त्रिपदियाँ /तसलीस :
सूरज
संजीव 'सलिल'
बिना नागा निकलता है सूरज।
कभी आलस नहीं करते देखा
तभी पाता सफलता है सूरज।
सुबह खिड़की से झाँकता सूरज।
कह रहा तम को जीत लूँगा मैं
कम नहीं खुद को आँकता सूरज।
भोर पूरब में सुहाता सूरज।
दोपहर देखना भी मुश्किल हो
शाम पश्चिम को सजाता सूरज।
जाल किरणों का बिछाता सूरज।
कोई अपना न पराया कोई
सभी सोयों को जगाता सूरज।
उजाला सबको दे रहा सूरज।
अँधेरे को रहा भगा भू से
दुआएँ सबकी ले रहा सूरज।
आँख रजनी से चुराता सूरज।
बाँह में एक चाह में दूजी
आँख ऊषा से लड़ाता सूरज।
काम निष्काम ही करता सूरज।
नाम के लिये न मरता सूरज
भाग्य अपना खुदी गढ़ता सूरज।

सूरज
संजीव 'सलिल'
बिना नागा निकलता है सूरज।
कभी आलस नहीं करते देखा
तभी पाता सफलता है सूरज।
सुबह खिड़की से झाँकता सूरज।
कह रहा तम को जीत लूँगा मैं
कम नहीं खुद को आँकता सूरज।
भोर पूरब में सुहाता सूरज।
दोपहर देखना भी मुश्किल हो
शाम पश्चिम को सजाता सूरज।
जाल किरणों का बिछाता सूरज।
कोई अपना न पराया कोई
सभी सोयों को जगाता सूरज।
उजाला सबको दे रहा सूरज।
अँधेरे को रहा भगा भू से
दुआएँ सबकी ले रहा सूरज।
आँख रजनी से चुराता सूरज।
बाँह में एक चाह में दूजी
आँख ऊषा से लड़ाता सूरज।
काम निष्काम ही करता सूरज।
नाम के लिये न मरता सूरज
भाग्य अपना खुदी गढ़ता सूरज।