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रविवार, 25 मार्च 2018

व्यंग्य दोहावली

व्यंग्य दोहावली: * व्यंग्य उठाता प्रश्न जो, उत्तर दें हम-आप. लक्ष्य नहीं आघात है, लक्ष्य सके सच व्याप. * भोग लगाखें कर रए, पंडज्जी आराम. भूले से भी ना कहें, बे मूँ से "आ राम". * लिए आरती कह रहे, ठाकुर जी "जय राम". ठाकुर जी मुसका रहे, आज पड़ा फिर काम. * रावण ज्यादा राम कम, हैं बनिए के इष्ट. कपड़े सस्ते राम के, न्यून मुनाफा कष्ट. * वनवासी को याद कब, करें अवध जा राम. सीता को वन भेजकर, मूरत रखते वाम. * शीश कटा शम्बूक का, पढ़ा ज्ञान का ग्रंथ. आरक्षित सांसद कहाँ कहो, कहाँ खोजते पंथ? * जाति नहीं आधार हो, आरक्षण का मीत यही सबक हम सीख लें, करें सत्य से प्रीत. * हुए असहमत शिवा से, शिव न भेजते दूर. बिन सम्मति जातीं शिवा, पातीं कष्ट अपूर. * राम न सहमत थे मगर, सिय को दे वनवास. रोक न पाए समय-गति, पाया देकर त्रास. * 'सलिल' उपनिषद उठाते, रहे सवाल अनेक. बूझ मनीषा तब सकी, उत्तर सहित विवेक. * 'दर्शन' आँखें खोलकर, खोले सच की राह. आँख मूँद विश्वास कर, मिले न सच की थाह. * मोह यतीश न पालता, चाहें सत्य सतीश. शक-गिरि पर चढ़ तर्क को, मिलते सत्य-गिरीश. * राम न केवल अवध-नृप, राम सनातन लीक. राम-चरित ही प्रश्न बन, शंका हरे सटीक. * नंगा ही दंगा करें, बुद्धि-ज्ञान से हीन. नेता निज-हित साधता, दोनों वृत्ति मलीन. * 'सलिल' राम का भक्त है, पूछे भक्त सवाल. राम सुझा उत्तर उसे, मेटें सभी बवाल. * सिया न निर्बल थी कभी, मत कहिए असहाय. लीला कर सच दिखाया, आरक्षण-अन्याय. * सबक न हम क्यों सीखते, आरक्षण दें त्याग. मानव-हित से ही रखें, हम सच्चा अनुराग. * कल्प पूर्व कायस्थ थे, भगे न पाकर साथ. तब बोया अब काटते, विप्र गँवा निज हाथ. * नंगों से डरकर नहीं, ले पाए कश्मीर. दंगों से डर मौन हो, ब्राम्हण भगे अधीर. * हम सब 'मानव जाति' हैं, 'भारतीयता वंश'. परमब्रम्ह सच इष्ट है, हम सब उसके अंश. * 'पंथ अध्ययन-रीति' है, उसे न कहिए 'धर्म'. जैन, बौद्ध, सिख, सनातन, एक सभी का मर्म. * आवश्यकता-हित कमाकर, मानव भरता पेट. असुर लूट संचय करे, अंत बने आखेट. * दुर्बल-भोगी सुर लुटे, रक्षा करती शक्ति. शक्ति तभी हो फलवती, जब निर्मल हो भक्ति. * 'जाति' आत्म-गुण-योग्यता, का होती पर्याय. जातक कर्म-कथा 'सलिल', कहे सत्य-अध्याय. * 'जाति दिखा दी' लोक तब, कहे जब दिखे सत्य. दुर्जन सज्जन बन करे, 'सलिल' अगर अपकृत्य. * धंधा या आजीविका, है केवल व्यवसाय. 'जाति' वर्ण है, आत्म का, संस्कार-पर्याय. * धंधे से रैदास को, कहिए भले चमार. किंतु आत्म से विप्र थे, यह भी हो स्वीकार. * गति-यति लय का विलय कर, सच कह दे आनंद. कलकल नाद करे 'सलिल', नेह नर्मदा छंद. * श्रीराम नवमी, २५.३.२०१८

गुरुवार, 16 नवंबर 2017

doha-doha raam

दोहा-दोहा राम  
*
लक्ष्य रखे जो एक ही,
वह जन परम सुजान.
लख न लक्ष मन चुप करे
साध तीर संधान.
.
लखन लक्ष्मण या कहें,
लछ्मन उसको आप.
राम-काम सौमित्र का,
हर लेता संताप.
.
सिया-सिंधु की उर्मि ला,
अँजुरी रखें अँजोर.
लछ्मन-मन नभ, उर्मिला
मनहर उज्ज्वल भोर.
.
लखन-उर्मिला देह-मन,
इसमें उसका वास.
इस बिन उसका है कहाँ,
कहिए अन्य सु-वास.
.
मन में बसी सुवास है,
उर्मि लखन हैं फ़ूल.
सिया-राम गलहार में,
शोभित रहते झूल.
.

रविवार, 29 अक्टूबर 2017

मुक्तक muktak

एक छंद 
राम के काम को, करे प्रणाम जो, उसी अनाम को, राम मिलेगा 
नाम के दाम को, काम के काम को, ध्यायेगा जो, विधि वाम मिलेगा 
देश ललाम को, भू अभिराम को, स्वच्छ करे इंसान तरेगा 
रूप को चाम को, भोर को शाम को, पूजेगा जो, वो गुलाम मिलेगा 

गुरुवार, 26 अक्टूबर 2017

राम चरितावली

भरत भक्ति कर राम की, तज पाए मद-मोह
राम न सत्ता तज सके, पाया पत्नी विछोह
मोह नहीं कर्तव्य था, राजा हो निष्काम
सुविधा वरता नागरिक, तजते राजा राम
दोष न सीता ने दिया, बनी रही अनुरक्ति
दूर हुए पर सिया से, रही राम की युक्ति 
*
युगल भक्ति आदर्श का है पावनतम रूप
तन-मन दोनों ही कहें, सिया-राम हैं भूप
सिया-राम हैं भूप, मोह-माया को मारें
निरासक्त कर कर्म, 'सलिल' तो प्रभु जी तारें
अहंकार को मार, रिपुसूदन का ध्यान कर
सदय रहें श्रुतकीर्ति, युगल मूर्ति का गान कर
*
सदियाँ गाती हैं सतत, शुची संयम के गीत
भारत-मांडवी का मिलन, देहातीत पुनीत
*
लखन-उर्मिला एक मन, भले रहे तन दूर
रिपुसूदन-श्रुतिकीर्ति थे, तार और संतूर
*
सिया राम थीं, राम सिय, सलिल-सलिल की धार
द्वैताद्वैत न भिन्न ज्यों, जग असार में सार
*
आठ, चार, थे एक भी, मिल हनुमत सम्पूर्ण
शून्य कर सके दनुज-दल, अहं कर सके चूर्ण
*
साँसों की सरयू सलिल, आस-हास सिय-राम
भारत-मांडवी गोमती, सिकता कमल अनाम
*
लखन-उर्मिला शौर्य-तप, हो न सके विधि वाम 
रिपुसूदन-श्रुतिकीर्ति हैं, श्रेय-प्रेय निष्काम
*
शून्य 'स्व' सब कुछ 'सर्व' है, सत्ता सेवाग्राम
राम-राम कर सब चले, हनु संकल्प अकाम
*
घातक आरक्षण रजक, लव-कुश युक्ति न आम
ऍम-ख़ास अंतर न हो, घट-घटवासी राम
*
छोड़ दिया है राम ने, नहीं व्यथा का अंत
प्राण-पखेरू उड़ चल, नहीं अवध में तंत
*
दशरथ की दस इन्द्रियाँ, पल में हो निष्प्राण
तज कर देह विदेह हो, पाती-देतीं त्राण
*
उन्मन मन-खग उड़ चला, वहीं जहाँ सिय-राम
वध न श्रवण का क्षम्य था, भोग लिया परिणाम
*
चित्रगुप्त के न्याय में, होती तनिक न भूल
कर्म किया फल भी गहो, मिले फूल या शूल
*
सत्य राम का दिव्य शर, कर्म राम का चाप
दृष्टि राम की सियामय, लक्ष्य मिटाना पाप
*
धर्म काम निष्काम कर, कौशल्या सम मौन
मर्म सुमित्रा-कैकई, सम परिपूरक कौन?
*
जनक विरागी राग हैं,दशरथ अवध बहाल
कृपा दृष्टि है सुनयना, सीता धरणि निहाल
*
राम नाम को सेतु कर, सिया नाम तट बंध
हनुमत दृढ़ स्तम्भ भव, पार करे हो अंध
पार करे हो अंध, राम-सिय बने सहारा 
दौड़े देव तुरंत, भक्त ने अगर पुकारा
पग पखार ले 'सलिल', बिसर मत ईश-नाम को
सिया नाम तट बांध, सेतु कर राम नाम को 
*
यायावर हो विचर मन, तज न राम का ध्यान
राम सनेही जो वही, है सच्चा इनसान
 है सच्चा इनसान, सिया के चरणों में नत
हिंदी की जयकार, करे दिन-रात अनवरत
जीव तभी संजीव, मिटा तम बने दिवाकर
साथ शब्द के विचरे, बन निश-दिन यायावर 
*
दंडक दुनिया छंद भी, देख न हो भयभीत
संग सिया-विश्वास तो, होगी पग-पग जीत
होगी पग-पग जीत, दनुज बाधा हारेगी
शीशम कोशिश सतत, लक्ष्य पर मन वारेगी
श्रृंगवेरपुर संध्या,वन्दन कर पा ठंडक
होकर भाव-विभोर, भोर जय कर ले दंडक 
*

*
भीतर-बाहर राम हैं, सोच न तू परिणाम
भला करे तू और का, भला करेंगे राम
*
विश्व मित्र के मित्र भी, होते परम विशिष्ट
युगों-युगों तक मनुज कुल, सीख मूल्य हो शिष्ट
*
राम-नाम है मरा में, जिया राम का नाम
सिया राम का नाम है, राम सिया का नाम
*
उलटा-सीधा कम-अधिक, नीचा-ऊँच विकार 
कम न अधिक हैं राम-सिय, पूर्णकाम अविकार
*
मन मारुतसुत हो सके, सुमिर-सुमिर सिय-राम
तन हनुमत जैसा बने, हो न सके विधि वाम
*
मुनि सुतीक्ष्ण मति सुमति हो, तन हो जनक विदेह
धन सेवक हनुमंत सा, सिया-राम का गेह
*
शबरी श्रम निष्ठा लगन, सत्प्रयास अविराम
पग पखर कर कवि सलिल, चल पथ पर पा राम
*
हो मतंग तेरी कलम, स्याही बन प्रभु राम
श्वास शब्द में समाहित, गुंजित हो निष्काम
*
अत्रि व्यक्ति की उच्चता, अनुसुइया तारल्य
ज्ञान किताबी भंग शर, कर्मठ राम प्रणम्य
*
निबल सरलता अहल्या, सिया सबल निष्पाप
गौतम संयम-नियम हैं, इंद्र शक्तिमय पाप
*
नियम समर्थन लोक का, पा बन जाते शक्ति
सत्ता दण्डित हो झुके, हो सत-प्रति अनुरक्ति
*
जनगण से मिल जूझते, अगर नहीं मतिमान.
आत्मदाह करते मनुज, दनुज करें अभिमान.
*
भंग करें धनु शर-रहित, संकुच-विहँस रघुनाथ.
भंग न धनु-शर-संग हो, सलिल उठे तब माथ.
***
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गुरुवार, 5 अक्टूबर 2017

doha ram

दोहा पंचक
*
मिलते हैं जगदीश यदि, मन में हो विश्वास
सिया-राम-जय गुंजाती, जीवन की हर श्वास
*
आस लखन शत्रुघ्न फल, भरत विनम्र प्रयास
पूर्ण समर्पण पवनसुत, दशकंधर संत्रास
*
त्याग-ओज कैकेई माँ, कौसल्या वनवास
दशरथ इन्द्रिय, सुमित्रा है कर्तव्य-उजास
*
संयम-नियम समर्पिता, सीता-तनया हास
नेह-नर्मदा-सलिल है, सरयू प्रभु की ख़ास
*
वध न अवध में सत्य का, होगा मानें आप
रामालय हित कीजिए, राम-नाम का जाप
*****
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शनिवार, 30 सितंबर 2017

ravan vadh aur dashahara


: शोध :
रावण ​वध ​की तिथि दशहरा ​नहीं​
*
न जाने क्यों, कब और किसके द्वारा विजयादशमी अर्थात दशहरा पर रावण-दाह की भ्रामक और गलत परंपरा आरम्भ हुई? रावण ब्राम्हण था जिसके वध से लगे ब्रम्ह हत्या के पाप हेतु सूर्यवंशी राम को प्रायश्चित्य करना पड़ा था। रावण वध के बाद उसकी अंत्येष्टि उसके अनुज विभीषण ने की थी, राम ने नहीं। रामलीला के बाद राम के बाण से रावण का दाह संस्कार किया जाना तथ्यात्मक रूप से पूरी तरह गलत, अप्रामाणिक और अस्वीकार्य है। रावण का जन्म दिल्ली के समीप एक गाँव में हुआ, सुर तथा असुर मौसेरे भाई थे जिन्होंने दो भिन्न संस्कृतियों और राज सत्ताओं को जन्म दिया। उनमें वैसा ही विकराल युद्ध हुआ जैसा द्वापर में चचेरे भाइयों कौरव-पांडव में हुआ, उसी तरह एक पक्ष से सत्ता छिन गई। रावण वध की तिथि जानने के लिए पद्म पुराण के पाताल खंड का अध्ययन करें।
पदम पुराण,पातालखंड ​ ​के अनुसार ‘युद्धकाल पौष शुक्ल द्वितीया से चैत्र कृष्ण चौदस तक ८७ दिन तक चले संग्राम के मध्य कारणों से १५ दिन युद्ध बंद रहा तथा हुआ। ​इस महासंग्राम​ का समापन लंकाधिराज रावण के संहार से हुआ। राम द्वारा रावण वध क्वार सुदी दशमी को नहीं चैत्र वदी चतुर्दशी को किया गया था। ऋषि आरण्यक द्वारा सत्योद्घाटन- ​
​हैं- ''जनकपुरी में धनुषयज्ञ में राम-लक्ष्मण कें साथ विश्वामित्र का पहुँचना​,​ राम द्वारा धनुषभंग, राम-सीता विवाह ​आदि प्रसंग सुनाते हुए आरण्यक ने बताया विवाह के समय राम ​१५ वर्ष के और सीता ​६ वर्ष की ​थीं। विवाहोपरांत वे ​१२ वर्ष अयोध्या में रहे​ २७ वर्ष की आयु में राम के अभिषेक की तैयारी हुई मगर रानी कैकेई ​दुवारा राम वनवास का वर ​माँगने पर सीता व लक्ष्मण के साथ श्रीराम को चौदह वर्ष के वनवास में जाना पड़ा।
पद्मपुराण​, पाताल खंड में श्रीराम के अश्वमेध यज्ञ के प्रसंग में अश्व रक्षा के लिए जा रहे शत्रुध्न ऋषि आरण्यक के आश्रम में ​पहुँचकर, परिचय देकर प्रणाम करते ​हैं। शत्रुघ्न को गले से लगाकर प्रफुल्लित आरण्यक ऋषि बोले- ''गुरु का वचन सत्य हुआ। सारूप्य मोक्ष का समय आ गया।'' उन्होंने गुरू लोमश द्वारा पूर्णावतार राम के महात्म्य ​के उपदेश ​का उल्लेख कर कहा ​की गुरु ने कहा ​था कि जब श्रीराम के अश्वमेध यज्ञ का घोड़ा ​आश्रम में आयेगा, रामानुज शत्रुघ्न से भेंट होगी। वे तुम्हें राम के पास ​पहुँचा देंगे। इसी के साथ ऋषि आरण्यक रामनाम की महिमा के साथ नर रूप में राम के जीवन वृत्त को तिथिवार उद्घाटित करते वनवास में राम प्रारंभिक
आषाढ़ सुदी एकादशी से चातुर्मास प्रारंभ हुआ। शरद ऋतु के उत्तरार्द्ध यानी कार्तिक शुक्लपक्ष से वानरों ने सीता की खोज शुरू की। समुद्र तट पर कार्तिक शुक्ल नवमी को संपाती नामक गिद्ध ने बताया कि सीता लंका की अशोक वाटिका में हैं। तीसरे दिन कार्तिक शुक्ल एकादशी (देवोत्थानी) को हनुमान ने ​सागर पार किया और रात में लंका प्रवेश कर सीता की खोज-बीन ​आरम्भ की।कार्तिक शुक्ल द्वादशी को अशोक वाटिका में शिंशुपा वृक्ष पर छिप गये और माता सीता को रामकथा सुनाई। कार्तिक शुक्ल तेरस को अशोक वाटिका विध्वं​कर, उसी दिन अक्षय कुमार का बध किया। कार्तिक शुक्ल चौदस को मेघनाद का ब्रह्मपाश में ​बँधकर दरबार में गये और लंकादहन किया। हनुमानजी ​ने ​कार्तिक शुक्ल पूर्णिमा को वापसी में समुद्र पार किया। प्रफुल्लित वानर​ दल ​ने नाचते​-​गाते ​५ दिन मार्ग में लगाये और अगहन कृष्ण षष्ठी को मधुवन में आकर वन ध्वंस किया हनुमान की अगवाई में सभी वानर अगहन कृष्ण सप्तमी को श्रीराम के समक्ष पहुँचे, हाल-चाल दिये।
​३ दिन जल पीकर रहे, चौथे दिन से फलाहार लेना शुरू किया। ​पाँचवे दिन वे चित्रकूट पहुँचे। श्री राम ​ने ​चित्रकूट में​ १२ वर्ष ​प्रवास किया। ​१३वें वर्ष के प्रारंभ में राम, लक्ष्मण और सीता के साथ पंचवटी पहुँचे और शूर्प​णखा को कुरूप किया। माघ कृष्ण अष्टमी को वृन्द मुहूर्त में लंकाधिराज दशानन ने साधुवेश में सीता हरण किया। श्रीराम व्याकुल होकर सीता की खोज में लगे रहे। जटायु का उद्धार व शबरी मिलन के बाद ऋष्यमूक पर्वत पर पहुँचे, सुग्रीव से मित्रता कर बालि का बध किया।​ बाल्मीकि रामायण, राम चरित मानस तथा अन्य ग्रंथों के अनुसार राम ने वर्षाकाल में चार माह ऋष्यमूक पर्वत पर ​बिताए थे। ​मानस में श्री राम लक्ष्मण से कहते हैं- ​घन घमंड गरजत चहु ओरा। प्रियाहीन डरपत मन मोरा।। अगहन कृष्ण अष्टमी ​उत्तरा फाल्गुनी नक्षत्र विजय मुहूर्त में श्रीराम ने वानरों के साथ दक्षिण दिशा को कूच किया और ​७ दिन में किष्किंधा से समुद्र तट पहुचे। अगहन शुक्ल प्रतिपदा से तृतीया तक विश्राम किया। अगहन शुक्ल चतुर्थ को रावणानुज श्रीरामभक्त विभीषण शरणागत हुआ। अगहन शुक्ल पंचमी को समुद्र पार जाने के उपायों पर चर्चा हुई। सागर से मार्ग ​की ​याचना में श्रीराम ने अगहन शुक्ल षष्ठी से नवमी तक ​४ दिन अनशन किया। नवमी को अग्निवाण का संधान हुआ तो रत्नाकर प्रकट हुए और सेतुबंध का उपाय सुझाया। अगहन शुक्ल दशमी से तेरस तक ​४ दिन में श्रीराम सेतु बनकर तैयार हुआ।
माघ कृष्ण द्वितीया से राम-रावण में तुमुल युद्ध प्रारम्भ हुआ। माघ कृष्ण चतुर्थी को रावण को भागना पड़ा। रावण ने माघ कृष्ण पंचमी से अष्टमी तक ​४ दिन में कुंभकरण को जगाया। माघ कृष्ण नवमी से शुरू हुए युद्ध में छठे दिन चौदस को कुंभकरण को श्रीराम ने मार गिराया। कुंभकरण बध पर माघ कृष्ण अमावस्या को शोक में रावण द्वारा युद्ध विराम किया गया। माघ शुक्ल प्रतिपदा से चतुर्थी तक युद्ध में विसतंतु आदि ​५ राक्षसों का बध हुआ। माघ शुक्ल पंचमी से सप्तमी तक युद्ध में अतिकाय मारा गया। माघ शुक्ल अष्टमी से द्वादशी तक युद्ध में निकुम्भ-कुम्भ ​वध, माघ शुक्ल तेरस से फागुन कृष्ण प्रतिपदा तक युद्ध में मकराक्ष वध हुआ।
अगहन शुक्ल चौदस को श्रीराम ने समुद्र पार सुवेल पर्वत पर प्रवास किया, अगहन शुक्ल पूर्णिमा से पौष कृष्ण द्वितीया तक ​३ दिन में वानरसेना सेतुमार्ग से समुद्र पार कर पाई। पौष कृष्ण तृतीया से दशमी तक एक सप्ताह लंका का घेराबंदी चली। पौष कृष्ण एकादशी को ​रावण के गुप्तचर ​सुक​-​ सारन ​वानर वेश धारण कर ​वानर सेना में घुस आये। पौष कृष्ण द्वादशी को वानरों की गणना हुई और ​उन्हें ​पहचान कर​ ​पकड़ा गया और शरणागत होने पर श्री राम द्वारा अभयदान दिया। पौष कृष्ण तेरस से अमावस्या तक रावण ने गोपनीय ढंग से सैन्याभ्यास किया। ​श्री राम द्वारा शांति-प्रयास का अंतिम उपाय करते हुए ​पौष शुक्ल प्रतिपदा को अंगद को दूत बनाकर भेजा गया।​ ​अंगद के विफल लौटने पर ​पौष शुक्ल द्वितीया से युद्ध आरंभ हुआ। अष्टमी तक वानरों व राक्षसों में घमासान युद्ध हुआ। पौष शुक्ल नवमी को मेघनाद द्वारा राम लक्ष्मण को नागपाश में ​जकड़ दिया गया। श्रीराम के कान में कपीश द्वारा पौष शुक्ल दशमी को गरुड़ मंत्र का जप किया गया, पौष शुक्ल एकादशी को गरुड़ का प्राकट्य हुआ और उन्होंने नागपाश काटकर राम-लक्ष्मण को मुक्त किया। पौष शुक्ल द्वादशी को ध्रूमाक्ष्य बध, पौष शुक्ल तेरस को कंपन बध, पौष शुक्ल चौदस से माघ कृष्ण प्रतिपदा तक 3 दिनों में कपीश नील द्वारा प्रहस्तादि का वध किया गया। फागुन कृष्ण द्वितीया को लक्ष्मण-मेघनाद युद्ध प्रारंभ हुआ। फागुन कृष्ण सप्तमी को लक्ष्मण मूर्छित हुए, उपचार आरम्भ हुआ। इस घटना के कारण फागुन कृष्ण तृतीया से सप्तमी तक ​५ दिन युद्ध विराम रहा। फागुन कृष्ण अष्टमी को वानरों ने यज्ञ विध्वंस किया, फागुन कृष्ण नवमी से फागुन कृष्ण तेरस तक चले युद्ध में लक्ष्मण ने मेघनाद को मार गिराया। इसके बाद फागुन कृष्ण चौदस को रावण की यज्ञ दीक्षा ली और फागुन कृष्ण अमावस्या को युद्ध के लिए प्रस्थान किया।
चैत्र शुक्ल प्रतिपदा (नव संवत्सर) से लंका में नये युग का प्रारंभ हुआ।
फागुन शुक्ल प्रतिपदा से पंचमी तक भयंकर युद्ध में अनगिनत राक्षसों का संहार हुआ। फागुन शुक्ल षष्टी से अष्टमी तक युद्ध में महापार्श्व आदि का राक्षसों का वध हुआ। फागुन शुक्ल नवमी को पुनः लक्ष्मण मूर्छित हुए, सुखेन वैद्य के परामर्श पर हनुमान द्रोणागिरि लाये और लक्ष्मण पुनः चैतन्य हुए। राम-रावण युद्ध फागुन शुक्ल दशमी को पुनः प्रारंभ हुआ। फागुन शुक्ल एकादशी को मातलि द्वारा श्रीराम को विजयरथ दान किया। फागुन शुक्ल द्वादशी से रथारूढ़ राम का रावण से तक ​१८ दिन युद्ध चला। ​अंतत: ​चैत्र कृष्ण चौदस को दशानन रावण मौत के घाट उतारा गया।
युद्धकाल पौष शुक्ल द्वितीया से चैत्र कृष्ण चौदस तक ​८७ दिन​ युद्ध ​(७२ दिन​ ​युद्ध, ​१५ दिन ​​युद्ध विराम​)​ चला और श्रीराम विजयी हुए। चैत्र कृष्ण अमावस्या को विभीषण द्वारा रावण का दाह संस्कार किया गया।

शनिवार, 19 अगस्त 2017

geet

गीत :                                                                     
मैं अकेली लड़ रही थी
- संजीव 'सलिल'



*
मैं अकेली लड़ रही थी 
पर न तुम पहचान पाये.....
*
सामने सागर मिला तो, थम गये थे पग तुम्हारे.
सिया को खोकर कहो सच, हुए थे कितने बिचारे?
जो मिला सब खो दिया, जब रजक का आरोप माना-
डूब सरयू में गये, क्यों रुक न पाये पग किनारे?
छूट मर्यादा गयी कब
क्यों नहीं अनुमान पाये???.....
*
समय को तुमने सदा, निज प्रशंसा ही सुनाई है.
जान यह पाये नहीं कि, हुई जग में हँसाई है..
सामने तव द्रुपदसुत थे, किन्तु पीछे थे धनञ्जय.
विधिनियंता थे-न थे पर, राह तुमने दिखायी है..
जानते थे सच न क्यों
सच का कभी कर गान पाये???.....
*
हथेली पर जान लेकर, क्रांति जो नित रहे करते.
विदेशी आक्रान्ता को मारकर जो रहे मरते..
नींव उनकी थी, इमारत तुमने अपनी है बनायी-
हाय! होकर बागबां खेती रहे खुद आप चरते..
श्रम-समर्पण का न प्रण क्यों
देश के हित ठान पाये.....
*
'आम' के प्रतिनिधि बने पर, 'खास' की खातिर जिए हो.
चीन्ह् कर बाँटी हमेशा, रेवड़ी- पद-मद पिए हो..
सत्य कर नीलाम सत्ता वरी, धन आराध्य माना.
झूठ हर पल बोलते हो, सच की खातिर लब सिये हो..
बन मियाँ मिट्ठू प्रशंसा के
स्वयं ही गान गाये......
*
मैं तुम्हारी अस्मिता हूँ, आस्था-निष्ठा अजय हूँ.
आत्मा हूँ अमर-अक्षय, सृजन संधारण प्रलय हूँ.
पवन धरती अग्नि नभ हूँ, 'सलिल' हूँ संचेतना मैं-
द्वैत मैं, अद्वैत मैं, परमात्म में होती विलय हूँ..
कर सके साक्षात् मुझसे
तीर कब संधान पाए?.....
*
मैं अकेली लड़ रही थी
पर न तुम पहचान पाये.....
*

****
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मंगलवार, 1 अगस्त 2017

muktak

मुक्तक:
दूर रहकर भी जो मेरे पास है.
उसी में अपनत्व का आभास है..
जो निपट अपना वही तो ईश है-
क्या उसे इस सत्य का अहसास है
*
भ्रम तो भ्रम है, चीटी हाथी, बनते मात्र बहाना.
खुले नयन रह बंद सुनाते, मिथ्या 'सलिल' फ़साना..
नयन मूँदकर जब-बज देखा, सत्य तभी दिख पाया-
तभी समझ पाया माया में कैसे सत्पथ पाना..
*
भीतर-बाहर जाऊँ जहाँ भी, वहीं मिले घनश्याम.
खोलूँ या मूंदूं पलकें, हँसकर कहते 'जय राम'..
सच है तो सौभाग्य, अगर भ्रम है तो भी सौभाग्य-
सीलन, घुटन, तिमिर हर पथ दिखलायें उमर तमाम..
*
l'******
१-८-२०१६
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शनिवार, 13 मई 2017

mal (rajivgan) chhand


रसानंद दे छंद नर्मदा ८५:  















दोहा, ​सोरठा, रोला, ​आल्हा, सार​,​ ताटंक (चौबोला), रूपमाला (मदन), चौपाई​, ​हरिगीतिका, उल्लाला​, गीतिका, ​घनाक्षरी, बरवै, त्रिभंगी, सरसी, छप्पय, भुजंगप्रयात, कुंडलिनी, सवैया, शोभन/सिंहिका, सुमित्र, सुगीतिका , शंकर, मनहरण (कवित्त/घनाक्षरी), उपेन्द्रवज्रा, इंद्रवज्रा, सखीविधाता/शुद्धगा, वासव​, अचलधृति, अचल, अनुगीत, अहीर, अरुण, अवतार, उपमान /दृढ़पद, एकावली, अमृतध्वनि, नित, आर्द्रा, ककुभ/कुकभ, कज्जल, कमंद, कामरूप, कामिनी मोहन (मदनावतार), काव्य, वार्णिक कीर्ति, 
कुंडल, गीता, गंग, चण्डिका, चंद्रायण, छवि (मधुभार), जग, जाया, तांडव, तोमर, त्रिलोकी, दिग्पाल / दिक्पाल / मृदुगति, दीप, दीपकी, दोधक, निधि, निश्चल, प्लवंगम, प्रतिभा, प्रदोषप्रेमा, बाला, भव, भानु, मंजुतिलका, मदनाग, मधुमालती, मनमोहन, मनोरम, मानव छंदों से साक्षात के पश्चात् मिलिए माली (राजीवगण) छंद से   

Rose    माली (राजीवगण) 
छंद

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छंद-लक्षण: जाति मानव, प्रति चरण मात्रा १८ मात्रा, यति ९ - ९ 
लक्षण छंद:

प्रति चरण मात्रा, अठारह रख लें
नौ-नौ पर रहे, यति यह परख लें

राजीव महके, परिंदा चहके
माली-भ्रमर सँग, तितली निरख लें



उदाहरण:
१. आ गयी होली, खेल हमजोली 
   भिगा दूँ चोली, लजा मत भोली

    भरी पिचकारी, यूँ न दे गारी,
    फ़िज़ा है न्यारी, मान जा प्यारी     


    खा रही टोली, भाँग की गोली 
    मार मत बोली,व्यंग्य में घोली

    
तू नहीं हारी, बिरज की नारी 
    हुलस मतवारी, डरे बनवारी

    पोल क्यों खोली?, लगा ले रोली
    प्रीती कब तोली, लग गले भोली 

२. कर नमन हर को, वर उमा वर को
    जीतकर डर को, ले उठा सर को
    साध ले सुर को, छिपा ले गुर को
    बचा ले घर को, दरीचे-दर को 

३. सच को न तजिए, श्री राम भजिए
    सदग्रन्थ पढ़िए, मत पंथ तजिए
    पग को निरखिए, पथ भी परखिए
    कोशिशें करिए, मंज़िलें वरिये 

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रविवार, 19 फ़रवरी 2017

doha

दोहा सलिला
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मधुशाला है यह जगत, मधुबाला है श्वास
वैलेंटाइन साधना, जीवन है मधुमास
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धूप सुयश मिथलेश का, धूप सिया का रूप
याचक रघुवर दान पा, हर्षित हो हैं भूप
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बुधवार, 28 दिसंबर 2016

samiksha

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पुस्तक चर्चा-
''राजस्थानी साहित्य में रामभक्ति-काव्य'' मननीय शोधकृति 
चर्चाकार आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल' 
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[पुस्तक विवरण- 'राजस्थानी साहित्य में रामभक्ति-काव्य, शोध ग्रन्थ, डॉ. गुलाब कुँवर भंडारी, प्रथम संस्करण २०१०, आकार २२से.मी.x १४ से.मी., पृष्ठ ३८०, आवरण सजिल्द, बहुरंगी, जैकेट सहित, मूल्य ७५०/-, त्रिभुवन प्रकाशन, गुलाब वाटिका, पावटा बी मार्ग, जोधपुर।] 
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हिंदी साहित्य में भक्ति काल कभी न रुकनेवाली भाव धारा है। ब्रम्ह को निर्गुण और सगुण दोनों रूपों में आराधा गया है। सगुण भक्ति में राम और कृष्ण दो रूपों को अपार लोकप्रियता मिली है। वीर भूमि राजस्थान में श्रीनाथद्वारा और मीरां बाई श्री कृष्ण भक्ति के केंद्र रहे हैं। रामावतार से सम्बंधित कोई स्थान या व्यक्ति राजस्थान में न होने के बाद भी विषम परिस्थितियों से जूझते हुए एक अल्प शिक्षित गृहणी द्वारा स्वयं को उच्च शिक्षित कर स्तरीय शोध कार्य करना असाधारण पौरुष है।  राम पर शोध करना हो तो उत्तर प्रदेश अथवा राम से सम्बंधित अन्य क्षेत्रों के राम साहित्य पर कार्य करना सुगम होता किन्तु राजस्थानी साहित्य में राम-भक्ति काव्य की खोज, अध्ययन और उसका मूल्यांकन करना वस्तुत: दुष्कर और श्रम साध्य कार्य है।  ग्रन्थ लेखिका श्रीमती गुलाब कुँवर भंडारी (१४.१०.१९३६-७.१९९१) ने पूर्ण समर्पण भाव से इस शोध ग्रंथ का लेखन किया है। 

राजस्थान जुझारू तेवरों के लिए प्रसिद्ध रहा है। जान हथेली पर लेकर रणभूमि में पराक्रम कथाएँ लिखने वाले वीरों के साथ जोश बढ़ानेवाले कवि भी होते थे जो कलम और तलवार समान दक्षता से चला पाते थे। भावावेग राजस्थानियों की रग-रग में समय होता है। भक्ति का प्रबल आवेग राजस्थान के जन-मन की विशेषता है। वीरता के साथ-साथ सौंदर्यप्रियता और समर्पण के साथ-साथ बलिदान को जीते राजस्थानी कवियों ने एक और शत्रुओं को ललकारा तो दूसरी ओर ईशाराधना भी प्राण-प्राण से की। 

शोधकर्त्री ने राजस्थानी साहित्य में राम-काव्य को अपभ्रंश-काल से खोजा और परखा है।  अहिंसा को सर्वाधिक महत्व देनेवाला जैन साहित्य भी सशस्त्र संघर्ष हेतु ख्यात राम-महिमा के गायन से दूर नहीं रह सका है। ग्रन्थ में  रामभक्ति का विकास और राजस्थान में प्रसार, सगुण राम-भक्ति संबन्धी प्रबन्ध काव्य, सगुण राम-भक्ति सम्बन्धी मुक्तक काव्य, निर्गुण राम-भक्ति संबंधी कविता तथा राजस्थानी राम-भक्त कवि एवं उनका काव्य शीर्षक पाँच अध्यायों में यथोचित विस्तार के साथ 'राम' शब्द की व्युत्पत्ति-अर्थ, राम के स्वरुप का विकास, रामभक्ति शाखा का विकास-प्रसार, सगुण राम संबन्धी प्रबन्ध व मुक्तक काव्यों का विवेचन, निर्गुण राम संबंधी काव्य ग्रंथों का अनुशीलन तथा राम-भक्त जैन कवियों के साहित्य का विश्लेषण किया गया है।  

उल्लेख्य है कि मूल्यांकित अनेक कृतियाँ हस्तलिखित हैं जिनकी खोज करना, उन्हें पाना और पढ़ना असाधारण श्रम और लगन की माँग करता है। गुलाब कुँवर जी ने नव मान्यताएँ भी सफलतापूर्वक स्थापित की हैं। राम-भक्ति प्रधान प्रबंध काव्यों में कुशललाभ, हरराज, माधोदास दधवाड़िया, रुपनाथ मोहता, मंछाराम की कृतियों का विवेचन किया गया है। राम-भक्ति मुक्तक काव्य के अध्ययन में ४९ कवि सम्मिलित हैं। सर्वज्ञात है कि मीरांबाई समर्पित कृष्णभक्त थीं किंतु लखिमा ने मीरां-साहित्य से राम-भक्ति विषयक अंश उद्धृत कर उन्हें सफलतापूर्वक राम-भक्त सिद्ध किया है।  स्थापित मान्यता के विरुद्ध किसी शोध की स्थापना कर पाना सहज नहीं होता। यह अलग बात है कि राम और कृष्ण दोनों विष्णु के अवतार होने के कारण अभिन्न और एक हैं। 

निर्गुण राम-भक्ति काव्य के अन्तर्गत दादू सम्प्रदाय के १२, निरंजनी संप्रदाय के १४, चरणदासी संप्रदाय की ३, रामस्नेही संप्रदाय १९, अन्य ८ तथा १२ जैन कवियों कवियों के साहित्य का गवेषणा पूर्ण विश्लेषण इस शोधग्रंथ को पाठ ही नहीं मननीय और संग्रहणीय भी बनाता है। ग्रंथांत में ४ परिशिष्टों में हस्तलिखित ग्रंथ-विवरण, रामभक्ति लोकगीत, रामभक्त कवियों का संक्षिप्त विवरण तथा सहायक साहित्य का उल्लेख इस शोध ग्रन्थ को सन्दर्भ ग्रन्थ के रूप में भी उपयोगी बनाता है।  
श्रीमती गुलाब कुँवरि जी की भाषा शुद्ध, सरस तथा सहज ग्राह्य है। उनका शब्द-भंडार समृद्ध है। वे न तो अनावश्यक शब्दों का प्रयोग करती हैं, न सम्यक शब्द-प्रयोग करने से चूकती हैं। कवियों तथा कृतियों का विश्लेषण करते समय वे पूरी तरह तटस्थ और निरपेक्ष रह सकी हैं। राजस्थान और राम भक्ति विषयक रूचि रखनेवाले पाठकों और विद्वानों के लिए यह कृति अत्यंत महत्वपूर्ण है। ग्रन्थ का मुद्रण शुद्ध, सुरुचिपूर्ण तथा आवरण आकर्षक है। इस सर्वोपयोगी कृति का प्रकाशन करने हेतु लेखिका के पुत्र श्री त्रिभुवन राज भंडारी तथा पुत्रवधु श्रीमती सरिता भंडारी साधुवाद के पात्र हैं। 

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