हरयाणवी दोहे:
राम कुमार आत्रेय.कैथल
*
तिन्नू सैं कड़वै घणे, आक करेला नीम.
जितना हो कड़वा घणा, उतना भला हकीम..
सच्चाई कडवी घणी, मिट्ठा लाग्गै झूठ.
सच्चाई के कारणे, रिश्ते जावैं टूट..
बिना लोक चलरया सै, लोकतंत्र यूँ आज.
जिस गेल्यां गुंडे घणे, उसके सिर पर ताज..
पोर-पोर न्यूं फूल्ग्या, जंगल का औ ढाक.
निच्चे-उप्पर तक जड़ूं, आग खेलरी फाग..
कपड़े कम जाड्डा घणा, क्यूंकर ढाप्पूं गात.
छोट्टा सै यू सांग अर, घणी बड़ी सै रात..
या ब्रिन्दावन धाम की, ख़ास बताऊँ बात.
रटरे राधा-कृस्न सब, डाल-पात दिन-रात..
गरमी आंदी देख कै, आंब गए बौराय.
कोयल कुक्की बाग़ में, पिय को रही बुलाय..
तुलसी तेरे राम का, रूप-सरूप- अनूप.
अमरित भरया हो जिसा, ठंडा-मिट्ठा कूप..
**************************
दिव्य नर्मदा : हिंदी तथा अन्य भाषाओँ के मध्य साहित्यिक-सांस्कृतिक-सामाजिक संपर्क हेतु रचना सेतु A plateform for literal, social, cultural and spiritual creative works. Bridges gap between HINDI and other languages, literature and other forms of expression.
कुल पेज दृश्य
sachchaee लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं.  सभी संदेश दिखाएं 
sachchaee लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं.  सभी संदेश दिखाएं 
सोमवार, 27 सितंबर 2010
हरयाणवी दोहे: राम कुमार आत्रेय.कैथल
चिप्पियाँ Labels:
aratee. samyik hindi kavita,
contemporary hindi kavita,
doha,
doha hindi chhand,
haryanavee,
ram kumar aatreya.,
sachchaee
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ (Atom)
 
