कुल पेज दृश्य

shambhu prasad shrivastava लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
shambhu prasad shrivastava लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं

बुधवार, 30 सितंबर 2015

गीत/ geet

मेरी पसंद: 
शम्भू प्रसाद श्रीवास्तव 
*
बीते क्षण तिर आये सारे 
जैसे डल झील में शिकारे 
*
ढलते दिनों की आभा ईंगुरी
फुनगी के पत्तों सी सरक गई
आँगन की सूर्यमुखी हर दिशा
गए-आए पल-सी लरक गई
पूजा का एक दीप बाल रही
विधवा कोई ठाकुरद्वारे
*
अनबुझी अनगिनत पहेलियाँ
जैसे हर आहट में पैठी हैं
गलबहियों के गजरे गूँथने
संयोगिन घड़ियाँ आ बैठी हैं
कोई पाटल अपनी जूही की
एक-एक पाँखुरी दुलारे
*
कबीरा के निर्गुन-सी शून्यता
बजती सारंगी वातास पर
आँसू पोंछे आँचल की छुअन
लगती है हरी-हरी घास पर
आहत मन उठँग गया धीरे से
सुधियों की बांह के सहारे
*