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शनिवार, 20 जुलाई 2013

geet: suraj si gunguni dhoop ko... sanjiv

गीत :
सूरज सी गुनगुनी धूप को…
संजीव
*
सूरज सी गुनगुनी धूप को
चंदा से मन बसे रूप को
सलिल-तरंगों का अभिनन्दन
अर्पित अक्षत कुंकुम चन्दन…
*
रंगोली अल्पना चौक ने
मुँह फेरा हम लगे चौंकने
अविश्वास के सारमेय मिल
विश्वासों पर लगे भौंकने  
खुद से खुद भयभीत हुआ मन
घर-आँगन जब लगे टौंकने
विचलन हुआ धुरी से वृत्त का
व्यास-चाप करते आलिंगन…
​*
नीचे शिखर, गव्हर ऊपर है
पत्ते भू में, जड़ ​​नभ पर है
शाख पुष्प-फल नोच खा रही
करता पग घायल नूपुर है
भोग-विलास चाह दोनों की
किसे कहें सुर, कौन असुर है?
मानवता की राह चल 'सलिल'
साध्य रहे शुचिता-आराधन…
*
एक ब्रम्ह, दो काया-छाया
तीन काल फँस सत्य भुलाया
चार वेद से पाँच तत्व का
षट आयामी सत-सुर पाया
अष्ट प्रहरमय काल अहर्निश
दे नव शक्ति सत्य शिव सुन्दर
सत-चित-आनंद काव्यामृत पी
जनगण करे राष्ट्र-आराधन…
*
Sanjiv verma 'Salil'
salil.sanjiv@gmail.com
http://divyanarmada.blogspot.in