दिव्य नर्मदा : हिंदी तथा अन्य भाषाओँ के मध्य साहित्यिक-सांस्कृतिक-सामाजिक संपर्क हेतु रचना सेतु A plateform for literal, social, cultural and spiritual creative works. Bridges gap between HINDI and other languages, literature and other forms of expression.
कुल पेज दृश्य
शनिवार, 31 मार्च 2018
सवैया सलिला: ४
सवैया सलिला ३
*
कभी तो बुलाते, सुनते-लुभाते, गले से लगाते हमें नेता।
न वादे निभाते, धता ही बताते, लुकाते-छिपाते ठगें नेता।।
चुनावी अदाएँ, न भूलें-भुलाएँ,सदा झूठ बोलें, छ्लें नेता-
न कानून मानें, नहीं न्याय जानें, नहीं काम आएँ, खलें नेता।।
***
विधान: (७ यगण) + गुरु
salil.sanjiv@gmail.com
शुक्रवार, 30 मार्च 2018
सवैया सलिला 2:
कमलेश्वरी सवैया
*
न हल्ला मचाएँ, धुआँ भी न फैला, करें गंदगी भी न मैं आप।
न पूरे तलैया, न तालाब राहों, नदी को न मैली करें आप।।
न तोड़ें घरौंदा, न काटें वनों को, न खोदें पहाड़ी सरे आम-
न रूठे धरा ये, न गुस्सा करें मेघ, इन्सान न पाए कहीं शाप।।
*
विधान: प्रति पद 7 (यगण) +लघु
30.3.2018
ॐ doha shatak himkar shyam
दोहा शतक
हिमकर श्याम
*
ॐ
दोहा शतक
*
जन्म:
आत्मज: श्रीमती सरोज-श्री निरंजनप्रसाद श्रीवास्तव।
जीवन संगिनी:
शिक्षा: वाणिज्य और पत्रकारिता में स्नातक।
लेखन विधा: दोहा, लेखा, रिपोर्ताज आदि।
प्रकाशन:
उपलब्धि: प्रभात खबर’ और ‘दैनिक जागरण’ के संपादकीय विभाग में, शोध पत्रिका ‘अनुसंधानिका’ से संबद्ध
सम्प्रति: स्वतंत्र पत्रकार, लेखक, ब्लोगर।
सम्पर्क: बी-१, शांति इंक्लेव, कुसुम विहार, मार्ग क्रमांक ४, निकट चिरंजीवी पब्लिक स्कूल, मोराबादी, राँची ८३४००८, झारखण्ड।
ब्लॉग : http://himkarshyam.blogspot.in/ https://doosariaawaz.wordpress.com ।
चिभाष: ९१८६०३१७१७१०, ई-मेल पता : himkar.shyam@gmail.com ।
*
ॐ
दोहा शतक
*
शिक्षा, शासन हर जगह, अंग्रेजी का राज।
निज भाषा को छोड़कर, परभाषा पर नाज।।
*
देशप्रेमियों ने लिखे, थे विप्लव के गान।
इष्ट क्रांति की चेतना, हिंदी का वरदान।।
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हिंदी सबको जोड़ती, करती है सत्कार।
विपुल शब्द भण्डार है, वैज्ञानिक आधार।।
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भाषा सबको बाँधती, भाषा है अनमोल।
हिंदी-उर्दू मिल गले, देती हैं रस-घोल।।
*
सब भाषा को मान दें, रखें सभी का ज्ञान।
हिंदी अपनी शान है, हिन्दी है अभिमान।।
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हिंदी हिंदुस्तान की, सदियों से पहचान।
हिंदीजन मिल कर करें, हिंदी का उत्थान।।
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हँस कर कोयल ने कहा, आया रे! मधुमास।
दिशा-दिशा में छा गया, फागुन का उल्लास।।
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झूमे सरसों खेत में, बौराए हैं आम।
दहके फूल पलास के, हुई सिंदूरी शाम।।
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दिन फागुन के आ गए, सूना गोकुल धाम।
मन राधा का पूछता, कब आयेंगे श्याम।।
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होली के हुड़दंग में, निकले मस्त मलंग।
किसको यारों होश है, पीकर ठर्रा-भंग।।
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टूटी कड़ियाँ फिर जुड़ीं, जुड़े दिलों के तार।
प्रेम-रंग में रँग गया, होली का त्यौहार।।
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होरी-चैती गुम हुई, गुम फगुआ की तान।
धीरे-धीरे मिट रही, होली की पहचान।।
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भूखा बच्चा के लिए, क्या होली, क्या रंग?
फीके रंग गुलाल हैं, जीवन है बदरंग।।
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दुख जीवन से दूर हो, खुशियाँ मिले अपार।
नूतन नई उमंग हो, फागुन रंग बहार।।
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हिमकर इस संसार में, सबकी अपनी पीर।
एक रंग में सब रँगे, राजा, रंक, फकीर।।
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आफ़त में है जिंदगी, उलझे हैं हालात।
कैसा यह जनतंत्र है, जहाँ न जन की बात।।
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आँखों का पानी मरा, कहाँ बची है शर्म।
सब के सब बिसरा गए, जनसेवा का कर्म।।
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जब तक कुर्सी ना मिली, देश-धर्म से प्रीत।
सत्ता आई हाथ जब, वही पुरानी रीत।।
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एकहि साँचे में ढले, नेता पक्ष-विपक्ष।
मिलकर लूटें देश को, मक्कारी में दक्ष।।
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कैसा यह उन्माद है, सर पर चढ़ा जूनून
ख़ुद ही मुंसिफ़ तोड़ते, बना-बना कानून।।
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नाहक यह तकरार है, नकली है तलवार।
राजनीति के खेल में, राष्ट्रवाद हथियार।।
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सरहद पर सैनिक मरे, मरता दीन किसान।
बदल रहा है दोस्तों, अपना हिंदुस्तान।।
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योगी का अब राज है, योगी मालामाल।
माया-ममता छोड़िए, भगवा बड़ा कमाल।।
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मौसम देख चुनाव का, उमड़ा जन से प्यार।
बदला-बदला लग रहा, फिर उनका व्यवहार।।
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राजनीति के खेल में, सबकी अपनी चाल।
मुद्दों पर हावी दिखे, जाति-धर्म का जाल।।
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लोकतंत्र के पर्व का, खूब हुआ उपहास।
दागी-बागी सब भले, शत्रु हो गए खास।।
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रातों-रात बदल गए, नेताओं के रंग।
कलतक जिसके साथ थे, आज उसी से जंग।।
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मौका आया हाथ में, अब न सहें संताप।
पछताएँगे फिर बहुत, मौन रहे जो आप।।
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जाँच-परख कर देखिए, किसमें कितना खोट?
सोच-समझ कर दीजिए, अपना-अपना वोट।।
* २९
वैरी अपना हो गया, उमड़ा मन में प्यार।
सत्ता पाने के लिए, बदल गया व्यवहार।।
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सिर पर लादे बोरिया, दिखे थकन से चूर।
स्वेद बहाते रात-दिन, बेबस दीन मजूर।।
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मालिक तो है मौज में, कर शोषण भरपूर।
हक़-हक़ूक से-दूर हैं, मेहनतकश मजदूर।।
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पानी वायु गगन धरा, हुए प्रदूषण-ग्रस्त।
जीना दूभर हो गया, हर प्राणी है त्रस्त।।
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नष्ट हो रही संपदा, दोहन है भरपूर।
विलासिता की चाह ने, किया प्रकृति से दूर।।
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जहर उगलती मोटरें, कोलाहल चहुँ ओर।
हर पल पीछा कर रहे, हल्ला-गुल्ला शोर।।
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आँगन की तुलसी कहाँ, दिखे नहीं अब नीम।
जामुन-पीपल कट गए, ढूँढे कहाँ हकीम।।
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पक्षी,बादल गुम हुए, सूना है आकाश।
आबोहवा बदल गयी, रुकता नहीं विनाश।।
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शहरों के विस्तार में, खोए पोखर-ताल।
हर दिन पानी के लिए, होता ख़ूब बवाल।।
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नदियाँ जीवनदायिनी, रखिए इनका मान।
कूड़ा-कचड़ा डालकर, मत करिए अपमान।।
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ये विपदाएँ प्राकृतिक, करतीं हमें सचेत।
मौसम का बदलाव भी, कहता मानव चेत।।
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कुदरत का बरपा कहर, रूप बड़ा विकराल।
धरती जब-जब डोलती, आता है भूचाल।।
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कुदरत तो अनमोल है, इसका नहीं विकल्प।
पर्यावरण की सुरक्षा, सबका हो संकल्प।।
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सावन में धरती लगे, तपता रेगिस्तान।
सूना अंबर देखकर, हुए लोग हैरान।।
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कहाँ छुपे हो मेघ तुम, बरसाओ अब नीर।
पथराए हैं नैन भी, बचा न मन में धीर।।
*
बिन पानी व्याकुल हुए, जीव-जंतु इंसान।
अपनी किस्मत कोसता, रोता बैठ किसान।।
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सूखे-दरके खेत हैं, कैसे उपजे धान?
मानसून की मार से, खेती को नुकसान।।
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खुशियों के लाले पड़े, बढ़े रोज संताप।
मौसम भी विपरीत है, कैसा है अभिशाप।।
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सूखे पोखर, ताल सब, रूठी है बरसात।
सूखे का संकट हरो, विनती सुन लो नाथ।।
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जमकर बरसो मेघ अब, भर दो पोखर-ताल।
प्यासी धरती खिल उठे, हो जीवन खुशहाल।।
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चंचल मोहक तितलियाँ, रंग-बिरंगे पंख।
करती हैं अठखेलियाँ, हँस फूलों के संग।।
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बगिया में रौनक नहीं, उपवन है बेरंग।
कहाँ तितलियाँ गुम हुईं, लेकर सारा रंग।।
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चाक घुमा कर हाथ से, गढ़े रूप-आकार।
समय चक्र घोमा हुआ, है कुम्हार लाचार।।
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चीनी झालर से हुआ, चौपट कारोबार।
मिट्टी के दीये लिए, बैठा रहा कुम्हार।।
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माटी को मत भूल तू, माटी के इंसान।
माटी का दीपक बने, दीप पर्व की शान।।
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सज-धजकर तैयार है, धनतेरस बाजार।
महँगाई को भूलकर, लुटने जन तैयार।।
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सुख, समृद्धि, सेहत मिले, बढ़े खूब व्यापार।
घर, आँगन रौशन रहे, दूर रहे अँधियार।।
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कोई मालामाल है, कोई है कंगाल।
दरिद्रता का नाश हो, मिटे भेद विकराल।।
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चकाचौंध में खो गयी, घनी अमावस रात।
दीप तले छुप कर करे, अँधियारा आघात।।
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दीपों का त्यौहार यह, लाए शुभ संदेश।
कटे तिमिर का जाल अब, जगमग हो परिवेश।।
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ज्योति पर्व के दिन मिले, कुछ ऐसा वरदान।
ख़ुशियाँ बरसे हर तरफ़, सबका हो कल्याण।।
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दर्ज़ हुई इतिहास में, फिर काली तारीख़।
मानवता आहत हुई, सुन बच्चों की चीख़।।
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कब्रगाह में भीड़ है, सिसके माँ का प्यार।
सारी दुनिया कह रही, बार-बार धिक्कार।।
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मंसूबे जाहिर हुए, करतूतें बेपर्द।
झूठा यह जेहाद है, कायर दहशतगर्द।।
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हम देखें कब तक भला, यूँ ही कत्लेआम।
हिंसा-दहशत पर लगे, अब तो तुरत लगाम।।
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दुःख सबका है एक सा, क्या मज़हब, क्या देश?
पर पीड़ा जो बाँट ले, वही संत दरवेश।।
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घर-आँगन सूना लगे, ख़ाली रोशनदान।
रोज़ सवेरे झुण्ड में, आते थे मेहमान।।
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प्यारी चिड़ियाँ गुम हुई, लेकर मीठे गान।
उजड़ गए सब घोंसले, संकट में है जान।।
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चहक-चहक मन मोहती, चंचल शोख़ मिज़ाज।
बस यादों में शेष है, चूं-चूं की आवाज़।।
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बाग़-बगीचों की जगह, आँगन बिना मकान।
गोरैया रूठी हुई, दोषी खुद इंसान।।
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कहाँ हमारी सहचरी, बच्चों की मुस्कान।
दाना-पानी दें उसे, गूँजे कलरव गान।।
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उजड़ गयीं सब बस्तियाँ, घाव बना नासूर।
विस्थापन का दंश हम, सहने को मजबूर।।
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जल, जंगल से दूर हैं, वन के दावेदार।
रोजी-रोटी के लिए, छूटा घर-संसार।।
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जन-जन में है बेबसी, बदतर हैं हालात।
कैसा अबुआ राज है, सुने न कोई बात।।
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हुए ण पूरे अभी तक, बिरसा के अरमान।
शोषण-पीड़ा है वही, मिला नहीं सम्मान।।
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अस्थिरता-अविकास से, रूठी है तक़दीर।
बुनियादी सुविधा नहीं, किसे सुनाएँ पीर।।
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सामूहिकता-सादगी, स्नेह प्रकृति के गान।
नए दौर में गुम हुई, सब आदिम पहचान।।
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ढाक-साल सब खिल गए, मन मोहे कचनार।
वन प्रांतर सुरभित हुए, वसुधा ज्यों गुलनार।।
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प्रकृति-प्रेम आराधना, सरहुल का त्योहार।
हरी-भरी धरती रहे, सुखी सभी घर-बार।।
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जवा फूल तैयार हैं, गड़े करम के डार।
धरम-करम का मेल है, करमा का त्योहार।।
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कोई भूखा सो रहा, कोई मालामाल।
कोई देखे मुफलिसी, कोई है खुशहाल।।
* ८०
राहें चाहें हों अलग, जुदा नहीं भगवान।
कोई गाता है भजन, कोई पढ़े अजान।।
*
फीका-फीका क्यों लगे, सावन का त्यौहार?
झूले-कजरी हैं कहाँ, कहाँ मेघ-मल्हार।।
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भूले लोक-रिवाज़ हम, बदली सारी रीत।
यादों में ही रह गया, अब देशज संगीत।।
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हँसी-ठिठोली है कहीं, कहीं बहे है नीर।
मँहगाई की मार से, टूट रहा है धीर।।
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अपनी-अपनी चाकरी, उलझे सब दिन-रात।
बूढ़ी आँखें खोजतीं, अब अपनों का साथ।।
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अमन-चैन से सब रहें, बन सच्चे इंसान।
रहे न मन में रंजिशें, बचा रहे ईमान।।
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शीतल, उज्जवल रश्मियाँ, बरसे अमृत धार।
नेह लुटाती चाँदनी, कर सोलह श्रृंगार।।
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शरद पूर्णिमा रात में, खिले कुमुदनी फूल।
रास रचाए मोहना, कालिंदी के कूल।।
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सोलह कला मयंक की, आश्विन पूनो ख़ास।
माँ श्री उतरीं धरा पर, आया कार्तिक मास।।
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लक्ष्मी की आराधना, अमृतमय पय-पान।
पूर्ण हो मनोकामना, बढ़े मान-सम्मान।।
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रूप सलोना श्याम का, मनमोहन चितचोर।
कहतीं ब्रज की गोपियाँ, नटखट माखन चोर।।
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निरख रही माँ यशोदा, झूमा गोकुल धाम।
राधा के मन में बसे, बंसीधर घनश्याम।।
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सुध-बुध खोई राधिका, सुन मुरली की तान।
अर्जुन की आँखें खुली, पाकर गीता ज्ञान।।
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झूठे माया-मोह सब, सच्चा है हरिनाम।
राग-द्वेष को त्याग कर, रहें सदा निष्काम।।
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पाप निवारण के लिए, लिया मनुज अवतार।
लीलाधारी कृष्ण की, महिमा अपरंपार।।
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आज़ादी बेशक़ मिली, मन से रहे गुलाम।
हिंदी भाषाउपेक्षित, मिला न उचित मुक़ाम।।
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सरकारें चलती रहीं, मैकाले की चाल।
हिन्दी अपने देश में, अवहेलित बदहाल।।
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भ्रष्ट व्यवस्था हो गई, कीर्तिमान की खान।
सरकारें आईं-गईं, चलती रही दुकान।।
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नेताजी हैं मौज में, जनता भूखी-दीन।
झूठे वादे नित करें, मन से सभी मलीन।।
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बेमौसम बरसात से, फसलें हुईं तबाह।
खाली हाथ किसान के, मुँह से निकले आह।। १००
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ॐ doha shatak rita sivani
दोहा शतक
रीता सिवानी
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चार कदम तुम प्यार के, बढ़ लो मेरी ओर।
जिन्हें पता ही यह नहीं, लज्जा का क्या नूर।
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आडंबर से धर्म के, फैले बहुत विकार।
धर्म सभी देते सदा, प्रेम भरे पैगाम।
बिन छेड़े डसते नहीं, कभी किसी को साँप।
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पेड़ काट हमने सभी, जंगल दिए उजाड़ ।
उमड़ रहे दिल में मगर, नफ़रत के सैलाब।।
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रोटी की ख़ातिर बसें, जाकर कोसों दूर।।
बनी नहीं जग में अभी, कोई कहीं किताब।
माँ के आँचल में मिली, जैसी हमको छाँव।
अपना था समझा जिसे, किया उसी ने घात।
चाहे जितना यत्न कर, रख कितना सामान ।
रोग लगा 'मैं' का जिन्हें, समझे किसकी बात।
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पूजे जाने का नहीं, है उसका अरमान ।
जलन ईर्ष्या छोड़कर, जी से करना वाह।
छोड़ अभी आलस्य तू, पकड़ कर्म की राह।
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अभिलाषा शहरी हुई, रोकर बोला गाँव।
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जीवन का सोचो ज़रा, क्या होगा तब अर्थ।
जलती जब दिल में धधक, बैर घृणा की आग।
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आजादी के हो गए, पूरे सत्तर साल।
गलती अपनी कब दिखे, जिनके सर अभिमान ।
सवैया सलिला 1: वागीश्वरी सवैया
गले आ लगो या गले से लगाओ, तिरंगी पताका उड़ाओ।
कहो भी, सुनो भी, न बातें बनाओ, भुला भेद सारे न जाओ।।
जरा पंछियों को निहारो, न जूझें, रहें साथ ही ये हमेशा
न जोड़ें, न तोड़ें, न फूँकें, न फोड़ें, उड़ें साथ ही ये हमेशा।।
विधान: सात यगण प्रति पंक्ति ।
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गुरुवार, 29 मार्च 2018
chitra alankar
दोहा सलिला
बुधवार, 28 मार्च 2018
वंदे मातरम गायिका अनवरी बहनें
वंदे मातरम की स्वर लहरियाँ बिखेरतीं ६ सगी मुस्लिम बहनें
पिछले दिनों मुस्लिमों द्वारा वन्देमातरम् न गाने के दारूउलम के फतवे पर निगाह गई तो उसी के साथ ऐसे लोगों पर भी समाज में निगाह गई जो इस वन्देमातरम् को धर्म से परे देखते और सोचते हैं। मशहूर शायर मुनव्वर राना ने तो ऐसे फतवों की प्रासंगिकता पर प्रश्नचिन्ह लगाते हुए यहाँ तक कह दिया कि वन्देमातरम् गीत गाने से अगर इस्लाम खतरे में पड़ सकता है तो इसका मतलब हुआ कि इस्लाम बहुत कमजोर मजहब है। प्रसिद्ध शायर अंसार कंबरी तो अपनी भावनाओं को व्यक्त करते हैं-मस्जिद में पुजारी हो और मंदिर में नमाजी/हो किस तरह यह फेरबदल, सोच रहा हूँ। ए.आर. रहमान तक ने वन्देमातरम् गीत गाकर देश की शान में इजाफा किया है। ऐसे में स्वयं मुस्लिम बुद्धिजीवी ही ऐसे फतवे की व्यवहारिकता पर प्रश्नचिन्ह लगाते हैं। वरिष्ठ अधिवक्ता ए.जेड. कलीम जायसी कहते है कि इस्लाम में सिर्फ अल्लाह की इबादत का हुक्म है, मगर यह भी कहा गया है कि माँ के पैरों के नीचे जन्नत होती है। चूंकि कुरान में मातृभूमि को माँ के तुल्य कहा गया है, इसलिये हम उसकी महानता को नकार नहीं सकते और न ही उसके प्रति मोहब्बत में कमी कर सकते हैं। भारत हमारा मादरेवतन है, इसलिये हर मुसलमान को इसका पूरा सम्मान करना चाहिये।
वन्देमातरम् से एक संदर्भ याद आया। हाल ही में युवा प्रशासक-साहित्यकार कृष्ण कुमार यादव के जीवन पर जारी पुस्तक ‘‘बढ़ते चरण शिखर की ओर‘‘ के पद्मश्री गिरिराज किशोर द्वारा लोकार्पण अवसर पर छः सगी मुस्लिम बहनों ने वंदेमातरम्, सरफरोशी की तमन्ना जैसे राष्ट्रभक्ति गीतों का शमां बाँध दिया। कानपुर की इन छः सगी मुस्लिम बहनों ने वन्देमातरम् एवं तमाम राष्ट्रभक्ति गीतों द्वारा क्रान्ति की इस ज्वाला को सदैव प्रज्जवलित किये रहने की कसम उठाई है। राष्ट्रीय एकता, अखण्डता, बन्धुत्व एवं सामाजिक-साम्प्रदायिक सद्भाव से ओत-प्रोत ये लड़कियाँ तमाम कार्यक्रमों में अपनी सशक्त उपस्थिति दर्ज कराती हैं। वह 1857 की 150वीं वर्षगांठ पर नानाराव पार्क में शहीदों की याद में दीप प्रज्जवलित कर वंदेमातरम् का उद्घोष हो, गणेश शंकर विद्यार्थी व अब्दुल हमीद खांन की जयंती हो, वीरांगना लक्ष्मीबाई का बलिदान दिवस हो, माधवराव सिन्धिया मेमोरियल अवार्ड समारोह हो या राष्ट्रीय एकता से जुड़ा अन्य कोई अनुष्ठान हो। इनके नाम नाज मदनी, मुमताज अनवरी, फिरोज अनवरी, अफरोज अनवरी, मैहरोज अनवरी व शैहरोज अनवरी हैं। इनमें से तीन बहनें- नाज मदनी, मुमताज अनवरी व फिरोज अनवरी वकालत पेशे से जुड़ी हैं। एडवोकेट पिता गजनफरी अली सैफी की ये बेटियाँ अपने इस कार्य को खुदा की इबादत के रूप में ही देखती हैं। १७ सितम्बर २००६ को कानपुर बार एसोसिएशन द्वारा आयोजित हिन्दी सप्ताह समारोह में प्रथम बार वंदेमातरम का उद्घोष करने वाली इन बहनों ने २४ दिसम्बर २००६ को मानस संगम के समारोह में पं0 बद्री नारायण तिवारी की प्रेरणा से पहली बार भव्य रूप में वंदेमातरम गायन प्रस्तुत कर लोगों का ध्यान आकर्षित किया। मानस संगम के कार्यक्रम में जहाँ तमाम राजनेता, अधिकारीगण, न्यायाधीश, साहित्यकार, कलाकार उपस्थित होते हैं, वहीं तमाम विदेशी विद्वान भी इस गरिमामयी कार्यक्रम में अपनी उपस्थिति दर्ज कराते हैं।
तिरंगे कपड़ों में लिपटी ये बहनें जब ओज के साथ एक स्वर में राष्ट्रभक्ति गीतों की स्वर लहरियाँ बिखेरती हैं, तो लोग सम्मान में स्वतः अपनी जगह पर खड़े हो जाते हैं। श्रीप्रकाश जायसवाल, डा0 गिरिजा व्यास, रेणुका चैधरी, राजबब्बर जैसे नेताओं के अलावा इन बहनों ने राहुल गाँधी के समक्ष भी वंदेमातरम् गायन कर प्रशंसा बटोरी। १३ जनवरी २००७ को जब एक कार्यक्रम में इन बहनों ने राष्ट्रभक्ति गीतों की फिजा बिखेरी तो राष्ट्रीय महिला आयोग की अध्यक्षा डाॅ0 गिरिजा व्यास ने भारत की इन बेटियों को गले लगा लिया। २५ नवम्बर २००७ को कानुपर में आयोजित राष्ट्रीय एकता सम्मेलन में इन्हें ‘‘संस्कृति गौरव‘‘ सम्मान से विभूषित किया गया। १९ अक्टूबर २००८ को ‘‘सामाजिक समरसता महासंगमन‘‘ में कांग्रेस के महासचिव एवं यूथ आईकान राहुल गाँधी के समक्ष जब इन बहनों ने अपनी अनुपम प्रस्तुति दी तो वे भी इनकी प्रशंसा करने से अपने को रोक न सके। वन्देमातरम् जैसे गीत का उद्घोष कुछ लोग भले ही इस्लाम धर्म के सिद्वान्तों के विपरीत बतायें पर इन बहनों का कहना है कि हमारा उद्देश्य भारत की एकता, अखण्डता एवं सामाजिक सद्भाव की परम्परा को कायम रखने का संदेश देना है। वे बेबाकी के साथ कहती हैं कि देश को आजादी दिलाने के लिए हिन्दू-मुस्लिम क्रान्तिकारियों ने एक स्वर में वंदेमातरम् का उद्घोष कर अपना सर्वस्व बलिदान कर दिया तो हम भला इन गीतों द्वारा उस सूत्र को जोड़ने का प्रयास क्यों नहीं कर सकते हैं। राष्ट्रीय एकता एवं समरसता की भावना से परिपूर्ण ये बहनें वंदेमातरम् एवं अन्य राष्ट्रभक्ति गीतों द्वारा लोगों को एक सूत्र में जोड़ने की जो कोशिश कर रही हैं, वह प्रशंसनीय व अतुलनीय है। क्या ऐसे मुद्दों को फतवों से जोड़ना उचित है, आप भी सोचें-विचारें !!