कुल पेज दृश्य

शनिवार, 28 फ़रवरी 2009


दोहा संसार

आचार्य संजीव "सलिल"

संपादक दिव्य नर्मदा

salil।sanjiv@gmail.com

sanjivsalil।blogspot.com / sanjivsalil.blog.co.in

अनिल अनल भू नभ सलिल, पञ्च तत्वमय देह

आत्म मिले परमात्म में, तब हो देह विदेह

जन्म ब्याह राखी तिलक, ग्रह प्रवेश त्यौहार

सलिल बचा पौधे लगा, दें पुस्तक उपहार

चित्त-चित्त में गुप्त हैं, चित्रगुप्त परमात्म

गुप्त चित्र निज देख ले, तभी धन्य हो आत्म

शब्द-शब्द अनुभूतियाँ, अक्षर-अक्षर भाव

नाद , थाप, सुर, ताल से, मिटते सकल अभाव

सलिल साधना स्नेह की, सच्ची पूजा जान

प्रति पल कर निष्काम तू, जीवन हो रस-खान

उसको ही रस-निधि मिले, जो होता रस-लीन

पान न रस का अन्य को, करने दे रस-हीन

कहो कहाँ से आए हैं, कहाँ जायेंगे आप

लाये थे, ले जाएँगे, सलिल पुण्य या पाप

जितना पाया खो दिया, जो खोया है साथ

झुका उठ गया, उठाया झुकता पाया माथ

साथ रहा संसार तो, उसका रहा न साथ

सबने छोड़ा साथ तो, पाया उसको साथ

नेह-नर्मदा सनातन, सलिल सच्चिदानंद

अक्षर की आराधना, शाश्वत परमानंद

सुधि की गठरी जिंदगी, सांसों का आधार

धीरज धरकर खोल मन, लुटा-लूट ले प्यार ।

स्नेह साधना जो करे, नित मन में धर धीर ।
।। इस दुनिया में है नहीं, उससे बड़ा अमीर ।।

। नेह मर्मदा में नहा, तरते तन मन प्राण ।
।। कंकर भी शंकर बने, जड़ भी हो संप्राण ।।

। कलकल सलिल प्रवाह में, सुन जीवन का गान ।
।। पाशाणों को मोम कर, दे॑ दे कर मुस्कान ।।

। लहरों के संग खेलती, हँस सूरज की धूप ।
।। देख मछलियाँ नाचतीं, रश्मिरथी का रूप ।।

। बैठो रेवा तीर पर, पंकिल पैर पखार ।
।। अँजुरी में लेकर "सलिल", लो निज रूप निहार ।।

। कर सच से साक्षात मन, हो जाता है संत ।
।। भुला कामना कामिनी, हो चिंता का अंत ।।

। जो मिलता ले लुटाती, तिनका रखे न पास ।
।। निर्मल रहती नर्मदा, सबको बाँट हुलास ।।

salil.sanjiv@gmail.com / sanjivsalil.blogspot.com

प्रेषक: आचार्य संजीव 'सलिल', संपादक दिव्य नर्मदा ई मेल; सलिल.संजीव@जीमेल.कॉम वार्ता: ०७६१२४१११३१ / ९४२५१ ८३२४४

समाचार
राष्ट्रीय कायस्थ महापरिषद

साहित्यिक पुरस्कार २००८ परिणाम घोषित

इंदौर, २५।१।२००९। राष्ट्री कायस्थ महापरिषद की साहित्यिक समिति की बैठक अध्यक्ष आचार्य संजीव 'सलिल' की अध्यक्षता में संपन्न हुई. गुणवत्ता के आधार पर श्रेष्ठ कृतियों पर पुरस्कार प्रदान किये जाना संबन्धी निर्णय सर्व सम्मति से लिए गए. तदनुसार महीयसी महादेवी काव्य पुरस्कार महाकाव्य 'सूतपुत्र' पर नर्मदांचल के वरिष्ठ कवि श्री दयाराम गुप्त 'पथिक' ब्योहारी (शहडोल). को, मुंशी प्रेमचंद गद्य पुरस्कार 'चित्रगुप्त मीमांसा' पर स्व. रवींद्र नाथ गोरखपुर तथा 'आचार्य श्रीराम शर्मा की सामाजिक चेतना' पर डॉ. कविता रायजादा आगरा को संयुक्त एवं फिराक गोरखपुरी भाषा सेतु पुरस्कार काव्यानुवाद 'चाणक्य नीति' पर श्री रामकिशोर गौतम अहमदाबाद को प्रदान किये जाने की घोषणा की गयी.
अन्य श्रेष्ठ प्रविष्टियों वतन को नमन काव्य संग्रह पर श्री चित्रभूषण श्रीवास्तव जबलपुर, मधुआला काव्यसंग्रह पर डॉ। बी। एल। वत्स आगरा, अंग्रेजी गजल संग्रह ऑफ़ एंड ऑन पर प्रो. अनिल जैन दमोह एवं कहानी संग्रह अनाम भामाशाह पर श्रीमती कमलेश शर्मा कोटा को प्रशस्ति पत्र से सम्मानित करने घोषणा की गयी। सभी पुरस्कार महापरिषद अध्वेशन में समारोहपूर्वक प्रदान किये जायेंगे।
राष्ट्रीय कायस्थ साहित्यिक पुरस्कार २००९ : प्रविष्टि आमंत्रण
राष्ट्रीय कायस्थ महापरिषद ने लिपि-लेखनी अधिष्ठाता भगवान श्री चित्रगुप्त की सेवा श्रेष्ठ कृतियों से कर रहे रचनाकारों को गुणवत्ता के आधार पर महीयसी महादेवी पद्य पुरस्कार, मुंशी प्रेमचंद गद्य पुरस्कार व् फिराक गोरखपुरी भाषा सेतु पुरस्कार से सम्मानित करने हेतु वर्ष २००१ के पश्चात् प्रकाशित कृतियों की ४ प्रतियाँ, रचनाकार का चित्र, परिचय एवं महापरिषद की साहित्यिक समिति के नियम-निर्णय मान्य होने का सहमति पत्र आदि २० अगस्त २००९ तक अध्यक्ष आचार्य संजीव 'सलिल', समन्वयम २०४ विजय अपार्टमेन्ट, नेपिअर टाऊन, जबलपुर ४८२००१, दूरभाष ०७६१ २४१११३१, चलभाष ९४२५१ ८३२४४, ई मेल सलिल।संजीव@जमेल.कॉम के पते पर आमंत्रित की हैं साहित्य समिति में सर्व श्री आचार्य संजीव 'सलिल' संपादक दिव्य नर्मदाजबलपुर अध्यक्ष, कुमार अनुपम संपादक चित्रगुप्त परिवार सन्देश पटना सचिव पटना अरुण श्रीवास्तव संपादक चित्रांश चर्चा दुर्ग सदस्य हैं इन पुरस्कारों हेतु किसी तरह का शुल्क नहीं है तथा नर्ने कृतियों की गुणवत्ता मात्र के आधार पर होगा.

मंगलवार, 24 फ़रवरी 2009

तेवरी ही तेवरी : ( ghazal, muktika, geetika )आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल', संपादक नर्मदा
salil.sanjiv@gmail.com
sanjivsalil.blogspot.com
sanjivsalil.blog.in.com
१.
ताज़ा-ताज़ा दिल के घाव।
सस्ता हुआ नमक का भाव.

मंझधारों-भंवरों को पार
किया किनारे डूबी नाव।

सौ चूहे खाने के बाद
सत्य-अहिंसा का है चाव।

ताक़तवर के चूम कदम
निर्बल को दिखलाया ताव।

ठण्ड भगाई नेता ने
जला झोपडी, बना अलाव।

डाकू तस्कर चोर खड़े
मतदाता क्या करे चुनाव?

नेता रावण, जन सीता
कैसे होगा सलिल निभाव?
*******
२.
दिल ने हरदम चाहे फूल।
पर दिमाग ने बोए शूल.

मेहनतकश को कहें ग़लत
अफसर काम न करते भूल।

बहुत दोगली है दुनिया
नहीं सुहाते इसे उसूल.

तू मत नाहक पैर पटक
सिर पर बैठे उडकर धूल.

बना तीन के तेरह लें
चाहा , डुबा दिया धन मूल.

मंझधारों में विमल 'सलिल'
गंदा करते तुम जा कूल.

धरती पर रख पैर जमा
'सलिल' न दिवा स्वप्न में झूल.
*******
३.
खर्चे अधिक, आय है कम
दिल रोता, आँखें हैं नम.

पाला शौक तमाखू का
बना मौत का फंदा यम्.

जो करता जग उजियारा
उसी दीप के नीचे तम.

सीमाओं की फ़िक्र नहीं
ठोंक रहे संसद में खम.

जब पाया तो खुश न हुए,
खोया तो करते क्यों गम?

टन-टन रुचे न मन्दिर की
कोठे की रुचती छम-छम.

वीर bhogyaa वसुंधरा
'सलिल' रखो हाथों में दम.
४.
मार हथौडा तोड़ो मूरत।
बदलेगी तब ही यह सूरत.

जिसे रहनुमा माना हमने
करी देश की उसने दुर्गत.

आरक्षित हैं कौए-बगुले
कोयल-राजहंस हैं रुखसत.

तिया सती पर हम रसिया हों
मन में है क्यों कुत्सित चाहत?

खो शहरों की चकाचौंध में
किया गाँव का बेडा गारत.

क्षणजीवी सुख मोह रहा है
रुचे न शाश्वत दिव्य विरासत.

चलभाषों का चलन अनूठा
'सलिल' न कासिद और नहीं ख़त.
*******
५.
सागर ऊंचा पर्वत गहरा
अँधा न्याय, प्रशासन बहरा.

खुली छूट आतंकवाद को
संत-आश्रमों पर है पहरा.

पौरुष निस्संतान मर रहा
वंश बढाता रक्षित महरा.

भ्रष्ट सियासत देश बेचती
राष्ट्रभक्ति का झंडा लहरा.

शक्ति पूजते, जला शक्ति को
सूखी नदियाँ,रोता सहरा।

राजमार्ग ने वन-गिरि निगले
घन विनाश का नभ में घहरा।

चुल्लू भर सागर में तूफां
सागर का जल ठहरा-ठहरा।

जनसेवक ने जनसेवा का '
सलिल' नहीं क्यों पढ़ा ककहरा?
*******

सोमवार, 23 फ़रवरी 2009

शिवभक्ति स्तोत्र

******************************

शिवभक्ति स्तोत्र

राघव ने शिव भक्तिमय, दिया गुंजा स्तोत्र।
शिव भक्तों का एक ही होता है कुल-गोत्र।।

डम-डम, डिम-डिम नाद सुन, कांपे निशिचर-दुष्ट।
बम-बम-भोले नाचते, भक्त तुम्हारे तुष्ट।।

प्रलयंकर-शंकर हरे!, हर हर बाधा-कष्ट।
नेत्र तीसरा खोलकर, करो पाप सब नष्ट॥

नाचो-नाचो रुद्र हे!, नर्मदेश ओंकार।
नाद-ताल-सुर-थाप का, रचो नया संसार॥

कार्तिकेय!-विघ्नेश्वर!, जगदम्बे हो साथ।
सत-शिव-सुंदर पर रखो, दया दृष्टिमय हाथ॥

सदय रहो सलिलेश हे!, हरो सकल आतंक।
तोड़ो भ्रष्टाचार का, तीक्ष्ण-विषैला डंक॥

दिक् अम्बर ओढे हुए, हैं शशीश-त्रिपुरारि।
नाश और निर्माण के, देव अटल असुरारि॥

salil।sanjiv@gmail.com / sanjivsalil.blogspot.com
प्रकृति-पुरूष का मेल ही,'सलिल' सनातन सत्य।
शिवा और शिव पूजकर,हमने तजा असत्य।

योनि-लिंग हैं सृजन के,माध्यम सबको ज्ञात।
आत्म और परमात्म का,नाता क्यों अज्ञात?

गूढ़ सहज ही व्यक्त हो,शिष्ट सुलभ शालीन।
शिव पूजन निर्मल करे,चित्त- न रहे मलीन।

नर-नारी, बालक-युवा,वृद्ध पूजते साथ।
सृष्टि मूल को नवाते, 'सलिल' सभी मिल माथ।

आचार्य संजीव 'सलिल' sanjivsalil.blogspot.comsanjivsalil.blog.co.indivyanarmada.blogspot.com

बंद झरोखा कर दिया

आचार्य संजीव 'सलिल', सम्पादक दिव्या नर्मदासंजीवसलिल.ब्लागस्पाट.कॉम / सलिल.संजीव@जीमेल.कॉम
बंद झरोखा कर दिया

बंद झरोखा कर दिया, अब न सकेगी झाँक।

दूर रहेगी जिंदगी, सच न सकेगी आँक.
मन में मेरे क्या छिपा, पूछ रही आ द्वार।

खाली हाथों लौटती, प्रतिवेशिनी हर बार.

रहे अधूरे आज तक, उसके सब अरमान।

मन की थाह न पा सके, कोशिश कर नादान.

सुन उसकी पदचाप को, बंद कर लिए द्वार।

बैठी हूँ सुख-शान्ति से, उससे पाकर पार.

मुझे पता यदि ले लिया, मैंने उसको साथ।

ख़ुद जैसा लेगी बना, मुझे पकड़कर हाथ.

सुला रही है धारा पर, दिखा गगन का ख्वाब।

बता हसरतों को दिया, ओढे रहो नकाब.

बीच राह में छोड़ दे, करना मत विश्वास।

दे देगी दुःख-दर्द सब, जो हैं उसके खास.

भय न तनिक, रुचता नहीं, मुझको उसका संग।

देखूं खिड़की बंद कर, अमन-चैन के रंग.

********************************************

-आचार्य संजीव 'सलिल'
लघुकथा
स्वजन तंत्र
राजनीति विज्ञान के शिक्षक ने जनतंत्र की परिभाषा तथा विशेषताएँ बताने के बाद भारत को विश्व का सबसे बड़ा जनतंत्र बताया तो एक छात्र से रहा नहीं गया. उसने अपनी असहमति दर्ज करते हुए कहा- ' गुरु जी! भारत में जनतंत्र नहीं स्वजन तंत्र है.'
' किताब में एसे किसी तंत्र का नाम नहीं है।' - गुरु जी बोले। '
कैसे होगा? यह हमारी अपनी खोज है और भारत में की गयी खोज को किताबों में इतनी जल्दी जगह मिल ही नहीं सकती. यह हमारे शिक्षा के पाठ्य क्रम में भी नहीं है लेकिन हमारी ज़िन्दगी के पाठ्य क्रम का पहला अध्याय यही है जिसे पढ़े बिना आगे का कोई पाठ नहीं पढ़ा जा सकता.' छात्र ने कहा.
' यह स्वजन तंत्र होता क्या है? यह तो बताओ।' -सहपाठियों ने पूछा। '
स्वजन तंत्र एसा तंत्र है जहाँ चंद चमचे इकट्ठे होकर कुर्सी पर लदे नेता के हर सही-ग़लत फैसले को ठीक बताने के साथ-साथ उसके वंशजों को कुर्सी का वारिस बताने और बनाने की होड़ में जी-जान लगा देते हैं. जहाँ नेता अपने चमचों को वफादारी का ईनाम और सुख-सुविधा देने के लिए विशेष प्राधिकरणों का गठन कर भारी धन राशि, कार्यालय, वाहन आदि उपलब्ध कराते हैं जिनका वेतन, भत्ता, स्थापना व्यय तथा भ्रष्टाचार का बोझ झेलने के लिए आम आदमी को कानून की आड़ में मजबूर कर दिया जाता है. इन प्राधिकरणों में मनोनीत किए गए चमचों को आम आदमी के दुःख-दर्द से कोई सरोकार नहीं होता पर वे जन प्रतिनिधि कहलाते हैं. वे हर काम का ऊंचे से ऊंचा दाम वसूलना अपना हक मानते हैं और प्रशासनिक अधिकारी उन्हें यह सब कराने के उपाय बताते हैं.'

' लेकिन यह तो बहुत बड़ी परिभाषा है, याद कैसे रहेगी?' छात्र नेता के चमचे ने परेशानी बताई। '
चिंता मत कर। सिर्फ़ इतना याद रख जहाँ नेता अपने स्वजनों और स्वजन अपने नेता का हित साधन उचित-अनुचित का विचार किए बिना करते हैं और जनमत, जनहित, देशहित जैसी भ्रामक बातों की परवाह नहीं करते वही स्वजन तंत्र है लेकिन किताबों में इसे जनतंत्र लिखकर आम आदमी को ठगा जाता है ताकि वह बदलाव की मांग न करे.'
संजिव्सलिल.ब्लागस्पाट.कॉम, संजिव्सलिल.ब्लॉग.सीओ.इन दिव्यनार्मादा.ब्लागस्पाट.कॉम

सोमवार, 16 फ़रवरी 2009

आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल'' संपादक दिव्य नर्मदा.
संजिव्सलिल.ब्लागस्पाट.कॉम / संजिव्सलिल.ब्लॉग.सीओ.इन / सलिल.संजीव@जीमेल.कॉम

सुनो कहानी चिल्ली की

किसी समय में किसी देश में, एक हुए थे चिल्ली शेख।

सदियाँ गुजर गयीं उन जैसा, दूजा सका न कोई देख।

शोर शरारत नटखटपन के, किस्से कहते लोग अनेक।

कहीं बेवकूफी दिखती है, कहीं झलकता बुद्धि-विवेक।

आओ! सुन किस्सा चिल्ली का, हम अपना मन बहलायें।

'सलिल' न अपना शीश धुनें, कुछ सबक सीख कर मुस्काएं

अफवाहों पर ध्यान न दें

दिन दोपहरी बीच बजरिया, दौड़ रहे थे चिल्ली शेख।

'चल गयी, चल गयी' थे चिल्लाते, लोग चकित थे उनको देख।

रोक रहे सब रुके नहीं थे, पूछे उनसे कैसे?, कौन?

विस्मय शंका भय ने घेरा, बंद दुकानें कर सब मौन।

व्यापारी घबराए पूछें- ' कहाँ चली?, किसने मारी?

कितने मरे बताओ भैया?, किसने की गोलीबारी?'

कौन बताये?, नहीं जानता, कोई कहाँ हुआ है क्या?

पता लगा 'चल गयी' चिल्लाता भगा केवल चिल्ली था।

चिल्ली को सबने जा घेरा, पूछा- 'चल गयी क्यों बोले?'

चिल्ली चुप सकुचाये गुमसुम राज नहीं अपना खोलें।

बार-बार पूछा तो बोले- ' झूठ नहीं सचमुच चल गयी।

बीच बजरिया दिन दोपहरी मेरे ही हाथों चल गयी।

''क्या कहते हो तुमसे चल गयी?, या अल्ला क्या गजब हुआ?'

अब्बा चीखे- 'सिर्फ़ मुसीबत लाता है कमबख्त मुआ।

'चिल्ली चकराए है गडबड, बोले- 'फ़िक्र न आप करें।

चल गयी खोटी आज चवन्नी, यह चिल्लर ले आप धरें।'

बात समझ आए तो सबकी चिंता दूर हुई भारी।

सर धुनते सब वापिस लौटे बात जरा सी दईमारी।

व्यर्थ परेशां हुए आज, अब बिन सच जाने कान न दें।

सबक सिखाया चिल्ली जी ने, अफवाहों पे ध्यान न दें।

******************

लेख : भवन निर्माण संबन्धी वास्तु सूत्र

आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल' / संजिव्सलिल.ब्लागस्पाट.कॉम / सलिल.संजीव@जीमेल.कॉम" target=_blank>सलिल.संजीव@जीमेल.कॉम

लेख :

भवन निर्माण संबन्धी वास्तु सूत्र

वास्तुमूर्तिः परमज्योतिः वास्तु देवो पराशिवः

वास्तुदेवेषु सर्वेषाम वास्तुदेव्यम -- समरांगण सूत्रधार, भवन निवेश

वास्तु मूर्ति (इमारत) परम ज्योति की तरह सबको सदा प्रकाशित करती है। वास्तुदेव चराचर का कल्याण करनेवाले सदाशिव हैं. वास्तुदेव ही सर्वस्व हैं वास्तुदेव को प्रणाम. सनातन भारतीय शिल्प विज्ञानं के अनुसार अपने मन में विविध कलात्मक रूपों की कल्पना कर उनका निर्माण इस प्रकार करना कि मानव तन और प्रकृति में उपस्थित पञ्च तत्वों का समुचित समन्वय व संतुलन इस प्रकार हो कि संरचना का उपयोग करनेवालों को सुख मिले, ही वास्तु विज्ञानं का उद्देश्य है.मनुष्य और पशु-पक्षियों में एक प्रमुख अन्तर यह है कि मनुष्य अपने रहने के लिए ऐसा घर बनते हैं जो उनकी हर आवासीय जरूरत पूरी करता है ज्ब्म्क अन्य प्राणी घर या तो बनाते ही नहीं या उसमें केवल रात गुजारते हैं. मनुष्य अपने जीवन का अधिकांश समय इमारतों में ही व्यतीत करते हैं.

एक अच्छे भवन का परिरूपण कई तत्वों पर निर्भर करता है। यथा : भूखंड का आकार, स्थिति, ढाल, सड़क से सम्बन्ध, दिशा, सामने व आस-पास का परिवेश, मृदा का प्रकार, जल स्तर, भवन में प्रवेश कि दिशा, लम्बाई, चौडाई, ऊँचाई, दरवाजों-खिड़कियों की स्थिति, जल के स्रोत प्रवेश भंडारण प्रवाह व् निकासी की दिशा, अग्नि का स्थान आदि। हर भवन के लिए अलग-अलग वास्तु अध्ययन कर निष्कर्ष पर पहुचना अनिवार्य होते हुए भी कुछ सामान्य सूत्र प्रतिपादित किए जा सकते हैं जिन्हें ध्यान में रखने पर अप्रत्याशित हानि से बचकर सुखपूर्वक रहा जा सकता है।

* भवन में प्रवेश हेतु पूर्वोत्तर (ईशान) श्रेष्ठ है। उत्तर, पश्चिम, दक्षिण-पूर्व (आग्नेय) तथा पश्चिम-वायव्य दिशा भी अच्छी है किंतु दक्षिण-पश्चिम (नैऋत्य), पूर्व-आग्नेय, उत्तर-वायव्य तथा दक्षिण दिशा से प्रवेश यथासम्भव नहीं करना चाहिए। यदि वर्जित दिशा से प्रवेश अनिवार्य हो तो किसी वास्तुविद से सलाह लेकर उपचार करना आवश्यक है।

* भवन के मुख्या प्रवेश द्वार के सामने स्थाई अवरोध खम्बा, कुआँ, बड़ा वृक्ष, मोची, मद्य, मांस आदि की दूकान, गैर कानूनी व्यवसाय आदि नहीं हो.

* मुखिया का कक्ष नैऋत्य दिशा में होना शुभ है।

* शयन कक्ष में मन्दिर न हो।

* वायव्य दिशा में कुंवारी कन्याओं का कक्ष, अतिथि कक्ष आदि हो। इस दिशा में वास करनेवाला अस्थिर होता है, उसका स्थान परिवर्तन होने की अधिक सम्भावना होती है।

* शयन कक्ष में दक्षिण की और पैर कर नहीं सोना चाहिए। मानव शरीर एक चुम्बक की तरह कार्य करता है जिसका उत्तर ध्रुव सिर होता है। मनुष्य तथा पृथ्वी का उत्तर ध्रुव एक दिशा में ऐसा तो उनसे निकलने वाली चुम्बकीय बल रेखाएं आपस में टकराने के कारण प्रगाढ़ निद्रा नहीं आयेगी। फलतः अनिद्रा के कारण रक्तचाप आदि रोग ऐसा सकते हैं। सोते समय पूर्व दिशा में सिर होने से उगते हुए सूर्य से निकलनेवाली किरणों के सकारात्मक प्रभाव से बुद्धि के विकास का अनुमान किया जाता है। पश्चिम दिशा में डूबते हुए सूर्य से निकलनेवाली नकारात्मक किरणों के दुष्प्रभाव के कारण सोते समय पश्चिम में सिर रखना मना है।

* भारी बीम या गर्डर के बिल्कुल नीचे सोना भी हानिकारक है।

* शयन तथा भंडार कक्ष सेट हुए न हों।

* शयन कक्ष में आइना रखें तो ईशान दिशा में ही रखें अन्यत्र नहीं।

* पूजा का स्थान पूर्व या ईशान दिशा में इस तरह ऐसा की पूजा करनेवाले का मुंह पूर्व दिशा की ओर तथा देवताओं का मुख पश्चिम की ओर रहे। बहुमंजिला भवनों में पूजा का स्थान भूतल पर होना आवश्यक है. पूजास्थल पर हवन कुण्ड या अग्नि कुण्ड आग्नेय दिशा में रखें.

* रसोई घर का द्वार मध्य भाग में इस तरह हो कि हर आनेवाले को चूल्हा न दिखे। चूल्हा आग्नेय दिशा में पूर्व या दक्षिण से लगभग ४'' स्थान छोड़कर रखें. रसोई, शौचालय एवं पूजा एक दूसरे से सटे न हों. रसोई में अलमारियां दक्षिण-पश्चिम दीवार तथा पानी ईशान में रखें.

* बैठक का द्वार उत्तर या पूर्व में हो। deevaron का रंग सफेद, पीला, हरा, नीला या गुलाबी हो पर लाल या काला न हो. युद्ध, हिंसक जानवरों, शोइकर, दुर्घटना या एनी भयानक दृश्यों के चित्र न हों. अधिकांश फर्नीचर आयताकार या वर्गाकार तथा दक्षिण एवं पश्चिम में हों.

* सीढियां दक्षिण, पश्चिम, आग्नेय, नैऋत्य या वायव्य में हो सकती हैं पर ईशान में न हों। सीढियों के नीचे शयन कक्ष, पूजा या तिजोरी न हो. सीढियों की संख्या विषम हो.

* कुआँ, पानी का बोर, हैण्ड पाइप, टंकी आदि ईशान में शुभ होता है, दक्षिण या नैऋत्य में अशुभ व नुकसानदायक है।

* स्नान गृह पूर्व में, धोने के लिए कपडे वायव्य में, आइना पूर्व या उत्तर में गीजर तथा स्विच बोर्ड आग्नेय में हों।

* शौचालय वायव्य या नैऋत्य में, नल ईशान पूव्र या उत्तर में, सेप्टिक tenk उत्तर या पूर्व में हो।

* मकान के केन्द्र (ब्रम्ह्स्थान) में गड्ढा, खम्बा, बीम आदि न हो. यह स्थान खुला, प्रकाशित व् सुगन्धित हो।

* घर के पश्चिम में ऊंची जमीन, वृक्ष या भवन शुभ होता है।

* घर में पूर्व व् उत्तर की दीवारें कम मोटी तथा दक्षिण व् पश्चिम कि दीवारें अधिक मोटी हों। तहखाना ईशान, या पूर्व में तथा १/४ हिस्सा जमीन के ऊपर हो. सूर्य किरंनें तहखाने तक पहुंचना चाहिए.

* मुख्य द्वार के सामने अन्य मकान का मुख्य द्वार, खम्बा, शिलाखंड, कचराघर आदि न हो।

* घर के उत्तर व पूर्व में अधिक खुली जगह यश, प्रसिद्धि एवं समृद्धि प्रदान करती है.
वराह मिहिर के अनुसार वास्तु का उद्देश्य 'इहलोक व परलोक दोनों की प्राप्ति है. नारद संहिता, अध्याय ३१, पृष्ठ २२० के अनुसार-
अनेन विधिनन समग्वास्तुपूजाम करोति यः

आरोग्यं पुत्रलाभं च धनं धन्यं लाभेन्नारह।

अर्थात इस तरह से जो व्यक्ति वास्तुदेव का सम्मान करता है वह आरोग्य, पुत्र धन - धन्यादी का लाभ प्राप्त करता है।

- आचार्य संजीव वर्मा, संजिव्सलिल।ब्लागस्पाट।कॉम सलिल.संजीव@जीमेल.कॉम" target=_blank>सलिल.संजीव@जीमेल.कॉम