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बुधवार, 1 मई 2019

दोहा / राधिका छंद

दोहा
*
महल खंडहर हो रहे, देख रहे सब मौन.
चाह न महलों की करें, ऐसे कितने? कौन?
*
छंद सलिला:
राधिका छंद
संजीव
*
छंद-लक्षण: जाति महारौद्र लोक , प्रति चरण मात्रा २२ मात्रा, यति १३ - ९ ।
छंद सलिला:
राधिका छंद
संजीव
*
छंद-लक्षण: जाति महारौद्र , प्रति चरण मात्रा २२ मात्रा, यति १३ - ९ ।
लक्षण छंद:
सँग गोपों राधिका के / नंदसुत - ग्वाला
नाग राजा महारौद्र / कालिया काला
तेरह प्रहार नौ फणों / पर विष न बाकी
गंधर्व किन्नर सुर नरों / में कृष्ण आला
*
राधिका बाईस कला / लख कृष्ण मोहें
तेरह - नौ यति क़ृष्ण-पग / बृज गली सोहें
भक्त जाते रीझ, भय / से असुर जाते काँप
भाव-भूखे कृष्ण कण / कण जाते व्याप
उदाहरण:
१. जब जब जनगण ने फ़र्ज़ / आप बिसराया
तब तब नेता ने छला / देश पछताया
अफसर - सेठों ने निजी / स्वार्थ है साधा
अन्ना आंदोलन बना / स्वार्थ पथ-बाधा
आक्षेप और आरोप / अनेक लगाये
जनता को फ़िर भी दूर / नहीं कर पाये
२. आया है आम चुनाव / चेत जनता रे
मतदान करे चुपचाप / फ़र्ज़ बनता रे
नेता झूठे मक्कार / नहीं चुनना रे
ईमानदार सरकार / स्वप्न बुनना रे
३. नारी पर अत्याचार / जहाँ भी होते
अनुशासन बिन नागरिक / शांति-सुख खोते
जननायक साधें स्वार्थ / न करते सेवा
धन रख विदेश में खूब / उड़ाते मेवा
गणतंत्र वहाँ अभिशाप / सदृश हो जाता
अफसर -सेठों में जुड़े / घूस का नाता
अन्याय न्याय का रूप / धरे पलता है
विश्वास - सूर्य दोपहर / लगे ढलता है
४. राजनीति कोठरी, काजल की कारी
हर युग हर काल में, आफत की मारी
कहती परमार्थ पर, साधे सदा स्वार्थ
घरवाली से अधिक, लगती है प्यारी
५. बोल-बोल थक गये, बातें बेमानी
कोई सुनता नहीं, जनता है स्यानी
नेता और जनता , नहले पर दहला
बदले तेवर दिखा, देती दिल दहला
६. कली-कली चूमता, भँवरा हरजाई
गली-गली घूमता, झूठा सौदाई
बिसराये वायदे, साध-साध कायदे
तोड़े सब कायदे, घर मिला ना घाट
*********
टीप राष्ट्रकवि मैथिली शरण गुप्त जी ने साकेत में राधिका छंद का प्रयोग किया है.
हा आर्य! भरत का भाग्य, रजोमय ही है,
उर रहते उर्मि उसे तुम्हीं ने दी है.
उस जड़ जननी का विकृत वचन तो पाला
तुमने इस जन की ओर न देखा-भाला।
******************************
(अब तक प्रस्तुत छंद: अखण्ड, अग्र, अचल, अचल धृति, अरुण, अहीर, आर्द्रा, आल्हा, इंद्रवज्रा, उपेन्द्रवज्रा, उल्लाला, एकावली, कुकुभ, कज्जल, कामिनीमोहन, कीर्ति, कुडंली, गंग, घनाक्षरी, चौबोला, चंडिका, चंद्रायण, छवि, जाया, तांडव, तोमर, त्रिलोकी, दीप, दीपकी, दोधक, नित, निधि, प्लवंगम्, प्रतिभा, प्रदोष, प्रेमा, बाला, भव, भानु, मंजुतिलका, मदनअवतार, मधुभार, मधुमालती, मनहरण घनाक्षरी, मनमोहन, मनोरम, मानव, माली, माया, माला, मोहन, योग, ऋद्धि, राजीव, राधिका, रामा, लीला, वाणी, विशेषिका, शक्तिपूजा, शशिवदना, शाला, शास्त्र, शिव, शुभगति, सरस, सार, सिद्धि, सुगति, सुजान, हेमंत, हंसगति, हंसी)
।। हिंदी आटा माढ़िये, उर्दू मोयन डाल । 'सलिल' संस्कृत सान दे, पूरी बने कमाल ।।
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मंगलवार, 2 अक्टूबर 2018

chhand karya shala: radhika chhand

छंद कार्य शाला :
राधिका छंद  
लक्षण: २२ मात्रिक, द्विपदिक, समतुकांती छंद। 
विधान: यति १३-९, पदांत यगण १२२ , मगण २२२।  
अभिनव प्रयोग 
गीत 
*
क्यों मूल्य हुए निर्मूल्य, 
कौन बतलाए?
क्यों अपने ही रह गए,
न सगे; पराए।।  
*
तुलसी न उगाई कहाँ,
नवाएँ माथा?
'लिव इन' में कैसे लगे 
बहू का हाथा? 
क्या होता अर्पण और 
समर्पण क्यों हो?
जब बराबरी ही मात्र, 
लक्ष्य रह जाए?
क्यों मूल्य हुए निर्मूल्य, 
कौन बतलाए?
*
रिश्ते न टिकाऊ रहे,
यही है रोना। 
संबंध बिकाऊ बना
चैन मत खोना।। 
मिल प्रेम-त्याग का पाठ 
न भूल पढ़ाएँ।    
बिन दिशा तय किए कदम, 
न मंजिल पाए।।
क्यों मूल्य हुए निर्मूल्य, 
कौन बतलाए?
*
संजीव, २.१०.२०१८

chhand karya shala radhika chhand

छंद कार्य शाला :
राधिका छंद १३-९ 
लक्षण: २२ मात्रिक, द्विपदिक, समतुकांती छंद.
विधान: यति १३-९, पदांत यगण १२२ , मगण २२२ 
उदाहरण:
१. 
जिसने हिंदी को छोड़, लिखी अंग्रेजी 
उसने अपनी ही आन, गर्त में भेजी 
निज भाषा-भूषा की न, चाह क्यों पाली?
क्यों दुग्ध छोड़कर मय, प्याले में ढाली 
*
नवप्रयोग 
२. मुक्तक 
गाँधी की आँधी चली, लोग थे जागे 
सत्याग्रहियों में होड़, कौन हो आगे?
लाठी-डंडों को थाम, सिपाही दौड़े- 
जो कायर थे वे पीठ, दिखा झट भागे 
*
३. मुक्तिका 
था लालबहादुर सा न, दूसरा नेता 
रह सत्ता-सुख से दूर, नाव निज खेता 
.
अवसर आए अनगिनत, न किंतु भुनाए
वे जिए जनक सम अडिग, न उन सा जेता 
.
पाकी छोटा तन देख, समर में कूदे 
हिमगिरि सा ऊँचा अजित, मनोबल चेता 
.
व्रत सोमवार को करे, देश मिल सारा 
अमरीका का अभिमान, कर दिया रेता 
.
कर 'जय जवान' उद्घोष, गगन गुंजाया 
फिर 'जय किसान' था जोश, नया भर देता
*
असमय ही आया समय, विदा होने का 
क्या समझे कोई लाल, विदा है लेता
***
२-१०-२०१८

radhika chhand

कार्य शाला
राधिका छंद
*
लक्षण: बाईस मात्रिक द्विपदिक समतुकांती छंद।
विधान: १३, ९ पर यति, पदांत यगण या मगण। 
*
लक्षण छंद:
तेरा पै सज नव कला, राधिका रानी।
लखि रूप अलौकिक मातु, कीर्ति हरखानी।।
कहुं बर याके अनुहार, अहै बृजबाला।
सुनि सब कहतीं व्हें मुदित, एक नंदलाला।। -जगन्नाथप्रसाद 'भानु', छंद प्रभाकर
उदाहरण-
१.  हा आर्य! भारत का भाग्य, रजोमय ही है। 
    उर रहते उर्वी उसे, तुम्हीं ने दी है।। 
    उस जड़ जननी का विकृत, वचन तो पाला।
    तुमने इस जन की ओर, न देखा भाला।।   -मैथिलीशरण गुप्त, साकेत 
२. सब सुधि-बुधि गइ क्यों भूलि, गई मति मारी।
    माया को चेरो भयो, भूल असुरारी।।
    कटि जैहें भव के फंद, पाप नसि जाई।
    रे! सदा भजौ श्रीकृष्ण-राधिका माई।।    -जगन्नाथप्रसाद 'भानु', छंद प्रभाकर 
टिप्पणी-पदांत के दो या एक गुरु को लघु में बदलने से छंद बदल जाएगा।  

गुरुवार, 1 मई 2014

chhand salila: radhika chhand -sanjiv


छंद सलिला:
राधिका छंद
संजीव
*
छंद-लक्षण: जाति महारौद्र लोक , प्रति चरण मात्रा २२ मात्रा, यति १३ - ९ ।


छंद सलिला:
राधिका छंद
संजीव
*
छंद-लक्षण: जाति महारौद्र , प्रति चरण मात्रा २२ मात्रा, यति १३ - ९ ।

लक्षण छंद:
   सँग गोपों राधिका के  / नंदसुत - ग्वाला
   नाग राजा महारौद्र  / कालिया काला
   तेरह प्रहार नौ फणों / पर विष न बाकी
   गंधर्व किन्नर सुर नरों / में कृष्ण आला   
*
राधिका बाईस कला / लख कृष्ण मोहें
तेरह - नौ यति क़ृष्ण-पग / बृज गली सोहें
भक्त जाते रीझ, भय / से असुर जाते काँप
भाव-भूखे कृष्ण कण / कण जाते  व्याप
                                                                                                                     
उदाहरण:
१. जब जब जनगण ने फ़र्ज़ / आप बिसराया
    तब तब नेता ने छला / देश पछताया
    अफसर - सेठों ने निजी / स्वार्थ है साधा
    अन्ना आंदोलन बना / स्वार्थ पथ-बाधा
    आक्षेप और आरोप / अनेक लगाये
    जनता को फ़िर भी  दूर / नहीं कर पाये

२. आया है आम चुनाव / चेत जनता रे
     मतदान करे चुपचाप / फ़र्ज़ बनता रे
     नेता झूठे मक्कार / नहीं चुनना रे
     ईमानदार सरकार / स्वप्न बुनना रे 
 
३. नारी पर अत्याचार / जहाँ भी होते
    अनुशासन बिन नागरिक / शांति-सुख खोते
     जननायक साधें स्वार्थ / न करते सेवा
     धन रख विदेश में खूब / उड़ाते मेवा
     गणतंत्र वहाँ अभिशाप / सदृश हो जाता
     अफसर  -सेठों में जुड़े / घूस का  नाता
     अन्याय न्याय का  रूप / धरे पलता है
     विश्वास - सूर्य दोपहर / लगे ढलता है 

४. राजनीति कोठरी, काजल की कारी
   हर युग हर काल में, आफत की मारी
   कहती परमार्थ पर, साधे सदा स्वार्थ
   घरवाली से अधिक, लगती है प्यारी

५. बोल-बोल थक गये, बातें बेमानी
    कोई सुनता नहीं, जनता है स्यानी
    नेता और जनता , नहले पर दहला
    बदले तेवर दिखा, देती दिल दहला
 
६. कली-कली चूमता, भँवरा हरजाई
    गली-गली घूमता, झूठा सौदाई
    बिसराये वायदे, साध-साध कायदे
    तोड़े सब कायदे, घर मिला ना घाट

                         *********
टीप राष्ट्रकवि मैथिली शरण गुप्त जी ने साकेत में राधिका छंद का प्रयोग किया है.

    हा आर्य! भरत का भाग्य, रजोमय ही है,
    उर रहते उर्मि उसे तुम्हीं ने दी है.
    उस जड़ जननी का विकृत वचन तो पाला
    तुमने इस जन की ओर न देखा-भाला।
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(अब तक प्रस्तुत छंद: अखण्ड, अग्र, अचल, अचल धृति, अरुण, अहीर, आर्द्रा, आल्हा, इंद्रवज्रा, उपेन्द्रवज्रा, उल्लाला, एकावली, कुकुभ, कज्जल, कामिनीमोहन, कीर्ति, कुडंली, गंग, घनाक्षरी, चौबोला, चंडिका, चंद्रायण, छवि, जाया, तांडव, तोमर, त्रिलोकी, दीप, दीपकी, दोधक, नित, निधि, प्लवंगम्, प्रतिभा, प्रदोष, प्रेमा, बाला, भव, भानु, मंजुतिलका, मदनअवतार, मधुभार, मधुमालती, मनहरण घनाक्षरी, मनमोहन, मनोरम, मानव, माली, माया, माला, मोहन, योग, ऋद्धि, राजीव, राधिका, रामा, लीला, वाणी, विशेषिका, शक्तिपूजा, शशिवदना, शाला, शास्त्र, शिव, शुभगति, सरस, सार, सिद्धि, सुगति, सुजान, हेमंत, हंसगति, हंसी)
।। हिंदी आटा माढ़िये, उर्दू मोयन डाल । 'सलिल' संस्कृत सान दे, पूरी बने कमाल ।।


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