गले मिले दोहा यमक
*
धमक यमक की जब सुने,
चमक-दमक हो शांत।
अटक-मटक मत मति कहे,
सटक न होना भ्रांत।।
*
नौ कर आप न चाहते,
पर नौकर की चाह।
हो न कलेजा चाक रब,
चाकर कर परवाह।।
*
हो बस अंत असंत का,
यही तंत है तात।
संत बसंत सजा सके,
सपनों की बारात।।
गले मिले दोहा यमक
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धमक यमक की जब सुने,
चमक-दमक हो शांत।
अटक-मटक मत मति कहे,
सटक न होना भ्रांत।।
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नौ कर आप न चाहते,
पर नौकर की चाह।
हो न कलेजा चाक रब,
चाकर कर परवाह।।
*
हो बस अंत असंत का,
यही तंत है तात।
संत बसंत सजा सके,
सपनों की बारात।।
*
यम कब यमक समझ सके,
सोच यमी हैरान।
तमक बमक कर ले न ले,
लपक जान की जान।।
***
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