गाँधी जयंती पर विशेष:
मुद्रा और डाक टिकिट पर महात्मा गाँधी
मन्वन्तर वर्मा - तुहिना वर्मा
*
विविध अवसरों पर बापू को केंद्र में रखकर डाक विभाग द्वारा जरी किये गए डाक टिकिटों में से कुछ नीचे दिए जा रहे हैं। इनमें गांधी जी की विविस्द्ध छवियां अंकित हैं -
एक डाक टिकिट में दक्षिण अफ्रीका में गाँधी जी को गोरों द्वारा ट्रैन से फेंक दिया जाना भी अंकित है। तीन डाक टिकिटों पर गाँधी जी की हस्तलिपि में उनके सन्देश भी अंकित हैं और हस्ताक्षर भी हैं। साबरमती आश्रम में चरखे सहित गाँधी जी के रेखा चित्र के साथ लिखा है BE TRUE अर्थात सच्चे बनो।
अंग्रेजों भारत छोडो आंदोलन की याद में जारी डाक टिकिट पर गाँधी-नेहरू, तिरंगा और आचार्य कृपलानी अंकित हैं -
सहस्त्रब्दि पुरुष के रूप में गाँधी जी को स्मरण करते हुए जारी किये गए टिकिट में प्रार्थना सभा की ओर जाते गांधी जी तथा चिंतन लीन गाँधी अंकित हैं।
विश्व बाल वर्ष १९७९ के अवसर पर जारी डाक टिकिट पर शिशु के साथ लाड लड़ाते बापू की छवि अंकित है -
चार टिकिटों के विशेष समूह में २ रु., ६रु., १०रु. व ११रु. के टिकिट हैं। इन पर गाँधी जी के जीवन के विविध प्रसंग चित्रित हैं -
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना के १०० वर्ष होने पर जारी ४ डाक टिकिटों के सेट पर म. गाँधी के साथ सभी कॉंग्रेसध्यक्षों के चित्र अंकित हैं। यह विशेष टिकिट अपने में पूरा इतिहास समेटे है।
गांधी जी पर विशेष पोस्टकार्ड, अंतर्देशीय और प्रथम दिवस आवरण भी जारी किये गए हैं।
मुद्रा और डाक टिकिट पर महात्मा गाँधी
मन्वन्तर वर्मा - तुहिना वर्मा
*
किसी देश की मुद्रा और डाक टिकिट उस देश की संप्रभुता के वाहक होते हैं। भारत के स्वतंत्र होने के पूर्व देश की मुद्रा और डाक टिकिट पर तत्कालीन शासकों के चित्र, तत्कालीन सत्ता के प्रतीक चिन्ह आदि होते थे। भारत लोकतान्त्रिक गणराज्य बना तो क्रमशः मुद्राओं और डाक टिकिटों पर बदलते समय के चिन्ह अंकित किये जाने जाने लगे। इन प्रतीक चिन्हों में प्रमुख हैं राष्ट्रीय ध्वज, राष्ट्र पिता, संसद भवन, शहीद, राजनेता, इतिहासपुरुष, दर्शनीय स्थल, महत्वपूर्ण नवनिर्माण, पशु-पक्षी, प्राकृतिक व दर्शनीय स्थल आदि। राष्ट्रीय ध्वज और अशोक चक्र के साथ स्वतंत्र्योपरांत भारतीय सिक्कों और डाक टिकिटों में सर्वाधिक महत्वपूर्ण स्थान राष्ट्रपिता बापू का है। खड़ी और ग्रामोद्योग में गाँधी जी के प्राण बसते थे। कड़ी और ग्रामोद्योग आयोग के ५० वर्ष होने पर जारी किये गए सिक्के पर बापू का चेहरा व चरखा चलाते बापू अंकित हैं।
एक रुपये का सिक्का मौद्रिक इकाई होने के नाते बहुत महत्वपूर्ण होता है। एक रुपये मूल्य के सिक्के पर गाँधी जी की मुखछवि, हिंदी-अंग्रेजी में महात्मा गाँधी व 1869-1948 अंकित है जो गाँधी जी के जन्म-निधन के वर्ष हैं। दूसरी ओर अशोक चिन्ह भारत INDIA व एक रूपया ONE RUPEE अंकित है।
20 पैसे के पीतवर्णी सिक्के पर एक रुपये मूल्य के सिक्के पर भी गाँधी जी की मुखछवि, हिंदी-अंग्रेजी में महात्मा गाँधी व 1869-1948 अंकित है जो गाँधी जी के जन्म-निधन के वर्ष हैं। दूसरी ओर अशोक चिन्ह भारत INDIA व पैसे 20 PAISE अंकित है।
स्वतंत्रता प्राप्ति के 50 वर्ष पूर्ण होने पर जारी किये गए विशेष सिक्के पर दांडी कुछ की छवि अंकित है जिसमें सबसे आगे रहकर जनसमूह का नेतृत्व करते बापू की संघर्षशील छवि प्रभावी बन पड़ी है। 1947 -1997 तथा स्वतंत्रता का 50 वां वर्ष - 50th YEAR OF INDEPENDENCE सिक्के पर अंकित है।
पत्र मुद्रा पर भी गाँधी जी सर्वाधिक लोकप्रिय रहे हैं। बैंगनी-हरे मिश्रित रंग में एक रुपये के नोट की पीठ पर सिक्के पर अंकित छवि की तरह, गाँधी जी की मुख छवि है। दो रुपये के भूरे-कत्थई रंग के नोट पर गाँव की पृष्ठभूमि में पद्मासन में बैठे गाँधी जी कन्धों पर चादर डाले हैं। वे आहत में पुस्तक लेकर स्वाध्याय कर रहे हैं।
पाँच रुपये के पुराने नोट के पृष्ठ भाग पर गांधी जी की वही छवि है जो दो रुपये के नोट पर है। इसका रंग हरा-पीला है। पाँच रुपये का नया नोट हरे गुलाबी रंग का है। इसके सामने के भाग पर बापू की हँसती हुई मुख मुद्रा अंकित है। एक सौ रुपये के नीले रंग के नोट पर भी गाँधी जी की यही छवि अंकित की गयी थी। ५०० रुपये के बहुरंगी नोट के अग्र भाग पर भी गांधी जी की यही छवि थी जबकि बाद वाले ५०० रुपये के नोट पर दांडी मार्च का नेतृत्व करते गाँधी जी उनके पीछे सरोजिनी नायडू अंकित हैं।
डेढ़ आना मूल्य के धूसर भूरे, १२ आने के हल्के हरे तथा दस रुपये मूल्य के गुलाबी आयताकार डाक टिकिटों पर हिंदी - उर्दू में बापू, अंग्रेजी में महात्मा गाँधी, जन्म व निधन तिथि तथा इण्डिया पोस्टेज लिखा है। डेढ़ रुपये तथा १२ आने के टॉकिटों पर सम्मुख छवि व दस रुपये के टिकिट पर एक ओर देखते हुए बापू की गंभीर छवि अंकित हैं।
एक डाक टिकिट में दक्षिण अफ्रीका में गाँधी जी को गोरों द्वारा ट्रैन से फेंक दिया जाना भी अंकित है। तीन डाक टिकिटों पर गाँधी जी की हस्तलिपि में उनके सन्देश भी अंकित हैं और हस्ताक्षर भी हैं। साबरमती आश्रम में चरखे सहित गाँधी जी के रेखा चित्र के साथ लिखा है BE TRUE अर्थात सच्चे बनो।
दूसरे टिकिट पर लिखा है- I WANT WORLD SYMPATHY IN THIS BATTLE OF RIGHT AGAINST MIGHT अर्थात मैं शक्ति के विरुद्ध सही के इस युद्ध में विश्व की सहानुभूति चाहता हूँ। यह संदेश दांडी से दिया गया है। नमक सत्याग्रह संदर्भ में जारी दो टिकिटों के सेट में एक ६ रुपये तथा दूसरा ११ रूपये का है।
सुनहरी पृष्ठभूमि पर जारी किये गए दो टिकिटों के सेट में गांधी जी दांडी की ओर बढ़ते हुए तथा नमक बनाते हुए चित्रित है।
तीसरे टिकिट पर हिंदी में संदेश है "करेंगे या मरेंगे" .
भारत गणराज्य के ५० वर्ष होने पर गांधी जी के राष्ट्रपिता होने को संकेतित करते डाक टिकिट की विशेषता उसकी सादगी है। श्वेत पृष्ठ भूमि में श्याम रेखाओं से अंकित गाँधी जी अज्ञात की ओर बढ़ते चित्रित हैं। उनके हाथ में लाठी है। अन्य डाक टिकिट पर शांति निकेतन के प्रख्यात चित्रकार आचार्य नंदलाल बसु द्वारा निर्मित रेखांकन है इसका विषय 'एकला चलो रे' है।
गांधी जी को बैरिस्टर और जनता के रूप में चित्रित किया गया है लाल रंग के दो टिकिटों के सेट में। विशेषता यह कि बैरिस्टर के हस्ताक्षर अंग्रेजी और जन नेता के हस्ताक्षर हिंदी में हैं।
अंग्रेजों भारत छोडो आंदोलन की याद में जारी डाक टिकिट पर गाँधी-नेहरू, तिरंगा और आचार्य कृपलानी अंकित हैं -
सहस्त्रब्दि पुरुष के रूप में गाँधी जी को स्मरण करते हुए जारी किये गए टिकिट में प्रार्थना सभा की ओर जाते गांधी जी तथा चिंतन लीन गाँधी अंकित हैं।
विश्व बाल वर्ष १९७९ के अवसर पर जारी डाक टिकिट पर शिशु के साथ लाड लड़ाते बापू की छवि अंकित है -
चार टिकिटों के विशेष समूह में २ रु., ६रु., १०रु. व ११रु. के टिकिट हैं। इन पर गाँधी जी के जीवन के विविध प्रसंग चित्रित हैं -
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना के १०० वर्ष होने पर जारी ४ डाक टिकिटों के सेट पर म. गाँधी के साथ सभी कॉंग्रेसध्यक्षों के चित्र अंकित हैं। यह विशेष टिकिट अपने में पूरा इतिहास समेटे है।
गांधी जी पर विशेष पोस्टकार्ड, अंतर्देशीय और प्रथम दिवस आवरण भी जारी किये गए हैं।
भारत के अतिरिक्त सौ से अधिक देशों ने गाँधी जी पर डाक टिकिट जारी किये हैं। डाक विभाग ने इनके अतिरिक्त गाँधी जी पर अनेक सर्विस स्टैम्प भी जारी किये हैं। डाकटिकिट संग्राहकों में गाँधी जी पर जारी किये गए टिकिट सर्वाधिक लोकप्रिय हैं।
***
दोहे - गाँधी दर्शन
आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल'
*
ट्रस्टीशिप सिद्धांत लें, पूँजीपति यदि सीख
सबसे आगे सकेगा, देश हमारा दीख
*
लोकतंत्र में जब न हो, आपस में संवाद
तब बरबस आते हमें, गाँधी जी ही याद
*
क्या गाँधी के पूर्व था, क्या गाँधी के बाद?
आओ! हम आकलन करें, समय न कर बर्बाद
*
आम आदमी सम जिए, पर छू पाए व्योम
हम भी गाँधी को समझ, अब हो पाएँ ओम
*
कहें अतिथि की शान में, जब मन से कुछ बात
दोहा बनता तुरत ही, बिना बात हो बात
*
समय नहीं रुकता कभी, चले समय के साथ
दोहा साक्षी समय का, रखे उठाकर माथ
*
दोहा दुनिया का सतत, होता है विस्तार
जितना गहरे उतरते, पाते थाह अपार
*
सबसे आगे सकेगा, देश हमारा दीख
*
लोकतंत्र में जब न हो, आपस में संवाद
तब बरबस आते हमें, गाँधी जी ही याद
*
क्या गाँधी के पूर्व था, क्या गाँधी के बाद?
आओ! हम आकलन करें, समय न कर बर्बाद
*
आम आदमी सम जिए, पर छू पाए व्योम
हम भी गाँधी को समझ, अब हो पाएँ ओम
*
कहें अतिथि की शान में, जब मन से कुछ बात
दोहा बनता तुरत ही, बिना बात हो बात
*
समय नहीं रुकता कभी, चले समय के साथ
दोहा साक्षी समय का, रखे उठाकर माथ
*
दोहा दुनिया का सतत, होता है विस्तार
जितना गहरे उतरते, पाते थाह अपार
*
लघुकथा -
मुखड़ा देख ले
आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल'
*
कक्ष का द्वार खोलते ही चोंक पड़े संपादक जी|
गाँधी जी के चित्र के ठीक नीचे विराजमान तीनों बंदर इधर-उधर ताकते हुए मुस्कुरा रहे थे.
आँखें फाड़कर घूरते हुए पहले बंदर के गले में लटकी पट्टी पर लिखा था- 'बुरा ही देखो'|
हाथ में माइक पकड़े दिगज नेता की तरह मुंह फाड़े दूसरे बंदर का कंठहार बनी पट्टी पर अंकित था- 'बुरा ही बोलो'|
'बुरा ही सुनो' की पट्टी दीवार से कान सटाए तीसरे बंदर के गले की शोभा बढ़ा रही थी|
'अरे! क्या हो गया तुम तीनों को?' गले की पट्टियाँ बदलकर मुट्ठी में नोट थामकर मेज के नीचे हाथ क्यों छिपाए हो? संपादक जी ने डपटते हुए पूछा|
'हमने हर दिन आपसे कुछ न कुछ सीखा है| कोई कमी रह गई हो तो बताएं|'
ठगे से खड़े संपादक जी के कानों में गूँज रहा था- 'मुखडा देख ले प्राणी जरा दर्पण में ...'
******************
गाँधी जी के चित्र के ठीक नीचे विराजमान तीनों बंदर इधर-उधर ताकते हुए मुस्कुरा रहे थे.
आँखें फाड़कर घूरते हुए पहले बंदर के गले में लटकी पट्टी पर लिखा था- 'बुरा ही देखो'|
हाथ में माइक पकड़े दिगज नेता की तरह मुंह फाड़े दूसरे बंदर का कंठहार बनी पट्टी पर अंकित था- 'बुरा ही बोलो'|
'बुरा ही सुनो' की पट्टी दीवार से कान सटाए तीसरे बंदर के गले की शोभा बढ़ा रही थी|
'अरे! क्या हो गया तुम तीनों को?' गले की पट्टियाँ बदलकर मुट्ठी में नोट थामकर मेज के नीचे हाथ क्यों छिपाए हो? संपादक जी ने डपटते हुए पूछा|
'हमने हर दिन आपसे कुछ न कुछ सीखा है| कोई कमी रह गई हो तो बताएं|'
ठगे से खड़े संपादक जी के कानों में गूँज रहा था- 'मुखडा देख ले प्राणी जरा दर्पण में ...'
******************
लघुकथा:
निपूती भली थी
-आचार्य संजीव 'सलिल'
बापू के निर्वाण दिवस पर देश के नेताओं, चमचों एवं अधिकारियों ने उनके आदर्शों का अनुकरण करने की शपथ ली. अख़बारों और दूरदर्शनी चैनलों ने इसे प्रमुखता से प्रचारित किया.
अगले दिन एक तिहाई अर्थात नेताओं और चमचों ने अपनी आँखों पर हाथ रख कर कर्तव्य की इति श्री कर ली. उसके बाद दूसरे तिहाई अर्थात अधिकारियों ने कानों पर हाथ रख लिए, तीसरे दिन शेष तिहाई अर्थात पत्रकारों ने मुँह पर हाथ रखे तो भारत माता प्रसन्न हुई कि देर से ही सही इन्हे सदबुद्धि तो आई.
उत्सुकतावश भारत माता ने नेताओं के नयनों पर से हाथ हटाया तो देखा वे आँखें मूंदे जनगण के दुःख-दर्दों से दूर सता और सम्पत्ति जुटाने में लीन थे. दुखी होकर भारत माता ने दूसरे बेटे अर्थात अधिकारियों के कानों पर रखे हाथों को हटाया तो देखा वे आम आदमी की पीडाओं की अनसुनी कर पद के मद में मनमानी कर रहे थे. नाराज भारत माता ने तीसरे पुत्र अर्थात पत्रकारों के मुँह पर रखे हाथ हटाये तो देखा नेताओं और अधिकारियों से मिले विज्ञापनों से उसका मुँह बंद था और वह दोनों की मिथ्या महिमा गा कर ख़ुद को धन्य मान रहा था.
अपनी सामान्य संतानों के प्रति तीनों की लापरवाही से क्षुब्ध भारत माता के मुँह से निकला- 'ऐसे पूतों से तो मैं निपूती ही भली थी.
* * * * *
निपूती भली थी
-आचार्य संजीव 'सलिल'
बापू के निर्वाण दिवस पर देश के नेताओं, चमचों एवं अधिकारियों ने उनके आदर्शों का अनुकरण करने की शपथ ली. अख़बारों और दूरदर्शनी चैनलों ने इसे प्रमुखता से प्रचारित किया.
अगले दिन एक तिहाई अर्थात नेताओं और चमचों ने अपनी आँखों पर हाथ रख कर कर्तव्य की इति श्री कर ली. उसके बाद दूसरे तिहाई अर्थात अधिकारियों ने कानों पर हाथ रख लिए, तीसरे दिन शेष तिहाई अर्थात पत्रकारों ने मुँह पर हाथ रखे तो भारत माता प्रसन्न हुई कि देर से ही सही इन्हे सदबुद्धि तो आई.
उत्सुकतावश भारत माता ने नेताओं के नयनों पर से हाथ हटाया तो देखा वे आँखें मूंदे जनगण के दुःख-दर्दों से दूर सता और सम्पत्ति जुटाने में लीन थे. दुखी होकर भारत माता ने दूसरे बेटे अर्थात अधिकारियों के कानों पर रखे हाथों को हटाया तो देखा वे आम आदमी की पीडाओं की अनसुनी कर पद के मद में मनमानी कर रहे थे. नाराज भारत माता ने तीसरे पुत्र अर्थात पत्रकारों के मुँह पर रखे हाथ हटाये तो देखा नेताओं और अधिकारियों से मिले विज्ञापनों से उसका मुँह बंद था और वह दोनों की मिथ्या महिमा गा कर ख़ुद को धन्य मान रहा था.
अपनी सामान्य संतानों के प्रति तीनों की लापरवाही से क्षुब्ध भारत माता के मुँह से निकला- 'ऐसे पूतों से तो मैं निपूती ही भली थी.
* * * * *