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शुक्रवार, 11 अप्रैल 2014

CHITR PAR KAVITA: SANJIV

चित्र पर कविता:
संजीव
*

बैल!
तुम सभ्य तो हुए नहीं,
मनुज बनना तुम्हें नहीं भाया।
एक बात पूछूँ?, उत्तर दोगे??
लड़ना कहाँ से सीखा?
भागना कहाँ से आया??
***
(स्व. अज्ञेय जी से क्षमा प्रार्थना सहित)

शनिवार, 23 मार्च 2013

धरोहर: ब्राह्म मुहूर्त:स्वस्ति वाचन अज्ञेय

धरोहर:
ब्राह्म मुहूर्त:स्वस्ति वाचन अज्ञेय
 *

जिओ उस प्यार में
जो मैंने तुम्हे दिया है,
उस दुःख में नहीं, जिसे
बेझिझक मैंने पिया है|
उस गान में जिओ
जो मैंने तुम्हे सुनाया है,
उस आह में नहीं, जिसे
मैनें तुमसे छिपाया है|
वह छादन तुम्हारा घर हो
जिसे मैं असीसों से बुनता हूँ, बुनूँगा;
वो कांटे गोखरू तो मेरे हैं
जिन्हें मैं राह से चुनता हूँ, चुनूँगा|
सागर के किनारे तुम्हे पहुँचाने का
उदार उद्यम ही मेरा हो,
फिर वहाँ जो लहर हो, तारा हो,
सोन तरी हो, अरुण सवेरा हो,
वो सब ओ मेरे वर्य! ( श्रेष्ठ )
तुम्हारा हो, तुम्हारा हो, तुम्हारा हो|