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मंगलवार, 22 फ़रवरी 2022

सॉनेट, छंद चौबोला, नवगीत, सवैया, हाइकु मैथिली, सदोका, मुक्तिका

सॉनेट 
सूरज 
रोज निकलता नभ पर सूरज। 
उषा-धरा को तकता सूरज। 
आँख सेकता घर-घर सूरज।।
फिर भी कभी न थकता सूरज।।

रुके नहीं यायावर सूरज। 
दोपहरी भर रास रचाता। 
झुके नहीं, पछताकर सूरज।।
संध्या को ठेंगा दिखलाता।।

रजनी को अपनाता सूरज।
सारी रैन बिताता सूरज।।
राज नहीं बतलाता सूरज।  
हाथ नहीं फिर आता सूरज।।

जग में पूजा जाता सूरज। 
क्यों आँखें दिखलाता सूरज।। 
सॉनेट
आँसू

यम सम्मुख सब झुके राम रे!
बन न सके क्यों कहो काम रे!
हाय! न यम से बचे राम रे!
मिट ही जाते सकल नाम रे!


कहें विधाता हुआ वाम रे!
हाथ न लेता कभी थाम रे!
मिटना तो क्यों दिया चाम रे!
हुई भोर की सदा शाम रे!

नाहक करते इंतिजाम रे!
यहाँ-वहाँ है कहाँ गाम रे!
कौन कहे कब हो विराम रे!
खास न कोई सभी आम रे!

काश हो सकें हम अकाम रे!
सम हो पाए छाँह-घाम रे!
२२-२-२०२२
•••
सॉनेट
मातृभाषा


माँ की भाषा केवल ममता।
वात्सल्य व्याकरण अनोखा।
हर अक्षर है प्यारा चोखा।।
खूब लुटाती नेह न कमता।।


बारहखड़ी दूध की धारा।
शब्द-शब्द का अर्थ त्याग है।
वाक्य-छंद में भरा राग है।।
कथ्य गीत का तन-मन वारा।।

अलंकार लोरी में अनगिन।
रस सागर की लहरें मत गिन।
शिशु बन हो आनंदित पल-छिन।।

पल में तोला, पल में माशा।
श्वास-श्वास दे जन्म तराशा।
माँ की भाषा दूध-बताशा।।
२२-२-२०३२
•••
महाशोक

मेरे अग्रजवत भाई अमरनाथ जी की जीवनसंगिनी शकुंतला जी का देहावसान २१ फरवरी की रात ८ बजे लखनऊ में हो गया। पूज्या भाभी श्री ममता की खान थीं। जटिलतम परिस्थितियों में भी अडिग रहकर मुस्कुराते रहना उनकी विशेषता थी। उनके हाथों में बरकत थी। उनके बिना लखनऊ सूना सा हो गया। अभियंता आंदोलनों में वे अमरनाथ जी की शक्ति रहीं। संपादक, महामंत्री, साहित्यकार, छंद शास्त्री अमरनाथ जी की हर भूमिका में उनका अवदान आधारशिला की तरह रहा। वे स्वयं भी निरंतर पढ़ती-बढ़ती रहीं। अधिवक्ता के रूप में असहायों की सहायता ही उनका ध्येय था। कई कई दिनों तक अमरनाथ के आवास पर की बार रुका, भाभी जी ने सदा स्नेह लुटाया। जब जब हम दोनों में लंबी चर्चायें होतीं, वे धैर्य से सुनतीं, उग्र न होने देतीं। उनके हाथों में रस था। सादा भोजन भी तृप्ति देता था। क्या भूलूँ क्या याद करूँ?
शत शत प्रणाम। 
*
हे क्षणभंगुर भव राम राम
भाभी श्री को अगणित प्रणाम।

वे जीवट की परिभाषा थीं।
वे अन्नपूर्णा आशा थीं।।

उनमें थीं शारद-रमा-उमा।
उनमें जीवित थी सदा क्षमा।।

वे अमरनाथ का संबल थीं।
वे नाद अनाहद अविचल थीं।।

सौभाग्य मिली पद-रज मुझको।
हा! चली गईं तुम तज जग को।।

सुधियों से जा न सकोगी तुम।
संबल बन सदा मिलेगी तुम।।

मुस्कान तुम्हारी माता सी।
तुम अद्भुत ममतादाता थीं।।

तुमसे पाया कितना दुलार।
प्रेरणा मिली है बार-बार।।

छोड़ी है देह, नहीं नाता।
तुम होगी साथ सदा माता।।

यादों को सिहर सहेजेंगे।
सिर पर है हाथ समझ लेंगे।।
***
सवैया
गई हो तुम नहीं, हो दिलों में बसी, गई है देह ही, रहोगी तुम सदा।
तुम्हीं से मिल रही, है हमें प्रेरणा, रहेंगे मोह से, हमेशा हम जुदा।
तजेंगे हम नहीं, जो लिया काम है, करेंगे नित्य ही, न चाहें फल कभी।
पुराने वसन को, है दिया त्याग तो, नया ले वस्त्र आ, मिलोगी फिर यहीं।
*
***
मुक्तिका
*
कुछ सपने हैं, कुछ सवाल भी
सादा लेकिन बाकमाल भी
सावन - फागुन, ईद - दिवाली
मिलकर हो जाते निहाल जी
मौन निहारा जब जब तुमको
चेहरा क्यों होता गुलाल जी
हो रजनीश गजब ढाते हो
हाथों में लेकर मशाल जी
ब्रह्मानंद अगर पाना है
सलिल संग कर लो धमाल जी
२२-२-२०२०
***
नवगीत
है दुर्योधन
*
गुरु से
काम निकाल रहा,
सम्मान जताना
सीख न पाया
है दुर्योधन.
*
कहते हैं इतिहास स्वयं को दुहराता है.
सुनते हैं जो सबक न सीखे पछताता है.
लिखते हैं कवि-लेखक, पंडित कथा सुनाते-
पढ़ता है विद्यार्थी लेकिन बिसराता है.
खुद ही
नाम उछल रहा,
पर दाम चुकाना
जान न पाया
है दुर्योधन.
*
जो बोता-उपजाता, वह भूखा मरता है.
जो करता मेहनत वह पेट नहीं भरता है.
जो प्रतिनिधि-सेवक वह करता ऐश हमेशा-
दंदी-फंदी सेठ ना डर, मन की करता है.
लूट रहा,
छल-कपट, कर्ज
लेकर लौटाना
जान न पाया
है दुर्योधन.
*
वादा करता नेता, कब पूरा करता है?
अपराधी कब न्याय-पुलिस से कुछ डरता है?
जो सज्जन-ईमानदार है आम आदमी-
जिंदा रहने की खातिर पल-पल मरता है.
बात विदुर की
मान शकुनी से
पिंड छुड़ाना
जान न पाया
है दुर्योधन.
***​
सदोका पंचक
*
ई​ कविता में
करते काव्य स्नान ​
कवि​-कवयित्रियाँ .
सार्थक​ होता
जन्म निरख कर
दिव्य भाव छवियाँ।
*
ममता मिले
मन-कुसुम खिले,
सदोका-बगिया में।
क्षण में दिखी
छवि सस्मित मिले
कवि की डलिया में।
*
​न​ नौ नगद ​
न​ तेरह उधार,
लोन ले, हो फरार।
मस्तियाँ कर
किसी से मत डर
जिंदगी है बहार।
*
धूप बिखरी
कनकाभित छवि
वसुंधरा निखरी।
पंछी चहके
हुलस, न बहके
सुनयना सँवरी।
* ​
श्लोक गुंजित
मन भाव विभोर,
पूज्य माखनचोर।
उठा हर्षित
सक्रिय नीरव भी
क्यों हो रहा शोर?
२२-२-२०१८
***
मैथिली हाइकु
(त्रुटियों हेतु क्षमा प्रार्थना सहित)
१.
ई दुनिया छै
प्रभुक बनाओल
प्रेम स रहू
२.
लिट्टी-चोखा
मधुबनी पेंटिंग
मिथिला केर
३.
सभ सs प्यार
घृणा ककरो सय
नैई करब
४.
संपूर्ण क्रांति
जयप्रकाश बाबू
बिसरि गेल
५.
बिहारी जन
भगायल जैतई
दोसर राज?
६.
चलि पड़ल
विकासक राह प'
बिहारी बाबू
७.
चलै लागल
विकासक बयार
नीक धारणा
८.
हम्मर गाम
भगवाने के नाम
लSक चलब
९.
हाल-बेहाल
जनता परेशान
मँहगाई से
१०.
लोकतंत्र में
चुनावक तैयारी
बड़का बात
२२-२-२०१७
***
नवगीत
भैया जी की जय
*
भाभी जी भाषण में बोलीं
भैया जी की जय बोलो.
*
फ़िक्र तुम्हारी कर वे दुबले
उतने ही जिंतने हैं बगुले
बगुलों जैसा उजला कुरता
सत्ता की मछली झट निगले
लैपटॉप की भीख तुम्हें दी
जुबां नहीं अपनी खोलो
भाभी जी भाषण में बोलीं
भैया जी की जय बोलो.
*
बहिना पीछे रहती कैसे?
झपट उठी झट जैसे-तैसे
आम लोग लख हक्के-बक्के
अटल इरादे इनके पक्के
गगनविहारी साईकिलधारी
वजन बात का मत तोलो
भाभी जी भाषण में बोलीं
भैया जी की जय बोलो.
*
धन्य बुआ जी! आग उगलतीं
फूट देख, चुप रहीं सुलगतीं
चाह रहीं जनता को ठगना
चलता बस कुर्सियाँ उलटतीं
चल-फिर कर भी क्या कर लोगे?
बनो मूर्ति सब, मत डोलो
भाभी जी भाषण में बोलीं
भैया जी की जय बोलो.
*
भाई-भतीजा मिल दें गच्चा
क्या कर लेंगे बोलो चच्चा?
एक जताता है हक अपना
दूजा कहे चबा लूँ कच्चा
दाग लग रहा है निष्ठा पर
कथनी-करनी भी तोलो
भाभी जी भाषण में बोलीं
भैया जी की जय बोलो.
*
छप्पन इंची छाती-जुमले
काले धन की रौंदी फसलें
चैन न ले, ना लेने देता
करे सर्जिकल, रोके घपले
मत मत-दान करो, मत बेचो
सोच-समझ दो, फिर सो लो
भाभी जी भाषण में बोलीं
भैया जी की जय बोलो.
२२-२-२०१७
***
नवगीत
.
दहकते पलाश
फिर पहाड़ों पर.
.
हुलस रहा फागुन
बौराया है
बौराया अमुआ
इतराया है
मदिराया महुआ
खिल झाड़ों पर
.
विजया को घोंटता
कबीरा है
विजया के भाल पर
अबीरा है
ढोलक दे थपकियाँ
किवाड़ों पर
.
नखरैली पिचकारी
छिप जाती
हाथ में गुलाल के
नहीं आती
पसरे निर्लज्ज हँस
निवाड़ों पर
२२-२-२०१५
***
छंद सलिला:
१५ मात्रा का तैथिक छंद : चौबोला
संजीव
*
लक्षण: २ पद, ४ चरण, प्रतिचरण १५ मात्रा, चरणान्त लघु गुरु
लक्षण छंद:
बाँचौ बोला तिथि पर कथा, अठ-सत मासा भोगे व्यथा
लघु गुरु हो तो सब कुछ भला, उलटा हो तो विधि ने छला
(संकेत: तिथि = १५ मात्रा, अठ-सत = आठ-सात पर यति, लघु-गुरु चरणान्त)
उदाहरण:
१. अष्टमी-सप्तमी शुभ सदा, हो वही विधि लिखा जो बदा
कौन किसका हुआ कब कहो, 'सलिल' जल में कमल सम रहो
२. निर्झरिणी जब कलकल बहे, तब निर्मल जल धारा गहे
रुके तड़ाग में पंक घुले, हो सार्थक यदि पंकज खिले
३. लोकतंत्र की महिमा यही, ताकत जन के हाथों रही
जिसको चाहा उसको चुना, जिसे न चाहा बाहर किया
२२-२-२०१४
***

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