कुल पेज दृश्य

shram लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
shram लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं

शुक्रवार, 19 जुलाई 2013

shram ko naman

 कविता:
श्रम को नमन

हमीरपुर जिले के बदनपुर गांव की फूलमती बुंदेलखंड की धरती पर वह कर रही हैं , जिसे देखकर पुरुष भी दांतों तले उंगली दबा लेते हैं। इतनी पढ़ी लिखी तो हैं नहीं कि पायलट बन सकें , लेकिन ऊपर वाले ने बाजुओं में वो ताकत जरूर दी है कि सम्मानपूर्वक परिवार का पालन-पोषण कर सकें। पति नशेबाज व अकर्मण्य निकला तो वह प्रतिदिन हमीरपुर से बदनपुर के बीच रिक्शा चलाकर सवारियां ढोती हैं ...! सलाम माँ भारती की इस माता को ... सलाम इनके जज्बे को ..!

कम किसी से हम रहें, कर सकते हर काम
कहें रहे क्यों क्यों पुरुष का, किसी कार्य हित नाम

शर्म न, गौरव है बहुत, कर सकते हर काम
रिक्शा-चालन है 'सलिल', सिर्फ एक आयाम

हम पर तरस न खाइये, दें अब पूरा मान
नारी भी हर क्षेत्र में, है नर सी गुणवान

मन अपना मजबूत है, तन भी है मजबूत
शक्ति और सामर्थ्य है, हममें भरी अकूत

हम न तनिक कमजोर हैं, सकते राह तलाश
रोक नहीं सकते कदम, परंपरा के पाश

करते नशा वही हुआ, जिनका मन कमजोर
हम संकल्पों के धनी, तम से लायें भोर

मत वरीयता दीजिए, मानें सिर्फ समान
लेने दें अधिकार लड़, आप न करिए दान



शुक्रवार, 8 अप्रैल 2011

नवगीत: समाचार है... संजीव 'सलिल'

नवगीत:                                                                                          
समाचार है...                                                                     
संजीव 'सलिल'
*
बैठ मुड़ेरे चिड़िया चहके'
समाचार है.
सोप-क्रीम से जवां दिख रही
दुष्प्रचार है...
*
बिन खोले- अख़बार जान लो,
कुछ अच्छा, कुछ बुरा मान लो.
फर्ज़ भुला, अधिकार माँगना-
यदि न मिले तो जिद्द ठान लो..

मुख्य शीर्षक अनाचार है.
और दूसरा दुराचार है.
सफे-सफे पर कदाचार है-
बना हाशिया सदाचार है....

पैठ घरों में टी. वी. दहके
मन निसार है...
*
अब भी धूप खिल रही उज्जवल.
श्यामल बादल, बरखा निर्मल.
वनचर-नभचर करते क्रंदन-
रोते पर्वत, सिसके जंगल..

घर-घर में फैला बजार है.
अवगुन का गाहक हजार है.
नहीं सत्य का चाहक कोई-
श्रम सिक्के का बिका चार है..

मस्ती, मौज-मजे का वाहक
असरदार है...
*
लाज-हया अब तलक लेश है.
चुका नहीं सब, बहुत शेष है.
मत निराश हो बढ़े चलो रे-
कोशिश अब करनी विशेष है..

अलस्सुबह शीतल बयार है.
खिलता मनहर हरसिंगार है.
मन दर्पण की धूल हटायें-
चेहरे-चेहरे पर निखार है..

एक साथ मिल मुष्टि बाँधकर
संकल्पित करना प्रहार है...
*

शनिवार, 10 अप्रैल 2010

नवगीत: करो बुवाई... --संजीव 'सलिल'

नवगीत:
करो बुवाई...
संजीव 'सलिल'
*

खेत गोड़कर
करो बुवाई...
*
ऊसर-बंजर जमीं कड़ी है.
मँहगाई जी-जाल बड़ी है.
सच मुश्किल की आई घड़ी है.
नहीं पीर की कोई जडी है.
अब कोशिश की
हो पहुनाई.
खेत गोड़कर
करो बुवाई...
*
उगा खरपतवार कंटीला.
महका महुआ मदिर नशीला.
हुआ भोथरा कोशिश-कीला.
श्रम से कर धरती को गीला.
मिलकर गले
हँसो सब भाई.
खेत गोड़कर
करो बुवाई...
*
मत अपनी धरती को भूलो.
जड़ें जमीन हों तो नभ छूलो.
स्नेह-'सलिल' ले-देकर फूलो.
पेंगें भर-भर झूला झूलो.
घर-घर चैती
पड़े सुनाई.
खेत गोड़कर
करो बुवाई...
*
Acharya Sanjiv Salil

http://divyanarmada.blogspot.com