देव उठानी एकादशी पर
नव गीत
सोये बहुत देव अब जागो
*
सोये बहुत
देव! अब जागो...
तम ने
निगला है उजास को।
गम ने मारा
है हुलास को।
बाधाएँ छलती
प्रयास को।
कोशिश को
जी भर अनुरागो...
रवि-शशि को
छलती है संध्या।
अधरा धरा
न हो हरि! वन्ध्या।
बहुत झुका
अब झुके न विन्ध्या।
ऋषि अगस्त
दक्षिण मत भागो...
पलता दीपक
तले अँधेरा ।
हो निशांत
फ़िर नया सवेरा।
टूटे स्वप्न
न मिटे बसेरा।
कथनी-करनी
संग-संग पागो...
**************
दिव्य नर्मदा : हिंदी तथा अन्य भाषाओँ के मध्य साहित्यिक-सांस्कृतिक-सामाजिक संपर्क हेतु रचना सेतु A plateform for literal, social, cultural and spiritual creative works. Bridges gap between HINDI and other languages, literature and other forms of expression.
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गुरुवार, 10 नवंबर 2016
navgeet
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देव उठनी एकादशी (गन्ना ग्यारस) पर
नवगीत:
* देव सोये तो सोये रहें हम मानव जागेंगे राक्षस अति संचय करते हैं दानव अमन-शांति हरते हैं असुर क्रूर कोलाहल करते दनुज निबल की जां हरते हैं अनाचार का शीश पकड़ हम मानव काटेंगे भोग-विलास देवता करते बिन श्रम सुर हर सुविधा वरते ईश्वर पाप गैर सर धरते प्रभु अधिकार और का हरते हर अधिकार विशेष चीन हम मानव वारेंगे मेहनत अपना दीन-धर्म है सच्चा साथी सिर्फ कर्म है धर्म-मर्म संकोच-शर्म है पीड़ित के आँसू पोछेंगे मिलकर तारेंगे
* देव सोये तो सोये रहें हम मानव जागेंगे राक्षस अति संचय करते हैं दानव अमन-शांति हरते हैं असुर क्रूर कोलाहल करते दनुज निबल की जां हरते हैं अनाचार का शीश पकड़ हम मानव काटेंगे भोग-विलास देवता करते बिन श्रम सुर हर सुविधा वरते ईश्वर पाप गैर सर धरते प्रभु अधिकार और का हरते हर अधिकार विशेष चीन हम मानव वारेंगे मेहनत अपना दीन-धर्म है सच्चा साथी सिर्फ कर्म है धर्म-मर्म संकोच-शर्म है पीड़ित के आँसू पोछेंगे मिलकर तारेंगे
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