कुल पेज दृश्य

shiv लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
shiv लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं

रविवार, 25 मार्च 2018

व्यंग्य दोहावली

व्यंग्य दोहावली: * व्यंग्य उठाता प्रश्न जो, उत्तर दें हम-आप. लक्ष्य नहीं आघात है, लक्ष्य सके सच व्याप. * भोग लगाखें कर रए, पंडज्जी आराम. भूले से भी ना कहें, बे मूँ से "आ राम". * लिए आरती कह रहे, ठाकुर जी "जय राम". ठाकुर जी मुसका रहे, आज पड़ा फिर काम. * रावण ज्यादा राम कम, हैं बनिए के इष्ट. कपड़े सस्ते राम के, न्यून मुनाफा कष्ट. * वनवासी को याद कब, करें अवध जा राम. सीता को वन भेजकर, मूरत रखते वाम. * शीश कटा शम्बूक का, पढ़ा ज्ञान का ग्रंथ. आरक्षित सांसद कहाँ कहो, कहाँ खोजते पंथ? * जाति नहीं आधार हो, आरक्षण का मीत यही सबक हम सीख लें, करें सत्य से प्रीत. * हुए असहमत शिवा से, शिव न भेजते दूर. बिन सम्मति जातीं शिवा, पातीं कष्ट अपूर. * राम न सहमत थे मगर, सिय को दे वनवास. रोक न पाए समय-गति, पाया देकर त्रास. * 'सलिल' उपनिषद उठाते, रहे सवाल अनेक. बूझ मनीषा तब सकी, उत्तर सहित विवेक. * 'दर्शन' आँखें खोलकर, खोले सच की राह. आँख मूँद विश्वास कर, मिले न सच की थाह. * मोह यतीश न पालता, चाहें सत्य सतीश. शक-गिरि पर चढ़ तर्क को, मिलते सत्य-गिरीश. * राम न केवल अवध-नृप, राम सनातन लीक. राम-चरित ही प्रश्न बन, शंका हरे सटीक. * नंगा ही दंगा करें, बुद्धि-ज्ञान से हीन. नेता निज-हित साधता, दोनों वृत्ति मलीन. * 'सलिल' राम का भक्त है, पूछे भक्त सवाल. राम सुझा उत्तर उसे, मेटें सभी बवाल. * सिया न निर्बल थी कभी, मत कहिए असहाय. लीला कर सच दिखाया, आरक्षण-अन्याय. * सबक न हम क्यों सीखते, आरक्षण दें त्याग. मानव-हित से ही रखें, हम सच्चा अनुराग. * कल्प पूर्व कायस्थ थे, भगे न पाकर साथ. तब बोया अब काटते, विप्र गँवा निज हाथ. * नंगों से डरकर नहीं, ले पाए कश्मीर. दंगों से डर मौन हो, ब्राम्हण भगे अधीर. * हम सब 'मानव जाति' हैं, 'भारतीयता वंश'. परमब्रम्ह सच इष्ट है, हम सब उसके अंश. * 'पंथ अध्ययन-रीति' है, उसे न कहिए 'धर्म'. जैन, बौद्ध, सिख, सनातन, एक सभी का मर्म. * आवश्यकता-हित कमाकर, मानव भरता पेट. असुर लूट संचय करे, अंत बने आखेट. * दुर्बल-भोगी सुर लुटे, रक्षा करती शक्ति. शक्ति तभी हो फलवती, जब निर्मल हो भक्ति. * 'जाति' आत्म-गुण-योग्यता, का होती पर्याय. जातक कर्म-कथा 'सलिल', कहे सत्य-अध्याय. * 'जाति दिखा दी' लोक तब, कहे जब दिखे सत्य. दुर्जन सज्जन बन करे, 'सलिल' अगर अपकृत्य. * धंधा या आजीविका, है केवल व्यवसाय. 'जाति' वर्ण है, आत्म का, संस्कार-पर्याय. * धंधे से रैदास को, कहिए भले चमार. किंतु आत्म से विप्र थे, यह भी हो स्वीकार. * गति-यति लय का विलय कर, सच कह दे आनंद. कलकल नाद करे 'सलिल', नेह नर्मदा छंद. * श्रीराम नवमी, २५.३.२०१८

शनिवार, 3 मार्च 2018

शिव दोहावली

दोहा में शिव तत्व
*
दोहा में शिव-तत्व है, दोहा भी शिव-तत्व।
'सलिल' न भ्रम यह पालना, दोहा ही शिव-तत्व।।
*
अजड़ जीव, जड़ प्रकृति सह, सृष्टि-नियंता मौन।
दिखते हैं पशु-पाश पर, दिखें न पशुपति, कौन?
*
अक्षर पशु ही जीव है, क्षर प्रकृति है पाश।
क्षर-अक्षर से परे हैं, पशुपति दिखते काश।।
*
पशुपति की ही कृपा से, पशु को होता ज्ञान।
जान पाश वह मुक्त हो, कर पशुपति का ध्यान।।
*
पुरुषोत्तम पशुपति करें, निज माया से मुक्त।
माया-मोहित जीव पशु, प्रकृति मायायुक्त।।
*
क्षर प्रकृति अक्षर पुरुष, दोनों का जो नाथ।
पुरुषोत्तम शिव तत्व वह, जान झुकाकर माथ।।
*
है अनादि बिन अंत का, क्षर-अक्षर संबंध।
कर्मजनित अज्ञान ही, सृजे जन्म अनुबंध।।
*
माया शिव की शक्ति है, प्रकृति कहते ग्रंथ।
आच्छादित 'चिद्' जीव है, कर्म मुक्ति का पंथ।।
*
आच्छादक तम-तोम है, निज कल्पित लें मान।
शुद्ध परम शिव तम भरें, जीव करे सत्-भान।।
*
काल-राग-विद्या-नियति, कला भोगता जीव।‌
पुण्य-पाप सुख-दुख जनित, फल दें करुणासींव।।
*
मोह वासना अविद्या, जीव कर्म का मैल।
आत्मा का आश्रय गहे, ज्यों  पानी पर तैल।।
*
कर्म-नाश हित भोग है, मात्र भोग है रोग।
जीव-भोग्या है प्रकृति, हो न भोग का भोग।।
*
शिव-अर्पित कर कर्म हर, शिव ही पल युग काल।
दशा, दिशा, गति, पंथ-पग, शिव के शिव दिग्पाल।।
***
३.३.२०१८

शुक्रवार, 2 फ़रवरी 2018

शिव दोहावली

शिव भौतिकता से परे,
आध्यात्मिक अनुभूति।
अंतर्मन में ऋषि करें,
मूंदे नयन प्रतीति।।
*
शिवा न नारी देह हैं,
योनि नहीं देहांग।
सत्-रज-तम का समन्वय,
शिव की शक्ति शुभांग।।
*
शिव ऊर्जा हो अपरिमित,
कर सकती जग-नाश।
शिवा शांत-संतुलित कर,
रोकें विहंस विनाश।।
*
जो करता संदेह, वह
खोता निज विश्वास।
जो खोता विश्वास वह,
गंवा रहा सुख-श्वास।।
*
नारी भोग न भोगती,
खोती शुचिता-मान।
नर भोग्या का भोग हो,
पाता है अपमान।।
*
जब प्रवृत्ति हो उग्र तो,
हो निवृत्ति से शांत।
कांति न कांता बिन मिले,
कांता-कांति सुकांत।।
*
प्रेम अकाम सुवर्ण सा,
दें-पाएं निष्काम।
हों विदेह संदेह तज,
हो सहाय विधि वाम।।
*
नहीं देह के अंग हैं,
लिंग-योनि हैं तत्व।
तत्व लीन हो इंद्रियां,
अनुभव करतीं सत्व।।
*
हर्षित ऋषि-ऋषिपत्नियां,
हाटकेश-जय बोल।
तप्त स्वर्ण की कांति सा,
सत् श्वासों में घोल।।
*
२.२.२०१८, जबलपुर

गुरुवार, 1 फ़रवरी 2018

शिव दोहावली

शिव को मिल दंडित करें,
जिनका रहा विचार।
नतमस्तक मांगें क्षमा,
वे निज भूल सुधार।।
*
लिंग काटकर फेंकने,
बढ़ा रहे थे हाथ।
जो वे ही पूजन करें,
झुका-नवाकर माथ।।
*
देहांगों तक ही रहे,
सीमित नर-पशु नाथ!
पशुपतिनाथ! पुकारते,
संत जोड़कर हाथ।।
*
कुंठित हुई वृषभ सदृश
मति, पाया अब ज्ञान।
वृषभनाथ! हर लीजिए,
सब मिथ्या अभिमान।।
*
ऋत से दूर न सत् सके,
ऋषि होकर पहचान।
ऋषभदेव! करिए कृपा,
हो हम सब मतिमान।।
*
लिंगराज! करिए क्षमा,
गूंजी करुण पुकार।
एकलिंग ने अभय दे,
विनय करी स्वीकार।।
*
शिवा भाव पा साध्वियां,
हुईं निशंक-अभीत।
निज त्रुटि खुद ही मानकर,
चाहें बनें पुनीत।।
*
श्रद्धापूर्वक नमन कर,
मन में ले विश्वास।
शिव-ऋषियों से मांगतीं,
दण्ड बिना भय-त्रास।।
*
उमा पार्वती अपर्णा,
काट मोह का पाश।
सत् की करा प्रतीति दें
आशा का आकाश।।
*
मन से मन मिल एक हो,
रहे न भिन्न, न दूर।
नेह-नर्मदा बह चली,
देह न थी नासूर।।
*
भोलेपन में भुलाकर,
पथ प्रवृत्ति का हीन।
मग निवृत्ति का गह हंसा,
संत समाज अदीन।।
***
१-२-२०१८, जबलपुर

बुधवार, 31 जनवरी 2018

शिव दोहावली

शिव हों, भाग न भोग से,
हों न भोग में लीन।
योग साध लें भोग से,
सजा साधना बीन।।
*
चाह एक की जो बने,
दूजे की भी चाह।
तभी आह से मुक्ति हो,
दोनों पाएं वाह।।
*
प्रकृति-पुरुष हैं एक में
दो, दो में हैं एक।
दो अपूर्ण मिल पूर्ण हों,
सुख दे-पा सविवेक।।
*
योनि जीव को जो मिली,
कर्मों का परिणाम।
लिंग कर्म का मूल है,
कर सत्कर्म अकाम।।
*
संग तभी सत्संग है,
जब अभंग सह-वास।
संगी-संगिन में पले,
श्रृद्धा सह विश्वास।
*
मन में मन का वास ही,
है सच्चा सहवास।
तन समीप या दूर हो,
शिथिल न हो आभास।।
*
मुग्ध रमणियों मध्य है,
भले दिगंबर देह।
शिव-मन पल-पल शिवा का,
बना हुआ है गेह।।
*
तन-मन-आत्मा समर्पण
कर होते हैं पूर्ण।
सतत इष्ट का ध्यान कर,
खुद होते संपूर्ण।।
*
भक्त, भक्ति, भगवान भी,
भिन्न न होते जान।
गृहणी, गृहपति, गृह रहें,
एक बनें रसखान।।
*
शंका हर शंकारि शिव,
पाकर शंकर नाम।
अंतर्मन में व्यापकर,
पूर्ण करें हर काम।।
*
नहीं काम में काम हो,
रहे काम से काम।
काम करें निष्काम हो,
तभी मिले विश्राम।।
*
३१.१.२०१८, जबलपुर

मंगलवार, 30 जनवरी 2018

शिव दोहावली

शिव पूजे वह जिसे हो,
शिवता पर विश्वास।
शिवा ने शिव से भिन्न हैं,
यह भी हो आभास।।
*
सत् के प्रति श्रद्धा रखे,
सुंदर जगत-प्रवास।
साथी प्रति विश्वास से,
हो आवास सुवास।।
*
ऋषियों! क्यों विचलित हुए?
डिगा भरोसा दीन।
तप अपना ही भंगकर,
आप हो गए दीन।।
*
संबल हैं जो साध्वियां,
उन पर कर संदेह।
नींव तुम्हीं ने हिला दी,
बचे किस तरह गेह?
*
सप्त सिंधु सी भावना,
नेह-नर्मदा नीर।
दर्शन से भी सुख मिले,
नहा, पिएं मतिधीर।।
*
क्षार घुले संदेह का,
नेह-नीर बेकाम।
देह पिए तो गरल हो,
तजें विधाता वाम।।
*
ऋषि शिव, साध्वी हों शिवा,
रख श्रद्धा-विश्वास।
देह न, आत्मा को वरें,
गृह हरि-रमा निवास।।
*
विधि से प्राप्त प्रवृत्ति जो,
वह निवृत्ति-पर्याय।
हरि दोनों का समन्वय,
जग-जीवन समवाय।।
*
शिव निवृत्ति की राह पर,
हैं प्रवृत्ति की चाह।
वर्तुलवत बह चेतना,
दहा सके हर दाह।।
*
आदि-अंत जिसका नहीं,
सब हैं उसके अंश।
अंश-अंश से मिल बढ़े,
कहे उसे निज वंश।।
*
निज-पर कुछ होता नहीं,
सब जाता है छूट।
लूट-पाट अज्ञान है,
नाता एक अटूट।
*
नाता ताना जब गया,
तब टूटे हो शोक।
नाता हो अक्षुण्ण तो,
जीवन रहे अशोक।।
*
योनि-लिंग के निकट जा,
योनि-लिंग को भूल।
बन जाओ संजीव सब,
बसो साधना-कूल।।
***
३०.१.२०१८, जबलपुर

रविवार, 28 जनवरी 2018

शिव दोहावली

शिव कहते विश्वास ही,
जग-जीवन का सार।
नष्ट हुआ विश्वास तो,
निर्बल है आधार।।
*
सब पाने की वृत्ति ही,
बन जाती है लोभ।
नहीं लोभ का अंत है,
शेष रहे बस क्षोभ।।
जो पाया उससे अधिक,
अच्छा पा-लें भोग।
यह प्रवृत्ति ही साध्वियों!,
अंतर्मन का रोग।।
*
देख दिगंबर युवा को,
प्रगटा छिपा विकार।
साथी-प्रति श्रद्धा अटल,
एकमात्र उपचार।।
*
साथी का विश्वास मत,
करें कभी भी भंग।
सच्चा शिव-पूजन यही,
श्रद्धा रहे अभंग।।
*
मन से जिसको वर दिया,
एक वही है इष्ट।
अन्य उत्तमोतम अगर,
चाहें- करें अनिष्ट।।
*
काम जीवनाधार है,
काम न हो व्यापार।
भोग सकें निष्काम हो,
तभी साध्य स्वीकार।।
*
काम न हेय, न त्याज्य है,
काम सृष्टि का मूल।
संयम से अमृत बने,
शशि सिर पर मत भूल।।
*
अति वर्जित सर्वत्र ही,
विष हो अतिशय काम।
रोक कण्ठ में लें पचा,
शांत चित्त मन-थाम।।
*
सर्प नहीं संदेह का,
डंस पाए दें ध्यान।
साथी पर विश्वास रख,
दें-पा श्रद्धा-मान।।
*
विनत साध्वियों ने किया,
ग्रहण विमल शिव तत्व।
श्रद्धायुत विश्वास ही,
श्वास-आस का सत्व।।
*
२९.१.२०१८, जबलपुर

शनिवार, 27 जनवरी 2018

शिव दोहावली

शिव ने शक का सर्प ले,
किया सहज विश्वास।
कण्ठ सजाया, धन्यता
करे सर्प आभास।
*
द्वैत तजें, अद्वैत वर,
तो रखिए विश्वास।
शिव-संदेश न भूलिए,
मिटे तभी संत्रास।।
*
नारी पर श्रद्धा रखें,
वही जीवनाधार।
नर पर हो विश्वास तो,
जीवन सुख-आगार।।
*
तीन मेखला तीन गुण,
सत्-शिव-सुंदर देख।
सत्-चित्-आनंद साध्य तब,
धर्म-मर्म कर लेख।।
*
उदय-लय-विलय तीन ही,
क्रिया सृष्टि में व्याप्त।
लिंग-वेदिका पूजिए,
परम सत्य हो आप्त।।
*
निराकार हो तरंगित,
बनता कण निर्भार।
भार गहे साकार हो,
चले सृष्टि-व्यापार।।
*
काम-क्रोध सह लोभ हैं,
तीन दोष अनिवार्य।
संयम-नियम-अपरिग्रह,
हैं त्रिशूल स्वीकार्य।।
*
आप-आपके-गैर में,
श्रेष्ठ न करते भेद।
हो त्रिनेत्र सम देखिए,
अंत न पाएं खेद।।
*
त्रै विकार का संतुलन,
सकल सृष्टि-आधार।
निर्विकार ही मुक्त है,
सत्य क्रिया-व्यापार।।
*
जब न सत्य हो साथ तो,
होता संग असत्य।
छलती कुमति कुतर्क रच,
कहे सुमति तज कृत्य।।
*
नग्न सत्य को कर सके,
जो मन अंगीकार।
उसका तन न विवश ढहे,
हो शुचिता-आगार।।
*
२७.१.२०१८, जबलपुर

शुक्रवार, 26 जनवरी 2018

शिव दोहावली

शिव दिक्-अंबर ओढ़कर,
घूम रहे निर्द्वंद।
घेरे हैं ऋषि-पत्नियां,
मन में अंतर्द्वंद।।
*
काश पा सकें संग तो,
पूरी हो हर आस।
शिव मुस्काते मौन रह,
मोह बना संत्रास।।
*
ऋषिगण ईर्ष्या-वश जले,
मिटा आत्म-संतोष।
मोह-कामवश पत्नियां,
बनीं लोभ का कोष।।
*
क्रोध-द्वेष-कामाग्निवश
हुए सभी संत्रस्त।
गंवा शांति-विश्वास सब,
निष्प्रभ ज्यों रवि अस्त।।
*
देख, न शिव को देखते,
रहे लिंग ही देख।
शिव से अंग अलग करें,
काल रहा हंस देख।।
*
मारो-छोड़ो वृत्तियां,
करा रहीं संघर्ष।
तत्व-ज्ञान विस्मृत हुआ,
आध्यात्मिक अपकर्ष।।
*
विधि-हरि से की प्रार्थना,
'देव! मिटाओ क्लेश।
राह दिखाओ शांति हो,
माया रहे न लेश।।
*
आत्मबोध पा ध्यान में,
लौटे शिव के पास।
हारे हम, शक-सर्प ही,
स्वीकारें उपहार।।
*
अवढरदानी दिगंबर,
हंसे ठठाकर खूब।
तत्क्षण सब अवसाद खो,
गए हर्ष में डूब।।
*
शिव-अनुकंपा से मिला,
सत्य सनातन ज्ञान।
प्रवृति मार्ग साधन सहज,
निवृति साध्य संधान।।
*
श्रेष्ठ न लिंग, न योनि है
हीन, नहीं असमान।
नर-नारी पूरक, न कर
शक, दे-पा सम मान।।
*
रहे प्रतिष्ठा परस्पर,
वरें राह अद्वैत।
पूजक-पूजित परस्पर,
बनें भुलाकर द्वैत।।
*
जग-जीवन-आधार जो,
करें उसी की भक्ति।
योनि-रूप सह वेदिका,
लिंग पूज लें शक्ति।।
*
बिंदु-सिंधु का समन्वय,
कर प्रवृत्ति है धन्य।
वीतराग समभाव से,
देख अलिप्त अनन्य।।
*
ऋषभदेव शिव दिगंबर,
इंद्रियजित हो इष्ट।
पुजें वेदिका-खंभवत,
हर भरते हर कष्ट।।
*
२६.१.२०१८, जबलपुर

गुरुवार, 25 जनवरी 2018

शिव दोहा

शिव निवृत्ति-पथ पथिक थे,
ऋषि-पत्नियां विमुग्ध।
ऋषिगण श्यामल नग्न नर,
देख हो रहे दग्ध।
*
कुपित पत्नियों प्रति हुए,
शीश चढ़ा क्यों काम?
दंडित हो यति दिगंबर,
विधि न हो सकें वाम।।
*
मर्यादा मर्दित न हो,
दंडित हो अवधूत।
भंग नहीं विश्वास हो,
रिश्ते-नाते पूत।।
*
शिव अभीत मुस्का रहे,
ऋषिगण कुपित न राह।
नीललोहिती लिंग-च्युत'
हो- न सके सत्-दाह।।
*
ऋषि-पत्नियां सचेत हो,
थीं अति लज्जित मौन।
दोष न है यति का तनिक,
किंतु बताएं कौन?
*
मन में दबा विकार जो,
कर उद्घाटित-नष्ट।
योगी ने उपचार कर,
मेटा गर्व-अनिष्ट।।
*
हम निज वश में थी नहीं,
कर सकता था भोग।
किंतु न अवसर-लाभ ले,
रहा साधता योग।।
*
निरपराध को दण्ड से,
लगे अपरिमित पाप।
ऋषि-तप व्यर्थ न नष्ट हो,
साहस उपजा आप।।
*
ऋषिगण! सच जाने बिना,
दें न दण्ड या शाप।
दोषी हैं हम साध्वियां,
झेल न पाईं ताप।।
*
कृत्रिम संयम जी रहीं,
मन-उपजा अभिमान।
मिटा दिया युव तपी ने,
करा देह का भान।।
*
अब तक है निष्पाप तन,
मन को कर निष्पाप।
करा सत्य साक्षात यह,
यति है शिव ही आप।।
*
जो मन-चाहे दण्ड दें,
हमको मान्य सहर्ष।
जीवन हिल-मिलकर जिएं,
हो तब ही उत्कर्ष।।
*
यह यति पावन-पूज्य है,
यदि पाएगा दण्ड।
निरपराध-वध पाप का,
होगा पाप प्रचण्ड।
*
क्रमशः
२५.१.२०१८

बुधवार, 24 जनवरी 2018

शिव दोहावली

शिव हैं शून्य-अनंत भी,
निर्विकार-सविकार।
शिव-पिण्डी का सत् समझ,
कर भवसागर पार।।
*
दारुल वन में ऋषि-मुनि,
बसे सहित परिवार।
काल कल्प वाराह था,
करती उषा विहार।।
*
वन-विचरण कर ला रहे,
कुश फल समिधा संत।
हो प्रवृत्तिकामी करें,
संचय व्यर्थ न तंत।।
*
मार्ग निवृत्ति का दिखाएं,
हर ने किया विचार।
रूप दिगंबर मनोहर,
ले वन-करें विहार।।
*
नील वर्ण, रक्ताभ दृग,
भुज विशाल, सिंह-चाल।
जटा बिखर नर्तन करें,
चंदन चर्चित भाल।।
*
झूल रहे थे कण्ठ में,
नग-रुद्राक्ष अपार।
कामदेव को लजाता,
पुरुष लावण्य निहार।।
*
मुग्ध हुईं ऋषि पत्नियां,
मन में उठा विकार।
काश! पधारे युवा ऋषि,
स्वीकारे सत्कार।।
*
शिव मुस्कराए देखकर,
मिटा न मोह-विका
रहे विचरते निरंतर,
उच्चारें ओंकार।।
*
संयम तज ऋषि पत्नियां,
छूतीं बाहु विशाल।
कुछ संग-संग नर्तन करें,
देख तरुण पग-ताल।।
*
समझ अरुंधति गईं सच,
करती रहीं निषेध।
रुकी नहीं ऋषि पत्नियां,
दिया काम ने वेध।।
*
शिव निस्पृह चुप घूमते,
कब लौटें‌, ऋषि-संत।
समझें ‌सत्य निवृत्ति का,
तजें ‌प्रवृत्ति अतंत।।
*
क्रमशः
२४.१.२०१८, जबलपुर

मंगलवार, 23 जनवरी 2018

दोहा दुनिया

शिव निष्कल निर्मल सकल,
सजा कलानिधि माथ।
कलाकोकिला उमापति,
शिव पा कला सनाथ।।
*
शिव ‌पिंडी अणु-कणमयी
रूप न जहां विकार।
सिमटे तो हो शून्य ही,
फैल अनंत-अपार।।
*
सृष्टि स्थिती संहार शिव,
तिरोभाव शिव आप।
अनुग्रह पंचम कर्म से,
शिव रहते जग-व्याप।।

ब्रम्हा को छल-दण्ड दे,
कहा न पूजन-पात्र।
पछताए विधि, क्षमा पा,
यज्ञ-पूज्य हैं मात्र।।
*
ब्रम्ह-शीश गल-माल कर,
मिटा दिया हर बैर।
भैरव भी शिव-मूर्ति हैं,
मांग रहा जग खैर।।
*
असत-संग कर केतकी,
हर-पूजन से दूर।
शापित, सत्पथ वरण कर,
हरि पूजे, मद चूर।।
*
'अउम' ॐ शिव-बीज जप,
नश्वर होंगे मुक्त।
मंत्र-जाप बिन ॐ के,
हो न सके फल-युक्त।।
*
२३.१.२०१८, जबलपुर

रविवार, 21 जनवरी 2018

दोहा दुनिया

शिव मस्तक शोभित 'सलिल',
हुआ नर्मदा-धार।
धार रहे शिव, हो सके
सकल सृष्टि उद्धार।।
*
पंचमुखी हो चतुर्मुख,
हुए भीत से पीत।
शिव श्यामल से गौर हो,
पाते-देते प्रीत।।
*
विधि-हरि-हर की त्रयी मिल,
रच-रख-नाशे सृष्टि।
शक्ति-संतुलन की करी,
शिव ने विकसित दृष्टि।।
*
नाभि कमल पर विधि रहें,
हरि की शैया शेष।
नभ-सागर शिव वास हो,
ओर न छोर अशेष।।
*
आदि शक्ति शारद-रमा-
उमा करें सह-वास।
शक्तित्रयी हैं समन्वित,
किंचित भेद न त्रास।।
*
अण्ड-पिण्ड शिव लिंग ही,
सकल सृष्टि का मूल।
शिवा जिलहरी चेतना,
है आधार न भूल।।
*
देव-शक्तियां तीन हैं,
गुण प्रकृति के तीन।
श्रेष्ठ न कोई किसी से,
कोई न किंचित हीन।।
*
२१.१.२०१८, जबलपुर

दोहा दुनिया

शिव अविकारी मूल हैं,
विधि-हर हैं निर्मूल।
सत-रज-तम से विभूषित,
शिव के साथ त्रिशूल।।
*
सृष्टि-मूल खुद को समझ,
विधि-हरि करें विवाद।
शिव दोनों को शांत कर,
बन जाते संवाद।।
*
विधि-बुधि रचते सृष्टि सब,
मन में उठे विकार।
मैं स्वामी सबसे सबल,
करें सभी स्वीकार।।
*
रमा-विष्णु पालें जगत,
मानें खुद को ज्येष्ठ।
अहम-वहम हावी हुआ,
'मैं' है 'तू' से श्रेष्ठ।।
*
विधि सोचें वे जनक हैं,
हरि आत्मज हैं हीन।
हरि सोचें वे पालते,
पलते ब्रम्हा दीन।।
*
दोनों के संघर्ष का,
मूल 'अहम्' का भाव।
रजस तमस में ढल गया,
सत् का हुआ अभाव।।
*
सकल सृष्टि कंपित हुई,
कैसे करें निभाव?
कौन बनाए संतुलन,
हर कर बुरे प्रभाव??
*
हर ने फेंका केतकी,
पुष्प किया संकेत।
तुम दोनों से भिन्न है,
तत्व एक अनिकेत।।
*
वाद-विवाद न मिट सका,
रही फैलती भ्रांति।
ज्योति लिंग हरने तिमिर,
प्रगटा हो चिर शांति।।
*
विधि ऊपर को उड़ चले,
नापें अंतिम छोर।
हरि नीचे की ओर जा,
लौटे मिली न कोर।।
*
विधि ने छल कर कह दिया,
मैं आया हूं नाप।
हरि ने मानी पराजय,
अस्त गया ज्यों व्याप।।
*
त्यों ही शिव ने हो प्रगट,
व्यक्त कर दिया सत्य।
ब्रम्हा जी लज्जित हुए,
स्वीकारा दुष्कृत्य।।
*
पंच तत्व पचमुखी के,
एक हो गया दूर।
सलिल शीश शिव ने धरा,
झूठ हो गया चूर।।
*
मिथ्या साक्षी केतकी,
दें खो बैठी गंध।
पूजा योग्य नहीं रही,
सज्जा करें अगंध।।
*
विधि-पूजन सीमित हुआ,
सत् नारायण मान्य।
शिव न असत् को सह सकें,
इसीलिए सम्मान्य।।
*
२०.१.२०१८, जबलपुर

शुक्रवार, 19 जनवरी 2018

दोहा दुनिया

शिव अक्रिय, सक्रिय शिवा,
ऊर्जा पुंज अनंत।
कहे गए भगवान ये,
वे भगवती न अंत।।
*
धन-ऋण ऊर्जाएं मिलें,
जन्में अगणित रूप।
कण-कण, तृण-तृण तरंगित,
बनती सृष्टि अनूप।।
*
रूप-अरूप बनें-मिटें,
शिवा सुरूपा सोह।
शिव कुरूप को शुभ करें,
सकें शिवा-मन मोह।।
*
शिव शंका का अंत कर,
गुंजा रहे हैं शंख।
शिवा कल्पना सच करें,
उड़ें लगाकर पंख।।
*
हैं श्रद्धा-विश्वास ये,
सृष्टि रचें कर अंत।
सदा-सदा पूजे गए,
जो जाने वह संत।।
*
प्रगट करें शिव तीन गुण,
करें आप में लीन।
गगन आत्मिका प्रकृति है,
माया परम प्रवीण।।
*
जान न सकते जिसे, जो
होता खुद उत्पन्न।
व्यक्त-लीन सब कार्यकर,
लिंगराज संपन्न।।
*
तीन मेखमय वेदिका,
जग धात्री भग शक्ति।
लिंग चिन्ह आधार भग,
मिल जग रच दें मुक्ति।।
*
बिंदु अण्ड ही पिण्ड हो,
शून्य सिंधु आधार।
षड् समृद्धि 'भग' नाम पा,
करें जगत-व्यापार।।
*
शिव हरि रवि गणपति शिवा,
पंच देव मय वृत्त।
चित्र गुप्त कर प्रगट विधि,
होते आप निवृत्त।।
*
निराकार साकार हो,
प्रगटें नाना रूप।
नाद तरंगें कण बनें,
गहरा श्यामल कूप।।
***
१८-१-२०१८, जबलपुर।

दोहा दुनिया

शिव ही शिव जैसे रहें,
विधि-हरि बदलें रूप।
चित्र गुप्त हो त्रयी का,
उपमा नहीं अनूप।।
*
अणु विरंचि का व्यक्त हो,
बनकर पवन अदृश्य।
शालिग्राम हरि, शिव गगन,
कहें काल-दिक् दृश्य।।
*
सृष्टि उपजती तिमिर से,
श्यामल पिण्ड प्रतीक।
रवि मण्डल निष्काम है,
उजियारा ही लीक।।
*
गोबर पिण्ड गणेश है,
संग सुपारी साथ।
रवि-ग्रहपथ इंगित करें,
पूजे झुकाकर माथ।।
*
लिंग-पिण्ड, भग-गोमती,
हर-हरि होते पूर्ण।
शक्तिवान बिन शक्ति के,
रहता सुप्त अपूर्ण।।
*
दो तत्त्वों के मेल से,
बनती काया मीत।
पुरुष-प्रकृति समझें इन्हें,
सत्य-सनातन रीत।।
*
लिंग-योनि देहांग कह,
पूजे वामाचार।
निर्गुण-सगुण न भिन्न हैं,
ज्यों आचार-विचार।।
*
दो होकर भी एक हैं,
एक दिखें दो भिन्न।
जैसे चाहें समझिए,
चित्त न करिए खिन्न।।
*
सत्-शिव-सुंदर सृष्टि है,
देख सके तो देख।
सत्-चित्-आनंद ईश को,
कोई न सकता लेख।।
*
१९.१.२०११, जबलपुर।

बुधवार, 17 जनवरी 2018

doha duniya

दोहा दुनिया
*
शिव में खुद को देख मन,
मनचाहा है रूप।
शिव को खुद में देख ले,
हो जा तुरत अरूप।।
*
शिव की कर ले कल्पना,
जैसी वैसा जान।
शिव को कोई भी कहाँ,
कब पाया अनुमान?
*
शिव जैसे शिव मात्र हैं,
शिव सा कोई न अन्य।
आदि-अंत, नागर सहज,
सादि-सांत शिव वन्य।। 
*
शिव से जग उत्पन्न हो,
शिव में ही हो लीन।
शिवा शक्ति अपरा-परा,
जड़-चेतन तल्लीन।।
*
'भग' न अंग,ऐश्वर्य षड,
धर्म ज्ञान वैराग।
सुख समृद्धि यश समन्वित,
'लिंग' सृजन-अनुराग।।
*
राग-विराग समीप आ,
बन जाते भगवान।
हों प्रवृत्ति तब भगवती,
कर निवृत्ति का दान।।
*
ज्योति लिंग शिव सनातन,
ज्योतिदीप हैं शक्ति।
दोनों एकाकार हो,
देते भाव से मुक्ति।।
***
१७-१-२०१८ 
   
 




मंगलवार, 16 जनवरी 2018

doha duniya

दोहा दुनिया
*
शिव शंकर ओंकार हैं, नाद ताल सुर थाप।
शिव सुमरनी सुमेरु भी, शव ही जापक-जाप।।
*
पूजा पूजक  पूज्य शिव, श्लोक मंत्र श्रुति गीत।
अक्षर मुखड़ा अंतरा, लय रस छंद सुरीत।।
*
आत्म-अर्थ परमार्थ भी, शब्द-कोष शब्दार्थ।
शिव ही वेद-पुराण हैं, प्रगट-अर्थ निहितार्थ।।
*
तन शिव को ही पूजना, मन शिव का कर ध्यान।
भिन्न न शिव से जो रहे, हो जाता भगवान।।
*
इस असार संसार में, सार शिवा-शिव जान।
शिव में हो रसलीन तू, शिव रसनिधि रसखान।।
***
१६-१-२०१८ ,
विश्व वाणी हिंदी संस्थान, जबलपुर

doha duniya

दोहा दुनिया
*
शिव को पा सकते नहीं, सिव से सकें न भाग।
शिव अंतर्मन में बेस, मिलें अगर अनुराग।।
*
शिव को भज निष्काम हो, शिव बिन चले न काम।
शिव अनुकम्पा नाम दे, शिव हैं आप अनाम।।
*
वृषभ देव शिव दिगंबर, ढँकते सबकी लाज।
निर्बल के बल शिव बनें, पूर्ण करें हर काज।।
*
शिव से छल करना नहीं, बल भी रखना दूर।
भक्ति करो मन-प्राण से, बजा श्वास संतूर।।
*
शिव त्रिनेत्र से देखते, तीन लोक के भेद।
असत मिटा सत बचाते, करते कभी न भेद।।
*
१५-१-२०१८ एफ़ १० ८ सरिता विहार दिल्ली 
  

दोहा दुनिया

निराकार शिव से प्रगट,
होता हर आकार।
लीन सभी साकार हों,
शिव में एकाकार।।
*
शिव शुभ ही शुभ रक्षते,
अशुभ तजें तत्काल।
शक्ति सहायक हो सदा,
शेष न रहे बबाल।।
*
शिव हरदम संक्रांत हैं,
शिव पल-पल विक्रांत।
शिव न कभी उद्भ्रांत हों,
शिव न कभी दिग्भ्रांत।।
*
परम शांति हैं, क्रांत भी,
शिव परिवर्तन शील।
श्यामछिद्र बनकर सतत,
रहे अशुभ हर लील।।
*
१४.१.२०१८
सरिता विहार दिल्ली