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सोमवार, 13 दिसंबर 2010

कविता: विरसा संजीव 'सलिल'

कविता:
विरसा
संजीव 'सलिल'
*
तुमने
विरसे में छोड़ी है
अकथ-कथा
संघर्ष-त्याग की.
हमने
जीवन-यात्रा देखी
जीवट-श्रम,
बलिदान-आग की.
आये थे अनजान बटोही
बहुतों के
श्रृद्धा भाजन हो.
शिक्षा, ज्ञान, कर्म को अर्पित
तुम सारस्वत नीराजन हो.
हम करते संकल्प
कर्म की यह मशाल
बुझ ना पायेगी.
मिली प्रेरणा
तुमसे जिसको
वह पीढ़ी जय-जय गायेगी.
प्राण-दीप जल दे उजियारा
जग ज्योतित कर
तिमिर हरेगा.
सत्य सहाय जिसे हो
वह भी-
तरह तुम्हारी लक्ष्य वरेगा.
*****