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शनिवार, 23 अक्टूबर 2010

मुक्तिका: पथ पर पग संजीव 'सलिल'

मुक्तिका:


पथ पर पग


संजीव 'सलिल'
*
पथ पर पग भरमाये अटके.
चले पंथ पर जो बे-खटके..

हो सराहना उनकी भी तो
सफल नहीं जो लेकिन भटके..

ऐसों का क्या करें भरोसा
जो संकट में गुप-चुप सटके..

दिल को छूती वह रचना जो
बिम्ब समेटे देशज-टटके..

हाथ न तुम फौलादी थामो.
जान न पाये कब दिल चटके..

शूलों से कलियाँ हैं घायल.
लाख़ बचाया दामन हट के..

गैरों से है नहीं शिकायत
अपने हैं कारण संकट के..

स्वर्णपदक के बने विजेता.
पाठ्य पुस्तकों को रट-रट के..

मल्ल कहाने से पहले कुछ
दाँव-पेंच भी सीखो जट के..

हों मतान्तर पर न मनांतर
काया-छाया चलतीं सट के..

चौपालों-खलिहानों से ही
पीड़ित 'सलिल' पंथ पनघट के
************************

सोमवार, 12 जुलाई 2010

गीत: बात बस इतनी सी थी... संजीव वर्मा 'सलिल'

गीत:
बात बस इतनी सी थी...
संजीव वर्मा 'सलिल'
*
confusion.JPG

*
बात बस इतनी सी थी, तुमने नहीं समझा मुझे.
बात बस इतनी सी थी...
*
चाहते तुम कम नहीं थे, चाहते कम हम न थे.
चाहतें क्यों खो गईं?, सपने सुनहरे कम न थे..

बात बस इतनी सी थी, रिश्ता लगा उलझा मुझे.
बात बस इतनी सी थी, तुमने नहीं समझा मुझे.
बात बस इतनी सी थी...
*
बाग़ में भँवरे-तितलियाँ, फूल-कलियाँ कम न थे.
पर नहीं आईं बहारें, सँग हमारे तुम न थे..

बात बस इतनी सी थी, चेहरा मिला मुरझा मुझे.
बात बस इतनी सी थी, तुमने नहीं समझा मुझे.
बात बस इतनी सी थी...
*
दोष किस्मत का नहीं, हम ही न हम बन रह सके.
सुन सके कम दोष यह है, क्यों न खुलकर कह सके?.

बात बस इतनी सी थी, धागा मिला सुलझा मुझे.
बात बस इतनी सी थी, तुमने नहीं समझा मुझे.
बात बस इतनी सी थी...
**********************
----दिव्यनर्मदा.ब्लागस्पाट.कॉम
Acharya Sanjiv Salil