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मंगलवार, 1 फ़रवरी 2011

नर्मदा घाटी में जैव विविधता

नर्मदा घाटी में जैव विविधता

आभार :  नर्मदा समग्र
जीवाश्म पार्क 
जीवाश्म पार्क नर्मदा अंचल के वन न केवल जैव विधिता की दृष्टि से समृद्ध हैं बल्कि कुछ मायनों में अद्वितीय भी हैं । उदाहरण के लिए भारत में साल के वनों की दक्षिणी सीमा और सागौन के वन यहाँ एक साथ मिलते हैं । ये वन हिमालय और पश्चिमी घाट के बीच में स्थित जैव विविधता से परिपूर्ण गलियारे जैसे हैं । यहाँ अचानकमार से पेंच तक तथा सतपुडा-बोरी से मेलघाट तक फैले बाघ के 2 बडे रहवास क्षेत्रों का भाग पडता है जिनमें अनेक प्रकार के दुर्लभ प्राणी और वनस्पतियाँ आज भी पाए जाते हैं । इन वनों में पाये जाने वाले अनेक औषधीय पौधे आज भी गाँवों की परम्परागत चिकित्सा पद्धति का महत्वपूर्ण अंग हैं ।

नर्मदा का उद्गम स्थल अमरकंटक तो अपनी प्रचुर जैव विविधता के लिए विख्यात है ही, नर्मदा बेसिन के मध्य में स्थित पचमढी का पठार व छिंदवाडा जिले की पातालकोट घाटी भी समृद्ध जैव विविधता के लिए जानी जाती है । अमरकण्टक के वनों में अनेक प्रकार के औषधीय पौधों की भरमार है । यहाँ गुल-बकावली का प्रसिद्ध पौधा भी मिलता है जिसके अर्क को आंखों के रोगों में, विशेषकर मोतियाबिन्द के इलाज में काफी प्रभावशाली बताया जाता है । परम्परागत भारतीय तथा चीनी उपचार पद्धति में गुल-बकावली का उपयोग काफी होता है । पचमढी और छिंदवाडा में देलाखारी के पास पाया जाने वाला साल वन यहाँ की उल्लेखनीय विशेषता है । इस क्षेत्र की एक अन्य विशेषता यह है कि यहां मध्यप्रदेश के प्रमुख वन प्रकारों में से दो, साल तथा सागौन दोनों का मिलन स्थल होता है । साल की विशेष उल्लेखनीय उपस्थिति के साथ-साथ पचमढी क्षेत्र से लगभग 1200 वनस्पति प्रजातियाँ दर्ज की गई हैं जिनमें से कुछ प्रजातियों की प्रकृति हिमालय पर्वत की वनस्पतियों जैसी है जबकि कुछ अन्य पश्चिमी घाट के वनों जैसी । पचमढी की वनस्पति में कुछ ऐसे विशिष्ट पौधे भी हैं जिनके वनस्पतिक कुल में वही एक प्रजाति है ।

यहां पर कई प्रकार के टेरीडोफाइट्स तथा औषधीय पौधे मिलते हैं । जीवित जीवाश्म कहेक जाने वाले पौधे साइलोटम न्यूडम के प्राकृतिक अवस्था में म0प्र0 में मिलने का एकमात्र स्थान यही है ट्री फर्न साइथिया जाइजेन्टिआ व अन्य कई दुर्लभ फर्न प्रजातियाँ भी यहां मिलती हैं । यहाँ दुर्लभ बांस प्रजाति बेम्बूसा पॉलीर्माफा भी बोरी के वनों में पाई जाने वाली विशेषता है । छिंदवाडा जिले में स्थित पातालकोट घाटी जैव विविधता की दृष्टि से नर्मदा घाटी का दूसरा अति समृद्ध क्षेत्र है । पठार की ऊंचाई से 300-400 मी0 गहराई में बसी हुई पातालकोट घाटी से नर्मदा की सहायक दूधी नदी निकलती है । यहाँ साल, सागौन और मिश्रित तीनों प्रकार के वन पाए जाते हैं जिनमें 83 वनस्पतिक कुलों की 265 से अधिक औषधीय प्रजातियाँ मिलती हैं । विश्व प्रकृति निधि द्वारा संवेदनशील पारिसिथतिक अंचलों के वर्गीकरण में नर्मदा घाटी शुष्क पर्णपाती वन को एक विशिष्ट पहचान देते हुए इको रीजन कोड 0207 आवंटित किया गया है । यह क्षेत्र रोजर्स और पवार (1988) द्वारा दिए गए जैविक-भू वर्गीकरण के जैवीय अंचल 6ई-सेन्ट्रल हाईलैण्ड्स से मिलता-जुलता है । उत्तर में विन्ध्य और दक्षिण में सतपुडा पर्वत श्रेणियों से घिरे 500 वर्ग कि0मी0 से भी अधिक क्षेत्र में फैले इस अंचल को बाघ संरक्षण की दृष्टि से अत्यंन्त महत्वपूर्ण क्षेत्र माना गया है । इस क्षेत्र में स्तनधारी वर्ग के वन्य प्रााणियों की 76 प्रजातियाँ पाई जाती हैं जिनमें बाघ, गौर (बॉयसन), जंगली कृष्णमृग आदि सम्मिलित हैं। यहां 276 प्रजातियों के पक्षी भी मिलते हैं । इसके अतिरिक्त यहाँ सरीसृपों कीटों व अन्य जलीय व स्थलीय प्राणियों की प्रचुर विविधता है । विश्व प्रकृति निधि ने इस पारिस्थितिक अंचल को संकटापन्न की श्रेणी में रखा है । इस अंचल में विशेषकर सतपुडा पर्वत श्रेणी के वनों में वन्य जैव विविधता की भरमार है । यह पूरा क्षेत्र प्राकृतिक सौंदर्य, वनस्पतियों वन्य प्राणियों और खनिजों की अपार संपदा से भरा पडा है । जैविक विविधता से परिपूर्ण सतपुडा तथा विन्ध पर्वत श्रृंखलाओं के पहाड नर्मदा घाटी को न केवल प्राकृतिक ऐश्वर्य बल्कि समृद्धि और पर्यावरणीय सुरक्षा भी प्रदान करते हैं । वन्य जन्तुओं की दृष्टि से भी यह पूरा अंचल काफी समृद्ध है । जूलाजिकल सर्वे ऑफ इण्डिया के मध्य अंचल कार्यालय जबलपुर द्वारा नर्मदा घाटी में पाये जाने वाले कशेरूकीय प्राणियों की प्रजातियों की संख्या के संबंध में विशेष रूप से दी गई जानकारी निम्न है ।

तालिका : नर्मदा घाटी में प्राणियों की विविधता

प्राणी वर्ग म0प्र0 व छत्तीसगढ में ज्ञात प्रजातियों की संख्या नर्मदा घाटी में ज्ञात प्रजातियों की संख्या
मत्स्य 172 72
उभयचर 18 8
सरीसृप 80 21
पक्षी 517 120
स्तनधारी 98 41
कुल प्रजातियाँ 885 262



राज्य की वन्य जैव विविधता के संरक्षण के लिए स्थापित किए गए संरक्षण क्षेत्रों में से 11 नर्मदा अंचल में पडते हैं । इन संरक्षित क्षेत्रों का क्षेत्रफल 5418.27 वर्ग कि0मी0 है जो नर्मदा बेसिन के कुल क्षेत्रफल का लगभग 5.5 प्रतिशत तथा प्रदेश के समस्त संरक्षित क्षेत्रों के कुल क्षेत्रफल का लगभग 30.2 प्रतिशत है । जैव विविधता के संरक्षण को मजबूती देने के लिए शासन द्वारा कुछ वर्ष पहले म0प्र0 जैव विविधता बोर्ड का गठन किया गया है जो इस विषय पर कार्यरत है ।

नर्मदा अंचल में वन्यप्राणी संरक्षण क्षेत्र

वन्य जैव विविधता के संरक्षण के लिए प्रदेश के चयनित वन क्षेत्रों में राष्ट्रीय उद्यानों तथा अभयारण्यों की स्थापना की गई है जिनमें से नर्मदा अंचल में 3 राष्ट्रीय उद्यान (चौथा ओंकारेश्वर राष्ट्रीय उद्यान प्रस्तावित) तथा 8 वन्य प्राणी अभयारण्य हैं ।

तालिका : नर्मदा अंचल में वन्य जैव विविधता के भण्डारः राष्ट्रीय उद्यान और वन्यवाणी अभयारण्य
जिला
राष्ट्रीय उद्यान
अभयारण्य टीप
नाम क्षेत्रफल(वर्ग कि.मी.) नाम क्षेत्रफल(वर्ग कि.मी.)
1 2 3 4 5 6
डिंडोरी फॉसिल 0.27 - - 6 करोड वर्ष पुरान जीवाश्म
मण्डला कान्हा 940 फेन 111.00 विश्व प्रसिद्ध राष्ट्रीय उद्यान
सागर - नौरादेही 1197.00
रायसेन -
-
सिंघोरी 288.00 -
रातापानी 824.00
होशंगाबाद सतपुडा 524.00 बोरी 646.00 गौर,बाघ, प्रोजेक्ट टाइगर
पचमढी 417.00
देवास खिवनी 123.00
धार सरदारपुर 348.00 खरमौर पक्षी


फॉसिल राष्ट्रीय उद्यान - नर्मदा बेसिन के प्रारंभिक भाग में डिंडोरी जिले में पडने वाले फॉसिल राष्ट्रीय उद्यान का वर्तमान जैव विविधता के संरक्षण के परिप्रेक्ष्य में उतना महत्व नहीं हैं जितना करोडों वर्ष पूर्व इस क्षेत्र मेंविद्यामान रही जीव प्रजातियों के जीवाश्मों के संरक्षण की दृष्टि से है ।

नौरादेही अभयारण्य - नर्मदा अंचल में पडने वाले सागर, दामोह व नरसिंहपुर जिलों में लगभग 1197 वर्ग कि0मी0 सागौन तथा मिश्रित वनों में फैले नौरादेही अभयारण्य में नर्मदा के अतिरिक्त गंगा, कछार का भाग भी आता है । इस अभयारण्य में शेर, तेंदुआ, भेडया, सोनकुत्ता, लोमडी, नीलगाय, सांभर, चीतल, चिंकारा, भालू आदि वन्य प्राणी प्रमुखता से पाए जाते हैं ।

कान्हा राष्ट्रीय उद्यान व फेन अभयारण्य -म0प्र0 के गौरव के रूप में प्रसिद्ध कान्हा राष्ट्रीय उद्यान मण्डला एवं बालाघाट जिलों में लगभग 940 वर्ग कि0मी0 वनक्षेत्र में फैला है । इस राष्ट्रीय उद्यान के बाहर लगभग 1005 वर्ग कि0मी0 क्षेत्र को ’बफर जोन‘ घोषित किया गया है जो मुख्य क्षेत्र (कोर एरिया) के चारों तरफ एक सुरक्षा कवच बनाता है । यह भारत के सबसे पुराने वन्य प्राणी संरक्षित क्षेत्रों में से एक है । कान्हा राष्ट्रीय उद्यान अन्य वन्य प्राणियों के अतिरिक्त म0प्र0 के राज्य पशु बारहसिंघा के एकमात्र रहवास स्थल के रूप में प्रसिद्ध है । यहाँ शेर, तेंदुआ, बारहसिंघा, सियार, सोनकुत्ता, सांभर, चीतल, चिंकारा, रीछ, लकडबघ्घा, कृष्णमृग, गौर, नीलगाय, चौसिंघा, भेडकी, लंगूर आदि के अतिरिक्त पक्षियों की अनेक प्रजातियाँ भी पाई जाती हैं । इस राष्ट्रीय उद्यान में सागौन और मिश्रित वनों के अतिरिक्त साल वन भी मिलते हैं । यहां बाघ परियोजना भी लागू है । कान्हा राष्ट्रीय उद्यान का काफी क्षेत्र नर्मदा की सहायक बंजर नदी के जलागम में आता है । कान्हा राष्ट्रीय उद्यान के निकट ही फेन अभयारण्य स्थित है । लगभग 111 वर्ग कि0मी0 क्षेत्र में फैले हुए इस अभयारण्य में साल एवं बांस के अच्छे वन हैं जिनमें शेर, तेंदुआ, चीतल सांभर एवं जंगली सुअर आदि वन्य प्राणी पाए जाते हैं ।
स

सतपुडा वन्य प्राणी संरक्षित क्षेत्र -सतपुडा वन्य प्राणी संरक्षित क्षेत्र होशंगाबाद जिले के अंतर्गत स्थित है जिसमें सतपुडा राष्ट्रीय उद्यान तथा बोरी और पचमढी अभयारण्य आते हैं। इस क्षेत्र में 50 से अधिक नदी नालों के उद्गम हैं और जैव विविधता की दृष्टि से यह क्षेत्र संपन्न है। सतपुडा राष्ट्रीय उद्यान का क्षेत्रफल 524 वर्ग कि0मी0 है जबकि बोरी और पचमढी अभयारण्य का क्षेत्रफल क्रमशः 646 वर्ग कि0मी0 तथा 417 वर्ग कि0मी0 है । यह संरक्षित क्षेत्र जैव विविधता की दृष्टि से जितना महत्वपूर्ण है, उतना ही रोमांचकारी भी है । प्राकृतिक दृश्यों की सुंदरता से भरपूर इस क्षेत्र में शेर, तेंदुआ, गौर, सांभर, चीतल इत्यादि के अतिरिक्त लुप्तप्रायः भारतीय बडी गिलहरी भी पाई जाती है। अनेक प्रकार की औषधीय वनस्पतियों की प्रचुरता इस क्षेत्र की विशिष्टता है। इसके अतिरिक्त इस संरक्षित क्षेत्र में अनेक प्राकृतिक गुफाएं हैं जिनमें बने शैलचित्रों से इस क्षेत्र में आदिकाल से मानव वास का पता चलता है । इस क्षेत्र के वनों को देश का प्रथम आरक्षित वन होने का गौरव भी प्राप्त है । यहां साल, सागौन और मिश्रित तीनों प्रकार के वन पाए जाते हैं । म0प्र0 का एकमात्र पर्वतीय पर्यटन स्थल पचमढी भी यहीं है । नर्मदा की प्रमुख सहायक नदी तवा तथा उसके अपवाह तंत्र की प्रमुख नदियाँ देनवा, सोनभद्रा आदि का इस वन्य प्राणी क्षेत्र पर अच्छा खासा प्रभाव है।


रातापानी तथा सिंघोरी अभयारण्य - सिंघोरी अभयारण्य रायसेन जिले में 288 वर्ग कि0मी0 में तथा रातापानी अभयारण्य रायसेन व सीहोर जिलों में 824 वर्ग कि0मी0 में फैला हुआ है । नर्मदा के उत्तरी तट पर स्थित इन दोनों अभयारण्यों में सागौन वन और मिश्रित वन दोनों ही पाए जाते हैं । यहाँ शेर, तेंदुआ, हिरन, चीतल, सांभर, जंगली सुअर आदि प्रमुखता से पाए जाते हैं । बारना तथा जामनेर जो कि नर्मदा की प्रमुख सहायक नदियाँ हैं, इस क्षेत्र से गुजरती हैं।


खिवनी अभयारण्य - सीहोर और देवास जिलों की सीमा पर स्थित 123 वर्ग कि0मी0 क्षेत्र में फैला खिवनी अभयारण्य इन्दौर के होल्कर राजवंश की शिकारगाह रहे स्थल को संरक्षित करके बनाया गया है । यहां सागौन और मिश्रित वनों के अतिरिक्त बांस क वन भी हैं । इस अभयारण्य में चीतल, सांभर भेडकी, नीलगाय, चौसिंघा जंगली सुअर आदि वन्य प्राणी तथा कई प्रजातियों के पक्षी मिलते हैं।


सरदारपुर अभयारण्य - भारत के कुछ ही प्रांतों में पाए जाने वाले दुर्लभ पक्षी खरमौर के संरक्षण के लिए धार जिले में 348 वर्ग कि0मी0 क्षेत्र में सरदारपुर खरमौर अभयारण्य की स्थापना की गई है । यह पक्षी म0प्र0 में केवल धार, सरदारपुर, रतलाम एवं मंदसौर जिलों में ही मिलता है । इस क्षेत्र में खुली प्रकृति के वन हैं जिनमें सागौन, पलाश, खेजडा, गुनराडी आदि प्रजातियाँ मिलती हैं।
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शनिवार, 11 सितंबर 2010

शोध आलेख: भूगर्भीय हलचल और भूकंपीय श्रंखला : एक दृष्टिकोण --प्रो. विनय कुमार श्रीवास्तव,

शोध आलेख:

भूगर्भीय हलचल और भूकंपीय श्रंखला : 
                                                        एक दृष्टिकोण
                              

प्रो विनय कुमार श्रीवास्तव, 
अध्यक्ष, 
इन्डियन जिओटेक्निकल सोसायटी जबलपुर चैप्टर

विश्व में कहीं न कहीं दो-चार दिनों के अंतराल में छोटे-बड़े भूकंप आते रहते हैं किन्तु भारत के मध्यवर्ती क्षेत्र जिसे सुरक्षित क्षेत्र (शील्ड एरिया) मन जाता है, में भूकम्पों की आवृत्ति भू वैज्ञानिक दृष्टि से अजूबा होने के साथ-साथ चिंता का विषय है. दिनाँक २२ मई १९९७ को आये भीषण भूकंप के बाद १७ अक्टूबर को ५.२ शक्ति के भूकंप ने नर्मदा घाटी में जबलपुर के समीपवर्ती क्षेत्र को भूकंप संवेदी बना दिया है. गत वर्षों में आये ५ भूकम्पों से ऐसा प्रतीत होता है कि १९९७ के भूकंप को छोड़कर उत्तरोत्तर बढ़ती भूकंपीय आवृत्ति का पैटर्न भावी विनाशक भूकंप की पूर्व सूचना तो नहीं है?

विश्व में अन्यत्र आ रहे भूकम्पों पर दृष्टिपात करें तो विदित होता है कि गत ४ वर्षों से भूकंपीय गतिविधियाँ दक्षिण-पूर्व एशिया में केन्द्रित हैं. विश्व के अन्य बड़े महाद्वीपों यथा अफ्रीका, उत्तर अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, दक्षिण अमेरिका तथा यूंरेशिया आदि में केवल १-२ बड़े भूक्न्म आये हैं जबकि भारत, चीन. जापान. ईराक, ईरान, तुर्की, ताइवान, फिल्लिपींस, न्यूजीलैंड्स, एवं इंडोनेशिया में प्रति २-३ दिनों के अन्तराल में कहीं न कहीं एक बड़ा भूकम्प आ जाता है या एक ज्वालामुखी फूट पड़ता है. यहाँ तक कि हिंद महासागर में एक नए द्वीप नव भी जन्म ले लिया है.

दक्षिणी-पूर्व एशिया की भू-गर्भीय हलचलें अब जापान, ताइवान एवं भारत में होनेवाली भूकंपीय गतिविधियों में केन्द्रित हैं. दक्षिण ताइवान में ४ अप्रैल को आये भूकंप (५.२) से प्रारंभ करें तो ५ अप्रैल को माउंट एटनाविध्वंसक विस्फोट के साथ सक्रिय हुआ. इसके साथ ही भारत में ७, ११ एवं २७ अप्रैल को क्रमशः महाराष्ट्र, त्रिपुरा एवं शिमला में तथा २ मई को छिंदवाड़ा में भूकंप के झटके महसूस किये गए. २५ मई को कोयना में झटके आये तथा २६ मई को नए द्वीप का जन्म हुआ. दिनांक ३.६.२०० को सुमात्रा में ७.९ तीव्रता का भूकंप आया. ५.६.२००० को तुर्की में ५.९ तीव्रता का, ७ व ८ जून को क्रमशः जापान (४.४), म्यांमार (६.५), अरुणांचल (५.८), सुमात्रा (६.२) तथा १०-११ जून को ताइवान(६.७) व (५.०) तीव्रता के भूकम्पों ने दिल दहला दिया. 
इसके अतिरिक्त १६ से २० जून के बीच ७.५ से ४.९ तीव्रता के भूकम्पों की एक लम्बी श्रंखला कोकस आईलैंड्स, इंडोनेशिया, ताइवान, मनीला, लातूर, शोलापुर, उस्मानाबाद आदि स्थानों में रही. २३.६.२०० नागपुर एवं चंद्रपुर (२.८) २५.६.  २००० जापान (५.६) के अतिरिक्त इम्फाल, शिलोंग, व म्यांमार (४.२) में भी भूकप का झटके कहर ढाते रहे.    
५ जुलाई २००० को जापान में ४ झटके, ७ जुलाई को भारत में खरगौन तथा ८ जुलाई को जापान में ज्वालामुखीय उदगार, ११ जुलाई को जापान में बड़ा भूकंप, १३ जुलाई को जापान में बड़ा सक्रिय ज्वाला मुखी १८ से २४ जुलाई तक जापान में २, ताईवान में ३ एवं एवं इंडोनेशिया में १ भूकंप दर्ज हुआ जिसके साथ भारत में पंधाना, भावनगर एवं कराड में झटके महसूस किये गए. २ अगस्त को उत्तरी जापान में तीसरा ज्वालामुखी सक्रिय रहा.
 ५ जुलाई २००० को जापान में ४ झटके, ७ जुलाई को भारत में खरगौन तथा ८ जुलाई को जापान में ज्वालामुखीय उदगार, ११ जुलाई को जापान में बड़ा भूकंप, १३ जुलाई को जापान में बड़ा सक्रिय ज्वाला मुखी १८ से २४ जुलाई तक जापान में २, ताईवान में ३ एवं एवं इंडोनेशिया में १ भूकंप दर्ज हुआ जिसके साथ भारत में पंधाना, भावनगर एवं कराड में झटके महसूस किये गए. २ अगस्त को उत्तरी जापान में तीसरा ज्वालामुखी सक्रिय रहा. १

सितम्बर से १२ सितम्बर तक भारत में ४ भूकंप दर्ज हुए. १४ सितम्बर को जापान में ५.३ तीव्रता तीव्रता का भूकंप आया. ६ अक्तूबर को पश्चिमी जापान में ७.१, अंडमान में ५.४, सरगुजा में लंबी दरारें पड़ना, तथा अंबिकापुर में भूकंप के हलके झटके अनुभव किये गए. १२.१०.२००० को हिमाचल प्रदेश में तथा १७.१०.२००० को जबलपुर (५.२), १९.१०.२००० को भारत-पाक सीमा तथा कोयना क्षेत्र में भूकंप आया. २७.१०.२०० को जापान में चौथा ज्वालामुखी सक्रिय हुआ.   अद्यतन ये भूगर्भीय हलचलें जो गहरी ज्वालामुखीय घटनाओं को प्रेरित कर रही हैं, इनके कारण ही भूकम्पों की बारम्बार पुनरावृत्ति हो रहे ऐसी मेरी मान्यता है.

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