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शनिवार, 9 जून 2018

साहित्य त्रिवेणी १४ ब्रह्मजीत गौतम

साहित्य त्रिवेणी १४ 
छंद-बह्‌र क्या एक हैं?
डॉ. ब्रह्मजीत गौतम 
*
परिचय: जन्म: २८.१०.१९४०, ग्राम गढ़ी नन्दू, जिला मथुरा (अब हाथरस), कबीर काव्य में प्रतीक विधान पर शोध, से. नि. प्राध्यापक हिंदी, प्रकाशन: कबीर काव्य में प्रतीक विधान शोधग्रंथ, कबीर प्रतीक कोष, अंजुरी काव्य संग्रह, जनक छंद: एक शोधपरक विवेचन, वक्त के मंज़र (गजल संग्रह), जनक छंद की साधना, दोहा-मुक्तक माल (मुक्तक संग्रह), दृष्टिकोण समीक्षा संग्रह। उपलब्धि: तलस्पर्शी लेखन हेतु प्रतिष्ठित, संपर्क: डॉ. ब्रह्मजीत गौतम, युक्का २०६, पैरामाउण्ट सिंफनी, क्रॉसिंग रिपब्लिक, ग़ाज़ियाबाद २०१०१६, चलभाष: ९७६०००७८३८, ९४२५१०२१५४, ईमेल: bjgautam2007@gmail.com 
संस्कृत की 'छद्' धातु में 'असुन्' प्रत्यय लगाने से ‘छंद’ शब्द की सिद्धि होती है, जिसका अर्थ है: प्रसन्न, आच्छादन या बंधन करने वाली वस्तु। वस्तुतः कविता में हमारे भाव और विचार वर्ण, मात्रा, यति, गति, चरण, गण आदि की एक निश्चित व्यवस्था में बँधे रहते हैं, अतः ऐसे संघटन को 'छंद' का नाम दिया गया है। हिंदी कविता प्रारंभ से ही छंदोबद्ध रही है, जबकि उर्दू शाइरी बह्र-बद्ध है। सहज ही प्रश्न उठता है कि 'छंद' और 'बह्र' दोनों शब्द समानार्थी हैं या इनमें कुछ अंतर है? निस्संदेह दोनों का कोशगत अर्थ एक ही है, दोनों का मूल आधार भी लय है, किंतु हिंदी तथा उर्दू-अरबी-फारसी आदि भाषाओं की प्रकृति, व्याकरणगत संरचना तथा वर्णों और मात्राओं की गणना-पद्धति में यत्किंचित् भेद होने से 'छंद' और 'बह्र' में भी भेद होना स्वाभाविक है| वस्तुत: इस गूढ़ता को समझना ही इस लेख का मुख्य उद्देश्य है। छंद दो प्रकार के हैं: मात्रिक तथा वर्णिक। मात्रिक छंदों की रचना मात्राओं की गणना पर तथा वर्णिक छंदों की रचना वर्णों की गणना पर आधारित होती है। मात्रिक छंदों में प्रत्येक चरण में मात्राओं की संख्या निश्चित रहती है, वर्ण कम या अधिक हो सकते हैं किंतु वर्णिक छंदों में न केवल वर्णों की संख्या निश्चित रहती है, अपितु उनका लघ-गुरु क्रम भी तय रहता है। इसके विपरीत, बह्रों की रचना केवल वर्णों के लघु-गुरु क्रम से बने हुए रुक्नों (गणों) पर आधारित होती है। इस प्रकार बह्रें वर्णिक छंदों के अधिक निकट होती हैं जो बह्रें मात्रिक छंदों से मेल खाती हैं, उन्हें भी रुक्नों की सहायता से वर्णिक रूप दे दिया गया है। 
गण: 
छंदों में प्रयुक्त तीन वर्णों के लघु-गुरु क्रम-युक्त समूह को ‘गण’ कहते हैं, जो संख्या में आठ हैं। ‘यमाताराजभानसलगा’ सूत्र के अनुसार इनके नाम और लक्षण निम्नानुसार है: १. यगण आदि लघु ISS भवानी, २. मगण तीनों गुरु SSS मेधावी, ३. तगण अंत्य लघु SSI नीरोग, ४. रगण मध्य लघु SIS भारती, ५. जगण मध्य गुरु ISI गणेश, ६. भगण आदि गुरु SII राघव, ७. नगण तीनों लघु III कमल
८. सगण अंत्य गुरु IIS कमला। 
रुक्न या अरकान: 
बह्रों में प्रयुक्त वर्णों के लघु-गुरु क्रम को ‘रुक्न’(बहुवचन अरकान) कहते हैं। मुख्य अरकान कुल सात हैं, किंतु इनमें जिहाफ़ (काट-छाँट) देकर दो मात्राओं से लेकर सात मात्राओं तक के अन्य अनेक रुक्न बनाये गए हैं। इन सब रुक्नों की संख्या लगभग पचास है। मुख्य सात रुक्नों के नाम और उनके वर्णिक लघु-गुरु क्रम की जानकारी निम्नानुसार ल और गा के रूप में दर्शायी गयी है: १. फ़ऊलुन लगागा ISS नगीना, २. फ़ाइलुन गालगा SIS आदमी, ३. मुस्तफ़्इलुन गागालगा SSIS जादूगरी, ४. मफ़ाईलुन लगागागा ISSS अदाकारी, ५. फ़ाइलातुन गालगागा SISS साफ़गोई, ६. मुतफ़ाइलुन ललगालगा IISIS अभिसारिका, ७. मफ़्ऊलात गागागाल SSSI वीणापाणि। 
अब हम उन मूल बिंदुओं पर प्रकाश डालेंगे, जिनके कारण छंद और बह्र में अंतर जैसा प्रतीत होता है। निकटस्थ दो लघु = एक गुरु।  हिन्दी व्याकरण के अनुसार अ, इ, उ तथा ऋ, ये चार लघु स्वर हैं जिनमें एक-एक मात्रा होती है।  ये जिस व्यंजन पर लगते हैं, वह भी लघु अर्थात् एक मात्रावाला माना जाता है इसी प्रकार आ, ई, ऊ, ए, ऐ, ओ, तथा औ दीर्घ स्वर हैं, जिनमें दो मात्राएँ होती हैं। ये जिस व्यंजन पर लगते हैं, वह भी गुरु अर्थात् दो मात्राओंवाला होता है।  अनुस्वार तथा विसर्गयुक्त अक्षर भी गुरु कहे जाते हैं। छंदों में हर अक्षर की स्वतंत्र सत्ता होती है, किंतु बह्र में अनिवार्य लघु को छोड़कर दो निकटस्थ लघु वर्णों को एक गुरु के बराबर मान लिया जाता है। जैसे, ‘गगन’ शब्द हिंदी के वर्णिक छंद में III अर्थात् नगण के अंतर्गत आता है, जबकि बह्र में उसे IS अर्थात् 'फ़अल' रुक्न कहा जाता है| एक शे’र के माध्यम से इसे और अच्छी तरह समझ सकते हैं –महल का / सफ़र छो / ड़ कर आ / ज कल ( I S S / I S S / I S S / I S ) = १८ मात्राएँ ग़ज़ल कह / रही है / कुटी की / कथा ( I S S / I S S / I S S / I S ) = १८ मात्राएँ,  -स्वरचित
इस शे’र के अरकान 'फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़अल' हैं तथा लय पूरी तरह हिंदी के वर्णिक छंद ‘भुजंगी’ (तीन यगण + लघु गुरु) एवं मात्रिक छंद ‘शक्ति’ से मिलती है, जिसमें प्रति चरण पहली, छठी, ग्यारहवीं तथा सोलहवीं मात्रा को अनिवार्यत: लघु रखते हुए कुल अठारह मात्राएँ होती हैं। छंद में जो यगण (ISS) है, वही बह्र में 'फ़ऊलुन' है। उक्त शे’र के शब्दों में हल, फ़र, कर, कल तथा ज़ल को एक गुरु-तुल्य मानकर 'फ़ऊलुन' रुक्न की सिद्धि की गयी है। 
मात्रा-पातन: 
हिंदी में मात्रिक और वर्णिक दोनों प्रकारके छंद पाये जाते हैं।हिंदी भाषा में यह बंधन या विशेषता है कि उसमें जो लिखा जाता है, वही पढ़ा जाता है और उसीके अनुसार शब्द या अक्षर की मात्रा निश्चित होती है| उर्दू की तरह हिंदी  में किसी भी अक्षर की मात्रा गिराने या बढाने की छूट नहीं है। यदि ऐसा किया जाता है, तो वह छंद अशुद्ध माना जाता है| उदाहरण के लिए, किसी छंद में यदि ‘कोई’ शब्द का प्रयोग होता है तो उसमें SS के क्रम से चार मात्राएँ होंगीं जबकि बह्‌र में उसकी माँग के अनुसार इसी शब्द का उच्चारण कोइ (SI), कुई (IS) या कुइ (II) भी हो सकता है और तदनुसार ही उसका मात्रा-भार निश्चित होगा। निष्कर्ष यह है कि छंदों में अक्षर के लिखित रूप के अनुसार तथा बह्‌र में उसके उच्चरित रूप के अनुसार मात्राएँ तय होती हैं। जैसे:
कोई तो बा / त है जो सुब् / ह से ही (I S S S / I S S S / I S S)
नयन उनके / अँगारे हो / रहे हैं (I S S S / I S S S / I S S)      -स्वरचित
यह शे’र 'मफ़ाईलुन मफ़ाईलुन फ़ऊलुन' की बह्र में है, जो हिन्दी के मात्रिक छंद ‘सुमेरु’ से पूर्णत: मिलती है| सुमेरु में प्रति चरण १२-७ या १०-९ के क्रम से १९ मात्राएँ होती हैं जिसमें पहली, आठवीं और पंद्रहवीं मात्रा लघु होनी चाहिए| उक्त शे’र के प्रथम मिसरे को बह्र में लाने के लिए ‘कोई’ शब्द में ‘को’ (S) की दीर्घ मात्रा गिराकर उसे हृस्व (I) उच्चरित किया गया है। 
अर्धाक्षर: छंदों में संयुक्त व्यंजन में प्रयुक्त आधे अक्षर की कोई मात्रा नहीं गिनी जाती। उसकी भूमिका केवल इतनी है कि यदि उसके पूर्व का वर्ण लघु है और उसके उच्चारण में बल पड़ रहा है तो लघु होने पर भी उसे गुरु माना जाता है। जैसे सत्य, दग्ध, वज्र आदि में स, द और व गुरु माने जायेंगे और इनमें दो मात्राएँ गिनी जायेंगी। अपवाद स्वरूप कुम्हार, मल्हार, तुम्हारा जैसे शब्दों के कु, म और तु में एक ही मात्रा रहेगी, क्योंकि इनके उच्चारण में बल नहीं पड़ता| इसके विपरीत, बह्र में आधे अक्षर को भी आवश्यकतानुसार पूर्णवत मानकर उसकी एक मात्रा गिन ली जाती है| जैसे रास्ता, आस्था, ख़ात्मा, आत्मा, धार्मिक, आर्थिक जैसे शब्द छंद में प्रयुक्त होने पर SS के वज़्न मे आयेंगे किंतु बह्‌र में SIS के वज़्न में भी हो सकते हैं।  जैसे:
छंद: अर्थ दोस्ती का किसीको हम बतायें किस तरह ( S I S S S I S S S I S S S I S )
बह्‌र: दोस्ती का अर्थ हम उसको बतायें किस तरह ( S I S S S I S S S I S S S I S )  -स्वरचित
‘गीतिका’ छंद की इस पहली पंक्ति में (जिसकी बह्‌र ‘फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलुन’ है), ‘दोस्ती’ शब्द को S S के वज़्न में बाँधा गया है, जबकि बह्र वाली पंक्ति में S I S के वज़्न में। फाइलुन का रुक्न पूरा करने के लिए ‘दोस्ती’ का उच्चारण ‘दोसती’ जैसा किया गया है। यह पद्धति बह्र में तो ठीक है, किन्तु छंद में नहीं।  इसी प्रकार आचार्य भगवत दुबे के एक दोहे की यह पंक्ति देखिये – 'ईश्वर के प्रति आस्था, बढ़ जाती है और'।  इसमें ‘आस्था’ शब्द को बह्‌र की तर्ज़ पर फाइलुन अर्थात् S I S के वज़्न में बाँधा गया है।  मूलत: इस चरण में १३ के स्थान पर १२ मात्राएँ ही रह गयी हैं, जिससे दोहा अशुद्ध होगया है| डॉ. राजकुमार ‘सुमित्र’ की दोहा-पंक्ति ‘अमराई की आत्मा, झेल रही संताप’ में ‘आत्मा’ की भी यही स्थिति है। 
स्वर संधि या अलिफ़ वस्ल: जब किसी स्वर का अपने सामने के किसी अन्य स्वर से मेल होता है, तब उसे स्वर-संधि कहते हैं।  उर्दू में इसे अलिफ़-वस्ल कहा जाता है। हिन्दी व्याकरण में ऐसे शब्दों के मिलन की एक निश्चित वैधानिक प्रक्रिया है।  जैसे: राम+अवतार = रामावतार, सर्व+ईश्वर = सर्वेश्वर, पर+उपकार = परोपकार। अरबी, फारसी, उर्दू में ये शब्द लिखित रूप में तो ‘राम अवतार’, ‘सर्व ईश्वर’, ‘पर उपकार’ ही रहेंगे, किंतु उच्चारण में क्रमश: रामवतार, सर्वीश्वर और परुपकार हो जायेंगे| उदाहरण के लिए एक मिसरा देखिये: 
हम उठ गए तो तेरी अंजुमन का क्या होगा – आलोक श्रीवास्तव
यह मिसरा ‘मफ़ाइलुन फ़इलातुन मफ़ाइलुन फ़ेलुन’ (I S I S I I S S I S I S S S) की बह्‌र में है, जिसमें ‘हम उठ गये’ का उच्चारण ‘हमुठ गये’ जैसा करके 'मफ़ाइलुन' रुक्न में बाँधा गया है।  इसी प्रकार मिर्ज़ा ग़ालिब का मशहूर मिसरा ‘आख़िर इस दर्द की दवा क्या है’ बह्र में लाने के लिए ‘आख़िरिस दर्द की दवा क्या है’ पढ़ा जाता है। उल्लेख्य है कि छंद में न तो इस प्रकार की संधियाँ मान्य हैं और न उच्चारण। 
उचित मात्रा-विधान: जैसा कि पहले कहा जा चुका है, मात्रिक छंदों के प्रत्येक चरण में मात्राओं की संख्या निश्चित रहती है।  निर्दोष लय लाने के लिए उन मात्राओं में लघु-गुरु का उचित क्रम रखना भी आवश्यक होता है, जैसे त्रिकल के बाद त्रिकल या द्विकल के बाद द्विकल। कई बार हिंदी के छंदकार मात्राओं की संख्या तो पूरी कर देते हैं, किन्तु यह क्रम सही नहीं रख पाते| उदाहरणार्थ, तीन मात्राओं के लिए लघु-गुरु या गुरु-लघु का कोई भी क्रम उन्हें मान्य होता है। छंदशास्त्र में भी ऐसे प्रयोगों पर कोई प्रतिबंध नहीं है किंतु बह्र में इस प्रकार की छूट लेना वर्जित है| इससे बह्र ख़ारिज़ हो जाती है। देखिये:
ज़मीं तपती हुई थी और अपने पाँव नंगे थे / हुई है जेठ के दोपहर से तक़रार पहले भी
श्री ज्ञानप्रकाश विवेक की ये पंक्तियाँ मफ़ाईलुन x ४ की बह्‌र में हैं, जो हिंदी के विधाता छंद पर आधारित है।  विधाता के प्रत्येक चरण में कुल २८ मात्राएँ होती हैं, जिसमें पहली, आठवीं, पंद्रहवीं तथा बाईसवीं मात्रा का लघु होना आवश्यक है।  इस विधान के अनुसार उक्त शे’र छंद की दृष्टि से तो शुद्ध है, किन्तु बह्र की दृष्टि से ख़ारिज़ है क्योंकि रचनाकार ने ‘दोपहर’ शब्द को S I S के बजाय S S I में बाँध लिया है। इस कारण सानी मिसरे में' मफाईलुन' का दूसरा रुक्न पूरा नहीं हो सका है। 
अब हम उन बह्रों पर दृष्टिपात करेंगे जो हिंदी वर्णिक छंदों पर आधारित हैं।  अपने ग़ज़ल-संग्रह ‘एक बह्‌र पर एक ग़ज़ल’ की रचना के समय मैंने पाया कि ग़ज़ल कि लगभग साठ बह्रें ऐसी हैं जिनकी लय हू-ब-हू छंदों से मिलती है अगर खोज की जाए तो यह संख्या बहुत अधिक भी हो सकती है। यहाँ सब का उल्लेख तो सम्भव नहीं, किंतु कुछ मुख्य बह्रें सोदाहरण प्रस्तुत हैं:
१. बह्र: फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़अल ( I S S I S S I S S I S ) मेरे खूँ में चीते हैं लेटे हुए / किसी तर’ह इनका सुकूँ भंग हो  -सादिक़
आधार : मात्रिक छंद ‘शक्ति’ ( मात्राएँ प्रति चरण, १, ६, ११, १६वीं लघु) 
२. बह्र: फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ऊलुन ( I S S I S S I S S I S S ) गुलाबों की दुनिया बसाने की ख्वाहिश / लिये दिल में जंगल से हर बार निकले -शेरजंग गर्ग, आधार : वर्णवृत्त ‘भुजंगप्रयात’, (चार यगण (I S S) प्रति चरण, २० मात्राएँ)
३. बह्र: फ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ाइलुन ( S I S S I S S I S S I S ) यक्ष प्रश्नों के उत्तर दिए बिन हमें / सुख के तालाब से कुछ कमल चाहिए-चंद्रसेन विराट, आधार : वर्णवृत्त ‘स्रग्विणी’, (चार रगण प्रति चरण, मात्रिक छंद अरुण – २० मात्राएँ)
४. बह्र: मुस्तफ़्इलुन मुस्तफ़्इलुन ( S S I S S S I S ) अब किसलिए पछता रहा / जैसा किया, वैसा भरा -दरवेश भारती, आधार : मात्रिक छंद ‘मधुमालती’ (प्रति चरण, ७-७ के क्रम से १४ मात्राएँ, अंत S I S)
५. बह्र: फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलुन ( S I S S S I S S S I S ) साँस जाती है मगर आती नहीं / कुछ बताने से हवा लाचार है -रामदरश मिश्र, आधार : मात्रिक छंद ‘पीयूषवर्ष’, ‘आनंदवर्धक’  (१९ मात्राएँ, ३, १०, १७वीं लघु)
६.बह्र: फ़ाइलातुन मफ़ाइलुन फ़ेलुन ( S I S S I S I S S S ) मन में सपने अगर नहीं होते / हम कभी चाँद पर नहीं होते -उदयभानु हंस, आधार : मात्रिक छंद ‘चंद्र’ (१७ मात्राएँ प्रति चरण)
७. बह्र: फ़ाइलातुन फ़इलातुन फ़ेलुन ( S I S S I I S S S S ) हक़ बयानी की सज़ा देता है / मेरा क़द और बढ़ा देता है -हस्तीमल ‘हस्ती’, आधार : मात्रिक छंद ‘चंद्र’ (१७ मात्राएँ प्रति चरण)
८. बह्र: फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन ( S I S S S I S S S I S S ) सामना सूरज का वो कैसे करेंगे / डर गये जो जुगनुओं की रौशनी से -राजेश आनंद ‘असीर’, आधार : मात्रिक छंद ‘कोमल’ (२१ मात्राएँ प्रति चरण, यति १०,११ )
९. बह्र – फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ा ( S I S S S I S S S I S S S )  घेरकर आकाश उनको पर दिए होंगे / राहतों पर दस्तखत यों कर दिए होंगे -- रामकुमार कृषक, आधार : वर्णवृत्त राधा – (रगण, तगण, मगण, यगण + एक गुरु, कुल २३ मात्राएँ
१०. बह्र: फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलुन ( S I S S S I S S S I S S S I S ) एक दरिया कल मिला था राजधानी में हमें / आदमी के खून से अपना बदन धोता हुआ -अश्वघोष, आधार : मात्रिक छंद ‘गीतिका’ (२६ मात्राएँ प्रति चरण| ३, १०, १७, २४वीं मात्रा लघु)
११. बह्र: फ़ाइलातुन फ़इलातुन फ़इलातुन फ़ेलुन ( S I S S I I S S I I S S S S ) अब के सावन में शरारत ये मेरे साथ हुई / मेरा घर छोड़ के कुल शह्‌र में बरसात हुई -नीरज, आधार : मात्रिक छंद ‘मोहन’, (२३ मात्राएँ प्रति चरण, यति ५, ६, ६, ६)। 
१२. बह्र: फ़ऊल फ़ेलुन फ़ऊल फ़ेलुन (I S I S S I S I S S) दिया ख़ुदा ने भी खूब हमको / लुटाई हमने भी पाई-पाई -नरेश शांडिल्य, आधार : वर्णवृत्त ‘यशोदा’ (जगण + दो गुरु वर्ण, एक मिसरे में दो बार, १६ मात्राएँ)
१३. बह्र: मफ़ाईलुन मफ़ाईलुन फ़ऊलुन (I S S S I S S S I S S) करीब आये तो हमने ये भी जाना / मुहब्बत फ़ासला भी चाहती है - कुँवर बेचैन, आधार : मात्रिक छंद ‘सुमेरु’, प्रति चरण १९ मात्राएँ| १, ८, १५ वीं अनिवार्यत: लघु। 
१४. बह्र: मफ़ाईलुन मफ़ाईलुन मफ़ाईलुन (I S S S / I S S S / I S S S) ख़ुदा से भी मैं बाज़ी जीत जाता पर / ख़ुदाई को न शर्मिंदा किया मैंने - ओमप्रकाश चतुर्वेदी, ‘पराग’ आधार : मात्रिक छंद ‘सिंधु’ (प्रति चरण २१ मात्राएँ| १, ८, १५वीं अनिवार्यत: लघु
१५. बह्र: मुतफ़ाइलुन मुतफ़ाइलुन मुतफ़ाइलुन मुतफ़ाइलुन (I I S I S x ४ ) मैं जहाँ हूँ सिर्फ़ वहीँ नहीं, मैं जहाँ नहीं हूँ वहाँ भी हूँ/ मुझे यूँ न मुझमें तलाश कर, कि मेरा पता कोई और है – राजेश रेड्डी, आधार : वर्णवृत्त ‘गीता’ (सगण, जगण, जगण, भगण, रगण, सगण + एक गुरु)
१६. बह्र: मफ़्ऊल मफ़ाईलुन मफ़्ऊल मफ़ाईलुन ( S S I I S S S S S I I S S S ) हर एक सिकंदर का अंजाम यही देखा / मिट्टी में मिली मिट्टी, पानी में मिला पानी -सूर्यभानु गुप्त, आधार – वर्णवृत्त ‘भक्ति’ (तगण, यगण + एक गुरु, एक मिसरे में दो बार, २४ मात्राएँ)
१७. बह्र: मफ़्ऊल मफ़ाईल मफ़ाईल फ़ऊलुन ( S S I I S S I I S S I I S S ) शादी न करें, साथ में रहने के मज़े लें / इस दौर में औलाद हरामी नहीं होती -राम मेश्राम, आधार : मात्रिक छंद ‘बिहारी’ (प्रति चरण २२ मात्राएँ, यति १३ – ९)
१८.बह्र: मफ़्ऊल फ़ाइलातुन मफ़्ऊल फ़ाइलातुन (S S I S I S S S S I S I S S) आ जा कि दिल की नगरी, सूनी-सी हो चली है / टाला बहुत है तूने वादों पे आज-कल के -उपेंद्र कुमार, आधार : मात्रिक छंद ‘दिगपाल’ (प्रति चरण २४ मात्राएँ, यति १२, १२)
१९. बह्र: फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन ( S S S S S S S S) उसके घर जो दुनिया भर है / उस दुनिया में कितना घर है - विज्ञान व्रत, आधार : मात्रिक छंद ‘पादाकुलक’ (चार चतुष्कल के क्रम से १६ मात्राएँ प्रति चरण)
२०. बह्र: साढ़े सात बार फ़ेलुन (S S S S S S S S S S S S S S S ) हम पर दुख का परबत टूटा, तब हमने दो-चार कहे / उस पे भला क्या बीती होगी जिसने शे’र हजार कहे -बालस्वरूप राही, आधार : ‘लावनी’, ‘ताटंक’ ( १६-१४ के क्रम से ३० मात्राएँ प्रति चरण)
स्पष्ट है कि छंद और बह्‌र 'लय' की दृष्टि से एक ही हैं जो अंतर है वह मात्रा-पातन, अर्धाक्षर को पूर्णाक्षर मानने, अथवा अलिफ़-वस्ल आदि के कारण है। उक्त उद्धरणों में कई शे’र पूर्णत: छंद में हैं, क्योंकि उनमें मात्रा-पातन या अलिफ़-वस्ल आदि नहीं हुआ है, जैसे दरवेश भारती, रामदरश मिश्र, रामकुमार कृषक, अश्वघोष, विज्ञान व्रत आदि के शे’र। आजकल हिंदी कवियों में ग़ज़ल कहने का शौक ख़ूब बढ़ा हुआ है, जिसकी रचना में मात्रा गिराना-बढ़ाना या अलिफ़-वस्ल करना आम बात है इसका प्रभाव उनके गीतों, कविताओं और छंदों में भी दिखाई देने लगा है। वे गीतों और दोहा जैसे छंदों में भी मात्रा गिराकर या आधे अक्षर को पपूर्णवत मानकर लय बनाने लगे हैं, जिससे छंद दूषित हो रहे हैं। कहते हैं कि पानी सदैव नींचाई की ओर बहता है।  मनुष्य का स्वभाव भी ऐसा ही है, तभी तो आज के कवि इन सुविधाओं का लाभ लेने में कोई संकोच नहीं करते किंतु छंदाधारित रचनाओं में इस प्रवृत्ति से जितना बचा जाय, उतना ही श्रेयस्कर है। 
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मंगलवार, 27 दिसंबर 2016

samiksha

पुस्तक चर्चा-
एक बहर पर एक ग़ज़ल - अभिनव सार्थक प्रयास
चर्चाकार- आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल'
*
पुस्तक परिचय- एक बहर पर एक ग़ज़ल, ब्रम्हजीत गौतम, ISBN ९७८-८१-९२५६१३-७-०, प्रथम संस्करण २०१६, आकार २१.५ से.मी. x १४ से.मी., आवरण पेपरबैक, बहुरंगी, पृष्ठ १४४/-, मूल्य २००/-, शलभ प्रकाशन १९९ गंगा लेन, सेक्टर ५, वैशाली, गाजियाबाद २०१०१०, रचनाकार संपर्क- युक्कौ २०६ पैरामाउंट सिम्फनी, क्रोसिंग रिपब्लिक, गाज़ियाबाद २०१०१६, चलभाष- ९७६०००७८३८। 
*
'नाद' ही सृष्टि का मूल है। नाद की निरंतरता उसका वैशिष्ट्य है।  नाद के आरोह और अवरोह लघु-गुरु के पर्याय हैं। नाद के साथ विविध ध्वनियाँ मिलकर अक्षर को और विविध अक्षर मिलकर शब्द को जन्म देते हैं। लघु-गुरु अक्षरों के विविध संयोग ही गण या रुक्न हैं जिनके अनेक संयोग लयों के रूप में सामने आते हैं। सरस लयों को काव्य शास्त्र छंद या बहर के रूप में वर्णित करता है।  हिंदी पिंगल में छंद के मुख्य २ प्रकार मात्रिक (९२,२७,७६३) तथा वार्णिक (१३,४२,१७,६२६) हैं।१ यह संख्या गणितीय आधार पर गिनी गयी है।  सामान्यत: २०-२५ प्रकार के छंद ही अधिक प्रयोग किये जाते हैं।  उर्दू में बहरों के मुख्य २ प्रकार मुफरद या शुद्ध (७) तथा मुरक्कब या मिश्रित (१२) हैं।२ गजल छंद चेतना में ६० औज़ानों का ज़िक्र है।३ गजल ज्ञान में ६७  बहरों के उदाहरण हैं।४ ग़ज़ल सृजन के अनुसार डॉ. कुंदन अरावली द्वारा सं १९९१ में प्रकाशित उनकी पुस्तक इहितिसाबुल-अरूज़ में १३२ नई बहरें संकलित हैं।५ अरूज़े-खलील-मुक्तफ़ी में सालिम (पूर्णाक्षरी) बहरें १५ तथा ज़िहाफ (अपूर्णाक्षरी रुक्न) ६२ बताये गए हैं।६ गज़ल और गज़ल की तकनीक में ७ सालिम, २४  मुरक्कब बहरों के नमूने दिए गए हैं। ७. विवेच्य कृति में ६५ बहरों पर एक-एक ग़ज़ल कहीं गयी है तथा उससे सादृश्य रखने वाले हिंदी छंदों का उल्लेख किया गया है।  

गौतम जी की यह पुस्तक अन्यों से भिन्न तथा अधिक उपयोगी इसलिए है कि यह नवोदित गजलकारों को ग़ज़ल के इतिहास और भूगोल में न उलझाकर सीधे-सीधे ग़ज़ल से मिलवाती है। बहरों का क्रम सरल से कठिन या रखा गया है। डॉ. गौतम हिंदी प्राध्यापक होने के नाते सीखनेवालों के मनोविज्ञान और सिखानेवालों कि मनोवृत्ति से बखूबी परिचित हैं। उन्होंने अपने पांडित्य प्रदर्शन के लिए विषय को जटिल नहीं बनाया अपितु सीखनेवालों के स्तर का ध्यान रखते हुए सरलता को अपनाया है। छंदशास्त्र के पंडित डॉ. गौतम ने हर बहर के साथ उसकी मात्राएँ तथा मूल हिंदी छंद का संकेत किया है। सामान्यत: गजलकार अपनी मनपसंद या सुविधाजनक बहर में ग़ज़ल कहते हैं किंतु गौतम जी ने सर्व बहर समभाव का नया पंथ अपनाकर अपनी सिद्ध हस्तता का प्रमाण दिया है। 

प्रस्तुत गजलों की ख़ासियत छंद विधान, लयात्मकता, सामयिकता, सारगर्भितता, मर्मस्पर्शिता, सहजता तथा सरलता के सप्त मानकों पर खरा होना है। इन गजलों में बिम्ब, प्रतीक, रूपक और अलंकारों का सम्यक तालमेल दृष्टव्य है। ग़ज़ल का कथ्य प्रेयसी से वार्तालाप होने की पुरातन मान्यता के कारण ग़ालिब ने उसे तंग गली और कोल्हू का बैल जैसे विशेषण दिए थे। हिंदी ग़ज़ल ने ग़ज़ल को सामायिक परिस्थितियों और परिवेश से जोड़ते हुए नए तेवर दिए हैं जिन्हें आरंभिक हिचक के बाद उर्दू ग़ज़ल ने भी अंगीकार किया है। डॉ. गौतम ने इन ६५ ग़ज़लों में विविध भावों, रसों और विषयों का सम्यक समन्वय किया है। 

नीतिपरकता दोहों में सहज किन्तु ग़ज़ल में कम ही देखने मिलती है। गौतम जी 'सदा सत्य बोलो सखे / द्विधा मुक्त हो लो सखे', 'यों न चल आदमी / कुछ संभल आदमी' आदि ग़ज़लों में नीति की बात इस खुबसूरती से करते हैं कि वह नीरस उपदेश न प्रतीत हो। 'हर तरफ सवाल है / हर तरफ उबाल है', 'हवा क्यों एटमी है / फिज़ा क्यों मातमी है', 'आइये गजल कहें आज के समाज की / प्रश्न कुछ भविष्य के, कुछ व्यथाएँ आज की' जैसी गज़लें सम-सामयिक प्रश्नों से आँखें चार करती हैं। ईश्वर को पुकारने का भक्तिकालीन स्वर 'मेरी नैया भंवर में घिरी है / आस तेरी ही अब आखिरी है' में दृष्टव्य है।  पर्यावरण पर अपने बात कहते हुए गौतम जी मनुष्य को पेड़ से सीख लेने की सीख देते हैं- 'दूसरों के काम आना पेड़ से सीखें / उम्र-भर खुशियाँ लुटाना पेड़ से सीखें'।  गौतम जी कि ग़ज़ल मुश्किलों से घबराती नहीं वह दर्द से घबराती नहीं उसका स्वागत करती है- 'दर्द ने जब कभी रुलाया है / हौसला और भी बढ़ाया है / क्या करेंगी सियाह रातें ये / नूर हमने खुदा से पाया है'।  

प्यार जीवन की सुन्दरतम भावना है। गौतम जी ने कई ग़ज़लों में प्रकारांतर से प्यार की बात की है। 'गुस्सा तुम्हारा / है हमको प्यारा / आँखें न फेरो / हमसे खुदारा',  'तेरे-मेरे दिल की बातें, तू जाने मैं जानूँ / कैसे कटते दिन और रातें, तू जानें मैं जानूँ', 'उनको देखा जबसे / गाफिल हैं हम तबसे / यह आँखों की चितवन / करती है करतब से, 'इशारों पर इशारे हो रहे हैं / अदा पैगाम सारे हो रहे हैं' आदि में प्यार के विविध रंग छाये हैं। 'कितनी पावन धरती है यह अपने देश महान की / जननी है जो ऋषि-मुनियों की और स्वयं भगवान की', 'आओ सब मिलकर करें कुछ ऐसी तदबीर / जिससे हिंदी बन सके जन-जन की तकदीर' जैसी रचनाओं में राष्ट्रीयता का स्वर मुखर हुआ है। 

सारत: यह पुस्तक एक बड़े अभाव को मिटाकर एक बड़ी आवश्यकता कि पूर्ति करती है। नवगजलकार खुश नसीब हैं कि उन्हें मार्गदर्शन हेतु 'गागर में सागर' सदृश यह पुस्तक उपलब्ध है। गौतम जी इस सार्थक सृजन हेतु साधुवाद के पात्र हैं। उनकी अगली कृति कि बेकरारी से प्रतीक्षा करेंगे गजल प्रेमी।   
                                                                            ***                                                                                  सन्दर्भ- १. छंद प्रभाकर- जगन्नाथ प्रसाद 'भानु', २. गजल रदीफ़ काफिया और व्याकरण- डॉ. कृष्ण कुमार 'बेदिल', ३. गजल छंद चेतना- महावीर प्रसाद 'मुकेश', ४. ग़ज़ल ज्ञान- रामदेव लाल 'विभोर', ५. गजल सृजन- आर. पी. शर्मा 'महर्षि', ६. अरूज़े-खलील-मुक्तफ़ी- ज़ाकिर उस्मानी रावेरी, ७. गज़ल और गज़ल की तकनीक- राम प्रसाद शर्मा 'महर्षि'.  
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संपर्क- आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल', २०४ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१, चलभाष ९४२५१ ८३२४४। 
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