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बुधवार, 2 फ़रवरी 2022

संत समागम

संत समागम
१. कबीर
२. सूरदास
३. तुलसीदास
४. गुरु नानक
गुरु नानक देव
सिक्खों के आदि गुरु नानक देव (गुरुनानक, बाबा नानक, नानक शाह) बचपन से नेत्र बंदकर आत्म चिंतन में मग्न हो जाते थे. उनके इस हाव भाव को देखकर उनके पिता बड़े चिंतित रहते थे. एक बार गुरु नानक देव जी मक्का गए थे. काफी थक जाने के बाद वह मक्का में मुस्लिमों का प्रसिद्ध पूज्य स्थान काबा में रुक गए. रात को सोते समय उनका पैर काबा के तरफ था. यह देख वहां का एक मौलवी गुरु नानक के ऊपर गुस्सा हो गया. उसने उनके पैर को घसीट कर दूसरी तरफ कर दिये. इसके बाद जो हुआ वह हैरान कर देने वाला था. हुआ यह था कि अब जिस तरफ गुरु नानक के पैर होते, काबा उसी तरफ नजर आने लगता. इसे चमत्कार माना गया और लोग गुरु नानक जी के चरणों पर गिर पड़े.
५. वल्लभाचार्य
६. स्वामी दयानन्द सरस्वती
७. रामकृष्ण परमहंस 
८. योगानंद 
९. श्रीराम शर्मा 
१०. स्वामी प्राणनाथ 
११. 

संत एकनाथ
संत एकनाथ महाराष्ट्र के प्रसिद्ध संतो में से एक माने जाते हैं. महाराष्ट्र में इनके भक्तों की संख्या बहुत अधिक है. भक्तों में नामदेव के बाद एकनाथ का ही नाम लिया जाता है. ब्राह्मण जाति के होने के बावजूद इन्होंने जाति प्रथा के खिलाफ अपनी आवाज तेज की. समाज के लिए उनकी सक्रियता ने उन्हें उस वक्त के सन्यासियों का आदर्श बना दिया था. दूर-दूर से लोग उनसे लोग मिलने आया करते थे. एक बार एकनाथ जी को मानने वाले एक सन्यासी को रास्ते में एक मरा हुआ गथा मिलता है, जिसे देखकर वह उसे दण्डवत् प्रणाम करते हैं और कहते हैं ‘तू परमात्मा है’. उनके इतना कहने से वह गधा जीवित हो जाता है. इस घटना की खबर जब लोगों में फैलती है, तो वह उस संत को चमत्कारी समझकर परेशान करने लगते हैं. ऐसे में सन्यासी संत एक नाथ जी के पास पहुंचता है और सारी बात बताता है. इस पर संत एकनाथ उत्तर देते हुए कहते हैं, जब आप परमात्मा में लीन हो जाते है तब ऐसा ही कुछ होता है. माना जाता है कि इस चमत्कार के पीछे संत एकनाथ ही थे.
संत तुकाराम
भगवान की भक्ति में लीन रहने वाले संत तुकाराम का जीवन कठिनाइयों भरा रहा. माना जाता है कि उच्च वर्ग के लोगों ने हमेशा उन्हें नीचा दिखाने की कोशिश की. एक बार एक ब्राहाण ने उनको उनकी सभी पोथियों को नदी में बहाने के लिए कहा तो उन्होंंने बिना सोचे सारी पोथियां नदी में डाल दी थी. बाद में उन्हें अपनी इस करनी पर पश्चाताप हुआ तो वह विट्ठल मंदिर के पास जाकर रोने लगे. वह लगातार तेरह दिन बिना कुछ खाये पिये वहीं पड़े रहे. उनके इस तप को देखकर चौदहवें दिन भगवान को खुद प्रकट होना पड़ा. भगवान ने उन्हें आशीर्वाद देते हुए उनकी पोथियां उन्हें सौपी. आगे चलकर यही तुकाराम संत तुकाराम से प्रसिद्ध हुए और समाज के कल्याण में लग गये.
सन्त ज्ञानेश्वर
संत ज्ञानेश्वर कि गिनती महाराष्ट्र के उन धार्मिक संतो में होती हैं, जिन्होंने समस्त मानव जाति को ईर्ष्या द्वेष और प्रतिरोध से दूर रहने का शिक्षा दी थी. संत ज्ञानेश्वर ने 15 वर्ष की छोटी सी आयु में ही गीता की मराठी में ज्ञानेश्वरी नामक भाष्य की रचना कर दी थी. इन्होंने पूरे महाराष्ट्र में घूम घूम कर लोगों को भक्ति का ज्ञान दिया था. उनके बारे में कहा जाता है कि उनका इस धरती पर जन्म लेना किसी चमत्कार से कम नहीं था. उनके पिता उनकी मां रुक्मिणी को छोड़कर सन्यासी बन गए थे. ऐसे में एक दिन रामानन्द नाम के सन्त उनके आलंदी गांव आये और उन्होंने रुक्मिणी को पुत्रवती भव का आशीर्वाद दे दिया. जिसके बाद ही इनके पिता ने गुरु के कहने पर गृहस्थ जीवन में प्रवेश किया और संत ज्ञानेश्वर का जन्म हुआ.
संत नामदेव
संत नामदेव एक प्रसिद्ध संत थे. उन्होंने मराठी के साथ हिन्दी में भी अनेक रचनाएं की. उन्होंने लोगों के बीच ईश्वर भक्ति का ज्ञान बांटा. उनका एक किस्सा बहुत चर्चित है. एक बार वह संत ज्ञानेश्वर के साथ तीर्थयात्रा पर नागनाथ पहुंचे थे, जहां उन्होंने भजन-कीर्तन का मन बनाया तो उनके विरोधियों ने उन्हेंं कीर्तन करने से रोक दिया. विरोधियों ने नामदेव से कहा अगर तुम्हें भजन-कीर्तन करना है तो मंदिर के पीछे जाकर करो. इस पर नामदेव मंदिर के पीछे चले गये. माना जाता है कि उनके कीर्तनों की आवाज सुनकर भगवान शिव शंकर ने प्रसन्न होकर उन्हें दर्शन देने आ गये थे. इसके बाद से नामदेव के चमत्कारी संत के रुप में ख्याति मिली.
समर्थ स्वामी
समर्थ स्वामी जी का जन्म गोदातट के निकट जालना जिले के ग्राम जांब में हुआ था. अल्पायु में ही उनके पिता गुजर गए और तब से उनके दिमाग में वैऱाग्य घूमने लगा था. हालांकि, मां की जिद के कारण उन्हें शादी के लिए तैयार होना पड़ा था. पर, मौके पर वह मंडप तक नहीं पहुंचे और वैराग्य ले लिया. समर्थ स्वामी के बारे में कहा जाता है कि एक शव यात्रा के दौरान जब एक विधवा रोती-रोती उनके चरणो में गिर गई थी, तो उन्होंंने ध्यान मग्न होने के कारण उसे पुत्रवती भव का आशीर्वाद दे दिया था. इतना सुनकर विधवा और फूट-फूट कर रोने लगी. रोते हुए वह बोली- मैं विधवा हो गई हूं और मेरे पति की अर्थी जा रही है. स्वामी इस पर कुछ नहीं बोले और कुछ देर बाद जैसे ही उसके पति की लाश को आगे लाया गया, उसमें जान आ गई. यह देख सबकी आंखे खुली की खुली रह गई. सभी इसे समर्थ स्वामी का चमत्कार बता रहे थे.
देवरहा बाबा
देवरहा बाबा उत्तर भारत के एक प्रसिद्ध संत थे. कहा जाता है कि हिमालय में कई वर्षों तक वे अज्ञात रूप में रहकर साधना किया करते थे. हिमालय से आने के बाद वे उत्तर प्रदेश के देवरिया जिले में सरयू नदी के किनारे एक मचान पर अपना डेरा डाल कर धर्म-कर्म करने लगे, जिस कारण उनका नाम देवरहा बाबा पड़ गया. उनका जन्म अज्ञात माना जाता है. कहा जाता है कि एक बार महावीर प्रसाद ‘बाबा’ के दर्शन करके वापस लौट रहे थे, तभी उनके साले के बेटे को सांप ने डंस लिया. चूंकि सांप जहरीला था, इसलिए देखते ही देखते विष पूरे शरीर में फ़ैल गया. किसी को कुछ समझ नहीं आ रहा था कि क्या करें, इसलिए वह उसे उठाकर देवरहा बाबा के पास ले आये. बाबा ने बालक को कांटने वाले सांप को पुकारते हुए कहा तुमने क्यों काटा इसको, तो सांप ने उत्तर देते हुए कहा इसने मेरे शरीर पर पैर रखा था. बाबा ने इस पर उसे तुरंत ही कड़े स्वर में आदेश दिया कि विष खींच ले और आश्चर्यजनक रूप से सांप ने विष खींच लिया. बाबा के इस चमत्कार की चर्चा चारों ओर फैल गई.
संत जलाराम
बापा के नाम से प्रसिद्ध जलाराम गुजरात के प्रसिद्ध संतो में से एक थे. उनका जन्म गुजरात के राजकोट जिले के वीरपुर गांव में हुआ था. जलाराम की मां एक धार्मिक महिला थीं, जो भगवान की भक्ति के साथ साथ साधु संतो का बड़ा आदर करती थी. उनके इस कार्य से प्रसन्न संत रघुदास जी उन्हें आशीर्वाद दिया कि उनका दूसरा पुत्र ईश्वर भक्ति और सेवा के लिए ही जाना जायेगा. आगे चलकर जलाराम बापा गुजरात के बहुत प्रसिद्ध संत हुए.
एक दिन बापा के भक्त काया रैयानी के पुत्र मृत्यु हो गई. पूरा परिवार शोक में डूबा था. इस बीच बापा भी वहां पहुंच गये, उनको देखकर काया रैयानी उनके पैरों में गिर गया और रोने लगा. बापा ने उसके सर पर हाथ रखते हुए कहा तुम शांत हो जाओ. तुम्हारे बेटे को कुछ नहीं हुआ है.
उन्होंने कहा चेहरे पर से कपड़ा हटा दो. जैसे ही कपड़ा हटाया गया बापा ने कहा बेटा तुम गुमसुम सोये हुए हो, जरा आंख खोल कर मेरी ओर देखो. इसके बाद चमत्कार हो गया. क्षण भर में मृत पड़ा लड़का आंख मलते हुए उठ कर इस तरह बैठ गया, मानो गहरी नींद से जागा हो.
रामकृष्ण परमहंस
राम कृष्ण परम हंस भारत के महान संत थे. राम कृष्ण परमहंस ने हमेशा से सभी धर्मों कि एकता पर जोर दिया था. बचपन से ही उन्हें भगवान के प्रति बड़ी श्रद्धा थी. उन्हें विश्वास था कि भगवान उन्हें एक दिन जरूर दर्शन देंगे. ईश्वर को प्राप्त करने के लिए उन्होंने कठिन साधना और भक्ति का जीवन बिताया था. जिसके फलस्वररूप माता काली ने उन्हें साक्षात् दर्शन दिया था. कहा जाता है कि- उनकी ईश्वर भक्ति से उनके विरोधी हमेशा जलते थे. उन्हें नीचा दिखाने कि हमेशा सोचते थे. एक बार कुछ विरोधियों ने 10 -15 वेश्याओं के साथ रामकृष्ण को एक कमरे में बंद कर दिया था.
रामकृष्ण उन सभी को मां आनंदमयी की जय कहकर समाधि लगाकर बैठ गए. चमत्कार ऐसे हुआ कि वे सभी वेश्याएं भक्ति भाव से प्रेरित होकर अपने इस कार्य से बहुत शर्मशार हो गई और राम कृष्ण से माफी मांगी. इसके अतिरिक्त, रामकृष्ण परमहंस की कृपा से माँ काली और स्वामी विवेकानंद का साक्षात्कार होना समूचे विश्व को पता ही है.

रामदेव
राम देव का जन्म पश्चिमी राजस्थान के पोकरण नाम के प्रसिद्ध नगर के पास रुणिचा नामक स्थान में हुआ था. इन्होंने समाज में फैले अत्याचार भेदभाव और छुआ छूत का विरोध किया था. बाबा राम देव को हिन्दू मुस्लिम एकता का भी प्रतीक माना जाता है. आज राजस्थान में इन्हें लोग भगवान से कम नहीं मानते हैं. इनसे जुड़ा हुआ एक किस्सा कुछ ऐसा है.
मेवाड़ के एक गांव में एक महाजन रहता था. उसकी कोई संतान नहीं थी. वह राम देव की पूजा करने लगा और उसने मन्नत मांगी कि पुत्र होने पर मैं मंदिर बनवाऊंगा. कुछ दिन के बाद उसको पुत्र की प्राप्ति हुई. जब वह बाबा के दर्शन करने जाने लगा तो रास्ते में उसे लुटेरे मिले और उसका सब कुछ लूट लिया. यहां तक कि सेठ की गर्दन भी काट दी. घटना की जानकारी पाकर सेठानी रोते हुए रामदेव को पुकारने लगी, इतने में वहां रामदेव जी प्रकट हो गए और उस महाजन का सर जोड़ दिए. उनका चमत्कार देख कर दोनों उनके चरणों में गिर पड़े.
संत रैदास
संत रैदास का जन्म एक चर्मकार परिवार में हुआ था. बचपन से ही रैदास का मन ईश्वर की भक्ति को ओर हो गया था. उनका जीवन बड़ा ही संघर्षो से बीता था, पर उन्होंने ईश्वर की भक्ति को कभी नहीं छोड़ा. एक बार रैदास जी ने एक ब्रह्मण को एक ‘सुपारी’ गंगा मैया को चढ़ाने के लिए दी थी. ब्राह्मण ने अनचाहे मन से उस सुपारी को गंगा में उछाल दिया,
तभी गंगा मैया प्रकट हुई और सुपारी अपने हाथ में ले ली और उसे एक सोने का कंगन देते हुए कहा- इसे ले जाकर रविदास को दे देना. ब्राह्मण ने जब यह बात बताई तो लोगों ने उपहास उड़ाया. लोगों ने यहां तक कहा कि रविदास अगर सच्चे भक्त हैं तो दूसरा कंगन लाकर दिखाएं. इस पर रविदास द्वारा बर्तन में रखे हुए जल से गंगा मैया प्रकट हुई और दूसरा कंगन रविदास जी को भेंट किया.
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