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शुक्रवार, 28 जून 2019

नवगीत खिला मोगरा

नवगीत 
खिला मोगरा 
*
खिला मोगरा 
जब-जब, तब-तब 
याद किसी की आई।
महक उठा मन
श्वास-श्वास में
गूँज उठी शहनाई।
*
हरी-भरी कोमल पंखुड़ियाँ
आशा-डाल लचीली।
मादक चितवन कली-कली की
ज्यों घर आई नवेली।
माँ के आँचल सी सुगंध ने
दी ममता-परछाई।
खिला मोगरा
जब-जब, तब-तब
याद किसी की आई।
*
ननदी तितली ताने मारे
छेड़ें भँवरे देवर।
भौजी के अधरों पर सोहें
मुस्कानों के जेवर।
ससुर गगन ने
विहँस बहू की
की है मुँह दिखलाई।
खिला मोगरा
जब-जब, तब-तब
याद किसी की आई।
*
सजन पवन जब अंग लगा तो
बिसरा मैका-अँगना।
द्वैत मिटा, अद्वैत वर लिया
खनके पायल-कँगना।
घर-उपवन में
स्वर्ग बसाकर
कली न फूल समाई।
खिला मोगरा
जब-जब, मुझको
याद किसी की आई।
***
२८-६-२०१६

बुधवार, 28 जून 2017

navgeet

नवगीत 
खिला मोगरा 
*
खिला मोगरा 
जब-जब, तब-तब 
याद किसी की आई।
महक उठा मन
श्वास-श्वास में
गूँज उठी शहनाई।
*
हरी-भरी कोमल पंखुड़ियाँ
आशा-डाल लचीली।
मादक चितवन कली-कली की
ज्यों घर आई नवेली।
माँ के आँचल सी सुगंध ने
दी ममता-परछाई।
खिला मोगरा
जब-जब, तब-तब
याद किसी की आई।
*
ननदी तितली ताने मारे
छेड़ें भँवरे देवर।
भौजी के अधरों पर सोहें
मुस्कानों के जेवर।
ससुर गगन ने
विहँस बहू की
की है मुँह दिखलाई।
खिला मोगरा
जब-जब, तब-तब
याद किसी की आई।
*
सजन पवन जब अंग लगा तो
बिसरा मैका-अँगना।
द्वैत मिटा, अद्वैत वर लिया
खनके पायल-कँगना।
घर-उपवन में
स्वर्ग बसाकर
कली न फूल समाई।
खिला मोगरा
जब-जब, मुझको
याद किसी की आई।
***
२८-६-२०१६

मंगलवार, 28 जून 2016

navgeet

नवगीत 
खिला मोगरा ​

*
खिला मोगरा 
जब-जब, तब-तब 
याद किसी की आई। 
महक उठा मन 
श्वास-श्वास में 
गूँज उठी शहनाई। 
 
*
हरी-भरी कोमल पंखुड़ियाँ 
आशा-डाल लचीली।
मादक चितवन कली-कली की
ज्यों घर आई नवेली। 
माँ के आँचल सी 
सुगंध
​ ने ​
दी ममता-परछाई।
खिला मोगरा 
जब-जब, तब-तब 
याद किसी की आई।
*
ननदी तितली ताने मारे 
छेड़ें भँवरे देवर। 
भौजी के अधरों पर सोहें 
मुस्कानों के जेवर। 
ससुर गगन ने 
विहँस बहू की 
की है मुँह दिखलाई। 
खिला मोगरा 
जब-जब, तब-तब  
याद किसी की आई। 
सजन पवन जब अंग लगा तो 
बिसरा मैका-अँगना। 
द्वैत मिटा, अद्वैत वर लिया 
खनके पायल-कँगना।  
घर-उपवन में 
स्वर्ग बसाकर 
कली न फूल समाई। 
खिला मोगरा 
जब-जब, मुझको 
याद किसी की आई।
***

शनिवार, 20 जून 2015

navgeet: sanjiv

नवगीत:
संजीव 
*
बाँस के कल्ले उगे फिर 
स्वप्न नव पलता गया 
पवन के सँग खेलता मन-
मोगरा खिलता गया
*
जुही-जुनहाई मिलीं
झट गले
महका बाग़ रे!
गुँथे चंपा-चमेली
छिप हाय
दहकी आग रे!
कबीरा हँसता ठठा
मत भाग
सच से जाग रे!
बीन भोगों की बजी
मत आज
उछले पाग रे!
जवाकुसुमी सदाव्रत
कर विहँस
जागे भाग रे!
हास के पल्ले तले हँस
दर्द सब मिटता गया
त्रास को चुप झेलता तन-
सुलगता-जलता गया
बाँस के कल्ले उगे फिर
स्वप्न नव पलता गया
पवन के सँग खेलता मन-
मोगरा खिलता गया
*
प्रथाएँ बरगद हुईं
हर डाल
बैठे काग रे!
सियासत का नाग
काटे, नेह
उगले झाग रे!
घर-गृहस्थी लग रही
है व्यर्थ
का खटराग रे!
छिप न पाते
चदरिया में
लगे इतने दाग रे!
बिन परिश्रम कब जगे
हैं बोल
किसके भाग रे!
पीर के पल्ले तले पल
दर्द भी हँसता गया
जमीं में जड़ जमाकर
नभ छू 'सलिल' उठता गया
बाँस के कल्ले उगे फिर
स्वप्न नव पलता गया
पवन के सँग खेलता मन-
मोगरा खिलता गया
*

बुधवार, 17 जून 2015

navgeet: bela -sanjiv

नवगीत:
बेला
संजीव
*
मगन मन महका 
*
प्रणय के अंकुर उगे
फागुन लगे सावन.
पवन संग पल्लव उड़े
है कहाँ मनभावन?
खिलीं कलियाँ मुस्कुरा
भँवरे करें गायन-
सुमन सुरभित श्वेत
वेणी पहन मन चहका
मगन मन महका
*
अगिन सपने, निपट अपने
मोतिया गजरा.
चढ़ गया सिर, चीटियों से
लिपटकर निखरा
श्वेत-श्यामल गंग-जमुना
जल-लहर बिखरा.
लालिमामय उषा-संध्या
सँग 'सलिल' दहका.
मगन मन महका
*
१२.६.२०१५
४०१ जीत होटल बिलासपुर

navgeet: bela -sanjiv

नवगीत:
संजीव
*
बेला 
आहत-घायल 
फिर भी खिलकर
महक रही है
मानो या मत मानो
गुपचुप
करती समर यही है
*
अँगना में बैठी बेला ले
सतुआ खायें उमंगें
गौरैया जैसे ही चहके
एसिड लायें लफंगे
घेरें बना समूह दुष्ट तो
सज्जन भय से सहमें
दहशतगर्दी
करे सियासत
हँसकर मटक रही है
बेला सहती शूल-चुभन
गृह-तरु पर
चहक रही है
बेला
आहत-घायल
फिर भी खिलकर
महक रही है
मानो या मत मानो
गुपचुप
करती समर यही है
*
कैसी बेला आयी?
परछाईं से भी भय लगता
दुर्योधन हटता है तो
दु:शासन पाता सत्ता
पांडव-कृष्ण प्रताड़ित तब भी
अब भी दहले रहते
ला, बे ला! धन
भूख तन्त्र की
निष्ठा गटक रही है
अलबेला
जन मत भरमाया
आस्था बहक रही है
बेला
आहत-घायल
फिर भी खिलकर
महक रही है
मानो या मत मानो
गुपचुप
करती समर यही है
*

navgeet: bela -sanjiv

नवगीत:
संजीव
*
आइये!
बेला बनें हम
खुशबुएँ कुछ बाँट दें
*
अंकुरित हो जड़ जमायें
रीति-नीति करें ग्रहण.
पल्लवित हो प्रथाओं को
समझ करिए आचरण.
कली कोमल स्वप्न अनगिन
नियम-संयम-अनुकरण
पुष्प हो जग करें सुरभित
सत्य का कर अनुसरण.
देख खरपतवार
करे दें दूर,
कंटक छाँट दें.
खुशबुएँ कुछ बाँट दें.
*
अंधड़ों का भय नहीं कुछ
आजमाता-मोड़ता.
जो उगाता-सींचता है
वही आकर तोड़ता.
सुई चुभाता है ह्रदय में
गूँथ धागों में निठुर
हार-वेणी बना पहने
सुखा देता, छोड़ता.
कहो क्या हम
मना कर दें?
मन न करता डांट दें.
खुशबुएँ कुछ बाँट दें.
*
जिंदगी की क्यारियों में
हम खिलें बन मोगरा.
स्नेह-सुरभित करें जग को
वही आकर तोड़ता.
सुई चुभाता है ह्रदय में
गूँथ धागों में निठुर
हार-वेणी बना पहने
सुखा देता, छोड़ता.
कहो क्या हम
मना कर दें?
मन न करता डांट दें.
आइये!
बेला बनें हम
खुशबुएँ कुछ बाँट दें
*

   

navgeet: bela -sanjiv

नवगीत:
बेला महका 
संजीव 
*
जाने किस बेला में 
बेला बहका था?
ला, बे ला झट तोड़ 
मोह कह चहका था.
*
कमसिन कलियों की कुड़माई सुइयों से 
मैका छूटा, मिलीं सासरे गुइयों से 
खिल-खिल करतीं, लिपट-लिपट बन-सज वेणी 
बेला दे संरक्षण स्नेहिल भइयों से 
बेलावल का मन  
महुआ सा महका था 
जाने किस बेला में 
बेला बहका था?
*
जाने किस बेला से बेला टकरायी 
कौन बता पाये ऊँचाई-गहराई 
आब मोतिया जुही, चमेली, चंपा सी 
सुलभा संग सितांग करे हँस पहुनाई 
बेलन सँग बेलनी कि
मौसम दहका था.  
जाने किस बेला में 
बेला बहका था?
*
बेल न बेली, बेलन रखकर चल बाहर  
दूर बहुत हैं घर से सच बाबुल नाहर 
चंद्र-चंद्रिका सम सिंगार करें हम-तुम 
अलबेली ढाई आखर की है चादर   
अरुणिम गालों पर 
पलाश ही लहका था.  
जाने किस बेला में 
बेला बहका था?
*
टीप: बेला = मोगरा, मोतिया, सितांग, सुलभा, / = समय, अंतराल, / = बेलना क्रिया,/  = तट, तीर, किनारा, / = तरंग, लहर, / = कांसे का कटोरा जैसा  बर्तन, बेलावल = प्रिय, पति,

सोमवार, 15 जून 2015

haiku: sanjiv

हाइकु:
संजीव
*
चटनी जैसा
खट्टा मीठा तीखा है
जग-जीवन
*
बेला महकी
बेला चहका, आयी
प्रणय बेला
बेला = लता, मोगरा, समय
*
बेसहारा का
बनकर सहारा
ममता हँसे
*

navgeet: magan man -sanjiv

नवगीत:
बेला
संजीव
*
मगन मन महका
*
प्रणय के अंकुर उगे
फागुन लगे सावन.
पवन संग पल्लव उड़े
है कहाँ मनभावन?
खिलीं कलियाँ मुस्कुरा
भँवरे करें गायन-
सुमन सुरभित श्वेत
वेणी पहन मन चहका
मगन मन महका
*
अगिन सपने, निपट अपने
मोतिया गजरा.
चढ़ गया सिर, चीटियों से
लिपटकर निखरा
श्वेत-श्यामल गंग-जमुना
जल-लहर बिखरा.
लालिमामय उषा-संध्या
सँग 'सलिल' दहका.
मगन मन महका
*
१२.६.२०१५
४०१ जीत होटल बिलासपुर