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सोमवार, 30 जून 2014

chhand salila: dandkala chhand -sanjiv


छंद सलिला:
दण्डकला Roseछंद 

संजीव
*
छंद-लक्षण: जाति लाक्षणिक, प्रति चरण मात्रा ३२ मात्रा, यति १०-८-८-६, पदांत लघुगुरु, चौकल में पयोधर (लघु गुरु लघु / जगण) निषेध।

लक्षण छंद
यति दण्डकला दस / आठ  आठ छह  / लघु गुरु सदैव / पदांत हो
जाति लाक्षणिक गिन / रखें  हर पंक्ति / बत्तिस मात्रा / सुखांत हो  

उदाहरण
. कल कल कल प्रवहित / नर्तित प्रमुदित / रेवा मैया / मन मोहे
    निर्मल जलधारा / भय-दुःख हारा / शीतल छैयां / सम सोहे
    कूदे पर्वत से / छप-छपाक् से / जलप्रपात रच / हँस नाचे
    चुप मंथर गति बह / पीर-व्यथा दह / सत-शिव-सुंदर / नित बाँचे  

    
 
२. जय जय छत्रसाल / योद्धा-मराल / शत वंदन  नर / नाहर हे!     
    'बुन्देलखंडपति / 
यवननाथ अरि / अभिनन्दन असि / साधक हे 
    बल-वीर्य पराक्रम / विजय-वरण क्षम / दुश्मन नाशक / रण-जेता 
    थी जाती बाजी / लाकर बाजी / भव-सागर नौ/का खेता

३. संध्या मन मोहे / गाल गुलाबी / चाल शराबी / हिरणी सी 
    शशि देख झूमता / लपक चूमता / सिहर उठे वह / घरनी सी   
    कुण्डी खड़काये / ननद दुपहरी / सास निशा खों-/खों खांसे    
    देवर तारे ससु/र आसमां  बह/ला मन फेंके / छिप पांसे
                        ----------
(अब तक प्रस्तुत छंद: अखण्ड, अग्र, अचल, अचल धृति, अरुण, अवतार, अहीर, आर्द्रा, आल्हा, इंद्रवज्रा, उड़ियाना, उपमान, उपेन्द्रवज्रा, उल्लाला, एकावली, कुकुभ, कज्जल, कामिनीमोहन, काव्य, कीर्ति, कुण्डल, कुडंली, गंग, घनाक्षरी, चौबोला, चंडिका, चंद्रायण, छवि, जग, जाया,  तांडव, तोमर, त्रिलोकी, दण्डकला, दिक्पाल, दीप, दीपकी, दोधक, दृढ़पद, नित, निधि, निश्चल, प्लवंगम्, प्रतिभा, प्रदोष, प्रभाती, प्रेमा, बाला, भव, भानु, मंजुतिलका, मदन,मदनावतारी, मधुभार, मधुमालती, मनहरण घनाक्षरी, मनमोहन, मनोरम, मानव, माली, माया, माला, मोहन, मृदुगति, योग, ऋद्धि, रसामृत, रसाल, राजीव, राधिका, रामा, रूपमाला, लीला, वस्तुवदनक, वाणी, विरहणी, विशेषिका, शक्तिपूजा, शशिवदना, शाला, शास्त्र, शिव, शुद्ध ध्वनि, शुभगति, शोभन, सरस, सार, सारस, सिद्धि, सिंहिका, सुखदा, सुगति, सुजान, सुमित्र, संपदा, हरि, हेमंत, हंसगति, हंसी)



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रविवार, 29 जून 2014

kshanika: gussa

क्षणिका:
गुस्सा 
*
कंप्यूटर इंजीनियरिंग फील्ड की 
लड़की को किसी लड़के ने छेड़ा....
लड़की का गुस्सा ऐसे निकला... 
''अरे ओ !!
पेन ड्राइव के ढक्कन ,
पैदाइशी Error ,
Virus के बच्चे ,
Excel की corrupt file
अगर 1 Click मारूंगी तो
ज़मीन से Delete हो कर 
क़बर में Install
हो जायेगा .!
समझे !!!''

शनिवार, 28 जून 2014

joke: interview by banta

Interviewer: Let me check ur
english, tell me d opposite of
good.?
Banta: Bad.

Interviewer: Come
Banta: Go.

Interviewer: Ugly?
Banta: Pichhlli.
...
Interviewer: PICHLLI
Banta: UGLY.

Interviewer: Shut Up.
Banta: Keep talking.

Interviewer: Ok, now stop all dis
Banta: Ok, now carry on all dis.

Interviewer: Abey, chup ho
ja..chup ho ja..chup ho jaa.
Banta: Abey bolta ja..bolta ja..bolta
ja.

Interviewer: Arey, yaar.
Banta: Arey dushman.

Interviewer: Get Out
Banta: Come In.

Interviewer: Oh my God.
Banta: Oh, my devil.

Interviewer: shhhhhhh
banta: Hurrrrrrrrrrrrrrr

Interviewer: mere bap chup hoja
banta: mere bete bolta reh

Interviewer: U are rejected
Banta: I m selected. Oye Bolo ta ra
ra ra ra hayo rabba!!

जन का पैगाम - जन नायक के नाम

जन का पैगाम - जन नायक के नाम

प्रिय नरेंद्र जी, उमा जी 

सादर वन्दे मातरम 

मुझे आपका ध्यान नदी घाटियों के दोषपूर्ण विकास की ओर आकृष्ट करना है. 

मूलतः नदियां गहरी तथा किनारे ऊँचे पहाड़ियों  की तरह और वनों से आच्छादित थे. कालिदास का नर्मदा तट वर्णन देखें। मानव ने जंगल काटकर किनारों की चट्टानें, पत्थर और रेत खोद लिये तो नदी का तक और किनारों का अंतर बहुत कम बचा. इससे भरनेवाले पानी की मात्रा और बहाव घाट गया, नदी में कचरा बहाने की क्षमता न रही, प्रदूषण फैलने लगा, जरा से बरसात में बाढ़ आने लगी, उपजाऊ मिट्टी बाह जाने से खेत में फसल घट गयी, गाँव तबाह हुए. 

इस विभीषिका से निबटने हेतु कृपया, निम्न सुझावों पर विचार कर विकास कार्यक्रम में यथोचित परिवर्तन करने हेतु विचार करें:

१. नदी के तल को लगभग १० - १२ मीटर गहरा, बहाव की दिशा में ढाल देते हुए, ऊपर अधिक चौड़ा तथा नीचे तल में कम चौड़ा खोदा जाए. 

२. खुदाई में निकली सामग्री से नदी तट से १-२ किलोमीटर दूर संपर्क मार्ग तथा किनारों को पक्का बनाया जाए ताकि वर्षा और बाढ़ में किनारे न बहें।

३. घाट तक आने के लिये सड़क की चौड़ाई छोड़कर शेष किनारों पर घने जंगल लगाए जाएँ जिन्हें घेरकर प्राकृतिक वातावरण में पशु-पक्षी रहें मनुष्य दूर से देख आनंदित हो सके।  

४. गहरी हुई बड़ी नदियों में बड़ी नावों और छोटे जलयानों से यात्री और छोटी नदियों में नावों से यातायात और परिवहन बहुत सस्ता और सुलभ हो सकेगा। बहाव की दिशा में तो नदी ही अल्प ईंधन में पहुंचा देगी। सौर ऊर्जा चलित नावों से वर्ष में ८-९ माह पेट्रोल -डीज़ल की तुलना में लगभग एक बटे दस धुलाई व्यय होगा। प्राचीन भारत में जल संसाधन का प्रचुर प्रयोग होता था। 

५. घाटों पर नदी धार से ३००-५०० मीटर दूर स्नानागार-स्नान कुण्ड तथा पूजनस्थल हों जहाँ जलपात्र या नल से नदी  उपलब्ध हो। नदी के दर्शन करते हुए पूजन-तर्पण हो। प्रयुक्त दूषित जल व् अन्य सामग्री घाट पर बने लघु शोधन संयंत्र में उपचारित का शुद्ध जल में परिवर्तित की जाने के बाद नदी के तल में छोड़ा जाए। तथा नदी का प्रदुषण समाप्त होगा तथा जान सामान्य की आस्था भी बनी  सकेगी। इस परिवर्तन के लिये संतों-पंडों तथा स्थानी जनों को पूर्व सहमत करने से जन विरोध नहीं होगा। 

६. नदी के समीप हर शहर, गाँव, कस्बे, कारखाने, शिक्षा संस्थान, अस्पताल आदि में लघु जल-मल निस्तारण केंद्र हो। पूरे शहर के लिए एक वृहद जल-नल केंद्र मँहगा, जटिल तथा अव्यवहार्य है जबकि लघु ईकाइयां कम देखरेख में सुविधा से संचालित होने के साथ स्थानीय रोजगार भी सृजित करेंगी। इनके द्वारा उपचारित जल नदियों में छोड़ना सुरक्षित होगा।

७. एक  राज्यों में बहने वाली नदियों पर विकास योजना केंद्र सरकार की देख-रेख और बजट से हो जबकि एक राज्य की सीमा में बह रही नदियों की योजनों की देखरेख और बजट राज्य सरकारें देखें।जिन स्थानों पर निवासी २५ प्रतिशत जन सहयोग  दान करें उन्हें प्राथमिकता दी जाए।  हिस्सों में स्थानीय जनों ने बाँध बनाकर या पहाड़ खोदकर बिना सरकारी सहायता के अपनी समस्या का निदान खोज लिया है और इनसे लगाव के कारण वे इनकी रक्षा व मरम्मत भी खुद करते है जबकि सरकारी मदद से बनी योजनाओं को आम जन ही लगाव न होने से हानि पहुंचाते हैं। इसलिए श्रमदान अवश्य हो। ७० के दशक में सरकारी विकास योजनाओं पर ५० प्रतिशत श्रमदान की शर्त थी, जो क्रमशः काम कर शून्य कर दी गयी तो आमजन लगाव ख़त्म हो जाने के कारण सामग्री की चोरी करने लगे और कमीशन माँगा जाने लगा।श्रमदान करनेवालों को रोजगार मिलेगा।   
८. नर्मदा में गुजरात से जबलपुर तक, गंगा में बंगाल से हरिद्वार तक तथा राजस्थान, महाकौशल, बुंदेलखंड और बघेलखण्ड में छोटी नदियों से जल यातायात होने पर इन पिछड़े क्षेत्रों का कायाकल्प हो जाएगा। 

९. इससे भूजल स्तर बढ़ेगा और सदियों के लिए पेय जल की समस्या हल हो जाएगी।भूमि की उर्वरा शक्ति बढ़ेगी।

कृपया, इन बिन्दुओं पर गंभीरतापूर्वक विचारण कर, क्रियान्वयन की दिशा में कदम उठाये जाने हेतु निवेदन है।

संजीव वर्मा 
        एक नागरिक   

गुरुवार, 26 जून 2014

chhand salila: shuddh dhvani chhand -sanjiv


छंद सलिला: ​​​

शुद्ध ध्वनि Roseछंद 




संजीव
*
छंद-लक्षण: जाति लाक्षणिक, प्रति चरण मात्रा ३२ मात्रा, यति १८-८-८-६, पदांत गुरु 

लक्षण छंद
लाक्षणिक छंद  है / शुद्धध्वनि पद / अंत करे गुरु / यश भी दे   
यति रहे अठारह / आठ आठ छह, / विरुद गाइए / साहस ले  
चौकल में जगण न / है वर्जित- करि/ए प्रयोग जब / मन चाहे  
कह-सुन वक्ता-श्रो/ता हर्षित, सम / शब्द-गंग-रस / अवगाहे 



उदाहरण
. बज उठे नगाड़े / गज चिंघाड़े / अंबर फाड़े / भोर हुआ 
    खुर पटकें घोड़े / बरबस दौड़े / संयम छोड़े / शोर हुआ 
    गरजे सेनानी / बल अभिमानी / मातु भवानी / जय रेवा 
    ले धनुष-बाण सज / बड़ा देव भज / सैनिक बोले / जय देवा 

    
    








    



    कर तिलक भाल पर / चूड़ी खनकीं / अँखियाँ छलकीं / वचन लिया      
    'सिर अरि का लेना / अपना देना / लजे न माँ का / दूध पिया'
    ''सौं मातु नरमदा / काली मैया / यवन मुंड की / माल चढ़ा
    लोहू सें भर दौं / खप्पर तोरा / पिये जोगनी / शौर्य बढ़ा'' 

    सज सैन्य चल पडी / शोधकर घड़ी / भेरी-घंटे / शंख बजे
    दिल कँपे मुगल के / धड़-धड़ धड़के / टँगिया सम्मुख / प्राण तजे 
    गोटा जमाल था / घुला ताल में / पानी पी अति/सार हुआ 
    पेड़ों पर टँगे / धनुर्धारी मा/रें जीवन दु/श्वार हुआ  

    वीरनारायण अ/धार सिंह ने / मुगलों को दी / धूल चटा
    रानी के घातक / वारों से था / मुग़ल सैन्य का / मान घटा 
    रूमी, कैथा भो/ज, बखीला, पं/डित मान मुबा/रक खां लें    
    डाकित, अर्जुनबै/स, शम्स, जगदे/व, महारख सँग / अरि-जानें 
    
    पर्वत से पत्थर / लुढ़काये कित/ने हो घायल / कुचल मरे-
    था नत मस्तक लख / रण विक्रम, जय / स्वप्न टूटते / हुए लगे 
    बम बम भोले, जय / शिव शंकर, हर / हर नरमदा ल/गा नारा
    ले जान हथेली / पर गोंडों ने / मुगलों को बढ़/-चढ़ मारा   
    
    आसफ खां हक्का / बक्का, छक्का / छूटा याद हु/ई मक्का
    सैनिक चिल्लाते / हाय हाय अब / मरना है बिल/कुल पक्का   
    हो गयी साँझ निज / हार जान रण / छोड़ शिविर में / जान बचा
    छिप गया: तोपखा/ना बुलवा, हो / सुबह चले फिर / दाँव नया 

     
    
    








    





    रानी बोलीं "हम/ला कर सारी / रात शत्रु को / पीटेंगे 
    सरदार न माने / रात करें आ/राम, सुबह रण / जीतेंगे
    बस यहीं हो गयी / चूक बदनसिंह / ने शराब थी / पिलवाई 
    गद्दार भेदिया / देश द्रोह कर / रहा न किन्तु श/रम आई 
    
    सेनानी अलसा / जगे देर से / दुश्मन तोपों / ने घेरा 
    रानी ने बाजी / उलट देख सो/चा वन-पर्वत / हो डेरा 
    बारहा गाँव से / आगे बढ़कर / पार करें न/र्रइ नाला 
    नागा पर्वत पर / मुग़ल न लड़ पा/येंगे गोंड़ ब/नें ज्वाला

    सब भेद बताकर / आसफ खां को / बदनसिंह था / हर्षाया   
    दुर्भाग्य घटाएँ / काली बनकर / आसमान पर / था छाया 
    डोभी समीप तट / बंध तोड़ मुग/लों ने पानी / दिया बहा 
    विधि का विधान पा/नी बरसा, कर / सकें पार सं/भव न रहा

    हाथी-घोड़ों ने / निज सैनिक कुच/ले, घबरा रण / छोड़ दिया  
    मुगलों ने तोपों / से गोले बर/सा गोंडों को / घेर लिया 
    सैनिक घबराये / पर रानी सर/दारों सँग लड़/कर पीछे  
    कोशिश में थीं पल/टें बाजी, गिरि / पर चढ़ सकें, स/मर जीतें 

    रानी के शौर्य-पराक्रम ने दुश्मन का दिल दहलाया था 
    जा निकट बदन ने / रानी पर छिप / घातक तीर च/लाया था   
    तत्क्षण रानी ने / खींच तीर फें/का, जाना मु/श्किल बचना 
    नारायण रूमी / भोज बच्छ को / चौरा भेज, चु/ना मरना

    बोलीं अधार से / 'वार करो, लो / प्राण, न दुश्मन / छू पाये' 
    चाहें अधार लें / उन्हें बचा, तब / तक थे शत्रु नि/कट  आये 
    रानी ने भोंक कृ/पाण कहा: 'चौरा जाओ' फिर प्राण तजा    
    लड़ दूल्हा-बग्घ श/हीद हुए, सर/मन रानी को / देख गिरा 

    भौंचक आसफखाँ / शीश झुका, जय / पाकर भी थी / हार मिली 
    जनमाता दुर्गा/वती अमर, घर/-घर में पुजतीं / ज्यों देवी 
    पढ़ शौर्य कथा अब / भी जनगण, रा/नी को पूजा / करता है 
    जनहितकारी शा/सन खातिर नित / याद उन्हें ही / करता है 

    बारहा गाँव में / रानी सरमन /बग्घ दूल्ह के / कूर बना 
    ले कंकर एक र/खे हर जन, चुप / वीर जनों को / शीश नवा
    हैं गाँव-गाँव में / रानी की प्रति/माएँ, हैं ता/लाब बने 
    शालाओं को भी , नाम मिला, उन/का- देखें ब/च्चे सपने

   नव भारत की नि/र्माण प्रेरणा / बनी आज भी / हैं रानी 
   रानी दुर्गावति / हुईं अमर, जन / गण पूजे कह / कल्याणी
   नर्मदासुता, चं/देल-गोंड की / कीर्ति अमर, दे/वी मैया  
   जय-जय गाएंगे / सदियों तक कवि/, पाकर कीर्ति क/था-छैंया        
                                  ********* 
टिप्पणी: २४ जून १५६४ रानी दुर्गावती शहादत दिवस, कूर = समाधि,
दूरदर्शन पर दिखाई जा रही अकबर की छद्म महानता की पोल रानी की संघर्ष कथा खोलती है. 
(अब तक प्रस्तुत छंद: अखण्ड, अग्र, अचल, अचल धृति, अरुण, अवतार, अहीर, आर्द्रा, आल्हा, इंद्रवज्रा, उड़ियाना, उपमान, उपेन्द्रवज्रा, उल्लाला, एकावली, कुकुभ, कज्जल, कामिनीमोहन, काव्य, कीर्ति, कुण्डल, कुडंली, गंग, घनाक्षरी, चौबोला, चंडिका, चंद्रायण, छवि, जग, जाया, तांडव, तोमर, त्रिलोकी, दिक्पाल, दीप, दीपकी, दोधक, दृढ़पद, नित, निधि, निश्चल, प्लवंगम्, प्रतिभा, प्रदोष, प्रभाती, प्रेमा, बाला, भव, भानु, मंजुतिलका, मदन,मदनावतारी, मधुभार, मधुमालती, मनहरण घनाक्षरी, मनमोहन, मनोरम, मानव, माली, माया, माला, मोहन, मृदुगति, योग, ऋद्धि, रसामृत, रसाल, राजीव, राधिका, रामा, रूपमाला, लीला, वस्तुवदनक, वाणी, विरहणी, विशेषिका, शक्तिपूजा, शशिवदना, शाला, शास्त्र, शिव, शुद्ध ध्वनि, शुभगति, शोभन, सरस, सार, सारस, सिद्धि, सिंहिका, सुखदा, सुगति, सुजान, सुमित्र, संपदा, हरि, हेमंत, हंसगति, हंसी)

लेख : चित्रगुप्त रहस्य: आचार्य संजीव 'सलिल'

लेख :
चित्रगुप्त रहस्य:  
आचार्य संजीव 'सलिल' 
चित्रगुप्त सर्वप्रथम प्रणम्य हैं

परात्पर परमब्रम्ह श्री चित्रगुप्त जी सकल सृष्टि के कर्मदेवता हैं, केवल कायस्थों के नहीं। उनके अतिरिक्त किसी अन्य कर्म देवता का उल्लेख किसी भी धर्म में नहीं है, न ही कोई धर्म उनके कर्म देव होने पर आपत्ति करता है। अतः, निस्संदेह उनकी सत्ता सकल सृष्टि के समस्त जड़-चेतनों तक है। पुराणकार कहता है: '

चित्रगुप्त प्रणम्यादौ वात्मानाम सर्व देहिनाम.'' 
अर्थात श्री चित्रगुप्त सर्वप्रथम प्रणम्य हैं जो आत्मा के रूप में सर्व देहधारियों में स्थित हैं. 

आत्मा क्या है? 

सभी जानते और मानते हैं कि 'आत्मा सो परमात्मा' अर्थात परमात्मा का अंश ही आत्मा है। स्पष्ट है कि श्री चित्रगुप्त जी ही आत्मा के रूप में समस्त सृष्टि के कण-कण में विराजमान हैं। इसलिए वे सबके पूज्य हैं सिर्फ कायस्थों के नहीं। 

चित्रगुप्त निर्गुण परमात्मा हैं: 

सभी जानते हैं कि परमात्मा और उनका अंश आत्मा निराकार है। आकार के बिना चित्र नहीं बनाया जा सकता। चित्र न होने को चित्र गुप्त होना कहा जाना पूरी तरह सही है। आत्मा ही नहीं आत्मा का मूल परमात्मा भी मूलतः निराकार है इसलिए उन्हें 'चित्रगुप्त' कहा जाना स्वाभाविक है। निराकार परमात्मा अनादि (आरंभहीन) तथा (अंतहीन) तथा निर्गुण (राग, द्वेष आदि से परे) हैं। 

चित्रगुप्त पूर्ण हैं: 

अनादि-अनंत वही हो सकता है जो पूर्ण हो। अपूर्णता का लक्षण आरम्भ तथा अंत से युक्त होना है। पूर्ण वह है जिसका क्षय (ह्रास या घटाव) नहीं होता। पूर्ण में से पूर्ण को निकल देने पर भी पूर्ण ही शेष बचता है, पूर्ण में पूर्ण मिला देने पर भी पूर्ण ही रहता है। इसे 'ॐ' से व्यक्त किया जाता है। दूज पूजन के समय कोरे कागज़ पर चन्दन, केसर, हल्दी, रोली तथा जल से ॐ लिखकर अक्षत (जिसका क्षय न हुआ हो आम भाषा में साबित चांवल)से चित्रगुप्त जी पूजन कायस्थ जन करते हैं। 

ॐ पूर्णमदः पूर्णमिदं पूर्णात पूर्णमुदच्यते पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्यते 

पूर्ण है यह, पूर्ण है वह, पूर्ण कण-कण सृष्टि सब 
पूर्ण में पूर्ण को यदि दें निकाल, पूर्ण तब भी शेष रहता है सदा। 

चित्रगुप्त निर्गुण तथा सगुण दोनों हैं:

चित्रगुप्त निराकार-निर्गुण ही नहीं साकार-सगुण भी है। वे अजर, अमर, अक्षय, अनादि तथा अनंत हैं। परमेश्वर के इस स्वरूप की अनुभूति सिद्ध ही कर सकते हैं इसलिए सामान्य मनुष्यों के लिये वे साकार-सगुण रूप में प्रगट हुए वर्णित किये गए हैं। सकल सृष्टि का मूल होने के कार उनके माता-पिता नहीं हो सकते। इसलिए उन्हें ब्रम्हा की काया से ध्यान पश्चात उत्पन्न बताया गया है. आरम्भ में वैदिक काल में ईश्वर को निराकार और निर्गुण मानकर उनकी उपस्थिति हवा, अग्नि (सूर्य), धरती, आकाश तथा पानी में अनुभूत की गयी क्योंकि इनके बिना जीवन संभव नहीं है। इन पञ्च तत्वों को जीवन का उद्गम और अंत कहा गया। काया की उत्पत्ति पञ्चतत्वों से होना और मृत्यु पश्चात् आत्मा का परमात्मा में तथा काया का पञ्च तत्वों में विलीन होने का सत्य सभी मानते हैं। 

अनिल अनल भू नभ सलिल, पञ्च तत्वमय देह. 
परमात्मा का अंश है, आत्मा निस्संदेह।। 

परमब्रम्ह के अंश- कर, कर्म भोग परिणाम 
जा मिलते परमात्म से, अगर कर्म निष्काम।। 

कर्म ही वर्ण का आधार श्रीमद्भगवद्गीता में श्री कृष्ण कहते हैं: 'चातुर्वर्ण्यमयासृष्टं गुणकर्म विभागशः' 

अर्थात गुण-कर्मों के अनुसार चारों वर्ण मेरे द्वारा ही बनाये गये हैं। 

स्पष्ट है कि वर्ण जन्म पर आधारित नहीं था। वह कर्म पर आधारित था। कर्म जन्म के बाद ही किया जा सकता है, पहले नहीं। अतः, किसी जातक या व्यक्ति में बुद्धि, शक्ति, व्यवसाय या सेवा वृत्ति की प्रधानता तथा योग्यता के आधार पर ही उसे क्रमशः ब्राम्हण, क्षत्रिय, वैश्य या शूद्र वर्ग में रखा जा सकता था। एक पिता की चार संतानें चार वर्णों में हो सकती थीं। मूलतः कोई वर्ण किसी अन्य वर्ण से हीन या अछूत नहीं था। सभी वर्ण समान सम्मान, अवसरों तथा रोटी-बेटी सम्बन्ध के लिये मान्य थे। सामाजिक, राजनैतिक, धार्मिक, आर्थिक अथवा शैक्षणिक स्तर पर कोई भेदभाव मान्य नहीं था। कालांतर में यह स्थिति पूरी तरह बदल कर वर्ण को जन्म पर आधारित मान लिया गया। 

चित्रगुप्त पूजन क्यों और कैसे? 

श्री चित्रगुप्त का पूजन कायस्थों में प्रतिदिन प्रातः-संध्या में तथा विशेषकर यम द्वितीया को किया जाता है। कायस्थ उदार प्रवृत्ति के सनातन (जो सदा था, है और रहेगा) धर्मी हैं। उनकी विशेषता सत्य की खोज करना है इसलिए सत्य की तलाश में वे हर धर्म और पंथ में मिल जाते हैं। कायस्थ यह जानता और मानता है कि परमात्मा निराकार-निर्गुण है इसलिए उसका कोई चित्र या मूर्ति नहीं है, उसका चित्र गुप्त है। वह हर चित्त में गुप्त है अर्थात हर देहधारी में उसका अंश होने पर भी वह अदृश्य है। जिस तरह खाने की थाली में पानी न होने पर भी हर खाद्यान्न में पानी होता है उसी तरह समस्त देहधारियों में चित्रगुप्त अपने अंश आत्मा रूप में विराजमान होते हैं। 

चित्रगुप्त ही सकल सृष्टि के मूल तथा निर्माणकर्ता हैं:

सृष्टि में ब्रम्हांड के निर्माण, पालन तथा विनाश हेतु उनके अंश ब्रम्हा-महासरस्वती, विष्णु-महालक्ष्मी तथा शिव-महाशक्ति के रूप में सक्रिय होते हैं। सर्वाधिक चेतन जीव मनुष्य की आत्मा परमात्मा का ही अंश है। मनुष्य जीवन का उद्देश्य परम सत्य परमात्मा की प्राप्ति कर उसमें विलीन हो जाना है। अपनी इस चितन धारा के अनुरूप ही कायस्थजन यम द्वितीय पर चित्रगुप्त पूजन करते हैं। सृष्टि निर्माण और विकास का रहस्य: आध्यात्म के अनुसार सृष्टिकर्ता की उपस्थिति अनहद नाद से जानी जाती है। यह अनहद नाद सिद्ध योगियों के कानों में प्रति पल भँवरे की गुनगुन की तरह गूँजता हुआ कहा जाता है। इसे 'ॐ' से अभिव्यक्त किया जाता है। विज्ञान सम्मत बिग बैंग थ्योरी के अनुसार ब्रम्हांड का निर्माण एक विशाल विस्फोट से हुआ जिसका मूल यही अनहद नाद है। इससे उत्पन्न ध्वनि तरंगें संघनित होकर कण (बोसान पार्टिकल) तथा क्रमश: शेष ब्रम्हांड बना। 

यम द्वितीया पर कायस्थ एक कोरा सफ़ेद कागज़ लेकर उस पर चन्दन, हल्दी, रोली, केसर के तरल 'ॐ' अंकित करते हैं। यह अंतरिक्ष में परमात्मा चित्रगुप्त की उपस्थिति दर्शाता है। 'ॐ' परमात्मा का निराकार रूप है। निराकार के साकार होने की क्रिया को इंगित करने के लिये 'ॐ' को सृष्टि की सर्वश्रेष्ठ काया मानव का रूप देने के लिये उसमें हाथ, पैर, नेत्र आदि बनाये जाते हैं। तत्पश्चात ज्ञान की प्रतीक शिखा मस्तक से जोड़ी जाती है। शिखा का मुक्त छोर ऊर्ध्वमुखी (ऊपर की ओर उठा) रखा जाता है जिसका आशय यह है कि हमें ज्ञान प्राप्त कर परमात्मा में विलीन (मुक्त) होना है। 

बहुदेववाद की परंपरा:

इसके नीचे श्री के साथ देवी-देवताओं के नाम लिखे जाते हैं, फिर दो पंक्तियों में 9 अंक इस प्रकार लिखे जाते हैं कि उनका योग 9 बार 9 आये। परिवार के सभी सदस्य अपने हस्ताक्षर करते हैं और इस कागज़ के साथ कलम रखकर उसका पूजन कर दण्डवत प्रणाम करते हैं। पूजन के पश्चात् उस दिन कलम नहीं उठायी जाती। इस पूजन विधि का अर्थ समझें। प्रथम चरण में निराकार निर्गुण परमब्रम्ह चित्रगुप्त के साकार होकर सृष्टि निर्माण करने के सत्य को अभिव्यक्त करने के पश्चात् दूसरे चरण में निराकार प्रभु द्वारा सृष्टि के कल्याण के लिये विविध देवी-देवताओं का रूप धारण कर जीव मात्र का ज्ञान के माध्यम से कल्याण करने के प्रति आभार, विविध देवी-देवताओं के नाम लिखकर व्यक्त किया जाता है। ये देवी शक्तियां ज्ञान के विविध शाखाओं के प्रमुख हैं. ज्ञान का शुद्धतम रूप गणित है। 

सृष्टि में जन्म-मरण के आवागमन का परिणाम मुक्ति के रूप में मिले तो और क्या चाहिए? यह भाव पहले देवी-देवताओं के नाम लिखकर फिर दो पंक्तियों में आठ-आठ अंक इस प्रकार लिखकर अभिव्यक्त किया जाता है कि योगफल नौ बार नौ आये व्यक्त किया जाता है। पूर्णता प्राप्ति का उद्देश्य निर्गुण निराकार प्रभु चित्रगुप्त द्वारा अनहद नाद से साकार सृष्टि के निर्माण, पालन तथा नाश हेतु देव-देवी त्रयी तथा ज्ञान प्रदाय हेतु अन्य देवियों-देवताओं की उत्पत्ति, ज्ञान प्राप्त कर पूर्णता पाने की कामना तथा मुक्त होकर पुनः परमात्मा में विलीन होने का समुच गूढ़ जीवन दर्शन यम द्वितीया को परम्परगत रूप से किये जाते चित्रगुप्त पूजन में अन्तर्निहित है। इससे बड़ा सत्य कलम व्यक्त नहीं कर सकती तथा इस सत्य की अभिव्यक्ति कर कलम भी पूज्य हो जाती है इसलिए कलम को देव के समीप रखकर उसकी पूजा की जाती है। इस गूढ़ धार्मिक तथा वैज्ञानिक रहस्य को जानने तथा मानने के प्रमाण स्वरूप परिवार के सभी स्त्री-पुरुष, बच्चे-बच्चियाँ अपने हस्ताक्षर करते हैं, जो बच्चे लिख नहीं पाते उनके अंगूठे का निशान लगाया जाता है। उस दिन कोई सांसारिक कार्य (व्यवसायिक, मैथुन आदि) न कर आध्यात्मिक चिंतन में लीन रहने की परम्परा है। 

'ॐ' की ही अभिव्यक्ति अल्लाह और ईसा में भी होती है। सिख पंथ इसी 'ॐ' की रक्षा हेतु स्थापित किया गया। 'ॐ' की अग्नि आर्य समाज और पारसियों द्वारा पूजित है। सूर्य पूजन का विधान 'ॐ' की ऊर्जा से ही प्रचलित हुआ है। उदारता तथा समरसता की विरासत यम द्वितीया पर चित्रगुप्त पूजन की आध्यात्मिक-वैज्ञानिक पूजन विधि ने कायस्थों को एक अभिनव संस्कृति से संपन्न किया है। सभी देवताओं की उत्पत्ति चित्रगुप्त जी से होने का सत्य ज्ञात होने के कारण कायस्थ किसी धर्म, पंथ या सम्प्रदाय से द्वेष नहीं करते। वे सभी देवताओं, महापुरुषों के प्रति आदर भाव रखते हैं। वे धार्मिक कर्म कांड पर ज्ञान प्राप्ति को वरीयता देते हैं। इसलिए उन्हें औरों से अधिक बुद्धिमान कहा गया है. चित्रगुप्त जी के कर्म विधान के प्रति विश्वास के कारण कायस्थ अपने देश, समाज और कर्त्तव्य के प्रति समर्पित होते हैं। मानव सभ्यता में कायस्थों का योगदान अप्रतिम है। कायस्थ ब्रम्ह के निर्गुण-सगुण दोनों रूपों की उपासना करते हैं। कायस्थ परिवारों में शैव, वैष्णव, गाणपत्य, शाक्त, राम, कृष्ण, सरस्वती, लक्ष्मी, दुर्गा आदि देवी-देवताओं के साथ समाज सुधारकों दयानंद सरस्वती, आचार्य श्री राम शर्मा, सत्य साइ बाबा, आचार्य महेश योगी आदि का पूजन-अनुकरण किया जाता है। कायस्थ मानवता, विश्व तथा देश कल्याण के हर कार्य में योगदान करते मिलते हैं. 

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बुधवार, 25 जून 2014

chhand salila: rupmala/madan/madanavatar chhand -sanjiv


छंद सलिला: ​​​

Roseरूपमाला / मदन / मदनावतारी छंद ​

संजीव
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छंद-लक्षण: जाति अवतारी, प्रति चरण मात्रा २४ मात्रा, यति चौदह-दस, पदांत गुरु-लघु (जगण)

लक्षण छंद:
रूपमाला रत्न चौदह, दस दिशा सम ख्यात
कला गुरु-लघु रख चरण के, अंत उग प्रभात
नाग पिंगल को नमनकर, छंद रचिए आप्त
नव रसों का पान करिए, ख़ुशी हो मन-व्याप्त

उदाहरण:
१. देश ही सर्वोच्च है- दें / देश-हित में प्राण
जो- उन्हीं के योग से है / देश यह संप्राण
करें श्रद्धा-सुमन अर्पित / यादकर बलिदान
पीढ़ियों तक वीरता का / 'सलिल'होगा गान

२. वीर राणा अश्व पर थे, हाथ में तलवार
मुगल सैनिक घेर करते, अथक घातक वार
दिया राणा ने कई को, मौत-घाट उतार
पा न पाये हाय! फिर भी, दुश्मनों से पार
ऐंड़ चेटक को लगायी, अश्व में थी आग
प्राण-प्राण से उड़ हवा में, चला शर सम भाग
पैर में था घाव फिर भी, गिरा जाकर दूर
प्राण त्यागे, प्राण-रक्षा की- रुदन भरपूर
किया राणा ने, कहा: 'हे अश्व! तुम हो धन्य
अमर होगा नाम तुम हो तात! सत्य अनन्य।

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(अब तक प्रस्तुत छंद: अखण्ड, अग्र, अचल, अचल धृति, अरुण, अवतार, अहीर, आर्द्रा, आल्हा, इंद्रवज्रा, उड़ियाना, उपमान, उपेन्द्रवज्रा, उल्लाला, एकावली, कुकुभ, कज्जल, कामिनीमोहन, काव्य, कीर्ति, कुण्डल, कुडंली, गंग, घनाक्षरी, चौबोला, चंडिका, चंद्रायण, छवि, जग, जाया, तांडव, तोमर, त्रिलोकी, दिक्पाल, दीप, दीपकी, दोधक, दृढ़पद, नित, निधि, निश्चल, प्लवंगम्, प्रतिभा, प्रदोष, प्रभाती, प्रेमा, बाला, भव, भानु, मंजुतिलका, मदन,मदनावतारी, मधुभार, मधुमालती, मनहरण घनाक्षरी, मनमोहन, मनोरम, मानव, माली, माया, माला, मोहन, मृदुगति, योग, ऋद्धि, रसामृत, रसाल, राजीव, राधिका, रामा, रूपमाला, लीला, वस्तुवदनक, वाणी, विरहणी, विशेषिका, शक्तिपूजा, शशिवदना, शाला, शास्त्र, शिव, शुभगति, शोभन, सरस, सार, सारस, सिद्धि, सिंहिका, सुखदा, सुगति, सुजान, सुमित्र, संपदा, हरि, हेमंत, हंसगति, हंसी)