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शनिवार, 20 मार्च 2010

दोहे- नोट महात्म्य : संजीव 'सलिल'

मायावती जी को नोटों की माला पहनाई जाने पर--

दोहे- नोट महात्म्य : संजीव 'सलिल'

नोटों की माला पहन, लड़िये आम चुनाव.
नोट लुटा कर वोट लें, बढ़ा रहेगा भाव..

'सलिल' नोट के हार से, हुई हार भी जीत.
जो न रहे पहचानते, वे बन बैठे मीत..

गधा नोट-माला पहिन, मिले- बोलिए बाप.
बाप नोट-बिन मिले तो, नमन न करते आप..

पढ़े-लिखे से फेल हों, नोट रखे से पास.
सूखी कॉपी जाँचकर, टीचर पाए त्रास..

नोट देख चंगा करे, डॉक्टर तुरत हुज़ूर.
आग बबूला नोट बिन, तुरत भगाए दूर..

नोटों की माला पहिन, होगा तुरत विवाह,
नोट फेंक गृह-लक्ष्मी, हँसकर करे निबाह..

घरवाली साली सदृश, करती मृदु व्यवहार.
'सलिल' देखती जब डला, नोटों का गलहार..

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दिव्यनर्मदा.ब्लागस्पाट.कॉम