चंदा को लग गया है,
ग्रहण मनाएं हर्ष।
चंदा अब मत दीजिए,
तब होगा उत्कर्ष।।
*
चंद्रग्रहण को देखकर,
चंद्रमुखी हैरान।
नीली-लाल अगर हुई,
कौन सके पहचान?
*
लगा टकटकी देखते,
चंद्रमुखी को लोग।
हुई लाल-पीली बहुत,
लगा क्रोध का रोग।।
*
संसद की अध्यक्ष भू,
रवि-शशि पक्ष-विपक्ष।
अनुशासन रखती कड़ा,
धरा सभापति दक्ष।।
*
बदल रहा है चंद्रमा,
तरह-तरह के रंग।
देख-देखकर हो रहा,
गिरगिट हैरां-दंग।।
***
३१.१.२०१८, जबलपुर
दिव्य नर्मदा : हिंदी तथा अन्य भाषाओँ के मध्य साहित्यिक-सांस्कृतिक-सामाजिक संपर्क हेतु रचना सेतु A plateform for literal, social, cultural and spiritual creative works. Bridges gap between HINDI and other languages, literature and other forms of expression.
कुल पेज दृश्य
बुधवार, 31 जनवरी 2018
दोहा दुनिया
शिव दोहावली
शिव हों, भाग न भोग से,
हों न भोग में लीन।
योग साध लें भोग से,
सजा साधना बीन।।
*
चाह एक की जो बने,
दूजे की भी चाह।
तभी आह से मुक्ति हो,
दोनों पाएं वाह।।
*
प्रकृति-पुरुष हैं एक में
दो, दो में हैं एक।
दो अपूर्ण मिल पूर्ण हों,
सुख दे-पा सविवेक।।
*
योनि जीव को जो मिली,
कर्मों का परिणाम।
लिंग कर्म का मूल है,
कर सत्कर्म अकाम।।
*
संग तभी सत्संग है,
जब अभंग सह-वास।
संगी-संगिन में पले,
श्रृद्धा सह विश्वास।
*
मन में मन का वास ही,
है सच्चा सहवास।
तन समीप या दूर हो,
शिथिल न हो आभास।।
*
मुग्ध रमणियों मध्य है,
भले दिगंबर देह।
शिव-मन पल-पल शिवा का,
बना हुआ है गेह।।
*
तन-मन-आत्मा समर्पण
कर होते हैं पूर्ण।
सतत इष्ट का ध्यान कर,
खुद होते संपूर्ण।।
*
भक्त, भक्ति, भगवान भी,
भिन्न न होते जान।
गृहणी, गृहपति, गृह रहें,
एक बनें रसखान।।
*
शंका हर शंकारि शिव,
पाकर शंकर नाम।
अंतर्मन में व्यापकर,
पूर्ण करें हर काम।।
*
नहीं काम में काम हो,
रहे काम से काम।
काम करें निष्काम हो,
तभी मिले विश्राम।।
*
३१.१.२०१८, जबलपुर
मंगलवार, 30 जनवरी 2018
व्यंग्य लेख
शिव दोहावली
शिव पूजे वह जिसे हो,
शिवता पर विश्वास।
शिवा ने शिव से भिन्न हैं,
यह भी हो आभास।।
*
सत् के प्रति श्रद्धा रखे,
सुंदर जगत-प्रवास।
साथी प्रति विश्वास से,
हो आवास सुवास।।
*
ऋषियों! क्यों विचलित हुए?
डिगा भरोसा दीन।
तप अपना ही भंगकर,
आप हो गए दीन।।
*
संबल हैं जो साध्वियां,
उन पर कर संदेह।
नींव तुम्हीं ने हिला दी,
बचे किस तरह गेह?
*
सप्त सिंधु सी भावना,
नेह-नर्मदा नीर।
दर्शन से भी सुख मिले,
नहा, पिएं मतिधीर।।
*
क्षार घुले संदेह का,
नेह-नीर बेकाम।
देह पिए तो गरल हो,
तजें विधाता वाम।।
*
ऋषि शिव, साध्वी हों शिवा,
रख श्रद्धा-विश्वास।
देह न, आत्मा को वरें,
गृह हरि-रमा निवास।।
*
विधि से प्राप्त प्रवृत्ति जो,
वह निवृत्ति-पर्याय।
हरि दोनों का समन्वय,
जग-जीवन समवाय।।
*
शिव निवृत्ति की राह पर,
हैं प्रवृत्ति की चाह।
वर्तुलवत बह चेतना,
दहा सके हर दाह।।
*
आदि-अंत जिसका नहीं,
सब हैं उसके अंश।
अंश-अंश से मिल बढ़े,
कहे उसे निज वंश।।
*
निज-पर कुछ होता नहीं,
सब जाता है छूट।
लूट-पाट अज्ञान है,
नाता एक अटूट।
*
नाता ताना जब गया,
तब टूटे हो शोक।
नाता हो अक्षुण्ण तो,
जीवन रहे अशोक।।
*
योनि-लिंग के निकट जा,
योनि-लिंग को भूल।
बन जाओ संजीव सब,
बसो साधना-कूल।।
***
३०.१.२०१८, जबलपुर
रविवार, 28 जनवरी 2018
शिव दोहावली
शनिवार, 27 जनवरी 2018
शिव दोहावली
शिव ने शक का सर्प ले,
किया सहज विश्वास।
कण्ठ सजाया, धन्यता
करे सर्प आभास।
*
द्वैत तजें, अद्वैत वर,
तो रखिए विश्वास।
शिव-संदेश न भूलिए,
मिटे तभी संत्रास।।
*
नारी पर श्रद्धा रखें,
वही जीवनाधार।
नर पर हो विश्वास तो,
जीवन सुख-आगार।।
*
तीन मेखला तीन गुण,
सत्-शिव-सुंदर देख।
सत्-चित्-आनंद साध्य तब,
धर्म-मर्म कर लेख।।
*
उदय-लय-विलय तीन ही,
क्रिया सृष्टि में व्याप्त।
लिंग-वेदिका पूजिए,
परम सत्य हो आप्त।।
*
निराकार हो तरंगित,
बनता कण निर्भार।
भार गहे साकार हो,
चले सृष्टि-व्यापार।।
*
काम-क्रोध सह लोभ हैं,
तीन दोष अनिवार्य।
संयम-नियम-अपरिग्रह,
हैं त्रिशूल स्वीकार्य।।
*
आप-आपके-गैर में,
श्रेष्ठ न करते भेद।
हो त्रिनेत्र सम देखिए,
अंत न पाएं खेद।।
*
त्रै विकार का संतुलन,
सकल सृष्टि-आधार।
निर्विकार ही मुक्त है,
सत्य क्रिया-व्यापार।।
*
जब न सत्य हो साथ तो,
होता संग असत्य।
छलती कुमति कुतर्क रच,
कहे सुमति तज कृत्य।।
*
नग्न सत्य को कर सके,
जो मन अंगीकार।
उसका तन न विवश ढहे,
हो शुचिता-आगार।।
*
२७.१.२०१८, जबलपुर
शुक्रवार, 26 जनवरी 2018
शिव दोहावली
शिव दिक्-अंबर ओढ़कर,
घूम रहे निर्द्वंद।
घेरे हैं ऋषि-पत्नियां,
मन में अंतर्द्वंद।।
*
काश पा सकें संग तो,
पूरी हो हर आस।
शिव मुस्काते मौन रह,
मोह बना संत्रास।।
*
ऋषिगण ईर्ष्या-वश जले,
मिटा आत्म-संतोष।
मोह-कामवश पत्नियां,
बनीं लोभ का कोष।।
*
क्रोध-द्वेष-कामाग्निवश
हुए सभी संत्रस्त।
गंवा शांति-विश्वास सब,
निष्प्रभ ज्यों रवि अस्त।।
*
देख, न शिव को देखते,
रहे लिंग ही देख।
शिव से अंग अलग करें,
काल रहा हंस देख।।
*
मारो-छोड़ो वृत्तियां,
करा रहीं संघर्ष।
तत्व-ज्ञान विस्मृत हुआ,
आध्यात्मिक अपकर्ष।।
*
विधि-हरि से की प्रार्थना,
'देव! मिटाओ क्लेश।
राह दिखाओ शांति हो,
माया रहे न लेश।।
*
आत्मबोध पा ध्यान में,
लौटे शिव के पास।
हारे हम, शक-सर्प ही,
स्वीकारें उपहार।।
*
अवढरदानी दिगंबर,
हंसे ठठाकर खूब।
तत्क्षण सब अवसाद खो,
गए हर्ष में डूब।।
*
शिव-अनुकंपा से मिला,
सत्य सनातन ज्ञान।
प्रवृति मार्ग साधन सहज,
निवृति साध्य संधान।।
*
श्रेष्ठ न लिंग, न योनि है
हीन, नहीं असमान।
नर-नारी पूरक, न कर
शक, दे-पा सम मान।।
*
रहे प्रतिष्ठा परस्पर,
वरें राह अद्वैत।
पूजक-पूजित परस्पर,
बनें भुलाकर द्वैत।।
*
जग-जीवन-आधार जो,
करें उसी की भक्ति।
योनि-रूप सह वेदिका,
लिंग पूज लें शक्ति।।
*
बिंदु-सिंधु का समन्वय,
कर प्रवृत्ति है धन्य।
वीतराग समभाव से,
देख अलिप्त अनन्य।।
*
ऋषभदेव शिव दिगंबर,
इंद्रियजित हो इष्ट।
पुजें वेदिका-खंभवत,
हर भरते हर कष्ट।।
*
२६.१.२०१८, जबलपुर
गुरुवार, 25 जनवरी 2018
कार्यशाला: लता यादव - संजीव
एक कविता - दो कवि
*
लता यादव
मैं क्या जानूं बड़ी बड़ी गहरी बातों को मैं क्या जानूं मन में उठते जज्बातों को
लहर संग मैं उठती गिरती लहर सदृश ही चाँद पकड़ने निकली पूनम की रातों को
कभी लगे अम्बर में खेले कोई छौना
कभी लगे ये तो है मेरा स्वप्न सलोना
अरे! याद आया बाबा ने दिलवाया जो
अम्बर के हाथों में मेरा वही खिलौना
संजीव
चंदा कूद पड़ा नभ से सरवर में आया
पकड़ा हाथों में, गुम होकर मुझे छकाया
मैं नटखट, वह चंचल कोई हार न माने
रूठ चंद्रिका गयी, गया वह उसे मनाने
हुई अमावस काली मन को तनिक न भाए
बादल जाकर मेरा चंदा फिर ले आए
अब न चंद्रिका से मैं झगड़ा कभी करूँगी
स्नेह सलिल तट लता बनूँगी, खूब खिलूँगी
लता
हौले से जो लहर उठी नभ से टकराई
चंदा की कोई युक्ति फिर काम न आई
संजीव
झिलमिल-झिलमिल बहा नीर ज्यों चाँदी पिघली
हाथ न आई, झट से फिसल गयी फिर मछली
muktika
navgeet
काँव-काँव
करना ही होगा
नहीं किया तो मरना होगा
.
गिद्ध दिखाते आँख
छीछड़े खा फ़ैलाते हैं.
गर्दभ पंचम सुर में,
राग भैरवी गाते हैं.
जय क्षत्रिय की कह-कहकर,
दंगा आप कराते हैं.
हुए नहीं सहमत जो
उनको व्यर्थ डराते हैं
नाग तंत्र के
दाँव-पेंच,
बचना ही होगा,
नहीं बचे तो मरना होगा.
.
इस सीमा से आतंकी
जब मन घुस आते हैं.
उस सरहद पर डटे
पड़ोसी सड़क बनाते हैं.
ब्रम्ह्पुत्र के निर्मल जल में
गंद मिलाते हैं.
ये हारें तो भी अपनी
सरकार बनाते हैं.
स्वार्थ तंत्र है
जन-गण को
जगना ही होगा
नहीं जगे तो मरना होगा.
.
नए साल में नए तरीके
हम अपनाएँगे.
बाँटें-तोड़ें, बेच-खरीदें
सत्ता पाएँगे.
हुआ असहमत जो उसका
जीना मुश्किल कर दें
सौ बंदर मिल, घेर शेर को,
हम घुड़काएँगे.
फ़ूट मंत्र है
एक साथ
मिलना ही होगा
नहीं मिले तो मरना होगा.
.
३१. १२. २०१७
दोहा दुनिया
विधि-हर हैं निर्मूल।
सत-रज-तम से विभूषित,
शिव के साथ त्रिशूल।।
*
सृष्टि-मूल खुद को समझ,
विधि-हरि करें विवाद।
शिव दोनों को शांत कर,
बन जाते संवाद।।
*
विधि-बुधि रचते सृष्टि सब,
मन में उठे विकार।
मैं स्वामी सबसे सबल,
करें सभी स्वीकार।।
*
रमा-विष्णु पालें जगत,
मानें खुद को ज्येष्ठ।
अहम-वहम हावी हुआ,
'मैं' है 'तू' से श्रेष्ठ।।
*
विधि सोचें वे जनक हैं,
हरि आत्मज हैं हीन।
हरि सोचें वे पालते,
पलते ब्रम्हा दीन।।
*
दोनों के संघर्ष का,
मूल 'अहम्' का भाव।
रजस तमस में ढल गया,
सत् का हुआ अभाव।।
*
सकल सृष्टि कंपित हुई,
कैसे करें निभाव?
कौन बनाए संतुलन,
हर कर बुरे प्रभाव??
*
हर ने फेंका केतकी,
पुष्प किया संकेत।
तुम दोनों से भिन्न है,
तत्व एक अनिकेत।।
*
वाद-विवाद न मिट सका,
रही फैलती भ्रांति।
ज्योति लिंग हरने तिमिर,
प्रगटा हो चिर शांति।।
*
विधि ऊपर को उड़ चले,
नापें अंतिम छोर।
हरि नीचे की ओर जा,
लौटे मिली न कोर।।
*
विधि ने छल कर कह दिया,
मैं आया हूं नाप।
हरि ने मानी पराजय,
अस्त गया ज्यों व्याप।।
*
त्यों ही शिव ने हो प्रगट,
व्यक्त कर दिया सत्य।
ब्रम्हा जी लज्जित हुए,
स्वीकारा दुष्कृत्य।।
*
पंच तत्व पचमुखी के,
एक हो गया दूर।
सलिल शीश शिव ने धरा,
झूठ हो गया चूर।।
*
मिथ्या साक्षी केतकी,
दें खो बैठी गंध।
पूजा योग्य नहीं रही,
सज्जा करें अगंध।।
*
विधि-पूजन सीमित हुआ,
सत् नारायण मान्य।
शिव न असत् को सह सकें,
इसीलिए सम्मान्य।।
*
२०.१.२०१८, जबलपुर
नवगीत महोत्सव - २०१५ का सफल आयोजन
नवगीत समारोह का शुभारम्भ दीप प्रज्ज्वलन के साथ हुआ। गीतिका वेदिका द्वारा प्रस्तुत सरस्वती वन्दना के उपरान्त पूर्णिमा वर्मन की माता जी श्रीमती सरोजप्रभा वर्मन और नवगीत समारोह के सदस्य श्रीकान्त मिश्र कान्त को विनम्र श्रद्धांजलि देकर उनकी स्मृतिशेष को नमन किया गया। विभिन्न नवगीतों पर रोहित रूसिया, विजेन्द्र विज, अमित कल्ला और पूर्णिमा वर्मन द्वारा बनायी गयी नवगीतों पर आधारित पोस्टर प्रदर्शनी को सभी ने देखा और सराहा।
इस मध्य कुछ अन्य प्रश्न भी नये रचनाकारों से श्रोताओं द्वारा पूछे गये जिनका उत्तर वरिष्ठ रचनाकारों द्वारा दिया गया। प्रथम सत्र के अन्त में डा० रामसनेही लाल शर्मा यायावर ने नवगीत की रचना प्रक्रिया पर विहंगम दृष्टि डालते हुये बताया कि ऐसा क्या है जो नवगीत को गीत से अलग करता है। डा० यायावर ने अपनी नवगीत कोश योजना की भी जानकारी देते हुए बताया कि वे विश्व विद्यालय अनुदान आयोग की अति महत्त्वपूर्ण योजना के अन्तर्गत नवगीत कोश का कार्य शुरू करने जा रहे हैं जो लगभग एक वर्ष में पूरा हो जाएगा।
पुरस्कार वितरण के बाद कवित सम्मेलन सत्र की विशिष्ट अतिथि डॉ. उषा उपाध्याय ने अपने गुजराती गीतों के हिंदी अनुवाद के साथ साथ एक मूल रचना का भी पाठ किया। गीत की लय कथ्य ने सभी उपस्थित रचनाकारों को आनंदित किया। इसके बाद सभी उपस्थित रचनाकारों ने अपने एक एक नवगीत का पाठ किया। इस अवसर पर उपस्थित प्रमुख रचनाकार थे- लखनऊ से संध्या सिंह, आभा खरे, राजेन्द्र वर्मा, डंडा लखनवी, डॉ. प्रदीप शुक्ल, रंजना गुप्ता, चन्द्रभाल सुकुमार, राजेन्द्रशुक्ल राज, अशोक शर्मा, डॉ. अनिल मिश्र, निर्मल शुक्ल, महेन्द्र भीष्म, मधुकर अष्ठाना और रामशंकर वर्मा, कानपुर से मधु प्रधान और शरद सक्सेना, छिंदवाड़ा से रोहित रूसिया और सुवर्णा दीक्षित, मीरजापुर से शुभम श्रीवास्तव ओम और गणेश गंभीर, बिजनौर से अमन चाँदुपुरी, दिल्ली से भारतेन्दु मिश्र और राधेश्याम बंधु, नॉयडा से डॉ जगदीश व्योम और भावना तिवारी, संतनगर गुजरात से मालिनी गौतम, गाजियाबाद से वेदप्रकाश शर्मा वेद और योगेन्द्रदत्त शर्मा, वर्धा से शशि पुरवार, मुंबई से कल्पना रामानी, कटनी से रामकिशोर दाहिया, खटीमा से रावेंद्रकुमार रवि, जबलपुर से संजीव वर्मा सलिल, इंदौर से गीतिका वेदिका, फीरोजाबाद से डॉ. राम सनेहीलाल शर्मा यायावर, मुजफ्फरपुर से डॉ. रणजीत पटेल, शारजाह से पूर्णिमा वर्मन, होशंगाबाद से डॉ विनोद निगम आदि। विभिन्न सत्रों का संचालन डा० जगदीश व्योम तथा रोहित रूसिया ने किया। अन्त में पूर्णिमा वर्मन तथा प्रवीण सक्सेना ने सभी के प्रति धन्यवाद ज्ञापित किया।
शिव दोहा
शिव निवृत्ति-पथ पथिक थे,
ऋषि-पत्नियां विमुग्ध।
ऋषिगण श्यामल नग्न नर,
देख हो रहे दग्ध।
*
कुपित पत्नियों प्रति हुए,
शीश चढ़ा क्यों काम?
दंडित हो यति दिगंबर,
विधि न हो सकें वाम।।
*
मर्यादा मर्दित न हो,
दंडित हो अवधूत।
भंग नहीं विश्वास हो,
रिश्ते-नाते पूत।।
*
शिव अभीत मुस्का रहे,
ऋषिगण कुपित न राह।
नीललोहिती लिंग-च्युत'
हो- न सके सत्-दाह।।
*
ऋषि-पत्नियां सचेत हो,
थीं अति लज्जित मौन।
दोष न है यति का तनिक,
किंतु बताएं कौन?
*
मन में दबा विकार जो,
कर उद्घाटित-नष्ट।
योगी ने उपचार कर,
मेटा गर्व-अनिष्ट।।
*
हम निज वश में थी नहीं,
कर सकता था भोग।
किंतु न अवसर-लाभ ले,
रहा साधता योग।।
*
निरपराध को दण्ड से,
लगे अपरिमित पाप।
ऋषि-तप व्यर्थ न नष्ट हो,
साहस उपजा आप।।
*
ऋषिगण! सच जाने बिना,
दें न दण्ड या शाप।
दोषी हैं हम साध्वियां,
झेल न पाईं ताप।।
*
कृत्रिम संयम जी रहीं,
मन-उपजा अभिमान।
मिटा दिया युव तपी ने,
करा देह का भान।।
*
अब तक है निष्पाप तन,
मन को कर निष्पाप।
करा सत्य साक्षात यह,
यति है शिव ही आप।।
*
जो मन-चाहे दण्ड दें,
हमको मान्य सहर्ष।
जीवन हिल-मिलकर जिएं,
हो तब ही उत्कर्ष।।
*
यह यति पावन-पूज्य है,
यदि पाएगा दण्ड।
निरपराध-वध पाप का,
होगा पाप प्रचण्ड।
*
क्रमशः
२५.१.२०१८
बुधवार, 24 जनवरी 2018
narmada namavali acharya sanjiv salil
नर्मदा नामावली :
आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल'
*
सनातन सलिला नर्मदा की नामावली का नित्य स्नानोपरांत जाप करने से भव-बाधा दूर होकर पाप-ताप शांत होते हैं। मैया अपनी संतानों के मनोकामना पूर्ण करती हैं।
पुण्यतोया सदानीरा नर्मदा, शैलजा गिरिजा अनिंद्या वर्मदा।
शैलपुत्री सोमतनया निर्मला, अमरकंटी शाम्भवी शुभ शर्मदा।।
आदिकन्या चिरकुमारी पावनी, जलधिगामिनी चित्रकूटा पद्मजा।
विमलहृदया क्षमादात्री कौतुकी, कमलनयना जगज्जननी हर्म्यदा।।
शशिसुता रुद्रा विनोदिनी नीरजा, मक्रवाहिनी ह्लादिनी सौन्दर्यदा।
शारदा वरदा सुफलदा अन्नदा, नेत्रवर्धिनी पापहारिणी धर्मदा।।
सिन्धु सीता गौतमी सोमात्मजा, रूपदा सौदामिनी सुख सौख्यदा।
शिखरिणी नेत्रा तरंगिणी मेखला, नीलवासिनी दिव्यरूपा कर्मदा।।
बालुकावाहिनी दशार्णा रंजना, विपाशा मन्दाकिनी चित्रोत्पला।
रूद्रदेहा अनुसुया पय-अम्बुजा, सप्तगंगा समीरा जय-विजयदा।।
अमृता कलकल निनादिनी निर्भरा, शाम्भवी सोमोद्भवा स्वेदोद्भवा।
चन्दना शिव-आत्मजा सागर-प्रिया, वायुवाहिनी ह्लादिनी आनंददा।।
मुरदला मुरला त्रिकूटा अंजना, नंदना नम्माडियस भाव-मुक्तिदा।
शैलकन्या शैलजायी सुरूपा, विराटा विदशा सुकन्या भूषिता।।
गतिमयी क्षिप्रा शिवा मेकलसुता, मतिमयी मन्मथजयी लावण्यदा।
रतिमयी उन्मादिनी उर्वर शुभा, यतिमयी भवत्यागिनी वैराग्यदा।।
दिव्यरूपा त्यागिनी भयहारिणी, महार्णवा कमला निशंका मोक्षदा।
अम्ब रेवा करभ कालिंदी शुभा, कृपा तमसा शिवज सुरसा मर्मदा।।
तारिणी मनहारिणी नीलोत्पला, क्षमा यमुना मेकला यश-कीर्तिदा।
साधना-संजीवनी सुख-शांतिदा, सलिल-इष्टा माँ भवानी नरमदा।।
*****
शिव दोहावली
शिव हैं शून्य-अनंत भी,
निर्विकार-सविकार।
शिव-पिण्डी का सत् समझ,
कर भवसागर पार।।
*
दारुल वन में ऋषि-मुनि,
बसे सहित परिवार।
काल कल्प वाराह था,
करती उषा विहार।।
*
वन-विचरण कर ला रहे,
कुश फल समिधा संत।
हो प्रवृत्तिकामी करें,
संचय व्यर्थ न तंत।।
*
मार्ग निवृत्ति का दिखाएं,
हर ने किया विचार।
रूप दिगंबर मनोहर,
ले वन-करें विहार।।
*
नील वर्ण, रक्ताभ दृग,
भुज विशाल, सिंह-चाल।
जटा बिखर नर्तन करें,
चंदन चर्चित भाल।।
*
झूल रहे थे कण्ठ में,
नग-रुद्राक्ष अपार।
कामदेव को लजाता,
पुरुष लावण्य निहार।।
*
मुग्ध हुईं ऋषि पत्नियां,
मन में उठा विकार।
काश! पधारे युवा ऋषि,
स्वीकारे सत्कार।।
*
शिव मुस्कराए देखकर,
मिटा न मोह-विका
रहे विचरते निरंतर,
उच्चारें ओंकार।।
*
संयम तज ऋषि पत्नियां,
छूतीं बाहु विशाल।
कुछ संग-संग नर्तन करें,
देख तरुण पग-ताल।।
*
समझ अरुंधति गईं सच,
करती रहीं निषेध।
रुकी नहीं ऋषि पत्नियां,
दिया काम ने वेध।।
*
शिव निस्पृह चुप घूमते,
कब लौटें, ऋषि-संत।
समझें सत्य निवृत्ति का,
तजें प्रवृत्ति अतंत।।
*
क्रमशः
२४.१.२०१८, जबलपुर
मंगलवार, 23 जनवरी 2018
navgeet mahotsav lucknow: 2014
नवगीत महोत्सव लखनऊ - २०१४
इसके बाद डॉ. शिव बहादुर भदौरिया के नवगीत "पुरवा जो डोल गई'' पर सृष्टि श्रीवास्तव ने कत्थक नृत्य प्रस्तुत किया। नवगीतों का गायन सम्राट राजकुमार, अमित कल्ला और रोहित रूसिया ने किया। पूरे कार्यक्रम में गिटार पर सम्राट राजकुमार, तबले पर सिद्धांत सिंह और रजत श्रीवास्तव तथा की बोर्ड पर मयंक सिंह ने संगत की। कार्यक्रम का अंत विजेन्द्र विज द्वारा नवगीतों पर बनाई गई छह लघु फिल्मों से हुआ।
navgeet mahotsav lucknow 2015
नवगीत महोत्सव लखनऊ - २०१५ का सफल आयोजन
नवगीत समारोह का शुभारम्भ दीप प्रज्ज्वलन के साथ हुआ। गीतिका वेदिका द्वारा प्रस्तुत सरस्वती वन्दना के उपरान्त पूर्णिमा वर्मन की माता जी श्रीमती सरोजप्रभा वर्मन और नवगीत समारोह के सदस्य श्रीकान्त मिश्र कान्त को विनम्र श्रद्धांजलि देकर उनकी स्मृतिशेष को नमन किया गया। विभिन्न नवगीतों पर रोहित रूसिया, विजेन्द्र विज, अमित कल्ला और पूर्णिमा वर्मन द्वारा बनायी गयी नवगीतों पर आधारित पोस्टर प्रदर्शनी को सभी ने देखा और सराहा।
इस मध्य कुछ अन्य प्रश्न भी नये रचनाकारों से श्रोताओं द्वारा पूछे गये जिनका उत्तर वरिष्ठ रचनाकारों द्वारा दिया गया। प्रथम सत्र के अन्त में डा० रामसनेही लाल शर्मा यायावर ने नवगीत की रचना प्रक्रिया पर विहंगम दृष्टि डालते हुये बताया कि ऐसा क्या है जो नवगीत को गीत से अलग करता है। डा० यायावर ने अपनी नवगीत कोश योजना की भी जानकारी देते हुए बताया कि वे विश्व विद्यालय अनुदान आयोग की अति महत्त्वपूर्ण योजना के अन्तर्गत नवगीत कोश का कार्य शुरू करने जा रहे हैं जो लगभग एक वर्ष में पूरा हो जाएगा।
पुरस्कार वितरण के बाद कवित सम्मेलन सत्र की विशिष्ट अतिथि डॉ. उषा उपाध्याय ने अपने गुजराती गीतों के हिंदी अनुवाद के साथ साथ एक मूल रचना का भी पाठ किया। गीत की लय कथ्य ने सभी उपस्थित रचनाकारों को आनंदित किया। इसके बाद सभी उपस्थित रचनाकारों ने अपने एक एक नवगीत का पाठ किया। इस अवसर पर उपस्थित प्रमुख रचनाकार थे- लखनऊ से संध्या सिंह, आभा खरे, राजेन्द्र वर्मा, डंडा लखनवी, डॉ. प्रदीप शुक्ल, रंजना गुप्ता, चन्द्रभाल सुकुमार, राजेन्द्रशुक्ल राज, अशोक शर्मा, डॉ. अनिल मिश्र, निर्मल शुक्ल, महेन्द्र भीष्म, मधुकर अष्ठाना और रामशंकर वर्मा, कानपुर से मधु प्रधान और शरद सक्सेना, छिंदवाड़ा से रोहित रूसिया और सुवर्णा दीक्षित, मीरजापुर से शुभम श्रीवास्तव ओम और गणेश गंभीर, बिजनौर से अमन चाँदुपुरी, दिल्ली से भारतेन्दु मिश्र और राधेश्याम बंधु, नॉयडा से डॉ जगदीश व्योम और भावना तिवारी, संतनगर गुजरात से मालिनी गौतम, गाजियाबाद से वेदप्रकाश शर्मा वेद और योगेन्द्रदत्त शर्मा, वर्धा से शशि पुरवार, मुंबई से कल्पना रामानी, कटनी से रामकिशोर दाहिया, खटीमा से रावेंद्रकुमार रवि, जबलपुर से संजीव वर्मा सलिल, इंदौर से गीतिका वेदिका, फीरोजाबाद से डॉ. राम सनेहीलाल शर्मा यायावर, मुजफ्फरपुर से डॉ. रणजीत पटेल, शारजाह से पूर्णिमा वर्मन, होशंगाबाद से डॉ विनोद निगम आदि। विभिन्न सत्रों का संचालन डा० जगदीश व्योम तथा रोहित रूसिया ने किया। अन्त में पूर्णिमा वर्मन तथा प्रवीण सक्सेना ने सभी के प्रति धन्यवाद ज्ञापित किया।
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नवगीत महोत्सव लखनऊ २०१७ : सफल आयोजन
तीसरे सत्र नवगीतों पर आधारित संगीत संध्या का था जिसमें लखनऊ से सम्राट राजकुमार के निर्देशन में विभिन्न कलाकारों ने नवगीतों की संगीतमयी प्रस्तुति की। तारादत्त निर्विरोध के नवगीत धूप की चिरैया को स्वर दिया आरती मिश्रा ने, कृष्णानंद कृष्ण के गीत पिछवारे पोखर में को स्वर दिया पल्लवी मिश्रा ने, माहेश्वर तिवारी के गीत मूँगिया हथेली को समवेत स्वरों में प्रस्तुत करने वाले कलाकार रहे- आरती मिश्रा, पल्लवी मिश्रा, चंद्रकांता चौधरी, सुजैन और श्वेता मिश्रा । पूर्णिमा वर्मन के गीत सॉस पनीर को स्वर दिया निहाल सिंह ने तथा विनोद श्रीवास्तव के गीत छाया में बैठ एवं माधव कौशिक के गीत चलो उजाला ढूँढें के स्वर दिया अभिनव मिश्र ने। तालवाद्य पर विशाल मिश्रा, की-बोर्ड पर स्वयं सम्राट राजकुमार और गिटार पर विनीत सिंह ने संगत की।
कार्यक्रम का विशेष आकर्षण डॉ रुचि खरे (भातखण्डे संगीत विश्वविद्यालय, लखनऊ, उ.प्र.) द्वारा 'कत्थक नृत्य' रहा जिसके अंत में उन्होंन संध्या सिंह के नवगीत हाथ में पतवार होगी तथा पूर्णिमा वर्मन के नवगीत फूल बेला पर प्रस्तुति दी। नवगीत पर आधारित कत्थक का यह प्रयोग बहुत लोकप्रिय रहा। कार्यक्रम के अंत में भातखंडे विश्वविद्यालय की भूतपूर्व उपकुलपति एवं कत्थक विशेषज्ञ डॉ. पूर्णिमा पांडे द्वारा नवगीतकार पूर्णिमा वर्मन के नवगीत मंदिर दियना बार पर नृत्य प्रस्तुत कर सबको आह्लादित कर दिया। नृत्य के साथ तबले पर राजीव शुक्ला, सारंगी पर पं. विनोद मिश्र एवं हारमोनियम पर मोहम्मद इलियाज खाँ ने संगत की। संगीत मोहम्मद इलियाज खाँ का था जिसे स्वर से सजाया था स्वयं मोहम्मद इलियाज खाँ के साथ निकी राय ने।