कुल पेज दृश्य

सोमवार, 30 अक्तूबर 2023

सॉनेट, भोर, बारिश, भारत आरती, लघुकथा, मुक्तिका, नवगीत, अश'आर, दिल, अभियंता, त्रिभंगी छंद

सॉनेट

भोर
*
भोर भई जागो रे भाई!
बिदा करो, अरविंद जा रहा।
सुनो प्रभाती, सूर्य आ रहा।।
प्राची पर छाई अरुणाई।।
गौरैया मुँडेर पर चहकी।
फल कुतरे झट झपट गिलहरी।
टिट् टिट् मिलती गले टिटहरी।।
फुलबगिया मुस्काई-महकी।।
चंपा पर रीझा है गेंदा।
जुही-चमेली लख सकुँचाई
सदा सुहागिन सोहे बेंदा।।
नेह नर्मदा कूद नहाएँ
चपल रश्मियाँ छप् छपाक् कर
सोनपरी हो लहर सिहाए।।
३०-१०-२०२२, ९•११
●●●
सॉनेट
बारिश तुम फिर
१.
बारिश तुम फिर रूठ गई हो।
तरस रहा जग होकर प्यासा।
दुबराया ज्यों शिशु अठमासा।।
मुरझाई हो ठूठ गई हो।।
कुएँ-बावली बिलकुल खाली।
नेह नर्मदा नीर नहीं है।
बेकल मन में धीर नहीं है।।
मुँह फेरे राधा-वनमाली।।
दादुर बैठे हैं मुँह सिलकर।
अंकुर मरते हैं तिल-तिलकर।
झींगुर संग नहीं हिल-मिलकर।
बीरबहूटी हुई लापता।
गर्मी सबको रही है सता।
जंगल काटे, मनुज की खता।।
*
२.
मान गई हो, बारिश तुम फिर।
सदा सुहागिन सी हरियाईं।
मेघ घटाएँ नाचें घिर-घिर।।
बरसीं मंद-मंद हर्षाईं।।
आसमान में बिजली चमकी।
मन भाई आधी घरवाली।
गिरी जोर से बिजली तड़की।।
भड़क हुई शोला घरवाली।।
तन्वंगी भीगी दिल मचले।
कनक कामिनी देह सुचिक्कन।
दृष्टि न ठहरे, मचले-फिसले।।
अनगिन सपने देखे साजन।।
सुलग गई हो बारिश तुम फिर।
पिघल गई हो बारिश तुम फिर।।
*
३.
क्रुद्ध हुई हो बारिश तुम फिर।
सघन अँधेरा आया घिर घिर।।
बरस रही हो, गरज-मचल कर।
ठाना रख दो थस-नहस कर।।
पर्वत ढहते, धरती कंपित।
नदियाँ उफनाई हो शापित।।
पवन हो गया क्या उन्मादित?
जीव-जंतु-मनु होते कंपित।।
प्रलय न लाओ, कहर न ढाओ।
रूद्र सुता हे! कुछ सुस्ताओ।।
थोड़ा हरषो, थोड़ा बरसो।
जीवन विकसे, थोड़ा सरसो।।
भ्रांत न हो हे बारिश! तुम फिर।
शांत रही हे बारिश! हँस फिर।।
३०-१०-२०२२
***
भारत आरती
संजीव
*
आरती भारत माता की
पुण्य भू जग विख्याता की
*
सूर्य ऊषा वंदन करते
चाँदनी चाँद नमन करते
सितारे गगन कीर्ति गाते
पवन यश दस दिश गुंजाते
देवगण पुलक, कर रहे तिलक
ब्रह्म हरि शिव उद्गाता की
आरती भारत माता की
*
हिमालय मुकुट शीश सोहे
चरण सागर पल पल धोए
नर्मदा कावेरी गंगा
ब्रह्मनद सिंधु करें चंगा
असुर सुर मानव त्राता की
आरती भारत माता की
*
करें शृंगार सकल मौसम
कहें मैं-तू मिलकर हों हम
ऋचाएँ कहें सनातन सच
सत्य-शिव-सुंदर कह-सुन रच
अगिन जनगण सुखदाता की
आरती भारत माता की
*
द्वीप जंबू छवि मनहारी
छटा आर्यावर्ती न्यारी
गोंडवाना है हिंदुस्तान
इंडिया भारत देश महान
जीव संजीव विधाता की
आरती भारत माता की
*
मिल अनल भू नभ पवन सलिल
रचें सब सृष्टि रहें अविचल
अगिन पंछी करते कलरव
कृषक श्रम कर वरते वैभव
ज्ञान-सुख-शांति प्रदाता की
आरती भारत माता की
३०-१०-२०२०
***
लघुकथा
कौन जाने कब?
*
'बब्बा! भाग्य बड़ा होता है या कर्म?' पोते ने पूछा।
''बेटा! दोनों का अपना-अपना महत्व है, दोनों में से किसी एक को बड़ा और दूसरे को छोटा नहीं कहा जा सकता।''
'दोनों की जरूरत ही क्या है? क्या एक से काम नहीं चल सकता?'
''तुम्हारे पापा-मम्मी का बैंक में लॉकर है न?''
'हाँ, है।'
''लॉकर की क्या जरूरत है?''
'मम्मी ने बताया था कि घर में रखने से कीमती सामान की चोरी हो सकती है। इसलिए बैंक में सुरक्षित स्थान लेकर वहाँ कीमती सामान रखते हैं।'
'' शाबाश! लॉकर की चाबी किसके पास होती हैं?''
'पापा से पूछा था मैंने। पापा ने बताया कि लॉकर में दो ताले होते हैं। एक की चाबी बैंक के प्रबंधक तथा दूसरी की लॉकर खोलने वाले के पास होती है।'
''ऐसा क्यों?''
'क्या बब्बा! आपको कुछ भी नहीं मालूम क्या?, मैं आपसे पूछने आया था आप मुझसे ही पूछते जा रहे हो।'
''तुम इस सवाल का जवाब बताओ, फिर मैं तुम्हारे सवाल का जवाब दूँगा।''
'ठीक है, सवाल जरूर बताना। यह यह नहीं कि मुझसे पूछ लो और फिर मेरे सवाल का जवाब न बताओ।'
''नहीं, तुम्हारे सवाल का जवाब जरूर बताऊँगा।''
'ठीक है, फिर सुनों। मम्मी-पापा जब लॉकर खोलने जाते हैं, तब मैनेजर पहले अपनी चाबी लगाकर एक ताला खोलता है और चला जाता है, तब मम्मी-पापा अपनी चाबी से दूसरा ताला खोलकर सामान रखते-निकालते हैं, फिर लॉकर बंद कर देते हैं। तब मैनेजर अपनी चाबी से दूसरा लॉकर बंद करता है।'
''वाह, तुम तो बहुत होशियार हो। अब आखिरी प्रश्न का उत्तर दो। दो ताले क्यों जरूरी हैं?''
'इसलिए कि मम्मी-पापा सामान रख दें तो मैनेजर या कोई दूसरा चुपचाप निकल न सके। दूसरी तरफ कोइ ग्राहक चुपचाप सामान निकालकर बैंक पर चोरी का आरोप लगाकर सामान न माँगने लगे।'
''क्या बात है? अब तो तुम्हारे प्रश्न का उत्तर तुमने ही दे दिया है।''
'वह कैसे?'
''वह ऐसे कि बैंक मैनेजर के पास जो चाबी है वह है भाग्य। तुम्हारे मम्मी-पापा के पास जो चाबी है, वह है कर्म। कर्म और भाग्य दोनों चाबी एक साथ लगाए बिना लॉकर नहीं खुलता।''
'यह तो आप ठीक कह रहे हैं, पर मेरा सवाल?'
''यही तो तुम्हारे सवाल का जवाब है। तुम्हारी तुम जो पाना चाहते हो वह है लॉकर, मेहनत एक चाबी है जो तुम्हारे पास है और भाग्य दूसरी चाबी है जो भगवान या किस्मत के पास है। चाहत का लॉकर खोलने के लिए दोनों चाबियाँ लगाना जरूरी है। भगवान या किस्मत अपनी चाबी कब लगाएगी तुम्हें नहीं मालूम। तुम उनसे चाबी लगवा भी नहीं सकते। लेकिन जब वह चाबी लगे तब भी चाहत का लॉकर नहीं खुलेगा यदि तुम्हारी कोशिश की चाबी न लगी हो।''
'समझ गया, समझ गया। आप कह रहे हो कि मैं चाहत का लॉकर खोलने के लिए, कोशिश की चाबी बार-बार लगाता रहूँ। जैसे ही किस्मत की चाबी लगेगी, चाहत का लॉकर खुल जाएगा। समझ गया, अच्छा बब्बा चलता हूँ।'
''कहाँ चल दिए?''
'और कहाँ?, अपना बस्ता लेकर गणित का सवाल हल करने की कोशिश करने। परीक्षा परिणाम का लॉकर खोलना है न। खुलेगा ही लेकिन कौन जाने कब?'
***
लघु कथा:
सच्चा उत्सव
*
उपहार तथा शुभकामना देकर स्वरुचि भोज में पहुँचा, हाथों में थमी प्लेटों में कहीं मुरब्बा दही-बड़े से गले मिल रहा था, कहीं रोटी पापड़ के गाल पर दाल मल रही थी, कहीं भटा भिन्डी से नैन मटक्का कर रहा था और कहीं इडली-सांभर को गुत्थमगुत्था देखकर डोसा मुँह फुलाये था।
इनकी गाथा छोड़ चले हम मीठे के मैदान में वहाँ रबड़ी के किले में जलेबी सेंध लगा रही थी, दूसरे दौने में गोलगप्पे आलूचाप को ठेंगा दिखा रहे थे।
जितने अतिथि उतने प्रकार की प्लेटें और दौने, जिस तरह सारे धर्म एक ईश्वर के पास ले जाते हैं वैसे ही सब प्लेटें और दौने कम खाकर अधिक फेंके गये स्वादिष्ट सामान को वेटर उठाकर बाहर कचरे के ढेर पर पहुँचा रहे थे।
हेलो-हाय करते हुए बाहर निकला तो देखा चिथड़े पहने कई बड़े-बच्चे और श्वान-शूकर उस भंडारे में अपना भाग पाने में एकाग्रचित्त निमग्न थे, उनके चेहरों की तृप्ति बता रही थी की यही है सच्चा उत्सव।
***
नव प्रयोग
*
छंद सूत्र: य न ल
*
मुक्तक-
मिलोगी जब तुम,
मिटेंगे तब गम।
खिलेंगे नित गुल
हँसेंगे मिल हम।।
***
मुक्तिका -
हँसा है दिनकर
उषा का गह कर।
*
कहेगी सरगम
चिरैया छिपकर।
*
अँधेरा डरकर
गया है मरकर।
*
पियेगा जल नित
मजूरा उठकर।
*
न नेता सुखकर
न कोई अफसर।
*
सुसिंधु सलिलज
सुमेघ जलधर।
*
कबीर सच कह
अमीर धन धर।
३०-१०-२०१८
***
:नवगीत:
राम रे!
*
राम रे!
तनकऊ नई मलाल???
*
भोर-साँझ लौ
गोड़ तोड़ रै
काम चोर बे कैते
पसरे रैत
ब्यास गादी पे
भगतन संग लपेटे
काम-पुजारी
गीता बाँचे
हेरें गोप निहाल।
आँधर ठोकें ताल
राम रे!
बारो डाल पुआल।
राम रे!
तनकऊ नई मलाल???
*
झिमिर-झिमिर-झम
बूँदें टपकें
रिस रए छप्पर-छानी
मैली कर दई रैटाइन की
किन्नें धोती धानी?
लज्जा ढाँपे
सिसके-कलपे
ठोंके आप कपाल
मुए हाल-बेहाल
राम रे!
कैसा निर्दय काल?
राम रे!
तनकऊ नई मलाल???
*
भट्टी-देह न देत दबाई
पैले मांगें पैसा
अस्पताल मा
घुसे कसाई
ठाणे-अरना भैंसा
काले कोट
कचैरी घेरे
बकरा करें हलाल
नेता भए बबाल
राम रे!
लूट बजा रए गाल
राम रे!
तनकऊ नई मलाल???
३०-१०-२०१५
***
चंद अश'आर
दिल
*
इस दिल की बेदिली का आलम न पूछिए
तूफ़ान सह गया मगर क़तरे में बह गया
*
दिलदारों की इस बस्ती में दिलवाला बेमौत मरा
दिल के सौदागर बन हँसते मिले दिलजले हमें यहाँ
*
दिल पर रीझा दिल लेकिन बिल देख नशा काफूर हुआ
दिए दिवाली के जैसे ही बुझे रह गया शेष धुँआ
*
दिलकश ने ही दिल दहलाया दिल ले कर दिल नहीं दिया
बैठा है हर दिल अज़ीज़ ले चाक गरेबां नहीं सिया
*
नवगीत:
सांध्य सुंदरी
तनिक न विस्मित
न्योतें नहीं इमाम
जो शरीफ हैं नाम का
उसको भेजा न्योता
सरहद-करगिल पर काँटों की
फसलें है जो बोता
मेहनतकश की
थकन हरूँ मैं
चुप रहकर हर शाम
नमक किसी का, वफ़ा किसी से
कैसी फितरत है
दम कूकुर की रहे न सीधी
यह ही कुदरत है
खबरों में
लाती ही क्यों हैं
चैनल उसे तमाम?
साथ न उसके मुसलमान हैं
बंदा गंदा है
बिना बात करना विवाद ही
उसका धंधा है
थूको भी मत
उसे देख, मत
करना दुआ-सलाम
***
नवगीत:
राष्ट्रलक्ष्मी!
श्रम सीकर है
तुम्हें समर्पित
खेत, फसल, खलिहान
प्रणत है
अभियन्ता, तकनीक
विनत है
बाँध-कारखाने
नव तीरथ
हुए समर्पित
कण-कण, तृण-तृण
बिंदु-सिंधु भी
भू नभ सलिला
दिशा, इंदु भी
सुख-समृद्धि हित
कर-पग, मन-तन
समय समर्पित
पंछी कलरव
सुबह दुपहरी
संध्या रजनी
कोशिश ठहरी
आसें-श्वासें
झूमें-खांसें
अभय समर्पित
शैशव-बचपन
यौवन सपने
महल-झोपड़ी
मानक नापने
सूरज-चंदा
पटका-बेंदा
मिलन समर्पित
***
नवगीत:
हर चेहरा है
एक सवाल
शंकाकुल मन
राहत चाहे
कहीं न मिलती.
शूल चुभें शत
आशा की नव
कली न खिलती
प्रश्न सभी
देते हैं टाल
क्या कसूर,
क्यों व्याधि घेरती,
बेबस करती?
तन-मन-धन को
हानि अपरिमित
पहुँचा छलती
आत्म मनोबल
बनता ढाल
मँहगा बहुत
दवाई-इलाज
दिवाला निकले
कोशिश करें
सम्हलने की पर
पग फिर फिसले
किसे बताएं
दिल का हाल?
***
संजीवनी अस्पताल, रायपुर

२९-११-२०१४ 

***
गीत:
अँधेरा धरा पर कहीं रह न जाए…
*
पलो आँख में स्वप्न बनकर सदा तुम
नयन-जल में काजल कहीं बह न जाए.
जलो दीप बनकर अमावस में ऐसे
अँधेरा धरा पर कहीं रह न जाए…
*
अपनों ने अपना सदा रंग दिखाया,
न नपनों ने नपने को दिल में बसाया.
लगन लग गयी तो अगन ही सगन को
सहन कर न पायी पलीता लगाया.
दिलवर का दिल वर लो, दिल में छिपा लो
जले दिलजले जलजले आ न पाए...
*
कुटिया ही महलों को देती उजाला
कंकर के शंकर को पूजे शिवाला.
मुट्ठी बँधी बाँधती कर्म-बंधन
खोलो न मोले तनिक काम-कंचन.
बहो, जड़ बनो मत शिलाओं सरीखे
नरमदा सपरना न मन भूल जाए...
*
सहो पीर धर धीर बनकर फकीरा
तभी हो सको सूर मीरा कबीरा.
पढ़ो ढाई आखर, नहा स्नेह-सागर
भरो फेफड़ों में सुवासित समीरा.
मगन हो गगन को निहारो, सुनाओ
'सलिल' नाद अनहद कहीं खो जाए...
*
सगन = शगुन, जलजला = भूकंप, नरमदा = नर्मदा, सपरना = स्नान करना
त्रिभंगी सलिला:
हम हैं अभियंता
*
(छंद विधान: १० ८ ८ ६ = ३२ x ४)
*
हम हैं अभियंता नीति नियंता, अपना देश सँवारेंगे
हर संकट हर हर मंज़िल वर, सबका भाग्य निखारेंगे
पथ की बाधाएँ दूर हटाएँ, खुद को सब पर वारेंगे
भारत माँ पावन जन मन भावन, श्रम-सीकर चरण पखारेंगे
*
अभियंता मिलकर आगे चलकर, पथ दिखलायें जग देखे
कंकर को शंकर कर दें हँसकर मंज़िल पाएं कर लेखे
शशि-मंगल छूलें, धरा न भूलें, दर्द दीन का हरना है
आँसू न बहायें , जन-गण गाये, पंथ वही तो वरना है
*
श्रम-स्वेद बहाकर, लगन लगाकर, स्वप्न सभी साकार करें
गणना कर परखें, पुनि-पुनि निरखें, त्रुटि न तनिक भी कहीं वरें
उपकरण जुटाएं, यंत्र बनायें, नव तकनीक चुनें न रुकें
आधुनिक प्रविधियाँ, मनहर छवियाँ, उन्नत देश करें
*
नव कथा लिखेंगे, पग न थकेंगे, हाथ करेंगे काम काम सदा
किस्मत बदलेंगे, नभ छू लेंगे, पर न कहेंगे 'यही बदा'
प्रभु भू पर आयें, हाथ बटायें, अभियंता संग-साथ रहें
श्रम की जयगाथा, उन्नत माथा, सत नारायण कथा कहें
३०-१०-२०१३
***

रविवार, 29 अक्तूबर 2023

सॉनेट, हाइकु, सराइकी दोहा, मुक्तक, व्यतिरेक अलंकार, नवगीत, मतदान,

सॉनेट
रामकिशोर
*
मधुर मधुर मुस्कान बिखेरें
दर्द न दिल का कभी दिखाते
हर नाते को पुलक सहेजें
अनजाने को भी अपनाते
वाणी मधुर स्नेह सलिला सम
झट हिल-मिल गुल सम खिल जाते
लगता दूर हो गया है तम
प्राची से दिनकर प्रगटाते
शब्दों की मितव्ययिता बरते
कविताओं में सत्य समय का
लिखें लेख पैने मन-चुभते
भान न लेकिन कहीं अनय का
चेहरे छाई रहती भोर
देते खुशियाँ रामकिशोर
२९-१०-२०२२
***
हाइकु
*
करो वंदन
निशि हुई हाइकु
गीत निशीश।
*
मुदित मन
जिज्ञासु हो दिमाग
राग-विराग।
*
चश्मा देखता
चकित चित मौन
चश्मा बहता।
*
अभिनंदन
माहिया-हाइकु का
रोली-चंदन।
*
झूमा आकाश
महमहाया चाँद
लिए चाँदनी।
*
आज की शाम
फुनगी पर चाँद
झूम नाचता
२८-१०-२०२२
***
सराइकी दोहा:
भाषा विविधा:
[सिरायकी पाकिस्तान और पंजाब के कुछ क्षेत्रों में बोले जानेवाली लोकभाषा है. सिरायकी का उद्गम पैशाची-प्राकृत-कैकई से हुआ है. इसे लहंदा, पश्चिमी पंजाबी, जटकी, हिन्दकी आदि भी कहा गया है. सिरायकी की मूल लिपि लिंडा है. मुल्तानी, बहावलपुरी तथा थली इससे मिलती-जुलती बोलियाँ हैं. सिरायकी में दोहा छंद अब तक मेरे देखने में नहीं आया है. मेरे इस प्रथम प्रयास में त्रुटियाँ होना स्वाभाविक है. पाठकों से त्रुटियाँ इंगित करने तथा सुधार हेतु सहायता का अनुरोध है.]
*
बुरी आदतां दुखों कूँ, नष्ट करेंदे ईश।
साडे स्वामी तुवाडे, बख्तें वे आशीष।।
*
रोज़ करन्दे हन दुआ, तेडा-मेडा भूल।
अज सुणीज गई हे दुआं,त्रया-पंज दा भूल।।
*
दुक्खां कूँ कर दूर प्रभु, जग दे रचनाकार।
डेवणवाले देवता, वरण जोग करतार।।
*
कोई करे तां क्या करे, हे बदलाव असूल।
कायम हे उम्मीद पे, दुनिया कर के भूल।।
*
शर्त मुहाणां जीत ग्या, नदी-किनारा हार।
लेणें कू धिक्कार हे, देणे कूँ जैकार।।
२९-१०-२०१९
*
२९.५.२०१५
एक मुक्तक
वामन दर पर आ विराट खुशियाँ दे जाए
बलि के लुटने से पहले युग जय गुंजाए
रूप चतुर्दशी तन-मन निर्मल कर नव यश दे
पंच पर्व पर प्राण-वर्तिका तम पी पाए
एक छंद
*
विदा दें, बाद में बात करेंगे, नेता सा वादा किया, आज जिसने
जुमला न हो यह, सोचूँ हो हैरां, ठेंगा दिखा ही दिया आज उसने
गोदी में खेला जो, बोले दलाल वो, चाचा-भतीजा निभाएं न कसमें
छाती कठोर है नाम मुलायम, लगें विरोधाभास ये रसमें
*
***
एक छंद
राम के काम को, करे प्रणाम जो, उसी अनाम को, राम मिलेगा
नाम के दाम को, काम के काम को, ध्यायेगा जो, विधि वाम मिलेगा
देश ललाम को, भू अभिराम को, स्वच्छ करे इंसान तरेगा
रूप को चाम को, भोर को शाम को, पूजेगा जो, वो गुलाम मिलेगा
***
मुक्तक
*
स्नेह का उपहार तो अनमोल है
कौन श्रद्धा-मान सकता तौल है?
भोग प्रभु भी आपसे ही पा रहे
रूप चौदस भावना का घोल है
*
स्नेह पल-पल है लुटाया आपने।
स्नेह को जाएँ कभी मत मापने
सही है मन समंदर है भाव का
इष्ट को भी है झुकाया भाव ने
*
फूल अंग्रेजी का मैं,यह जानता
फूल हिंदी की कदर पहचानता
इसलिए कलियाँ खिलता बाग़ में
सुरभि दस दिश हो यही हठ ठानता
*
उसी का आभार जो लिखवा रही
बिना फुरसत प्रेरणा पठवा रही
पढ़ाकर कहती, लिखूँगी आज पढ़
सांस ही मानो गले अटका रही
२९-१०-२०१६
***
अलंकार सलिला: २६
व्यतिरेक अलंकार
*
हिंदी गीति काव्य का वैशिष्ट्य अलंकार हैं. विविध काव्य प्रवृत्तियों को कथ्य का अलंकरण मानते हुए
पिंगलविदों ने उन्हें पहचान और वर्गीकृत कर समीक्षा के लिये एक आधार प्रस्तुत किया है. विश्व की
किसी अन्य भाषा में अलंकारों के इतने प्रकार नहीं हैं जितने हिंदी में हैं.
आज हम जिस अलंकार की चर्चा करने जा रहे हैं वह उपमा से सादृश्य रखता है इसलिए सरल है. उसमें
उपमा के चारों तत्व उपमेय, उपमान, साधारण धर्म व वाचक शब्द होते हैं.
उपमा में सामान्यतः उपमेय (जिसकी समानता स्थापित की जाये) से उपमान (जिससे समानता
स्थापित की जाये) श्रेष्ठ होता है किन्तु व्यतिरेक में इससे सर्वथा विपरीत उपमेय को उपमान से भी श्रेष्ठ
बताया जाता है.
श्रेष्ठ जहाँ उपमेय हो, याकि हीन उपमान.
अलंकार व्यतिरेक वह, कहते हैं विद्वान..
तुलना करते श्रेष्ठ की, जहाँ हीन से आप.
रचना में व्यतिरेक तब, चुपके जाता व्याप..
करें न्यून की श्रेष्ठ से, तुलना सहित विवेक.
अलंकार तब जानिए, सरल-कठिन व्यतिरेक..
उदाहरण:
१. संत ह्रदय नवनीत समाना, कहौं कविन पर कहै न जाना.
निज परताप द्रवै नवनीता, पर दुःख द्रवै सुसंत पुनीता.. - तुलसीदास (उपमा भी)
यहाँ संतों (उपमेय) को नवनीत (उपमान) से श्रेष्ठ प्रतिपादित किया गया है. अतः, व्यतिरेक अलंकार है.
२. तुलसी पावस देखि कै, कोयल साधे मौन.
अब तो दादुर बोलिहैं, हमें पूछिहैं कौन.. - तुलसीदास (उपमा भी)
यहाँ श्रेष्ठ (कोयल) की तुलना हीन (मेंढक) से होने के कारण व्यतिरेक है.
३. संत सैल सम उच्च हैं, किन्तु प्रकृति सुकुमार..
यहाँ संत तथा पर्वत में उच्चता का गुण सामान्य है किन्तु संत में कोमलता भी है. अतः, श्रेष्ठ की हीन से तुलना होने के कारण व्यतिरेक है.
४. प्यार है तो ज़िन्दगी महका
हुआ इक फूल है !
अन्यथा; हर क्षण, हृदय में
तीव्र चुभता शूल है ! -महेंद्र भटनागर
यहाँ प्यार (श्रेष्ठ) की तुलना ज़िन्दगी के फूल या शूल से है जो, हीन हैं. अतः, व्यतिरेक है.
५. धरणी यौवन की
सुगन्ध से भरा हवा का झौंका -राजा भाई कौशिक
६. तारा सी तरुनि तामें ठाढी झिलमिल होति.
मोतिन को ज्योति मिल्यो मल्लिका को मकरंद.
आरसी से अम्बर में आभा सी उजारी लगे
प्यारी राधिका को प्रतिबिम्ब सो लागत चंद..--देव
७. मुख मयंक सो है सखी!, मधुर वचन सविशेष
८. का सरवर तेहि देऊँ मयंकू, चाँद कलंकी वह निकलंकू
९. नव विधु विमल तात! जस तोरा, उदित सदा कबहूँ नहिं थोरा (रूपक भी)
१०. विधि सों कवि सब विधि बड़े, यामें संशय नाहिं
खट रस विधि की सृष्टि में, नव रस कविता मांहि
११. अवनी की ऊषा सजीव थी, अंबर की सी मूर्ति न थी
१२. सम सुबरन सुखमाकर, सुखद न थोर
सीय-अंग सखि! कोमल, कनक कठोर
१३. साहि के सिवाजी गाजी करयौ दिल्ली-दल माँहि,
पाण्डवन हूँ ते पुरुषार्थ जु बढ़ि कै
सूने लाख भौन तें, कढ़े वे पाँच रात में जु,
द्यौस लाख चौकी तें अकेलो आयो कढ़ि कै
१४. स्वर्ग सदृश भारत मगर यहाँ नर्मदा वहाँ नहीं
लड़ें-मरें सुर-असुर वहाँ, यहाँ संग लड़ते नहीं - संजीव वर्मा 'सलिल'
***
***
नवगीत
एक पसेरी
*
एक पसेरी पढ़
तोला भर लिखना फिर तू
.
अनपढ़, बिन पढ़ वह लिखे
जो आँधर को ही दिखे
बहुत सयाने, अति चतुर
टके तीन हरदम बिके
बर्फ कह रहा घाम में
हाथ-पैर झुलसे-सिके
नवगीतों को बाँधकर
खूँटे से कुछ क्यों टिके?
मुट्ठी भर तो लुटा
झोला भर धरना फिर तू
एक पसेरी पढ़
तोला भर लिखना फिर तू
.
सूरज ढाँके कोहरे
लेते दिन की टोह रे!
नदी धार, भाषा कभी
बोल कहाँ ठहरे-रुके?
देस-बिदेस न घूमते
जो पग खाकर ठोकरें
बे का जानें जिन्नगी
नदी घाट घर का कहें?
मार अहं को यार!
किसी पर मरना फिर तू
एक पसेरी पढ़
तोला भर लिखना फिर तू
.
लाठी ने कब चाहा
पाये कोई सहारा?
चंदा ने निज रूप
सोच कब कहाँ निहारा
दियासलाई दीपक
दीवट दें उजियारा
जला पतंगा, दी आवाज़
न टेर गुहारा
ऐब न निज का छिपा
गैर पर छिप धरना तू
एक पसेरी पढ़
तोला भर लिखना फिर तू
२९-१०-२०१५

***
नवगीत:
रिश्ते
*
सांस बन गए रिश्ते
.
अनजाने पहचाने लगते
अनचीन्हे नाते, मन पगते
गैरों को अपनापन देकर
हम सोते या जगते
ठगे जा रहे हम औरों से
या हम खुद को ठगते?
आस बन गए रिश्ते
.
दिन भर बैठे आँख फोड़ते
शब्द-शब्द ही रहे जोड़ते
दुनिया जोड़े रूपया-पैसा
कहिए कैसे छंद छोड़ते?
गीत अगीत प्रगीत विभाजन
रहे समीक्षक हृदय तोड़ते
फांस बन गए रिश्ते
.
नभ भू समुद लगता फेरा
गिरता बहता उड़ता डेरा
मीठा मैला खरा होता
'सलिल' नहीं रोके पग-फेरा
दुनियादारी सीख न पाया
क्या मेरा क्या तेरा
कांस बन गए रिश्ते
२९-१०-२०१५

***
नवगीत:
आओ रे!
मतदान करो
भारत भाग्य विधाता हो
तुम शासन-निर्माता हो
संसद-सांसद-त्राता हो
हमें चुनो
फिर जियो-मरो
कैसे भी
मतदान करो
तूफां-बाढ़-अकाल सहो
सीने पर गोलियाँ गहो
भूकंपों में घिरो-ढहो
मेलों में
दे जान तरो
लेकिन तुम
मतदान करो
लालटेन, हाथी, पंजा
साड़ी, दाढ़ी या गंजा
कान, भेंगा या कंजा
नेता करनी
आप भरो
लुटो-पिटो
मतदान करो
पाँच साल क्यों देखो राह
जब चाहो हो जाओ तबाह
बर्बादी को मिले पनाह
दल-दलदल में
फँसो-घिरो
रुपये लो
मतदान करो
नाग, साँप, बिच्छू कर जोड़
गुंडे-ठग आये घर छोड़
केर-बेर में है गठजोड़
मत सुधार की
आस धरो
टैक्स भरो
मतदान करो
***
(कश्मीर तथा अन्य राज्यों में चुनाव की खबर पर )
sanjivani hospital raipur
29-11-1014
नवगीत:
ज़िम्मेदार
नहीं है नेता
छप्पर औरों पर
धर देता
वादे-भाषण
धुआंधार कर
करे सभी सौदे
उधार कर
येन-केन
वोट हर लेता
सत्ता पाते ही
रंग बदले
यकीं न करना
किंचित पगले
काम पड़े
पीठ कर लेता
रंग बदलता
है पल-पल में
पारंगत है
बेहद छल में
केवल अपनी
नैया खेता
२९-१०-२०१४
***
नवगीत:
सुख-सुविधा में
मेरा-तेरा
दुःख सबका
साझा समान है
पद-अधिकार
करते झगड़े
अहंकार के
मिटें न लफ़ड़े
धन-संपदा
शत्रु हैं तगड़े
परेशान सब
अगड़े-पिछड़े
मान-मनौअल
समाधान है
मिल-जुलकर जो
मेहनत करते
गिरते-उठते
आगे बढ़ते
पग-पग चलते
सीढ़ी चढ़ते
तार और को
खुद भी तरते
पगतल भू
करतल वितान है
२८ -११-२०१४
संजीवनी चिकित्सालय रायपुर
***

नवगीत:
देव सोये तो
सोये रहें
हम मानव जागेंगे
राक्षस
अति संचय करते हैं
दानव
अमन-शांति हरते हैं
असुर
क्रूर कोलाहल करते
दनुज
निबल की जां हरते हैं
अनाचार का
शीश पकड़
हम मानव काटेंगे
भोग-विलास
देवता करते
बिन श्रम सुर
हर सुविधा वरते
ईश्वर पाप
गैर सर धरते
प्रभु अधिकार
और का हरते
हर अधिकार
विशेष चीन
हम मानव वारेंगे
मेहनत
अपना दीन-धर्म है
सच्चा साथी
सिर्फ कर्म है
धर्म-मर्म
संकोच-शर्म है
पीड़ित के
आँसू पोछेंगे
मिलकर तारेंगे
***
२८ -११-२०१४
संजीवनी चिकित्सालय रायपुर

शनिवार, 28 अक्तूबर 2023

नीराजना छंद, कविता, कुंडलिया, नैरंतरी छंद,

 

हिंदी के नए छंद १८
नीराजना छंद
*
लक्षण:
१. प्रति पंक्ति २१ मात्रा।
२. पदादि गुरु।
३. पदांत गुरु गुरु लघु गुरु।
४. यति ११ - १०।
लक्षण छंद:
एक - एक मनुपुत्र, साथ जीतें सदा।
आदि रहें गुरुदेव, न तब हो आपदा।।
हो तगणी गुरु अंत, छंद नीरजना।
मुग्ध हुए रजनीश, चंद्रिका नाचना।।
टीप:
एक - एक = ११, मनु पुत्र = १० (इक्ष्वाकु, नृग, शर्याति, दिष्ट,
धृष्ट, करुषय, नरिष्यन्त, प्रवध्र, नाभाग, कवि भागवत)
उदाहरण:
कामदेव - रति साथ, लिए नीराजना।
संयम हो निर्मूल, न करता याचना।।
हो संतुलन विराग - राग में साध्य है।
तोड़े सीमा मनुज, नहीं आराध्य है।।
२८-१०-२०१७
***
कविता:
सफाई
मैंने देखा सपना एक
उठा तुरत आलस को फेंक
बीजेपी ने कांग्रेस के
दरवाज़े पर करी सफाई
नीतीश ने भगवा कपड़ों का
गट्ठर ले करी धुलाई
माया झाड़ू लिए
मुलायम की राहों से बीनें काँटे
और मुलायम ममतामय हो
लगा रहे फतवों को चाँटे
जयललिता की देख दुर्दशा
करुणा-भर करूणानिधि रोयें
अब्दुल्ला श्रद्धा-सुमनों की
अवध पहुँच कर खेती बोयें
गज़ब! सोनिया ने
मनमोहन को
मन मंदिर में बैठाया
जन्म अष्टमी पर
गिरिधर का सोहर
सबको झूम सुनाया
स्वामी जी को गिरिजाघर में
प्रेयर करते हमने देखा
और शंकराचार्य मिले
मस्जिद में करते सबकी सेवा
मिले सिक्ख भाई कृपाण से
खापों के फैसले मिटाते
बम्बइया निर्देशक देखे
यौवन को कपडे पहनाते
डॉक्टर और वकील छोड़कर फीस
काम जल्दी निबटाते
न्यायाधीश एक पेशी में
केसों का फैसला सुनाते
थानेदार सड़क पर मंत्री जी का
था चालान कर रहा
बिना जेब के कपड़े पहने
टी. सी. बरतें बाँट हँस रहा
आर. टी. ओ. लाइसेंस दे रहा
बिना दलाल के सच्चे मानो
अगर देखना ऐसा सपना
चद्दर ओढ़ो लम्बी तानो
***
नैरंतरी छंद
बचपन बोले: उठ मत सो ले
उठ मत सो ले, सपने बो ले
सपने बो ले, अरमां तोले
अरमां तोले, जगकर भोले
जगकर भोले, मत बन शोले
मत बन शोले, बचपन बोले
अपनी भाषा मत बिसराओ, अपने स्वर में भी कुछ गाओ
अपने स्वर में भी कुछ गाओ, दिल की बातें तनिक बताओ
दिल की बातें तनिक बताओ, बाँहों में भर गले लगाओ
बाँहों में भर गले लगाओ, आपस की दूरियाँ मिटाओ
आपस की दूरियाँ मिटाओ, अँगुली बँध मुट्ठी हो जाओ
अँगुली बँध मुट्ठी हो जाओ, अपनी भाषा मत बिसराओ
२८-१०-२०१४

***

: कुंडलिया :

प्रथम पेट पूजा करें
0
प्रथम पेट पूजा करें, लक्ष्मी-पूजन बाद
मुँह में पानी आ रहा, सोच मिले कब स्वाद
सोच मिले कब स्वाद, भोग पहले खुद खा ले
दास राम का अधिक, राम से यह दिखला दे
कहे 'सलिल' कविराय, न चूकेंगे अवसर हम
बन घोटाला वीर, लगायें भोग खुद प्रथम
२८-१०-२०१३
***

शुक्रवार, 27 अक्तूबर 2023

चित्रक, आयुर्वेद, ममता सैनी

चित्रक हरता कष्ट

*
चित्रक की दो जातियाँ, श्वेत-रक्त हैं फूल।
भारत लंका बांग्ला, खिले न इसमें शूल।१।
*
कालमूल चीता दहन, अग्नि ब्याल है आम।
बेखबरंदा फारसी, अरब शैतरज नाम।२।
*
चित्रमूल चित्रो कहें, महाराष्ट्र गुजरात।
चित्रा है पंजाब में, लीडवर्ट ही भ्रात।३।
*
प्लंबैगो जेलेनिका, है वैज्ञानिक नाम।
कुल प्लंबैजिलेनिका, नेफ्थोक्विनोन अनाम।४।
*
कोमल चिकनी हरी हों, शाख आयु भरपूर।
जड़ पत्ते अरु अर्क भी, करें रोग झट दूर।५।
*
चीनी लिपिड फिनोल है, संग प्रोटीन-स्टार्च।
संधिशोथ कैंसर हरे, करे पंगु भी मार्च।६।
*
एंटीबायोटिक जड़ें, एंटी ऑक्सीडेन्ट।
करतीं दूर मलेरिया, सचमुच एक्सीलेंट।७।
*
अल्कलाइड प्लंबेंगिन, कैंसर हरता तात।
नेफ्रोटॉक्सिक असर को, सिस्प्लेटिन दे मात।८।
*
प्लंबेगिन अग्न्याशयी, कैंसर देता रोक।
कोलस्ट्राल एलडीएल, कम करता हर शोक।९।
*
पथरी गठिया पीलिया, प्रजनन कैंसर रोक।
किडनी-ह्रदय विकार हर, घाव भरे मत टोंक।१०।
*
छह फुटिया झाड़ीनुमा, पौधा सदाबहार। 
तना रहे छोटा हरा, पत्ते लट्वाकार।११।
*
तीन इंच लंबा रहे, एक इंच फैलाव। 
अग्रभाग पैना रहे, जड़ के साथ जुड़ाव।१२।
*
लंबाई नौ इंच के, नलिकावाले फूल। 
गंधहीन गुच्छे खिलें, पुष्पदण्ड हो मूल।१३।
*
लंब-गोल फल में रहे, बीज हमेशा एक। 
श्याम-श्वेत बाह्यांsतर, खाएँ सहित विवेक।१४।
*   
जड़ भंगुर हों छाल पर, छोटे कई उभार। 
स्वाद तीक्ष्ण-कटु चिपचिपे, रोमयुक्त फलदार।१५।
*
है यह ऊष्ण त्रिदोष हर, करे वात को शांत। 
कृमिनाशी मल निकाले, पाचन दीपन कांत।१६।
*
कफ-ज्वर बंधक शोथहर, है पौष्टिक-कटु रुक्ष।  
श्लेष्मा वमन प्रमेह विष, कुष्ठ मिटाए दक्ष।१७। 
*
दुग्ध-रक्त शोधन करे, योनीदोष भी दूर। 
गुल्म वायु दीपन अरुचि, मिटे शांति भरपूर।१८।
*
हो जाए नकसीर यदि, शहद-चूर्ण दो ग्राम। 
चाट लीजिए तुरत हो, सच मानें आराम।१९।
*
चित्रक-हल्दी-आँवला, अजमोदा-यवक्षार। 
तीन ग्राम चूरन बना, दिन में लें दो बार।२० अ। 

खाएँ मधु-घृत में मिला, दूर रहे स्वर भेद। 
रामबाण है यह दवा, चूक न करिए खेद।२० आ।
*
चित्रक-सेंधा नमक लें, हरड़-पिप्पली संग। 
सुबह-शाम दो ग्राम पी, पानी गर्म मलंग।२१ अ। 

पचता भोज्य गरिष्ठ भी, मत सँकुचें सरकार।  
अग्नि दीप्त हो पच सके, जो खाएँ आहार।२१ आ।  
*
ताजी जड़ का चूर्ण लें, नागरमोथे साथ। 
वायविडंग न भूलिए, सम मात्रा रख हाथ।२२ अ। 

पाँच ग्राम खा जाइए, भोजन करने पूर्व। 
पाचन शक्ति दुरुस्त हो, लगती भूख अपूर्व।२२ आ।
कल्क सिद्ध घी लीजिए, चित्रक क्वाथ समेत। 
भोजन पहले कीजिए, संग्रहणी हो खेत।२३।
*
चित्रक चूर्ण मिटा सके, तिल्ली-सूजन सत्य।  
बीस ग्राम घृतकुमारी, गूदे सँग लें नित्य।२४।
*
चित्रक जड़ का चूर्ण लें, तीन बार हर रोज। 
प्लीहा रोग मिटे- बढ़े, बल चेहरे का ओज।२५।
*
तक्र सहित दो ग्राम लें, चित्रक त्वक का चूर्ण। 
तब ही भोजन कीजिए, अर्श मिटे संपूर्ण।२६।
*
चित्रक-जड़ का चूर्ण लें, मृदा-पात्र में लेप। 
दही जमाएँ छाछ पी, अर्श मिटा मत झेंप।२७।
*
चित्रक-जड़ चूरन शहद, चाटें यदि दस ग्राम।     
सहज सुखद हो प्रसव अरु, माँ पाए आराम।२८। 
*
चित्रक-जड़ कुटकी हरड़, इंद्रजौ और अतीस। 
काली पहाड़ जड़ मिलाएँ, सम उन्नीस न बीस।२९ अ।

तीन ग्राम लें चूर्ण नित, सुबह-शाम बिन भूल।
वात रोग से मुक्त हों, मिटे दर्द का शूल।२९ आ।
*
चित्रक जड़ पीपल हरड़, अरु चीनी रेबंद। 
काला नमक व आँवला, लें पीड़ा हो मंद।३० अ।

गर्म नीर के साथ लें, पाँच ग्राम हर रात।
आंत-वायु के संग ही, संधिवात की मात।३० आ। 
*
चित्रक जड़ ब्राह्मी सहित, वच समान लें पीस। 
तीन बार दो ग्राम लें, हिस्टीरिआ मरीज।३१। 
*
चित्रक जड़ पीपल मरीच, सौंठ चूर्ण सम आप। 
चार ग्राम लें तो मिटे, जल्दी ही ज्वर-ताप।३२।
*
ज्वर में अन्न न खा सके, रक्त संचरण मंद। 
टुकड़े चित्रक मूल के, चबा मिले आनंद।३३।
*
छत्रक जड़ रस निर्गुंडी, तीन बार दो ग्राम। 
लें प्रसूतिका ज्वर घटे, झट पाएँ आराम।३४ अ।

गर्भाशय देता बहा, दूषित आर्तव दूर। 
मिटता मक्क्ल शूल भी, पीड़ा होती दूर।३४ आ। 
*
चित्रक छाला दूध-जल, पीस लेपिए आप।  
चरम रोग अरु कुष्ठ भी, मिटे घटे संताप।३५ अ।

पुल्टिस बाँधें उठेगा, छाला जब हो ठीक।      
दाग दूर हो जाएँगे, कहती आयुष लीक।३५ आ।
*
दूध लाल चित्रक लगा, खुजली पर लें लीप। 
मिले शीघ्र आराम अरु, रोग न रहे समीप।३६।
*
सिफलिस-कोढ़ मिटा सके, सूखी जड़ की छाल। 
सुबह-शाम त्रै ग्राम लें, चित्रक होगा लाल।३७।
*
पीप बहे लें घाव पर, लेप चित्रकी छाल।
घाव ठीक हो शीघ्र ही, आयुर्वेद कमाल।३८।
*
मूषक ज्वर जाए उतर, तलुए मलिए तेल। 
चित्रक छाला चूर्ण सँग, पका न पीड़ा झेल।३९।
*
मात्रा अधिक न लें 'सलिल', विष सम करे अनिष्ट। 
मात्रा-विधि हो सही तो, चित्रक हरता कष्ट।४०।
*** 

करवा चौथ, मुक्तक, लघुकथा, नवगीत, चित्रगुप्त

एक रचना
*
दिल जलता है तो जलने दे
दीवाली है
आँसू न बहा फरियाद न कर
दीवाली है
दीपक-बाती में नाता क्या लालू पूछे
चुप घरवाला है, चपल मुखर घरवाली है
फिर तेल धार क्या लगी तनिक यह बतलाओ
यह दाल-भात में मूसल रसमय साली है
जो बेच-खरीद रहे उनको समधी जानो
जो जला रही तीली सरहज मतवाली है
सासू याद करे अपने दिन मुस्काकर
साला बोला हाथ लगी हम्माली है
सखी-सहेली हवा छेड़ती जीजू को
भभक रही लौ लाल न जाए सँभाली है
दिल जलता है तो जलने दे दीवाली है
आँसू न बहा फरियाद न कर दीवाली है
२७-१०-२०१९
***
करवा चौथ
*
अर्चना कर सत्य की, शिव-साधना सुन्दर करें।
जग चलें गिर उठ बढ़ें, आराधना तम हर करें।।
*
कौन किसका है यहाँ?, छाया न देती साथ है।
मोह-माया कम रहे, श्रम-त्याग को सहचर करें।।
*
एक मालिक है वही, जिसने हमें पैदा किया।
मुक्त होकर अहं से, निज चित्त प्रभु-चाकर करें।।
*
वरे अक्षर निरक्षर, तब शब्द कविता से मिले।
भाव-रस-लय त्रिवेणी, अवगाह चित अनुचर करें।।
*
पूर्णिमा की चंद्र-छवि, निर्मल 'सलिल में निरखकर।
कुछ रचें; कुछ सुन-सुना, निज आत्म को मधुकर करें।।
करवा चौथ २७-१०-२०१८
***
मुक्तक
*
जीते जी मिलता प्यार नहीं, मरने पर बनते ताजमहल
यह स्वाभाविक है, स्मृतियाँ बिन बिछड़े होती नहीं प्रबल
क्यों दोष किसी को दें हम-तुम, जो साथ उसे कब याद किया?
बिन शीश कटाये बना रहे, नेता खुद अपने शीशमहल
*
जीवन में हुआ न मूल्यांकन, शिव को भी पीना पड़ा गरल
जीते जी मिलता प्यार नहीं, मरने पर बनते ताजमहल
यह दुनिया पत्थर को पूजे, सम्प्राणित को ठुकराती है
जो सचल पूजता हाथ जोड़ उसको जो निष्ठुर अटल-अचल
*
कविता होती तब सरस-सरल, जब भाव निहित हों सहज-तरल
मन से मन तक रच सेतु सबल, हों शब्द-शब्द मुखरित अविचल
जीते जी मिलता प्यार नहीं, मरने पर बनते ताजमहल
हँस रूपक बिम्ब प्रतीकों में, रस धार बहा करती अविकल
*
जन-भाषा हिंदी की जय-जय, चिरजीवी हो हिंदी पिंगल
सुरवाणी प्राकृत पाली बृज, कन्नौजी अपभ्रंशी डिंगल
इतिहास यही बतलाता है, जो सम्मुख वह अनदेखा हो
जीते जी मिलता प्यार नहीं, मरने पर बनते ताजमहल
*
दोहा सलिला -
नेह नर्मदा सलिल ही, पा नयनों का गेह
प्रवहित होता अश्रु बन, होती देह विदेह
*
स्नेह-सलिल की लहर सम, बहिये जी भर मीत
कूल न तोड़ें बाढ़ बन, यह जीवन की रीत
*
मिले प्रेरणा तो बने, दोहा गीत तुरंत
सदा सदय माँ शारदा, साक्षी दिशा-दिगंतदोहा 
२७-१०-२०१६
***
लघुकथा:
प्यार के नाम
*
पलट रहा हूँ फेसबुक आउट वाट्स ऐप के पन्ने, कहीं गीत-ग़ज़ल है, कहीं शेरो-शायरी, कहीं किस्से-कहानी, कहीं कहीं मदमस्त अदायें और चुलबुले कमेंट्स, लिव इन की खबरें, सबका दावा है कि वे उनका जीवन है सिर्फ प्यार के नाम.…
तलाश कर थक गया लेकिन नहीं मिला कोई भजन, प्रार्थना, सबद, अरदास, हम्द, नात, प्रेयर उसके नाम जिसने बनाई है यह कायनात, जो पूरी करता है सबकी मुरादें, कहें नहीं है चंद सतरें-कोई पैगाम उसके प्यार के नाम।
***
मुक्तक:
जुदा-जुदा किस्से हैं अपने
जुदा-जुदा हिस्से हैं अपने
पीड़ा सबकी एक रही है-
जुदा-जुदा सपने हैं अपने
*
कौन किसको प्यार कर पाया यहाँ?
कौन किससे प्यारा पा पाया यहाँ?
अपने सुर में बात अपनी कह रहे-
कौन सबकी बात कर पाया यहाँ?
*
अक्षर-अक्षर अलग रहा तो कह न सका कुछ
शब्द-शब्द से विलग रहा तो सह न सका कुछ
अक्षर-शब्द मिले तो मैं-तुम से हम होकर
नहीं कह सका ऐसा बाकी नहीं रहा कुछ
२७-१०-२०१५
***
नवगीत:
चित्रगुप्त को
पूज रहे हैं
गुप्त चित्र
आकार नहीं
होता है
साकार वही
कथा कही
आधार नहीं
बुद्धिपूर्ण
आचार नहीं
बिन समझे
हल बूझ रहे हैं
कलम उठाये
उलटा हाथ
भू पर वे हैं
जिनका नाथ
खुद को प्रभु के
जोड़ा साथ
फल यह कोई
नवाए न माथ
खुद से खुद ही
जूझ रहे हैं
पड़ी समय की
बेहद मार
फिर भी
आया नहीं सुधार
अकल अजीर्ण
हुए बेज़ार
नव पीढ़ी का
बंटाधार
हल न कहीं भी
सूझ रहे हैं
**
***
नवगीत:
ऐसा कैसा
पर्व मनाया ?
मनुज सभ्य है
करते दावा
बोल रहे
कुदरत पर धावा
कोई काम
न करते सादा
करते कभी
न पूरा वादा
अवसर पाकर
स्वार्थ भुनाया
धुआँ, धूल
कचरा फैलाते
हल्ला-गुल्ला
शोर मचाते
आज पूज
कल फेकें प्रतिमा
समझें नहीं
ईश की गरिमा
अपनों को ही
किया पराया
धनवानों ने
किया प्रदर्शन
लंघन करता
भूखा-निर्धन
फूट रहे हैं
सरहद पर बम
नहीं किसी को
थोड़ा भी गम
तजी सफाई
किया सफाया
***
दोहा सलिला :
कथ्य भाव रस छंद लय, पंच तत्व की खान
पड़े कान में ह्रदय छू, काव्य करे संप्राण
मिलने हम मिल में गये, मिल न सके दिल साथ
हमदम मिले मशीन बन, रहे हाथ में हाथ
हिल-मिलकर हम खुश रहें, दोनों बने अमीर
मिल-जुलकर हँस जोर से, महका सकें समीर.
मन दर्पण में देख रे!, दिख जायेगा अक्स
वो जिससे तू दूर है, पर जिसका बरअक्स
जिस देहरी ने जन्म से, अब तक करी सम्हार
छोड़ चली मैं अब उसे, भला करे करतार
माटी माटी में मिले, माटी को स्वीकार
माटी माटी से मिले, माटी ले आकार
मैं ना हूँ तो तू रहे, दोनों मिट हों हम
मैना - कोयल मिल गले, कभी मिटायें गम
२७-१०-२०१४
***

विज्ञशिल्पी विश्वेश्वरैया, सुरेन्द्र पँवार

पुरोवाक्

'विज्ञशिल्पी विश्वेश्वरैया' : आधुनिक भारत के निर्माता

आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल'

*

                              'राष्ट्र' भाषा, इतिहास, जातीयता, संस्कृति और/या समाज जैसी साझा विशेषताओं के संयोजन के आधार पर गठित लोगों का एक समुदाय है। राष्ट्र इन विशेषताओं द्वारा परिभाषित लोगों के विराट समूह की सामूहिक पहचान है। राष्ट्र को एक सांस्कृतिक-राजनीतिक समुदाय के रूप में भी परिभाषित किया गया है जो अपनी स्वायत्तता, एकता और विशेष हितों के प्रति सचेत हो गया है। राष्ट्र यथार्थ और कल्पना दोनों है। राष्ट्र इस अर्थ में एक कल्पित समुदाय है कि विस्तारित और साझा संबंधों की कल्पना करने के लिए भौतिक स्थितियां मौजूद हैं और यह वस्तुनिष्ठ रूप से अवैयक्तिक है, भले ही राष्ट्र में प्रत्येक व्यक्ति खुद को दूसरों के साथ एक सन्निहित एकता के रूप में अनुभव करता हो। अधिकांश भाग के लिए, एक राष्ट्र के सदस्य एक दूसरे के लिए अजनबी बने रहते हैं और संभवतः कभी नहीं मिलते।

                             'भारत' विश्व के प्राचीनतम सभ्यताओं में से एक है। भारत गणराज्य (Republic of Indiaदक्षिण एशिया में स्थित भारतीय उपमहाद्वीप का सबसे बड़ा देश है। भारत भौगोलिक दृष्टि से विश्व का सातवाँ सबसे बड़ा देश है, जबकि जनसंख्या के दृष्टिकोण से चीन के बाद दूसरा सबसे बड़ा देश है। १९५० से भारत एक संघीय गणराज्य है। भारत की जनसंख्या १८६२  (एम.व्ही.के जन्म के समय) में ३५ करोड़ से बढ़कर १९६२ (एम.व्ही.के निधन के समय) में लगभग ४४ करोड़ थी। १८६२ के भारत में आज का पाकिस्तान और बांग्लादेश भी सम्मिलित था। विश्व अर्थव्यवस्था में भारत की हिस्सेदारी १७०० में २४.४% से घटकर १९५० में ४.२% हो गई थी। इस इंगित का उद्देश्य यह कि देश के प्रमुख अभियंता के नाते एम. व्ही. ने जिस समय गंभीर समस्याओं का समाधान खोजा, कालजयी निर्माण कार्य किए उस समय भारत की जनसंख्या, प्रति व्यक्ति, संसाधन, तकनीक, निर्माण पदार्थ आदि आज की तुलना में अत्यल्प थे अर्थात वर्तमान की तुलना में एम. व्ही. के सामने चुनौतियाँ और कठिनाइयाँ कई हजार गुना अधिक थीं,  इसलिए उनके अवदान का मूल्यांकन भी तदनुसार ही किया जाना चाहिए। 

                              'राष्ट्र निर्माता अभियंता' वही हो सकता है जिसने राष्ट्र के विविध क्षेत्रों में, विविध समस्याओं का समाधान और निर्माण कार्य करते समय  जाति, धर्म,  भाषा, भूषा, वाद आदि पर ध्यान न दिया हो। पराधीन भारत में अभियांत्रिकी शिक्षा के अवसर दुर्लभ थे। अंग्रेज भारतीय प्रतिभाओं को निरंतर हतोत्साहित करते थे तब भी दो भरते अभियंताओं ने अपने ज्ञान, कौशल, तकनीक का लोहा मनवा ही लिया और अंग्रेजी ने उन्हें सर्वोच्च सम्मान से नवाजा। सर गंगाराम (१९०३) तथा सर विश्वेश्वरैया (१९१५) ने भारतीय अभियांत्रिकी की विजय पताका फहरा ही दी। सर गंगाराम का निधन १० जुलाई १९२७ को हो जाने से वे भारत को स्वतंत्र नहीं देख सके। अभियंता के रूप में उनका अवदान भी उत्तर भारत, पाकिस्तान, आदि में ही हो सका जबकि एम. व्ही. को भारत के स्वतंत्र होने के बाद लगभग १५ वर्षों तक देश वे विविध प्रांतों में, विविध समस्याओं के समाधान, विभिन्न परियोजनाओं के निर्माण आदि का अवसर मिला। इसलिए केवल विश्वेश्वरैया ही आधुनिक भारत के निर्माता कहे जा सकते हैं। 

                              किसी भाषा के वाचिक और लिखित ज्ञान भंडार 'साहित्य' कहा जाता है। दुनिया में सबसे पुराना वाचिक साहित्य हमें आदिवासी भाषाओं में मिलता है। इस दृष्टि से आदिवासी साहित्य सभी साहित्य का मूल स्रोत है। भारत में सर्वाधिक बोली जाने वाली भाषा हिंदी राजभाषा है। हिंदी साहित्य का मूल लोक साहित्य ही है। लोक साहित्य में महामानवों को स्मरण करने की पुरातन परंपरा है। पद्य में रासो, इत्यादि और गद्य में कथाओं, नाटकों मेंलोक ने प्रेरक व्यक्तित्वों को स्मरण किया है। आधुनिक साहित्य में जीवनी, संस्मरण, उपन्यास तथा महाकाव्य आदि विधाओं में महापुरुषों को स्मरण किया जाता है। विडंबना यह है कि सामाजिक, राजनैतिक, साहित्यिक तथा कला के क्षेत्रों में अवदानकर्ताओं पर कृतियाँ रच दी जाती हैं किंतु अभियंताओं, वैज्ञानिकों, चिकित्सकों, तकनीशियनों आदि के महत्वपूर्ण अवदान प्राय: अचर्चित रह जाते हैं जबकि ऐसे अवदान देश ही नहीं विश्व में अगणित मनुष्यों और समूची मानवता को युगों तक लाभान्वित करते हैं।  

                              संयोगवश एम. व्ही. के सिर से बचपन में ही पिता का साया हट जाने पर उन्हें मामा और मैसूर के महाराजा की छत्रछाया मिली। अभियंता के रूप में उनका पहला गोपनीय प्रतिवेदन निराशाजनक होने पर भी उनके इग्जीक्टियूव इंजीनियर ने उन्हें दोबारा अवसर दिया तथा उनके अच्छे कार्य पर उनको शाबाशी भी दी। इसके बाद एम. व्ही.ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। उनके समय में अभियांत्रिकी की तीन मूल शाखाओं सिविल, इलेक्ट्रिकल और मेकेनिकल  में ही शिक्षण होता था। एम. व्ही. ने सिविल इंजीनियर होते हुए भी इलेक्ट्रिकल और मेकेनिकल शाखाओं से संबंधित अध्ययन कर समस्याओं को सुलझाया। अंग्रेजी कहावत 'जैक ऑफ ऑल, मास्टर ऑफ नन' को बदलकर ;मास्टर ऑफ ऑल जैक ऑफ नन' कर दिया जाए तो वह एम. व्ही. पर पूरी तरह लागू हो जाएगी। जय प्रकाश नारायण ने एक बार कहा था 'माय लाइफ इस द हिस्ट्री ऑफ मिसिंग फॉरचून्स' (मेरा जीवन खोए हुए अवसरों की कहानी है), एम. व्ही. के संदर्भ में इसे भी बदल कर कहना होगा 'माय लाइफ इस द हिस्ट्री ऑफ कैचिंग फॉरचून्स' (मेरा जीवन पाए हुए अवसरों की कहानी है) एम. व्ही. ने भवन-सड़क निर्माण तक सीमित न रहते हुए जल प्रदाय, मल निकासी प्रणाली, सिंचाई प्रबंधन, आर्थिक नीति निर्माण, भारी उद्योग, बाढ़ नियंत्रण,  मैकेनिकल अभियांत्रिकी (बाँध द्वार का निर्माण), बंदरगाह निर्माण व प्रबंधन, नदी घाटी तथा बाढ़ नियंत्रण, रेल पथ प्रबंधन, कपड़ा उद्योग, तकनीकी शिक्षा नीति, विज्ञान संस्था की स्थापना, विश्व विद्यालय स्थापना, महिला महाविद्यालय स्थापना, चंदन तेल उद्योग, स्पात कारखाना, होटल स्थापना, दीवान के रूप में प्रशासन कार्य, जनसंखया नियंत्रण, महिला शिक्षा-विकास, अन्न उत्पादन, औदयौगिकीकरण, समन्वित परिवार संरक्षण आदि अनेक क्षेत्रों में नवाचार को प्रोत्साहित किया।        

                             एम. व्ही. की पर्यवेक्षण क्षमता और स्मरण शक्ति गजब की थी। वे एक बार जो पढ़ लेते, जिससे मिल लेते, जिसे देख लेते  वह लंबे समय तक विस्मृत न होता था। उनकी कर्मठता अनूठी थी। वार्धक्य का उन पर असर ही नहीं था। जब जो चुनौती सामने आती वे तरुणोचित उत्साह के साथ उसे जीतने चल पड़ते और सफलता पाकर ही रुकते। समय की पाबंदी और अनुशासन उनकी कार्य शक्ति के मूल में थे। 'विज्ञशिल्पी विश्वेश्वरैया' आधुनिक विश्वकर्मा की जियावन यात्रा का संक्षिप्त वर्णन है। हिंदी साहित्य में आत्मकथातमक साहित्य अपेक्षाकृत कम लिखा गया है। अभियंताओं में साहित्य लेखन की प्रवृत्ति अपवादस्वरूप ही मिलती है। अंग्रेजी के प्रति गुलामी की सीमा तक प्रेम के कारण भारतीय भाषाओं व उनके विकास में अभियंताओं का योगदान नगण्य है। एम. व्ही. के समय में अभियान्त्रिकी शिक्षा तथा प्रशासन की भाषा अंग्रेजी थी। उन्होंने प्रचुर मात्रा में स्तरीय तकनीकी लेखन किया। 'विज्ञशिल्पी विश्वेश्वरैया' के प्रशंसकों को उन्हीं की तरह अपने समय को ध्यान में रखते हुए अब भारतीय भाषाओं में गुणवत्तापूर्ण साहित्यिक और तकनीकी लेखन करना चाहिए। 'विज्ञशिल्पी विश्वेश्वरैया' इस दिशा में एक प्रभावी कदम है। 

                             'विज्ञशिल्पी विश्वेश्वरैया' के लेखक अभियंता सुरेन्द्र सिंह पँवार कुशल सिविल इंजीनियर होने  के साथ-साथ अच्छे कवि, निपुण समीक्षक, कर्मठ संपादक तथा पर्यटक व संस्मरणकार भी हैं। हिंदी में एम. व्ही. की जीवनी के माध्यम से किशोरों और युवाओं में अभियांत्रिकी के महत्व, अवदान तथा उपदेयता के बीज वपन कर उन्हें अभियांत्रिकी शिक्षा के प्रति आकर्षित कर देश को समर्थ और सुयोग्य अभियंता उपलब्ध कराने के महत उद्देश्य को लेकर प्रिय सुरेन्द्र भाई ने यह कार्य किया है। वे वास्तव में साधुवाद के पात्र हैं। इसके पूर्व आई. ई. आई. जबलपुर चैप्टर के कर्मठ सदस्य अभियंता कोमल चंद जैन से. नि. मुख्य अभियंता के संस्मरणों का ग्रंथ विश्ववाणी हिंदी संस्थान अभियान जबलपुर के तत्वावधान में प्रकाशित किया जा चुका है। 'विज्ञशिल्पी विश्वेश्वरैया' इस कड़ी का अगला सोपान है। निकट भविष्य में बी.  टेक., एम. टेक. के छात्रों के लिए उत्तम  पाठ्य पुस्तकें हिंदी में प्रकाशित करने की दिशा में  भी कार्य जारी है। 'विज्ञशिल्पी विश्वेश्वरैया' का प्रकाशन इन्स्टीट्यूशन ऑफ इंजीनियर्स की राष्ट्रीय भाषा समिति को प्रेरित करे कि या अपने हर केंद्र को तकनीकी साहित्य लेखन-प्रकाशन हेतु प्रेरित करे। 

                             'विज्ञशिल्पी विश्वेश्वरैया' वस्तुत: गागर में सागर की तरह सारगर्भित है। एम. व्ही. की जिजीविषाजयी जीवन यात्रा को क्रमवार सरल, सुबोध, रोचक रूप में प्रस्तुत करना कठिन कार्य है जिसे भाई सुरेन्द्र ने सरसता बनाए रखकर पूरा किया है। 'विज्ञशिल्पी विश्वेश्वरैया' के लेखक की सजगता तथा सक्रियता  जबलपुर केंद्र को तकनीकी साहित्य लेखन-प्रकाशन की योजना बनाने और क्रियान्वित करने की प्रेरणा दे सकेगी। हम सब एम. व्ही. के जियावाँ का अल्पांश भी ग्रहण कर अपने अभियांत्रिकी ज्ञान से देश, समाज और विश्व के काम आ सकें तो जीवन सफल-सार्थक होगा। मुझे विश्वास है कि यह कृति लोकप्रिय ही नहीं होगी, पुरस्कृत भी की जाएगी।   
***

संपर्क : आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल', चेयरमैन आई.जी.एस. जबलपुर चैप्टर, संयोजक विश्ववाणी हिंदी संस्थान, 
४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन जबलपुर ४८२००१, चलभाष ९४२५१८३२४४ ईमेल salil.sanjiv@gmail.com