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रविवार, 13 मार्च 2016

laghukatha

लघुकथा- 
कुत्ते की पूँछ
*
विश्वविद्यालय में देश के संविधान का मखौल बनाने के बाद, न्यायालय में खुद को निर्दोष बताकर, करतूतों के लिये पश्चाताप व्यक्त करना और विश्वविद्यालय में सेना पर लांछन लगाकर क्या बताना चाहता है छात्र संघ अध्यक्ष? मित्र ने पूछा।
'यही कि कुत्ते की पूँछ कभी सीधी नहीं होती' मैंने कहा।

सोमवार, 19 अक्टूबर 2015

laghu katha :

लघुकथाः 
जेबकतरे :

= १९७३ में एक २० बरस के लड़के ने जिसे न अनुभव था, न जिम्मेदारी २८०/- आधार वेतन पर नौकरी आरंभ की। कुल वेतन ३७५/- , सामान्य भविष्य निधि कटाने के बाद ३५०/- हाथ में आते थे जिससे पौने तीन तोले सोना खरीदा जा सकता था। लड़का ही नहीं परिवारजन भी खुश, शादी के अनेक प्रस्ताव, ख़ुशी ही ख़ुशी । 

= ४० साल नौकरी  और अधिकतम पारिवारिक जिम्मेदारियों और अनुभव के बाद सेवानिवृत्ति के समय वेतन ३५०००/-  जिसमें डेढ़ तोला सोना आता है। पेंशन और कम, अधिकतम योग्यता, कार्य अनुभव और पारिवारिक जिम्मेदारियों के बावजूद  क्रय क्षमता में कमी.... ४० साल लगातार जेबकतरे जाने का अहसास अब रूह को कँपाने लगा है, बेटी के लिये नहीं मिलते उचित प्रस्ताव, दाल-प्याज-दवाई  जैसी  रोजमर्रा की चीजों के दाम आसमान पर और हौसले औंधे मुँह जमीन पर फिर भी पकड़ में नहीं आते जेबकतरे 

***


शुक्रवार, 20 जून 2014

laghukatha: rashtreey ekta -sanjiv

लघु कथा
राष्ट्रीय एकता
संजीव
*
'माँ! दो भारतीयों के तीन मत क्यों होते हैं?'
''क्यों क्या हुआ?''
'संसद और विधायिकाओं में जितने जन प्रतिनिधि होते हैं उनसे अधिक मत व्यक्त किये जाते हैं.'
''बेटा! वे अलग-अलग दलों के होते हैं न.''
'अच्छा, फिर दूरदर्शनी परिचर्चाओं में किसी बात पर सहमति क्यों नहीं बनती?'
''वहाँ बैठे वक्ता अलग-अलग विचारधाराओं के होते हैं न?''
'वे किसी और बात पर नहीं तो असहमत होने के लिये ही सहमत हो जाएँ।
''ऐसा नहीं है कि भारतीय कभी सहमत ही नहीं होते।''
'मुझे तो भारतीय कभी सहमत होते नहीं दीखते। भाषा, भूषा, धर्म, प्रांत, दल, नीति, कर, शिक्षा यहाँ तक कि पानी पर भी विवाद करते हैं।'
''लेकिन जन प्रतिनिधियों की भत्ता वृद्धि, अधिकारियों-कर्मचारियों के वेतन बढ़ाने, व्यापारियों के कर घटाने, विद्यार्थियों के कक्षा से भागने, पंडितों के चढोत्री माँगने, समाचारों को सनसनीखेज बनाकर दिखाने, नृत्य के नाम पर काम से काम कपड़ों में फूहड़ उछल-कूद दिखाने और कमजोरों के शोषण पर कोई मतभेद देखा तुमने? भारतीय पक्के राष्ट्रवादी और आस्तिक हैं, अन्नदेवता के सच्चे पुजारी, छप्पन भोग की परंपरा का पूरी ईमानदारी से पालन करते हैं। मद्रास का इडली-डोसा, पंजाब का छोला-भटूरा, गुजरात का पोहा, बंगाल का रसगुल्ला और मध्यप्रदेश की जलेबी खिलाकर देखो, पूरा देश एक नज़र आयेगा।''  
और बेटा निरुत्तर हो गया...
*

शनिवार, 14 जून 2014

laghukatha: eklavya -sanjiv

लघुकथा:
एकलव्य
- 'नानाजी! एकलव्य महान धनुर्धर था?'
- 'हाँ; इसमें कोई संदेह नहीं है.'
- उसने व्यर्थ ही भोंकते कुत्तों का मुंह तीरों से बंद कर दिया था ?' 
-हाँ बेटा.' 
- दूरदर्शन और सभाओं में नेताओं और संतों के वाग्विलास से ऊबे पोते ने कहा - 'काश वह आज भी होता.'
***** 
- आचार्य संजीव 'सलिल' संपादक दिव्य नर्मदा समन्वयम , २०४ विजय अपार्टमेन्ट, नेपिअर टाऊन, जबलपुर ४८२००१ वार्ता:०७६१ २४१११३१ / ९४२५१ ८३२४४ 

गुरुवार, 17 जनवरी 2013

लघुकथा सहानुभूति खलील जिब्रान

लघुकथा 
सहानुभूति 
खलील जिब्रान 
*
शहर भर की नालियां और मैला साफ़ करने वाले आदमी को देख दार्शनिक महोदय ठहर गए.

"बहुत कठिन काम है तुम्हारा ! यूँ गंदगी साफ़ करना. कितना मुश्किल होता होगा ! दुःख है मुझे ! मेरी सहानुभूति स्वीकारो. " दार्शनिक ने सहानुभूति जताते हुए कहा.

"शुक्रिया हुज़ूर !" मेहतर ने जवाब दिया.

"वैसे आप क्या करते हैं ?" उसने दार्शनिक से पूछा. 

" मैं ? मैं लोगों के मस्तिष्क पढ़ता हूँ ! उन के कृत्यों को देखता हूँ ! उन की इच्छाओं को देखता हूँ ! विचार करता हूँ ! " दार्शनिक ने गर्व से जवाब दिया. 

"ओह ! मेरी सहानुभूति स्वीकारें जनाब !" मेहतर का जवाब आया.

***
[खलील जिब्रान की 'सैंड एंड फ़ोम' से.]

सोमवार, 31 दिसंबर 2012

लघुकथा: एकलव्य संजीव 'सलिल' *

लघुकथा:
एकलव्य
संजीव 'सलिल'
*
- 'नानाजी! एकलव्य महान धनुर्धर था?'
- 'हाँ; इसमें कोई संदेह नहीं है.'
- उसने व्यर्थ ही भोंकते कुत्तों का मुंह तीरों से बंद कर दिया था ?'
-हाँ बेटा.'
- दूरदर्शन और सभाओं में नेताओं और संतों के वाग्विलास से ऊबे पोते ने कहा - 'काश वह आज भी होता.'
*****
salil.sanjiv@gmail.com

रविवार, 12 दिसंबर 2010

sattire: THREE PARROTS -- vijay kushal.

sattire:


THREE    PARROTS                                    


-- vijay kushal.

A man wanted to buy his son a parrot as a birthday present.
The next day he went to the pet shop and saw
three identical parrots in a cage.

He asked the clerk, "how much for the parrot on the right?

 The owner said it was Rs. 2500.
"Rs. 2500.", the man said. "Well what does he do?
"He knows how to use all of the functions of Microsoft Office 2000,
responds the clerk.
"He can do all of your spreadsheets and type all of your letters."

 The man then asked what the second parrot cost.
The clerk replied, Rs. 5000, but he not only knows Office 2000,
but is an expert computer programmer.

 Finally, the man inquired about the cost of the last parrot.
The clerk replied, "Rs. 10,000."
Curious as to how a bird can cost Rs. 10,000, the man asked what this
bird's specialty was.
The clerk replies, "Well to be honest I haven't seen him do anything.

But the other two call him *"BOSS"!! *

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गुरुवार, 11 नवंबर 2010

लघु कथा: चित्रगुप्त पूजन -- संजीव 'सलिल'

लघु कथा:                                                                                                        
चित्रगुप्त पूजन  
संजीव 'सलिल' 
अच्छे अच्छों का दीवाला निकालकर निकल गई दीपावली और आ गयी दूज... 

सकल सृष्टि के कर्म देवता, पाप-पुण्य नियामक निराकार परात्पर परमब्रम्ह चित्रगुप्त जी और कलम का पूजन कर ध्यान लगा तो मनस-चक्षुओं ने देखा अद्भुत दृश्य.  

निराकार अनहद नाद... ध्वनि के वर्तुल... अनादि-अनंत-असंख्य. वर्तुलों का आकर्षण-विकर्षण... घोर नाद से कण का निर्माण... निराकार का क्रमशः सृष्टि के प्रागट्य, पालन और नाश हेतु अपनी शक्तियों को तीन अदृश्य कायाओं में स्थित करना... 

महाकाल के कराल पाश में जाते-आते जीवों की अनंत असंख्य संख्या ने त्रिदेवों और त्रिदेवियों की नाम में दम कर दिया. सब निराकार के ध्यान में लीन हुए तो हर चित्त में गुप्त प्रभु की वाणी आकाश से गुंजित हुई:
__ "इस समस्या के कारण और निवारण तुम तीनों ही हो. अपनी पूजा, अर्चना, वंदना, प्रार्थना से रीझकर तुम ही वरदान देते हो औरउनका दुरूपयोग होने पर परेशान होते हो. करुणासागर बनने के चक्कर में तुम निष्पक्ष, निर्मम तथा तटस्थ होना बिसर गये हो." 

-- तीनों ने सोच:' बुरे फँसे, क्याकरें कि परमपिता से डांट पड़ना बंद हो'. 

एक ने प्रारंभ कर दिया परमपिता का पूजन, दूसरे ने उच्च स्वर में स्तुति गायन तथा तीसरे ने प्रसाद अर्पण करना. 

विवश होकर परमपिता को धारण करना पड़ा मौन.  

तीनों ने विधायिका, कार्यपालिका तथा न्यायपालिका पर कब्जा किया और भक्तों पर करुणा करने का दस्तूर और अधिक बढ़ा दिया. 

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मंगलवार, 6 अप्रैल 2010

लघु कथा: शब्द और अर्थ --संजीव वर्मा "सलिल "

लघु कथा: शब्द और अर्थ
संजीव वर्मा "सलिल "

शब्द कोशकार ने अपना कार्य समाप्त किया...कमर सीधी कर लूँ , सोचते हुए लेटा कि काम की मेज पर कुछ खटपट सुनायी दी... मन मसोसते हुए उठा और देखा कि यथास्थान रखे शब्दों के समूह में से निकल कर कुछ शब्द बाहर आ गए थे। चश्मा लगाकर पढ़ा , वे शब्द 'लोकतंत्र', प्रजातंत्र', 'गणतंत्र' और 'जनतंत्र' थे।

शब्द कोशकार चौका - ' अरे! अभी कुछ देर पहले ही तो मैंने इन्हें यथास्थान रखा रखा था, फ़िर ये बाहर कैसे...?'

'चौंको मत...तुमने हमारे जो अर्थ लिखे हैं वे अब हमें अनर्थ लगते हैं। दुनिया का सबसे बड़ा लोक तंत्र लोभ तंत्र में बदल गया है। प्रजा तंत्र में तंत्र के लिए प्रजा की कोई अहमियत ही नहीं है। गण विहीन गण तंत्र का अस्तित्व ही सम्भव नहीं है। जन गण मन गाकर जनतंत्र की दुहाई देने वाला देश सारे संसाधनों को तंत्र के सुख के लिए जुटा रहा है। -शब्दों ने एक के बाद एक मुखर होते हुए कहा


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सोमवार, 9 नवंबर 2009

व्‍यंग्‍य: हवाई जहाज का आसमान में सब्जियों और दालों से गले मिलना

व्‍यंग्‍य:

हवाई जहाज का आसमान में सब्जियों और दालों से गले मिलना

- अविनाश वाचस्‍पति

हैरान मत होइये। आप नहीं, हवाई जहाज की बात कर रहा हूं उन्‍हीं से पूछ रहा हूं वे कह रहे हैं कि कल तक हमें गुमान था कि इतनी ऊंचाईयों पर सिर्फ हम ही उड़ते विचरते रहते हैं। काफी नीचे इससे पक्षी उड़ते हैं। पर आप भी इतनी ऊंचाई पर पहुंच जाओगे, हमें विश्‍वास नहीं हो रहा है। कभी किसी को कमजोर नहीं समझना चाहिए सब्जियों ने कहा। घूरे के दिन फिर जाते हैं फिर हम तो सब्जियां हैं। कॉमनमैन ने हमें कामन कर दिया था पर महंगाई ने हमारी लाज बचा ली है। कॉमन होने की जिल्‍लत से हमने छुट्टी पा ली है। देखो हम यहां पर अपनी पूरी आन बान और शान से मौजूद हैं।

दे दाल में पानी देकर हमारी मिट्टी इंसान ने खराब कर रखी थी पर जब दाल के ही लाले पड़ जायेंगे तो पानी में डूब कर मरने के सिवाय कॉमनमैन के सामने कोई और रास्‍ता नहीं बचा है। दालें गर्व से यह अहसास कर फूली नहीं समा रही थीं। दालें आसमान में चारों ओर छितराई हुई थीं और हवाई जहाज उनके बीच में से बच बचाकर उड़ने के लिए मजबूर था। पायलटों को नाकों चने चबाने पड़ रहे हैं। चने ही सस्‍ते हैं। दालें महंगी हैं इसलिए नाक से दाल चबाने की तो पायलट अब सोच भी नहीं सकते हैं। डूबने के लिए कॉमनमैन को पानी भी अब बिसलेरी ही चाहिए होता है, साधारण पानी के कीटाणुओं से मरेंगे तो नरक में भी जगह नहीं मिलेगी।

कद्दू, घिया, सीताफल अपनी उन्‍नति पर प्रसन्‍न नजर आ रहे थे। आलू भी अब इतनी आसानी से हाथ नहीं आते हैं और टमाटरों ने तो सबको लाल कर रखा है। सब्जियों का हरा रंग अब आंखों में हरियाली नहीं लाता है। सब्जियों को देखते ही आंखें मुंद जाती हैं। हाथ अकड़ जाते हैं। उनमें इतनी ताकत नहीं बचती कि जेब की तरफ बढ़ने की सोच सकें और जीभ तो उनकी कीमतें सुनकर ही तालू से ऐसी चिपकती है कि जैसे गरीबी कॉमनमैन से चिपकने के लिए अभिशप्‍त है। जैसे अमीरी नेताओं की जेब में रहती है। गाजर मूली भी अब मामूली सब्जियां नहीं रही हैं। वे भी आसमान में कुलांचें भर रही हैं। खूब खुश हैं। मूली डर से सफेद नहीं होती खरीदने वाला कॉमनमैन उनकी कीमत जानकर डर से सफेद हो जाता है और जब गाजर को खरीदने में असफल होता है तो शर्म से उसका मुंह लाल हो जाता है। सब्जियों के रंगों के अब निराले ढंग हैं।

सेब को आज अपने सेब होने पर शर्म आ रही थी वो शर्म से जमीन में गड़ने की बजाय आसमान में उड़ा जा रहा था। वो तो खैर पहले भी उड़ता रहा है पर उसकी ऊंचाई में कोई इजाफा नहीं हुआ है। । बाजी तो इस बार मारी है अमरूद ने। जी हां, अमरूद जिसने बिग बी के छाने से पहले इलाहाबाद का नाम मशहूर कर रखा है। वह अमरूद सेब के पास पास ही उड़ रहा था सेब जितना उससे दूर होने की कोशिश कर रहा था, अमरूद उसके गले पड़ रहा था। कहानी कुछ नहीं है, अमरूद के भाव 50 से 60 रुपये किलो हो रहे हैं और सेब अब 40 रूपये किलो में भी मिल रहा है। अब बतलायें सेब की इतनी फजीहत हो और शर्म से आसमान में न गड़ जाए तो क्‍या करे ? जमीन पर रहने वाला आलू तक महंगाई के बल पर आसमान में हवाई जहाज के आसपास ही चक्‍कर लगाता मिला तो सेब ने आंखें ही बंद कर लीं। जिस तरह बिल्‍ली को देखकर कबूतर आंखें बंद करता रहा है पर आलू महाशय वहीं मंडरा रहे हैं।

हवाई जहाज विचारमग्‍न है कि इन जमीनी सब्जियों के भी पंख महंगाई ने निकाले हैं अब कॉमनमैन वेल्‍थ गेम्‍स के नाम पर गरीबों के मुंह से छीन लिए निवाले हैं। पर ऐसों की भी कमी नहीं है जिन्होंने इन्‍हीं कार्यों को कराने के नाम पर खूब हिस्‍सेदारी बंटाई है। उसे स्‍मरण हो आती है अपनी दुर्दशा जब जमीन पर रेंगने दौड़ने वाली रेल उसे नीचे से सीटी बजा बजाकर चिढ़ाती रही है क्‍योंकि उसके किराये हवाई जहाज के किरायों से भी अधिक हो गए थे और आज भी ऐसा ही है पर क्‍या करे हवाई जहाज जब सेब कुछ नहीं कर पा रहा है। तीनों विवश हैं। आप पूछेंगे कि तीसरा कौन है, तो तीसरा तो आजाद भारत की राजधानी में रहने वाला कॉमनमैन है जिसकी वेल्‍थ के नाम पर उसे बीमार कर दिया गया है।
...
- अविनाश वाचस्‍पति, साहित्‍यकार सदन, पहली मंजिल, 195 सन्‍त नगर, नई दिल्‍ली 110065

मोबाइल 09868166586/09711537664