कुल पेज दृश्य

शुक्रवार, 27 सितंबर 2019

मुद्रा और डाक टिकिट पर महात्मा गाँधी

गाँधी जयंती पर विशेष:
मुद्रा और डाक टिकिट पर महात्मा गाँधी  

मन्वन्तर वर्मा - तुहिना वर्मा  
*
किसी देश की मुद्रा और डाक टिकिट उस देश की संप्रभुता के वाहक होते हैं। भारत के स्वतंत्र होने के पूर्व देश की मुद्रा और डाक टिकिट पर तत्कालीन शासकों के चित्र, तत्कालीन सत्ता के प्रतीक चिन्ह आदि होते थे। भारत लोकतान्त्रिक गणराज्य बना तो क्रमशः मुद्राओं और डाक टिकिटों पर बदलते समय के चिन्ह अंकित किये जाने जाने लगे। इन प्रतीक चिन्हों में प्रमुख हैं राष्ट्रीय ध्वज, राष्ट्र पिता, संसद भवन, शहीद, राजनेता, इतिहासपुरुष, दर्शनीय स्थल, महत्वपूर्ण नवनिर्माण, पशु-पक्षी, प्राकृतिक व दर्शनीय स्थल आदि। राष्ट्रीय ध्वज और अशोक चक्र के साथ स्वतंत्र्योपरांत भारतीय सिक्कों और डाक टिकिटों में सर्वाधिक महत्वपूर्ण स्थान राष्ट्रपिता बापू का है।  खड़ी और ग्रामोद्योग में गाँधी जी के प्राण बसते थे। कड़ी और ग्रामोद्योग आयोग के ५० वर्ष होने पर जारी किये गए सिक्के पर बापू का चेहरा व चरखा चलाते बापू अंकित हैं।

   एक रुपये का सिक्का मौद्रिक इकाई होने के नाते बहुत महत्वपूर्ण होता है। एक रुपये मूल्य के सिक्के पर गाँधी जी की मुखछवि, हिंदी-अंग्रेजी में महात्मा गाँधी व 1869-1948 अंकित है जो गाँधी जी के जन्म-निधन के वर्ष हैं। दूसरी ओर अशोक चिन्ह भारत INDIA व एक रूपया ONE RUPEE अंकित है। 

20 पैसे के पीतवर्णी सिक्के पर एक रुपये मूल्य के सिक्के पर भी गाँधी जी की मुखछवि, हिंदी-अंग्रेजी में महात्मा गाँधी व 1869-1948 अंकित है जो गाँधी जी के जन्म-निधन के वर्ष हैं। दूसरी ओर अशोक चिन्ह भारत INDIA व पैसे 20  PAISE अंकित है। 


स्वतंत्रता प्राप्ति के 50 वर्ष पूर्ण होने पर जारी किये गए विशेष सिक्के पर दांडी कुछ की छवि अंकित है जिसमें सबसे आगे रहकर जनसमूह का नेतृत्व करते बापू की संघर्षशील छवि प्रभावी बन पड़ी है। 1947 -1997 तथा स्वतंत्रता का 50 वां वर्ष  - 50th YEAR OF INDEPENDENCE सिक्के पर अंकित है। 
पत्र मुद्रा पर भी गाँधी जी सर्वाधिक लोकप्रिय रहे हैं। बैंगनी-हरे मिश्रित रंग में एक रुपये के नोट की पीठ पर सिक्के पर अंकित छवि की तरह, गाँधी जी की मुख छवि है। दो रुपये के भूरे-कत्थई रंग के नोट पर  गाँव  की पृष्ठभूमि में पद्मासन में बैठे गाँधी जी कन्धों पर चादर डाले हैं। वे आहत में पुस्तक लेकर स्वाध्याय कर रहे हैं।  
 पाँच रुपये के पुराने नोट के पृष्ठ भाग पर गांधी जी की वही छवि है जो दो रुपये के नोट पर है। इसका रंग हरा-पीला है। पाँच रुपये का नया नोट हरे गुलाबी रंग का है। इसके  सामने के भाग पर बापू की हँसती हुई मुख मुद्रा अंकित है। एक सौ रुपये के नीले रंग के नोट पर भी गाँधी जी की यही छवि अंकित की गयी थी। ५०० रुपये के बहुरंगी नोट के अग्र भाग पर भी गांधी जी की यही छवि थी जबकि बाद वाले ५०० रुपये के नोट पर दांडी मार्च का नेतृत्व करते गाँधी जी उनके पीछे सरोजिनी नायडू अंकित हैं। 


                           









डेढ़ आना मूल्य के धूसर भूरे, १२ आने के हल्के हरे तथा दस रुपये मूल्य के गुलाबी आयताकार डाक टिकिटों पर हिंदी - उर्दू में बापू, अंग्रेजी में महात्मा गाँधी, जन्म व निधन तिथि तथा इण्डिया पोस्टेज लिखा है। डेढ़ रुपये तथा १२ आने के टॉकिटों पर सम्मुख छवि व दस रुपये के टिकिट पर एक ओर देखते हुए बापू की गंभीर  छवि अंकित हैं। 



विविध अवसरों पर बापू को केंद्र में रखकर डाक विभाग द्वारा जरी किये गए डाक टिकिटों में से कुछ नीचे दिए जा रहे हैं। इनमें गांधी जी की विविस्द्ध छवियां अंकित हैं -
एक  डाक टिकिट में दक्षिण अफ्रीका में गाँधी जी को गोरों द्वारा ट्रैन से फेंक दिया जाना भी अंकित है। तीन  डाक टिकिटों पर गाँधी जी की हस्तलिपि में उनके सन्देश भी अंकित हैं और हस्ताक्षर भी हैं। साबरमती आश्रम में चरखे सहित गाँधी जी के रेखा चित्र के साथ लिखा है BE TRUE अर्थात सच्चे बनो।      
दूसरे टिकिट पर लिखा है- I WANT WORLD SYMPATHY IN THIS BATTLE OF RIGHT AGAINST MIGHT अर्थात मैं शक्ति के विरुद्ध सही के इस युद्ध में विश्व की सहानुभूति चाहता हूँ। यह संदेश दांडी से दिया गया है। नमक सत्याग्रह संदर्भ में जारी दो टिकिटों के सेट में एक ६ रुपये तथा दूसरा ११ रूपये का है। 
सुनहरी पृष्ठभूमि पर जारी किये गए दो टिकिटों के सेट में गांधी जी दांडी की ओर बढ़ते हुए तथा नमक बनाते हुए चित्रित है। 
      






अंग्रेजों भारत छोडो आंदोलन की याद में जारी डाक टिकिट पर गाँधी-नेहरू, तिरंगा और आचार्य कृपलानी अंकित हैं -

 

सहस्त्रब्दि पुरुष के रूप में गाँधी जी को स्मरण करते हुए जारी किये गए टिकिट में प्रार्थना सभा की ओर जाते गांधी जी तथा चिंतन लीन गाँधी अंकित हैं।  














विश्व बाल वर्ष १९७९ के अवसर पर जारी डाक टिकिट पर शिशु के साथ लाड लड़ाते बापू की छवि अंकित है -

















चार टिकिटों के विशेष समूह में २ रु., ६रु., १०रु. व ११रु. के  टिकिट हैं। इन पर गाँधी जी के जीवन के विविध प्रसंग चित्रित हैं -


         
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना के १०० वर्ष होने पर जारी ४ डाक टिकिटों के सेट पर म. गाँधी के साथ सभी कॉंग्रेसध्यक्षों के चित्र अंकित हैं। यह विशेष टिकिट अपने में पूरा इतिहास समेटे है। 


 




























गांधी जी पर विशेष पोस्टकार्ड, अंतर्देशीय और प्रथम दिवस आवरण भी जारी किये गए हैं। 

  
  
 

  
  












भारत के अतिरिक्त सौ से अधिक देशों ने गाँधी जी पर डाक टिकिट जारी किये हैं। डाक विभाग ने इनके अतिरिक्त गाँधी जी पर अनेक सर्विस स्टैम्प भी जारी किये हैं। डाकटिकिट संग्राहकों में गाँधी जी पर जारी किये गए टिकिट सर्वाधिक लोकप्रिय हैं। 
*** 



दोहे - गाँधी दर्शन

आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल'
*
ट्रस्टीशिप सिद्धांत लें, पूँजीपति यदि सीख
सबसे आगे सकेगा, देश हमारा दीख
*
लोकतंत्र में जब न हो, आपस में संवाद
तब बरबस आते हमें, गाँधी जी ही याद
*
क्या गाँधी के पूर्व था, क्या गाँधी के बाद?
आओ! हम आकलन करें, समय न कर बर्बाद
*
आम आदमी सम जिए, पर छू पाए व्योम
हम भी गाँधी को समझ, अब हो पाएँ ओम
*
कहें अतिथि की शान में, जब मन से कुछ बात
दोहा बनता तुरत ही, बिना बात हो बात
*
समय नहीं रुकता कभी, चले समय के साथ
दोहा साक्षी समय का, रखे उठाकर माथ
*
दोहा दुनिया का सतत, होता है विस्तार
जितना गहरे उतरते, पाते थाह अपार
*

लघुकथा -

मुखड़ा देख ले 

आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल'

*
कक्ष का द्वार खोलते ही चोंक पड़े संपादक जी|

गाँधी जी के चित्र के ठीक नीचे विराजमान तीनों बंदर इधर-उधर ताकते हुए मुस्कुरा रहे थे.

आँखें फाड़कर घूरते हुए पहले बंदर के गले में लटकी पट्टी पर लिखा था- 'बुरा ही देखो'|

हाथ में माइक पकड़े दिगज नेता की तरह मुंह फाड़े दूसरे बंदर का कंठहार बनी पट्टी पर अंकित था- 'बुरा ही बोलो'|

'बुरा ही सुनो' की पट्टी दीवार से कान सटाए तीसरे बंदर के गले की शोभा बढ़ा रही थी|

'अरे! क्या हो गया तुम तीनों को?' गले की पट्टियाँ बदलकर मुट्ठी में नोट थामकर मेज के नीचे हाथ क्यों छिपाए हो? संपादक जी ने डपटते हुए पूछा|

'हमने हर दिन आपसे कुछ न कुछ सीखा है| कोई कमी रह गई हो तो बताएं|'

ठगे से खड़े संपादक जी के कानों में गूँज रहा था- 'मुखडा देख ले प्राणी जरा दर्पण में ...'

******************
लघुकथा:

निपूती भली थी

-आचार्य संजीव 'सलिल'

बापू के निर्वाण दिवस पर देश के नेताओं, चमचों एवं अधिकारियों ने उनके आदर्शों का अनुकरण करने की शपथ ली. अख़बारों और दूरदर्शनी चैनलों ने इसे प्रमुखता से प्रचारित किया.

अगले दिन एक तिहाई अर्थात नेताओं और चमचों ने अपनी आँखों पर हाथ रख कर कर्तव्य की इति श्री कर ली. उसके बाद दूसरे तिहाई अर्थात अधिकारियों ने कानों पर हाथ रख लिए, तीसरे दिन शेष तिहाई अर्थात पत्रकारों ने मुँह पर हाथ रखे तो भारत माता प्रसन्न हुई कि देर से ही सही इन्हे सदबुद्धि तो आई.

उत्सुकतावश भारत माता ने नेताओं के नयनों पर से हाथ हटाया तो देखा वे आँखें मूंदे जनगण के दुःख-दर्दों से दूर सता और सम्पत्ति जुटाने में लीन थे. दुखी होकर भारत माता ने दूसरे बेटे अर्थात अधिकारियों के कानों पर रखे हाथों को हटाया तो देखा वे आम आदमी की पीडाओं की अनसुनी कर पद के मद में मनमानी कर रहे थे. नाराज भारत माता ने तीसरे पुत्र अर्थात पत्रकारों के मुँह पर रखे हाथ हटाये तो देखा नेताओं और अधिकारियों से मिले विज्ञापनों से उसका मुँह बंद था और वह दोनों की मिथ्या महिमा गा कर ख़ुद को धन्य मान रहा था.

अपनी सामान्य संतानों के प्रति तीनों की लापरवाही से क्षुब्ध भारत माता के मुँह से निकला- 'ऐसे पूतों से तो मैं निपूती ही भली थी.

* * * * *

गुरुवार, 26 सितंबर 2019

सरस्वती वंदना नवीन चतुर्वेदी

नवीन सी. चतुर्वेदी
*












जन्म - २७ अक्टूबर १९६८, मथुरा, उ.प्र. 
आत्मज - श्रीमती पुष्पा देवी - श्री छोटु भाई। 
जीवन संगिनी - श्रीमती रेखा। 
शिक्षा - वाणिज्य स्नातक। 
संप्रति व्यवसाय, मुम्बई। 
प्रकाशन - पुखराज हवा में उड़ रए एँ (प्रथम ब्रज-गजल संग्रह), ब्रज गजल संग्रह। 
उपलब्धि - अंतरजाल पर विविध भाषाओँ-बोलिओं में छंद सृजन, बृज ग़ज़ल के प्रणेता।
संपर्क - ई २ हाइवे पार्क, ठाकुर काम्प्लेक्स, कांदिवली पूर्व, मुम्बई ४००१०१। 
चलभाष - ९९६७०२४५९३। ईमेल - navincchaturvedi@gmail.com ।
मातु सरस्वती वंदना

पद्मासनासीना, प्रवीणा, मातु, वीणा-वादिनी।
स्वर-शब्द-लय-सरगम-समेकित, शुद्ध-शास्वत-रागिनी॥
सब के हृदय सन्तप्त हैं माँ! निज-कृपा बरसाइये।
भटके हुए संसार को माँ! रासता दिखलाइये॥

यति-गति समो कर ज़िन्दगी में, हम सफल जीवन जिएँ।
स्वच्छन्द-सरिता में उतर कर, प्रेम का अमृत पिएँ॥
व्यवहार में भी व्याकरण सम, शुद्ध-अनुशासन रहें।
सुन कर जिन्हें जग झूम जाए, हम वही बातें कहें॥

इक और छोटी सी अरज है, शान्ति हो हर ठौर में।
परिवार के सँग हम खुशी से, जी सकें इस दौर में॥
कह दीजिये अपनी बहन से, रह्म हम पर भी करें।
हे शारदे! वर दीजियेगा, हम सरसता को वरें॥
(छंद हरिगीतिका)
*

बुधवार, 25 सितंबर 2019

सरस्वती वंदना रीमा मिश्रा

रीमा मिश्रा















जन्म-१५ मई १९९३, आसनसोल, पश्चिम बंगाल
आत्मजा - श्रीमती विद्यावती देवी - श्री देवदत्त मिश्रा। शिक्षा-एम.ए (हिंदी), अनुवाद में स्नातकोत्तर डिप्लोमा(पी.जी.डी.टी)। संपर्क - न्यू केंदा कोलियरी, पश्चिम बर्धमान। चलभाष - ७४७७५१४९६१। ईमेल - binamishra444@gmail.com । *
,

भोजपुरी
महिमा से भरल बा
महिमा से भरल बा राउर चरनिया, ऐ सरस्वती मईया,
सुन ली न हमरो बचनिया, ऐ सरस्वति मईया। राउर कृपा से माई दुनियां जहान बा, राउर दया से माई जग के पहचान बा। पउवा पखराब जाई के ऐ सरस्वती मईया, सुन ली न हमरो बचनिया, ऐ सरस्वती मईया। ममता से भरल माई राउर चारनिया, ऐ सरस्वती मैया, सुन ली न हमरो बचनिया ऐ सरस्वती मईया। बीना के बजइया सातो सुर के रचईया, हंस पे सवार होके आजा मोरी मईया, विनती हज़ार करतानी मोरी मईया। जेकरा पे माई राउर कृपा हो जाला, गुणी औरु ज्ञानी बन जग में पुजाला, स्वर में तू जेकरा समा जालू मईया, सुर के उ ज्ञाता कहलाला। मूर्खों भी बन जाला ज्ञानी, सुनी ऐ मईया।
सूरदास , कालिदास के कवि तू बनयिलु, बाल्मीकि जी तू रामायण लिखवाईलु। रामचरितमानस के कर दिहले रचना,
तुलसी के जब तू कलम में समईलु। करी अब हम कतना बखानी सुनी ऐ मईया, बीना के बजइया,सातो सुर के रचाईया, हंस पे सवार होके आजा मोरी मईया।
*
=====================

मंगलवार, 24 सितंबर 2019

सरस्वती वंदना निधि सिंह


निधि सिंह 
















जन्म - ७ मई २०००, रेवरी गोसाईंगंज, अयोध्या। 
आत्मजा - श्रीमती निशा - श्री मनु जी महाराज, प्रवचनकर्ता। 
शिक्षा - स्नातक अध्ययनरत।  
संपर्क - जैन मंदिर चौराहा, बब्लू राम भवन, रायगंज, डाकघर मढ़ी रामदास छावनी, समीप कोतवाली, अयोध्या, उ. प्र.
चलभाष -  ८९४८७८९२३३ / ९६७०३३७७२०।   
*

माँ सरस्वती शारदे!

माँ सरस्वती शारदे!, माँ सरस्वती शारदे! चरणों को छू पाऊँ, ऐसा आशीर्वाद दे माँ सरस्वती शारदे! शब्द ब्रम्ह आराध सकूँ ऐसा उपकार करो दूर करो अज्ञानता मैया मुझको ज्ञान दे माँ सरस्वती शारदे!
गीतो को दूँ कैसे स्वर? छंदों का ही पता नहीं गीत बना गा पाऊँ माँ, वाणी का वरदान दे माँ सरस्वती शारदे!
*
जन्म - २ जून १९८१, ग्राम बारा दीक्षित, जनपद- देवरिया, उत्तर प्रदेश।
आत्मजा - श्रीमती मनोरमा श्रीवास्तव - श्री विपिन बिहारी श्रीवास्तव।
जीवन साथी -श्री अवनीश श्रीवास्तव, राय बरेली।
संपर्क - ४७ बृजधाम कॉलोनी, बृज की रसोई के पीछे, सीतापुर रोड, लखनऊ २२६२०२।

छंद पञ्चचामर

छंद पञ्चचामर
विधान - जरजरजग
मापनी - १२१ २१२ १२१ २१२ १२१ २
*
कहो-कहो कहाँ चलीं, न रूठना कभी लली
न बोल बोल भूलना, कहा सही तुम्हीं बली
न मोहना दिखा अदा, न घूमना गली-गली
न दूर जा न पास आ, सुवास दे सदा कली
*

सोमवार, 23 सितंबर 2019

सरस्वती वंदना अंग्रेजी अनिल जैन



अनिल जैन 


जन्म - दमोह। 
आत्मज - राजधर जैन 'मानस हंस'।  
शिक्षा - एम. ए., एम. फिल.।
संप्रति - प्राध्यापक-विभागाध्यक्ष अंग्रेजी, दमोह। 
प्रकाशन - अंग्रेजी ग़ज़ल संग्रह ऑफ़ एन्ड ऑन, काव्य संग्रह द सेकेण्ड थॉट।  
उपलब्धि - अनेक साहित्यिक सम्मान। 
संपर्क - बी ४७ वैशाली नगर, दमोह ४७०६६१ म.प्र.। 
चलभाष - ९६३०६३११५८। ईमेल - aniljaindamoh@gmail.com ।
*
अंग्रेजी 
An Invocation to Goddess Saraswati 


O Goddess of wisdom  
Let me sing thy praise

Impart reason upon me 
Want to compose phrase 

You enlighten the paths 
To those who lost their ways 

What is rough in to us 
You have power to erase 

Your presence guide those 
Long trapped in a maze 

For in your lusture 
Nights turn into days

Your control makes us free 
Of greed and lust and rage 

I bow down my head 
Apper, O mother to bless 
*
==================

सरस्वती वंदना

साधु शरण वर्मा 



जन्म - ७ दिसंबर १९३९, अयोध्या।
आत्मज - स्व. रुक्मिणी -   स्व. सूर्यपाल।
शिक्षा- बी.ए. ऑनर्स, एम.ए. स्वर्ण पदक।
प्रकाशन - २२ पुस्तकें विविध विधाओं में, अनेक रचनाएँ पत्र-पत्रिकाओं में।
उपलब्धि - २८ अलंकरण।
संपर्क - कल्पतरु, ५२५ / २९३ पुराना महानगर, लखनऊ, उ. प्र.।   
*
बैंसवाड़ी
कंठ मइहां आय कै बिराजो


कंठ मइहां आय कै बिराजो 
जगत केरि मइया शारदा!

सुख-दुःख कै गाथा लिखावो यही जन से
दूरि करौ मानस के रोग जन-मन से
जग मा आपन जस फैलावो
जगत केरी मइया शारदा

शब्दन कै ज्ञान नहीं, अरथ हू न जानी
जग के प्रपंच मइहाँ बुद्धि है हेरानी
जयोति भरौ लेखनि मा आपन
जगत केरी मइया शारदा

दुखियन कै दुःख मोरी लेखनी मा आवै
दूरी करौ दुःख जग जस तेरो गावै
शब्दन मा मोती झलकाओ
जगत केरी मइया शारदा

चाहउँ ना सूर अउर कबिरा कै बानी
दुखी केर दुःख गावै लेखनी सयानी
पार करउ 'सरन' केरी नइया
जगत केरी मइया शारदा
*
========================

रविवार, 22 सितंबर 2019

प्रसंग गाँधी

दोहा सलिला:

गाँधी के इस देश में...

संजीव 'सलिल'

गाँधी के इस देश में, गाँधी की जयकार.
सत्ता पकड़े गोडसे, रोज कर रहा यार..

गाँधी के इस देश में, गाँधी की सरकार.
हाय गोडसे बन गया, है उसका सरदार..

गाँधी के इस देश में, गाँधी की है मौत.
सत्य अहिंसा सिसकती, हुआ स्वदेशी फौत..

गाँधी के इस देश में, हिंसा की जय बोल.
बाहुबली नेता बने, जन को धन से तोल..

गाँधी के इस देश में, गाँधी की दरकार.
सिर्फ डाकुओं को रही, शेष कहें बेकार..

गाँधी के इस देश में, हुआ तमाशा खूब.
गाँधीवादी पी सुरा, राग अलापें खूब..

गाँधी के इस देश में, डंडे का है जोर.
खेल रहे हैं डांडिया, विहँस पुलिसिए-चोर..

गाँधी के इस देश में, अंग्रेजी का दौर.
किसको है फुर्सत करे, हिन्दी पर कुछ गौर..

गाँधी के इस देश में, बोझ हुआ कानून.
न्यायालय में हो रहा, नित्य सत्य का खून..

गाँधी के इस देश में, धनी-दरिद्र समान.
उनकी फैशन ये विवश, देह हुई दूकान..

गाँधी के इस देश में, 'सलिल 'न कुछ भी ठीक.
दुनिया का बाज़ार है, देश तोड़कर लीक..
*
नवगीत:
*
गाँधी को मारा
आरोप
गाँधी को भूले
आक्रोश
भूल सुधारी
गर वंदन कर
गाँधी को छीना
प्रतिरोध

गाँधी नहीं बपौती
मानो
गाँधी सद्विचार
सच जानो
बाँधो मत सीमा में
गाँधी
गाँधी परिवर्तन की
आँधी
स्वार्थ साधते रहे
अबोध

गाँधी की मत
नकल उतारो
गाँधी को मत
पूज बिसारो
गाँधी बैठे मन
मंदिर में
तन से गाँधी को
मनुहारो
कर्म करो सत
है अनुरोध
******