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बुधवार, 16 अक्टूबर 2013

haiku salila: sanjiv

हाइकु सलिला :
संजीव
*
ईंट-रेट का
मंदिर मनहर
देव लापता
*
श्रम-सीकर
चरणामृत से है
ज्यादा पावन
*
मर मदिरा
मत मुझे पिलाना
दे विनम्रता
*
पर पीड़ा से
तनिक न पिघले
मानव कैसे?
*
मैले मन को
उजला तन प्रभु!
देते क्यों कर?
*

सोमवार, 25 फ़रवरी 2013

पीड़ा प्रभु की प्यारी तनया संजीव 'सलिल'

एक रचना :
पीड़ा प्रभु की प्यारी तनया
संजीव 'सलिल'
*
पीड़ा प्रभु की प्यारी तनया, मिले उसी को जो हो लायक.
सुख-ऐश्वर्य भोगता है वह, जिसकी भावी हो क्षय कारक..

कल जोड़ा जो आज खा रहा, सुख-भोगों को ऐसा मानें.
खाते से निकालकर पैसा, रिक्त कर रहे ऐसा जानें..

कष्ट भोगता जो वह करता, आज जमा कुछ कल की खातिर.
अगले जन्म सुकर्म फले, यह जान सहे हर मुश्किल माहिर..

देर मगर अंधेर नहीं है, यह विश्वास रखे जो मन में.
सह पाता वह हँसकर पीड़ा, असहनीय जो होती तन में..
*****

Sanjiv verma 'Salil'
salil.sanjiv@gmail.com
http://divyanarmada.blogspot.com

बुधवार, 6 जून 2012

दोहा मुक्तिका: पल पल हो मधुमास... -- संजीव 'सलिल'



दोहा मुक्तिका: 

पल पल हो मधुमास... 

--संजीव 'सलिल'


*
आसमान में मेघ ने, फैला रखी कपास.
कहीं-कहीं श्यामल छटा, झलके कहीं उजास..
*
श्याम छटा घन श्याम में, घनश्यामी आभास.
वह नटखट छलिया छिपे, तुरत मिले आ पास..
*
सुमन-सुमन में 'सलिल' को, उसकी मिली सुवास.
जिसे न पाया कभी भी, किंचित कभी उदास..
*
उसकी मृदु मुस्कान से, प्रेरित सफल प्रयास.
कर्म-धर्म का मर्म दे, अधर-अधर को हास.
*
पूछ रहा मन मौन वह, क्यों करता परिहास.
क्यों दे पीड़ा उन्हीं को, जिन्हें मानता खास..
*
मोहन भोग कभी मिले, कभी किये उपवास.
दोनों में जो सम रहे, वह खासों में खास..
*
सज्जन पायें शांति-सुख, दुर्जन पायें त्रास.
मूरत उसकी एक पर, भिन्न-भिन्न अहसास..
*
गौओं के संग विचरता, पद-तल कोमल घास.
सिहर सराहे भाग्य निज,  पल-लप हो मधुमास..
*
कभी अधर पर मुरलिया, कभी सरस मृदु हास.
'सलिल' अधर पर धर नहीं, कभी सत्य-उपहास..
***