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सोमवार, 5 अप्रैल 2010

खबरदार कविता: हमारी सरहद पर इंच-इंच कर कब्ज़ा किया जा रहा है --सलिल

खबरदार कविता:
खबर: हमारी सरहद पर इंच-इंच कर कब्ज़ा किया जा रहा है.
दोहा गजल:
संजीव 'सलिल'
कदम-कदम घुस रहा है, कर सरहद को पार.
हर हद को छिप-तोड़कर, करे पीठ पर वार..
*
करे प्यार से घात वह, हमें घात से प्यार.
बजा रहे हैं गाल हम, वह साधे हथियार..
*
बेहयाई से हम कहें, अब रुक भी जा यार.
घुस-घुस घर में मरता, वह हमको हर बार..
*
संसद में मतभेद क्यों?, हों यदि एक विचार.
कड़े कदम ले सके तब, भारत की सरकार.
*
असरकार सरकार क्यों?, हुई न अब तक यार.
करता है कमजोर जो, 'सलिल' वही गद्दार..
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अफसरशाही राह का, रोड़ा- क्यों दरकार?
क्यों सेना में सियासत, रोके है हथियार..
*
दें जवाब हम ईंट का, पत्थर से हर बार.
तभी देश बच पायेगा, चेते अब सरकार..
*
मानवता के नाम पर, रंग जाते अखबार.
आतंकी मजबूत हों, थाम जाते हथियार..
*