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बुधवार, 24 जुलाई 2019

दोहा - षट्पदी

दोहा सलिला
नेह नर्मदा कलम बन, लिखे नया इतिहास
प्राची तक का अन्त कर / देती रहे उजास
*
प्राची पर आभा दिखी, हुआ तिमिर का अन्त
अन्तर्मन जागृत करें, कंत बन सकें संत
*
हास्य षट्पदी
संजीव
*
फिक्र न ज्यादा कीजिए, आसमान पर भाव 
भेज उसे बाजार दें, जिसको आता ताव
जिसको आता ताव, शान्त वह हो जायेगा
थैले में पैसे ले खुश होकर जाएगा
सब्जी जेबों में लेकर रोता आएगा
'सलिल' अजायबघर में सब्जी देखें बच्चे
जियें फास्ट फुड खाकर, बनें नंबरी लुच्चे
*

शनिवार, 23 दिसंबर 2017

shatpadee

षट्पदी :
संजीव
.
है समाज परिवार में, मान हो रहे अंध
जुट समाजवादी गये, प्रबल स्वार्थ की गंध
प्रबल स्वार्थ की गंध, समूचा कुनबा नेता
घपलों-घोटालों में माहिर, छद्म प्रणेता
कथनी-करनी से हुआ शर्मसार जन-राज है
फ़िक्र न इनको देश की, संग न कोई समाज है
*

मंगलवार, 19 दिसंबर 2017

षट्पदी / मुक्तक

*
षट्पदी
श्वास-आस में ग्रह-उपग्रह सा पल-पल पलता नाता हो.
समय, समय से पूर्व, समय पर सच कहकर चेताता हो.
कर्म भाग्य का भाग्य बताये, भाग्य कर्म के साथ रहे-
संगीता के संग आज, कल-कल की बात बताता हो.
जन्मदिवस पर केक न काटें, कभी बुझायें ज्योति नहीं
दीप जला दीवाली कर लें, तिमिर भाग छिप जाता हो.
मुक्तक
कृष्ण कांत हैं सारे जग के, कण-कण यहाँ सुदामा है
परमात्मा है सबका स्वामी, हर एक आत्मा वामा है
सच से मिलना जन्म हर सुबह, आँख बंद तो मौत हुई-
कल्प-कल्प तक आना-जाना कहो दिवस या यामा है
**


सोमवार, 13 नवंबर 2017

shatpadee

षट्पदी 
*
करे न नर पाणिग्रहण, यदि फैला निज हाथ
नारी-माँग न पा सके, प्रिय सिंदूरी साज?
प्रिय सिंदूरी साज, न सबला त्याग सकेगी 
'अबला' 'बला' बने क्या यह वर-दान मँगेंगी ?
करता नर स्वीकार, फजीहत से न डरे
नारी कन्यादान, न दे- वरदान नर करे
***

कवि-कविता की प्रेरणा, मन-मंजूषा साथ 
ज्योति कांति आभा प्रभा, क्रांति थामती हाथ
क्रांति थामती हाथ, कल्पना-कांता के संग 
अन्नपूर्ण मिथलेश छेड़ती दोहा की जंग
करे साधना 'सलिल' संग हो रजनी सविता 
बन तरंग आ जाती है फिर भी संग कविता 
***

शनिवार, 25 अक्टूबर 2014

shatpadee:

षट्पदी

कचरा पीछे छोड़कर, गुजर गया है पर्व
शर्म हमें इस पर बहुत, कैसे कर लें गर्व
कैसे कर लें गर्व, न कचरा बिना हमने
पूछें: गंदा जग क्यों व्यर्थ बनाया प्रभु ने?
क्यों न मनाएं पर्व, परम्पराएँ तोड़कर
गुजर न जाए पर्व कचरा पीछे छोड़कर
*


सोमवार, 23 मई 2011

एक षटपदी (कुण्डलिनी): भारत के गुण गाइए... संजीव 'सलिल'

एक षटपदी (कुण्डलिनी):                                                   
भारत के गुण गाइए...
संजीव 'सलिल'
*
भारत के गुण गाइए, ध्वजा तिरंगी थाम.
सब जग पर छा जाइये, सब जन एक समान..
सब जन एक समान प्रगति का चक्र चलायें.
दंड थाम उद्दंड शत्रु को पथ पढ़ायें..
बलिदानी केसरिया की जयकार करें शत.
हरियाली सुख, शांति श्वेत, मुस्काए भारत..
********

रविवार, 24 अप्रैल 2011

एक षटपदी : भारत के गुण गाइए ---संजीव 'सलिल'

एक षटपदी :



संजीव 'सलिल'
*
भारत के गुण गाइए, ध्वजा तिरंगी थाम.
सब जग पर छा जाइये, बढ़े देख का नाम ..
बढ़े देख का नाम प्रगति का चक्र चलायें.
दंड थाम उद्दंड शत्रु को पथ पढ़ायें..
बलिदानी केसरिया की जयकार करें शत.
हरियाली सुख, शांति श्वेत, मुस्काए भारत..


********

मंगलवार, 19 अप्रैल 2011

षटपदियाँ : संजीव 'सलिल'

षटपदियाँ :
संजीव 'सलिल'
*
इनके छंद विधान में अंतर को देखें. प्रथम अमृत ध्वनि है, शेष कुण्डलिनी
भारत के गुण गाइए, मतभेदों को भूल.
*
फूलों सम मुस्काइये, तज भेदों के शूल..
तज भेदों के, शूल अनवरत, रहें सृजनरत.
मिलें अंगुलिका, बनें मुष्टिका, दुश्मन गारत..
तरसें लेनें. जन्म देवता, विमल विनयरत.
'सलिल' पखारे, पग नित पूजे, माता भारत..
*
कंप्यूटर कलिकाल का, यंत्र बहुत मतिमान.
हुए पराजित पलों में, कोटि-कोटि विद्वान..
कोटि-कोटि विद्वान, कहें- मानव किंचित डर.
तुझे बना ले, दास अगर हो, हावी तुझ पर..
जीव श्रेष्ठ, निर्जीव हेय, सच है यह अंतर.
'सलिल' न मानव से बेहतर कोई कंप्यूटर..  
*
सुंदरियाँ घातक; सलिल' पल में लें दिल जीत.
घायल करें कटाक्ष से, जब बनतीं मन-मीत.
जब बनतीं मन-मीत, मिटे अंतर से अंतर.
बिछुड़ें तो अवढरदानी  भी हों प्रलयंकर.
असुर-ससुर तज सुर पर ही रीझें किन्नरियाँ.
नीर-क्षीर बन, जीवन पूर्ण करें सुंदरियाँ..
*

रविवार, 6 मार्च 2011

फागुन के ६ छक्के: संजीव 'सलिल'

फागुन के ६ छक्के:                                                                            

संजीव 'सलिल'
*
फागुन आया है सखी, मचा खूब हुडदंग.
फेंक रहे दिल मनचले, कर दो हुलिया तंग.
कर दो हुलिया तंग, लगा मुँह पर रंग काला.
लगा कीच-गोबर भूलें लव करना लाला..
कहे 'सलिल' नभ बरसे तो आ जाये सावन.
हो जोरी-बरजोरी तो सार्थक हो सावन..
*
नक्सलवादी खून की होली करदें बंद.
बजा प्रेम की बांसुरी, सुनें नेह के छंद..
सुनें नेह के छंद, कुंडली, दोहे, टप्पे.
खाएँ गुझिया-सेव, भुला क्रांति के लटके..
कहे 'सलिल' मत मार घटाओ तुम आबादी.
नस्ल नेह की नित्य बढ़ाओ नक्सलवादी..
*
पिचकारी थामे साखी, हरि दें लगा गुलाल.
होली खेलें मुक्त-मन, दिल से भुला मलाल..
दिल से भुला मलाल, शांति चाहे हर गुनिया.
भ्रान्ति क्रांति की भटकाती, भरमाती दुनिया..
कहे 'सलिल' कविराय, राय सत्य-हितकारी.
बन्दूकों को फेंक उठाओ रंग-पिचकारी..
*
छक्के-चौके लग रहे, छक्के करते नृत्य.
छक के पी खो होश दें, निंदनीय है कृत्य..
निंदनीय है कृत्य, सत्य को भुला न देना.
मिले प्रलोभन, गले असत को लगा न लेना.
'सलिल' मैच ले जीत, रहें सब हक्के-बक्के.
'सचिन' शतक दे लगा, न चूकें चौके-छक्के..
*
मुखिया कैसे मनाएँ, होली हैं लाचार.
सत्ता वरकर हो रहे, कुर्सी से बेज़ार..
कुर्सी से बेज़ार, न लेकिन छोड़ें सत्ता.
सत्य जानते पल में, कट जाएगा पत्ता..
कहे 'सलिल' सुख छिपा, बने ऊपर से दुखिया.
मनमोहन धन मोह न बाँटे, संग हैं सुखिया..
*
राजनीति में हर किसी के मन में है मैल.
निर्मल चादर रह सके कोई न ऐसी गैल..
कोई न ऐसी गैल, चलाते सब पिचकारी.
खुद का खोट न देख, दूसरों को दें गारी..
लट्ठमार बृज-नार, चटायें धूल वीथि में.
काला करदें मुँह, जो गंदे राजनीति में..

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रविवार, 25 अप्रैल 2010

एक घनाक्षरी: फूली-फूली राई...... --पारस मिश्र, शहडोल..

एक घनाक्षरी
पारस मिश्र, शहडोल..
फूली-फूली राई, फिर तीसी गदराई.
बऊराई अमराई रंग फागुन का ले लिया.
मंद-पाटली समीर, संग-संग राँझा-हीर,
ऊँघती चमेली संग फूँकता डहेलिया..
थरथरा रहे पलाश, काँप उठे अमलतास,
धीरे-धीरे बीन सी बजाये कालबेलिया.
आँखिन में हीरकनी, आँचल में नागफनी,
जाने कब रोप गया प्यार का बहेलिया..
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दिव्यनर्मदा.ब्लॉगस्पोट.कॉम  

Acharya Sanjiv Salil

http://divyanarmada.blogspot.com