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गुरुवार, 30 अप्रैल 2015

navgeet: sanjiv

नवगीत:
संजीव
.
जो हुआ सो हुआ
.
बाँध लो मुट्ठियाँ
चल पड़ो रख कदम
जो गये, वे गये
किन्तु बाकी हैं हम
है शपथ ईश की
आँख करना न नम
नीलकण्ठित बनो
पी सको सकल गम
वृक्ष कोशिश बने
हो सफलता सुआ
.
हो चुका पूर्व में
यह नहीं है प्रथम
राह कष्टों भरी
कोशिशें हों न कम
शेष साहस अभी
है बहुत हममें दम
सूर्य हैं सच कहें
हम मिटायेंगे तम
उठ बढ़ें, जय वरें
छोड़कर हर खुआ
.
चाहते क्यों रहें
देव का हम करम?
पालते क्यों रहें
व्यर्थ मन में भरम?
श्रम करें तज शरम
साथ रहना धरम
लोक अपना बनाएंगे
फिर श्रेष्ठ हम
गन्स जल स्वेद है
माथ से जो चुआ
**

रचना-प्रति रचना महेश चन्द्र गुप्त ’ख़लिश-संजीव

मुक्तिका: ग़ज़ल 
miktika/gazal

संजीव वर्मा 'सलिल' 
sanjiv verma 'salil'
*
निर्जीव को संजीव बनाने की बात कर 
हारे हुओं को जंग जिताने की बात कर 
nirjeev ko sanjeev banane ki baat kar
hare huon ko jang jitane ki baat kar 

'भू माफिये'! भूचाल कहे: 'मत जमीं दबा 
जो जोड़ ली है उसको लुटाने की बात कर'
'bhoo mafiye' bhoochal kahe: mat jameen daba 
jo jod li hai usko lutane kee baat kar 

'आँखें मिलायें' मौत से कहती है ज़िंदगी 
आ मारने के बाद जिलाने की बात कर 
aankhen milayen maut se kahtee hai zindagi 
'aa, marne ke baad jilaane ki baat kar'

तूने गिराये हैं मकां बाकी हैं हौसले   
काँटों के बीच फूल खिलाने की बात कर 
toone giraye hain makan, baki hain hausale  
kaanon ke beech fool khilane kee baat kar 

हे नाथ पशुपति! रूठ मत तू नीलकंठ है 
हमसे ज़हर को अमिय बनाने की बात कर 
he nath pashupati! rooth mat too neelkanth hai 
hmse zar ko amiy banane kee baat kar

पत्थर से कलेजे में रहे स्नेह 'सलिल' भी 
आ वेदना से गंग बहाने की बात कर 
patthar se kaleje men rahe sneh salil bhee 
aa vedana se gng bahane kee baat kar 

नेपाल पालता रहा विश्वास हमेशा 
चल इस धरा पे  स्वर्ग बसाने  की बात कर 
nepaal palta raha vishwas hamesha
chal is dhara pe swarg basane kee baat kar 
*** 

facebook: sahiyta salila / sanjiv verma 'salil' 

बुधवार, 29 अप्रैल 2015

एक कविता : दो कवि 
शिखा:
एक मिसरा कहीं अटक गया है

दरमियाँ मेरी ग़ज़ल के

जो बहती है तुम तक

जाने कितने ख़याल टकराते हैं उससे

और लौट आते हैं एक तूफ़ान बनकर
कई बार सोचा निकाल ही दूँ उसे

तेरे मेरे बीच ये रुकाव क्यूँ?

फिर से बहूँ तुझ तक बिना रुके

पर ये भी तो सच है

कि मिसरे पूरे न हों तो
ग़ज़ल मुकम्मल नहीं होती
संजीव
                                                                                                                                                     ग़ज़ल मुकम्मल होती है तब
                                                                                                                  
जब मिसरे दर मिसरे                                                                                                                          

दूरियों पर पुल बनाती है बह्र                                                                                                                  

और एक दूसरे को अर्थ देते हैं                                                                                                                

गले मिलकर मक्ते और मतले                                                                                                            

काश हम इंसान भी                                                                                                                            

साँसों और आसों के मिसरों से                                                                                                                    
पूरी कर सकें                                                                                                                                      

ज़िंदगी की ग़ज़ल                                                                                                                              

जिसे गुनगुनाकर कहें: आदाब अर्ज़                                                                                                        

आ भी जा ऐ अज़ल! 
**

doha salila: sanjiv

दोहा सलिला:
यमकीय दोहा   
संजीव
.
अंतर में अंतर पले, तब कैसे हो स्नेह
अंतर से अंतर मिटे, तब हो देह विदेह
अंतर = मन / भेद
.
देख रहे छिप-छिप कली, मन में जागी प्रीत
देख छिपकली वितृष्णा, क्यों हो छू भयभीत?
छिप कली = आड़ से रूपसी को देखना / एक जंतु
.
मूल्य बढ़े जीना हुआ, अब सचमुच दुश्वार
मूल्य गिरे जीना हुआ, अब सचमुच दुश्वार
मूल्य = कीमत, जीवन के मानक
.
अंचल से अंचल ढँकें, बची रह सके लाज
अंजन का अंजन करें, नैन बसें सरताज़
अंचल = दामन / भाग या हिस्सा, अंजन = काजल, आँख में लगाना
.
दिनकर तिमिर अँजोरता, फैले दिव्य प्रकाश
संध्या दिया अँजोरता, महल- कुटी में काश
अँजोरता  = समेटता या हर्ता, जलाता या बालता
***

मंगलवार, 28 अप्रैल 2015


navgeet: sanjiv

​​
नवगीत:
संजीव 
धरती काँपी,
नभ थर्राया 
महाकाल का नर्तन 
विलग हुए भूखंड तपिश साँसों की 
सही न जाती
भुज भेंटे कंपित हो भूतल  
भू की फटती छाती 
कहाँ भू-सुता मातृ-गोद में 
जा जो पीर मिटा दे 
नहीं रहे नृप जो निज पीड़ा 
सहकर धीर धरा दें
योगिनियाँ बनकर 
इमारतें करें 
चेतना-कर्तन 
धरती काँपी,
नभ थर्राया 
महाकाल का नर्तन 
पवन व्यथित नभ आर्तनाद कर 
आँसू धार बहायें 
देख मौत का तांडव चुप 
पशु-पक्षी धैर्य धरायें 
ध्वंस पीठिका निर्माणों की, 
बना जयी होना है
ममता, संता, सक्षमता के 
बीज अगिन बोना है 
श्वास-आस-विश्वास ले बढ़े 
हास, न बचे विखंडन 
**

सोमवार, 27 अप्रैल 2015

DOHA

कल और आज :
कल का दोहा 
प्रभुता से लघुता भली, प्रभुता से प्रभु दूर
चीटी ले शक्कर चली, हाथी के सर धूर
.
​आज का दोहा 
लघुता से प्रभुता मिले, प्रभुता लघु हो हीन
'सलिल' लघुत्तम चाहता, दैव महत्तम छीन

doha salila: sanjiv

 दोहा सलिला:
संजीव
.
रूठे थे केदार अब, रूठे पशुपतिनाथ
वसुधा को चूनर हरी, उढ़ा नवाओ माथ
.
कामाख्या मंदिर गिरा, है प्रकृति का कोप
शांत करें अनगिन तरु, हम मिलकर दें रोप
.
भूगर्भीय असंतुलन, करता सदा विनाश
हट संवेदी क्षेत्र से, काटें यम का पाश
.
तोड़ पुरानी इमारतें, जर्जर भवन अनेक
करे नये निर्माण दृढ़, जाग्रत रखें विवेक
.
गिरि-घाटी में सघन वन, जीवन रक्षक जान
नगर बसायें हम विपुल, जिनमें हों मैदान
.
नष्ट न हों भूकम्प में, अपने नव निर्माण
सीखें वह तकनीक सब, भवन रहें संप्राण
.
किस शक्ति के कहाँ पर, आ सकते भूडोल
ज्ञात, न फिर भी सजग हम, रहे किताबें खोल
.
भार वहन क्षमता कहाँ-कितनी लें हम जाँच
तदनसार निर्माण कर, प्रकृति पुस्तिका बाँच
.
     

navgeet: sanjiv

नवगीत:
संजीव
.
आपद बिना बुलाये आये
मत घबरायें. 
साहस-धीरज संग रखें
मिलकर जय पायें
.
भूगर्भी चट्टानें सरकेँ,
कांपे धरती.
ऊर्जा निकले, पड़ें दरारें
उखड़े पपड़ी
हिलें इमारत, छोड़ दीवारें
ईंटें गिरतीं
कोने फटते, हिल मीनारें
भू से मिलतीं
आफत बिना बुलाये आये
आँख दिखाये
सावधान हो हर उपाय कर
जान बचायें
आपद बिना बुलाये आये
मत घबरायें.
साहस-धीरज संग रखें
मिलकर जय पायें
.
द्वार, पलंग तले छिप जाएँ
शीश बचायें
तकिया से सर ढाँकें
घर से बाहर जाएँ
दीवारों से दूर रहें
मैदां अपनाएँ
वाहन में हों तुरत रोक
बाहर हो जाएँ
बिजली बंद करें, मत कोई
यंत्र चलायें
आपद बिना बुलाये आये
मत घबरायें.
साहस-धीरज संग रखें
मिलकर जय पायें
.
बाद बड़े झटकों के कुछ
छोटे आते हैं
दिवस पाँच से सात
धरा को थर्राते हैं
कम क्षतिग्रस्त भाग जो उनकी
करें मरम्मत
जर्जर हिस्सों को तोड़ें यह
अतिआवश्यक
जो त्रुटिपूर्ण भवन उनको
फिर गिरा बनायें
आपद बिना बुलाये आये
मत घबरायें.
साहस-धीरज संग रखें
मिलकर जय पायें
.
है अभिशाप इसे वरदान
बना सकते हैं
हटा पुरा निर्माण, नव नगर
गढ़ सकते हैं.
जलस्तर ऊपर उठता है
खनिज निकलते
भू संरचना नवल देख
अरमान मचलते
आँसू पीकर मुस्कानों की
फसल उगायें
आपद बिना बुलाये आये
मत घबरायें.
साहस-धीरज संग रखें
मिलकर जय पायें
.

haiku: sanjiv

हाइकु सलिला:
संजीव 

सागर माथा 
नत हुआ आज फिर 
देख विनाश.
.
झुक गया है
गर्वित एवरेस्ट
खोखली नीव
.
मनमानी से
मानव पराजित
मिटे निर्माण
.
अब भी चेतो
न करो छेड़छाड़
प्रकृति संग
.
न काटो वृक्ष
मत खोदो पहाड़
कम हो नाश
.
न हो हताश
करें नव निर्माण
हाथ मिलाएं.
.
पोंछने अश्रु
पीड़ितों के चलिए
न छोड़ें कमी

रविवार, 26 अप्रैल 2015

navgeet: sanjiv

नवगीत:
संजीव
.
पशुपतिनाथ!
तुम्हारे रहते
जनगण हुआ अनाथ?
.
वसुधा मैया भईं कुपित
डोल गईं चट्टानें. 
किसमें बूता
धरती कब
काँपेगी अनुमाने?
देख-देख भूडोल
चकित क्यों?
सीखें रहना साथ.
अनसमझा भूकम्प न हो अब
मानवता का काल.
पृथ्वी पर भूचाल
हुए, हो रहे, सदा होएंगे.
हम जीना सीखेंगे या
हो नष्ट बिलख रोएँगे?
जीवन शैली गलत हमारी
करे प्रकृति से बैर.
रहें सुरक्षित पशु-पक्षी, तरु
नहीं हमारी खैर.
जैसी करनी
वैसी भरनी
फूट रहा है माथ.
पशुपतिनाथ!
तुम्हारे रहते
जनगण हुआ अनाथ?
.
टैक्टानिक हलचल को समझें
हटें-मिलें भू-प्लेटें.
ऊर्जा विपुल 
मुक्त हो फैले 
भवन तोड़, भू मेटें.
रहे लचीला
तरु ना टूटे  
अड़ियल भवन चटकता.
नींव न जो
मजबूत रखे
वह जीवन-शैली खोती.
उठी अकेली जो  
ऊँची मीनार
भग्न हो रोती.
वन हरिया दें, रुके भूस्खलन
कम हो तभी विनाश।
बंधन हो मजबूत, न ढीले 
रहें हमारे पाश.
छूट न पायें
कसकर थामें 
'सलिल' हाथ में हाथ
पशुपतिनाथ!
तुम्हारे रहते
जनगण हुआ अनाथ?

.


navgeet: sanjiv

नवगीत:
संजीव
.
धरती की छाती फ़टी
फैला हाहाकार
.
पर्वत, घाटी या मैदान
सभी जगह मानव हैरान
क्रंदन-रुदन न रुकता है
जागा क्या कोई शैतान?
विधना हमसे क्यों रूठा?
क्या करुणासागर झूठा?
किया भरोसा क्या नाहक
पल भर में ऐसे टूटा?
डँसते सर्पों से सवाल
बार-बार फुँफकार
धरती की छाती फ़टी
फैला हाहाकार
.
कभी नहीं मारे भूकंप
कभी नहीं हांरे भूकंप
एक प्राकृतिक घटना है
दोष न स्वीकारे भूकंप
दोषपूर्ण निर्माण किये
मानव ने खुद प्राण दिए
वन काटे, पर्वत खोदे
खुद ही खुद के प्राण लिये
प्रकृति के अनुकूल जिओ
मात्र एक उपचार
.
नींव कूटकर खूब भरो
हर कोना मजबूत करो
अलग न कोई भाग रहे
एकरूपता सदा धरो
जड़ मत हो घबराहट से
बिन सोचे ही मत दौड़ो
द्वार-पलंग नीचे छिपकर
राह काल की भी मोड़ो
फैलाता अफवाह जो
उसको दो फटकार
धरती की छाती फ़टी
फैला हाहाकार
.
बिजली-अग्नि बुझाओ तुरत
मिले चिकित्सा करो जुगत
दीवारों से लग मत सो
रहो खुले में, वरो सुगत
तोड़ो हर कमजोर भवन
मलबा तनिक न रहे अगन
बैठो जा मैदानों में
हिम्मत देने करो जतन
दूर करो सब दूरियाँ
गले लगा दो प्यार
धरती की छाती फ़टी
फैला हाहाकार
*

गुरुवार, 23 अप्रैल 2015

रेल विभाग में आपात तैयारियां; संजीव

Welcome to Emergency Readiness in Jabalpur circle

You are requested to share the circle invitation below with all your contacts in Jabalpur: 

http://tinyurl.com/Jabalpur-Emergency-Response 

जबलपुर मंडल में आपात स्थिति से निबटने की तैयारी: कुछ सुझाव 
१. जबलपुर में १०० % लोग हिंदी समझते, पढ़ते, लिखते और बोलते हैं. इसलिए सभी सूचनाओं और अंतर्जाल पर सुझाव आमंत्रण में हिंदी को प्रमुखता दें. 
२. जबलपुर में अ. भूकंप. आ. चक्रवात / तूफ़ान, इ.भारी वर्षा, ई. अग्निकांड, उ. महामारी अथवा ऊ. दंगा के रूप में आपात स्थिति उत्पन्न हो सकती है. इनसे निबटने के लिये क. तात्कालिक तथा ख. दीर्घकालिक उपाय करने होंगे. कुछ उपाय उक्त सभी के लिए सामान होंगे तथा कुछ उपाय आपात स्थिति के प्रकार और गंभीरता अथवा व्यापकता के अनुसार बदलेंगे. 
३. इस संबंध में व्यापक चर्चा तथा योजना बनाकर क्रियान्वयन के लिए स्थानीय अधिकारी बैठक कर बात करें तो अधिक सार्थक होगा. यहाँ सब कुछ लिखा नहीं जा सकता. 
५. लेखक को मानने उच्च न्यायालय में इस संबंध में चले वाद प्रकरण में राज्य शासन का पक्ष प्रस्तुत करने के लिए उत्तर तैयार करते समय पर्याप्त सामग्री जुटाना पड़ी. चर्चा में उस अनुभव को साझा किया जा सकता है. 
६. तैयारी हेतु संसाधन रेलवे के अपने, जिला प्रशासन के, लोक निर्माण विभाग, स्वास्थ्य विभाग, नगर निगम आदि से जुटाकर सम्मिलित कार्य योजना बनाना होगी. उक्त तथा कुछ अन्य आपात स्थितियों की परिकल्पना कर वांछित कार्ययोजना बनाकर रखने और संबंधितों की जानकारी सूचीबद्ध होने पर तत्काल सूचित कर सहयोग ले पाना और निर्देश दे पाना संभव होगा. 
७. आपात स्थिति में जन प्रतिनिधियों पार्षदों, विधायकों, संसद, जनपद सदस्यों, संस्था प्रमुखों प्राचार्यों, स्वास्थ्य अधिकारी, महापौर, मुख्या अभियंता, आयुध निर्माणियों, विकास प्राधिकरण, अभियांत्रिकी महाविद्यालयों, मेडिकल कोलेज आदि के संसाधनों को एक जुट करना होगा. 
८. रेल विभाग को क्या मदद अन्यों से चाहिए और क्या मिल सकती है तथा क्या मदद अन्यों को चाहिए और क्या दी जा सकती है का भी आकलन करना होगा. 
९. सेवानिवृत्त किन्तु स्वस्थ कर्मचारियों / अधिकारीयों के व्यापक अनुभव का लाभ कब. कहाँ. कैसे लिया जा सकता है पूर्वानुमान करना होगा. 
१०. यथाशीघ्र विषय के जानकारों के साथ बैठकें कर प्रस्तावित कार्ययोजना तैयार कर लेना बेहतर होगा.

English Poertry: Geetha Panikar

भाषा सेतु :
अंग्रेजी कविता

A Little Flower


Geetha Paniker
.
A Little Flower short poem
Photograph by Arun M Sivakrishna
A little flower is an expression,
Of love and art,
Unique tiny creation,
Capturing every heart.
Beautiful and magical,
Uplifting wonderfully,
In a small bouquet,
A moment of untold joy.
Every little flower has music,
In its soul,
Inviting harmony,
And fall in its bower with a smile.
Learn from a little flower,
To be sweet in temper,
Gentle and mild,
As a simple child.
हिंदी रूपांतरण:
संजीव 
नन्हा पुष्प प्रतीक
बना है कला-प्रेम का
अभिनव नन्हा सृजन ,
हरेक का ह्रदय जीतता.
जादुई सुन्दरता लिए,
विस्मित कर देता,
छोटे गुलदस्ते में,
अकहे पल खुशियों के.
हर लघु सुमन समेटे है सुर,
निज आत्मा में,
समरसता को दे आमंत्रण,
मुस्काकर गुपचुप झर जाता.
छोटे से फूलों से सीखो,
मृदुल-मधुर होना स्वभाव से,
शिष्ट और शालीन,
किसी बच्चे के जैसे.
***
आभार: High On Poems

navgeet: sanjiv

नवगीत संजीव . अलस्सुबह बाँस बना ताज़ा अखबार. . फाँसी लगा किसान ने खबर बनाई खूब. पत्रकार-नेता गये चर्चाओं में डूब. जानेवाला गया है उनको तनिक न रंज क्षुद्र स्वार्थ हित कर रहे जो औरों पर तंज. ले किसान से सेठ को दे जमीन सरकार क्यों नादिर सा कर रही जन पर अत्याचार? बिना शुबह बाँस तना जन का हथियार अलस्सुबह बाँस बना ताज़ा अखबार. . भूमि गँवाकर डूब में गाँव हुआ असहाय. चिंता तनिक न शहर को टंसुए श्रमिक बहाय. वनवासी से वन छिना विवश उठे हथियार आतंकी कह भूनतीं बंदूकें हर बार. 'ससुरों की ठठरी बँधे' कोसे बाँस उदास पछुआ चुप पछता रही कोयल चुप है खाँस करता पर कहता नहीं बाँस कभी उपकार अलस्सुबह बाँस बना ताज़ा अखबार. **

muktak: sanjiv

मुक्तक:
संजीव 
.
आसमान कर रहा है इन्तिज़ार 
तुम उड़ो तो हाथ थाम ले बहार 
हौसलों के साथ रख चलो कदम 
मंजिलों को जीत लो, मिले निखार
*

muktika: sanjiv

मुक्तिका:
संजीव 
.
चल रहे पर अचल हम हैं 
गीत भी हैं, गजल हम है 

आप चाहें कहें मुक्तक 
नकल हम हैं, असल हम हैं. 

हैं सनातन, चिर पुरातन 
सत्य कहते नवल हम हैं 
कभी हैं बंजर अहल्या 
कभी बढ़ती फसल हम हैं 

मन-मलिनता दूर करती 
काव्य सलिला धवल हम हैं 

जो न सुधरी आज तक वो 
आदमी की नसल हम  हैं 

गिर पड़े तो यह न सोचो 
उठ न सकते निबल हम हैं 

ठान लें तो नियति बदलें 
धरा  के सुत सबल हम हैं 

कह रही संजीव दुनिया 
जानती है सलिल हम हैं. 
***

kavita: sanjiv

कविता:
अपनी बात:
संजीव 
.
पल दो पल का दर्द यहाँ है 
पल दो पल की खुशियाँ है 
आभासी जीवन जीते हम 
नकली सारी दुनिया है 

जिसने सच को जान लिया 
वह ढाई आखर पढ़ता है 
खाता पीता सोता है जग 
हाथ अंत में मलता है

खता हमारी इतनी ही है 
हमने तुमको चाहा है 
तुमने अपना कहा मगर 
गैरों को गले लगाया है 

धूप-छाँव सा रिश्ता अपना 
श्वास-आस सा नाता है 
दूर न रह पाते पल भर भी 
साथ रास कब आता है 

नोक-झोक, खींचा-तानी ही 
मैं-तुम को हम करती है 
उषा दुपहरी संध्या रजनी 
जीवन में रंग भरती है

कौन किसी का रहा हमेशा 
सबको आना-जाना है 
लेकिन जब तक रहें 
न रोएँ हमको तो मुस्काना है 
*  

बुधवार, 22 अप्रैल 2015

navgeet: sanjiv

नवगीत:
बाँस हूँ मैं 
संजीव
.
बांस हूँ मैं
काट लो तुम 
जला दो तुम
पर न खुद होकर मरूंगा
बीज से हो अंकुरित मैं
पल्लवित हो फिर जियूँगा
बांस हूँ मैं
.
मैं न तुम सा आदमी हूँ
सियासत मुझको न आती
मात्र इतना जानता हूँ
ज्योति जो खुद को जलाती
वही पी पाती तिमिर है
उसी से दीपक अमर है.
सत्य मानो सुरासुर का
सदा ही होना समर है.
मैं रहा हूँ साथ उसके
जो हलाहल धार सकता.
जो न खुद मरता कभी भी
मौत को भी मार सकता.
साथ श्रृद्धा के रहे जो
अडिग हो विश्वास जिसका.
गैर जिसकों नहीं कोई
कोई अपना नहीं उसका.
सर्प से जो खेल लेता
दर्प को जो झेल लेता
शीश पर धर शशि-सलिल को
काम को जो ठेल देता.
जो न पिटता है प्रलय में
जो न मिटता है मलय से
हो लचीला जो खड़ा
भूकम्प में वह कांस हूँ मैं.
घांस हूँ मैं
जड़ जमाये
उखाड़ो तुम
लाख मुझको फिर उगूँगा
रोककर भू स्खलन को
हरा कर भू को हँसूंगा
बांस हूँ मैं
बांस हूँ मैं
काट लो तुम
जला दो तुम
पर न खुद होकर मरूंगा
बीज से हो अंकुरित मैं
पल्लवित हो फिर जियूँगा
बांस हूँ मैं
.
सफलता करती न गर्वित
विफलता करती न मर्दित
चुनौती से जूझ जाता
दे सहारा हुआ हर्षित
आपदा जब भी बुलाती
या निकट आ मुस्कुराती
सगा कह उसको मनाता
गले से अपने लगाता.
भूमिसुत हूँ सत्य मानो
मुझे अपना मीत जानो.
हाथ में लो उठा लाठी
या बना लो मुझे काठी.
बना चाली चढ़ो ऊपर
ज्यों बढ़ें संग वेदपाठी.
भाये ढाबा-चारपाई
टोकरी कमची बनाई.
बन गया थी तीर तब-तब
जब कमानी थी उठाई.
गगन छूता पतंग के संग
फाँस बन चुभ मैं करूँ तंग
मुझ बिना बंटी न ठठरी
कंध चढ़ लूँ टांग गठरी .
वंशलोचन हर निबलता
बाँटता सबको सबलता
मत कहो मैं फूल जाऊँ
क्यों कहीं दुर्भिक्ष्य लाऊँ.
सांस हूँ मैं
खूब खींचो
खूब छोडो
नहीं पल भर भी रुकूंगा
जन्म से लेकर मरण तक
बाँट आम्रित विष पिऊँगा
बांस हूँ मैं
बांस हूँ मैं
काट लो तुम
जला दो तुम
पर न खुद होकर मरूंगा
बीज से हो अंकुरित मैं
पल्लवित हो फिर जियूँगा
बांस हूँ मैं
***

navgeet: sanjiv

नवगीत:
संजीव
.
अपनों पर
अपनों की
तिरछी रहीं निगाहें.
.
साये से भय खाते लोग
दूर न होता शक का रोग
बलिदानी को युग भूले
अवसरवादी करता भोग
सत्य न सुन
सह पाते
झूठी होती वाहें
अपनों पर
अपनों की
तिरछी रहीं निगाहें.
.
उसने पाया था बहुमत  
साथ उसी के था जनमत
सिद्धांतों की लेकर आड़
हुआ स्वार्थियों का जमघट
बलिदानी
कब करते
औरों की परवाहें
अपनों पर
अपनों की
तिरछी रहीं निगाहें.
.
सत्य, झूठ को बतलाते  
सत्ता छिने न, भय खाते
छिपते नहीं कारनामे
जन-सम्मुख आ ही जाते
जननायक
का स्वांग
पाल रहे डाहें
अपनों पर
अपनों की
तिरछी रहीं निगाहें.
.
वह हलाहल रहा पीता
बिना बाजी लड़े जीता
हो विरागी की तपस्या
घट भरा वह, शेष रीता
जन के मध्य
रहा वह
चाही नहीं पनाहें
अपनों पर
अपनों की
तिरछी रहीं निगाहें.
.
कोई  टोंक न पाया
खुद को झोंक न पाया
उठा हुआ उसका पग
कोई रोक न पाया
सबको सत्य
बताओ, जन की
सुनो सलाहें
अपनों पर
अपनों की
तिरछी रहीं निगाहें.
***



 

चित्र पर मुक्तक



चित्रांकन: प्रवीण बरनवाल
संजीव सलिल:
मन गागर सुधियों से पूरित छलक न जाए 
तन गागर दृग आंसू पूरित झलक न जाए
मृण्मय गागर लुढ़की तो फिर भर जाएगी
उसकी छवि देखे बिन मुंद प्रभु! पलक न जाए
नज़र द्विवेदी
अंतर्मन को शाश्वत चिंतन , वाणी दो मधुमय स्वर को ।
मेरा गीत सुधा बन जाए , प्राण श्वांस दो अक्षर को ।।
कब तक अग्नि परीक्षा देगा , लज्जा का अवगुंठन माॅ
अविरल गति दो कर्मयोग के , अलसाये तन पिंजर को ।।
विश्वम्भर शुक्ल
अब कौन सी है बात जो अधीर किये है, 
हँसती हुई आँखों में इतना नीर किये है,
हो किसलिए बेचैन और मौन किसलिए, 
कोई तो बात है कि जो गंभीर किये है ?
डॉ. साधना प्रधान 
सूख गई वो हरियाली प्यार की,
खो गई वो, छांव एतबार की ।
मन-पंछी अकेला खड़ा तके है,
आस लिए, प्रिय तेरे दीदार की ।।
डॉ. संजय बिन्दल
पनघट पर गौरी खड़ी.....पीया मिलन की आस
कब आओगे साजना.......हो ना जाऊँ निःश्वास
तुम सागर हो प्रेम के...मैं प्रेमनद की बहती धारा
जब तक होगा मिलन नही..बुझे ना तब तक प्यास।
डॉ रंजना वर्मा
अश्रु की धार बन गयी है खुद
विकल पुकार बन गयी है खुद।
रास्ते पर नयन टिकाये हुए
वो इंतज़ार बन गयी है खुद।।
विश्व शंकर
किए श्रंगार खडी सुकुमारी श्यामल धारे वसन
प्रेम सुधा रस पीने को व्याकुल उसका यौवन
अतृप्त ह्रदय की है अब बस यही अभिलाषा
प्यास बुझा भर दें गागर बरसें कुछ ऐसे घन
राज कुमार शुक्ल राज
राह पी की तकते तकते धैर्य घट घटने लगा है 
और चातक की तरह मन बस पिया रटने लगा है 
बीतते जाते हैं पल पल इक मिलन की आस मे
अब ह्र्द्य भी राज टुकड़ो टुकड़ो मे बंटने लगा है
अश्वनी कुमार
दे ज्ञान कुछ ऐसा प्रभु, मै प्रीत सच्ची भान लूँ
मै आदमी को देखकर,नियत सही पहचान लूँ
थकने लगी हूँ राह तकते,रिक्त है मन कुंभ सा
आया नहीं निर्मोही क्यूँ,वो लौट के ये जान लूँ II
किरण शुक्ल
आस्था से पत्थर शिव में ढलते देखा
श्रद्धा विश्वास से जग को पलते देखा
निशां पड़ते हैं रस्सी से पत्थर पर
यहाँ मैने सिद्धार्थ को बुद्ध बनते देखा
अवधूत कुमार
ताजमहल से कई पत्थरों में,सोयी हैं मुहब्बतें ,
खजुराहो से कई प्रस्तरों में, जागी है मुहब्बतें ,
सिजदों ने दे दिया है पत्थरों को रुतबाए ख़ुदा,
पत्थरों में क़ाबा'ओ काशी के जागी हैं मुहब्बतें।
नागेब्द्र अनुज 
भरो मत आह इनके नैन गीले हो नहीं सकते।
ये पत्थर-दिल हैं ये हरगिज़ लचीले हो नहीं सकते।
तेरी बेटी है सुंदर भी गुणों की खान भी लेकिन,
बिना पैसों के इसके हाथ पीले हो नहीं सकते
मेहता उत्तम
देख दिल्ली का मंजर सोंचे नारी
द्वंद है भारी मन में सोंच सोंच हारी
आत्महत्या करता किसान है असली
या रैली में मस्त हो करता नाच भारी
पवन बत्तरा
कृष्णा मुझे तुम ही बहुत खिजावत है
हूँ म्लान तुझसे फिर नही बुलावत है
पथ बाट कबसे जोहती तुम्हारी मैं
भरने घड़ा पनघट कभी न जावत है
आभार: मुक्तक लोक 









muktak: sanjiv

मुक्तक:
संजीव
*
हम एक हों, हम नेक हों, बल दो हमें जगदंबिके!
नित प्रात हो हम साथ हों नत माथ हो जगवन्दिते !!
नित भोर भारत-भारती वर दें हमें सब हों सुखी 
असहाय के प्रति हों सहायक हो न कोइ भी दुखी 
*
मत राज्य दो मत स्वर्ग दो मत जन्म दो हमको पुन:
मत नाम दो मत दाम दो मत काम दो हमको पुन:
यदि दो हमें बलिदान का यश दो, न हों जिन्दा रहें 
कुछ  काम मातु! न आ सके नर हो, न शर्मिंदा रहें 
*
तज दे सभी अभिमान को हर आदमी गुणवान हो 
हँस दे लुटा निज ज्ञान को हर लेखनी मतिमान हो 
तरु हों हरे वसुधा हँसे नदियाँ सदा बहती रहें-
कर आरती माँ भारती! हम हों सुखी रसखान हों 
*
फहरा ध्वजा हम शीश को अपने रखें नत हो उठा 
मतभेद को मनभेद को पग के तले कुचलें बिठा 
कर दो कृपा वर दो जया!हम काम भी कुछ आ सकें 
तव आरती माँ भारती! हम एक होक गा सकें  
*
[छंद: हरिगीतिका, सूत्र: प्रति पंक्ति ११२१२ X ४]
*** 

मंगलवार, 21 अप्रैल 2015

navgeet: sanjiv

नवगीत:
संजीव
.
इन्द्रप्रस्थ में
विजय-पराजय
पर लगते फिर दाँव
.
कृष्णार्जुन
रणनीति बदल नित
करते हक्का-बक्का.
दुर्योधन-राधेय
मचलकर
लगा रहे हैं छक्का.
शकुनी की
घातक गुगली पर
उड़े तीन स्टंप.
अम्पायर धृतराष्ट्र
कहे 'नो बाल'
लगाकर जंप.
गांधारी ने
स्लिप पर लपका
अपनों का ही कैच.
कर्ण
सूर्य से आँख फेरकर
खोज रहा है छाँव
इन्द्रप्रस्थ में
विजय-पराजय
पर लगते फिर दाँव
.
द्रोणाचार्य
पितामह के सँग
कृष्ण कर रहे फिक्सिंग.
अर्जुन -एकलव्य
आरक्षण
माँग रहे कर मिक्सिंग.
कुंती
द्रुपदसुता लगवातीं
निज घर में ही आग.
राधा-रुक्मिणी
को मन भाये
खूब कालिया नाग.
हलधर को
आरक्षण देकर
कंस सराहे भाग.
गूँज रही है
यमुना तट पर
अब कौओं की काँव
इन्द्रप्रस्थ में
विजय-पराजय
पर लगते फिर दाँव
.
मठ, मस्जिद,
गिरिजा में होता
श्रृद्धा-शोषण खूब.
लंगड़ा चढ़े  
हिमालय कैसे
रूप-रंग में डूब.
बोतल नयी
पुरानी मदिरा
गंगाजल का नाम.
करो आचमन  
अम्पायर को
मिला गुप्त पैगाम.
घुली कूप में
भाँग रहे फिर
कैसे किसको होश.
शहर
छिप रहा आकर
खुद से हार-हार कर गाँव
इन्द्रप्रस्थ में
विजय-पराजय
पर लगते फिर दाँव
.

muktak: sanjiv

मुक्तक:
संजीव
यहाँ प्रयुक्त छंद को पहचानिए, उसके लक्षण बताइए और उस छंद में कुछ रचिए:
.
माता की जयजयकार करें, निज उर में मोद-उमंग भरें
आ जाए  काल तनिक न डरें, जन-जन का भय-संत्रास हरें
फागुन में भी मधुमास वरें, श्रम पूजें स्वेद बिंदु घहरें-
करतल पर ले निज शीश लड़ें, कब्रों में अरि-सर-मुंड भरें
.
आतंकवाद से टकरायें, दुश्मन न एक भी बच पायें
'बम-बम भोले' जयनाद सुनें, अरि-सैन्य दहलकर थर्रायें
जय काली! जय खप्परवाली!!, जय रुंड-मुंड मालावाली!
योगिनियों सहित आयें मैया!, अरि-रक्त-पान कर हर्षायें
.
नेता सत्ता का मोह तजें, जनसेवक बनकर तार-तरें
या घर जाकर प्रभु-नाम भजें, चर चुके बहुत मत देश चरें
जो कामचोर बिन मौत मरें, रिश्वत से जन हो दूर डरें
व्यवसायी-धनपति वृक्ष बनें, जा दीन-हीन के निकट झरें
.
***

geet: veer vandana -sanjiv

गीत:
वीर वन्दना
संजीव
.
वीर-वन्दना करे कलम तर जायेगी
वाक् धन्य 'जय हिन्द' अगर गुन्जाएगी
.
जंबू द्वीप सनातन है, शुचि-सुन्दर है
कण-कण तीरथधाम, मनुज-मन मन्दिर है
सत्यदेव की पूजा होती रही सदा
इष्ट हमारा एक 'सत्य-शिव-सुंदर है
सत-चित-आनंद छवि गीता दर्शाएगी
.
आर्यावर्त-गोंडवाना मिल गले मिले
सूख गया टैथीज, हिमालय-गंग मिले
सिन्धु-ब्रम्हपुत्रा आँचल मनु-पुत्र बसे
चाँद-चाँदनी हँसे भुलाकर सभी गिले
पावस-शीत-ग्रीष्म नव खुशियाँ लायेगी
.
भारत रत है मानव को सुख देने में
सुख-संतोष-सफलता नैया खेने में
बच्चा-बच्चा दानवीर के यश गाता
सत्य जानता गर्व न होता लेने में
सतनारायण पूजें माँ मुस्काएगी
***     

geet: sanjiv

गीत:
मातृ-वन्दना
संजीव
.
भारती के गीत गाना चाहिए
देश-हित मस्तक कटाना चाहिए
.
मातृभू भाषा जननि को कर नमन
गौ-नदी हैं मातृ सम बिसरा न मन
प्रकृति मैया को न मिला कर तनिक
शारदा माँ के चरण पर धर सुमन
लक्ष्मी माँ उसे ही मनुहारती
शक्ति माँ की जो उतारे आरती
स्वर्ग इस भू को बनाना चाहिए
.
प्यार माँ करती है हर सन्तान से
मुस्कुराती हर्ष सुख सम्मान से
अश्रु बरबस आँख में आते छलक
सुत शहीदों की सुम्हिमा-गान से
शहादत है प्राण-पूजा सब करें  
देश-सेवा का निरंतर पथ वरें
परिश्रम का मुस्कुराना चाहिए
.
देश-सेवा ही सनातन धर्म है
देश सेवा से न बढ़कर कर्म है
लिखा गीता बाइबिल कुरआन में
देश सेवा जिंदगी का मर्म है
जब जहाँ जितना बनें शुभ ही करें
मत किसी प्रतिदान की आशा करें
भाव पूजन का समाना चाहिए
***


navgeet: sanjiv

नवगीत:
संजीव
.
बदलावों से क्यों भय खाते?
क्यों न
हाथ, दिल, नजर मिलाते??
.
पल-पल रही बदलती दुनिया
दादी हो जाती है मुनिया
सात दशक पहले का तेवर
हो न प्राण से प्यारा जेवर
जैसा भी है सैंया प्यारा
अधिक दुलारा क्यों हो देवर?
दे वर शारद! नित्य नया रच
भले अप्रिय हो लेकिन कह सच
तव चरणों पर पुष्प चढ़ाऊँ
बात सरलतम कर कह जाऊँ
अलगावों के राग न भाते
क्यों न
साथ मिल फाग सुनाते?
.
भाषा-गीत न जड़ हो सकता
दस्तरखान न फड़ हो सकता
नद-प्रवाह में नयी लहरिया
आती-जाती सास-बहुरिया
दिखें एक से चंदा-तारे
रहें बदलते सूरज-धरती
धरती कब गठरी में बाँधे
धूप-चाँदनी, धरकर काँधे?
ठहरा पवन कभी क्या बोलो?
तुम ठहरावों को क्यों तोलो?
भटकावों को क्यों दुलराते?
क्यों न
कलेवर नव दे जाते?
.
जितने मुँह हैं उतनी बातें
जितने दिन हैं, उतनी रातें
एक रंग में रँगी सृष्टि कब?
सिर्फ तिमिर ही लखे दृष्टि जब
तब जलते दीपक बुझ जाते
ढाई आखर मन भरमाते
भर माते कैसे दे झोली
दिल छूती जब रहे न बोली
सिर्फ दिमागों की बातें कब
जन को भाती हैं घातें कब?
भटकावों को क्यों अपनाते?
क्यों न
पथिक नव पथ अपनाते?
***
२१.४.२०१५
     
  

peris se pati

बिटिया की पेरिस से पाती आई है....!

कुछ बड़े सवाल छोड़ता हमारे कोलकाता कार्यालय की साथी श्रीमती पूनम दीक्षित की बेटी अनन्या दीक्षित का पेरिस से अपनी माँ को लिखा पत्र !!!!

Mumma... here's my experience from the event with the PM last week smile emoticon
Thoda lamba hai... and kuch spelling mistakes ho sakti hain.. but anyhow... here you go !!!!

विगत सप्ताहमेरे लेटर बॉक्स में भारतीय दूतावास का एक आमंत्रण पत्र पड़ा मिला था. आमंत्रण था पेरिस मेंभारतीय समुदाय के कार्यक्रम काजिसमे हमारे प्रधान मंत्री, श्री नरेंद्र मोदीशिरकत करने वाले थे। मैं सबके बारे में तो नहीं बता सकतीपर पिछले करीब ४ सालों से विदेश में रहते हुएमैंने पाया है की अपने देश के प्रति मेरी भावनाएं और प्रगाढ़ हो गयी हैं। अंग्रेजी में कहावत है Distance makes the heart grow fonder , शायद मेरे साथ भी यही हुआ है। चतुर्दिक भिन्न संस्कृतियोंभिन्न भाषाओँ से घिरे रहने नेमुझे शायद भारतीयता के मूल्य का बेहतर आभास करवाया है. विदेश मेंअपने देश का कोई अनजान व्यक्ति,अपने देश का झंडाया कोई भी छोटा सा चिन्ह दिख जाये तो मन पुलकित हो उठता है।  तो ऐसे में,अशोक स्तम्भ से सजा हुआ भारतीय दूतावास का पत्र तो अनूठा था। कागज़ के छोटे से टुकड़े ने ख़ुशीगर्व,उत्साहजैसी कई अनुभूतियों के द्वार खोल दिये। मैं बेहद उत्सुक थी देखने के लिए कि दूर देश में भारतियों का और भारतीयता का समागम कैसा होगा। फ्रांस मेंकुछ घंटे के लिए भारत का एहसास कैसा होगा। 

कार्यक्रम का venue , पेरिस का प्रसिद्ध Louvre संग्रहालय था। विशालऐतिहासिक, आकर्षक, Louvre का नाम पेरिस के सबसे खूबसूरत नज़ारों में शुमार है। लिहाज़ामेरे अनुभव का आगाज़ बेहद शानदार हुआ. मैं वक़्त से कुछ पहले ही पहुँच गयी थीइसलिए मैं सोच रही थी की मुझे अधिक भीड़ का सामना नहीं करना पड़ेगा. पर जब मैं समारोह स्थल पर पहुंचीं मैं अनायास ही हंस पड़ी। मेरी हंसी का कारण आश्चर्य भी था और ये भी था की मुझे Deja vu का एहसास हुआ क्यूंकि Louvre की Carousel Gallery , हिंदुस्तान के रंग में ओत प्रोत थी। 

कार्यक्रम शुरू होने में ३ घंटे शेष थेपर यूरोप के हर कोने से आये हुए करीब ३ हज़ार लोग पहले ही कतार में खड़े थे. क्या बच्चेक्या बूढेक्या जवान.. ज्यादात्तर औरतों ने अपनी ठेठ हिंदुस्तानी पोशाकें पहन रखीं थींजैसे कोई त्यौहार हो.... और देखा जाये तो ऐसे मौके हम प्रवासी भारतीयों के लिए त्यौहार से कम भी नहीं होते। कइयों ने हाथ में भारत के झंडे पकड़ रखे थेकुछ के सर पर पगड़ी बंधी हुई थीऔर कुछ उत्साहीबीच बीच में भारत माता की जय के नारे लगा रहे थे। हिंदीबांग्ला और अलग अलग भारतीय भाषाओँ के कुछ शब्द उड़ते उड़ते कानों तक आ रहे थे। समस्त वातावरण जीवंत थात्वरित ऊर्जा से सराबोर। भारत और भारतीयों की जीवन्तताउनका जोश उन्हें समस्त विश्व से पृथक पहचान देता हैऔर इस उमंग का सीधा प्रसारण अपने सामने पाकरमैं मुस्कुराती हुईकुछ क्षण बस निहारती रही।
कतार में काफी देर खड़े रहना पड़ाऔर इस प्रतीक्षा ने कई और सवालकई और विचार जागृत कर दिये।

समारोह भारतउसकी संस्कृतिइतिहास और उसके विकास के सम्मान में आयोजित थापर अपने पास खड़े ज़्यदातर लोगों के व्यवहार ने मुझे सोचने पर विवश कर दियाकी क्या हम वाकई अपनी सभ्यता और भारतीयता का सम्मान करते हैं क्या जो उत्साह मुझे दिख रहा थाक्या वह केवल सतही था क़तार में मेरे इर्द गिर्द खड़े सभी लोगशिक्षितसभ्य प्रवासी भारतीय प्रतिनिधि थेऐसे प्रतिनिधि जो शायद किसी स्तर पर राजदूतों और प्रधान मंत्री या विदेश मंत्रियों से भी अधिक महत्त्वपूर्ण होते हैं. कहीं न कहीं हम जैसे भारतीयों को देखकर ही संभावित पर्यटक और शायद कुछ हद तक भावी निवेशक भीदेश और उसके लोगों के विषय में अपनी राय बनाते हैं. तो ऐसे मेंहम हिंदुस्तान की कैसी छवि प्रदर्शित करते हैं ? Slumdog Millionaire के बाद से वैसे भी अमूमन हर विदेशी धारावी को ही भारत की असल पहचान मानता है।

चलिए कतार में खड़े अधिकांश लोगों को हम अपना data sample समझते हैँ ...। अपने छोटे सेसाधारण अवलोकन पर मैंने पाया किज़्यादातर लोग अपने बोलचाल की भाषा के तौर पर अंग्रेजी का प्रयोग करते दिखे। आपस में भीऔर दुसरे भारतीयों से भी।  यह देखकर मुझे कुछ मायूसी हुईऔर कुछ हद तक क्रोध की भी अनुभूति हुई । 
एक ऐसा देशजो हज़ारों भाषाओँ का गढ़ हैउस देश के लोग एक ऐसी भाषा के प्रति झुकाव दिखाते हैंजो एक तरह से ३०० वर्षों की दासता की भी प्रतिरूप है. अंग्रेजी आज की दुनिया मेंअनिवार्य हैव्यवसाय के लिएशिक्षा के लिएपरन्तु आपसी स्तर पर क्यों? क्यों हम अपनी भिन्न मातृभाषाओं का उसी तरह सम्मान नहीं करते जिस तरह फ़्रांसिसी आज भी करते हैं। मेरे data sample में जो हिंदुस्तानी आपस मेंFrench का प्रयोग कर रहे थेउनसे मुझे शिकायत बेहद काम रहीक्यूंकि एक अरसा किसी देश और किसी भाषा के मध्य बिताने पर उसका आदतों में शुमार होना लाज़मी भी हैऔर यह भी दर्शाता है की हमने उस देश की भाषा का सम्मान किया है।मेरे क्रोध कामेरी निराशा का कारण यह थाकि पश्चिमी सभ्यता के अंधानुकरण के कारण हम शायद कहीं न कहीं भारत की एक लचर छवि प्रदर्शित करते हैं एक ऐसे देश की छविजो अपनी सभ्यता को तरज़ीह नहीं देता।  एक ऐसा देश जो अपनी संस्कृति से कहीं अधिक आस्था अमरीकी या बर्तानी सभ्यता पर रखता है। यदि हम इन्ही देशों के lifestyle को अपना लक्ष्य बना कर चलते हैंतो क्या केवल खान- पानया धार्मिक रीतियों का पालन भर कर लेने से ही क्या हम सच में अपने अंदर की भारतीयता को बचा रख सकते हैं ?
...और बात यहाँ केवल अंग्रेजी के व्यवहार तक सीमित नहीं थी। कतार में खड़े रहते हुए किसी भी प्रकार आगे जाने का अनुचित प्रयास करनाफ़्रांसिसी सुरक्षा कर्मियों पर आँखें तरेरनाअसंयत होकर भीड़ को और भी विश्रृंखल रूप देना। देश से हज़ारों मीलों की दूरी होने के बावजूद अपनी पहचान पंजाबी,बंगालीइत्यादि के साथ ज़ाहिर करना। क्या यह व्यवहार उचित था क्या केवल अंग्रेजी बोलने परऐसी व्यवहारगत खामियां छुप जाएंगी ? ऐसे कई प्रश्नकतार के १ घंटे की अवधि ने मेरे दिमाग में कुलबुलाते छोड़ दिए।

खैरआखिरकार प्रतीक्षा के पश्चात कार्यक्रम आरम्भ हुआ. शुरुआत सांस्कृतिक कार्यक्रमों के साथ हुई. पेरिस के मध्यकर्नाटकराजस्थानऔर बांग्ला लोक संगीत की गुंजन अद्भुत थी. वह रोमांच अद्भुत थाजब मैं अपनी कुर्सी पर बैठी हुईमंच पर गा रहे गायकों के साथवन्दे मातरम और टैगोर के गीत गुनगुना रही थी। बेहद अभिमान वाला क्षण थाजब सभागार में उपस्थित देशी-विदेशी सारे श्रोताराजस्थानी लोक गायकों के साथ गा रहे थेझूम रहे थेऔर once more की मांग कर रहे थे।
पर सबसे बेहतरीन और रोंगटे खड़े करने वाला लम्हा शायद वह था जब प्रधानमंत्री के आगमन परसबने खड़े होकर भारतीय राष्ट्रगीत को सम्मान दिया। प्रधानमंत्री मोदी का स्वागत सारी सभा ने नारोंतालियों और अतुल्य उत्साह के साथ किया। विदेशी भूमि परअपने देश के प्रतिनिधि के सम्मुख होना एक अलग ही आत्मीयता का भाव जगा रहा था।
हमेशा की तरहमोदी जी का भाषण उत्साहवर्धक और करारा था। हर नयी बात पर तालियों से गड़गड़ाता हुआ अभिनन्दन मिलता था।  भाषण का सीधा प्रसारण शायद आप सबने भी देखा ही होगा। यह जानकर अच्छा लगता है कि भारत की छवि को दुनिया भर में पुख्ता करने का प्रयास जारी है। भाषण में मोदी जी ने उल्लेख किया की कैसे एक काल में जगदगुरु की उपाधि पाने वालाशांति का दीपस्तंभ भारतकैसे आज भी UN Security Council की सदस्यता के लिए जूझ रहा हैपरन्तु पिछले कुछ वक़्त से भारत की वैश्विक छवि में परिवर्तन साफ नज़र आ रहा है. कूटनीति और राजनीति के गलियारों में भारतीय सिंह की गरज दोबारा जागने लगी हैऔर मोदी जी के कार्यक्रम और भाषण में इस जोश और भावना का पूरा अनुभव हुआ . एक देशवासी की हैसियत से यह अत्यन्य गर्व का विषय है. 
अंततः ११ अप्रैल की शाम बेहद यादगार थीऔर सदा रहेगी ।
                                                                                                                     अनन्या