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सोमवार, 29 फ़रवरी 2016

navgeet

नवगीत:
आरक्षण
*
जिनको खुद पर
नहीं भरोसा
आरक्षण की भीख माँगते।
*
धन-दौलत, जमीन पाकर भी
बने हुए हैं अधम भिखारी।
शासन सब कुछ छीने इनसे
तब समझेंगे ये लाचारी।
लात लगाकर इनको इनसे
करा सके पीड़ित बेगारी।
हो आरक्षण उनका
जो बेबस
मुट्ठी भर धूल फाँकते।
*
जिसने आग लगाई जी भर
बैैंक और दुकानें लूटीं।
धन-सम्पति का नाश किया
सब आस भाई-चारे की टूटी।
नारी का अपमान किया  
अब रोएँ, इनकी किस्मत फूटी।
कोई न देना बेटी,
हो निरवंशी
भटकें थूक-चाटते।
*
आस्तीन के साँप, देशद्रोही,
मक्कार, अमानव हैं ये।
जो अबला की इज्जत लूटें
बँधिया कर दो, दानव हैं ये।
इन्हें न कोई राखी बाँधे
नहीं बहन के लायक हैं ये।
न्यायालय दे दण्ड
न क्यों फाँसी पर
जुल्म-गुनाह टाँगते?
***

laghukatha

लघुकथा
स्वतंत्रता
*
जातीय आरक्षण आन्दोलन में आगजनी, गुंडागर्दी, दुराचार, वहशत की सीमा को पार करने के बाद नेताओं और पुलिस द्वारा घटनाओं को झुठलाना, उसी जाति के अधिकारियों का जाँच दल बनाना, खेतों में बिखरे अंतर्वस्त्रों को देखकर भी नकारना, बार-बार अनुरोध किये जाने पर भी पीड़ितों का सामने न आना, राजनैतिक दलों का बर्बाद हो चुके लोगों के प्रति कोई सहानुभूति तक न रखना क्या संकेत करता है?
यही कि हमने उगायी है अविश्वास की फसल चौपाल पर हो रही चर्चा सरपंच को देखते ही थम गयी, वक्ता गण देने लगे आरक्षण के पक्ष में तर्क, दबंग सरपंच के हाथ में बंदूक को देख चिथड़ों में खुद को ढाँकने का असफल प्रयास करती सिसकती रह गयी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता ।
***

laghukatha

लघुकथा:
घर
*
दंगे, दुराचार, आगजनी, गुंडागर्दी के बाद सस्ती लोकप्रियता और खबरों में छाने के इरादे से बगुले जैसे सफेद वस्त्र पहने नेताजी जन संपर्क के लिये निकले। पीछे-पीछे चमचों का झुण्ड, बिके हुए कैमरे और मरी हुई आत्मा वाली खाखी वर्दी।
बर्बाद हो चुके एक परिवार की झोपड़ी पहुँचते ही छोटी सी बच्ची ने मुँह पर दरवाजा बंद करते हुए कहा 'आरक्षण की भीख चाहनेवालों के लिये यहाँ आना मना है। यह संसद नहीं, भारत के नागरिक का घर है।
***

laghukatha

लघुकथा
आदर्श
*
त्रिवेदी जी ब्राम्हण सभा के मंच से दहेज़ के विरुद्ध धुआंधार भाषण देकर नीचे उतरे। पडोसी अपने मित्र के कान में फुसफुसाया 'बुढ़ऊ ने अपने बेटों की शादी में तो जमकर माल खेंचा लिया, लडकी वालों को नीलाम होने की हालत में ला दिया और अब दहेज़ के विरोध में भाषण दे रहा है, कपटी कहीं का'।
'काहे नहीं देगा अब एइकि मोंडी जो ब्याहबे खों है'. -दूसरे ने कहा.
***

शनिवार, 27 फ़रवरी 2016

doha salila

दोहा सलिला:
नेताओं की निपुणता, देख हुआ है दंग
गिरगिट चाहे सीखना, कैसे बदले रंग?
*
रंग भंग में डालकर, किया रंग में भंग
संसद में होता सखे, बिना पिये हुड़दंग
*
दल-दल ने दलदल मचा, दल छाती पर दाल
जाम आदमी का किया, जीना आज मुहाल
*
मत दाता बन जान ले, मत का दाता मोल
तब मतदाता बदल दे, संसद का भूगोल
*
स्मृति से माया कहे, दे-दे अपना शीश
माया से स्मृति कहे, ले जा भेज कपीश
*
एक दूसरे को छलें, देकर भ्रामक तर्क
नेता-अभिनेता हुए, एक न बाकी फर्क
*
सरहद पर सुनवाइये, बहसें-भाषण खूब
जान बचायें भागकर, शत्रु सिपाही ऊब
*

muktak

मुक्तक:
केवल दोष दिखाना ही पर्याप्त नहीं होता
जो न बदलता मिट जाता है, अगर रहा रोता
अगर न उत्तर खोजोगे तो खुद सवाल होगे
फसल ऊगती तभी बीज जब कोई कहीं बोता
*
बैठ हाथ पर हाथ रखे गर चाहोगे बदलाव
नहीं भरेंगे, सिर्फ बढ़ेंगे जो तन-मन पर घाव
अगर बढ़ेगी क्रय क्षमता तो कहता हूँ मैं सत्य
बुरा न मानोगे चाहे जितने बढ़ जाएँ भाव
*

dwipadiyaan (ash'aar)

द्विपदियाँ (अश'आर)
*
औरों के ऐब देखकर मन खुश बहुत हुआ
खुद पर पड़ी नज़र तो तना सर ही झुक गया
*
तुम पर उठाई एक, उठी तीन अँगुलियाँ
खुद की तरफ, ये देख कर चक्कर ही आ गया
*
हो आईने से दुश्मनी या दोस्ती 'सलिल'
क्या फर्क? जब मिलेगा, कहेगा वो सच सदा
*
देवों को पूजते हैं जो वो भोग दिखाकर
खुद खा रहे, ये सोच 'इससे कोई डर नहीं'
*

laghukatha:

लघुकथा: संजीव
कानून के रखवाले 
*
हमने आरोपी को जमकर सबक सिखाया, उसके कपड़े गीले हो गये, बोलती बंद हो गयी। अब किसी की हिम्मत नहीं होगी हमारा विरोध करने की। हम अपने देश में ऐसा नहीं होने दे सकते। वक्ता अपने कृत्य का बखान करते हुए खुद को महिमामंडित कर रहे थे। 

उनकी बात पूर्ण होते ही एक श्रोता ने पूछा आप तो संविधान और कानून के जानकार होने का दवा करते हैं क्या बता सकेंगे कि संविधान का कौन सा अनुच्छेद या किस कानून की कौन सी कंडिका या धारा किसी नागरिक को अपनी विचारधारा से असहमत अन्य नागरिक को प्रतिबंधित या दंडित करने का धिकार देती है?

क्या आपसे भिन्न विचार धारा के नगरिकों को भी यह अधिकार है कि वे आपको घेरकर आपके साथ ऐसा ही व्यवहार करें?

यह भी बतायें कि अगर नागरिकों को एक-दूसरे को दंड देने का अधिकार है तो न्यायालय किसलिए हैं? क्या इससे कानून-व्यवस्था नष्ट नहीं हो जाएगी? 

वकील होने के नाते आप खुद को कानून का रखवाला कहते हैं क्या कानून को हाथ में लेने के लिये आपको सामान्य नागरिक की तुलना में अधिक कड़ी सजा नहीं मिलना चाहिए?

प्रश्नों की बौछार के बीच निरुत्तर थे कानून के रखवाले।
***


navgeet

नवगीत:
जब तुम आईं
*
कितने रंग
घुले जीवन में
जब तुम आईं।
*
हल्दी-पीले हाथ द्वार पर
हुए सुशोभित।
लाल-लाल पग-चिन्ह धरा को
करें विभूषित।
हीरक लौंग, सुनहरे कंगन
करें विमोहित।
स्वर्ण सलाई ले
दीपक की
जोत मिलाईं।
*
गोर-काले भाल-बाल
नैना कजरारे।
मैया ममता के रंग रंगकर
नजर उतारे।
लिये शरारत का रंग देवर
नकल उतारे।
लिए चुहुल का
रंग, ननदी ने
गजल सुनाईं।
*
माणिक, मूंगा, मोती, पन्ना,
हीरा, नीलम,
लहसुनिया, पुखराज संग
गोमेद नयन नम।
नौरत्नों के नौ रंगों की
छटा हरे तम।
सतरंग साड़ी
नौरंग चूनर
मन को भाईं।
*
विरह-मिलन की धूप-छाँव
जाने कितने रंग।
नाना नाते नये जुड़े जितने
उतने संग।
तौर-तरीके, रीति-रस्म के
नये-नये ढंग।
नीर-क्षीर सी मिलीं, तनिक
पहले सँकुचाईं
***

शुक्रवार, 26 फ़रवरी 2016

navgeet

नवगीत:
तुम पर
*
तुम पर
खुद से अधिक भरोसा
मुझे रहा है।
*
बिना तुम्हारे
चल, गिर, उठ, बढ़
तुम तक आया।
कदम-कदम बढ़
जगह बना निज
तुमको लाया।
खुद को किया
समर्पित हँस, फिर
तुमको पाया।
खाली हाथ बढ़ाया
तेरा हाथ गहा है।
*
तन-मन-धन
कर तुझे समर्पित
रीत गया हूँ।
अदल-बदल दिल
हार मान कर
जीत गया हूँ।
आज-आज कर
पता यह चला
बीत गया हूँ।
ढाई आखर
की चादर को
मौन तहा है।
*
तुम पर
खुद से अधिक भरोसा
मुझे रहा है।
*  

navgeet

फागुनी नवगीत -
तुम क्या आयीं
*
तुम क्या आयीं
रंगों की बौछार हो गयी
*
बासंती मौसम फगुनाया
आम्र-मौर जी भर इठलाया
शुक-सारिका कबीरा गाते
खिल पलाश ने चंग बजाया
गौरा-बौरा भांग चढ़ाये
जली होलिका
कनककशिपु की हार हो गयी
तुम क्या आयीं
रंगों की बौछार हो गयी
*
ढपली-मादल, अम्बर बादल
हरित-पीत पत्ते नच पागल
लाल पलाश कुसुम्बी रंग बन
तन पर पड़े, करे मन घायल
करिया-गोरिया नैन लड़ायें
बैरन झरबेरी
सम भौजी छार हो गयी
तुम क्या आयीं
रंगों की बौछार हो गयी
*
अररर पकड़ो, तररर झपटा
सररर भागा, फररर लपटा
रतनारी भई सदा सुहागन
रुके न चम्पा कितनऊ डपटा
'सदा अनंद रहे' गा-गाखें
गुझिया-पपड़ी
खाबे खों तकरार हो गयी
तुम क्या आयीं
रंगों की बौछार हो गयी
*

navgeet

नवगीत:
तुमने 
*
तुमने 
सपने सत्य बनाये। 
*
कभी धूप बन,
कभी छाँव बन।
सावन-फागुन की 
सुन-गुन बन।
चूँ-चूँ, कलकल 
स्वर गुंजाये।
*
अंकुर ऊगे,
पल्लव विकसे।
कलिका महकी 
फल-तरु विहँसे।
मादक परिमल 
दस दिश छाये।
*
लिखी इबारत, 
हुई इबादत।
सचमुच रब की 
बहुत इनायत।
खनखन कंगन 
कुछ कह जाए।
*
बिना बताये 
दिया सहारा।
तम हर घर-
आँगन  उजियारा।
आधे थे 
पूरे हो पाये।
*
कोई न दूजा
इतना अपना।
खुली आँख का 
जो हो सपना।
श्वास-प्यास 
जय-जय गुंजाये।
***
१६-२-२०१६

गुरुवार, 25 फ़रवरी 2016

समीक्षा

पुस्तक सलिला:
सारस्वत सम्पदा का दीवाना ''शामियाना ३''
आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल'
*
[पुस्तक विवरण: शामियाना ३,सामूहिक काव्य संग्रह, संपादक अशोक खुराना, आकार डिमाई, आवरण सजिल्द बहुरंगी जैकेट सहित, पृष्ठ २४०, मूल्य २००/-, मूल्य २००/-, संपर्क- विजय नगर कॉलोनी, गेटवाली गली क्रमांक २, बदायूँ २४३६०१, चलभाष ९८३७० ३०३६९, दूरभाष ०५८३२ २२४४४९, shamiyanaashokkhurana@gmail.com]
*
साहित्य और समाज का संबंध अन्योन्याश्रित है. समाज साहित्य के सृजन का आधार होता है. साहित्य से समाज प्रभावित और परिवर्तित होता है. जिन्हें साहित्य के प्रभाव अथवा साहित्य से लाभ के विषय में शंका हो वे उत्तर प्रदेश के बदायूं जिले के शामियाना व्यवसायी श्री अशोक खुराना से मिलें। अशोक जी मेरठ विश्व विद्यालय से वोग्य में स्नातकोत्तर उपाधि प्राप्त कर शामियाना व्यवसाय से जुड़े और यही उनकी आजीविक का साधन है. व्यवसाय को आजीविका तो सभी बनाते हैं किंतु कुछ विरले संस्कारी जन व्यवसाय के माध्यम से समाज सेवा और संस्कार संवर्धन का कार्य भी करते हैं. अशोक जी ऐसे ही विरले व्यक्तित्वों में से एक हैं. वर्ष २०११ से प्रति वर्ष वे एक स्तरीय सामूहिक काव्य संकलन अपने व्यय से प्रकाशित और वितरित करते हैं. विवेच्य 'शामियाना ३' इस कड़ी का तीसरा संकलन है. इस संग्रह में लगभग ८० कवियों की पद्य रचनाएँ संकलित हैं.

निरंकारी बाबा हरदेव सिंह, बाबा फुलसन्दे वाले, बालकवि बैरागी, कुंवर बेचैन, डॉ. किशोर काबरा, आचार्य भगवत दुबे, डॉ. गार्गीशरण मिश्र 'मराल', आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल', डॉ. महाश्वेता चतुर्वेदी, डॉ. रसूल अहमद 'सागर', भगवान दास जैन, डॉ. दरवेश भारती, डॉ. फरीद अहमद 'फरीद', जावेद गोंडवी, कैलाश निगम, कुंवर कुसुमेश, खुमार देहलवी, मधुकर शैदाई, मनोज अबोध, डॉ. 'माया सिंह माया', डॉ. नलिनी विभा 'नाज़ली', ओमप्रकाश यति, शिव ओम अम्बर, डॉ. उदयभानु तिवारी 'मधुकर' आदि प्रतिष्ठित हस्ताक्षरों की रचनाएँ संग्रह की गरिमा वृद्धि कर रही हैं. संग्रह का वैशिष्ट्य 'शामियाना विषय पर केंद्रित होना है. सभी रचनाएँ शामियाना को लक्ष्य कर रची गयी हैं. ग्रन्थारंभ में गणेश-सरस्वती तथा मातृ वंदना कर पारंपरिक विधान का पालन किया गया है. अशोक खुराना, दीपक दानिश, बाबा हरदेव सिंह, बालकवि बैरागी, डॉ. कुँवर बेचैन के आलेख ग्रन्थ ओ महत्वपूर्ण बनाते हैं. ग्रन्थ के टंकण में पाठ्य शुद्धि पर पूरा ध्यान दिया गया है. कागज़, मुद्रण तथा बंधाई स्तरीय है.

कुछ रचनाओं की बानगी देखें-

जब मेरे सर पर आ गया मट्टी का शामियाना
उस वक़्त य रब मैंने तेरे हुस्न को पहचाना -बाबा फुलसंदेवाले 

खुद की जो नहीं होती इनायत शामियाने को 
तो हरगिज़ ही नहीं मिलती ये इज्जत शामियाने को -अशोक खुराना

धरा की शैया सुखद है
अमित नभ का शामियाना
संग लेकिन मनुज तेरे
कभी भी कुछ भी न जाना -आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल'

मित्रगण क्या मिले राह में
स्वस्तिप्रद शामियाने मिले -शिव ओम अम्बर

काटकर जंगल बसे जब से ठिकाने धूप के
हो गए तब से हरे ये शामियाने धूप के - सुरेश 'सपन' 

शामियाने के तले सबको बिठा 
समस्या का हल निकला आपने - आचार्य भगवत दुबे 

करे प्रतीक्षा / शामियाने में / बैठी दुल्हन - नमिता रस्तोगी 

चिरंतन स्वयं भव्य है शामियाना
कृपा से मिलेगा वरद आशियाना -डॉ. महाश्वेता चतुर्वेदी

उसकी रहमत का शामियाना है
जो मेरा कीमती खज़ाना है - डॉ. नलिनी विभा 'नाज़ली'

अशोक कुरान ने इस सारस्वत अनुष्ठान के माध्यम से अपनी मातृश्री के साथ, सरस्वती मैया और हिंदी मैया को भी खिराजे अक़ीदत पेश की है. उनका यह प्रयास आजीविकादाता शामियाने के पारी उनकी भावना को व्यक्त करने के साथ देश के ९ राज्यों के रचनाकारों को जोड़ने का सेतु भी बन सका है. वे साधुवाद के पात्र हैं. इस अंक में अधिकांश ग़ज़लें तथा कुछ गीत व् हाइकू का समावेश है. अगले अंक को विषय परिवर्तन के साथ विधा विशेष जैसे नवगीत, लघुकथा, व्यंग्य लेख आदि पर केंद्रित रखा जा सके तो इनका साहित्यिक महत्व भी बढ़ेगा।
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-समन्वयम् २०४ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन जबलपुर ४८२००१ / salil.sanjiv@gmail.com, ९४२५१८३२४४ 
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वैवाहिक सूची १

CHITRASHEESH VIVAH SANSTHAN : ETERNAL  KAYASTHA  AFFENITY JABALPUR

MATRIMONOAL   LIST:  1

BOYS:

1.       Dr. Vaidik shrivastava, 13-9-1985, 9.35 PM, akola maharasgtra, MD Pathology,  Practising Surat. Contact- sanjayshri1234@gmail.com

2.       Dr. Saxena, 19-2-1980, 23.31PM, Rajgarh  MP,  MPT, Practising Bhopal. Contact-  R.C.Saxena Retd. Dy. Collector,  rcs4938@gmail.com

3.       K. S. Shrivastava, 27-8-1986, 10.45 AM, Ranchi, 5’9”, BE Electrical, Manager Reliance Infrastructures Ltd. Hisar, 8.50 Lakh annually. Contact- Surendra Mohan Shrivastav 13/A Nlanda Nagr, Nari Road, Nagpur 26 M. 9823666739 / 9372206821.

4.       Sahai, 2-12-1984, 20.45 Pm, Rupnarayanpur W. Bengal, 6’1”, BTech, MBA, PGDM, Marketing Professional Tata Steel Nagpur, 20-25 Lakh, Non Veg. Contact- ranjan Sahay 9422064120 / 0712 2512907, ranjansahai@rediffmail.com.  

5.       Kayastha, 27-8-1986, 6’1”, BA, MBA, PGDM, Marketing professional Airtel, 20-27 lakh, Non veg, o+. Contact- 9793269000, surabhi.ranjan@gmail.com.

6.       Pankaj, 1-3-1988, 5.30 AM, kalian Mumbai, 6’, CA, Mumbai, Contact- 9987648127 / 9987648471.
7.       Shantanu Khare, 6-8-1986, 10 AM, Sagar MP, 5’10”, BE Computer Sc., MBA Marketing, Senior Manager JPCement  Jabalpur , 8 Lakh. Contact-  S K Khare 9425984904 / 9893455764.

8.       Rochak Sahai, 13-8-1987, 15.30 PM, Jabalpur MP, 5’8”, BE, TCS Maxico. Contact- nikunj_stv@rediffmail.com / sahai.prashant@gmail.com.

9.       Vishal Shrivastava, 22-2-1983, 3.04 AM, Raipur, 5’9”, B com, MBA, Share marketing, 2.5 – 3.0 Lakh. Contact 9755311800.


10.   Priyanshu Sahai, 22-2-1986, 10.30.PM, 5’5”, Gwalior, BEIT, In Pvt. Co. at Pune, 6 Lakh. Contact Alkendra sahai, Jiwajiganj, Argade ka Bada, Near Police Station, Gwalior 9425110780.               

बुधवार, 24 फ़रवरी 2016

navgeet

नवगीत:
ओ उपासनी
*
ओ उपासनी!
शीतल-निर्मल सलिल धार सी
सतत प्रवाहित
हो सुहासिनी!
*
भोर, दुपहरी, साँझ, रात तक
अथक, अनवरत
बहती रहतीं।
कौन बताये? किससे पूछें?
शांत-मौन क्यों
कभी न दहतीं?
हो सुहासिनी!
सबकी सब खुशियों का करती
अंतर्मन में  द्वारचार सी 
शीतल-निर्मल सलिल धार सी
सतत प्रवाहित
ओ उपासनी!
*
इधर लालिमा, उधर कालिमा
दीपशिखा सी
जलती रहतीं।
कोना-कोना किया प्रकाशित
अनगिन खुशियाँ
बिन गिन तहतीं।
चित प्रकाशनी!
श्वास-छंद की लय-गति-यति सँग 
मोह रहीं मन अलंकार सी  
शीतल-निर्मल सलिल धार सी
सतत प्रवाहित
ओ उपासनी!
*
चौका, कमरा, आँगन, परछी
पूजा, बैठक
हँसती रहतीं।
माँ-पापा, बेटी-बेटा, मैं
तकें सहारा
डिगीं, न ढहतीं
मन निवासिनी!
आपद-विपद, कष्ट-पीड़ा का
गुप-चुप करतीं फलाहार सी 
शीतल-निर्मल सलिल धार सी
सतत प्रवाहित
ओ उपासनी!
***

bhajan

भजन 
*
प्रभु! 
तेरी महिमा अपरम्पार
*
तू सर्वज्ञ व्याप्त कण-कण में
कोई न तुझको जाने।
अनजाने ही सारी दुनिया
इष्ट तुझी को माने।
तेरी आय दृष्टि का पाया
कहीं न पारावार
प्रभु!
तेरी महिमा अपरम्पार
*
हर दीपक में ज्योति तिहारी
हरती है अँधियारा।
कलुष-पतंगा जल-जल जाता
पा मन में उजियारा।
आये कहाँ से? जाएँ कहाँ हम?
जानें, हो उद्धार
प्रभु!
तेरी महिमा अपरम्पार
*
कण-कण में है बिम्ब तिहारा
चित्र गुप्त अनदेखा।
मूरत गढ़ते सच जाने बिन
खींच भेद की रेखा।
निराकार तुम,पूज रहा जग
कह तुझको साकार
प्रभु!
तेरी महिमा अपरम्पार
*

paheli

पहेली 
*
एक पहेली 
बूझ सहेली 
*
कौन गधे से ज्यादा मूरख
खड़ा करे खुद अपनी खाट?
एक पहेली
बूझ सहेली
*
कौन जलाये खुद अपना घर
अपनी आप लगाते वाट?
एक पहेली
बूझ सहेली
*
कौन देश का दुश्मन बनकर
अपना थूका खुद ले चाट?
एक पहेली
बूझ सहेली
*
कौन खोदता सडक-रेल भी
ज्यों पागल कुत्ता ले काट?
एक पहेली
बूझ सहेली
*
कौन जला संपत्ति देश की
चाह रहा आरक्षण-ठाट?
एक पहेली
बूझ सहेली
*
कौन माँगता भीख बताओ
धरकर धन-बल जैसे लाट
एक पहेली
बूझ सहेली
*
जो न जान कर नाम बताये
उस पर हँसते चारण-भाट
एक पहेली
बूझ सहेली
*

मंगलवार, 23 फ़रवरी 2016

navgeet

नवगीत 
नव भोर 
*
मिलन की
नव भोर का 
स्वागत करो रे!
*
विरह की रजनी
अँधेरी हारकर
मुँह छिपाती
उषा पर जय वारकर
दुंदुभी नभ में
बजाते परिंदे
वर बना दिनकर
धरा से प्यारकर
सृजन की
नव भोर का
स्वागत करो रे!
*
चूड़ियाँ खनकीं
नज़र मिल कर झुकीं
कलेवा दें थमा
उठ नज़रें मिलीं
बिन कहें कह शुक्रिया
ले ली विदा
मंज़िलों को नापने
चुप बढ़ चलीं
थकन की
नव कोर का
स्वागत करो रे!
*
दुपहरी में, स्वेद
गंगा नहाकर
नीड लौटे परिंदे
चहचहाकर
साँझ चंदा से
मिले हँस चाँदनी
साँस में घुल साँस
महकी लजाकर
पुलिनमय
चितचोर का
स्वागत करो रे!
***

२३-२-२०१६ 

navgeet

नवगीत:
सद्यस्नाता
*
सद्यस्नाता!
रूप तुम्हारा
सावन सा भावन।
केश-घटा से
बूँद-बूँद जल
टप-टप चू बरसा।
हेर-हेर मन
नील गगन सम
हुलस-पुलक तरसा।
*
उगते सूरज जैसी बिंदी
सजा भाल मोहे।
मृदु मुस्कान
सजे अधरों पर
कंगन कर सोहे।
लेख-लेख तन म
हुआ वन सम
निखर-बिखर गमका।
*
दरस-परस पा
नैन नशीले
दो से चार हुए।
कूल-किनारे
भीग-रीझकर
खुद जलधार हुए।
लगा कर अगन
बुझा कर सजन
बिन बसंत कुहका।
***
२३-२-२०१६

सोमवार, 22 फ़रवरी 2016

navgeet

एक रचना:
का बिगार दओ?
*
काए फूँक रओ बेदर्दी सें 
हो खें भाव बिभोर?
का बिगार दो तोरो मैंने
भइया रामकिसोर??
*
हँस खेलत ती
संग पवन खें
पेंग भरत ती खूब।
तेंदू बिरछा
बाँह झुलाउत
रओ खुसी में डूब।
कें की नजर
लग गई दइया!
धर लओ मो खों तोर।
का बिगार दो तोरो मैंने
भइया रामकिसोर??
*
काट-सुखा
भर दई तमाखू
डोरा दओ लपेट।
काय नें समझें
महाकाल सें
कर लई तुरतई भेंट।
लत नें लगईयो
बीमारी सौ
दैहें तोय झिंझोर
का बिगार दो तोरो मैंने
भइया रामकिसोर??
*
जिओ, जियन दो
बात मान ल्यो
पीओ नें फूकों यार!
बढ़े फेंफडे में
दम तुरतई
गाड़ी हो नें उलार।
चुप्पै-चाप
मान लें बतिया
सुनें न कौनऊ सोर।
का बिगार दो तोरो मैंने
भइया रामकिसोर??
*
अपनों नें तो
मेहरारू-टाबर
का करो ख़याल।
गुटखा-पान,
बिड़ी लत छोड़ो
नई तें होय बबाल।
करत नसा नें
कब्बऊ कौनों
पंछी, डंगर, ढोर।
का बिगार दो तोरो मैंने
भइया रामकिसोर??
*
बात मान लें
निज हित की जो
बोई कहाउत सयानो।
तेन कैसो
नादाँ है बीरन
साँच नई पहचानो।
भौत करी अंधेर
जगो रे!
टेरे उजरी भोर।
का बिगार दो तोरो मैंने
भइया रामकिसोर??
*
२१-११-२०१५
कालिंदी विहार लखनऊ

अंग्रेजी कविता

POEM
I
*
Who am I?
Body, brain, heart 
or consciousness? 
We know without body
nobody can live.
If Brain stop to work
you say he is dead.
When Heart stop to pump
You say he expired.
Loosing consciousness
Is sign of death.
Am I any of these organs
or some thing else?
Science says: After death
Body loose some weight.
Brain and Heart
Remains the same.
Consciousness can not have weight
As it is the state of mind.
Then whom am I?
Am I a soul,
A tiny part of Almighty?
Yes,
That's why body loose
Some weight after death.
The drop disappears in the ocean
From where it came
At the time of birth.
****
22.2.2016

रविवार, 21 फ़रवरी 2016

samiksha: sangitadhiraja hrudaya narayana dev

पुस्तक सलिला:
संगीताधिराज हृदयनारायण देव - संगीत संबंधी जानकारियों का कोष
चर्चाकार- आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल' 
[पुस्तक विवरण: संगीताधिराज हृदयनारायण देव, कृतिकार डॉ. सुमन लता श्रीवास्तव, शोध-सन्दर्भ ग्रंथ, आकार २४ से. मी. X १६ से. मी., आवरण सजिल्द, बहुरंगी, जैकेट सहित, क्लॉथ बंधन, पृष्ठ ३५२, ८००/-, विद्यानिधि प्रकाशन डी १० / १०६१ समीप श्री महागौरी मंदिर, खजुरी खास दिल्ली ११००९४, ०११ २२९६७६३८, कृतिकार संपर्क १०७ इन्द्रपुरी कॉलोनी, जबलपुर ४८२००१]
*
अतीत को भूलनेवालेवाली कौमें भविष्य का निर्माण नहीं कर सकतीं। डॉ. सुमनलता श्रीवास्तव इस सनातन सत्य से सुपरिचित हैं इसलिए उन्होंने सत्रहवीं सदी के पूर्वार्ध में गोंड शासक हृदयनारायण देव द्वारा संस्कृत में रचित संगीत विषयक दो ग्रंथों हृदय कौतुकम् और ह्रदय प्रकाश: के प्रकाश में भारतीय संगीत के आधारभूत तत्वों और सिद्धांतों के परीक्षण का दुष्कर कार्य किया है। वैदिक काल से गार्गी, मैत्रेयी. लोपामुद्रा जैसी विदुषियों की परंपरा को जीवंत करती सुमन जी की यह कृति पाश्चात्य मूल्यों और जीवनपद्धति के अंध मोह में ग्रस्त युवाओं के लिये प्रेरणा स्त्रोत हो सकती है।

हिंदी में प्रतिदिन प्रकाशित होनेवाली सहस्त्राधिक पुस्तकों में से हर महाविद्यालय और पुस्तकालय  में रखी जाने योग्य कृतियाँ अँगुलियों पर गिनने योग्य होती हैं।  विवेच्य कृति के विस्तृत फलक को दस परिच्छेदों में विभक्त किया गया है। भारतीय संगीत की परंपरा: उद्भव और विकास शीर्षक प्रथम परिच्छेद में नाद तथा संगीत की उत्पत्ति, प्रभाव और उपादेयता, संगीत और काव्य का अंतर्संबंध, भारतीय संगीत का वैशिष्ट्य, मार्गी और देशी संगीत, शास्त्रीय और सुगम संगीत, उत्तर भारतीय व् दक्षिण भारतीय संगीत, संगीत ग्रन्थ परंपरा व सूची आदि का समावेश है। द्वितीय परिच्छेद ह्रदय नारायण देव: महराज हृदयशाह के रूप में परिचय के अंतर्गत महराज हृदयशाह और गढ़ा राज्य, गोंड वंश और शासक, लोकहितकारी कार्य, हृदय कौतुकम् और ह्रदय प्रकाश: की विषयवस्तु, सिद्धांत विवेचन, रचनाकाल, तत्कालीन राजनैतिक परिस्थितियों का संकेत है। आदि की प्रामाणिक जानकारी का सार प्रस्तुत किया गया है।  श्रुति और स्वर: ह्रदय नारायण देव की श्रुति-स्वर व्यवस्था शीर्षक परिच्छेद में श्रुति का अर्थ व स्वरूप, संख्या व नामावली, श्रुति व स्वर में भेद, सप्तक का निर्माण आदि का तुलनात्मक अध्ययन है। चतुर्थ अनुच्छेद के अंतर्गत ग्रंथ द्वय में उल्लिखित पारिभाषिक शब्दों का विवेचन, संवाद, वादी-संवादी-अनुवादी-परिवादी, गमक, अलंकार, तान, मूर्च्छना आदि परिभाषिक शब्दों का विवेचन किया गया है।

वीणा के तार पर ज्यामितीय स्वर-स्थापना का निदर्शन पंचम परिच्छेद में है। राग वर्गीकरण और संस्थान की अवधारणा शीर्षक षष्ठम परिच्छेद राग-रागिनी वर्गीकरण से उत्पन्न विसंगतियों के निराकरण हेतु हृदयनारायण द्वारा अन्वेषित 'थाट-राग व्यवस्था' का विश्लेषण है। सप्तम परिच्छेद प्रचलित और स्वरचित रागों की व्याख्या में ह्रदयनारायण देव द्वारा गृह-अंश-न्यास, वर्ज्यावर्ज्य स्वर, स्वरकरण, ९२ रागों का निरूपण तथा तुलनात्मक अध्ययन है। ग्रन्थ द्वय की भाषा शैली के विवेचन पर अष्टम परिच्छेद केंद्रित है। पौर्वापर्य्य विचार नामित नवम परिच्छेद में हृदयनारायण देव के साथ पंडित लोचन तथापंडित अहोबल के सम्बन्ध में तुलनात्मक अध्ययन है। अंतिम दशम परिच्छेद 'ह्रदय नारायण देव का संगीतशास्त्र को योगदान' में ग्रंथनायक का मूल्यांकन किया गया है। ग्रंथांत में  हृदय कौतुकम् और ह्रदय प्रकाश: का अविकल हिंदी अनुवाद सहित पाठ संदर्भ ग्रंथ सूची, ग्रंथनायक की राजधानी मंडला के रंगीन छायाचित्रादि तथा ग्रन्थारंभ में विदुषी डॉ. इला घोष लिखी सम्यक भूमिका ने ग्रन्थ की उपादेयता तथा महत्व बढ़ाया है।

पद्य साहित्य में रस-छंद-अलंकार में रूचि रखनेवाले रचनाकार गति-यति तथा लय साधने में संगीत की जानकारी न होने के कारण कठिनाई अनुभव कर छंद मुक्त कविता की अनगढ़ राह पर चल पड़ते हैं। आलोच्य कृति के विद्यार्थी को ऐसी कठिनाई से सहज ही मुक्ति मिल सकती है। छंद लेखन-गायन-नर्तन की त्रिवेणी में छिपे अंतर्संबंध को अनुमानने में सांगीतिक स्वर लिपि की जानकारी सहायक होगी। महाप्राण निराला की रचनाओं में पारम्परिक छंद विधान के अंधानुकरण न होने पर भी जो गति-यति-लय अन्तर्निहित है उसका कारण रवीन्द्र संगीत और लोक काव्य की जानकारी ही है। गीत-नवगीत के निरर्थक विवाद में उलझी मनीषाएँ इस ग्रन्थ का अध्ययन कर अपनी गीति रचनाओं में अन्तर्व्याप्त रागों को पहचान कर उसे शुद्ध कर सकें तो रचनाओं की रसात्मकता श्रोताओं को मंत्र मुग्ध कर सकेगी।

संगीत ही नहीं साहित्य संसार भी सुमन जी की इस कृति हेतु उनका आभारी होगा। संस्कृत में स्नातकोत्तर उपाधि और शोध कार्य कर चुकी और बुद्धिजीवी कायस्थ परिवार की प्रमुख सुमन जी का भाषा पर असाधारण अधिकार होना स्वाभाविक है। ग्रन्थ की जटिल विषयवस्तु को सुरुचिपूर्वक सरलता से प्रस्तुतीकरण लेखिका के विषय पर पूर्णाधिकार का परिचायक है। पूरे ग्रन्थ में संस्कृत व हिंदी सामग्री के पाठ को त्रुटि रहित रखने के लिये टंकण, पृष्ठ रूपांकन तथा पाठ्य शुद्धि का श्रमसाध्य कार्य उन्होंने स्वयं किया है। वे कुलनाम 'श्रीवास्तव' के साथ-साथ वास्तव में भी 'श्री' संपन्न तथा साधुवाद की पात्र हैं। उनकी लेखनी ऐसे ही कालजयी ग्रंथों का प्रणयन करे तो माँ शारदा का कोष अधिक प्रकाशमान होगा। हिंदी को विश्व वाणी बनाने की दिशा में विविध विषयों की पारिभाषिक शब्दावली के निर्माण और सक्षम भावाभिव्यक्ति संपन्न शब्दावली के विकास में ऐसे ग्रन्थ सहायक होंगे।
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-समन्वयम, २०४ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१, salil.sanjiv@gmail.com, ९४२५१८३२४४ 
***

laghukatha

लघुकथा
योग्यता
*
गत कुछ वर्षों से वे लगातार लघुकथा मंच का सभापति बनाने पधार रहे थे। हर वर्ष आयोजनों में बुलाते, लघुकथा ले जाकर पत्रिका में प्रकाशित करते। संस्थाओं की राजनीति से उकता चुका वह विनम्रता से हाथ जोड़ लेता। इस वर्ष विचार आया कि समर्पित लोग हैं, जुड़ जाना चाहिए। उसने संरक्षकता निधि दे दी।  

कुछ दिन बाद एक मित्र ने पूछा आप लघु कथा के आयोजन में नहीं पधारे? वे चुप्पी लगा गये, कैसे कहते कि जब से निधि दी तब से किसी ने रचना लेने, आमंत्रित करने या संपर्क साधने योग्य ही नहीं समझा।
***

navgeet

नवगीत
घर तो है
*
घर तो है
लेकिन आँगन
या तुलसी चौरा
रहा नहीं है।
*
अलस्सुबह
उगता है सूरज
किंतु चिरैया
नहीं चहकती।
दलहन-तिलहन,
फटकन चुगने
अब न गिलहरी
मिले मटकती।
कामधेनुएँ
निष्कासित हैं,
भैरव-वाहन
चाट रहे मुख।
वन न रहे,
गिरि रहे न गौरी
ब्यौरा गौरा
रहा नहीं है।
*
घरनी छोड़
पड़ोसन ताकें।
अमिय समझ
विष गुटखा फाँकें।
नगदी सौदा
अब न सुहाये,
लुटते नित
उधार ला-ला के।  
संबंधों की
नीलामी कर-
पाल रहे खुद
दुःख
कहकर सुख।
छिपा सकें मुख
जिस आँचल में
माँ का ठौरा
रहा नहीं है।
***

एक ग़ज़ल : इलाही कैसा मंज़र है....



इलाही ! कैसा मंज़र है, हमें दिन रात छलता है
कहीं धरती रही प्यासी ,कहीं  बादल मचलता है

कभी जब सामने उस ने कहीं इक आइना देखा
न जाने देख कर क्यूँ रास्ता अपना  बदलता है

बुलन्दी आसमां की नाप कर भी आ गए ताईर
इधर तू बैठ कर खाली ख़याली  चाल चलता है

हथेली की लकीरों पर तुम्हें इतना भरोसा क्यों ?
तुम्हारे बाजुओं से भी तो इक रस्ता निकलता है

हमारे सामने मयख़ाना भी, बुतख़ाना भी ,ज़ाहिद !
चलो मयख़ना चलते  हैं ,यहाँ क्यूँ हाथ मलता है

जिसे तुम ढूँढते फिरते यहाँ तक आ गये ,जानम
तुम्हारे दिल के अन्दर था ,तुम्हारे साथ चलता है

मुझे हर शख़्स आता है नज़र अपनी तरह ’आनन’
मुहब्बत का दिया जब दिल में सुब्ह-ओ-शाम जलता है

-आनन्द.पाठक-
09413395592

शब्दार्थ
मंज़र  = दृश्य
ताईर  = परिन्दा/पक्षी/बाज पक्षी जो अपनी
ऊँची और लम्बी उड़ान के लिए जाना जाता है

शनिवार, 20 फ़रवरी 2016

navgeet

एक रचना
मन
*
मर रहा पल-पल
अमर मन 
जी रहा है.
*
जो सुहाए
कह न पाता, भीत है मन.
जो निभाये
सह न पाता, रीत है मन.
सुन-सुनाये
जी न पाता, गीत है मन.
घुट रहा पल-पल
अधर मन
सी रहा है.
*
मिल गयी पर
मिल न पायी, जीत है मन.
दास सुविधा ने 
ख़रीदा, क्रीत है मन.
आँख में
पानी न, पाती पीत है मन.
जी रहा पल-पल
न कुछ कह
मर रहा है.
***

शुक्रवार, 19 फ़रवरी 2016

navgeet

नवगीत
*
नयनों ने नैनों में
दुनिया को देखा
*
कितनी गहराई
कैसे बतलायें?
कितनी अरुणाई
कैसे समझायें?
सपने ही सपने
देखें-दिखलायें
मन-महुआ महकें तो 
अमुआ गदरायें
केशों में शोभित
नित सिंदूरी रेखा
नयनों ने नैनों में
दुनिया को देखा
*
सावन में फागुन या
फागुन में सावन
नयनों में सपने ही
सपने मनभावन
मन लंका में बैठा
संदेही रावन
आओ विश्वास राम
वरो सिया पावन
कर न सके धोबी अब
मुझ-तुम का लेखा
नयनों ने नैनों में
दुनिया को देखा
*

gitika chhand


​                                                            
रसानंद दे छंद नर्मदा १
​७
 : 
​गीतिका
 
 

दोहा, आल्हा, सार
​,​
 ताटंक,रूपमाला (मदन), चौपाई
​ 
तथा  
उल्लाला
 छंदों से साक्षात के पश्चात् अब मिलिए
​​
गीतिका
​ ​
से.

लक्षण :                                                                                                                                     गीतिका मात्रिक सम छंद है जिसमें 
​२६
 मात्राएँ होती हैं
​​
​ १४​
 और 
​१२
 पर यति तथा 
अंत में लघु -गुरु 
​आवश्यक 
है
। ​इस छंद की तीसरी, दसवीं, सत्रहवीं और चौबीसवीं अथवा दोनों चरणों के तीसरी-दसवीं मात्राएँ लघु हों तथा अंत में रगण हो तो छंद निर्दोष व मधुर होता है
अपवाद- इसमें कभी-कभी यति शब्द की पूर्णता  के आधार पर १२-१४ में भी आ पडती है
​ यथा-​
​राम ही की भक्ति में, अपनी भलाई जानिए
 
- जगन्नाथ प्रसाद 'भानु', छंद प्रभाकर
लक्षण छंद:
सूर्य-धरती के मिलन की, छवि मनोहर देखिए 
गीतिका में नर्मदा सी, 'सलिल'-ध्वनि अवरेखिए
तीसरा-दसवाँ सदा लघु, हर चरण में वर्ण हो
रगण रखिये अंत में सुन, झूमिये ऋतु-पर्ण हो
*
तीन-दो-दो बार तीनहिं, तीन-दो धुज अंत हो
रत्न वा रवि मत्त पर यति, चंचरी लक्षण कहो।   -नारायण दास, हिंदी छन्दोलक्षण 

टीप-  छंद प्रभाकर में भानु जी ने छब्बीस मात्रिक वर्णवृत्त चंचरी (चर्चरी) में 'र स ज ज भ र' वर्ण (राजभा सलगा जभान जभान भानस राजभा) बताये हैं। इसमें कुल मात्राएँ २६ तथा तीसरी, दसवीं, सत्रहवीं और चौबीसवीं अथवा दोनों चरणों के तीसरी-दसवीं मात्राएँ लघु  हैं किंतु दूसरे जगण को तोड़े बिना चौदह मात्रा पर यति नहीं आती। डॉ. पुत्तूलाल ने दोनों छंदों को अभिन्न बताया है। भिखारीदास और केशवदास ने २८ मात्रिक हरिगीतिका को ही गीतिका तथा २६ मात्रिक वर्णवृत्त को चंचरी बताया है। डॉ. पुत्तूलाल के अनुसार  के द्विकल को कम कर यह छंद बनता है। सम्भवत: इसी कारण इसे हरिगीतिका के आरम्भ के दो अक्षर हटा कर 'गीतिका' नाम दिया गया। इसकी मात्रा बाँट (३+२+२) x ३+ (३+२)  बनती है        
मात्रा बाँट:
​ ​
। ऽ 
​ ​
​ ​   
​ ​
। 
​ ​
ऽ 
​ ​
ऽ 
​    ​
​ ​
। ऽ 
​  ​
ऽ 
​  ​
​ ​
। ऽ
हे दयामय दीनबन्धो, प्रार्थना मे श्रूयतां​।
यच्च दुरितं दीनबन्धो, पूर्णतो व्यपनीयताम्
चञ्चलानि मम चेन्द्रियाणि, मानसं मे पूयतां
शरणं याचेऽहं सदा हि, सेवकोऽस्म्यनुगृह्यताम्​।  
उदाहरण:
०१. रत्न रवि कल धारि कै लग, अंत रचिए गीतिका।
     क्यों बिसारे श्याम सुंदर, यह धरी अनरीतिका।।
     पायके नर जन्म प्यारे, कृष्ण के गुण गाइये।
     पाद पंकज हीय में धर, जन्म को फल पाइये।। - जगन्नाथ प्रसाद 'भानु', छंद प्रभाकर  
 
                                                 
०२.
  ​
मातृ भू सी मातृ भू है , अन्य से तुलना नहीं
​​

०३. उस रुदंती विरहिणी के, रुदन रस के लेप से
     और पाकर ताप उसके, प्रिय विरह-विक्षेप से
     वर्ण-वर्ण सदैव जिनके, हों विभूषण कर्ण 
​के
     क्यों न बनते कवि जनों के, ताम्र पत्र सुवर्ण के
​    - मैथिलीशरण गुप्त, साकेत
 

३, ७, १० वीं मात्रा पूर्ववर्ती शब्द के साथ जुड़कर गुरु हो किन्तु लय-भंग न हो तो मान्य की जा सकती है-  
 
०४. कहीं औगुन किया तो पुनि वृथा ही पछताइये - जगन्नाथ प्रसाद 'भानु', छंद प्रभाकर  

०५. हे प्रभो! आनंददाता, ज्ञान हमको दीजिए 
     शीघ्र सारे दुर्गुणों से, दूर हमको कीजिए 
     लीजिए हमको शरण में, हम सदाचारी बनें 
     ब्रम्हचारी धर्मरक्षक, वीर व्रतधरी बनें       -रामनरेश त्रिपाठी 
  
०६. लोक-राशि गति-यति भू-नभ, साथ-साथ ही रहते
     लघु-गुरु गहकर हाथ-अंत, गीतिका छंद कहते

०७. चौपालों में सूनापन, खेत-मेड में झगड़े
      उनकी जय-जय होती जो, धन-बल में हैं तगड़े
      खोट न अपनी देखें, बतला थका आइना
      कोई फर्क नहीं पड़ता, अगड़े हों या पिछड़े
०८. आइए, फरमाइए भी, ह्रदय में जो बात है
      क्या पता कल जीत किसकी, और किसकी मात है
      झेलिये धीरज धरे रह, मौन जो हालात है
     एक सा रहता समय कब?, रात लाती प्रात है

०९. सियासत ने कर दिया है , विरासत से दूर क्यों?
     हिमाकत ने कर दिया है , अजाने मजबूर यों
     विपक्षी परदेशियों से , अधिक लगते दूर हैं
     दलों की दलदल न दल दे, आँख रहते सूर हैं
     *****