दोहा सलिला:
संजीव 'सलिल'
*
सपने देखे रात भर, भोर गये सब भूल.
ज्यों सुगंध से रहित हों, सने धूल से फूल..
*
स्वप्न सुहाने देखते, जागे सारी रैन.
सुबह पूछते हैं स्वजन, लाल-लाल क्यों नैन..
*
मिले आपसे हो गये, सब सपने साकार.
निराकार होने लगे, अब गुपचुप साकार..
*
जिनके सपनों में बसे, हम अनजाने मीत.
अपने सपनों में वही, बसे निभाने प्रीत..
*
तजें न सपने देखना, स्वप्न बढ़ाते मान.
गैर न सपनों में रहें, रखिये इसका ध्यान..
*
रसनिधि हैं, रसखान हैं, सपने हैं रसलीन.
स्वप्न रहित जग-जिंदगी, लगे 'सलिल' रसहीन..
*
मीरा के सपने बसे, जैसे श्री घनश्याम.
मेरे सपनों में बसें, वैसे देव अनाम..
*
स्वप्न न देखे तो लिखे, कैसे सुमधुर गीत.
पले स्वप्न में ही सदा, दिल-दिलवर में प्रीत..
*
स्वप्न साज हैं छेड़िए, इनके नाजुक तार.
मंजिल के हो सकेंगे, तभी 'सलिल' दीदार..
*
अपने सपने कभी भी, देख न पाये गैर.
सावधान हों रहेगी, तभी आपकी खैर..
*
अपने सपने कीजिये, कभी नहीं नीलाम.
ये अमूल्य-अनमोल हैं, 'सलिल' यही बेदाम..
*
संजीव 'सलिल'
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सपने देखे रात भर, भोर गये सब भूल.
ज्यों सुगंध से रहित हों, सने धूल से फूल..
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स्वप्न सुहाने देखते, जागे सारी रैन.
सुबह पूछते हैं स्वजन, लाल-लाल क्यों नैन..
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मिले आपसे हो गये, सब सपने साकार.
निराकार होने लगे, अब गुपचुप साकार..
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जिनके सपनों में बसे, हम अनजाने मीत.
अपने सपनों में वही, बसे निभाने प्रीत..
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तजें न सपने देखना, स्वप्न बढ़ाते मान.
गैर न सपनों में रहें, रखिये इसका ध्यान..
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रसनिधि हैं, रसखान हैं, सपने हैं रसलीन.
स्वप्न रहित जग-जिंदगी, लगे 'सलिल' रसहीन..
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मीरा के सपने बसे, जैसे श्री घनश्याम.
मेरे सपनों में बसें, वैसे देव अनाम..
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स्वप्न न देखे तो लिखे, कैसे सुमधुर गीत.
पले स्वप्न में ही सदा, दिल-दिलवर में प्रीत..
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स्वप्न साज हैं छेड़िए, इनके नाजुक तार.
मंजिल के हो सकेंगे, तभी 'सलिल' दीदार..
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अपने सपने कभी भी, देख न पाये गैर.
सावधान हों रहेगी, तभी आपकी खैर..
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अपने सपने कीजिये, कभी नहीं नीलाम.
ये अमूल्य-अनमोल हैं, 'सलिल' यही बेदाम..
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