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बुधवार, 22 जनवरी 2014

geet: gumsum kyon..? -shashikant geete

एक गीत
शशिकांत गीते
*
गुमसुम क्यों बैठे हो
मन कोरी लाग लिए,
बाँसों के वन गाते
अंतर में आग लिए.

अंतर में आग, चपल
दृ्ष्टि हो काग- सी
जिन्दगी रहे न महज
सागर के झाग- सी
संयम हो बंध नहीं
दामन में दाग लिए.

मौसम कब रोक सका
कोयल का कूकना
ऋतुओं की सीख नहीं
अपने से चूकना
नदियाँ भी राह तकें
मधुर- मधुर राग लिए.

उतनी ही सृष्टि नहीं
जितनी हम सोच रहे
स्लेट लिखे शब्दों को
पोते से पोंछ रहे
हल करते जीवन, ऋण,
जोड़, गुणा, भाग लिए.