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शुक्रवार, 20 जून 2014

chitra salila: sahityakar.



चित्र सलिला:
हिंदी साहित्य के पुरोधा 

कान्यकुब्ज कालेज १९६१ ६२ : बैठे हुए बाँए से सर्वश्री कांति मोहन अवस्थी (प्रिन्सिपल, इण्टर विभाग), पं॰छंगालाल मालवीय (अध्यक्ष, हिन्दी विभाग), पं॰ नरेन्द्र शर्मा, कविवर सुमित्रानंदन पंत, प्रिंसिपल मदनगोपाल मिश्र, भगवती चरण वर्मा, अमृतलाल नागर, लक्ष्मीशंकर मिश्र 'निशंक', डा॰ महेन्द्र नाथ मिश्र। खड़े हुए बाँए से सर्वश्री कृपाशंकर तिवारी, श्रीपाल सिंह, हरीकृष्ण शर्मा (अध्यक्ष, संसद), सत्यप्रकाश राना (प्रधानमंत्री, संसद), सतीश चन्द्र बाजपेयी, दयाशंकर दीक्षित (सभापति, हिंदी परिषद), परमिथलेश कुमार शुक्लम लाल मणि मिश्र, कु॰ प्रभा शर्मा, कु॰ आशा मेहरोत्रा 

शनिवार, 3 अगस्त 2013

virasat : rathwan -sw. narendra sharma

https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgIT4IwYcPHjyoa2Y2i6pU9R-CObz3ebcePTwExv__h6RgLMAI9nfGY6pC6gyFWnGMKEn61DVifJyYufRI1xZ1QCQs95bkkLZ7tIeH9z102S5M1WdImNWBh81EH90V6fIAuHHVc6NS8wac/s1600/2.jpghttps://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiH1WBFrLztC4bZ8UnfZaJN-pldSGjbwzvKpGFqPjHnvc2nrLqEzRnHZQqrHNI-0JR9bn9Itud_qCyZch1QZ3L-OYQgEUKGP6fhaJMRX1pEAqrEzwBzNLu6qRuVvu3y1S3WDQ5OaaYAvQw/s1600/Lavanya-shah.jpg*विरासत:
रथवान  
स्व. नरेन्द्र शर्मा
साभार : लावण्या शाह 

*
हम रथवान, ब्याहली रथ में,
रोको मत पथ में
हमें तुम, रोको मत पथ में।

माना, हम साथी जीवन के,
पर तुम तन के हो, हम मन के।
हरि समरथ में नहीं, तुम्हारी गति हैं मन्मथ में।
हमें तुम, रोको मत पथ में।


हम हरि के धन के रथ-वाहक,
तुम तस्कर, पर-धन के गाहक 
हम हैं, परमारथ-पथ-गामी, तुम रत स्वारथ में।
हमें तुम, रोको मत पथ में।

दूर पिया, अति आतुर दुलहन,
हमसे मत उलझो तुम इस क्षण।
अरथ न कुछ भी हाथ लगेगा, ऐसे अनरथ में।
हमें तुम, रोको मत पथ में।

अनधिकार कर जतन थके तुम,
छाया भी पर छू न सके तुम!
सदा-स्वरूपा एक सदृश वह पथ के इति-अथ में!
हमें तुम, रोको मत पथ में।

शशिमुख पर घूँघट पट झीना
चितवन दिव्य-स्वप्न-लवलीना,
दरस-आस में बिन्धा हुआ मन-मोती है नथ में।
हमें तुम, रोको मत पथ में। 

हम रथवान ब्याहली रथ में,
हमें तुम, रोको मत पथ में।

***

मंगलवार, 25 अक्टूबर 2011

ज्योति पर्व : ज्योति वंदना- नरेन्द्र शर्मा / लावण्या शाह

ज्योति पर्व : ज्योति वंदना / नरेन्द्र शर्मा 
 
जीवन की अंधियारी
रात हो उजारी!
 
धरती पर धरो चरण
तिमिर-तम हारी 
परम व्योमचारी!
 
चरण धरो, दीपंकर,
जाए कट तिमिर-पाश!
 
दिशि-दिशि में चरण धूलि
छाए बन कर-प्रकाश!
 
आओ, नक्षत्र-पुरुष,
गगन-वन-विहारी 
परम व्योमचारी!
 
आओ तुम, दीपों को 
निरावरण करे निशा!
 
चरणों में स्वर्ण-हास 
बिखरा दे दिशा-दिशा!
 
पा कर आलोक,
मृत्यु-लोक हो सुखारी 
नयन हों पुजारी!
 
दीपावली मंगलमय हो / लावण्या शाह
 
दीप शिखा की लौ कहती है, 
व्यथा कथा हर घर रहती है,
कभी छिपी तो कभी मुखर बन, 
अश्रु हास बन बन बहती है 
हाँ व्यथा सखी, हर घर रहती है ..
बिछुडे स्वजन की याद कभी, 
निर्धन की लालसा ज्योँ थकी थकी,
हारी ममता की आँखोँ मेँ नमी, 
बन कर, बह कर, चुप सी रहती है,
हाँ व्यथा सखी, हर घर रहती है !
नत मस्तक, मैँ दिवला, बार नमूँ 
आरती, माँ, महालक्ष्मी मैँ तेरी करूँ,
आओ घर घर माँ, यही आज कहूँ,
दुखियोँ को सुख दो, यह बिनती करूँ,
माँ, देक्ग, दिया, अब, प्रज्वलित कर दूँ !
दीपावली आई फिर आँगन, बन्दनवार, 
रँगोली रची सुहावन !
किलकारी से गूँजा रे प्राँगन, मिष्ठान्न 
अन्न धृत मेवा मन भावन !
देख सखी, यहाँ फूलझडी मुस्कावन !
जीवन बीता जाता ऋउतुओँ के सँग सँग,
हो सबको, दीपावली का अभिनँदन !
नव -वर्ष की बधई, हो, नित नव -रस !
http://lavanyam-antarman.blogspot.com/