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गुरुवार, 16 फ़रवरी 2017

muktika, upendra vajra

मुक्तिका
वार्णिक छंद उपेन्द्रवज्रा –
मापनी- १२१ २२१ १२१ २२
सूत्र- जगण तगण जगण दो गुरु
तुकांत गुरु, पदांत गुरु गुरु
*
पलाश आकाश तले खड़ा है
उदास-खो हास, नहीं झुका है

हजार वादे कर आप भूले
नहीं निभाए, जुमला कहा है

सियासती है मनुआ हमारा
चचा न भाए, कर में छुरा है

पड़ोस में ही पलते रहे हो
मिलो न साँपों, अब मारना है

तुम्हें दई सौं, अब तो बताओ
बसंत में कंत कहाँ छिपा है
*

शनिवार, 16 नवंबर 2013

hindi chhand: upendra vajra -sanjiv

छंद सलिला:
उपेन्द्र वज्रा
संजीव
*
इस द्विपदिक मात्रिक छंद के हर पद में क्रमश: जगण तगण जगण २ गुरु अर्थात ११ वर्ण और १७ मात्राएँ होती हैं.
उपेन्द्रवज्रा एक पद = जगण तगण जगण गुरु गुरु = १२१ / २२१ / १२१ / २२
उदाहरण:
१. सरोज तालाब गया नहाया
   सरोद सायास गया बजाया
   न हाथ रोका नत माथ बोला
   तड़ाग झूमा नभ मुस्कुराया
२. हथेलियों ने जुड़ना न सीखा
   हवेलियों ने झुकना न सीखा।
   मिटा दिया है सहसा हवा ने-
   फरेबियों से बचना न सीखा
३. जहाँ-जहाँ फूल खिलें वहाँ ही,
    जहाँ-जहाँ शूल, चुभें वहाँ भी,
   रखें जमा पैर हटा न पाये-
   भले महाकाल हमें मनायें।