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शुक्रवार, 29 नवंबर 2019

भोजपुरी सरस्वती वंदना गीता चौबे

भोजपुरी सरस्वती वंदना
गीता चौबे










जन्म - ११ अक्टूबर १९६७।
आत्मजा - श्रीमती तारा देवी - श्री (डॉ0)इन्द्रदेव उपाध्याय।
जीवनसाथी - श्री सुरेंद्र कुमार, अधीक्षण अभियंता।
शिक्षा - स्नातक प्रतिष्ठा, इतिहास में स्नातकोत्तर।
प्रकाशन - 'क्यारी भावनाओं की' शीघ्र प्रकाश्य।
ब्लॉग : मन के उद्गार।
उपलब्धि - साहित्यिक सम्मान।
संपर्क - जी ४ ए ग्रीन गार्डन अपार्टमेंट, हेसाग, हटिया, राँची ८३४००३ झारखंड।
चलभाष - ८८८०९६५००६।
*
हमनी के जीवन सँवार दे
माँ शारदे, माँ शारदे, माँ शारदे
हमनी के जीवन सँवार दे
माँ शारदे ....
मन में तोहर दर्शन के आस बा
आइल बानी हम सभे तोहरे पास माँ
छवि अँखियन में उतार दे माँ
शारदे माँ....
हमनी के बचवन हईं अज्ञानी
अब ना करब जा हमनी मनमानी
हमनी के तू सुविचार दे
माँ शारदे माँ...
आवे ना हमनी के छंद बंद्य माँ
हमके सिखा द अक्षर चंद माँ
सुर हमनी के निखार दे माँ
शारदे माँ...
हमनी के दे द आतना बुद्धि
मन में ना रहे कवनो अशुद्धि
अब ना कवनो विकार दे माँ
माँ शारदे ... माँ शारदे... माँ शारदे
जीवन हमनी के सँवार दे, माँ शारदे
***

घनाक्षरी

घनाक्षरी
*
नागनाथ साँपनाथ, जोड़ते मिले हों हाथ, मतदान का दिवस, फिर निकट है मानिए।                                 
चुप रहे आज तक, अब न रहेंगे अब चुप, ई वी एम से जवाब, दें न बैर ठानिए।।                                      सारी गंदगी की जड़, दलवाद है 'सलिल', नोटा का बटन चुन, निज मत बताइए-                                    लोकतंत्र जनतंत्र, प्रजातंत्र गणतंत्र, कैदी न दलों का रहे, नव आजादी लाइए।। ***
संजीव, २८-११-२०१८

एक व्यंग्य कविता

एक व्यंग्य कविता
*
ऊधौ! का सरकारै सब कछु?
'विथ डिफ़रेंस' पार्टी अद्भुत, महबूबा से पेंग लड़ावै
बात न मन की हो पाए तो, पलक झपकते जेल पठावै
मनमाना किरदारै सब कछु?
कम जनमत पा येन-केन भी, लपक-लपक सरकार बनावै
'गो-आ' खेल आँख में धूला, झोंक-झोंककर वक्ष फुलावै
सत्ता पा फुँफकारै सब कछु?
मिले पटकनी तो रो-रोकर, नाहक नंगा नाच दिखावै
रातों रात शपथ ले छाती, फुला-फुला धरती थर्रावै
कैसऊ करो, जुगारै सब कछु
जोड़ी पूँजी लुटा-खर्चकर, धनपतियों को शीश चढ़ावै
रोजगार पर डाका डाले, भूखों को कानून पढ़ावै
अफरा पेट, डकारै सब कछु?
खेत ख़त्म कर भू सेठों को दे-दे पार्टी फंड जुटावै
असफलता औरों पर थोपे, दिशाहीन हर कदम उठावै
गुंडा बन दुत्कारै सब कछु?
***

मुक्तक

मुक्तक
आइये मिलकर गले मुक्तक कहें 

गले शिकवे गिले, हँस मुक्तक कहें
महाकाव्यों को न पढ़ते हैं युवा
युवा मन को पढ़ सके, मुक्तक कहें
***

बहुत सुन्दर प्रेरणा है
सत्य ही यह धारणा है
यदि न प्रेरित हो सका मन
तो मिली बहु तारणा है
***

हमारा टर्न तो हरदम नवीन हो जाता
तुम्हारा टर्न गया वक्त जो नहीं आता
न फिक्र और की करना हमें सुहाता है
हमारा टर्म द्रौपदी का चीर हो जाता
***

कार्यशाला में न आये, वाह सर
आये तो कुछ लिख न लाये, वाह सर
आप ही लिखते रहें, पढ़ते रहें
कौन इसमें सर खपाए वाह सर
***

जगाते रहते गुरूजी मगर सोना है
जागता है नहीं है जग यही रोना है
कह रहे हम पा सकें सब इसी जीवन में
जबकि हम यह जानते सब यहीं खोना है

***

दोहा

दोहा 
दिया बाल मत सोचना, हुआ तिमिर का अंत.
तली बैठ मौका तके, तम न भूलिए कंत.
.
तज कर वाद-विवाद कर, आँसू का अनुवाद.
राग-विराग भुला "सलिल", सुख पा कर अनुराग
.
भट का शौर्य न हारता, नागर धरता धीर.
हरि से हारे आपदा, बौनी होती पीर.
.
प्राची से आ अरुणिमा, देती है संदेश.
हो निरोग ले तूलिका, रच कुछ नया विशेष.
.
साँस पटरियों पर रही, जीवन-गाडी दौड़.
ईधन आस न कम पड़े, प्यास-प्रयास ने छोड़.
.
इसको भारी जिलहरी, भक्ति कर रहा नित्य.
उसे रुची है तिलहरी, लिखता सत्य अनित्य.
.
यह प्रशांत तर्रार वह, माया खेले मौन.
अजय रमेश रमा सहित, वर्ना पूछे कौन?
.
सत्या निष्ठा सिंह सदृश, भूली आत्म प्रताप.
स्वार्थ न वर सर्वार्थ तज, मिले आप से आप.
.
नेह नर्मदा में नहा, कलकल करें निनाद.
किलकिल करे नहीं लहर, रहे सदा आबाद.
.
नारी के दो-दो जगत, 
वह दोनों की शान
पाती है वरदान वह, जब हो कन्यादान.
.
नारी को माँगे बिना, मिल जाता नर-दास.
कुल-वधु ले नर दान में, सहता जग-उपहास.
.
दल-बल सह जा दान ले, भिक्षुक नर हो दीन.
नारी बनती स्वामिनी, बजा चैन से बीन.
.
चीन्ह-चीन्ह आदेश दे, बीन-बीन ले हक.
समता कर सकता न नर, तज कोशिश नाहक.
.
दो-दो मात्रा अधिक है, नारी नर से जान.
कुशल चाहता तो कभी, बैर न उससे ठान.
.
यह उसका रहमान है, वह इसकी रसखान.
उसमें इसकी जान है, इसमें उसकी जान.
.

नवगीत

नवगीत
कहता मैं स्वाधीन
*
संविधान
इस हाथ से
दे, उससे ले छीन।
*
जन ही जनप्रतिनिधि चुने,
देता है अधिकार।
लाद रहा जन पर मगर,
पद का दावेदार।।
शूल बिछाकर
राह में, कहे
फूल लो बीन।
*
समता का वादा करे,
लगा विषमता बाग।
चीन्ह-चीन्ह कर बाँटता,
रेवड़ी, दूषित राग।।
दो दूनी
बतला रहा हाय!
पाँच या तीन।
*
शिक्षा मिले न एक सी,
अवसर नहीं समान।
जनभाषा ठुकरा रह,
न्यायालय मतिमान।।
नीलामी है
न्याय की
काले कोटाधीन।
*
तब गोरे थे, अब हुए,
शोषक काले लोग।
खुर्द-बुर्द का लग गया,
इनको घातक रोग।।
बजा रहा है
भैंस के, सम्मुख
जनगण बीन।
*
इंग्लिश को तरजीह दे,
हिंदी माँ को भूल।
चंदन फेंका गटर में,
माथे मलता धूल।।
भारत को लिख
इंडिया, कहता
मैं स्वाधीन।
***
संजीव
२८-११-२०१८


नवगीत

नवगीत:
कौन बताये
नाम खेल का?
.
तोल-तोल के बोल रहे हैं
इक-दूजे को तोल रहे हैं
कौन बताये पर्दे पीछे
किसके कितने मोल रहे हैं?
साध रहे संतुलन
मेल का
.
तुम इतने लो, हम इतने लें
जनता भौचक कब कितने ले?
जैसी की तैसी है हालत
आश्वासन चाहे जितने ले
मेल नीर के
साथ तेल का?
.
केर-बेर का साथ निराला
स्वार्थ साधने बदलें पाला
सत्ता खातिर खेल खेलते
सिद्धांतों पर डाला ताला
मौसम आया
धकापेल का
.नवगीत:
कब रूठें
कब हाथ मिलायें?
नहीं, देव भी
कुछ कह पायें
.
ये जनगण-मन के नायक हैं
वे बमबारी के गायक हैं
इनकी चाह विकास कराना
उनकी राह विनाश बुलाना
लोकतंत्र ने
तोपतंत्र को
कब चाहा है
गले लगायें?
.
सारे कुनबाई बैठे हैं
ये अकड़े हैं, वे ऐंठे हैं
उनका जन आधार बड़ा पर
ये जन मन मंदिर पैठे हैं
आपस में
सहयोग बढ़ायें
इनको-उनको
सब समझायें
. . .
(सार्क सम्मलेन काठमांडू, २६.१.२०१४ )

त्रिपदियाँ

त्रिपदियाँ
प्राण फूँक निष्प्राण में, गुंजित करता नाद
जो- उससे करिये 'सलिल', आजीवन संवाद
सुख-दुःख जी वह दे गहें, हँस- न करें फ़रियाद।
*
शर्मा मत गलती हुई, कर सुधार फिर झूम
चल गिर उठ फिर पग बढ़ा, अपनी मंज़िल चूम
फल की आस किये बिना, काम करे हो धूम।
*
करी देश की तिजोरी, हमने अब तक साफ़
लें अब भूल सुधार तो, खुदा करेगा माफ़?
भष्टाचार न कर- रहें, साफ़ यही इन्साफ।
*

नवगीत

नवगीत:
गीत पुराने छायावादी
मरे नहीं
अब भी जीवित हैं.
तब अमूर्त
अब मूर्त हुई हैं
संकल्पना अल्पनाओं की
कोमल-रेशम सी रचना की
छुअन अनसजी वनिताओं सी
गेहूँ, आटा, रोटी है परिवर्तन यात्रा
लेकिन सच भी
संभावनाऐं शेष जीवन की
चाहे थोड़ी पर जीवित हैं.
बिम्ब-प्रतीक
वसन बदले हैं
अलंकार भी बदल गए हैं.
लय, रस, भाव अभी भी जीवित
रचनाएँ हैं कविताओं सी
लज्जा, हया, शर्म की मात्रा
घटी भले ही
संभावनाऐं प्रणय-मिलन की
चाहे थोड़ी पर जीवित हैं.
कहे कुंडली
गृह नौ के नौ
किन्तु दशाएँ वही नहीं हैं
इस पर उसकी दृष्टि जब पडी
मुदित मग्न कामना अनछुई
कौन कहे है कितनी पात्रा
याकि अपात्रा?
मर्यादाएँ शेष जीवन की
चाहे थोड़ी पर जीवित हैं.
***

गुरुवार, 28 नवंबर 2019

एक व्यंग्य कविता

एक व्यंग्य कविता
*
ऊधौ! का सरकारै सब कछु?
'विथ डिफ़रेंस' पार्टी अद्भुत, महबूबा से पेंग लड़ाए
बात न मन की हो पाए तो, पलक झपकते जेल पठाए
मनमाना किरदारै सब कछु?
कम जनमत पा येन-केन भी, लपक-लपक सरकार बनाए
'गो-आ' खेल आँख में धूला, झोंक-झोंककर वक्ष फुलाए
सत्ता पा फुँफकारै सब कछु?
मिले पटकनी तो रो-रोकर, नाहक नंगा नाच दिखाए
रातों रात शपथ ले छाती, फुला-फुला धरती थर्राए
कैसऊ करो, जुगारै सब कछु
जोड़ी पूँजी लुटा-खर्चकर, धनपतियों को शीश चढ़ाए
रोजगार पर डाका डाले, भूखों को कानून पढ़ाए
अफरा पेट, डकारै सब कछु?
खेत ख़त्म कर भू सेठों को दे-दे पार्टी फंड जुटाए
असफलता औरों पर थोपे, दिशाहीन हर कदम उठाए
गुंडा बन दुत्कारै सब कछु?
***

बुधवार, 27 नवंबर 2019

जोगनी गंध - हाइकू, शशि पुरवार

जोगनी गंध



शशि पुरवार
जन्म तिथि: 22 जून 1973 ई.।
जन्म स्थान: इंदौर, मध्य प्रदेश। 
शिक्षा: स्नातक- बी.एस-सी.विज्ञान।
स्नातकोत्तर:एम.ए.राजनीति, 1⁄4देवी अहिल्या विश्वविद्यालय, इंदौर1⁄2 तीन वर्षीय हानर्स
डिप्लोमा इन कम्प्यूटर साफ्टवेयर एंड मैनेजमेंट।
भाषा ज्ञान: हिंदी, मराठी, अंग्रेजी
सम्प्रति: स्वतंत्र लेखन
प्रकाशित कृतियाँ: व्यंग्य संग्रह-व्यंग्य की घुड़दौड़ 1⁄420181⁄2, धूप आँगन की 1⁄420181⁄2,मन का
चैबारा 1⁄4काव्य संग्रह शीघ्र प्रकाशीय1⁄2, अन्य व छंद संग्रह काव्य संग्रह प्रकाशनार्थ।

लेखन विधाएँ: देश के प्रतिष्ठित समाचार पत्र एवं पत्रिकाओं में आलेख, व्यंग्य, कहानी,
गीत नवगीत, ग़ज़ल, दोहे, कुण्डलियाँ, छंदमुक्त कविताएँ, तांका, चोका,
माहिया, हाइकु, आलेख, लघुकथा, कविताओं का सतत् लेखन एवं
प्रकाशन। अन्तर्जाल पर भी रचनाएँ प्रकाशित। ब्लाग ‘‘सपने“ नाम से
अंतरजाल पर लेखन व प्रकाशन।
अनगिनत महत्वपूर्ण दस्तावेजों समेत कई साझा संकलन में शामिल
1. ‘नारी विमर्श के अर्थ’ निबंध संग्रह। 2. ‘उजास साथ रखना’ चोखा संग्रह। 3. ‘त्रिसुगंधी’
गीत-नवगीत संग्रह। 4. ‘आधी आबादी’ हाइकु संग्रह। 5. ‘स्वातं×योत्तर हिंदी कविता दशा
और दिशा’ हाइकु आलेख संग्रह। 6. नयी सदी के नवगीत-गीत संग्रह। 7. सहयात्री समय
के-गीत संग्रह। 8. कविता अनवरत-गजल प्रकाशन अयन प्रकाशन। 9. लेडीज डाट
काॅम-व्यंग्य संग्रह। 10. आधी आबादी दोहा संग्रह। 11. स्त्री का आकाश भाग 1-2-पर्यावरण
संरक्षण कविताएँ-ग्रीन अर्थ संगठन। 12. शब्द साधना-गीत संग्रह-हिंदुस्तानी भाषा अकादमी।
13. समकालीन गीतकोष-गीत संग्रह। 14. कविता कोष गीत। 15. लघुकथा कोष 16. खट्टे
मीठे रिश्ते 1⁄4उपन्यास की सह लेखिका1⁄2
‘विशेष’- फिल्म डायरेक्टर दर्शन दरवेश द्वारा कुछ कविताओं का पंजाबी अनुवाद
सम्मान/पुरस्कार:
1. हिंदी विश्व संस्थान और कनाडा से प्रकाशित होने वाली ‘प्रयास’ के सयुंक्त तत्वाधान में
आयोजित देशभक्ति प्रतियोगिता में 2013 की विजेता। 2. ‘अनहद कृति’ काव्य प्रतिष्ठा
सम्मान-2014-15। 3. ‘राष्टंभाषा सेवी सम्मान’ अकोला-2015। 4.’’हिंदी विद्यापीठ
भागलपुरः विद्यावाचस्पति सम्मान’-2016। 5. ’’‘मिनिस्टंी आॅफ़ वूमेन एंड चाइल्ड डेवलपमेंट’
द्वारा भारत की 100 ूवउमद’े ।बीपमअमते व िप्दकपं 2016 सम्मान। महामहिम
राष्टंपति प्रणव मुखर्जी जी द्वारा सम्मानित 100 महिला अचीवर्स सम्मान। 6. ‘हरिशंकर
परसाई स्मृति सम्मान’ 2016। 7. ’’‘‘वुमन इन एनवायरमेंटः बालिका सर्वोदय और
पर्यावरण’’ संवर्द्धन के अंतर्गत ‘राष्टं स्तरीय महिला कविता प्रतियोगिता’ 2017। 8. अखिल
भारतीय पोरवाल महासंघ दिल्ली द्वारा प्रतिभा सम्मान 2017। 9. हिंदुस्तानी भाषा काव्य
प्रतिभा सम्मान 2018-हिंदुस्तानी भाषा अकादमी दिल्ली
इसवह.ीजजचरूध्ध्ेंचदम-ेींेीप.इसवहेचवजण्बवउए मउंपसरूेींेीपचनतूंत/हउंपसण्बवउ
चलभाष संपर्क: 094205-19803

जोगनी गंध
;हाइवुफद्ध

शशि पुरवार

लोकोदय प्रकाशन
लखनउफ

काॅपीराइट © शशि पुरवार
प्रथम संस्करण: 2019
आवरण व रेखाचित्रा: संकल्प
मुद्रक: रेप्रो प्रिन्टर्स

प्ैठछ रू 978.93.88839.00.0
श्रवहंदप ळंदकी
ठल ैींेीप च्नतूंत

मूल्य: ृ200

लोकोदय प्रकाशन प्रा. लि.
65/44, शंकर पुरी, छितवापुर रोड, लखनऊ-226001

दूरभाष: 9076633657
ई-मेल: सवावकंलचतंांेींद/हउंपसण्बवउ

मन की बात

संवेदनाएं जोगन ही तो है जो नित भावों के भिन्न भिन्न द्वार विचरण करती
है। भावों के सुंदर फूलों की गंध में दीवानगी होती है। जो मदहोश करके मन
को सुगन्धित कर देती है। इसी तरह साहित्य के अतल सागर में अनगिनत मोती
छुपे हुए है। जितना गहराई में जाओ, हाथ कभी खाली बाहर नही आते है।
संवेदनाओं को भिन्न भिन्न रूप में व्यक्त करना जहाँ हृदय को सुकून प्रदान
करता है वहीं मन इन्ही जोगनी गंधों में असीम सुख का अनुभव करने लगा।
जोगनी गंध में भावों के अनगिनत फूल इस डलिया में संग्रहित है। मैंने 2010
में किसी पत्रिका में हाइकु पढ़े थे। छोटी सी इस जापानी लघु विधा ने खूब
आकर्षित किया। कम शब्दों में पूर्ण कविता का निचोड़ ही हाइकु की पहचान है।
जब मै अस्वस्था के कारण जीवन से संघर्ष कर रही थी, ऐसे समय हाइकु बिस्तर
पर आराम करते हुए बनते रहे। उसके बाद अनुभूति पत्रिका में मेरे हाइकु
प्रकाशित हुए उसके बाद अग्रज हिंदी हाइकु के संपादक आ रामेश्वर कम्बोज जी
के संपर्क में आयी। उन्होंने इस विधा को लिखने के लिए खूब प्रेरित किया।
उन्होंने कहा आपके हाइकु बहुत सुन्दर होते है। कई महत्वूर्ण दस्तावेजों में मेरे
हाइकु शामिल है। कम्बोज जी व हरदीप सिंधु जी हाइकु विधा पर काम कर रहे
थे। उनके परिवार में जुड़कर हाइकु का सतत लेखन व प्रकाशन होने लगा।
इससे कलम को जंग भी नही लगी व अच्छे हाइकु लिखना एक चुनौती थी।
हाइकु लिखने में मन इतना रम गया कि मै अपनी पीर भूलने लगी। उस समय
लघु कविता हाइकु लिखना मेरे लिये सहज था। मेरी माँ को साहित्यिक अभिरूचि
है उन्हें यह जापानी विधा बहुत पसंद आयी, एक दिन उन्होंने मुझे कहा-तुम्हारे
हाइकु मुझे बहुत पसंद है। हाइकु को पाठकों द्वारा भी खूब प्रतिसाद मिला। एक
हाइकुकार के रूप में भी उन्होंने स्थापित कर दिया।
हाइकु खूब लिखे किन्तु कभी संगृहीत नही किये। लेखन मेरे लिए पूजा है
इसीलिए नित भिन्न भिन्न भिन्न विधाएँ लिखती रही और उन्हें पत्र पत्रिकाओं
द्वारा पाठकों तक पहुँचाती रही। संग्रह प्रकाशन का विचार कभी मन में नही था।
हाइकु पर आलेख पत्र भी तैयार किया जिसे अकोला के विश्वविद्यालय में पढ़ा

गया। हाइकु लोगो को सिखाने का भी प्रयास किया और उसका अध्ययन किया।
विधा कोई भी हो उसे पूर्ण समर्पण के बिना साधा नही जा सकता है। हाइकु ठीक
उसी प्रकार है जैसे देखन में छोटे लगे, घाव करे गंभीर।
हाइकु साधारणतः प्रकृति परक माने जाते है किन्तु उसमे आजकल
संवेदनात्मक अभिव्यक्ति भी होने लगी है। मैंने सभी हाइकु सहज अभिव्यक्ति
स्वरुप लिखे हैं। कभी कलम के साथ जबरजस्ती नही की। आसपास में बिखरी
संवेदनाओं सहित प्रकृति को भी समेटा है। जोगनी गंध के बारे में बस इतना
ही कहना चाहती हूँ-जोगनी गंध मेरे लिए दीवानगी है। जैसे बंद किताबों में
महकते हुए सूखे गुलाब हों या बूँद बूँद पिघलता मन। कहीं सुलगती पीर है तो
कहीं एकाकीपन, कहीं दीवानगी है तो कहीं प्रेम का है समर्पण। कहीं चाँद-तारों
की बारातें है तो कभी झील में मुस्काता चाँद है। नन्हें पौधों संग संवाद है, कभी
हरियाली में खिलखिलाती सोनल धूप है। परिवेश में बिखरी हुई संवेदनाओं को
एक आकार दिया है। प्रकृति के संग मानवीय संवेदनाओं को जोड़ा है तो कहीं
नैसर्गिक सुंदरता में मानवीयकरण भी नजर आता है। इस संग्रह को तैयार करने
में बहुत वक़्त लग गया। जब लोकोदय प्रकाशन से संग्रह प्रकाशन का प्रस्ताव
मिला उसके बाद मैंने हाइकु संगृहीत किये। अंतरजाल व पत्र पत्रिकाओं में
जितने हाइकु मिले उतने समेट लिए है। अफ़सोस भी हुआ कि काश सब एकत्रित
किया होता किन्तु जिस समय लेखन को गति प्रदान कर रही थी उस समय जीवन
की पथरीली जमीन से झूझ भी रही थी। इसीलिए नित लेखन करते समय उन्हें
संग्रहित नही कर सकी. अनगिनत रचनाएँ व अन्य विधाएँ अंतरजाल के काल
के गर्त में विचरती कहीं न कहीं जरूर मिल जाएँगी। शेष जोगनी गंध में शामिल
हैं। मेरी यह कृति माँ के साथ साथ पाठक मित्रों को समर्पित है। आशा है पढ़कर
आप अपनी प्रतिक्रिया से अवगत जरूर कराएँगे। आप सभी को नमन, व
लोकोदय प्रकाशन का हार्दिक धन्यवाद जिनके प्रयासों से जोगनी गंध आपके हाथों
में महकने हेतु तैयार है। आशा है जोगनी गंध को आपका स्नेह प्राप्त होगा। मेरे
एक हाइकु से आप सभी को नमन।

प्रेम है चित्र
अनमोल सौगात
पाठक मित्र
-शशि पुरवार

जोगनी गंध 7

हाइकु-हाइकु क्या है

हाइकु मूलतः जापान की लोकप्रिय विधा है. हाइकु जापान का मुक्तक काव्य
प्रकार है, जापानी काव्य विधा के तीन प्रकार प्रचलित है। 1 ताँका 2 चोका 3
सदोका, इन सभी शैलियों की पंक्तियाँ 5,7 के घटक की लम्बी कविताएँ हैं, इन
सभी की लम्बाई में अंतर है, किन्तु हाइकु सिर्फ-पंक्ति में लिखा जाने वाला काव्य
प्रकार है जापानी संतो द्वारा लिखी जाने वाली इस लोकप्रिय काव्य विधा को
जापानी संत बाशो द्वारा विश्व में प्रतिष्ठित किया गया था। हाइकु विश्व की सबसे
छोटी लघु कविता कहीं जाती है। एक ऐसा लघु पुष्प जिसकी महक, अन्तःस
वातावरण को सुगंधित करती है। हाइकु अपने आप में सम्पूर्ण है। हाइकु कविता
5$7$53⁄417 वर्ण के ढाँचे में लिखी जाती है। 17वर्ण की अतुकांत त्रिपदीय
रचना को हिंदी हाइकु कारों ने स्वीकारा है। इस विधा में मात्राओं और अर्ध
व्यंजनों की गिनती नहीं होती है। जापानी कवि बाशो एक यायावर संत थे, उन्होंने
तीन सौ शिष्य बनाकर उन्हें प्रशिक्षित किया था। वह स्वयं प्रकृति प्रेमी थे किन्तु
हाइकु को लोग अध्यात्मिक मानते हैं। कवि बाशो के कथनानुसार-‘‘जिसने 5
हाइकु लिखें है वह कवि, जिसने 10 हाइकु लिखें है वह महाकवि है ”5-7-5
यह तीन पक्तियों में लम्बी कविता का निचोड़ होता है, सहजता, सरलता, ग्राहिता,
संस्कार हाइकु के सौन्दर्य, उसकी आत्मा है। सपाट बयानी हाइकु में हरगिज
मान्यन ही है। गद्य की एक पंक्ति को तीन पंक्तियों में तोड़कर लिख देने से हाइकु
कविता नहीं बनती है, हाइकु देखने मे ंजितने सरल प्रतीत होतें है, वास्तव में
उतने सरल नहीं है, किन्तु मुश्किल भी नहीं हाइकु सृजन एक काव्य साधना है।
हाइकुकार वह है जो हाइकु के माध्यम से गहन कथ्य को बिम्ब और नवीनता
द्वारा सफलतापूर्वक संप्रेषित करता है काव्य साधना के बिना हाइकु लिखना
असंभव है। हाइकु जितने बार भी पढ़े जायें विचारों की गहन परतों को खोलते
है, हाइकु में फूलों सी सुगंध व नाजुकता होती है। हाइकु एक कली के समान
है जिसकी हर पंखुड़ी हर विचारों की नयी परतें खोलती है। देखने में छोटे प्रतीत

8 जोगनी गंध
होने वाले हाइकु पूर्ण अर्थ को समेट कर कथ्य को प्रस्तुत करते हैं। ‘‘देखन में
छोटे लगे घाव करे गंभीर“ वाली भंगिमा सार्थक करते हैं। हाइकु का मूल आधार
प्रकृति है, इसीलिए कुछ विद्वान इसे प्रकृति काव्य भी कहते हैं। साहित्य का
गुणधर्म होता है ग्रहण करना यही कारण है हाइकु भी सामाजिक परिवेश में ढल
चुके हैं। साहित्य काव्य में समयानुसार परिवर्तन होते रहते हैं। हाइकु में भी यह
बदलाव देखे गये है। अब हाइकु सिर्फ प्रकृतिपरक नहीं है अपितु सामाजिक
विसंगतियां, संवेदनाओं के मध्य सेतु बनकर जुड़ें हैं। हाइकु विश्व की सभी समृद्ध
भाषा में रचे जाने लगे हैं। हाइकु का क्षेत्र अब व्यापक हो गया है। भारत में
सर्व प्रथम गुरु रविन्द्र नाथ टैगोर ने 1916 में अपनी जापानी यात्रा के बाद लिखे
‘‘जापानी यात्री’’ नामक सफर नामे के अंतर्गत बंगाली भाषा में हाइकु की
जानकारी प्रदान की थी। गुरूजी ने बाशो के हाइकु का बंगाली अनुवाद भी किया,
सभी हाइकु टैगोर जी की पुस्तक ‘‘अचनचेत उड़रियाँ’’ में शामिल है। हाइकु के
क्षेत्र में हिंदी का प्रथम हाइकु कवि बाल कृष्ण बाल दुआ माने जातें हैं, जिन्होंने
1947 में अनेक हाइकु लिखे। उदारहण स्वरूप एक हाइकु देखा जा सकता है।
बादल देख/खिल उठे सपने/खुश किसान 1⁄4परिषद-पत्रिका अंक अप्रैल-2010
-मार्च-2011, पृष्ठ 1821⁄2
भारत में हाइकु काव्य को हिंदी साहित्य ने बाहें फैला कर स्वीकार किया
है। आज हाइकु विधा बहुत समृद्ध हो चुकी है, हिंदी के पांचवे दशक में हाइकु
रचना के कुछ सन्दर्भ मौजूद हैं किन्तु अज्ञेय द्वारा रचित ‘‘अरी ओ करुणा
प्रभाकर“ 1⁄4प्र. प्र.19591⁄2 को विधिवत मान्यता मिली है जिसमे जापानी हाइकु के
कुछ भावानुवाद/छायावाद एवं कुछ लघु कविताएँ शामिल है। अज्ञेय हाइकु सौन्दर्य
के अभिभूत थे। अरी ओ करुणा प्रवाहमय के ‘‘रूप केकी“ खंड की कुछ बहु
चर्चित रचनाएँ पगडण्डी, वसंत, पूनो की साँझ, चिड़िया की कहानी ‘‘बारम्बार
सराही गयी“ एक चीड का खाका ‘‘खंड के अंतर्गत अज्ञेय ने प्रसिद्ध हाइकुकारों
के अनुवाद प्रस्तुत किये थे जो जापानी भाषा विद समीक्षाकारों द्वारा यथार्थ के
निकट पाये गए, सभी विश्वसनीय और मूल हाइकु के सन्निकट माने गए। छठे
दशक में डाॅ. प्रभाकर माचवे और त्रिलोचन शास्त्री जैसे ख्याति प्राप्त कवि भी
हाइकु से जुड़े।
हिंदी हाइकु का महत्वपूर्ण अध्याय डाॅ. सत्य भूषण वर्मा के हाइकु अभियान
के बाद प्रारंभ हुआ है। डाॅ. वर्मा जे.एन.यू. दिल्ली में जापानी भाषा के

जोगनी गंध 9
विभागाध्यक्ष थे। जापानी हाइकु और हिंदी कविता विषय पर शोध के साथ साथ
आपने 1978 में ‘‘भारतीय हाइकु क्लब की स्थापना की और एक अंतर्देशीय
लघु“ हाइकु पत्र का प्रकाशन भी किया। आपने जापानी हाइकु का हिंदी अनुवाद
भी किया है आज हाइकु विधा बेहद लोकप्रिय हो चुकी है। शिल्प की दृष्टी से
हाइकु 5-7-5 खांचे में लिखे हुए सिर्फ वर्ण नहीं है। कथ्य में कसावट, गहनता,
अर्थ, बिम्ब, सम्पूर्णता स्पष्ट होना आवश्यक है। वस्तु और शिल्प द्वारा हाइकु
की गरिमा और शालीनता बनाये रखना हाइकुकार का प्रथम धर्म है। हाइकु के
नाम पर फूहड़ता प्रस्तुत नहीं होनी चाहिए। आज हाइकु प्रचलित होने के कारण
लोगों के मध्य लोकप्रिय हो चुका है, किन्तु अल्प ज्ञान के कारण हाइकु के नाम
पर लोग कुछ भी लिखने लगे है, जिसे हाइकु नहीं कह सकतें हैं। हाइकु की तीनों
पंक्तियाँ पृथक होकर भी सम्पूर्ण कविता का सार संप्रेषित करती हैं। हाइकु काव्य
की सामयिकता स्वयं सिद्ध है.अब हाइकु हिंदी में स्थायी रूप से स्थापित होने की
ओर अग्रसर है, कई हाइकुकारों के हाइकु काव्य संकलन सराहे गए हैं, हाइकु
अतुकांत और तुकांत दोनों की प्रकार से लिखे जा रहें हैं। किन्तु कथ्य में कसावट
और काव्य की गरिमा भी उतनी ही महत्वपूर्ण हैं। कई हाइकुकार कभी पहली
2 पंक्ति या अंतिम दो पंक्ति या पहली व अंतिम पंक्ति में तुकांत हाइकु का निर्माण
करतें है। हाइकु गागर में सागर के समान है। हाइकु प्रकृति की अंतर
अनुभूतियों को संप्रेषित करने में सक्षम है। काव्यात्मकता और लयात्मकता हाइकु
के श्रृंगार हैं। गेयता हाइकु में रसानुभूति प्रदान करती हैं। हाइकु में प्रकृति के
सौन्दर्य के विविध रंग हाइकुकारों द्वारा उकेरे गयें है, कहीं पलाश दूल्हा बना है,
कहीं धूप काॅपी जाँचती है, कहीं घाटियाँ हँसती है, हाइकु के नन्हे-नन्हे चमकीले
तारें मन के अम्बर पर सदैव टिमटिमाते रहते हैं। प्रकृति की गोद में इतनी
सुन्दरता है कि अपलक उसके सौन्दर्य को निराहते रहो, सौन्दर्य की गाथा उकेरते
रहो, फिर भी अंत नहीं होगा। कवियों द्वारा प्रकृति के सौन्दर्य अनुपम छटा उनकी
कल्पना शक्ति के द्वारा ही संभव है।
प्रकृति के अलग अलग रंगों की कुछ बानगी देखियेμ
नभ गुंजाती/नीड़-गिरे शिशु पे मंडराती माँμडाॅ. भगवतीशरण अग्रवाल
रजनीगंधा/झाड़ में समेटे हैं/हजारों तारे-डाॅ. सुधा गुप्ता
घाटियाँ हँसी/अल्हड किशोरी-सी/चुनर रंगी-रामेश्वर काम्बोज ‘‘हिमांशु“
सौम्य सजीले/दुल्हे का रूप धरे/आये पलाश-शशि पुरवार

10 जोगनी गंध
ले अंगड़ाई/बीजों से निकलते/नव पत्रक-शशि पुरवार
धूप जाँचती/ऋतुओं की शाला में/जाड़े की काँपी-पूणर््िामा वर्मन
सूर्य के पांव/चूमकर सो गए/ गाँव के गाॅंव-जगदीश व्योम
पत्रों पे बैठे/बारिश के मन के/जड़ा है हीरा-शशि पुरवार
आँगनखड़ी/चाँदी-कटोरा हाथ/भिक्षुणी रात-भावना कुँवर
पवन लिखे/रेतकी तल्खी पे/ सुख की पाती-शशि पुरवार
नदिया तीरे/झील में उतरता/हौले से चंदा-शशि पुरवार
हाइकु में प्रकृति के रंग के अलावा हाइकु कारों द्वारा फूल- पत्ते, पेड-पौधे,
पशु-पक्षी, भ्रमर, अम्बर-पृथ्वी, मानवीय संवेदना, प्रेम, पीर, रिश्ते-नाते, राग-रंग,
सपर्श और भी न जाने कितने विषयों पर हाइकु का जन्म हुआ है। वेदना-वियोग
की पीड़ा के भी प्रकार होते हैं, कभी पीड़ा असहनीय होती है तो कभी उस पीड़ा
में पुनर्मिलन की आशा भी सुकून प्रदान करती है। प्रेम करने वाले कई
अनुभूतियों से मिलन समागम होता है। विचारों के मंथन के बाद ही हाइकु अमृत
बनकर बाहर निकलता है। वियोग पुरुष हो या प्रकृति दोनों के लिए पीड़ादायक
होता है। इस सन्दर्भ में कुछ हाइकु के कुछ उदारहण प्रासंगिक होंगेμ
पीर जो जन्मी/बबूल सी चुभती/ स्वयं की साँसे-शशि पुरवार
सुबक पड़ी/कैसी थी वो निष्ठुर/ विदा की घड़ी-भावना कुँवर
ठहरी नहीं/बरसती रही थी/ आँखें रेत में-डा. मिथिलेश दीक्षित
आज भी ताजा/यौवन के फूलों में/यादों की गंध-डाॅ. भगवत शरण अग्रवाल
ठूंठ बनकर/ सन्नाटे भी कहतें/पास न आओ-शशि पुरवार
आँसू से लिखी/ वो चिट्ठी जब खोली/भीगी हथेली-डा. हरदीप संधु
इक्कीसवी सदी के अंत में हाइकुकारों की ऐसी जमात भी आई थी जिसने
बाशो के कथन ‘‘कोई भी विषय हाइकु के लिए उपयुक्त है“ की गंभीरता को न
समझकर...मनमाने ढंग से अर्थ निकालकर हाइकु लिखने आरंभ कर दिए थे,
हाइकु का अर्थ से अनर्थ हो रहा था, हाइकु काव्य सौन्दर्य से दूर जाकर जन
चेतना के नाम पर गध्य से जुड़ने लगा था। किन्तु इस दशक में हाइकुकारों द्वारा
साधना करके उम्दा हाइकु रचे गये हैं।
नए नए बिम्ब, गेयता, तुकांत, गहन कथ्य के साथ उम्दा हाइकु कहीं कहीं
आशा की मशाल भी बना है, कठिनाई में भी आशा की किरण फूटती है हाइकु
कारों का नया दल भविष्य के लिए आश्वस्त करता है। वर्तमान में अनेक पत्र

जोगनी गंध 11
पत्रिकाएं हाइकु के महत्व को स्वीकार कर चुकी है। कई पत्रिकाएं हाइकु विशेषांक
निकाल चुकी है, कई पत्रिकाएं हाइकु को नियमित स्थान भी प्रदान करती हैं।
हिंदी चेतना 1⁄4अंतर्राष्टंीय पत्रिका1⁄2, वीणा 1⁄4इंदौर, म.प्र.1⁄2, उदंती 1⁄4रायपुर, छ.ग1⁄2,
अविराम साहित्यि की 1⁄4त्रेमासिक रूडकी, उतराखंड1⁄2, आरोह-अवरोह 1⁄4पटना1⁄2,
सरस्वती सुमन 1⁄4देहरादून1⁄2, अभिनव अमरोज 1⁄4दिल्ली1⁄2, भारत सरकार साहित्यिक
संस्थान की पत्रिका आदि उल्लेखनीय हैं. वेबपत्रिका हिंदी हाइकु 2012 में शुरू
की गयी थी, आज इस पत्रिका के विश्व के 45 हाइकुकार जुड़े हुए हैं और विश्व
के सभी देशों में इस पत्रिका की पहचान स्थापित है। हाइकु को शब्दों की छवि
से नहीं आँका जा सकता है भारी भरकम शब्दों को प्रयुक्त करने से हाइकु सुन्दर
नहीं बनता है अपितु हाइकु का श्रृंगार भावों की गरिमा, सहजता, और साधना से
है हाइकु अपने आप में सम्पूर्ण रहस्य वाद की परम पारलौकिकता के साथ साथ
छाया वाद का अपरिसिमित सौन्दर्य भी है। शब्दों से छवि को आँकना हाइकु की
कला और साधना का पक्ष भी है। कुछ दृश्यों की बानगी देखियेμ
खड़ी धूप में/मशाल लिए खड़ा/तन्हा पलाश
आसमान में/इतनी कविताएँ/छापी किसने
स्वर्णकलश/शीश पर लेखड़ी/उषा कुमारी
गोयठे पर/चित्रित उँगलियाँ/अंजना शैली
शवेत किरीट/ शोभित हिमवान/ तुम्हे प्रणाम।
हाइकु विधा में अब हर विषय-वस्तु के रंग बिखेरे है, चाहे वह ऋतुएं हो
या मानवीय संवेदनाएं, हाइकु में जहाँ प्रकृति का सुन्दर वर्णन किया गया है वहीं
सामायिक कथ्य पर प्रश्न चिन्ह भी लगाये हैं व समाज को यथार्थ का आइना भी
दिखाया है। संक्षिप्त में कहा जाये तो हाइकु कम शब्दों में बहुत कुछ कहने की
क्षमता रखता है। हाइकु के सभी रंग को आलेख में प्रस्तुत करना संभव नहीं
है, किन्तु हाइकु का भविष्य बहुत उज्व्वल है। हाइकु इत्र की छोटी सी डिबिया
है जिसकी सुगंध जहाँ मन को रोमांचित करती है वहीं विचारों कोबिम्बों के
माध्यम से झकझोरती भी है।
कुछ हाइकु के उदारहण देखिये-
पश्चिमी हवा/धीरे धीरे उतारे/नारी की लज्जा-डाॅ. भगवतीशरण अग्रवाल
आँसुओं भरी/कोठरियां तडपे/जहाँ भी जायें?-रामेश्वर काम्बोज हिमांशु
धोखा पाकर/पहाड़ जैसी बनी/नाजुक कन्या-शशि पुरवार

12 जोगनी गंध
पीर पिघली/चुपके से छलका/नैनों काजल-शशि पुरवार
अल्ल्हड़पन/डुबकियाँ लगाती/कागजी नाव-शशि पुरवार
आँख छलकी/पहाड़ी संगीत-सी/शाम टीसत-डा. सुधा गुप्ता
जोगी वे पत्ते/ पेड़ों का घर छोड़/निकल पड़े-डा. सुधा गुप्ता
अंत में यही कहना चाहूंगी, हाइकु छोटे छंद है जो अपने आप में सम्पूर्ण
है, इसे बिना साधना के प्राप्त नहीं किया जा सकता है, कला की आस्था का एक
दीपक जिसकी टिमटिमाती रौशनी अँधेरे की कालिमा मिटाती है। किसी भी कला
की साधना ही उसे अपने गंतव्य तक पहुचाती है। 5-7-5 के फ्रेम में जड़े हुए
भावों के अनंत हीरे, आज हाइकुकारों द्वारा हाइकु की साधना ने गागर में सागर
समाहित किया है। हाइकु को आज कल चित्रों के माध्यम से भी चित्रित किया
जा रहा है, जिसे हाइगा कहतें हैं। इसे हाइकु का ही एक प्रकार माना जाता है,
भावों को चित्रों के माध्यम से सीधे पाठक तक पँहुचाकर कल्पना उकेर दी जाती
है। हाइकु का भविष्य के प्रति अब हाइकुकार आशान्वित हैं, हाइकु का भविष्य
बहुत उज्ज्वल है।
1⁄4संदर्भ-हाइकु उदारहण, पत्र पत्रिकाएँ1⁄2

जोगनी गंध 13

अनुक्रम

1. जोगनी गंध
1. प्रेम
2. मन
3. पीर
4. यादें/दीवानापन

2. प्रकृति
1. शीत
2. ग्रीष्म व फूल पत्ती, लताएं
- पलाश
- हरसिंगार
- चंपा
3. सावन
4. रात-झील में चंदा
5. पहाड़
6. धूप सोनल
7. ठूँठ
8. जल
9. ग ंगा
10. पंछी
11. हाइगा
3. जीवन के रंग
1. जीवन यात्रा
2. तीखी हवाएँ
3. बंसती रंग

14 जोगनी गंध

4. दही हांडी
5. गाँव
6. नंन्हे कदम-अल्लडपन
7. लिख्खे तूफान
8. कलम संगिनी

4. विविधा

1. हिंद की रोली
2. अनेकता में एकता
3. ताज
4. दीपावली
5. राखी
6. नूतन वर्ष
5. हाइकु गीत

1. हाइकु चोका गीत
1. नेह की पाती
2. देव नहीं मैं
3. गौधुली बेला में
4. यह जीवन
5. रिश्तों में खास
2. तांका
3. सदोका
4. डाॅ. भगवती शरण अग्रवाल के मराठी मंे
मेरे द्वारा अनुवादित कुछ हाइकु

जोगनी गंध 15
-शशि पुरवार

प्रेम
1
मौन पैगाम
खनके बाजूबंद
प्रिय का नाम।
2
प्रेम भूगोल
सम्मोहित साँसे
दुनिया गोल।
3
काँच से छंद
पत्थरों पे मिलते
बिसरे बंद।
4
सूखें हैं फूल
किताबों में मिलती
प्रेम की धूल।
5
मन संग्राम
बतरस की खेती
१ जोगिनी गंध

16 जोगनी गंध

सिंदूरी शाम 6
आँसू, मुस्कान
सतरंगी जिंदगी
नहीं आसान। 7
प्रीत पुरानी
यादें हैं हरजाई
छलके पानी। 8
जोगनी गंध
फूलों की घाटी में
शोध प्रबन्ध। 9
नेह के गीत
आँखों की चैपाल में
मुस्काती प्रीत।
10
सुधि बैचेन
रस भीनी बतियाँ
महकी रैन।
11
प्रीत पुरानी
सूखे गुलाब बाँचे

जोगनी गंध 17

प्रेम कहानी।
12
छेड़ो न तार
रचती सरगम
हिय-झंकार।
13
प्रेम-कलियाँ
बारिश में भीगी है
सुधि-गलियाँ।
14
आई जवानी
छूटा है बचपन
बदगुमानी।
15
एकाकी पन
धुआँ-धुआँ जलता
दीवानापन।
16
प्रेम के छंद
मौसमी अनुबंध
फूलों की गंध
17
प्रेम अगन
रेत सी-प्यास लिये

18 जोगनी गंध

मन-आँगन।
18
एक शाम
अटूट है बंधन
दोस्ती के नाम।
19
साथ तुम्हारा
महका तन मन
प्यार सहारा।
20
आओ बसंत
लिखे नई कहानी
प्रेम दीवानी।
22
सुख की धारा
रेत के पन्नों पर
पवन लिखे।
23
दुःख की धारा
अंकित पन्नों पर
जल में डूबी।
24
दीप भी जले
खुशियाँ घर आईं

जोगनी गंध 19

संग तुम्हारे।
25
नई नवेली
दिलकश मुस्कान
शर्माते नैना।
26
खामोश शब्द
नयन करें बातें
नाजुक डोर।
27
बन जाऊँ मैं
जो शीतल पवन
मिटे तपन।
28
बनूँ कभी मैं
बहती जल धारा
प्यास बुझाऊँ।
29
तेरे लिए तो
समर्पित हैं प्राण
मै वारि जाऊँ।
30
दिल की बातें
दिल ही तो जाने है

20 जोगनी गंध

शब्दों से परे।
31
प्रेम कलश
समर्पण से भरा
अमर भाव।
32
झलकता है
नजरो से पैमाना
वात्सल्य भरा।
33
जन्मों जन्मों का
सात फेरो के संग
अटूट नाता।
34
खामोश साथ
अवनि-अम्बर का
प्रेम मिलन।
35
जीवन साथी
सुख-दुःख, लड़ियाँ
दिया औ बाती।
36
अर्पण करूँ
निस्वार्थ प्रेम, तजूँ

जोगनी गंध 21

दिली ख्वाहिशें
37
एक ही धुन
भरनी है गागर
फूल सगुन।
38
अनुभूति है
प्रेम मई संसार
अभिव्यक्ति की।
39
तुम्हारा साथ
शीतल है चाँदनी
जानकीनाथ।
40
सुख की ठाँव
जीवन के दो रंग
धूप औ छाँव।
41
भीनी सुवास
गुलदस्ते में सजे
खिले हाइकु।
42
प्रेम अगन
विरह की तडप

22 जोगनी गंध

एकाकीपन।
42
आँखों में देखा
छलकता पैमाना
सुखसागर।
43
दिल के तार
जीवन का शृंगार
तुम्हारा प्यार।
44
तेरे आने की
हवा ने दी दस्तक
धडके दिल।
45
आँखों की हया
लज्जा की चुनर
नारी गहना।
46
खिले सुमन
महका गुलशन
मन प्रांगण।
47
समेटे प्यार
फूलों सा उपहार

जोगनी गंध 23

खिले हाइकु।
48
मौन संवाद
कह गए कहानी
नया अंदाज।
49
मेरी जिन्दगी!
मेरे ख्वाबों को तुम,
नया नाम दो।
50
साँसों में बसी
है खुशबू प्यार की,
तुम जान लो।
51
दिल दीवाना
छलकाते नयन
प्रेम पैमाना।
52
मन दर्पण
दिखाता है अक्स
भाव तर्पण।
53
प्रिय जिंदगी
मेरे ख्वावों को तुम

24 जोगनी गंध

नया नाम दो।
मन1
मन बासंती
उत्सव का मौसम
फागुनी रंग। 2
दुःखों को भूले
आशा का मधुबन
उमंगें-झूले। 3
मन चंचल
बदलता मौसम
सर्द रातों में। 4
पाखी है मन
चंचल चितवन
नैन विहग। 5
मन के भाव
शांत उपवन में

जोगनी गंध 25

पाखी से उड़े। 6
यादों के फूल
खिले गुलमोहर
मन प्रांगण। 7
मन प्रांगण
यादों की चित्रकारी
महकी चंपा। 8
मंै का से कहूँ
सुलगते है भाव
सूखती जड़ें। 9
मन प्रांगण
यादों के बादल से
झरते मोती।
10
सुख औ दुःख
नदी के दो किनारे
खुली किताब।
11
खिला मौसम
सरगम से बजे

26 जोगनी गंध

मन के तार।
12
ढूँढें किनारा
भटकता जीवन
अतृप्त मन।
13
अनुरक्त मन
गीत फागुनी गाये
रंगों की धुन।
14
पाखी सा मन
चंचल ये मौसम
बजी तरंग।
15
यह जीवन
पथरीली राहें
चंचल मन।
16
अँधेरी रात
मन की उतरन
अकेलापन।
17
खिली मुस्कान
मासूम बचपन

जोगनी गंध 27

मन मोहन।
18
मोहे न जाने
मन का सांवरिया
खुली पलकें।
19
मन की पीर
शब्दों की अंगीठी से
जन्मे है गीत।
20
मोह औ माया
अहंकार का पर्दा
आँखों का धोखा।
21
मन का हठ
दिल की है तड़प
रूठी कलम।
22
शिशु सा मन
ढूंढता है आँचल
प्यार से भरा।
23
प्यासा है मन
साहित्य की अगन

28 जोगनी गंध

ज्ञान पिपासा।
24
उजला मन
रंगो की चित्रकारी
कलम गहे।
25
अहंकार है
मृग तृष्णा की सीढ़ी
मन का धोखा।
26
भागता मन
चंचल हिरणों सा
पवन संग।
27
मन देहरी
बिखरी संवेदना
जन्मी कविता।
28
तीखे संवाद
मन का प्रतिकार
वाद विवाद।
29
अतृप्त मन
भटकता जीवन

जोगनी गंध 29

ढूँढे किनारा।
30
अकेलापन
तपता रेगिस्तान
व्याकुल मन।
31
गर्म हवाएँ
जल बिन तड़पे
मन, मछली।
32
सुर संगम
खिला मन प्रागण
जीवन मीत।
33
थकित मन
दूर बैठी मंजिल
अनुयायन।
34
अनुगमन
कसैला हुआ मन
आत्मचिंतन।
35
मन-दर्पण
दिखता है अक्स

30 जोगनी गंध

चेहरे-संग।
36
भागता मन
चंचल हिरनी-सा
बुझे न प्यास।

जोगनी गंध 31

पीर 1
दर्द की पौड़ी
पहाड़ी भींज रही
आँख निगोड़ी। 2
छूटे संवाद
दीवारों पे लटके
वाद-विवाद। 3
बर्फ से जमें
भीगे से अहसास
शब्दों को थामे। 4
दर्द की नदी
लिख रही कहानी
ये नयी सदी। 5
पीर जो जन्मी
बबूल सी चुभती

32 जोगनी गंध

स्व्यं की सांसें। 6
पीर तन की
टूटा है दरपन
वृद्ध जीवन। 7
रिश्तो में मिला
पल पल छलावा
दर्द की पौड़ी। 8
वक़्त के साथ
जन्में हुए नासूर
रिसते घाव। 9
सुख खातिर
करे सारे जतन
जर्जर तन
10
दिल की पीर
बहते नयनों से
हुई विदाई।
11
तन्हाईयों में
सर्द सा यह मौसम

जोगनी गंध 33

शूल सा चुभा।
12
चाँदनी रात
नयनों बहे नीर
सुलगी पीर।
13
दिल का दर्द
रेगिस्तान बन के
तन में बसा।
14
स्वर संगीत
तन मन भी झूमे
पीर भी भूले।
15
अंतरगित
सन्नाटे में बिखरी
तेज चीत्कार।
16
पतझर से
झरते है नयन
प्रेम अगन।
17
फूटी रुलाई
पथराये नयन

34 जोगनी गंध

दरका मन।
18
रंग बिरंगे
प्रकृति के नज़ारे
अंधत्व मारे।
19
आँखों का पानी
बनावट के फूल
बदगुमानी।
20
मंजिल कहाँ
दरका यह मन
प्रीत गमन।
21
अश्क आँखों से
सूख गए हैं जैसे
रीता झरना।
22
अधूरी प्यास
अजन्मी ख्वाहिशे
वक़्त है कम।
23
उफना दर्द
जख्म बने नासूर

जोगनी गंध 35

स्वाभिमान के।
23
वफ़ा का मोल
सहमे तटबंध
तीखे से बोल।
24
समंदर के
बीच रहकर भी
रहा मै प्यासा।
25
तरसे नैना
पिया हैं परदेश
कैसे पुकारू।
26
रीता ये मन
कोख का सूनापन
अतृप्त आत्मा।
27
रिश्ते अभागे
पतला होता खून
कच्चे हैं धागे।
28
एकाकी पन
बिखरी है उदासी
स्याह खामोशी।

36 जोगनी गंध

यादें/दीवानापन
1
दिल का दिया
यादों से जगमग
ख्वाब चुनाई।
2
रिश्तों की लड़ी
बिताये हुए पल
है जमा पूंजी।
3
तन्हा पलों में
चुपके से छेडती
यादें तुम्हारी।
4
तीखी चुभन
सूखे गुलाब संग
दीवानापन।
5
महकी यादें
मन के गलियारे

जोगनी गंध 37

तेरी ही बातें। 6
नींद बैरन
यादें हरसिंगार
मुदित मन। 7
छलके जाम
यादें हैं हरजाई
अक्षर धाम। 8
बंद पन्नों में
हृदय के जज्बात
सूखते फूल। 9
भूली बिसरी
जीवन में सिमटती
खामोश रातें।
10
पृथक रास्ते
दरकता है मन
प्रीत आँगन।
11
प्यार के पल
महक रही यादें

38 जोगनी गंध

तन्हाई संग।
12
साँसों मे बसी
है; प्यार की खुशबू
प्रिय जान लो।
13
सर्द है यादे
शूल बनी तन्हाई

जोगनी गंध 39

हरे नासूर।
शीत 1
कंपकपाता
सिहरता बदन
ठंडी चुभन। 2
ठंडी बयार
जलता दिनकर
है बेअसर। 3
श्वेत दुशाला
धरती के अंक में
बर्फ के कण। 4
सर्द रातों में
शूल बनी यादें
रिसे नासूर। 5
घना कोहरा
नजरो का है फेर
2. प्रकृति

40 जोगनी गंध

गहरी खाई। 6
रूई सा फाहा
नजरो में समाया
उतरी मिस्ट। 7
सर्द हवामें
सुलगता है दर्द
जमती बर्फ। 8
शीत प्रकोप
भेदती हैं हवाएँ
उष्णता लोप। 9
बर्फ से जमे
भीगे से अहसास
शब्दों को थामे
10
निष्ठुर रात
राह में ठिठुरता
दीन संघात।
11
सर्द कोहरा
मचल गयी यादें

जोगनी गंध 41

भीगी कामरी।
12
सर्द मौसम
सुलगती है पीर
नीर न बहे।
13
शीत लहर
अदरक की चाय
गरम चुस्की।
14
जमती झीले
चमकती चांदनी
श्वेत चाद।
15
बर्फ ही बर्फ
बिखरी चारो तर्फ
अकेली जान।
16
बर्फ सा पानी
कांपती जिंदगानी
है गंगा स्नान।
17
जमता खून
हुई कठिन साँसे

42 जोगनी गंध

फर्ज-इन्तिहाँ।
18
शीत प्रकोप
सैन्य बल सलाम
देश में जान।
19
अलसाए-से
तृण औ लतिकाएँ
ओस चमके।
20
हिमपात है
तपती धरा पर
शीतोपचार।
21
हिम-से जमे
हृदय के ज़ज़्बात
किससे कहूँ?
22
श्वेत रजाई
धरा को खूब भाई
कण दमके।
23
बच्चे सा आया
खिलखिलाता भानू

जोगनी गंध 43

गर्म छुअन।
24
शीत काल में
केसर औ चंदन
काया दमके।
25
खोल खिड़की
आई शीत लहर
सूरज डरा।
26
सर्दी है आई
गुड की चिक्की भाई
अलाव जले।
27
कंबल ओढे
ठिठुरता काँपता
सूर्य झाँकता।
28
पीली सरसों
मक्के की भाखरी ले
सर्दी है आई।
29
हिम शिखर
मनमोहिनी रूप
सोनल धूप।

44 जोगनी गंध

ग्रीष्म 1
कूके कोयल
मदमस्त बयार
झूमा बसंत। 2
प्रकृति दंग
केक्टस में खिलता
मृदुल अंग। 3
पानी की तंगी
महामारी की मार
है हाहाकार। 4
कैरी का पना
आम की बादशाही
खूब लुभाई। 5
गर्मी भी जवां
इश्क गुलमोहर
फूल हैं झरे।

जोगनी गंध 45 6

स्वर्ण किरणें
उतरी पनघट
बिखरा सोना। 7
तेज हवाएँ
लू-लपट व आँधियाँ
शोर मचाएँ। 8
जलता भानू
उष्णता की चुभन
रातें भी नम। 9
रसीली आस
तपन की है प्यास
शीतल जल।
10
बर्फ का गोला
रंग बिरंगी कुल्फी
मन भी डोला।
11
जेठ की धूप
हँसे अमलतास
प्रेम के फूल।

46 जोगनी गंध

12
चटकलाल
प्रकृतिक खुमार
अमलतास

जोगनी गंध 47

पलाश 1
खिली चाँदनी
भौरे गीत सुनाए
झूमे पलाश। 2
बीहड़ वन
दहकते पलाश
बौराई हवा। 3
तप्त सौन्दर्य
धरती का शृंगार
सुर्ख पलाश। 4
खिले पलाश
अंबुआ की बहार
फागुन आया। 5
सौम्य सजीले
दुल्हे का रूप धरे
आये पलाश।

48 जोगनी गंध

6
सजी धरती
हल्दी भी खूब लगी
झूमे पलाश।
7
तेरे प्यार में
महकते पलाश
चंदन मन।
8
स्वर्ण पलाश
सोने से दमकते
हैरान सूर्य।

जोगनी गंध 49

हर सिंगार 1
श्वेत धवल
बसंती सा नाजुक
हरसिंगार। 2
शिउली सौन्दर्य
लतिका पे है खिला
गुच्छो मे लदा। 3
हर सिंगार
ईश्वरीय सृजन
श्वेत कमल। 4
श्वेत चांदनी
धरा की चुनरिया
झरे प्राजक्त। 5
स्नेह-बंधन
फूलों से महकते
हर सिंगार।

50 जोगनी गंध

6
सौम्य श्रृंगार
चमकती चाँदनी
श्वेत चादर।
7
हरसिंगार
महकता जीवन
मन प्रसन्न।

जोगनी गंध 51

चंपा 1
खिली चांदनी
झूमें लताओं पर
मुस्काती चंपा। 2
तरु पे खेले
मनमोहिनी चंपा
धौल कँवल। 3
मन प्रांगण
यादों की चित्रकारी
महकी चंपा। 4
दुग्ध का पान
हलद का श्रृंगार
चंपा ने किया। 5
चंपा मोहिनी
दमकता सौंदंर्य
शशि सा खिले।

52 जोगनी गंध

सावन 1
भँवरे गाते
महकता उपवन
पुष्प लुभाते। 2
मुस्कुराती है
ये नन्ही सी कलियाँ
तोड़ो न मुझे। 3
बीजों से झांके
बेक़रार प्रकृति
थाम लो मुझे। 4
प्रफुल्लितहै
ये नन्हे प्यारे पौधे
छूना न मुझे। 5
पत्रों पे बैठे
बारिश के मनके
जड़ा है हीरा।

जोगनी गंध 53 6

सावन आया
रोम-रोममहके
कंचन काया। 7
पड़े हिंडोले
ले ऊँची ऊँची पींगे
पीर ही भूले। 8
आया सावन
खिलखिलाई धरा
नाचे झरने। 9
ले अंगडाई
बीजों से निकलते
नव पत्रक।
10
दहके टेसू
बौराई अमराई
फागुन डोले।
11
शैल का अंक
नाचते है झरने
खिलखिलाते।

54 जोगनी गंध

12
जख्मी वृक्ष
रीत गए झरने
अम्बर रोये।
13
हरीतिमा की
फैली है चदरिया
सावन-भादो।
14
क्लांत नदिया
वाट जोहे सावन
जलाए भानू।
15
नाचे मयूर
झूम उठा सावन
चंचल बूँदे।
16
काली घटाएँ
सूरज को छुपाए
आँख मिचोली।
17
बैरी बदरा
घुमड़ घुमड़ के
आया सावन।

जोगनी गंध 55

18
बूँदों की लड़ी
झमाझम बरसी
धरा न तरसी।
19
सौंधी खुशबू
नथुनों में समाई
बरखा आई।
20
मृदा ही सींचे
पल्लवित ये बीज
मेरा ही अंश।
21
माटी को थामे
पवन में झूमती
है कोमलांगी।
22
ये हरी भरी
झूमती है फसलें
लहकती सी।
23
तप्त धरती
सब बीजों को मिला
नव जीवन।

56 जोगनी गंध

24
खिला जोबन
बारिश में भीगता
पुष्पक तन।
25
बासंती गीत
प्रकृति ने पहनी
धानी चुनर।
26
प्यासी धरती
तपता रेगिस्तान
बरसो मेघा।
27
सिंधु गरजे
विध्वंश के निशान
अस्तित्व मिटा।
28
अप्रतिम है
प्रकृति का सौन्दर्य
खिले सुमन।
29
नभ ने भेजी
वसुंधरा को पाती
बूँदों ने बाँची।

जोगनी गंध 57

30
पुष्पों को चूमे
रसवंती फुहार
डाली भी झूमे।
31
गिरता पत्ता
छोड़ रहा बंधन
नव जीवन।
32
मुक्त हवा में
पत्ता चला मिलने
धरती है माँ।
33
दरख्तों को
जड़ से उखडती
तूफानी हवा।
34
घने बादल
कडकती बिजली
झरती बूँदें।
35
थिरके मोर
सावन की घटाएँ
भाव विभोर।

58 जोगनी गंध

36
ग्रीष्म चुभन
घुमडते बादल
जल स्तंभन।
37
पुलकित है
खिलखिलाते शिशु
हवा के संग।
38
बेकरारी सी
भर लूँ निगाहों में
ये नया जहाँ।
39
मैं भी तो चाहूँ
एक नया जीवन
खिलखिलाता।
40
हौसले साथ
जब बढे़ कदम
छू लो आंसमा।
41
दुलार करूँ
भर लूँ आँचल में
मेरा ही अंश।

जोगनी गंध 59

42
हरे भरे से
रचे नया संसार
धरा क स्नेह।
43
झरते पत्ते
माटी से मिलता है
माटी का तन।
44
बिखरे मोती
धरती के अंक में
फूलों की गंध।
45
इंद्र धनुषी
धरती का मिलन
नील गगन।
46
भँवरे गाते
महकता उपवन
पुष्प लुभाते।
47
हवा के संग
खेलती ये हवाएँ
पुलकित हैं।

60 जोगनी गंध

48
संग खेलते
ऊँचे होते पादप
छूँ ले आंसमा।
49
पांखुरी गिरी
महकता बदन
हवा में उड़ा।
50
नीलगगन
धरती से मिलन
इंद्रधनुषी।
51
भोर चहकी
मुस्कुराती कलियाँ
बारी महकी।
52
पुष्पों का गुच्छा
पुलकित केक्टस
लदा बदा सा।
53
काले घनेरे
बादलों की चुनर
गर्म तपिश।

जोगनी गंध 61

54
वृक्षारोपण
सुरक्षा का कवच
धरा, अर्पण।
55
राग-बैरागी
सुर गाए मल्हार
छिड़ी झंकार ।

62 जोगनी गंध

रात-झील में चंदा
1
नदिया तीरे
झील में उतरता
हौले से चंदा।
2
रात चाँदनी
उतरी मधुबन
पिया के संग।
3
रात अकेली
सन्नाटे की सहेली
काली घनेरी।
4
तन्हा सड़क
कँपकपाती रातें
चाँदनी हँसे।
5
नम है रातें
बर्फीले एहसास
नश्तर बातें।

जोगनी गंध 63 6

कम्पित रात
चाँदनी में नहाए
सहमे पात। 7
खामोश रात्र
सन्नाटे में बिखरी
तेज चीत्कार। 8
चाँदनी रात
सितारों की चूनर
धरा मुस्काए। 9
सुर्ख गुलाब
महकती सुवास
चाँदनी रात।
10
रात की रानी
चुपके से महकी
पौन दीवानी।
11
श्वेत चाँदनी
हरसिंगार झरे
विस्मित चाँद।

64 जोगनी गंध

12
सघन वन
व्योम तले अँधेरा
क्षीण किरण।
13
गहन रात
छुप गया है चाँद
कृष्ण पक्ष में।
14
तारों से सजी
छटा बिखेरे रात
पूनों का चाँद।
15
धरा-अम्बर
तारों की चूनर का
सौम्य शृंगार।
16
गहन रात
ये पूनम का चाँद
खिलखिलाता।

जोगनी गंध 65

पहाड़ 1
अडिग खड़ा
देखे कई बसंत
संत पहाड़। 2
धोखा पाकर
पहाड़ जैसी बनी
नाजुक कन्या। 3
चंचल भानू
रास्ता रोके खड़ा
बूढ़ा पर्वत। 4
झुकता नहीं
आए लाख तूफ़ान
डिगता नहीं। 5
हिम पिघले
पहाड़ ठूँठ बने
राहो में खड़े।

66 जोगनी गंध 6

जलजले से
आहत है पहाड़
मौन रुदन। 7
उगले ज्वाला
गर्म काली लहरें
स्याह धरती। 8
हिम से ढके
प्रकृति बुहारते
शांत भूधर। 9
पहाड़ों तक
पहुंचा प्रदुषण
प्रलयंकारी।
10
अडिग रहूँ
पर्वत-सी अचल
प्रहरी हूँ मैं।
11
बीहड़ रास्ते
हिम्मत न हारना
जीने के वास्ते।

जोगनी गंध 67

ध्ूप सोनल 1
ताप पीकर
खिल उठी है दूब
सोनल धूप। 2
कड़ी धूप में
जले हैं मेरे पाॅंव
दूब का गाँव। 3
स्वर्ण किरण
रोम रोम निखरे
धरा दुल्हन। 4
धूप चिरैया
पत्थरों पर बैठी
सोन चिरैया। 5
धूप सुहानी
दबे पाँव लिखती
छन्द रूमानी।

68 जोगनी गंध

6
धूप सोनल
गुजरा हुआ कल
स्वणर््िाम पल।
7
धूप बातूनी
पोर-पोर उन्माद
आँखें क्यूँ सूनी?
8
नवउल्लास
खिड़की से झाँकता
वेद प्रकाश।
9
सुहानी धूप
सर्द हुआ मौसम
सिमटा वक्त।

जोगनी गंध 69

ठूँठ1
ठूंठ सा तन
मुरझाया यौवन
पंछी न आये। 2
ठूंठ बन के
सन्नाटे भी कहते
पास न आओ। 3
पाषाण मन
स्नेहिल संवेदना
जर्जर तन। 4
राहो में खड़े
देख रहे बसंत
बीता यौवन। 5
जीने की आस
महकने की प्यास
जिंदगी खास।

70 जोगनी गंध 6

सिसकती-सी
ठहरी है जिंदगी
राहों में आज। 7
सिमटी जड़ें
हरा भरा था कभी
वो बचपन। 8
धीमा गरल
पीर की है चुभन
खोखल तन। 9
शूलों-सी चुभन
दर्द भरा जीवन
मौन रुदन।
10
किससे कहूँ
पीर पर्वत हुई
ठूँठ-सी खड़ी।
11
झरते पत्ते
बेजान होता तन
ठूंठ सा वन।

जोगनी गंध 71

12
चीखें बेजान
तडपती हैं साँसे
ठूँठ सा तन।
12
सघन वन
व्योम तले अँधेरा
क्षीण किरण।
13
बिखरे पत्ते
तूफानों से लड़ता
जर्जर तन।
14
संत सरीखा
ठूँठ सा खडा वृक्ष
जर्जर हुआ।
15
अवचेतन
लोलुपता की प्यास
ठूँठ बदन।
16
गिरते पत्ते
छोड़ रहे बंधन
नव जीवन।

72 जोगनी गंध

17
सूखी पत्तियाँ
बेजार होता तन
अंतिम क्षण।

जोगनी गंध 73

जल1
छुए किनारा
भावुक है लहरे
आँखों का पानी। 2
जल विहीन
व्याकुल है अवनी
व्योम संगीन। 3
पीर पिघली
चुपके से छलका
नैनों का जल। 4
जल जीवन
बूंद बूंद गिरती
जल तरंग। 5
कम्पित धरा
विषैली पोलिथिन
मानवी भूल।

74 जोगनी गंध 6

पर्वत पुत्री
धरती पे जा बसी
सलोना गाँव। 7
जल जीवन
प्रकृति-मानव का
अटूट रिश्ता। 8
जगजननी
धरती की पुकार
वृक्षारोपण। 9
मानुष काटे
धरा का हर अंग
मिटते गाँव।
10
केदारनाथ
बेबस जगन्नाथ
वन हैं कटे।
11
बहती नदी
पथरीली हैं राहें
तोड़े पत्थर।

जोगनी गंध 75

12
काले धुँए से
चाँद पर चरण
वशीकरण।

76 जोगनी गंध

गंगा 1
हुई विदाई
बहे निर्मल गंगा
स्वर्ग से आई। 2
गंगा काजल
गुणकारी अमृत
पापनाशक। 3
विषैली गंगा
मैली हुई चादर
मानवी मार। 4
शीतल जल
मन हो जाये तृप्त
है गंगाजल। 5
विषैली गंगा
मैली हुई चादर
मानवी मार।

जोगनी गंध 77

6
सिमटी गंगा
कटते हरित वन
खत्म जीवन।
7
है पुण्य कर्म
किये पाप मिटाओ
गंगा बचाओ।
8
गंगा पावन
अभियान चलाओ
स्वच्छ बनाओ।
9
निर्मल गंगा
खुशहाल जीवन
फलित धरा।

78 जोगनी गंध

पंछी 1
उड़ते पंछी
नया जहाँ बसाने
नीड़ है खाली। 2
उड़ता पंछी
पिंजरे में जकड़ा
है परकटा। 3
तन के काले
मूक सक्षम पक्षी
मुंडेर संभाले। 4
मूक है प्राणी
कौवा अभिमानी
कोई न सानी। 5
भोली सूरत
क्यों कागा बदनाम
छलिया नाम।

जोगनी गंध 79

6
कोयल साथी
धर्म कर्म के नाम
कागा खैराती।
7
कर्कश बोली
संकट पहचाने
कागा की टोली।

80 जोगनी गंध

हाइगा 1
सुनहरा है
प्रकृति का बंधन
स्वणर््िाम पल। 2
उषा काल में
केसरिया चूनर
हिम पिघले। 3
सिंदूरी आभा
सुनहरा गहना
साँझ है सजी। 4
अम्बर संग
अवनि का मिलन
संध्या बेला में

जोगनी गंध 81

जीवन यात्रा
1
शूल जो मिले
हम तो नहीं हारे
पाया मुकाम।
2
कांची है माटी
मृदु नव कोपलें
शिकारी हवा।
2
बेहाल प्रजा
खुशहाल है नेता
खूब घोटाले।
3
चिंता का नाग
फन जब फैलाये
नष्ट जीवन।
3
पति-पत्नी में
वार्तालाप सिमित
अटूट रिश्ता।
3. जीवन के रंग

82 जोगनी गंध 4

पवन लिखे
रेत की तल्खी पर
सुख की पाती 5
नाजुक धागे
मजबूत बंधन
गृह बंधन। 6
जीवन यात्रा
विचारों की धुंध
सुरभि पात्रा। 7
भागते रहे
कल को ढूँढने में
आज खो दिया। 8
सुनहरा है
ये आने वाला कल
दृढ़ उत्कल। 9
सूखे हैं पत्ते
बदला हुआ वक्त
पड़ाव, अंत।

जोगनी गंध 83

10
परिवर्तन
वक्त की है पुकार
कदमताल।
11
बंधी है मुट्ठी
रेत से फिसलते
जीवन पल।

84 जोगनी गंध

तीखी हवाएँ 1
तीखी हवाएँ
नश्तर सी चुभती
शोर मचाएँ। 2
शब्दों का मोल
बदली परिभाषा
थोथे हैं बोल। 3
चीखती भोर
दर्द नाक मंजर
भीगे हैं कोर। 4
तांडव कृत्य
मरती संवेदना
बर्बर नृत्य। 5
आतंकी मार
छिन गया जीवन
नरसंहार।

जोगनी गंध 85 6

मासूम साँसें
भयावह मंजर
बिछती लाशें। 7
मसला गया
निरीह बालपन
व्याकुल मन। 8
भ्रष्ट अमीरी
डोल गया ईमान
तंग गरीबी। 9
स्वरों में तल्खी
हिय में सुलगते
भी गेजज्बात।
10
मन के काले
मुख पर मुखौटा
मुँह उजाले।
11
शूल बेरंग
मुस्कुराती कलियाँ
विजय रंग।

86 जोगनी गंध

12
फूटी रुलाई
पथराई-सी आँखें
दरकी धरा।
13
काँपी पेस्ट
मूल दस्तावेजो से
है छेडछाड़।
14
रचना पर
शब्दों से प्रतिक्रिया
मेहनताना।
15
शक का भाव
रिश्तों मे दीमक
मकड जाल।
16
विष सा कार्य
रिश्तों का शोषण
अवशोषण।
17
है जानलेवा
कैंसर का खतरा
मदिरापान।

जोगनी गंध 87

पफागुन-बसंती रंग
1
होली है प्यारी
रंग भरी पिचकारी
सखियाँ न्यारी।
2
मारे गुब्बारे
लाल पीले गुलाबी
रंग लगा रे।
3
प्रेम की होली
दूर बैठी सखियाँ
मस्तानी टोली।
4
होली की मस्ती
प्रेम का है खजाना
दिलों की बस्ती।
5
मन बासंती
उत्सव का मौसम
फागुन रंग

88 जोगनी गंध 6

सपने हँसे
उड़ चले गगन
बसंती रंग। 7
दहके टेसू
बौराई अमराई
बासंती हवा। 8
रंगों की होली
मिलन का त्योहार
गुझिया खास। 9
ले पिचकारी
भरे रंग गुलाबी
बाल गोपाल।
10
आई है होली
सतरंगी ठिठोली
छोरो की टोली।
11
उड़े गुलाल
प्रेम भरी बौझार
गुलाबी गाल

जोगनी गंध 89

12
सपने पाखी
उड चले गगन
बासंती रंग।
13
रंग अबीर
फिंजा मे लहराते
बासंती रंग।
14
चढा के भंग
मौज मस्ती के रंग
बजाओ चंग।
15
सपने हँसे
इंद्रधनुषी रंग
होरी के संग।

90 जोगनी गंध

दही-हांडी 1
श्याम ने दिया
प्रेम का गूढ़ अर्थ
भक्तों ने जिया। 2
सांसों में बसी
भक्ति-भाव की धारा
ज्ञान लौ जली। 3
नियम सारे
ज्ञान का सागर है
मोहन प्यारे। 4
हर्षोल्लास है
भक्ति भाव की गंगा
गोकुल खास। 5
बाल गोपाल
दही हांडी की धूम
हर चैराहे।

जोगनी गंध 91

6
नयना प्यासे
प्रभु दरसन के
सुनो अरज।
7
कृष्ण राधा के
प्रेम का है प्रतिक
सगुन दीप।

92 जोगनी गंध

गाँव 1
शीतल छाँव
आँगन का बरगद
पापा का गाँव। 2
चैका औ बासन
घर घर से उड़ती
सौंधी खुशबू। 3
सुख की ठाँव
हरियाली जीवन
म्हारा गांव। 4
ठहर गया
आदिवासी जीवन
टूटे किनारे। 5
वो पनघट
पनिहारिन बैठी
यमुना तट

जोगनी गंध 93 6

खप्पर छत
गोबर से लीपती
अपना मठ। 7
कच्चे मकान
खुशहाल जीवन
गांव पोखर। 8
साँसों में बसी
मैहर की खुशबू
रची बसी सी। 9
नहीं है भीड़
चहकती बगिया
महका नीड़।
10
बाजरा-रोटी
घी संग गुड डली
सौंधी लगे।

94 जोगनी गंध
नन्हे कदम/अल्लहड़पन
1
लाडो सयानी
जोबन-दहलीज
कच्चा है पानी।
2
अल्लहड़पन
डुबकियाँ लगाती
कागजी नाव।
3
माँ से मायका
पिता जग दर्शन
मार्गदर्शन।
4
कभी न भूले
वह स्नेहिल स्पर्श
ननिहाल का।
5
नन्हे कदम
मोहक मृदुहास्य
खिला अंगना।

जोगनी गंध 95 6

नर्म स्पर्श
ममता का आँचल
शिशु मुस्काए। 7
प्यासी ममता
तड़पता आँचल
गोदभराई। 8
कोई न जाने
मेरे दिल का दर्द
बेटी पराई। 9
मासूम हँसी
हृदय की सादगी
जी का जंजाल।
10
खिले सुमन
बगुला क्या जाने
नाजुक मन।
11
सारस आये
बनावटी चमक
भ्रम फैलाये।

96 जोगनी गंध

12
रंगो से भरा
सलोना बचपन
फूल पाखरू।
13
तेज धूप में
नेह की ठंडी छाँव
माँ का आँचल।
14
नाजुक स्पर्श
माँ का बच्चे से स्नेह
दुलार भरा।
15
माँ कि चिंता
लाडो है परदेश
पाती, ममता।
16
स्नेहिल रिश्ता
ममता का बछोना
माँ का शिशु से।
17
नर्म सा स्पर्श
ममता का आँचल
शिशु मुस्काये।

जोगनी गंध 97

18
कच्ची उम्र
नव कोपल-प्राण
दिशा हीनता।
19
फूलों-सा तन
मासूम बचपन
खिलखिलाता।
20
माँ का दुलार
सुरक्षा का कवच
शिशु, जीवन।
21
परिवार है
सुख भरा जीवन
पारंपरिक।

98 जोगनी गंध
लिक्खे तूपफान/कलम संगिनि
1
लिक्खें तूफान
तकदीरों की बस्ती
अपने नाम।
2
नया विहान
शब्दों का संसार
रचें महान।
3
भाव चपल
कलम से उभरें
स्वणर््िाम पल।
4
स्वप्न साकार
मुस्कुराती हैं राहें
दरिया-पार।
5
नव उल्लास
उम्मीदों का सूरज
मीठी सुवास।

जोगनी गंध 99 6

छू लिया जहाँ
श्रम है अनमोल
सुहानी भोर। 7
काव्य का गान
मंत्रमुग्ध हैं कर्ण
रसानुभूति। 8
स्वर लहरी
जीवन की प्रेरणा
बजी है वीणा। 9
कर्म का पथ
प्रथम है प्रयास
नींद के बाद।
10
दिल ही तो है
हर बार टूटता
नहीं हारता।
11
पाया है जहाँ
सुनहरा आसमां
कर्मों से सजा।

100 जोगनी गंध

12
मेरी संगिनी
कलम तलवार
पक्की सहेली।
13
कहाँ से लाऊं
विचारो का प्रवाह
शब्द है ग़ुम।
14
कैसे मनाऊं
कागज कलम को
हाथ से छूठी।
15
अश्क आँखों के
सूख गए हैं ऐसे
ज्यों रेगिस्तान।
16
वीणा की तान
तबले की संगत
मधुर गान।
17
ख्वाब सजाओ
छोटी छोटी खुशियाँ
द्वार पे लाओ।

जोगनी गंध 101

18
गुजरा वक्त
जीवन की परीक्षा
ना लागे सख्त।
18
जिंदगी चित्र
प्रीति के रंग भरे
किताबें मित्र।
19
कलम रचे
संवेदना के अंग
जल तरंग।
20
अभिव्यक्ति है
चरम अनुभूति
संवेदन की।
21
अधूरापन
ज्ञान के खिले फूल
खिला पलाश।
22
वाद्य यन्त्र से
बिखरा है संगीत
मनमोहक।

102 जोगनी गंध

23
खुदा लेता है
पल पल परीक्षा
कभी न डरूँ।
24
भीगा आँचल
श्वेद की हर बूँद
चंद्र चंचल।
25
छोटी कविता
गागर में सागर
भाव सरिता।

जोगनी गंध 103

हिंद की रोली
1
हिंद की रोली
भारत की आवाज
हिंदी है बोली।
2
भाषा है न्यारी
सर्व गुणो की खान
हिंदी है प्यारी।
3
गौरवशाली
भाषाओं का सम्मान
है खुशहाली।
4
है अभिमान
हिदुस्तान की शान
हिंदी की आन।
5
कवि को भाये
कविता का सोपान
हिन्दी बढ़ाये।
4. विविधा

104 जोगनी गंध 6

वेदों की गाथा
देवों का वरदान
संस्कृति, माथा। 7
सरल ज्ञान
संस्कृति का सम्मान
हिंदी का गान। 8
सर्व भाषाएँ
हिंदी में समाहित
जन आशाएं। 9
चन्दन रोली
आँगन की तुलसी
हिंदी रंगोली।
10
मन की भोली
सरल औ सुबोध
शब्दो की टोली।
11
सुरीला गान
असीमित साहित्य
हिंदी सज्ञान।

जोगनी गंध 105

12
बहती धारा
वन्देमातरम है
हिन्द का नारा।
13
अतुलनीय
राजभाषा सम्मान
है वन्दनीय।
14
जोश उमंग
जन जन में बसी
राष्टं तरंग।
15
ये अभिलाषा
राष्टं की पहचान
विश्व की आशा।
16
यही चाहत
सर्वमान्य हो हिंदी
विश्व की भाषा।

106 जोगनी गंध

अनेकता-एकता
1
भारत देश
अनेकता-एकता
गुणों की खान।
2
विविध बोली
ऐसा भारत देश
प्रेम की होली।
3
धर्म संस्कृति
अमन की चाहत
सांसो में बसी।
4
द्वेष मिटाओ
हर दिल की आशा
अमन लाओ।
5
भारत देश
स्वर्ग-सा मनोरम
गंगा पावन।

जोगनी गंध 107 6

भाषा अनेक
बंधुभाव है एक
राष्टं की शान। 7
जीवनशक्ति
मातृभूमि हमारी
भारत माता। 8
द्वेश मिटाओ
हर दिल मे आशा
अमन लाओ। 9
भाषा अनेक
बंधुभाव है एक
राष्टं की शान।
10
शूर की रसा
तरूण कंधो पे है
राष्टं की धारा।
11
वतन में जां
तिरंगे को सलाम
राष्टंीय गान।

108 जोगनी गंध

12
जीवन शक्ति
मातृभूमि हमारी
भारत माता।
13
गौरवशाली
हिंद की जगधोनि
जन्में बाँकुडा।

जोगनी गंध 109

ताज1
रूह में बसी
जवां है मोहब्बत
खामोश हंसी। 2
प्रेम कहानी
मुहब्बत ऐ ताज
पीर जुबानी। 3
धरा की गोद
श्वेत ताजमहल
प्रेम का स्त्रोत। 4
ख़ामोश प्रेम
दफ़न है दास्ताँ
ताज की रूह। 5
पाक दामन
अप्रतिम सौन्दर्य
प्रेम पावन।

110 जोगनी गंध

6
अमर कृति
हुस्न ऐ मोहब्बत
प्रेम सम्प्रति।
7
ताजमहल
अनगिन रहस्य
यादें दफ़न।

जोगनी गंध 111

दीपावली 1
जलती बाती
अँधेरे से लड़ता
रौशन दिया। 2
आशा की ज्योत
हर घर रौशन
नेह दीपक। 3
झूमें रौशनी
धरती पे उतरी
दीप चाँदनी। 4
दीप हैं सजे
मोर पंखी रंगो से
लौ बलखाई। 5
रंगबिरंगे
बंधनवार सजे
युग संधि में।

112 जोगनी गंध 6

दीपों का पर्व
रौशनी का उत्सव
है जन्मोत्सव। 7
गौधुली बेला
गणेश लक्ष्मी बिराजे
शुभ औ लाभ। 8
दिया औ बाती
अटूट है बंधन
तम का साथी। 9
गहन तम
पटाखों की बहार
दीपो उल्लास।
10
दीपों की लडी
मनमोहिनी सखी
बाती भी जली।
11
पिया का प्यार
दिवाली की मिठास
कुछ तो खास।

जोगनी गंध 113

12
दूर हो जाये
धरती से अँधेरा
दीप जलाऊँ।
13
दीप्त किरण
अमावस की रात
लौ से डरती।
14
त्योहारों की
रंगबिरंगी छठा
दुकानों पर।
15
शुगर फ्री भी
डिजाइनर शेप
मिठाई रेप।
16
उपहार है
जीता जागता रूप
भावनाओं का।
17
कंदिल संग
दमकती रौशनी
आशा के रंग।

114 जोगनी गंध

18
पटाखों संग
असावधानी घात
एहतिहात।
19
दीपावली में
हर्ष, उल्लास खास
तम का हास।
20
पटाखें करें
ध्वनि, वायुमंडल
मंे प्रदूषण।
21
मिलावट है
बुराई का प्रतीक
काली तारीक।
22
रंग बिरंगे
प्रकृति के नज़्ाारे
झील किनारे।
23
दीप भी सजे
मोरपंखी भी रंगांे से
लौ इठलाई।

जोगनी गंध 115

राखी 1
स्नेहिल रिश्ता
साथ सबसे प्यारा
भैया तुम्हारा। 2
आशीर्वाद है
मेरा रक्षा कवच
भाई का स्नेह। 3
यह सम्बन्ध
अटूट बंधन है
कच्चे धागों का। 4
सुखी जीवन
अनमोल तोहफा
भाई ने दिया। 5
आया है पर्व
राखी का त्योहार
स्नेह उल्लास।

116 जोगनी गंध 6

सजी दुकानें
कलावे रंगबिरंगे
रेशमी धागे। 7
आई है बहना
सजा के पूजा थाली
नेह गहना। 8
अन्न मिष्ठान
रोली, चावल, बाती
नेह सजाती। 9
ललाट टीका
सजाती है बहना
नेह गहना।
10
रेशम की डोर
सजे ललाट टीका
भाव विभोर।
11
रक्षा बंधन
आत्मीयता खास
मिश्री मिठास।

जोगनी गंध 117

12
नाजुक डोरी
बाँधी कलाई पर
रक्षा कवच।
13
खास तोहफा
बरसते आशीष
जीवन भर।
14
भैया है प्यारा
पिहर है हमारा
रिश्ता न्यारा।

118 जोगनी गंध

नूतन वर्ष 1
नूतन वर्ष
रौशनी से नहायी
निशा दीवानी। 2
नये वर्ष मे
तिरतें हुए ख्वाब
नयी आशाएँ। 3
आओ रोप लें
नन्हीं नन्हीं खुशियाँ
ओ मेरे साथी। 4
नव वर्ष की
शुभ बेला है आई
ख्वाब चुनाई।

जोगनी गंध 119
हाइकु से मिलकर कई अन्य छोटी रचनाएँ भी चलन में है जिन्हें चोका, तांका,
सदोका नाम दिया गया है जो हाइकु का विस्तृत रूप ही है, जैसे हाइकु गीत को
चोका भी कहते है। हाइकु की लंबाई तय नही होती है। कुछ बानगी यहाँ प्रस्तुत
है:

हाइकु चोका गीत
1
नेह की पाती
नेह की पाती
मंै बिटिया को लिखूं
दिल का हाल
ममता औ आशीष
पैगाम लिखूं
सर्वथा खुश रहे
प्यारी दुलारी
मेरी राजकुमारी
फूलों सी खिले
जीवन भी महके
राहों में मिले
मखमली डगर
नर्म बिछोना
बाबुल का अंगना
ख्वाबों की तुम
उड़ान भी भरना
दिली तमन्ना
5. हाइकु गीत

120 जोगनी गंध

सुखमय जीवन
सदैव, पर
दुर्गम यह पथ
फूल औ शूल
यथार्थ का सफ़र
पल में धोखा
अपनों से भी रंज
तूफानों में भी
अडिग हो कदम
जटिल वक़्त
में फौलादी जिगर
नारी की जंग
खुद को संभालना
है कटु सत्य
बेदर्द ये जमाना
परवरिश
पाषण हृदय से
यही चाहत
महफूज सफ़र
नहीं भरोसा
कब तक जीवन
हमारे बाद
सुख भरा संसार
माता पिता की दुआ।

जोगनी गंध 121 2

देव नहीं मैं
देव नहीं मैं
साधारण मानव
मन का साफ़
बांटता हूँ मुस्कान
चुप रहता
कांटो पर चलता
कर्म करता
फल की चिंता नहीं
मन की यात्रा
आत्ममंथन, स्वयं
अनुभव से
छल कपट से परे
कभी दरका
भीतर से चटका
स्वयं से लड़ा
फिर से उठ खड़ा
जो भी है देखा
अपना या पराया
स्वार्थ भरा
दिल तोड़े जमाना
आत्मा छलनी
खुदा से क्या मांगना
अन्तः रूदन
मन को न जाना
शांत हो मन
छोड़ो कल की बात
जी लो पलो को
नासमझ जमाना
खुद को संभालना

122 जोगनी गंध 3

गौध्ली बेला में
गौधुली बेला में
दमकता दिया
स्नेहिल आबंध
हर्षित हिया
सोने का कंगन
चांदी की बिछिया
हीरे जैसे पिया
धड़के जिया
विश्वास की बाती
प्रेम का दिवा
समर्पण भाव
अर्पण किया
खील-बताशे
मिठाई, पटाखे
गणेश लक्ष्मी का
वंदन किया
घर, मन दिवाली
पग पग उजेरा
अमावश को भी
रौशन किया। 4
यह जीवन
यह जीवन
है गहरा गागर
सुख औ दुःख
गाड़ी के दो पहिये

जोगनी गंध 123

धूप औ छाँव
सुख के दिन चार
आँख के आँसू
छलते हरबार
जो पाँव तले
खिसकती धरती
अधूरी प्यास
पहाड़-सा हृदय
शोक-विषाद
अत्यंत मंथर हैं
बोझिल पल
वक़्त की रेत घड़ी
धीमा है पल
संकल्पों का संघर्ष
फौलादी जंग
आगमन-प्रस्थान
अभिन्न अंग
मुट्ठी से फिसलते
सुखद पल
वक़्त का पग-फेरा
बहता जल
पतझर-सा झरे
दुर्गम पथ
बदलता मौसम
भोर के पल
सुनहरी किरण
परिवर्तन
मोहजाल से मुक्त
वर्तमान के
खुशहाल लम्हों का

124 जोगनी गंध

करो स्वागत
छिटकी है मुस्कान
जीवन में उदित
नया है रास्ता
खुशियों की तलाश
सुनहरी सौगात। 5
रिश्तों में खास
रिश्तों में खास
विश्वास की मिठास
प्रेम की बाती
रौशनीं की बाहर
बाँटे खुशियाँ
हर दिन त्योहार
हीरे से ज्यादा
अनमोल है प्यार
है जमा पूँजी
रिश्तों की सौगात
सजन संग
बसाया है संसार
नए बंधन
स्नेहिल उपहार
दिलों की प्रीत
अमुल्य पतवार
मन, उमंग
शीतलता प्याप्त
पल पल हो
घर मन दिवाली
हर दिन त्योहार।

जोगनी गंध 125

तांका 1
मन का पंछी
पंहुचा फलक में
स्वप्न अपने
करने को साकार
कर्म की बेदी पर। 2
बन के पंछी
उड़ जाऊ नभ में
शांति संदेश
पहुचाऊँ जग में
बन के शांति दूत। 3
उड़ते पल
हाथ की लकीर पे
नया आयाम
रचो कर्म भूमि पे
तप के बनो सोना।

126 जोगनी गंध 4

मूक पंछी मैं
जानू प्रेम की भाषा
नीड़ बनाता
रंगबिरंगे स्वप्न
तैरते नयनो में। 5
बीतता पल
सुनहरी डगर
भविष्य निधि
निर्माणधीन आज
कर्म की बढती प्यास। 6
कल की बातें
पीछे छूट जाती है
आने वाला है
भविष्य का प्रहर
नयी है शुरुआत। 7
यह जीवन
कर्म से पहचान
तन ना धन
गुण से चार चाँद
आत्मिक है मंथन।

जोगनी गंध 127 8

यह जीवन
तुझ बिन है सूना
हमसफ़र
वचन सात फेरे
जन्मो का है बंधन। 9
यह जीवन
कमजोर है दिल
चंचल मन
मृगतृष्णा चरम
कुसंगति लोलुप।
10
यह जीवन
एक खुली किताब
धूर्त इंसानों
से पटा सारा विश्व
सच्चाई जार जार।
11
यह जीवन
वक़्त पड़ता कम
एकाकीपन
जमा पूँजी है रिश्ते
बिखरे छन-छन।

128 जोगनी गंध

12
यह जीवन
अध्यात्मिक पहल
परमानन्द
भोगविलासिता से
परे संतुष्ट मन।
13
यह जीवन
होता जब सफल
पवित्र आत्मा
न्यौछावर तुझपे
मेरे प्यारे वतन।
14
यह जीवन
नश्वर है शरीर
पवित्र मन
आत्मा तो है अमर
मृत्यु शांत निश्छल।
15
झरते कण
अब ढँक रहे थे
वृक्ष औ रास्ते
हम तुम भी साथ
जम गए जज्बात।

जोगनी गंध 129

16
सर्द मौसम
सुनसान थे रास्ते
और किनारे
कोई सिमट रहा
था, फटी कामरी में।
17
भाजी बहार
टमाटर लाल औ
गाजर संग
सूप की भरमार
लाल हुए है गाल।
18
मटर कहे
मेरी है बादशाही
गाजर बोली
सूप हलुआ लायी
सब्जियों की लड़ाई।
19
जमती साँसे
चुभती है पवन
फर्ज प्रथम
जवानों की गश्त के
बर्फीले है कदम।

130 जोगनी गंध

20
स्वार्थ में अंधे
नोच रहे बोटियाँ
धूर्त सियार
मुख से टपकती
छलिया निशानियाँ।
21
स्वार्थ का चश्मा
सूट बूट पहने
आया है प्राणी
चाटुकार ललना
नित नयी कहानी।
22
भगवा वस्त्र
हाथों में कमंडल
शीश पे शिखा
अंधी श्रद्धा से लूटे
बिखरी काली निशा।
23
पीर मन की
तपता रेगिस्तान
बिखरे ख्वाब
पतझड़ समान
बसंत भी रुलाए।

जोगनी गंध 131

24
तुम हो मेरे
भाव-सखा सजन
तुम्हारे बिन
व्यथित मेरा मन
बतलाऊँ मैं कैसे?
25
चंचल हवा
मदमाती-सी फिरे
सुन री सखी!
महका है बसंत
पिय का आगमन!
26
शीतल हवा
ये अलकों से खेले
मनवा डोले
बजने लगे चंग
सृजित हुए छंद।
27
स्नेहिल मन
सहनशीलता है
खास गहना
सवांरता जीवन
माँ के अनेक रूप।

132 जोगनी गंध

28
माँ प्रिय सखी
राहें हुई आसान
सुखी जीवन
परिवार के लिए
त्याग दिए सपने।
29
माता के रूप
सोलह है शृंगार
नवरात्री में
गरबे की बहार
झरता माँ का प्यार।
30
दोस्ती के रिश्ते
पावन औ पवित्र
हीरे मोती से
महकते गुलाब
जीवन के पथ पर।
31
दो अजनबी
जीवन के मोड़ पे
कुछ यूँ मिले
सात फेरो में बंधा
जन्मों जन्मों का रिश्ता।

जोगनी गंध 133

32
चाँद सितारे
उतरे हैं अंगना
स्नेहिल रिश्ता
ममता का बिछोना
आशीष रुपी झरे
नेह हरसिंगार।
33
ये कैसे रिश्ते
नापाक इरादों से
आतंक मारे
सिमटते जज्बात
बिखरते हैं ख्वाब।
34
नाजुक रिश्ते
कांच से ज्यादा कच्चे
पारदर्शिता
विश्वास की दीवारे
प्रेम का है आइना।
35
आये अकेले
दुनिया के झमेले
जाना है पार,
जिंदगी की किताब
नयी है हर बार।

134 जोगनी गंध

36
ढलती उम्र
शिथिल है पथिक
अकेलापन,
जूझता है जीवन
स्वयं के कर्मो संग।
37
पैसे का नशा
मस्तक पे है चढ़ा
सोई चेतना,
बस नजर का धोखा
बदलता है वक्त।
38
यादों के पल
झिलमिलाता कल
महकते हैं,
दिलों के अरमान
महका बागवान।
39
तेज रफ़्तार
दूर है संगी-साथी
न परिवार,
जूनून है सवार
मृगतृष्णा की प्यास।

जोगनी गंध 135

40
बालियो संग
मचलता यौवन
ठिठकता सा,
प्राकृतिक सौन्दर्य
लहलहाता वन।

136 जोगनी गंध

सदोका 1
बहता पानी
विचारो की रवानी
हसीं ये जिंदगानी
सांझ बेला में
परिवार का साथ
संस्कारों की जीत। 2
बरसा पानी
सुख का आगमन
घर संसार तले
तप्त ममता
बजती शहनाई
बेटी हुई पराई। 3
हाथों में खेनी
तिरते है विचार
बेजोड़ शिल्पकारी
गड़े आकार
आँखों में भर पानी
शिला पे चित्रकारी।

जोगनी गंध 137 4

जग कहता
है पत्थर के पिता
समेटे परिवार
कुटुंब खास
दिल में भरा पानी
पिता की है कहानी। 5
हवा उड़ाती
अमराई की जुल्फे
टेसू हुए आवारा
हिय का पंछी
उड़ने को बेताब
रंगों का समां प्यारा। 6
डोले मनवा
ये पागल जियरा
गीत गाये बसंती
हर डाली पे
खिल गए पलाश
भीगी ऋतु सुगंधी। 7
झूमे बगिया
दहके है पलाश
भौरों को ललचाये
कोयल कूके
कुंज गलियन में
पाहुन क्यूँ न आये।

138 जोगनी गंध 8

झूम रहे है
हर गुलशन में
नए नवेले फूल
हँस रही है
डोलती पुरवाई
रंगों की उड़े धूल। 9
लचकी डाल
यह कैसा कमाल
मधु ऋतू है आई
सुर्ख पलाश
मदमाए फागुन
कैरी खूब मुस्काई।
10
जोश औ जश्न
मन में है उमंग
गीत होरी के गाओ
भूलो मलाल
उमंगो का त्यौहार
झूमो जश्न मनाओ।
11
धवल वस्त्र
पहन इठलाये
मन के कारे जीव
मुख में पान
खिसियानी हंसी
अनृत कहे जीभ।

जोगनी गंध 139

12
भोले चहरे
कातिलाना अंदाज
शब्द गुड की डली
मौकापरस्त
डसते है जीवन
इनसे दूरी भली।
13
साँचा है साथी
हर पल का साथ
कोई बूझ न सका
दिल के राज
विषैला हमराही
आस्तीन का है साँप।
14
मेरा ही अंश
मुझसे ही कहता
मैं हूँ तेरी छाया
जीवन भर
मैं तो प्रीत निभाऊँ
क्षणभंगुर माया।
15
जीवन-संध्या
सिमटे हुए पल
फिर तन्हा डगर
ठहर गई
यूँ दो पल नजर
अक्स लगा पराया।

140 जोगनी गंध

16
चाँदनी रात
छुपती परछाई
खोल रही है पन्ने,
महकी यादें
दिल की घाटियों मे
महकते वो पल।
17
जन्म से नाता
मिली परछाइयाँ
मेरे ही अस्तित्व की,
खुली तस्वीर
उजागर करती
सुख दुःख की छाँव।
18
शांत जल में
जो मारा है कंकर
छिन्न भिन्न लहरें
मचल गयी
पाषाण बना हुआ
मेरा ही प्रतिबिम्ब।
19
चंचल रवि
यूँ मुस्काता आया
पसर गयी धूप
कण कण में
विस्मित है प्रकृति
चहुँ और है छाया।

जोगनी गंध 141

20
नन्हे कदम
धीरे से बढ़ चले
चुपके से पहने
पिता के जूते
पहचाना सफ़र
बने उनकी छाया।

142 जोगनी गंध
डाॅ. भगवतशरण अग्रवाल
1⁄4मराठी अनुवाद-शशि पुरवार1⁄2
1
पावस रात
पिकनिक मनाते
नाचें जुगनू।
1
पावस रात्री
ते सहल साजरा
काजवा नृत्य।
2
वर्षा के झोंके
बतियाते मेंढक
चाय-पकौड़ी।
2
वर्षा चे थेंब
गुंतलेला बेडूक
चहा-भजिया।

जोगनी गंध 143 3

कौन-सा राग
टीन की छत पर
बजाती वर्षा। 3
कोणत्या जीवा
छपरावर टीन
वर्षा नाटकं। 4
बूँदें गिरती
या खेत लपकते
प्यास बुझाने। 4
थेंब पडला
किंवा शेत भरणे
तृप्त तहान। 5
वर्षा की शाम
दर्द जगाता कोई
गाके माहिया। 5
सांजसमयी
कोण वेदना जागृत
गाणी माहिया

144 जोगनी गंध
जोगनी गंध

शशि पुरवार
जन्म तिथि: 22 जून 1973 ई.।
जन्म स्थान: इंदौर, मध्य प्रदेश।
शिक्षा: स्नातक- बी.एस-सी.विज्ञान।
स्नातकोत्तर:एम.ए.राजनीति, 1⁄4देवी अहिल्या विश्वविद्यालय, इंदौर1⁄2 तीन वर्षीय हानर्स
डिप्लोमा इन कम्प्यूटर साफ्टवेयर एंड मैनेजमेंट।
भाषा ज्ञान: हिंदी, मराठी, अंग्रेजी
सम्प्रति: स्वतंत्र लेखन
प्रकाशित कृतियाँ: व्यंग्य संग्रह-व्यंग्य की घुड़दौड़ 1⁄420181⁄2, धूप आँगन की 1⁄420181⁄2,मन का
चैबारा 1⁄4काव्य संग्रह शीघ्र प्रकाशीय1⁄2, अन्य व छंद संग्रह काव्य संग्रह
प्रकाशनार्थ।

लेखन विधाएँ: देश के प्रतिष्ठित समाचार पत्र एवं पत्रिकाओं में आलेख, व्यंग्य, कहानी,
गीत नवगीत, ग़ज़ल, दोहे, कुण्डलियाँ, छंदमुक्त कविताएँ, तांका, चोका,
माहिया, हाइकु, आलेख, लघुकथा, कविताओं का सतत् लेखन एवं
प्रकाशन। अन्तर्जाल पर भी रचनाएँ प्रकाशित। ब्लाग ‘‘सपने“ नाम से
अंतरजाल पर लेखन व प्रकाशन।
अनगिनत महत्वपूर्ण दस्तावेजों समेत कई साझा संकलन में शामिल
1. ‘नारी विमर्श के अर्थ’ निबंध संग्रह। 2. ‘उजास साथ रखना’ चोखा संग्रह। 3. ‘त्रिसुगंधी’
गीत-नवगीत संग्रह। 4. ‘आधी आबादी’ हाइकु संग्रह। 5. ‘स्वातं×योत्तर हिंदी कविता दशा
और दिशा’ हाइकु आलेख संग्रह। 6. नयी सदी के नवगीत-गीत संग्रह। 7. सहयात्री समय
के-गीत संग्रह। 8. कविता अनवरत-गजल प्रकाशन अयन प्रकाशन। 9. लेडीज डाट
काॅम-व्यंग्य संग्रह। 10. आधी आबादी दोहा संग्रह। 11. स्त्री का आकाश भाग 1-2-पर्यावरण
संरक्षण कविताएँ-ग्रीन अर्थ संगठन। 12. शब्द साधना-गीत संग्रह-हिंदुस्तानी भाषा अकादमी।
13. समकालीन गीतकोष-गीत संग्रह। 14. कविता कोष गीत। 15. लघुकथा कोष 16. खट्टे
मीठे रिश्ते 1⁄4उपन्यास की सह लेखिका1⁄2
‘विशेष’- फिल्म डायरेक्टर दर्शन दरवेश द्वारा कुछ कविताओं का पंजाबी अनुवाद
सम्मान/पुरस्कार:
1. हिंदी विश्व संस्थान और कनाडा से प्रकाशित होने वाली ‘प्रयास’ के सयुंक्त तत्वाधान में
आयोजित देशभक्ति प्रतियोगिता में 2013 की विजेता। 2. ‘अनहद कृति’ काव्य प्रतिष्ठा
सम्मान-2014-15। 3. ‘राष्टंभाषा सेवी सम्मान’ अकोला-2015। 4.’’हिंदी विद्यापीठ
भागलपुरः विद्यावाचस्पति सम्मान’-2016। 5. ’’‘मिनिस्टंी आॅफ़ वूमेन एंड चाइल्ड डेवलपमेंट’
द्वारा भारत की 100 ूवउमद’े ।बीपमअमते व िप्दकपं 2016 सम्मान। महामहिम
राष्टंपति प्रणव मुखर्जी जी द्वारा सम्मानित 100 महिला अचीवर्स सम्मान। 6. ‘हरिशंकर
परसाई स्मृति सम्मान’ 2016। 7. ’’‘‘वुमन इन एनवायरमेंटः बालिका सर्वोदय और
पर्यावरण’’ संवर्द्धन के अंतर्गत ‘राष्टं स्तरीय महिला कविता प्रतियोगिता’ 2017। 8. अखिल
भारतीय पोरवाल महासंघ दिल्ली द्वारा प्रतिभा सम्मान 2017। 9. हिंदुस्तानी भाषा काव्य
प्रतिभा सम्मान 2018-हिंदुस्तानी भाषा अकादमी दिल्ली
इसवह.ीजजचरूध्ध्ेंचदम-ेींेीप.इसवहेचवजण्बवउए मउंपसरूेींेीपचनतूंत/हउंपसण्बवउ
चलभाष संपर्क: 094205-19803

जोगनी गंध
;हाइवुफद्ध

शशि पुरवार

लोकोदय प्रकाशन
लखनउफ

काॅपीराइट © शशि पुरवार
प्रथम संस्करण: 2019
आवरण व रेखाचित्रा: संकल्प
मुद्रक: रेप्रो प्रिन्टर्स

प्ैठछ रू 978.93.88839.00.0
श्रवहंदप ळंदकी
ठल ैींेीप च्नतूंत

मूल्य: ृ200

लोकोदय प्रकाशन प्रा. लि.
65/44, शंकर पुरी, छितवापुर रोड, लखनऊ-226001

दूरभाष: 9076633657
ई-मेल: सवावकंलचतंांेींद/हउंपसण्बवउ

मन की बात

संवेदनाएं जोगन ही तो है जो नित भावों के भिन्न भिन्न द्वार विचरण करती
है। भावों के सुंदर फूलों की गंध में दीवानगी होती है। जो मदहोश करके मन
को सुगन्धित कर देती है। इसी तरह साहित्य के अतल सागर में अनगिनत मोती
छुपे हुए है। जितना गहराई में जाओ, हाथ कभी खाली बाहर नही आते है।
संवेदनाओं को भिन्न भिन्न रूप में व्यक्त करना जहाँ हृदय को सुकून प्रदान
करता है वहीं मन इन्ही जोगनी गंधों में असीम सुख का अनुभव करने लगा।
जोगनी गंध में भावों के अनगिनत फूल इस डलिया में संग्रहित है। मैंने 2010
में किसी पत्रिका में हाइकु पढ़े थे। छोटी सी इस जापानी लघु विधा ने खूब
आकर्षित किया। कम शब्दों में पूर्ण कविता का निचोड़ ही हाइकु की पहचान है।
जब मै अस्वस्था के कारण जीवन से संघर्ष कर रही थी, ऐसे समय हाइकु बिस्तर
पर आराम करते हुए बनते रहे। उसके बाद अनुभूति पत्रिका में मेरे हाइकु
प्रकाशित हुए उसके बाद अग्रज हिंदी हाइकु के संपादक आ रामेश्वर कम्बोज जी
के संपर्क में आयी। उन्होंने इस विधा को लिखने के लिए खूब प्रेरित किया।
उन्होंने कहा आपके हाइकु बहुत सुन्दर होते है। कई महत्वूर्ण दस्तावेजों में मेरे
हाइकु शामिल है। कम्बोज जी व हरदीप सिंधु जी हाइकु विधा पर काम कर रहे
थे। उनके परिवार में जुड़कर हाइकु का सतत लेखन व प्रकाशन होने लगा।
इससे कलम को जंग भी नही लगी व अच्छे हाइकु लिखना एक चुनौती थी।
हाइकु लिखने में मन इतना रम गया कि मै अपनी पीर भूलने लगी। उस समय
लघु कविता हाइकु लिखना मेरे लिये सहज था। मेरी माँ को साहित्यिक अभिरूचि
है उन्हें यह जापानी विधा बहुत पसंद आयी, एक दिन उन्होंने मुझे कहा-तुम्हारे
हाइकु मुझे बहुत पसंद है। हाइकु को पाठकों द्वारा भी खूब प्रतिसाद मिला। एक
हाइकुकार के रूप में भी उन्होंने स्थापित कर दिया।
हाइकु खूब लिखे किन्तु कभी संगृहीत नही किये। लेखन मेरे लिए पूजा है
इसीलिए नित भिन्न भिन्न भिन्न विधाएँ लिखती रही और उन्हें पत्र पत्रिकाओं
द्वारा पाठकों तक पहुँचाती रही। संग्रह प्रकाशन का विचार कभी मन में नही था।
हाइकु पर आलेख पत्र भी तैयार किया जिसे अकोला के विश्वविद्यालय में पढ़ा

गया। हाइकु लोगो को सिखाने का भी प्रयास किया और उसका अध्ययन किया।
विधा कोई भी हो उसे पूर्ण समर्पण के बिना साधा नही जा सकता है। हाइकु ठीक
उसी प्रकार है जैसे देखन में छोटे लगे, घाव करे गंभीर।
हाइकु साधारणतः प्रकृति परक माने जाते है किन्तु उसमे आजकल
संवेदनात्मक अभिव्यक्ति भी होने लगी है। मैंने सभी हाइकु सहज अभिव्यक्ति
स्वरुप लिखे हैं। कभी कलम के साथ जबरजस्ती नही की। आसपास में बिखरी
संवेदनाओं सहित प्रकृति को भी समेटा है। जोगनी गंध के बारे में बस इतना
ही कहना चाहती हूँ-जोगनी गंध मेरे लिए दीवानगी है। जैसे बंद किताबों में
महकते हुए सूखे गुलाब हों या बूँद बूँद पिघलता मन। कहीं सुलगती पीर है तो
कहीं एकाकीपन, कहीं दीवानगी है तो कहीं प्रेम का है समर्पण। कहीं चाँद-तारों
की बारातें है तो कभी झील में मुस्काता चाँद है। नन्हें पौधों संग संवाद है, कभी
हरियाली में खिलखिलाती सोनल धूप है। परिवेश में बिखरी हुई संवेदनाओं को
एक आकार दिया है। प्रकृति के संग मानवीय संवेदनाओं को जोड़ा है तो कहीं
नैसर्गिक सुंदरता में मानवीयकरण भी नजर आता है। इस संग्रह को तैयार करने
में बहुत वक़्त लग गया। जब लोकोदय प्रकाशन से संग्रह प्रकाशन का प्रस्ताव
मिला उसके बाद मैंने हाइकु संगृहीत किये। अंतरजाल व पत्र पत्रिकाओं में
जितने हाइकु मिले उतने समेट लिए है। अफ़सोस भी हुआ कि काश सब एकत्रित
किया होता किन्तु जिस समय लेखन को गति प्रदान कर रही थी उस समय जीवन
की पथरीली जमीन से झूझ भी रही थी। इसीलिए नित लेखन करते समय उन्हें
संग्रहित नही कर सकी. अनगिनत रचनाएँ व अन्य विधाएँ अंतरजाल के काल
के गर्त में विचरती कहीं न कहीं जरूर मिल जाएँगी। शेष जोगनी गंध में शामिल
हैं। मेरी यह कृति माँ के साथ साथ पाठक मित्रों को समर्पित है। आशा है पढ़कर
आप अपनी प्रतिक्रिया से अवगत जरूर कराएँगे। आप सभी को नमन, व
लोकोदय प्रकाशन का हार्दिक धन्यवाद जिनके प्रयासों से जोगनी गंध आपके हाथों
में महकने हेतु तैयार है। आशा है जोगनी गंध को आपका स्नेह प्राप्त होगा। मेरे
एक हाइकु से आप सभी को नमन।

प्रेम है चित्र
अनमोल सौगात
पाठक मित्र
-शशि पुरवार

जोगनी गंध 7

हाइकु-हाइकु क्या है

हाइकु मूलतः जापान की लोकप्रिय विधा है. हाइकु जापान का मुक्तक काव्य
प्रकार है, जापानी काव्य विधा के तीन प्रकार प्रचलित है। 1 ताँका 2 चोका 3
सदोका, इन सभी शैलियों की पंक्तियाँ 5,7 के घटक की लम्बी कविताएँ हैं, इन
सभी की लम्बाई में अंतर है, किन्तु हाइकु सिर्फ-पंक्ति में लिखा जाने वाला काव्य
प्रकार है जापानी संतो द्वारा लिखी जाने वाली इस लोकप्रिय काव्य विधा को
जापानी संत बाशो द्वारा विश्व में प्रतिष्ठित किया गया था। हाइकु विश्व की सबसे
छोटी लघु कविता कहीं जाती है। एक ऐसा लघु पुष्प जिसकी महक, अन्तःस
वातावरण को सुगंधित करती है। हाइकु अपने आप में सम्पूर्ण है। हाइकु कविता
5$7$53⁄417 वर्ण के ढाँचे में लिखी जाती है। 17वर्ण की अतुकांत त्रिपदीय
रचना को हिंदी हाइकु कारों ने स्वीकारा है। इस विधा में मात्राओं और अर्ध
व्यंजनों की गिनती नहीं होती है। जापानी कवि बाशो एक यायावर संत थे, उन्होंने
तीन सौ शिष्य बनाकर उन्हें प्रशिक्षित किया था। वह स्वयं प्रकृति प्रेमी थे किन्तु
हाइकु को लोग अध्यात्मिक मानते हैं। कवि बाशो के कथनानुसार-‘‘जिसने 5
हाइकु लिखें है वह कवि, जिसने 10 हाइकु लिखें है वह महाकवि है ”5-7-5
यह तीन पक्तियों में लम्बी कविता का निचोड़ होता है, सहजता, सरलता, ग्राहिता,
संस्कार हाइकु के सौन्दर्य, उसकी आत्मा है। सपाट बयानी हाइकु में हरगिज
मान्यन ही है। गद्य की एक पंक्ति को तीन पंक्तियों में तोड़कर लिख देने से हाइकु
कविता नहीं बनती है, हाइकु देखने मे ंजितने सरल प्रतीत होतें है, वास्तव में
उतने सरल नहीं है, किन्तु मुश्किल भी नहीं हाइकु सृजन एक काव्य साधना है।
हाइकुकार वह है जो हाइकु के माध्यम से गहन कथ्य को बिम्ब और नवीनता
द्वारा सफलतापूर्वक संप्रेषित करता है काव्य साधना के बिना हाइकु लिखना
असंभव है। हाइकु जितने बार भी पढ़े जायें विचारों की गहन परतों को खोलते
है, हाइकु में फूलों सी सुगंध व नाजुकता होती है। हाइकु एक कली के समान
है जिसकी हर पंखुड़ी हर विचारों की नयी परतें खोलती है। देखने में छोटे प्रतीत

8 जोगनी गंध
होने वाले हाइकु पूर्ण अर्थ को समेट कर कथ्य को प्रस्तुत करते हैं। ‘‘देखन में
छोटे लगे घाव करे गंभीर“ वाली भंगिमा सार्थक करते हैं। हाइकु का मूल आधार
प्रकृति है, इसीलिए कुछ विद्वान इसे प्रकृति काव्य भी कहते हैं। साहित्य का
गुणधर्म होता है ग्रहण करना यही कारण है हाइकु भी सामाजिक परिवेश में ढल
चुके हैं। साहित्य काव्य में समयानुसार परिवर्तन होते रहते हैं। हाइकु में भी यह
बदलाव देखे गये है। अब हाइकु सिर्फ प्रकृतिपरक नहीं है अपितु सामाजिक
विसंगतियां, संवेदनाओं के मध्य सेतु बनकर जुड़ें हैं। हाइकु विश्व की सभी समृद्ध
भाषा में रचे जाने लगे हैं। हाइकु का क्षेत्र अब व्यापक हो गया है। भारत में
सर्व प्रथम गुरु रविन्द्र नाथ टैगोर ने 1916 में अपनी जापानी यात्रा के बाद लिखे
‘‘जापानी यात्री’’ नामक सफर नामे के अंतर्गत बंगाली भाषा में हाइकु की
जानकारी प्रदान की थी। गुरूजी ने बाशो के हाइकु का बंगाली अनुवाद भी किया,
सभी हाइकु टैगोर जी की पुस्तक ‘‘अचनचेत उड़रियाँ’’ में शामिल है। हाइकु के
क्षेत्र में हिंदी का प्रथम हाइकु कवि बाल कृष्ण बाल दुआ माने जातें हैं, जिन्होंने
1947 में अनेक हाइकु लिखे। उदारहण स्वरूप एक हाइकु देखा जा सकता है।
बादल देख/खिल उठे सपने/खुश किसान 1⁄4परिषद-पत्रिका अंक अप्रैल-2010
-मार्च-2011, पृष्ठ 1821⁄2
भारत में हाइकु काव्य को हिंदी साहित्य ने बाहें फैला कर स्वीकार किया
है। आज हाइकु विधा बहुत समृद्ध हो चुकी है, हिंदी के पांचवे दशक में हाइकु
रचना के कुछ सन्दर्भ मौजूद हैं किन्तु अज्ञेय द्वारा रचित ‘‘अरी ओ करुणा
प्रभाकर“ 1⁄4प्र. प्र.19591⁄2 को विधिवत मान्यता मिली है जिसमे जापानी हाइकु के
कुछ भावानुवाद/छायावाद एवं कुछ लघु कविताएँ शामिल है। अज्ञेय हाइकु सौन्दर्य
के अभिभूत थे। अरी ओ करुणा प्रवाहमय के ‘‘रूप केकी“ खंड की कुछ बहु
चर्चित रचनाएँ पगडण्डी, वसंत, पूनो की साँझ, चिड़िया की कहानी ‘‘बारम्बार
सराही गयी“ एक चीड का खाका ‘‘खंड के अंतर्गत अज्ञेय ने प्रसिद्ध हाइकुकारों
के अनुवाद प्रस्तुत किये थे जो जापानी भाषा विद समीक्षाकारों द्वारा यथार्थ के
निकट पाये गए, सभी विश्वसनीय और मूल हाइकु के सन्निकट माने गए। छठे
दशक में डाॅ. प्रभाकर माचवे और त्रिलोचन शास्त्री जैसे ख्याति प्राप्त कवि भी
हाइकु से जुड़े।
हिंदी हाइकु का महत्वपूर्ण अध्याय डाॅ. सत्य भूषण वर्मा के हाइकु अभियान
के बाद प्रारंभ हुआ है। डाॅ. वर्मा जे.एन.यू. दिल्ली में जापानी भाषा के

जोगनी गंध 9
विभागाध्यक्ष थे। जापानी हाइकु और हिंदी कविता विषय पर शोध के साथ साथ
आपने 1978 में ‘‘भारतीय हाइकु क्लब की स्थापना की और एक अंतर्देशीय
लघु“ हाइकु पत्र का प्रकाशन भी किया। आपने जापानी हाइकु का हिंदी अनुवाद
भी किया है आज हाइकु विधा बेहद लोकप्रिय हो चुकी है। शिल्प की दृष्टी से
हाइकु 5-7-5 खांचे में लिखे हुए सिर्फ वर्ण नहीं है। कथ्य में कसावट, गहनता,
अर्थ, बिम्ब, सम्पूर्णता स्पष्ट होना आवश्यक है। वस्तु और शिल्प द्वारा हाइकु
की गरिमा और शालीनता बनाये रखना हाइकुकार का प्रथम धर्म है। हाइकु के
नाम पर फूहड़ता प्रस्तुत नहीं होनी चाहिए। आज हाइकु प्रचलित होने के कारण
लोगों के मध्य लोकप्रिय हो चुका है, किन्तु अल्प ज्ञान के कारण हाइकु के नाम
पर लोग कुछ भी लिखने लगे है, जिसे हाइकु नहीं कह सकतें हैं। हाइकु की तीनों
पंक्तियाँ पृथक होकर भी सम्पूर्ण कविता का सार संप्रेषित करती हैं। हाइकु काव्य
की सामयिकता स्वयं सिद्ध है.अब हाइकु हिंदी में स्थायी रूप से स्थापित होने की
ओर अग्रसर है, कई हाइकुकारों के हाइकु काव्य संकलन सराहे गए हैं, हाइकु
अतुकांत और तुकांत दोनों की प्रकार से लिखे जा रहें हैं। किन्तु कथ्य में कसावट
और काव्य की गरिमा भी उतनी ही महत्वपूर्ण हैं। कई हाइकुकार कभी पहली
2 पंक्ति या अंतिम दो पंक्ति या पहली व अंतिम पंक्ति में तुकांत हाइकु का निर्माण
करतें है। हाइकु गागर में सागर के समान है। हाइकु प्रकृति की अंतर
अनुभूतियों को संप्रेषित करने में सक्षम है। काव्यात्मकता और लयात्मकता हाइकु
के श्रृंगार हैं। गेयता हाइकु में रसानुभूति प्रदान करती हैं। हाइकु में प्रकृति के
सौन्दर्य के विविध रंग हाइकुकारों द्वारा उकेरे गयें है, कहीं पलाश दूल्हा बना है,
कहीं धूप काॅपी जाँचती है, कहीं घाटियाँ हँसती है, हाइकु के नन्हे-नन्हे चमकीले
तारें मन के अम्बर पर सदैव टिमटिमाते रहते हैं। प्रकृति की गोद में इतनी
सुन्दरता है कि अपलक उसके सौन्दर्य को निराहते रहो, सौन्दर्य की गाथा उकेरते
रहो, फिर भी अंत नहीं होगा। कवियों द्वारा प्रकृति के सौन्दर्य अनुपम छटा उनकी
कल्पना शक्ति के द्वारा ही संभव है।
प्रकृति के अलग अलग रंगों की कुछ बानगी देखियेμ
नभ गुंजाती/नीड़-गिरे शिशु पे मंडराती माँμडाॅ. भगवतीशरण अग्रवाल
रजनीगंधा/झाड़ में समेटे हैं/हजारों तारे-डाॅ. सुधा गुप्ता
घाटियाँ हँसी/अल्हड किशोरी-सी/चुनर रंगी-रामेश्वर काम्बोज ‘‘हिमांशु“
सौम्य सजीले/दुल्हे का रूप धरे/आये पलाश-शशि पुरवार

10 जोगनी गंध
ले अंगड़ाई/बीजों से निकलते/नव पत्रक-शशि पुरवार
धूप जाँचती/ऋतुओं की शाला में/जाड़े की काँपी-पूणर््िामा वर्मन
सूर्य के पांव/चूमकर सो गए/ गाँव के गाॅंव-जगदीश व्योम
पत्रों पे बैठे/बारिश के मन के/जड़ा है हीरा-शशि पुरवार
आँगनखड़ी/चाँदी-कटोरा हाथ/भिक्षुणी रात-भावना कुँवर
पवन लिखे/रेतकी तल्खी पे/ सुख की पाती-शशि पुरवार
नदिया तीरे/झील में उतरता/हौले से चंदा-शशि पुरवार
हाइकु में प्रकृति के रंग के अलावा हाइकु कारों द्वारा फूल- पत्ते, पेड-पौधे,
पशु-पक्षी, भ्रमर, अम्बर-पृथ्वी, मानवीय संवेदना, प्रेम, पीर, रिश्ते-नाते, राग-रंग,
सपर्श और भी न जाने कितने विषयों पर हाइकु का जन्म हुआ है। वेदना-वियोग
की पीड़ा के भी प्रकार होते हैं, कभी पीड़ा असहनीय होती है तो कभी उस पीड़ा
में पुनर्मिलन की आशा भी सुकून प्रदान करती है। प्रेम करने वाले कई
अनुभूतियों से मिलन समागम होता है। विचारों के मंथन के बाद ही हाइकु अमृत
बनकर बाहर निकलता है। वियोग पुरुष हो या प्रकृति दोनों के लिए पीड़ादायक
होता है। इस सन्दर्भ में कुछ हाइकु के कुछ उदारहण प्रासंगिक होंगेμ
पीर जो जन्मी/बबूल सी चुभती/ स्वयं की साँसे-शशि पुरवार
सुबक पड़ी/कैसी थी वो निष्ठुर/ विदा की घड़ी-भावना कुँवर
ठहरी नहीं/बरसती रही थी/ आँखें रेत में-डा. मिथिलेश दीक्षित
आज भी ताजा/यौवन के फूलों में/यादों की गंध-डाॅ. भगवत शरण अग्रवाल
ठूंठ बनकर/ सन्नाटे भी कहतें/पास न आओ-शशि पुरवार
आँसू से लिखी/ वो चिट्ठी जब खोली/भीगी हथेली-डा. हरदीप संधु
इक्कीसवी सदी के अंत में हाइकुकारों की ऐसी जमात भी आई थी जिसने
बाशो के कथन ‘‘कोई भी विषय हाइकु के लिए उपयुक्त है“ की गंभीरता को न
समझकर...मनमाने ढंग से अर्थ निकालकर हाइकु लिखने आरंभ कर दिए थे,
हाइकु का अर्थ से अनर्थ हो रहा था, हाइकु काव्य सौन्दर्य से दूर जाकर जन
चेतना के नाम पर गध्य से जुड़ने लगा था। किन्तु इस दशक में हाइकुकारों द्वारा
साधना करके उम्दा हाइकु रचे गये हैं।
नए नए बिम्ब, गेयता, तुकांत, गहन कथ्य के साथ उम्दा हाइकु कहीं कहीं
आशा की मशाल भी बना है, कठिनाई में भी आशा की किरण फूटती है हाइकु
कारों का नया दल भविष्य के लिए आश्वस्त करता है। वर्तमान में अनेक पत्र

जोगनी गंध 11
पत्रिकाएं हाइकु के महत्व को स्वीकार कर चुकी है। कई पत्रिकाएं हाइकु विशेषांक
निकाल चुकी है, कई पत्रिकाएं हाइकु को नियमित स्थान भी प्रदान करती हैं।
हिंदी चेतना 1⁄4अंतर्राष्टंीय पत्रिका1⁄2, वीणा 1⁄4इंदौर, म.प्र.1⁄2, उदंती 1⁄4रायपुर, छ.ग1⁄2,
अविराम साहित्यि की 1⁄4त्रेमासिक रूडकी, उतराखंड1⁄2, आरोह-अवरोह 1⁄4पटना1⁄2,
सरस्वती सुमन 1⁄4देहरादून1⁄2, अभिनव अमरोज 1⁄4दिल्ली1⁄2, भारत सरकार साहित्यिक
संस्थान की पत्रिका आदि उल्लेखनीय हैं. वेबपत्रिका हिंदी हाइकु 2012 में शुरू
की गयी थी, आज इस पत्रिका के विश्व के 45 हाइकुकार जुड़े हुए हैं और विश्व
के सभी देशों में इस पत्रिका की पहचान स्थापित है। हाइकु को शब्दों की छवि
से नहीं आँका जा सकता है भारी भरकम शब्दों को प्रयुक्त करने से हाइकु सुन्दर
नहीं बनता है अपितु हाइकु का श्रृंगार भावों की गरिमा, सहजता, और साधना से
है हाइकु अपने आप में सम्पूर्ण रहस्य वाद की परम पारलौकिकता के साथ साथ
छाया वाद का अपरिसिमित सौन्दर्य भी है। शब्दों से छवि को आँकना हाइकु की
कला और साधना का पक्ष भी है। कुछ दृश्यों की बानगी देखियेμ
खड़ी धूप में/मशाल लिए खड़ा/तन्हा पलाश
आसमान में/इतनी कविताएँ/छापी किसने
स्वर्णकलश/शीश पर लेखड़ी/उषा कुमारी
गोयठे पर/चित्रित उँगलियाँ/अंजना शैली
शवेत किरीट/ शोभित हिमवान/ तुम्हे प्रणाम।
हाइकु विधा में अब हर विषय-वस्तु के रंग बिखेरे है, चाहे वह ऋतुएं हो
या मानवीय संवेदनाएं, हाइकु में जहाँ प्रकृति का सुन्दर वर्णन किया गया है वहीं
सामायिक कथ्य पर प्रश्न चिन्ह भी लगाये हैं व समाज को यथार्थ का आइना भी
दिखाया है। संक्षिप्त में कहा जाये तो हाइकु कम शब्दों में बहुत कुछ कहने की
क्षमता रखता है। हाइकु के सभी रंग को आलेख में प्रस्तुत करना संभव नहीं
है, किन्तु हाइकु का भविष्य बहुत उज्व्वल है। हाइकु इत्र की छोटी सी डिबिया
है जिसकी सुगंध जहाँ मन को रोमांचित करती है वहीं विचारों कोबिम्बों के
माध्यम से झकझोरती भी है।
कुछ हाइकु के उदारहण देखिये-
पश्चिमी हवा/धीरे धीरे उतारे/नारी की लज्जा-डाॅ. भगवतीशरण अग्रवाल
आँसुओं भरी/कोठरियां तडपे/जहाँ भी जायें?-रामेश्वर काम्बोज हिमांशु
धोखा पाकर/पहाड़ जैसी बनी/नाजुक कन्या-शशि पुरवार

12 जोगनी गंध
पीर पिघली/चुपके से छलका/नैनों काजल-शशि पुरवार
अल्ल्हड़पन/डुबकियाँ लगाती/कागजी नाव-शशि पुरवार
आँख छलकी/पहाड़ी संगीत-सी/शाम टीसत-डा. सुधा गुप्ता
जोगी वे पत्ते/ पेड़ों का घर छोड़/निकल पड़े-डा. सुधा गुप्ता
अंत में यही कहना चाहूंगी, हाइकु छोटे छंद है जो अपने आप में सम्पूर्ण
है, इसे बिना साधना के प्राप्त नहीं किया जा सकता है, कला की आस्था का एक
दीपक जिसकी टिमटिमाती रौशनी अँधेरे की कालिमा मिटाती है। किसी भी कला
की साधना ही उसे अपने गंतव्य तक पहुचाती है। 5-7-5 के फ्रेम में जड़े हुए
भावों के अनंत हीरे, आज हाइकुकारों द्वारा हाइकु की साधना ने गागर में सागर
समाहित किया है। हाइकु को आज कल चित्रों के माध्यम से भी चित्रित किया
जा रहा है, जिसे हाइगा कहतें हैं। इसे हाइकु का ही एक प्रकार माना जाता है,
भावों को चित्रों के माध्यम से सीधे पाठक तक पँहुचाकर कल्पना उकेर दी जाती
है। हाइकु का भविष्य के प्रति अब हाइकुकार आशान्वित हैं, हाइकु का भविष्य
बहुत उज्ज्वल है।
1⁄4संदर्भ-हाइकु उदारहण, पत्र पत्रिकाएँ1⁄2

जोगनी गंध 13

अनुक्रम

1. जोगनी गंध
1. प्रेम
2. मन
3. पीर
4. यादें/दीवानापन

2. प्रकृति
1. शीत
2. ग्रीष्म व फूल पत्ती, लताएं
- पलाश
- हरसिंगार
- चंपा
3. सावन
4. रात-झील में चंदा
5. पहाड़
6. धूप सोनल
7. ठूँठ
8. जल
9. ग ंगा
10. पंछी
11. हाइगा
3. जीवन के रंग
1. जीवन यात्रा
2. तीखी हवाएँ
3. बंसती रंग

14 जोगनी गंध

4. दही हांडी
5. गाँव
6. नंन्हे कदम-अल्लडपन
7. लिख्खे तूफान
8. कलम संगिनी

4. विविधा

1. हिंद की रोली
2. अनेकता में एकता
3. ताज
4. दीपावली
5. राखी
6. नूतन वर्ष
5. हाइकु गीत

1. हाइकु चोका गीत
1. नेह की पाती
2. देव नहीं मैं
3. गौधुली बेला में
4. यह जीवन
5. रिश्तों में खास
2. तांका
3. सदोका
4. डाॅ. भगवती शरण अग्रवाल के मराठी मंे
मेरे द्वारा अनुवादित कुछ हाइकु

जोगनी गंध 15
-शशि पुरवार

प्रेम
1
मौन पैगाम
खनके बाजूबंद
प्रिय का नाम।
2
प्रेम भूगोल
सम्मोहित साँसे
दुनिया गोल।
3
काँच से छंद
पत्थरों पे मिलते
बिसरे बंद।
4
सूखें हैं फूल
किताबों में मिलती
प्रेम की धूल।
5
मन संग्राम
बतरस की खेती
1. जोगिनी गंध

16 जोगनी गंध

सिंदूरी शाम 6
आँसू, मुस्कान
सतरंगी जिंदगी
नहीं आसान। 7
प्रीत पुरानी
यादें हैं हरजाई
छलके पानी। 8
जोगनी गंध
फूलों की घाटी में
शोध प्रबन्ध। 9
नेह के गीत
आँखों की चैपाल में
मुस्काती प्रीत।
10
सुधि बैचेन
रस भीनी बतियाँ
महकी रैन।
11
प्रीत पुरानी
सूखे गुलाब बाँचे

जोगनी गंध 17

प्रेम कहानी।
12
छेड़ो न तार
रचती सरगम
हिय-झंकार।
13
प्रेम-कलियाँ
बारिश में भीगी है
सुधि-गलियाँ।
14
आई जवानी
छूटा है बचपन
बदगुमानी।
15
एकाकी पन
धुआँ-धुआँ जलता
दीवानापन।
16
प्रेम के छंद
मौसमी अनुबंध
फूलों की गंध
17
प्रेम अगन
रेत सी-प्यास लिये

18 जोगनी गंध

मन-आँगन।
18
एक शाम
अटूट है बंधन
दोस्ती के नाम।
19
साथ तुम्हारा
महका तन मन
प्यार सहारा।
20
आओ बसंत
लिखे नई कहानी
प्रेम दीवानी।
22
सुख की धारा
रेत के पन्नों पर
पवन लिखे।
23
दुःख की धारा
अंकित पन्नों पर
जल में डूबी।
24
दीप भी जले
खुशियाँ घर आईं

जोगनी गंध 19

संग तुम्हारे।
25
नई नवेली
दिलकश मुस्कान
शर्माते नैना।
26
खामोश शब्द
नयन करें बातें
नाजुक डोर।
27
बन जाऊँ मैं
जो शीतल पवन
मिटे तपन।
28
बनूँ कभी मैं
बहती जल धारा
प्यास बुझाऊँ।
29
तेरे लिए तो
समर्पित हैं प्राण
मै वारि जाऊँ।
30
दिल की बातें
दिल ही तो जाने है

20 जोगनी गंध

शब्दों से परे।
31
प्रेम कलश
समर्पण से भरा
अमर भाव।
32
झलकता है
नजरो से पैमाना
वात्सल्य भरा।
33
जन्मों जन्मों का
सात फेरो के संग
अटूट नाता।
34
खामोश साथ
अवनि-अम्बर का
प्रेम मिलन।
35
जीवन साथी
सुख-दुःख, लड़ियाँ
दिया औ बाती।
36
अर्पण करूँ
निस्वार्थ प्रेम, तजूँ

जोगनी गंध 21

दिली ख्वाहिशें
37
एक ही धुन
भरनी है गागर
फूल सगुन।
38
अनुभूति है
प्रेम मई संसार
अभिव्यक्ति की।
39
तुम्हारा साथ
शीतल है चाँदनी
जानकीनाथ।
40
सुख की ठाँव
जीवन के दो रंग
धूप औ छाँव।
41
भीनी सुवास
गुलदस्ते में सजे
खिले हाइकु।
42
प्रेम अगन
विरह की तडप

22 जोगनी गंध

एकाकीपन।
42
आँखों में देखा
छलकता पैमाना
सुखसागर।
43
दिल के तार
जीवन का शृंगार
तुम्हारा प्यार।
44
तेरे आने की
हवा ने दी दस्तक
धडके दिल।
45
आँखों की हया
लज्जा की चुनर
नारी गहना।
46
खिले सुमन
महका गुलशन
मन प्रांगण।
47
समेटे प्यार
फूलों सा उपहार

जोगनी गंध 23

खिले हाइकु।
48
मौन संवाद
कह गए कहानी
नया अंदाज।
49
मेरी जिन्दगी!
मेरे ख्वाबों को तुम,
नया नाम दो।
50
साँसों में बसी
है खुशबू प्यार की,
तुम जान लो।
51
दिल दीवाना
छलकाते नयन
प्रेम पैमाना।
52
मन दर्पण
दिखाता है अक्स
भाव तर्पण।
53
प्रिय जिंदगी
मेरे ख्वावों को तुम

24 जोगनी गंध

नया नाम दो।
मन1
मन बासंती
उत्सव का मौसम
फागुनी रंग। 2
दुःखों को भूले
आशा का मधुबन
उमंगें-झूले। 3
मन चंचल
बदलता मौसम
सर्द रातों में। 4
पाखी है मन
चंचल चितवन
नैन विहग। 5
मन के भाव
शांत उपवन में

जोगनी गंध 25

पाखी से उड़े। 6
यादों के फूल
खिले गुलमोहर
मन प्रांगण। 7
मन प्रांगण
यादों की चित्रकारी
महकी चंपा। 8
मंै का से कहूँ
सुलगते है भाव
सूखती जड़ें। 9
मन प्रांगण
यादों के बादल से
झरते मोती।
10
सुख औ दुःख
नदी के दो किनारे
खुली किताब।
11
खिला मौसम
सरगम से बजे

26 जोगनी गंध

मन के तार।
12
ढूँढें किनारा
भटकता जीवन
अतृप्त मन।
13
अनुरक्त मन
गीत फागुनी गाये
रंगों की धुन।
14
पाखी सा मन
चंचल ये मौसम
बजी तरंग।
15
यह जीवन
पथरीली राहें
चंचल मन।
16
अँधेरी रात
मन की उतरन
अकेलापन।
17
खिली मुस्कान
मासूम बचपन

जोगनी गंध 27

मन मोहन।
18
मोहे न जाने
मन का सांवरिया
खुली पलकें।
19
मन की पीर
शब्दों की अंगीठी से
जन्मे है गीत।
20
मोह औ माया
अहंकार का पर्दा
आँखों का धोखा।
21
मन का हठ
दिल की है तड़प
रूठी कलम।
22
शिशु सा मन
ढूंढता है आँचल
प्यार से भरा।
23
प्यासा है मन
साहित्य की अगन

28 जोगनी गंध

ज्ञान पिपासा।
24
उजला मन
रंगो की चित्रकारी
कलम गहे।
25
अहंकार है
मृग तृष्णा की सीढ़ी
मन का धोखा।
26
भागता मन
चंचल हिरणों सा
पवन संग।
27
मन देहरी
बिखरी संवेदना
जन्मी कविता।
28
तीखे संवाद
मन का प्रतिकार
वाद विवाद।
29
अतृप्त मन
भटकता जीवन

जोगनी गंध 29

ढूँढे किनारा।
30
अकेलापन
तपता रेगिस्तान
व्याकुल मन।
31
गर्म हवाएँ
जल बिन तड़पे
मन, मछली।
32
सुर संगम
खिला मन प्रागण
जीवन मीत।
33
थकित मन
दूर बैठी मंजिल
अनुयायन।
34
अनुगमन
कसैला हुआ मन
आत्मचिंतन।
35
मन-दर्पण
दिखता है अक्स

30 जोगनी गंध

चेहरे-संग।
36
भागता मन
चंचल हिरनी-सा
बुझे न प्यास।

जोगनी गंध 31

पीर 1
दर्द की पौड़ी
पहाड़ी भींज रही
आँख निगोड़ी। 2
छूटे संवाद
दीवारों पे लटके
वाद-विवाद। 3
बर्फ से जमें
भीगे से अहसास
शब्दों को थामे। 4
दर्द की नदी
लिख रही कहानी
ये नयी सदी। 5
पीर जो जन्मी
बबूल सी चुभती

32 जोगनी गंध

स्व्यं की सांसें। 6
पीर तन की
टूटा है दरपन
वृद्ध जीवन। 7
रिश्तो में मिला
पल पल छलावा
दर्द की पौड़ी। 8
वक़्त के साथ
जन्में हुए नासूर
रिसते घाव। 9
सुख खातिर
करे सारे जतन
जर्जर तन
10
दिल की पीर
बहते नयनों से
हुई विदाई।
11
तन्हाईयों में
सर्द सा यह मौसम

जोगनी गंध 33

शूल सा चुभा।
12
चाँदनी रात
नयनों बहे नीर
सुलगी पीर।
13
दिल का दर्द
रेगिस्तान बन के
तन में बसा।
14
स्वर संगीत
तन मन भी झूमे
पीर भी भूले।
15
अंतरगित
सन्नाटे में बिखरी
तेज चीत्कार।
16
पतझर से
झरते है नयन
प्रेम अगन।
17
फूटी रुलाई
पथराये नयन

34 जोगनी गंध

दरका मन।
18
रंग बिरंगे
प्रकृति के नज़ारे
अंधत्व मारे।
19
आँखों का पानी
बनावट के फूल
बदगुमानी।
20
मंजिल कहाँ
दरका यह मन
प्रीत गमन।
21
अश्क आँखों से
सूख गए हैं जैसे
रीता झरना।
22
अधूरी प्यास
अजन्मी ख्वाहिशे
वक़्त है कम।
23
उफना दर्द
जख्म बने नासूर

जोगनी गंध 35

स्वाभिमान के।
23
वफ़ा का मोल
सहमे तटबंध
तीखे से बोल।
24
समंदर के
बीच रहकर भी
रहा मै प्यासा।
25
तरसे नैना
पिया हैं परदेश
कैसे पुकारू।
26
रीता ये मन
कोख का सूनापन
अतृप्त आत्मा।
27
रिश्ते अभागे
पतला होता खून
कच्चे हैं धागे।
28
एकाकी पन
बिखरी है उदासी
स्याह खामोशी।

36 जोगनी गंध

यादें/दीवानापन
1
दिल का दिया
यादों से जगमग
ख्वाब चुनाई।
2
रिश्तों की लड़ी
बिताये हुए पल
है जमा पूंजी।
3
तन्हा पलों में
चुपके से छेडती
यादें तुम्हारी।
4
तीखी चुभन
सूखे गुलाब संग
दीवानापन।
5
महकी यादें
मन के गलियारे

जोगनी गंध 37

तेरी ही बातें। 6
नींद बैरन
यादें हरसिंगार
मुदित मन। 7
छलके जाम
यादें हैं हरजाई
अक्षर धाम। 8
बंद पन्नों में
हृदय के जज्बात
सूखते फूल। 9
भूली बिसरी
जीवन में सिमटती
खामोश रातें।
10
पृथक रास्ते
दरकता है मन
प्रीत आँगन।
11
प्यार के पल
महक रही यादें

38 जोगनी गंध

तन्हाई संग।
12
साँसों मे बसी
है; प्यार की खुशबू
प्रिय जान लो।
13
सर्द है यादे
शूल बनी तन्हाई

जोगनी गंध 39

हरे नासूर।
शीत 1
कंपकपाता
सिहरता बदन
ठंडी चुभन। 2
ठंडी बयार
जलता दिनकर
है बेअसर। 3
श्वेत दुशाला
धरती के अंक में
बर्फ के कण। 4
सर्द रातों में
शूल बनी यादें
रिसे नासूर। 5
घना कोहरा
नजरो का है फेर
2. प्रकृति

40 जोगनी गंध

गहरी खाई। 6
रूई सा फाहा
नजरो में समाया
उतरी मिस्ट। 7
सर्द हवामें
सुलगता है दर्द
जमती बर्फ। 8
शीत प्रकोप
भेदती हैं हवाएँ
उष्णता लोप। 9
बर्फ से जमे
भीगे से अहसास
शब्दों को थामे
10
निष्ठुर रात
राह में ठिठुरता
दीन संघात।
11
सर्द कोहरा
मचल गयी यादें

जोगनी गंध 41

भीगी कामरी।
12
सर्द मौसम
सुलगती है पीर
नीर न बहे।
13
शीत लहर
अदरक की चाय
गरम चुस्की।
14
जमती झीले
चमकती चांदनी
श्वेत चाद।
15
बर्फ ही बर्फ
बिखरी चारो तर्फ
अकेली जान।
16
बर्फ सा पानी
कांपती जिंदगानी
है गंगा स्नान।
17
जमता खून
हुई कठिन साँसे

42 जोगनी गंध

फर्ज-इन्तिहाँ।
18
शीत प्रकोप
सैन्य बल सलाम
देश में जान।
19
अलसाए-से
तृण औ लतिकाएँ
ओस चमके।
20
हिमपात है
तपती धरा पर
शीतोपचार।
21
हिम-से जमे
हृदय के ज़ज़्बात
किससे कहूँ?
22
श्वेत रजाई
धरा को खूब भाई
कण दमके।
23
बच्चे सा आया
खिलखिलाता भानू

जोगनी गंध 43

गर्म छुअन।
24
शीत काल में
केसर औ चंदन
काया दमके।
25
खोल खिड़की
आई शीत लहर
सूरज डरा।
26
सर्दी है आई
गुड की चिक्की भाई
अलाव जले।
27
कंबल ओढे
ठिठुरता काँपता
सूर्य झाँकता।
28
पीली सरसों
मक्के की भाखरी ले
सर्दी है आई।
29
हिम शिखर
मनमोहिनी रूप
सोनल धूप।

44 जोगनी गंध

ग्रीष्म 1
कूके कोयल
मदमस्त बयार
झूमा बसंत। 2
प्रकृति दंग
केक्टस में खिलता
मृदुल अंग। 3
पानी की तंगी
महामारी की मार
है हाहाकार। 4
कैरी का पना
आम की बादशाही
खूब लुभाई। 5
गर्मी भी जवां
इश्क गुलमोहर
फूल हैं झरे।

जोगनी गंध 45 6

स्वर्ण किरणें
उतरी पनघट
बिखरा सोना। 7
तेज हवाएँ
लू-लपट व आँधियाँ
शोर मचाएँ। 8
जलता भानू
उष्णता की चुभन
रातें भी नम। 9
रसीली आस
तपन की है प्यास
शीतल जल।
10
बर्फ का गोला
रंग बिरंगी कुल्फी
मन भी डोला।
11
जेठ की धूप
हँसे अमलतास
प्रेम के फूल।

46 जोगनी गंध

12
चटकलाल
प्रकृतिक खुमार
अमलतास

जोगनी गंध 47

पलाश 1
खिली चाँदनी
भौरे गीत सुनाए
झूमे पलाश। 2
बीहड़ वन
दहकते पलाश
बौराई हवा। 3
तप्त सौन्दर्य
धरती का शृंगार
सुर्ख पलाश। 4
खिले पलाश
अंबुआ की बहार
फागुन आया। 5
सौम्य सजीले
दुल्हे का रूप धरे
आये पलाश।

48 जोगनी गंध

6
सजी धरती
हल्दी भी खूब लगी
झूमे पलाश।
7
तेरे प्यार में
महकते पलाश
चंदन मन।
8
स्वर्ण पलाश
सोने से दमकते
हैरान सूर्य।

जोगनी गंध 49

हर सिंगार 1
श्वेत धवल
बसंती सा नाजुक
हरसिंगार। 2
शिउली सौन्दर्य
लतिका पे है खिला
गुच्छो मे लदा। 3
हर सिंगार
ईश्वरीय सृजन
श्वेत कमल। 4
श्वेत चांदनी
धरा की चुनरिया
झरे प्राजक्त। 5
स्नेह-बंधन
फूलों से महकते
हर सिंगार।

50 जोगनी गंध

6
सौम्य श्रृंगार
चमकती चाँदनी
श्वेत चादर।
7
हरसिंगार
महकता जीवन
मन प्रसन्न।

जोगनी गंध 51

चंपा 1
खिली चांदनी
झूमें लताओं पर
मुस्काती चंपा। 2
तरु पे खेले
मनमोहिनी चंपा
धौल कँवल। 3
मन प्रांगण
यादों की चित्रकारी
महकी चंपा। 4
दुग्ध का पान
हलद का श्रृंगार
चंपा ने किया। 5
चंपा मोहिनी
दमकता सौंदंर्य
शशि सा खिले।

52 जोगनी गंध

सावन 1
भँवरे गाते
महकता उपवन
पुष्प लुभाते। 2
मुस्कुराती है
ये नन्ही सी कलियाँ
तोड़ो न मुझे। 3
बीजों से झांके
बेक़रार प्रकृति
थाम लो मुझे। 4
प्रफुल्लितहै
ये नन्हे प्यारे पौधे
छूना न मुझे। 5
पत्रों पे बैठे
बारिश के मनके
जड़ा है हीरा।

जोगनी गंध 53 6

सावन आया
रोम-रोममहके
कंचन काया। 7
पड़े हिंडोले
ले ऊँची ऊँची पींगे
पीर ही भूले। 8
आया सावन
खिलखिलाई धरा
नाचे झरने। 9
ले अंगडाई
बीजों से निकलते
नव पत्रक।
10
दहके टेसू
बौराई अमराई
फागुन डोले।
11
शैल का अंक
नाचते है झरने
खिलखिलाते।

54 जोगनी गंध

12
जख्मी वृक्ष
रीत गए झरने
अम्बर रोये।
13
हरीतिमा की
फैली है चदरिया
सावन-भादो।
14
क्लांत नदिया
वाट जोहे सावन
जलाए भानू।
15
नाचे मयूर
झूम उठा सावन
चंचल बूँदे।
16
काली घटाएँ
सूरज को छुपाए
आँख मिचोली।
17
बैरी बदरा
घुमड़ घुमड़ के
आया सावन।

जोगनी गंध 55

18
बूँदों की लड़ी
झमाझम बरसी
धरा न तरसी।
19
सौंधी खुशबू
नथुनों में समाई
बरखा आई।
20
मृदा ही सींचे
पल्लवित ये बीज
मेरा ही अंश।
21
माटी को थामे
पवन में झूमती
है कोमलांगी।
22
ये हरी भरी
झूमती है फसलें
लहकती सी।
23
तप्त धरती
सब बीजों को मिला
नव जीवन।

56 जोगनी गंध

24
खिला जोबन
बारिश में भीगता
पुष्पक तन।
25
बासंती गीत
प्रकृति ने पहनी
धानी चुनर।
26
प्यासी धरती
तपता रेगिस्तान
बरसो मेघा।
27
सिंधु गरजे
विध्वंश के निशान
अस्तित्व मिटा।
28
अप्रतिम है
प्रकृति का सौन्दर्य
खिले सुमन।
29
नभ ने भेजी
वसुंधरा को पाती
बूँदों ने बाँची।

जोगनी गंध 57

30
पुष्पों को चूमे
रसवंती फुहार
डाली भी झूमे।
31
गिरता पत्ता
छोड़ रहा बंधन
नव जीवन।
32
मुक्त हवा में
पत्ता चला मिलने
धरती है माँ।
33
दरख्तों को
जड़ से उखडती
तूफानी हवा।
34
घने बादल
कडकती बिजली
झरती बूँदें।
35
थिरके मोर
सावन की घटाएँ
भाव विभोर।

58 जोगनी गंध

36
ग्रीष्म चुभन
घुमडते बादल
जल स्तंभन।
37
पुलकित है
खिलखिलाते शिशु
हवा के संग।
38
बेकरारी सी
भर लूँ निगाहों में
ये नया जहाँ।
39
मैं भी तो चाहूँ
एक नया जीवन
खिलखिलाता।
40
हौसले साथ
जब बढे़ कदम
छू लो आंसमा।
41
दुलार करूँ
भर लूँ आँचल में
मेरा ही अंश।

जोगनी गंध 59

42
हरे भरे से
रचे नया संसार
धरा क स्नेह।
43
झरते पत्ते
माटी से मिलता है
माटी का तन।
44
बिखरे मोती
धरती के अंक में
फूलों की गंध।
45
इंद्र धनुषी
धरती का मिलन
नील गगन।
46
भँवरे गाते
महकता उपवन
पुष्प लुभाते।
47
हवा के संग
खेलती ये हवाएँ
पुलकित हैं।

60 जोगनी गंध

48
संग खेलते
ऊँचे होते पादप
छूँ ले आंसमा।
49
पांखुरी गिरी
महकता बदन
हवा में उड़ा।
50
नीलगगन
धरती से मिलन
इंद्रधनुषी।
51
भोर चहकी
मुस्कुराती कलियाँ
बारी महकी।
52
पुष्पों का गुच्छा
पुलकित केक्टस
लदा बदा सा।
53
काले घनेरे
बादलों की चुनर
गर्म तपिश।

जोगनी गंध 61

54
वृक्षारोपण
सुरक्षा का कवच
धरा, अर्पण।
55
राग-बैरागी
सुर गाए मल्हार
छिड़ी झंकार ।

62 जोगनी गंध

रात-झील में चंदा
1
नदिया तीरे
झील में उतरता
हौले से चंदा।
2
रात चाँदनी
उतरी मधुबन
पिया के संग।
3
रात अकेली
सन्नाटे की सहेली
काली घनेरी।
4
तन्हा सड़क
कँपकपाती रातें
चाँदनी हँसे।
5
नम हैरातें
बर्फीले एहसास
नश्तर बातें।

जोगनी गंध 63 6

कम्पित रात
चाँदनी में नहाए
सहमे पात। 7
खामोश रात्र
सन्नाटे में बिखरी
तेज चीत्कार। 8
चाँदनी रात
सितारों की चूनर
धरा मुस्काए। 9
सुर्ख गुलाब
महकती सुवास
चाँदनी रात।
10
रात की रानी
चुपके से महकी
पौन दीवानी।
11
श्वेत चाँदनी
हरसिंगार झरे
विस्मित चाँद।

64 जोगनी गंध

12
सघन वन
व्योम तले अँधेरा
क्षीण किरण।
13
गहन रात
छुप गया है चाँद
कृष्ण पक्ष में।
14
तारों से सजी
छटा बिखेरे रात
पूनों का चाँद।
15
धरा-अम्बर
तारों की चूनर का
सौम्य शृंगार।
16
गहन रात
ये पूनम का चाँद
खिलखिलाता।

जोगनी गंध 65

पहाड़ 1
अडिग खड़ा
देखे कई बसंत
संत पहाड़। 2
धोखा पाकर
पहाड़ जैसी बनी
नाजुक कन्या। 3
चंचल भानू
रास्ता रोके खड़ा
बूढ़ा पर्वत। 4
झुकता नहीं
आए लाख तूफ़ान
डिगता नहीं। 5
हिम पिघले
पहाड़ ठूँठ बने
राहो में खड़े।

66 जोगनी गंध 6

जलजले से
आहत है पहाड़
मौन रुदन। 7
उगले ज्वाला
गर्म काली लहरें
स्याह धरती। 8
हिम से ढके
प्रकृति बुहारते
शांत भूधर। 9
पहाड़ों तक
पहुंचा प्रदुषण
प्रलयंकारी।
10
अडिग रहूँ
पर्वत-सी अचल
प्रहरी हूँ मैं।
11
बीहड़ रास्ते
हिम्मत न हारना
जीने के वास्ते।

जोगनी गंध 67

ध्ूप सोनल 1
ताप पीकर
खिल उठी है दूब
सोनल धूप। 2
कड़ी धूप में
जले हैं मेरे पाॅंव
दूब का गाँव। 3
स्वर्ण किरण
रोम रोम निखरे
धरा दुल्हन। 4
धूप चिरैया
पत्थरों पर बैठी
सोन चिरैया। 5
धूप सुहानी
दबे पाँव लिखती
छन्द रूमानी।

68 जोगनी गंध

6
धूप सोनल
गुजरा हुआ कल
स्वणर््िाम पल।
7
धूप बातूनी
पोर-पोर उन्माद
आँखें क्यूँ सूनी?
8
नवउल्लास
खिड़की से झाँकता
वेद प्रकाश।
9
सुहानी धूप
सर्द हुआ मौसम
सिमटा वक्त।

जोगनी गंध 69

ठूँठ1
ठूंठ सा तन
मुरझाया यौवन
पंछी न आये। 2
ठूंठ बन के
सन्नाटे भी कहते
पास न आओ। 3
पाषाण मन
स्नेहिल संवेदना
जर्जर तन। 4
राहो में खड़े
देख रहे बसंत
बीता यौवन। 5
जीने की आस
महकने की प्यास
जिंदगी खास।

70 जोगनी गंध 6

सिसकती-सी
ठहरी है जिंदगी
राहों में आज। 7
सिमटी जड़ें
हरा भरा था कभी
वो बचपन। 8
धीमा गरल
पीर की है चुभन
खोखल तन। 9
शूलों-सी चुभन
दर्द भरा जीवन
मौन रुदन।
10
किससे कहूँ
पीर पर्वत हुई
ठूँठ-सी खड़ी।
11
झरते पत्ते
बेजान होता तन
ठूंठ सा वन।

जोगनी गंध 71

12
चीखें बेजान
तडपती हैं साँसे
ठूँठ सा तन।
12
सघन वन
व्योम तले अँधेरा
क्षीण किरण।
13
बिखरे पत्ते
तूफानों से लड़ता
जर्जर तन।
14
संत सरीखा
ठूँठ सा खडा वृक्ष
जर्जर हुआ।
15
अवचेतन
लोलुपता की प्यास
ठूँठ बदन।
16
गिरते पत्ते
छोड़ रहे बंधन
नव जीवन।

72 जोगनी गंध

17
सूखी पत्तियाँ
बेजार होता तन
अंतिम क्षण।

जोगनी गंध 73

जल1
छुए किनारा
भावुक है लहरे
आँखों का पानी। 2
जल विहीन
व्याकुल है अवनी
व्योम संगीन। 3
पीर पिघली
चुपके से छलका
नैनों का जल। 4
जल जीवन
बूंद बूंद गिरती
जल तरंग। 5
कम्पित धरा
विषैली पोलिथिन
मानवी भूल।

74 जोगनी गंध 6

पर्वत पुत्री
धरती पे जा बसी
सलोना गाँव। 7
जल जीवन
प्रकृति-मानव का
अटूट रिश्ता। 8
जगजननी
धरती की पुकार
वृक्षारोपण। 9
मानुष काटे
धरा का हर अंग
मिटते गाँव।
10
केदारनाथ
बेबस जगन्नाथ
वन हैं कटे।
11
बहती नदी
पथरीली हैं राहें
तोड़े पत्थर।

जोगनी गंध 75

12
काले धुँए से
चाँद पर चरण
वशीकरण।

76 जोगनी गंध

गंगा 1
हुई विदाई
बहे निर्मल गंगा
स्वर्ग से आई। 2
गंगा काजल
गुणकारी अमृत
पापनाशक। 3
विषैली गंगा
मैली हुई चादर
मानवी मार। 4
शीतल जल
मन हो जाये तृप्त
है गंगाजल। 5


जोगनी गंध 77

6
सिमटी गंगा
कटते हरित वन
खत्म जीवन।
7
है पुण्य कर्म
किये पाप मिटाओ
गंगा बचाओ।
8
गंगा पावन
अभियान चलाओ
स्वच्छ बनाओ।
9
निर्मल गंगा
खुशहाल जीवन
फलित धरा।

78 जोगनी गंध

पंछी 1
उड़ते पंछी
नया जहाँ बसाने
नीड़ है खाली। 2
उड़ता पंछी
पिंजरे में जकड़ा
है परकटा। 3
तन के काले
मूक सक्षम पक्षी
मुंडेर संभाले। 4
मूक है प्राणी
कौवा अभिमानी
कोई न सानी। 5
भोली सूरत
क्यों कागा बदनाम
छलिया नाम।

जोगनी गंध 79

6
कोयल साथी
धर्म कर्म के नाम
कागा खैराती।
7
कर्कश बोली
संकट पहचाने
कागा की टोली।

80 जोगनी गंध

हाइगा 1
सुनहरा है
प्रकृति का बंधन
स्वणर््िाम पल। 2
उषा काल में
केसरिया चूनर
हिम पिघले। 3
सिंदूरी आभा
सुनहरा गहना
साँझ है सजी। 4
अम्बर संग
अवनि का मिलन
संध्या बेला में

जोगनी गंध 81

जीवन यात्रा
1
शूल जो मिले
हम तो नहीं हारे
पाया मुकाम।
2
कांची है माटी
मृदु नव कोपलें
शिकारी हवा।
2
बेहाल प्रजा
खुशहाल है नेता
खूब घोटाले।
3
चिंता का नाग
फन जब फैलाये
नष्ट जीवन।
3
पति-पत्नी में
वार्तालाप सिमित
अटूट रिश्ता।
3. जीवन के रंग

82 जोगनी गंध 4

पवन लिखे
रेत की तल्खी पर
सुख की पाती 5
नाजुक धागे
मजबूत बंधन
गृह बंधन। 6
जीवन यात्रा
विचारों की धुंध
सुरभि पात्रा। 7
भागते रहे
कल को ढूँढने में
आज खो दिया। 8
सुनहरा है
ये आने वाला कल
दृढ़ उत्कल। 9
सूखे हैं पत्ते
बदला हुआ वक्त
पड़ाव, अंत।

जोगनी गंध 83

10
परिवर्तन
वक्त की है पुकार
कदमताल।
11
बंधी है मुट्ठी
रेत से फिसलते
जीवन पल।

84 जोगनी गंध

तीखी हवाएँ 1
तीखी हवाएँ
नश्तर सी चुभती
शोर मचाएँ। 2
शब्दों का मोल
बदली परिभाषा
थोथे हैं बोल। 3
चीखती भोर
दर्द नाक मंजर
भीगे हैं कोर। 4
तांडव कृत्य
मरती संवेदना
बर्बर नृत्य। 5
आतंकी मार
छिन गया जीवन
नरसंहार।

जोगनी गंध 85 6

मासूम साँसें
भयावह मंजर
बिछती लाशें। 7
मसला गया
निरीह बालपन
व्याकुल मन। 8
भ्रष्ट अमीरी
डोल गया ईमान
तंग गरीबी। 9
स्वरों में तल्खी
हिय में सुलगते
भी गेजज्बात।
10
मन के काले
मुख पर मुखौटा
मुँह उजाले।
11
शूल बेरंग
मुस्कुराती कलियाँ
विजय रंग।

86 जोगनी गंध

12
फूटी रुलाई
पथराई-सी आँखें
दरकी धरा।
13
काँपी पेस्ट
मूल दस्तावेजो से
है छेडछाड़।
14
रचना पर
शब्दों से प्रतिक्रिया
मेहनताना।
15
शक का भाव
रिश्तों मे दीमक
मकड जाल।
16
विष सा कार्य
रिश्तों का शोषण
अवशोषण।
17
है जानलेवा
कैंसर का खतरा
मदिरापान।

जोगनी गंध 87

पफागुन-बसंती रंग
1
होली है प्यारी
रंग भरी पिचकारी
सखियाँ न्यारी।
2
मारे गुब्बारे
लाल पीले गुलाबी
रंग लगा रे।
3
प्रेम की होली
दूर बैठी सखियाँ
मस्तानी टोली।
4
होली की मस्ती
प्रेम का है खजाना
दिलों की बस्ती।
5
मन बासंती
उत्सव का मौसम
फागुन रंग

88 जोगनी गंध 6

सपने हँसे
उड़ चले गगन
बसंती रंग। 7
दहके टेसू
बौराई अमराई
बासंती हवा। 8
रंगों की होली
मिलन का त्योहार
गुझिया खास। 9
ले पिचकारी
भरे रंग गुलाबी
बाल गोपाल।
10
आई है होली
सतरंगी ठिठोली
छोरो की टोली।
11
उड़े गुलाल
प्रेम भरी बौझार
गुलाबी गाल

जोगनी गंध 89

12
सपने पाखी
उड चले गगन
बासंती रंग।
13
रंग अबीर
फिंजा मे लहराते
बासंती रंग।
14
चढा के भंग
मौज मस्ती के रंग
बजाओ चंग।
15
सपने हँसे
इंद्रधनुषी रंग
होरी के संग।

90 जोगनी गंध

दही-हांडी 1
श्याम ने दिया
प्रेम का गूढ़ अर्थ
भक्तों ने जिया। 2
सांसों में बसी
भक्ति-भाव की धारा
ज्ञान लौ जली। 3
नियम सारे
ज्ञान का सागर है
मोहन प्यारे। 4
हर्षोल्लास है
भक्ति भाव की गंगा
गोकुल खास। 5
बाल गोपाल
दही हांडी की धूम
हर चैराहे।

जोगनी गंध 91

6
नयना प्यासे
प्रभु दरसन के
सुनो अरज।
7
कृष्ण राधा के
प्रेम का है प्रतिक
सगुन दीप।

92 जोगनी गंध

गाँव 1
शीतल छाँव
आँगन का बरगद
पापा का गाँव। 2
चैका औ बासन
घर घर से उड़ती
सौंधी खुशबू। 3
सुख की ठाँव
हरियाली जीवन
म्हारा गांव। 4
ठहर गया
आदिवासी जीवन
टूटे किनारे। 5
वो पनघट
पनिहारिन बैठी
यमुना तट

जोगनी गंध 93 6

खप्पर छत
गोबर से लीपती
अपना मठ। 7
कच्चे मकान
खुशहाल जीवन
गांव पोखर। 8
साँसों में बसी
मैहर की खुशबू
रची बसी सी। 9
नहीं है भीड़
चहकती बगिया
महका नीड़।
10
बाजरा-रोटी
घी संग गुड डली
सौंधी लगे।

94 जोगनी गंध
नन्हे कदम/अल्लहड़पन
1
लाडो सयानी
जोबन-दहलीज
कच्चा है पानी।
2
अल्लहड़पन
डुबकियाँ लगाती
कागजी नाव।
3
माँ से मायका
पिता जग दर्शन
मार्गदर्शन।
4
कभी न भूले
वह स्नेहिल स्पर्श
ननिहाल का।
5
नन्हे कदम
मोहक मृदुहास्य
खिला अंगना।

जोगनी गंध 95 6

नर्म स्पर्श
ममता का आँचल
शिशु मुस्काए। 7
प्यासी ममता
तड़पता आँचल
गोदभराई। 8
कोई न जाने
मेरे दिल का दर्द
बेटी पराई। 9
मासूम हँसी
हृदय की सादगी
जी का जंजाल।
10
खिले सुमन
बगुला क्या जाने
नाजुक मन।
11
सारस आये
बनावटी चमक
भ्रम फैलाये।

96 जोगनी गंध

12
रंगो से भरा
सलोना बचपन
फूल पाखरू।
13
तेज धूप में
नेह की ठंडी छाँव
माँ का आँचल।
14
नाजुक स्पर्श
माँ का बच्चे से स्नेह
दुलार भरा।
15
माँ कि चिंता
लाडो है परदेश
पाती, ममता।
16
स्नेहिल रिश्ता
ममता का बछोना
माँ का शिशु से।
17
नर्म सा स्पर्श
ममता का आँचल
शिशु मुस्काये।

जोगनी गंध 97

18
कच्ची उम्र
नव कोपल-प्राण
दिशा हीनता।
19
फूलों-सा तन
मासूम बचपन
खिलखिलाता।
20
माँ का दुलार
सुरक्षा का कवच
शिशु, जीवन।
21
परिवार है
सुख भरा जीवन
पारंपरिक।

98 जोगनी गंध
लिक्खे तूपफान/कलम संगिनि
1
लिक्खें तूफान
तकदीरों की बस्ती
अपने नाम।
2
नया विहान
शब्दों का संसार
रचें महान।
3
भाव चपल
कलम से उभरें
स्वणर््िाम पल।
4
स्वप्न साकार
मुस्कुराती हैं राहें
दरिया-पार।
5
नव उल्लास
उम्मीदों का सूरज
मीठी सुवास।

जोगनी गंध 99 6

छू लिया जहाँ
श्रम है अनमोल
सुहानी भोर। 7
काव्य का गान
मंत्रमुग्ध हैं कर्ण
रसानुभूति। 8
स्वर लहरी
जीवन की प्रेरणा
बजी है वीणा। 9
कर्म का पथ
प्रथम है प्रयास
नींद के बाद।
10
दिल ही तो है
हर बार टूटता
नहीं हारता।
11
पाया है जहाँ
सुनहरा आसमां
कर्मों से सजा।

100 जोगनी गंध

12
मेरी संगिनी
कलम तलवार
पक्की सहेली।
13
कहाँ से लाऊं
विचारो का प्रवाह
शब्द है ग़ुम।
14
कैसे मनाऊं
कागज कलम को
हाथ से छूठी।
15
अश्क आँखों के
सूख गए हैं ऐसे
ज्यों रेगिस्तान।
16
वीणा की तान
तबले की संगत
मधुर गान।
17
ख्वाब सजाओ
छोटी छोटी खुशियाँ
द्वार पे लाओ।

जोगनी गंध 101

18
गुजरा वक्त
जीवन की परीक्षा
ना लागे सख्त।
18
जिंदगी चित्र
प्रीति के रंग भरे
किताबें मित्र।
19
कलम रचे
संवेदना के अंग
जल तरंग।
20
अभिव्यक्ति है
चरम अनुभूति
संवेदन की।
21
अधूरापन
ज्ञान के खिले फूल
खिला पलाश।
22
वाद्य यन्त्र से
बिखरा है संगीत
मनमोहक।

102 जोगनी गंध

23
खुदा लेता है
पल पल परीक्षा
कभी न डरूँ।
24
भीगा आँचल
श्वेद की हर बूँद
चंद्र चंचल।
25
छोटी कविता
गागर में सागर
भाव सरिता।

जोगनी गंध 103

हिंद की रोली
1
हिंद की रोली
भारत की आवाज
हिंदी है बोली।
2
भाषा है न्यारी
सर्व गुणो की खान
हिंदी है प्यारी।
3
गौरवशाली
भाषाओं का सम्मान
है खुशहाली।
4
है अभिमान
हिदुस्तान की शान
हिंदी की आन।
5
कवि को भाये
कविता का सोपान
हिन्दी बढ़ाये।
4. विविधा

104 जोगनी गंध 6

वेदों की गाथा
देवों का वरदान
संस्कृति, माथा। 7
सरल ज्ञान
संस्कृति का सम्मान
हिंदी का गान। 8
सर्व भाषाएँ
हिंदी में समाहित
जन आशाएं। 9
चन्दन रोली
आँगन की तुलसी
हिंदी रंगोली।
10
मन की भोली
सरल औ सुबोध
शब्दो की टोली।
11
सुरीला गान
असीमित साहित्य
हिंदी सज्ञान।

जोगनी गंध 105

12
बहती धारा
वन्देमातरम है
हिन्द का नारा।
13
अतुलनीय
राजभाषा सम्मान
है वन्दनीय।
14
जोश उमंग
जन जन में बसी
राष्टं तरंग।
15
ये अभिलाषा
राष्टं की पहचान
विश्व की आशा।
16
यही चाहत
सर्वमान्य हो हिंदी
विश्व की भाषा।

106 जोगनी गंध

अनेकता-एकता
1
भारत देश
अनेकता-एकता
गुणों की खान।
2
विविध बोली
ऐसा भारत देश
प्रेम की होली।
3
धर्म संस्कृति
अमन की चाहत
सांसो में बसी।
4
द्वेष मिटाओ
हर दिल की आशा
अमन लाओ।
5
भारत देश
स्वर्ग-सा मनोरम
गंगा पावन।

जोगनी गंध 107 6

भाषा अनेक
बंधुभाव है एक
राष्टं की शान। 7
जीवनशक्ति
मातृभूमि हमारी
भारत माता। 8
द्वेश मिटाओ
हर दिल मे आशा
अमन लाओ। 9
भाषा अनेक
बंधुभाव है एक
राष्टं की शान।
10
शूर की रसा
तरूण कंधो पे है
राष्टं की धारा।
11
वतन में जां
तिरंगे को सलाम
राष्टंीय गान।

108 जोगनी गंध

12
जीवन शक्ति
मातृभूमि हमारी
भारत माता।
13
गौरवशाली
हिंद की जगधोनि
जन्में बाँकुडा।

जोगनी गंध 109

ताज1
रूह में बसी
जवां है मोहब्बत
खामोश हंसी। 2
प्रेम कहानी
मुहब्बत ऐ ताज
पीर जुबानी। 3
धरा की गोद
श्वेत ताजमहल
प्रेम का स्त्रोत। 4
ख़ामोश प्रेम
दफ़न है दास्ताँ
ताज की रूह। 5
पाक दामन
अप्रतिम सौन्दर्य
प्रेम पावन।

110 जोगनी गंध

6
अमर कृति
हुस्न ऐ मोहब्बत
प्रेम सम्प्रति।
7
ताजमहल
अनगिन रहस्य
यादें दफ़न।

जोगनी गंध 111

दीपावली 1
जलती बाती
अँधेरे से लड़ता
रौशन दिया। 2
आशा की ज्योत
हर घर रौशन
नेह दीपक। 3
झूमें रौशनी
धरती पे उतरी
दीप चाँदनी। 4
दीप हैं सजे
मोर पंखी रंगो से
लौ बलखाई। 5
रंगबिरंगे
बंधनवार सजे
युग संधि में।

112 जोगनी गंध 6

दीपों का पर्व
रौशनी का उत्सव
है जन्मोत्सव। 7
गौधुली बेला
गणेश लक्ष्मी बिराजे
शुभ औ लाभ। 8
दिया औ बाती
अटूट है बंधन
तम का साथी। 9
गहन तम
पटाखों की बहार
दीपो उल्लास।
10
दीपों की लडी
मनमोहिनी सखी
बाती भी जली।
11
पिया का प्यार
दिवाली की मिठास
कुछ तो खास।

जोगनी गंध 113

12
दूर हो जाये
धरती से अँधेरा
दीप जलाऊँ।
13
दीप्त किरण
अमावस की रात
लौ से डरती।
14
त्योहारों की
रंगबिरंगी छठा
दुकानों पर।
15
शुगर फ्री भी
डिजाइनर शेप
मिठाई रेप।
16
उपहार है
जीता जागता रूप
भावनाओं का।
17
कंदिल संग
दमकती रौशनी
आशा के रंग।

114 जोगनी गंध

18
पटाखों संग
असावधानी घात
एहतिहात।
19
दीपावली में
हर्ष, उल्लास खास
तम का हास।
20
पटाखें करें
ध्वनि, वायुमंडल
मंे प्रदूषण।
21
मिलावट है
बुराई का प्रतीक
काली तारीक।
22
रंग बिरंगे
प्रकृति के नज़्ाारे
झील किनारे।
23
दीप भी सजे
मोरपंखी भी रंगांे से
लौ इठलाई।

जोगनी गंध 115

राखी 1
स्नेहिल रिश्ता
साथ सबसे प्यारा
भैया तुम्हारा। 2
आशीर्वाद है
मेरा रक्षा कवच
भाई का स्नेह। 3
यह सम्बन्ध
अटूट बंधन है
कच्चे धागों का। 4
सुखी जीवन
अनमोल तोहफा
भाई ने दिया। 5
आया है पर्व
राखी का त्योहार
स्नेह उल्लास।

116 जोगनी गंध 6

सजी दुकानें
कलावे रंगबिरंगे
रेशमी धागे। 7
आई है बहना
सजा के पूजा थाली
नेह गहना। 8
अन्न मिष्ठान
रोली, चावल, बाती
नेह सजाती। 9
ललाट टीका
सजाती है बहना
नेह गहना।
10
रेशम की डोर
सजे ललाट टीका
भाव विभोर।
11
रक्षा बंधन
आत्मीयता खास
मिश्री मिठास।

जोगनी गंध 117

12
नाजुक डोरी
बाँधी कलाई पर
रक्षा कवच।
13
खास तोहफा
बरसते आशीष
जीवन भर।
14
भैया है प्यारा
पिहर है हमारा
रिश्ता न्यारा।

118 जोगनी गंध

नूतन वर्ष 1
नूतन वर्ष
रौशनी से नहायी
निशा दीवानी। 2
नये वर्ष मे
तिरतें हुए ख्वाब
नयी आशाएँ। 3
आओ रोप लें
नन्हीं नन्हीं खुशियाँ
ओ मेरे साथी। 4
नव वर्ष की
शुभ बेला है आई
ख्वाब चुनाई।

जोगनी गंध 119
हाइकु से मिलकर कई अन्य छोटी रचनाएँ भी चलन में है जिन्हें चोका, तांका,
सदोका नाम दिया गया है जो हाइकु का विस्तृत रूप ही है, जैसे हाइकु गीत को
चोका भी कहते है। हाइकु की लंबाई तय नही होती है। कुछ बानगी यहाँ प्रस्तुत
है:

हाइकु चोका गीत
1
नेह की पाती
नेह की पाती
मंै बिटिया को लिखूं
दिल का हाल
ममता औ आशीष
पैगाम लिखूं
सर्वथा खुश रहे
प्यारी दुलारी
मेरी राजकुमारी
फूलों सी खिले
जीवन भी महके
राहों में मिले
मखमली डगर
नर्म बिछोना
बाबुल का अंगना
ख्वाबों की तुम
उड़ान भी भरना
दिली तमन्ना
5. हाइकु गीत

120 जोगनी गंध

सुखमय जीवन
सदैव, पर
दुर्गम यह पथ
फूल औ शूल
यथार्थ का सफ़र
पल में धोखा
अपनों से भी रंज
तूफानों में भी
अडिग हो कदम
जटिल वक़्त
में फौलादी जिगर
नारी की जंग
खुद को संभालना
है कटु सत्य
बेदर्द ये जमाना
परवरिश
पाषण हृदय से
यही चाहत
महफूज सफ़र
नहीं भरोसा
कब तक जीवन
हमारे बाद
सुख भरा संसार
माता पिता की दुआ।

जोगनी गंध 121 2

देव नहीं मैं
देव नहीं मैं
साधारण मानव
मन का साफ़
बांटता हूँ मुस्कान
चुप रहता
कांटो पर चलता
कर्म करता
फल की चिंता नहीं
मन की यात्रा
आत्ममंथन, स्वयं
अनुभव से
छल कपट से परे
कभी दरका
भीतर से चटका
स्वयं से लड़ा
फिर से उठ खड़ा
जो भी है देखा
अपना या पराया
स्वार्थ भरा
दिल तोड़े जमाना
आत्मा छलनी
खुदा से क्या मांगना
अन्तः रूदन
मन को न जाना
शांत हो मन
छोड़ो कल की बात
जी लो पलो को
नासमझ जमाना
खुद को संभालना

122 जोगनी गंध 3

गौध्ली बेला में
गौधुली बेला में
दमकता दिया
स्नेहिल आबंध
हर्षित हिया
सोने का कंगन
चांदी की बिछिया
हीरे जैसे पिया
धड़के जिया
विश्वास की बाती
प्रेम का दिवा
समर्पण भाव
अर्पण किया
खील-बताशे
मिठाई, पटाखे
गणेश लक्ष्मी का
वंदन किया
घर, मन दिवाली
पग पग उजेरा
अमावश को भी
रौशन किया। 4
यह जीवन
यह जीवन
है गहरा गागर
सुख औ दुःख
गाड़ी के दो पहिये

जोगनी गंध 123

धूप औ छाँव
सुख के दिन चार
आँख के आँसू
छलते हरबार
जो पाँव तले
खिसकती धरती
अधूरी प्यास
पहाड़-सा हृदय
शोक-विषाद
अत्यंत मंथर हैं
बोझिल पल
वक़्त की रेत घड़ी
धीमा है पल
संकल्पों का संघर्ष
फौलादी जंग
आगमन-प्रस्थान
अभिन्न अंग
मुट्ठी से फिसलते
सुखद पल
वक़्त का पग-फेरा
बहता जल
पतझर-सा झरे
दुर्गम पथ
बदलता मौसम
भोर के पल
सुनहरी किरण
परिवर्तन
मोहजाल से मुक्त
वर्तमान के
खुशहाल लम्हों का

124 जोगनी गंध

करो स्वागत
छिटकी है मुस्कान
जीवन में उदित
नया है रास्ता
खुशियों की तलाश
सुनहरी सौगात। 5
रिश्तों में खास
रिश्तों में खास
विश्वास की मिठास
प्रेम की बाती
रौशनीं की बाहर
बाँटे खुशियाँ
हर दिन त्योहार
हीरे से ज्यादा
अनमोल है प्यार
है जमा पूँजी
रिश्तों की सौगात
सजन संग
बसाया है संसार
नए बंधन
स्नेहिल उपहार
दिलों की प्रीत
अमुल्य पतवार
मन, उमंग
शीतलता प्याप्त
पल पल हो
घर मन दिवाली
हर दिन त्योहार।

जोगनी गंध 125

तांका 1
मन का पंछी
पंहुचा फलक में
स्वप्न अपने
करने को साकार
कर्म की बेदी पर। 2
बन के पंछी
उड़ जाऊ नभ में
शांति संदेश
पहुचाऊँ जग में
बन के शांति दूत। 3
उड़ते पल
हाथ की लकीर पे
नया आयाम
रचो कर्म भूमि पे
तप के बनो सोना।

126 जोगनी गंध 4

मूक पंछी मैं
जानू प्रेम की भाषा
नीड़ बनाता
रंगबिरंगे स्वप्न
तैरते नयनो में। 5
बीतता पल
सुनहरी डगर
भविष्य निधि
निर्माणधीन आज
कर्म की बढती प्यास। 6
कल की बातें
पीछे छूट जाती है
आने वाला है
भविष्य का प्रहर
नयी है शुरुआत। 7
यह जीवन
कर्म से पहचान
तन ना धन
गुण से चार चाँद
आत्मिक है मंथन।

जोगनी गंध 127 8

यह जीवन
तुझ बिन है सूना
हमसफ़र
वचन सात फेरे
जन्मो का है बंधन। 9
यह जीवन
कमजोर है दिल
चंचल मन
मृगतृष्णा चरम
कुसंगति लोलुप।
10
यह जीवन
एक खुली किताब
धूर्त इंसानों
से पटा सारा विश्व
सच्चाई जार जार।
11
यह जीवन
वक़्त पड़ता कम
एकाकीपन
जमा पूँजी है रिश्ते
बिखरे छन-छन।

128 जोगनी गंध

12
यह जीवन
अध्यात्मिक पहल
परमानन्द
भोगविलासिता से
परे संतुष्ट मन।
13
यह जीवन
होता जब सफल
पवित्र आत्मा
न्यौछावर तुझपे
मेरे प्यारे वतन।
14
यह जीवन
नश्वर है शरीर
पवित्र मन
आत्मा तो है अमर
मृत्यु शांत निश्छल।
15
झरते कण
अब ढँक रहे थे
वृक्ष औ रास्ते
हम तुम भी साथ
जम गए जज्बात।

जोगनी गंध 129

16
सर्द मौसम
सुनसान थे रास्ते
और किनारे
कोई सिमट रहा
था, फटी कामरी में।
17
भाजी बहार
टमाटर लाल औ
गाजर संग
सूप की भरमार
लाल हुए है गाल।
18
मटर कहे
मेरी है बादशाही
गाजर बोली
सूप हलुआ लायी
सब्जियों की लड़ाई।
19
जमती साँसे
चुभती है पवन
फर्ज प्रथम
जवानों की गश्त के
बर्फीले है कदम।

130 जोगनी गंध

20
स्वार्थ में अंधे
नोच रहे बोटियाँ
धूर्त सियार
मुख से टपकती
छलिया निशानियाँ।
21
स्वार्थ का चश्मा
सूट बूट पहने
आया है प्राणी
चाटुकार ललना
नित नयी कहानी।
22
भगवा वस्त्र
हाथों में कमंडल
शीश पे शिखा
अंधी श्रद्धा से लूटे
बिखरी काली निशा।
23
पीर मन की
तपता रेगिस्तान
बिखरे ख्वाब
पतझड़ समान
बसंत भी रुलाए।

जोगनी गंध 131

24
तुम हो मेरे
भाव-सखा सजन
तुम्हारे बिन
व्यथित मेरा मन
बतलाऊँ मैं कैसे?
25
चंचल हवा
मदमाती-सी फिरे
सुन री सखी!
महका है बसंत
पिय का आगमन!
26
शीतल हवा
ये अलकों से खेले
मनवा डोले
बजने लगे चंग
सृजित हुए छंद।
27
स्नेहिल मन
सहनशीलता है
खास गहना
सवांरता जीवन
माँ के अनेक रूप।

132 जोगनी गंध

28
माँ प्रिय सखी
राहें हुई आसान
सुखी जीवन
परिवार के लिए
त्याग दिए सपने।
29
माता के रूप
सोलह है शृंगार
नवरात्री में
गरबे की बहार
झरता माँ का प्यार।
30
दोस्ती के रिश्ते
पावन औ पवित्र
हीरे मोती से
महकते गुलाब
जीवन के पथ पर।
31
दो अजनबी
जीवन के मोड़ पे
कुछ यूँ मिले
सात फेरो में बंधा
जन्मों जन्मों का रिश्ता।

जोगनी गंध 133

32
चाँद सितारे
उतरे हैं अंगना
स्नेहिल रिश्ता
ममता का बिछोना
आशीष रुपी झरे
नेह हरसिंगार।
33
ये कैसे रिश्ते
नापाक इरादों से
आतंक मारे
सिमटते जज्बात
बिखरते हैं ख्वाब।
34
नाजुक रिश्ते
कांच से ज्यादा कच्चे
पारदर्शिता
विश्वास की दीवारे
प्रेम का है आइना।
35
आये अकेले
दुनिया के झमेले
जाना है पार,
जिंदगी की किताब
नयी है हर बार।

134 जोगनी गंध

36
ढलती उम्र
शिथिल है पथिक
अकेलापन,
जूझता है जीवन
स्वयं के कर्मो संग।
37
पैसे का नशा
मस्तक पे है चढ़ा
सोई चेतना,
बस नजर का धोखा
बदलता है वक्त।
38
यादों के पल
झिलमिलाता कल
महकते हैं,
दिलों के अरमान
महका बागवान।
39
तेज रफ़्तार
दूर है संगी-साथी
न परिवार,
जूनून है सवार
मृगतृष्णा की प्यास।

जोगनी गंध 135

40
बालियो संग
मचलता यौवन
ठिठकता सा,
प्राकृतिक सौन्दर्य
लहलहाता वन।

136 जोगनी गंध

सदोका 1
बहता पानी
विचारो की रवानी
हसीं ये जिंदगानी
सांझ बेला में
परिवार का साथ
संस्कारों की जीत। 2
बरसा पानी
सुख का आगमन
घर संसार तले
तप्त ममता
बजती शहनाई
बेटी हुई पराई। 3
हाथों में खेनी
तिरते है विचार
बेजोड़ शिल्पकारी
गड़े आकार
आँखों में भर पानी
शिला पे चित्रकारी।

जोगनी गंध 137 4

जग कहता
है पत्थर के पिता
समेटे परिवार
कुटुंब खास
दिल में भरा पानी
पिता की है कहानी। 5
हवा उड़ाती
अमराई की जुल्फे
टेसू हुए आवारा
हिय का पंछी
उड़ने को बेताब
रंगों का समां प्यारा। 6
डोले मनवा
ये पागल जियरा
गीत गाये बसंती
हर डाली पे
खिल गए पलाश
भीगी ऋतु सुगंधी। 7
झूमे बगिया
दहके है पलाश
भौरों को ललचाये
कोयल कूके
कुंज गलियन में
पाहुन क्यूँ न आये।

138 जोगनी गंध 8

झूम रहे है
हर गुलशन में
नए नवेले फूल
हँस रही है
डोलती पुरवाई
रंगों की उड़े धूल। 9
लचकी डाल
यह कैसा कमाल
मधु ऋतू है आई
सुर्ख पलाश
मदमाए फागुन
कैरी खूब मुस्काई।
10
जोश औ जश्न
मन में है उमंग
गीत होरी के गाओ
भूलो मलाल
उमंगो का त्यौहार
झूमो जश्न मनाओ।
11
धवल वस्त्र
पहन इठलाये
मन के कारे जीव
मुख में पान
खिसियानी हंसी
अनृत कहे जीभ।

जोगनी गंध 139

12
भोले चहरे
कातिलाना अंदाज
शब्द गुड की डली
मौकापरस्त
डसते है जीवन
इनसे दूरी भली।
13
साँचा है साथी
हर पल का साथ
कोई बूझ न सका
दिल के राज
विषैला हमराही
आस्तीन का है साँप।
14
मेरा ही अंश
मुझसे ही कहता
मैं हूँ तेरी छाया
जीवन भर
मैं तो प्रीत निभाऊँ
क्षणभंगुर माया।
15
जीवन-संध्या
सिमटे हुए पल
फिर तन्हा डगर
ठहर गई
यूँ दो पल नजर
अक्स लगा पराया।

140 जोगनी गंध

16
चाँदनी रात
छुपती परछाई
खोल रही है पन्ने,
महकी यादें
दिल की घाटियों मे
महकते वो पल।
17
जन्म से नाता
मिली परछाइयाँ
मेरे ही अस्तित्व की,
खुली तस्वीर
उजागर करती
सुख दुःख की छाँव।
18
शांत जल में
जो मारा है कंकर
छिन्न भिन्न लहरें
मचल गयी
पाषाण बना हुआ
मेरा ही प्रतिबिम्ब।
19
चंचल रवि
यूँ मुस्काता आया
पसर गयी धूप
कण कण में
विस्मित है प्रकृति
चहुँ और है छाया।

जोगनी गंध 141

20
नन्हे कदम
धीरे से बढ़ चले
चुपके से पहने
पिता के जूते
पहचाना सफ़र
बने उनकी छाया।

142 जोगनी गंध
डाॅ. भगवतशरण अग्रवाल
1⁄4मराठी अनुवाद-शशि पुरवार1⁄2
1
पावस रात
पिकनिक मनाते
नाचें जुगनू।
1
पावस रात्री
ते सहल साजरा
काजवा नृत्य।
2
वर्षा के झोंके
बतियाते मेंढक
चाय-पकौड़ी।
2
वर्षा चे थेंब
गुंतलेला बेडूक
चहा-भजिया।

जोगनी गंध 143 3

कौन-सा राग
टीन की छत पर
बजाती वर्षा। 3
कोणत्या जीवा
छपरावर टीन
वर्षा नाटकं। 4
बूँदें गिरती
या खेत लपकते
प्यास बुझाने। 4
थेंब पडला
किंवा शेत भरणे
तृप्त तहान। 5
वर्षा की शाम
दर्द जगाता कोई
गाके माहिया। 5
सांजसमयी
कोण वेदना जागृत
गाणी माहिया

144 जोगनी गंध

6
ले गई हवा
सावन के बादल
जलते खेत।
6
वारा घेतला
मानसून जलद
शेत जळने।
■ ■ ■
6
ले गई हवा
सावन के बादल
जलते खेत।
6
वारा घेतला
मानसून जलद
शेत जळने।
■ ■ ■