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मंगलवार, 21 मार्च 2023

सॉनेट,अँजुरी,दुर्गा, लोकगीत,शारदा,इब्नबतूता,नवगीत,कुण्डलिया,हाइकूगीत,मुक्तिका,

सॉनेट 
अँजुरी 
हरि मैं हारा, अँजुरी खाली।
नीर लिया अभिषेक करूँगा।
बूँद बूँद बह गया मुरारी।।
नत शिर, पीछे पग न धरूँगा।।

पवन न अँजुरी में टिक पाया।
गगर विशाल न मैं पाया गह।
पावक दायक दारुण पाया।।
भू का भार नहीं पाया सह।।

पंच तत्व से परे मिले क्या?
भक्ति भाव आता नहीं मन में।
काम क्रोध मद लोभ न छोड़ें।।
भरे लबालब नाहक तन में।।

देह अंजुरी में विकार सब
लाया हरि हर लो,मैं हारा।।
२१-३-२०२३
एक लोकरंगी गीत-
देवी को अर्पण.
*
मैया पधारी दुआरे
रे भैया! झूम-झूम गावा
*
घर-घर बिराजी मतारी हैं मैंया!
माँ, भू, गौ, भाषा प्यारी हैं मैया!
अब लौं न पैयाँ पखारे रे हमने
काहे रहा मन भुलावा
रे भैया! झूम-झूम गावा
*
आसा है, श्वासा भतारी है मैया!
अँगना-रसोई, किवारी है मैया!
बिरथा पड़ोसन खों ताकत रहत ते,
भटका हुआ लौट आवा
रे भैया! झूम-झूम गावा
*
राखी है, बहिना दुलारी रे मैया!
ममता बिखरे गुहारी रे भैया!
कूटे ला-ला भटकटाई -
सवनवा बहुतै सुहावा
रे भैया! झूम-झूम गावा
*
बहुतै लड़ैती पिआरी रे मैया!
बिटिया हो दुनिया उजारी रे मैया!
'बज्जी चलो' बैठ काँधे कहत रे!
चिज्जी ले ठेंगा दिखावा
रे भैया! झूम-झूम गावा
*
तोहरे लिए भए भिखारी रे मैया!
सूनी थी बखरी, उजारी रे मैया!
तार दये दो-दो कुल तैंने
घर भर खों सुरग बनावा
रे भैया! झूम-झूम गावा
*
पत्रिका विमर्श २०२३ / १
सरस्वती सुमन दोहा विशेषांक, मार्च २०२३, प्रधान संपादक श्री (डॉ.) आनंद कुमार सिंह देहरादून, विशेषांक संपादक श्री अशोक अंजुम अलीगढ़।
हिंदी की शुद्ध साहित्यिक अव्यावसायिक पत्रिकाओं में अग्रणी पत्रिका 'सरस्वती सुमन'का २१ वें वर्ष में प्रकाशित यह अंक, ९९ वाँ अंक है। प्रसिद्ध दोहाकार-संपादक-समीक्षक अशोक अंजुम जी ने हेतु सामग्री संकलन और संपादन में जिस निपुणता का परिचय दिया है, वह असाधारण और प्रशंसनीय है।

इस दोहा विशेषांक का श्रीगणेश 'वेदवाणी' के अन्तर्गत ऋग्वेद इस एक ऋचा ( शब्दार्थ-भावार्थ सहित) तथा संपादकीय से डॉ. आनंद सुमन द्वारा किया गया है। अतिथि संपादकीय में अशोक अंजुम ने दोहे के गतागत के मध्य वैचारिक सृजन सेतु दोहे बनाया है। पद्मभूषण नीरज जी के साथ अंजुम का साक्षात्कार दोहा के सृजन, भविष्य आदि प्रश्नों का सटीक संतोषजनक समाधान सुझा सका है।

'विवेचन खंड' में डॉ. शिव ॐ अंबर, फर्रुखाबाद, डॉ. रामसनेही लाल शर्मा 'यायावर' फ़िरोज़ाबाद, राजेंद्र वर्मा लखनऊ तथा डॉ. ब्रह्मजीत गौतम गाज़ियाबाद, डॉ. कल्पना शर्मा, दीपक गोस्वामी चिराग तथा अशोक अंजुम ने ने दोहा छंद के रचना पक्ष, शिल्प, त्रुटि संकेतन, त्रुटि सुधार, आधुनिकता बोध आदि बिंदुओं पर सटीक जानकारी देकर नव दोहाकारों का पथ प्रदर्शन किया है। इन लेखों ने इस विशेषांक को समृद्ध किया है।

'धरोहर' खंड में कबीर, जायसी, तुलसी, ददौ, रहीम, मलूकदास. बिहारी, रसलीन, वृन्द, भारतेन्दु, काका हाथरसी, नागार्जुन, पद्मश्री चिरंजीत, पद्मभूषण नीरज, उदयभानु 'हंस, पद्मश्री बेकल उत्साही, हरिकृष्ण शर्मा, डॉ. किशोर काबरा, इंजी. चंद्र सेन विराट, निदा फ़ाज़ली, पदम् श्री माणिक वर्मा, कुमार रवींद्र, हुल्लड़, डॉ. कुँअर बेचैन, कैलाश गौतम, ज़ाहिर कुरैशी, डॉ. उर्मिलेश, इब्राहीम 'अश्क', डॉ, वर्षा सिंह, कमलेश द्विवेदी, योगेंद्र मौदगिल तथा मन चाँदपुरी के दोहे श्रद्धांजलि स्वरूप देना एक स्वास्थ्य परंपरा को पुष्ट करना है।

'वर्तमान' खंड में २३ महिला दिहकारों तथा ११ पुरुष दोहाकारों को सम्मिलित कर अंजुम जी ने गागर में सागर की उक्ति को चरितार्थ किया है। इस अंक का वैशिष्ट्य १०५ दोहा कृतियों के आवरण चित्र तथा उन पर सूक्ष्म समीक्षा का समावेशन है। सारत: यह अंक हिंदी की साहित्यिक पत्रकारिता के इतिहास में मील के पत्थर की तरह है। इस अंक के संयोजक, संपादक, प्रकाशक तथा सभी रचनाकार इस सारस्वत अनुष्ठान के लिए साधुवाद के पात्र हैं।
*

आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल'
संयोजक विश्ववाणी हिंदी संस्थान, संपादक कृष्ण प्रज्ञा
४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१
चलभाष ९४२५१८३२४४, ईमेल salil.sanjiv@gmail.com
***
सॉनेट
रंग
रंगरहित बेरंग न कोई।
श्याम जन्मता सदा श्वेत को।
प्रगटाए पाषाण रेत को।।
रंगों ने नव आशा बोई।।
रंगोत्सव सब झूम मनाते।
रंग लगाना बस अपनों को।
छोड़ न देते क्यों नपनों को?
राग-रागिनी, गीत गुँजाते।।
रंग बिखेरें सूरज-चंदा।
नहीं बटोरें घर-घर चंदा।
यश न कभी भी होता मंदा।।
रंगों को बदरंग मत करो।
श्वेत-श्याम को संग नित वरो।
नवरंगों को हृदय में धरो।।
२१-३-२०२२
•••
दोहा
हिंदू मरते हों मरें, नहीं कहीं भी जिक्र।
काँटा चुभे न अन्य को, नेताजी को फ़िक्र।।
***
***
मुक्तक कविता दिवस पर
कवि जी! मत बोलिये 'कविता से प्यार है'
भूले से मत कहें 'इस पे जां निसार है'
जिद्द अब न कीजिए मुश्किल आ जाएगी
कविता का बाप बहुत सख्त थानेदार है
*
***
शारद विनय
*
सरसुति सुरसति सब सुख दैनी,
हंस चढ़त लटकावति बैनी।
बीना थामे सुर गुंजाँय-
कर किरपा कुछ मातु सुनैनी।।
*
सरन तुमाई आय हम, ठुकराओ न मैया!
सिर पै कर धर आसिस, बरसाओ न मैया!
हैं संतान तिहारी सच बिसर गओ जब
भव बाधा ने घेरो सुख बिखर गओ सब
दर पर आ टेर लगाई, अपनाओ न मैया!
सरन तुमाई आय हम, ठुकराओ न मैया!
*
अपढ़-अनाड़ी ठैरे, आ दरसन देओ
इत-उत भटके, ईसें सेवा में लेओ
उबर सके संकट सें ऊ जिसे उबारो
एक आसरो तुमरो, ऐ माँ न बिसारो
ओ माँ! औसर देओ, अंबे अ: मैया!
सरन तुमाई आय हम, ठुकराओ न मैया!
*
आखर सबद न सरगम, जाने सिखला दो
नाद अनाहद तन्नक मैया! सुनवा दो
कलकल-कलरव ब्यापी माँ बीनापानी
भवसागर सें तारो हमखों कल्यानी
चरन सरन स्वीकारो ठुकराओ न दैया!
सरन तुमाई आय हम, ठुकराओ न मैया!
***
एक रचना
*
विश्व में कविता समाहित
या कविता में विश्व?
देखें कंकर में शंकर
या शंकर में प्रलयंकर
नाद ताल ध्वनि लय रस मिश्रित
शक्ति-भक्ति अभ्यंकर
अक्षर क्षर का गान करे जब
हँसें उषा सँग सविता
तभी जन्म ले कविता
शब्द अशब्द निशब्द हुए जब
अलंकार साकार हुए सब
बिंब प्रतीक मिथक मिल नर्तित
अर्चित चर्चित कविता हो तब
सत्-शिव का प्रतिमान रचे जब
मन मंदिर की सुषमा
शिव-सुंदर हो कविता
मन ही मन में मन की कहती
पीर मौन रह मन में तहती
नेह नर्मदा कलकल-कलरव
छप्-छपाक् लहरित हो बहती
गिरि-शिखरों से कूद-फलाँगे
उद्धारे जग-पतिता
युग वंदित हो कविता
***
इब्नबतूता
*
इब्नबतूता भूल के जूता
कोरोना से डर भागा
नहीं किसी को शकल दिखाता
घर के अंदर बंद हुआ है
राम राम करता दूरी से
ज्यों पिंजरे में कोई सुआ है
गले मत मिला, हाथ मत मिलो
कुरता सिलता बिन धागा
इब्नबतूता भूल के जूता
कोरोना से डर भागा
सगा न कोई रहा किसी का
हाय न कोई गैर है
सबको पड़े जान के लाले
नहीं किसी की खैर है
सोना चाहे; नींद न आए
आँख न खुलती पर जागा
इब्नबतूता भूल के जूता
कोरोना से डर भागा
***
नवगीत
क्या होएगा?
*
इब्नबतूता
पूछे: 'कूता?
क्या होएगा?'
.
काय को रोना?
मूँ ढँक सोना
खुली आँख भी
सपने बोना
आयसोलेशन
परखे पैशन
दुनिया कमरे का है कोना
येन-केन जो
जोड़ धरा है
सब खोएगा
.
मेहनतकश जो
तन के पक्के
रहे इरादे
जिनके सच्चे
व्यर्थ न भटकें
घर के बाहर
जिनके मन निर्मल
ज्यों बच्चे
बाल नहीं
बाँका होएगा
.
भगता क्योंहै?
डरता क्यों है?
बिन मारे ही
मरता क्यों है?
पैनिक मत कर
हाथ साफ रख
हाथ साफ कर अब मत प्यारे!
वह पाएगा
जो बोएगा
२१-३-२०२०
***
हाइकु गीत
*
आया वसंत
इन्द्रधनुषी हुए
दिशा-दिगंत..
शोभा अनंत
हुए मोहित,
सुर-मानव संत..
*
प्रीत के गीत
गुनगुनाती धूप
बनालो मीत.
जलाते दिए
एक-दूजे के लिए
कामिनी-कंत..
*
पीताभी पर्ण
संभावित जननी
जैसे विवर्ण..
हो हरियाली
मिलेगी खुशहाली
होगे श्रीमंत..
*
चूमता कली
मधुकर गुंजार
लजाती लली..
सूरज हुआ
उषा पर निसार
लाली अनंत..
*
प्रीत की रीत
जानकर न जाने
नीत-अनीत.
क्यों कन्यादान?
'सलिल' वरदान
दें एकदंत..
***
कुण्डलिया
*
रूठी राधा से कहें, इठलाकर घनश्याम
मैंने अपना दिल किया, गोपी तेरे नाम
गोपी तेरे नाम, राधिका बोली जा-जा
काला दिल ले श्याम, निकट मेरे मत आ, जा
झूठा है तू ग्वाल, प्रीत भी तेरी झूठी
ठेंगा दिखा न भाग, खिजाती राधा रूठी
*
कुंडल पहना कान में, कुंडलिया ने आज
कान न देती, कान पर कुण्डलिनी लट साज
कुण्डलिनी लट साज, राज करती कुंडल पर
मौन कमंडल बैठ, भेजता हाथी को घर
पंजा-साइकिल सर धुनते, गिरते जा दलदल
खिला कमल हँस पड़ा, फन लो तीनों कुंडल
२१-३-२०१७
***
मुक्तिका
*
आया वसंत, / इन्द्रधनुषी हुए / दिशा-दिगंत..
शोभा अनंत / हुए मोहित, सुर / मानव संत..
*
प्रीत के गीत / गुनगुनाती धूप / बनालो मीत.
जलाते दिए / एक-दूजे के लिए / कामिनी-कंत..
*
पीताभी पर्ण / संभावित जननी / जैसे विवर्ण..
हो हरियाली / मिलेगी खुशहाली / होगे श्रीमंत..
*
चूमता कली / मधुकर गुंजार / लजाती लली..
सूरज हुआ / उषा पर निसार / लाली अनंत..
*
प्रीत की रीत / जानकार न जाने / नीत-अनीत.
क्यों कन्यादान? / 'सलिल' वरदान / दें एकदंत..
***
मुक्तिका
*
खर्चे अधिक आय है कम.
दिल रोता आँखें हैं नम..
पाला शौक तमाखू का.
बना मौत का फंदा यम्..
जो करता जग उजियारा
उस दीपक के नीचे तम..
सीमाओं की फ़िक्र नहीं.
ठोंक रहे संसद में ख़म..
जब पाया तो खुश न हुए.
खोया तो करते क्यों गम?
टन-टन रुचे न मन्दिर की.
रुचती कोठे की छम-छम..
वीर भोग्या वसुंधरा
'सलिल' रखो हाथों में दम..
***
मुक्तक
मौन वह कहता जिसे आवाज कह पाती नहीं.
क्या क्षितिज से उषा-संध्या मौन हो गाती नहीं.
शोरगुल से शीघ्र ही मन ऊब जाता है 'सलिल'-
निशा जो स्तब्ध हो तो क्या तुम्हें भाती नहीं?
२१-३-२०१०

*** 

बुधवार, 15 मार्च 2023

सॉनेट,वैदिक,पैसा,घनाक्षरी,हाइकु,राम,दोहा,कुण्डलिया,दोहागीत,मानव छंद,

सॉनेट
वैदिक जी
वैदिक जी का जीवट अनुपम
खूब किया संघर्ष निरंतर
हिंदी का लहराया परचम
राष्ट्रवाद के दूत प्रखरतर

पहला शोध कार्य कर तुमने
विरोधियों को सबक सिखाया
अंग्रेजी के बड़वानल में
हिंदी सूरज नित्य उगाया

हिंदी के उन्नायक अनुपम
हिंदी के हित वापिस आओ
हिंदी के गुण गायक थे तुम
हिंदी हित भव को अपनाओ

वेद प्रताप न न्यून कभी हो
वैदिक का नव जन्म यहीं हो
१५-३-२०२३
•••
सॉनेट
पैसा
माँगा है हरदम प्रभु पैसा।
सौदासी मन टुक टुक ताके।
सौदाई तन इत-उत झाँके।।
जोड़ा है निशि-दिन छिप पैसा।।

चिंता है पल-पल यह पैसा।
दूना हो छिन-छिन प्रभु कैसे?
बोलो, हो मत चुप प्रभु ऐसे।।
दो दीदार सतत बन पैसा।।

कैसे भी खन-खन सुनवा दो।
जैसे हो प्रभु! धन जुड़वा दो।
लो प्रसाद मत खर्च करा दो।।
पैसापति हे कहीं न तुम सम।

मोल न किंचित् गर पैसा गुम।
जहाँ न पैसा, वहीं दर्द-गम।।
१५-३-२०२२
•••
कार्यशाला - घनाक्षरी
डमरू की ताल पर
११२ २२१ ११ = ११
तीन ध्वनि खंड ११ मात्रिक हो सकें तो सोने में सुहागा, तब उच्चार काल समान होगा।
चौथे चरण का उच्चार काल सभी पंक्तियों में समान हो।
ऐसा न होने पर बोलते समय गलाबाजी जरूरी हो जाती है।
आपने अंतिम पंक्ति में १२×३
की साम्यता रखी है।
पहली और चौथी पंक्ति बोलकर पढ़ें तो अंतर का प्रभाव स्पष्ट होगा।
*
(प्रति पंक्ति - वर्ण ८-८-८-७, मात्रा ११-११-११-११।)
डमरू की ताल पर, शंकर के शीश पर, बाल चंद्र झूमकर, नाग संग नाचता।
संग उमा सज रहीं, बम भोले भज रहीं, लाज नहीं तज रहीं, प्रेम त्याग माँगता।।
विजय हार हो गई, हार विजय हो गई, प्रणय बीज बो गई, सदा विश्व पूजता।
शिवा-शिव न दो रहे, कीर्ति-कथा जग कहे, प्रीत-धार नित बहे, मातु-पिता मानता।।
१५-३-२०२२
***
श्रीराम पर हाइकु
*
मूँद नयन
अंतर में दिखते
हँसते राम।
*
खोल नयन
कंकर कंकर में
दिखते राम।
*
बसते राम
ह्रदय में सिय के
हनुमत के।
*
सिया रहित
श्रीराम न रहते
मुदित कभी।
*
राम नाम ही
भवसागर पार
उतार देता।
*
अभिनव प्रयोग
राम हाइकु गीत
(छंद वार्णिक, ५-७-५)
आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल'
*
बल बनिए
निर्बल का तब ही
मिले प्रणाम।
क्षणभंगुर
भव सागर, कर
थामो हे राम।।
*
सुख तजिए / निर्बल की खातिर / दुःख सहिए।
मत डरिए / विपदा - आपद से / हँस लड़िए।।
सँग रहिए
निषाद, शबरी के
सुबहो-शाम।
क्षणभंगुर
भव सागर, कर
थामो हे राम।।
*
मार ताड़का / खर-दूषण वध / लड़ करिए।
तार अहल्या / उचित नीति पथ / पर चलिए।।
विवश रहे
सुग्रीव-विभीषण
कर लें थाम।
क्षणभंगुर
भव सागर, कर
थामो हे राम।।
*
सिय-हर्ता के / प्राण हरण कर / जग पुजिए।
आस पूर्ण हो / भरत-अवध की / नृप बनिए।।
त्रय माता, चौ
बहिन-बंधु, जन
जिएँ अकाम।
क्षणभंगुर
भव सागर, कर
थामो हे राम।।
२५-१०-२०२१
***
दोहा दुनिया
*
भाई-भतीजावाद के, हारे ठेकेदार
चचा-भतीजे ने किया, घर का बंटाढार
*
दुर्योधन-धृतराष्ट्र का, हुआ नया अवतार
नाव डुबाकर रो रहे, तोड़-फेंक पतवार
*
माया महाठगिनी पर, ठगी गयी इस बार
जातिवाद के दनुज सँग, मिली पटकनी यार
*
लग्न-परिश्रम की विजय, स्वार्थ-मोह की हार
अवसरवादी सियासत, डूब मरे मक्कार
*
बादल गरजे पर नहीं, बरस सके धिक्कार
जो बोया काटा वही, कौन बचावनहार?
*
नर-नरेंद्र मिल हो सके, जन से एकाकार
सर-आँखों बैठा किया, जन-जन ने सत्कार
*
जन-गण को समझें नहीं, नेतागण लाचार
सौ सुनार पर पड़ गया,भारी एक लुहार
*
गलती से सीखें सबक, बाँटें-पाएँ प्यार
देश-दीन का द्वेष तज, करें तनिक उपकार
*
दल का दलदल भुलाकर, असरदार सरदार
जनसेवा का लक्ष्य ले, बढ़े बना सरकार
***
१५-३-२०१८
***
कहे कुंडली सत्य
*
दो नंबर पर हो गयी, छप्पन इंची चोट
जला बहाते भीत हो, पप्पू संचित नोट
पप्पू संचित नोट, न माया किसी काम की
लालू स्यापा करें, कमाई सब हराम की
रहे तीन के ना तेरह के, रोते अफसर
बबुआ करें विलाप, गँवाकर धन दो नंबर
*
दबे-दबे घर में रहें, बाहर हों उद्दंड
हैं शरीफ बस नाम के, बेपेंदी के गुंड
बेपेंदी के गुंड, गरजते पर न बरसते
पाल रहे आतंक, मुक्ति के हेतु तरसते
सीधा चले न सांप, मरोड़ो कई मरतबे
वश में रहता नहीं, उठे फण नहीं तब दबे
*
दिखा चुनावों ने दिया, किसका कैसा रूप?
कौन पहाड़ उखाड़ता, कौन खोदता कूप?
कौन खोदता कूप?, कौन किसका अपना है?
कौन सही कर रहा, गलत किसका नपना है?
कहता कवि संजीव, हुआ जो नहीं वह लिखा
कौन जयी हो? पत्रकार को नहीं था दिखा
*
हाथी, पंजा-साइकिल, केर-बेर सा संग
घर-आँगन में करें जो, घरवाले ही जंग
घरवाले ही जंग, सम्हालें कैसे सत्ता?
मतदाता सच जान, काटते उनका पत्ता
बड़े बोल कह हाय! चाटते धूला साथी
केर-बेर सा सँग, साइकिल-पंजा, हाथी
*
पटकी खाकर भी नहीं, सम्हले नकली शेर
ज्यादा सीटें मिलीं पर, हाय! हो गए ढेर
हाय! हो गए ढेर, नहीं सरकार बन सकी
मुँह ही काला हुआ, नहीं ठंडाई छन सकी
पिटे कोर्ट जा आप, कमल ने सत्ता झपटी
सम्हले नकली शेर नहीं खाकर भी पटकी
१५-३-२०१७
***
दोहा गीत:
गुलफाम
*
कद से ज्यादा बोलकर
आप मरे गुलफाम
*
घर से पढ़ने आये थे, लगी सियासत दाढ़,
भाषणबाजी-तालियाँ, ज्यों नरदे में बाढ़।
भूल गये कर्तव्य निज, याद रहे अधिकार,
देश-धर्म भूले, करें, अरि की जय-जयकार।
सेना की निंदा करें, खो बैठे ज्यों होश,
न्याय प्रक्रिया पर करें, व्यक्त अकारण रोष।
आसमान पर थूककर,
हुए व्यर्थ बदनाम
कद से ज्यादा बोलकर
आप मरे गुलफाम
*
बडबोले नेता रहे, अपनी रोटी सेक,
राजनीति भट्टी जली, छात्र हो गये केक।
सुरा-सुंदरी संग रह, भूल गए पग राह,
अंगारों की दाह पा, कलप रहे भर आह।
भारत का जयघोष कर, धोयें अपने पाप,
सेना-बैरेक में लगा, झाड़ू मेटें शाप।
न्याय रियायत ना करे
खास रहे या आम
कद से ज्यादा बोलकर
आप मरे गुलफाम
***
गीत
फागुन का रंग
फागुन का रंग हवा में है, देना मुझको कुछ दोष नहीं
संविधान विपरीत आचरण कर, क्यों मानूँ होश नहीं?
*
संसद हो या जे एन यू हो, कहने की आज़ादी है
बात और है हमने अपने घर की की बर्बादी है
नहीं पंजीरी खाने को पर दिल्ली जाकर पढ़ते हैं
एक नहीं दो दशक बाद भी आगे तनिक न बढ़ते हैं
विद्या की अर्थी निकालते आजीवन विद्यार्थी रह
अपव्यय करते शब्दों का पर कभी रीतता कोष नहीं
संविधान विपरीत आचरण कर, क्यों मानूँ होश नहीं?
*
साठ बरस सत्ता पर काबिज़, रहे चाहते फिर आना
काम न तुमको करने देंगे, रेंक रहे कहते गाना
तुम दो दूनी चार कहो, हम तीन-पाँच ही बोलेंगे
सद्भावों की होली में नफरत का विष ही घोलेंगे
नारी को अधिकार सकल दो, सुबह-शाम रिश्ते बदले
जीना मुश्किल किया नरों का, फिर भी है संतोष नहीं
संविधान विपरीत आचरण कर, क्यों मानूँ होश नहीं?
*
दुश्मन के झंडे लहरा दूँ, अपनी सेना को कोसूँ
मौलिक हक है गद्दारी कर, सत्ता के सपने पोसूँ
भीख माँग ले पुरस्कार सुख-सुविधा, धन-यश भोग लिया
वापिस देने का नाटककर, खुश हूँ तुमको सोग दिया
उन्नति का पलाश काटूँगा, रौंद उमीदों का महुआ
करूँ विदेशों की जय लेकिन भारत माँ का घोष नहीं
संविधान विपरीत आचरण कर, क्यों मानूँ होश नहीं?
*
होली पर होरा भूँजूँगा देश-प्रेम की छाती पर
आरक्षण की माँग, जला घर ठठा हँसूँ बर्बादी पर
बैंकों से लेकर उधार जा, परदेशों में बैठूँगा
दुश्मन हित जासूसी करने, सभी जगह घुस पैठूँगा
भंग रंग में डाल मटकता, किया रंग में भंग सदा
नाजायज़ को जायज़ कहकर जीता है कम जोश नहीं
संविधान विपरीत आचरण कर, क्यों मानूँ होश नहीं?
१५-३-२०१६
***
छंद सलिला:
चौदह मात्रीय मानव छंद
*
लक्षण: जाति मानव, प्रति चरण मात्रा १४, मात्रा बाँट ४-४-४-२ या ४-४-४--१-१, मूलतः २-२ चरणों में तुक साम्य किन्तु प्रसाद जी ने आँसू में तथा गुप्त जी ने साकेत में२-४ चरण में तुक साम्य रख कर इसे नया आयाम दिया। आँसू में चरणान्त में दीर्घ अक्षर रखने में विविध प्रयोग हैं. यथा- चारों चरणों में, २-४ चरण में, २-३-४ चरण, १-३-४ चरण में, १-२-४ चरण में। मुक्तक छंद में प्रयोग किये जाने पर दीर्घ अक्षर के स्थान पर दीर्घ मात्रा मात्र की साम्यता रखी जाने में हानि नहीं है. उर्दू गज़ल में तुकांत/पदांत में केवल मात्रा के साम्य को मान्य किया जाता है. मात्र बाँट में कवियों ने दो चौकल के स्थान पर एक अठकल अथवा ३ चौकल के स्थान पर २ षटकल भी रखे हैं. छंद में ३ चौकल न हों और १४ मात्राएँ हों तो उसे मानव जाती का छंद कहा जाता है जबकि ३ चौकल होने पर उपभेदों में वर्गीकृत किया जाता है.
लक्षण छंद:
चार चरण सम पद भुवना,
अंत द्विकल न शुरू रगणा
तीन चतुष्कल गुरु मात्रा,
मानव पग धर कर यात्रा
उदाहरण:
१. बलिहारी परिवर्तन की, फूहड़ नंगे नर्त्तन की
गुंडई मौज मज़ा मस्ती, शीला-चुन्नी मंचन की
२. नवता डूबे नस्ती में, जनता के कष्ट अकथ हैं
संसद बेमानी लगती, जैसे खुद को ही ठगती
३. विपदा न कोप है प्रभु का, वह लेता मात्र परीक्षा
सह ले धीरज से हँसकर, यह ही सच्ची गुरुदीक्षा
४. चुन ले तुझको क्या पाना?, किस ओर तुझे है जाना
जो बोया वह पाना है, कुछ संग न ले जाना है
(अब तक प्रस्तुत छंद: अखण्ड, अग्र, अचल, अचल धृति, अहीर, आर्द्रा, आल्हा, इंद्रवज्रा, उपेन्द्रवज्रा, उल्लाला, एकावली, ककुभ, कीर्ति, गंग, घनाक्षरी, चौबोला, चंडिका, छवि, जाया, तांडव, तोमर, दीप, दोधक, नित, निधि, प्रदोष, प्रेमा, बाला, भव, मधुभार, मनहरण घनाक्षरी, मानव, माया, माला, ऋद्धि, रामा, लीला, वाणी, शक्तिपूजा, शशिवदना, शाला, शिव, शुभगति, सार, सिद्धि, सुगति, सुजान, हंसी)
१५-३-२०१४
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दोहा
मंगलमय हो नव दवस, दे यश कीर्ति समृद्धि.
कर्म करें हर धर्ममय, हर पल हो सुख-वृद्धि..
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हाइकु गजल:

आया वसंत/इन्द्रधनुषी हुए /दिशा-दिगंत..
शोभा अनंत/हुए मोहित, सुर/मानव संत..

प्रीत के गीत/गुनगुनाती धूप /बनालो मीत.
जलाते दिए/एक-दूजे के लिए/कामिनी-कंत..

पीताभी पर्ण/संभावित जननी/जैसे विवर्ण..
हो हरियाली/मिलेगी खुशहाली/होगे श्रीमंत..

चूमता कली/मधुकर गुंजा /लजाती लली..
सूरज हुआ /उषा पर निसार/लाली अनंत..

प्रीत की रीत/जानकार न जाने/नीत-अनीत.
क्यों कन्यादान?/'सलिल'वरदान/दें एकदंत..
१५-३-२०१०
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