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शनिवार, 23 दिसंबर 2017

shiv chhand

रसानंद दे छंद नर्मदा १११: शिव  छंद
​​​​दोहा, ​सोरठा, रोला, ​आल्हा, सार​,​ ताटंक (चौबोला), रूपमाला (मदन), चौपाई​, ​हरिगीतिका, उल्लाला​, गीतिका, ​घनाक्षरी, बरवै, त्रिभंगी, सरसी, छप्पय, भुजंगप्रयात, कुंडलिनी, सवैया, शोभन/सिंहिका, सुमित्र, सुगीतिका , शंकर, मनहरण (कवित्त/घनाक्षरी), उपेन्द्रव​ज्रा, इंद्रव​​ज्रा, सखी​, विधाता/शुद्धगा, वासव​, ​अचल धृति​, अचल​​, अनुगीत, अहीर, अरुण, अवतार, ​​उपमान / दृढ़पद, एकावली, अमृतध्वनि, नित, आर्द्रा, ककुभ/कुकभ, कज्जल, कमंद, कामरूप, कामिनी मोहन (मदनावतार), काव्य, वार्णिक कीर्ति, कुंडल, गीता, गंग, चण्डिका, चंद्रायण, छवि (मधुभार), जग, जाया, तांडव, तोमर, त्रिलोकी, दिग्पाल / दिक्पाल / मृदुगति, दीप, दीपकी, दोधक, निधि, निश्चल, प्लवंगम, प्रतिभा, प्रदोष, प्रेमा, बाला, भव, भानु, मंजुतिलका, मदनाग, मधुमालती, मनमोहन, मनोरम, मानव, माली (राजीवगण), मरहठा, चुलियाला, मरहठा माधवी, मोहन, निश्छल, योग, रसामृत, रसाल (सुमित्रा), राग, रामा, राधिका, ऋद्धि, निधि, लीला, वस्तुवदनक, वाणी, विमोहा, विरहणी, विशेषिका, माया / मत्तमयूर, माला / चंद्रावती / मणिगुणनिकर, विष्णुपद, शशिवदना /चंडरसा, शास्त्र  छंदों से साक्षात के पश्चात् मिलिए शिव छंद से 


लक्षण: जाति रौद्र, पद २, चरण ४, प्रति चरण मात्रा ११, ३ री, ६ वी, ९ वी मात्र लघु, मात्रा बाँट ३-३-३-२, चरणान्त लघु लघु गुरु (सगण), गुरु गुरु गुरु (मगण) या लघु लघु लघु  (नगण), तीव्र प्रवाह।  
लक्षण छंद:
शिव-शिवा रहें सदय, रूद्र जग करें अभय 
भक्ति भाव से नमन, माँ दया मिले समन 
(संकेत: रूद्र = ११ मात्रा, समन = सगण, मगण, नगण) 
उदाहरण:
१. हम जहाँ रहें सनम, हो वहाँ न आँख नम 
   कुछ न याद हो 'सलिल', जब समीप आप-हम 
  
२. आज ना अतीत के, हार के  न जीत के 
    आइये रचें विहँस, मीत! गीत प्रीत के 
    नीत में अनीत में, रीत में कुरीत में 
    भेद-भाव कर सकें, गीत में अगीत में 
    
३. आप साथ हों सदा, मोहती रहे अदा 
    एक मैं नहीं रहूँ, आप भी रहें फ़िदा 
    
४. फिर चुनाव आ रहे, फिर उलूक गा रहे
    मतदाता आज फिर, हाय ठगे जा रहे 
    केर-बेर साथ हैं, मैल भरे हाथ हैं 
    झूठ करें वायदे, तोड़ें खुद कायदे 
    सत्ता की चाह है, आपस में डाह है 
    रीति-नीति भूलते, सपनों में झूलते
टीप: श्यामनारायण पाण्डेय ने अभिनव प्रयोग कर शिव छंद को केवल ९ वीं मात्रा लघु रखकर रचा है. इससे छंद की लय में कोई अंतर नहीं आया. तदनुसार प्रस्तुत है उदाहरण ४.
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गुरुवार, 13 मार्च 2014

chhand salila: shiv chhand -sanjiv

छंद सलिला:
शिव (समानिका) छंद
 
संजीव   
*  
लक्षण: जाति रौद्र, पद २, चरण ४, प्रति चरण मात्रा ११, ३ री, ६ वी, ९ वी मात्र लघु, मात्रा बाँट ३-३-३-२, चरणान्त लघु लघु गुरु (सगण), गुरु गुरु गुरु (मगण) या लघु लघु लघु  (नगण), तीव्र प्रवाह। 
लक्षण छंद:
शिव-शिवा रहें सदय, रूद्र जग करें अभय 
भक्ति भाव से नमन, माँ दया मिले समन 
(संकेत: रूद्र = ११ मात्रा, समन = सगण, मगण, नगण)
उदाहरण:
१. हम जहाँ रहें सनम, हो वहाँ न आँख नम
   कुछ न याद हो 'सलिल', जब समीप आप-हम
 
२. आज ना अतीत के, हार के  न जीत के
    आइये रचें विहँस, मीत! गीत प्रीत के
    नीत में अनीत में, रीत में कुरीत में
    भेद-भाव कर सकें, गीत में अगीत में
    
३. आप साथ हों सदा, मोहती रहे अदा 
    एक मैं नहीं रहूँ, आप भी रहें फ़िदा 
   
४. फिर चुनाव आ रहे, फिर उलूक गा रहे
    मतदाता आज फिर, हाय ठगे जा रहे 
    केर-बेर साथ हैं, मैल भरे हाथ हैं 
    झूठ करें वायदे, तोड़ें खुद कायदे 
    सत्ता की चाह है, आपस में डाह है 
    रीति-नीति भूलते, सपनों में झूलते
टीप: श्यामनारायण पाण्डेय ने अभिनव प्रयोग कर शिव छंद को केवल ९ वीं मात्रा लघु रखकर रचा है. इससे छंद की लय में कोई अंतर नहीं आया. तदनुसार प्रस्तुत है उदाहरण ४.


(अब तक प्रस्तुत छंद: अखण्ड, अग्र, अचल, अचल धृति, अहीर, आर्द्रा, आल्हा, इंद्रवज्रा, उपेन्द्रवज्रा, उल्लाला, एकावली, ककुभ, कीर्ति, गंग, घनाक्षरी, चौबोला, चंडिका, छवि, जाया, तांडव, तोमर, दीप, दोधक, नित, निधि, प्रदोष, प्रेमा, बाला, भव, मधुभार, मनहरण घनाक्षरी, माया, माला, ऋद्धि, रामा, लीला, वाणी, शक्तिपूजा, शशिवदना, शाला, शिव, शुभगति, सार, सिद्धि, सुगति, सुजान, हंसी)
facebook: sahiyta salila / sanjiv verma 'salil'

रविवार, 26 जनवरी 2014

chhand salila: shiv chhand -sanjiv


छंद सलिला:
शिव छंद
संजीव
*
(अब तक प्रस्तुत छंद: अग्र, अचल, अचल धृति, आर्द्रा, आल्हा, इंद्रवज्रा, उपेन्द्रवज्रा, कीर्ति, घनाक्षरी, छवि, तोमर, दीप, दोधक, निधि, प्रेमा, माला, वाणी, शक्तिपूजा, शाला, शिव, शुभगति, सार, सुगति, सुजान, हंसी)
*
एकादश रुद्रों के आधार पर ग्यारह मात्राओं के छन्दों को 'रूद्र' परिवार का छंद कहा गया है. शिव छंद भी रूद्र परिवार का छंद है जिसमें ११ मात्राएँ होती हैं. तीसरी, छठंवीं तथा नवमी मात्रा लघु होना आवश्यक है. शिव छंद की मात्रा बाँट ३-३-३-३-२ होती है.
छोटे-छोटे चरण तथा दो चरणों की समान तुक शिव छंद को गति तथा लालित्य से समृद्ध करती है. शिखरिणी की सलिल धर की तरंगों के सतत प्रवाह और नरंतर आघात की सी प्रतीति कराना शिव छंद का वैशिष्ट्य है.
शिव छंद में अनिवार्य तीसरी, छठंवीं तथा नवमी लघु मात्रा के पहले या बाद में २-२ मात्राएँ होती हैं. ये एक गुरु या दो लघु हो सकती हैं. नवमी मात्रा के साथ चरणान्त में दो लघु जुड़ने पर नगण, एक गुरु जुड़ने पर आठवीं मात्र लघु होने पर सगण तथा गुरु होने पर रगण होता है.
सामान्यतः दो पंक्तियों के शिव छंद की हर एक पंक्ति में २ चरण होते हैं तथा दो पंक्तियों में चरण साम्यता आवश्यक नहीं होती। अतः छंद के चार चरणों में लघु, गुरु, लघु-गुरु या गुरु-लघु के आधार पर ४ उपभेद हो सकते हैं.
उदाहरण:
१. चरणान्त लघु:
   हम कहीं रहें सनम, हो कभी न आँख नम
   दूरियाँ न कर सकें, दूर- हों समीप हम
२. चरणान्त गुरु:
   आप साथ हों सदा, मोहती रहे अदा
   एक मैं नहीं रहूँ, भाग्य भी रहे फ़िदा
३. चरणान्त लघु-गुरु:
   शिव-शिवा रहें सदय, जग तभी रहे अभय
   पूत भक्ति भावना, पूर्ण शक्ति कामना
४. चरणान्त गुरु लघु:
   हाथ-हाथ में लिये, बाँध मुष्टि लब सिये
   उन्नत सर-माथ रख, चाह-राह निज परख
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