मुक्तिका
...ज़ख्म नये
संजीव 'सलिल'
*
है नज़रे-इनायत यारों की, देते हैं ज़ख्म दर ज़ख्म नये।
हम चाक गरेबां ले कहते, ज़ख्मों का इलाज हैं ज़ख्म नये।।
पहले तो जलाते दिल हँसकर, फिर नमक छिड़कने आते हैं।
फिर पूछ रहे हैं मुस्काकर, कहिए कैसे हैं ज़ख्म नये??
एक बार गले से लग जाओ, नैनों से नैन मिला जाओ।
फिर किसको चिंता रत्ती भर, कितने मिलते हैं ज़ख्म नये??
चुप चाल शराबी के सदके, नत नैन नशीले में बसके,
गुल गाल गुलाबी ने हँस के, ज़ख्मों को दिए हैं ज़ख्म नए।।
ज़ख़्मी तन है, ज़ख़्मी मन है, ज़ख़्मी है जानो-जिगर यारों-
बिन ज़ख्म न मिलाता चैन 'सलिल', लाओ दे जाओ ज़ख्म नए।।
*****
...ज़ख्म नये
संजीव 'सलिल'
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है नज़रे-इनायत यारों की, देते हैं ज़ख्म दर ज़ख्म नये।
हम चाक गरेबां ले कहते, ज़ख्मों का इलाज हैं ज़ख्म नये।।
पहले तो जलाते दिल हँसकर, फिर नमक छिड़कने आते हैं।
फिर पूछ रहे हैं मुस्काकर, कहिए कैसे हैं ज़ख्म नये??
एक बार गले से लग जाओ, नैनों से नैन मिला जाओ।
फिर किसको चिंता रत्ती भर, कितने मिलते हैं ज़ख्म नये??
चुप चाल शराबी के सदके, नत नैन नशीले में बसके,
गुल गाल गुलाबी ने हँस के, ज़ख्मों को दिए हैं ज़ख्म नए।।
ज़ख़्मी तन है, ज़ख़्मी मन है, ज़ख़्मी है जानो-जिगर यारों-
बिन ज़ख्म न मिलाता चैन 'सलिल', लाओ दे जाओ ज़ख्म नए।।
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