रचना - प्रति रचना :
राकेश खंडेलवाल - संजीव
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राकेश
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प्रणव नाद सुन मन कमल, पाये अचल प्रकाश
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राकेश खंडेलवाल - संजीव
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करू श्री से कामना दे दें नया प्रकाश
चाहत जीवन में मिले, सहज सुखद आनन्द
सलिल बूँद से तृप्त मन करना दीनानाथ
कुसुमित हो ममतामयी, बरसायें नव वृंद
प्रणव करूँ करबद्ध मैं अचल ओम महिपाल
सम्मुख रखूँ सुरेन्द्र को, रक्षा करें महेश
शार्दूल विचरण करूँ निर्भय काव्य अरण्य
गौतम के अभिज्ञान से बिसरायें सब क्लेश
शतदल कमलों से बने नित्य विजय का हार
खलिश मिटायें ह्रदय से हर पल परमानन्द
सुरभित हो बहती रहे मलय काव्य की नित्य
सराबोर करते रहें नित संजीवित छन्द.
सादर शुभकामनाओं सहित
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मातु शारदा दीजिये, सुत को नित आशीष
कथ्य भाव भाषा सरस, छंद बिम्ब दें ईश
शैली शीतल छाँव सी, अलंकार शालीन
गद्य-पद्य पढ़ किसी का, आनन हो न मलीन
सँग अनूप राकेश के, शार्दूला सा काव्य
हो अमिताभ सुरेन्द्र सा, कहे अकह संभाव्य
प्रणव नाद सुन मन कमल, पाये अचल प्रकाश
शब्द-कुसुम अर्पित करूँ, हे महेश हर पाश
ओम व्योम महिपाल श्री, गौतम खलिश प्रवीण
मोहन ममता किरण की, कृपा नहीं हो क्षीण
तंज़-रंज से परे रह, दे कविता आनंद
'सलिल' लीन हो अगम में, रचते-गाते छंद*
