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रविवार, 24 जुलाई 2011

घनाक्षरी सलिला : छत्तीसगढ़ी में अभिनव प्रयोग. -- संजीव 'सलिल'

घनाक्षरी सलिला :
छत्तीसगढ़ी में अभिनव प्रयोग.
संजीव 'सलिल'
*
अँचरा मा भरे धान, टूरा गाँव का किसान, धरती मा फूँक प्राण, पसीना बहावथे.
बोबरा-फार बनाव, बासी-पसिया सुहाव, महुआ-अचार खाव, पंडवानी भावथे..
बारी-बिजुरी बनाय, उरदा के पीठी भाय, थोरको न ओतियाय, टूरी इठलावथे.
भारत के जय बोल, माटी मा करे किलोल, घोटुल मा रस घोल, मुटियारी भावथे..
*
नवी रीत बनन दे, नीक न्याब चलन दे, होसला ते बढ़न दे, कउवा काँव-काँव.
अगुवा के कोचिया, फगुवा के लोटिया, बिटिया के बोझिया, पिपल्या के छाँव..
अगोर पुरवईया, बटोर माछी भइया, अंजोर बैल-गइया, कुठरिया के ठाँव.
नमन माटी मइया, गले लगाये सइयां , बढ़ाव बैल-गइया, सुरग होथ गाँव....
*
देस के बिकास बर, सबन उजास बर, सुरसती दाई माई, दया बरसाय दे.
नव-नवा काम होथ, देस स्वर्ग धाम होथ, धरती म धान बोथ, फसल उगाय दे..
टूरा-टूरी गुणी होथ, मिहनती-धुनी होथ, हिरदा से नेह होथ, सलीका सिखाय दे.
डौका-डौकी चाह पाल, भाड़ मा दें डाह डाल, ऊँचा ही रखें कपाल, रीत नव बनाय दे..
*
रचना विधान: वर्णात्मक छंद, चार पद, हर पद में चार चरण, हर चरण में ८-८-८-७ पर यति, चरणान्त दीर्घ,  
Acharya Sanjiv Salil

रविवार, 19 जून 2011

घनाक्षरी छंद : राजनीति का अखाड़ा..... --संजीव 'सलिल'

घनाक्षरी छंद :
राजनीति का अखाड़ा.....
संजीव 'सलिल'
*
अपनी भी कहें कुछ, औरों की भी सुनें कुछ, बात-बात में न बात, अपनी चलाइए.
कोई दूर जाए  गर, कोई रूठ जाए गर, नेह-प्रेम बात कर, उसको मनाइए.
बेटी हो, जमाई हो  या, बेटा-बहू, नाती-पोते, भूल से भी भूलकर, शीश न चढ़ाइए.
दूसरों से जैसा चाहें, वैसा व्यवहार करें, राजनीति का अखाड़ा, घर न बनाइए..
*
एक देश अपना है, माटी अपनी है एक, भिन्नता का भाव कोई, मन में न लाइए.
भारत की, भारती की, आरती उतारकर, हथेली पे जान धरें, शीश भी चढ़ाइए..
भाषा-भूषा, जात-पांत,वाद-पंथ कोई भी हो, हाथ मिला, गले मिलें, दूरियाँ मिटाइए.
पक्ष या विपक्ष में हों, राष्ट्र-हित सर्वोपरि, राजनीति का अखाड़ा, घर न बनाइए..
**
सुख-दुःख, धूप-छाँव, आते-जाते जिंदगी में, डरिए न धैर्य धर, बढ़ते ही जाइये.
संकटों में, कंटकों में, एक-एक पग रख, कठिनाई सीढ़ी पर, चढ़ते ही जाइये..
रसलीन, रसनिधि, रसखान बनें आप, श्वास-श्वास महाकाव्य, पढ़ते ही जाइये.
शारदा की सेवा करें, लक्ष्मी मैया! मेवा वरें, शक्ति-साधना का पंथ, गढ़ते ही जाइये..
***

शनिवार, 11 जून 2011

घनाक्षरी: ---संजीव 'सलिल'

घनाक्षरी:
संजीव 'सलिल'
*
बाबा रामदेव जी हैं, विश्व की धरोहर, बाबा रामदेव जी के, साथ खड़े होइए.
हाथ मलें शीश झुका, शीश पीटें बाद में ना, कोई अनहोनी देख, बाद में न रोइए..
सरकार को जगायें, सरदार को उठायें, सड़कों पर आइये, राजनीति धोइए.
समय पुकारता है, सोयें खोयें रोयें मत, तुमुल निनाद कर, क्रांति-बीज बोइए..
*
कौन किसी का यहाँ है?, कौन किसी का सगा है?, सेंकते सभी को देखा, रोटी निज स्वार्थ की.
लोकतंत्र में न लोक, मत सुना जा रहा है, खून चूसता है तंत्र, अदेखी लोकार्थ की.
घूस लेता नेता रोज, रिश्वतों का बोलबाला, अन्ना-बाबा कर रहे हैं, बात सर्वार्थ की.
घरों से निकल आयें, गीत क्रांति के सुनायें, बीन शांति की बजायें, नीति परमार्थ की.
*
अपना-पराया भूल, सह ले चुभन-शूल, माथे पर लगा धूल, इस प्यारे देश की.
माँ की कसम तुझे, पीछे मुड़  देख मत, लानत मिलेगी यदि, जां की फ़िक्र लेश की..
प्रतिनिधि को पकड़, नत मत हो- अकड़, बात मनवा झगड़, तजे नीति द्वेष की.
'सलिल' विदेश में जो, धन इस देश का है, देश वापिस लाइये, है शपथ अशेष की..
*
(मनहरण, घनाक्षरी, कवित्त छंद : ४-४-४-७)
  

सोमवार, 30 मई 2011

घनाक्षरी / मनहरण कवित्त ... झटपट करिए --संजीव 'सलिल'

घनाक्षरी / मनहरण कवित्त
... झटपट करिए
संजीव 'सलिल'
*
लक्ष्य जो भी वरना हो, धाम जहाँ चलना हो,
काम जो भी करना हो, झटपट करिए.
तोड़ना नियम नहीं, छोड़ना शरम नहीं,
मोड़ना धरम नहीं, सच पर चलिए.
आम आदमी हैं आप, सोच मत चुप रहें,
खास बन आगे बढ़, देशभक्त बनिए-
गलत जो होता दिखे, उसका विरोध करें,
'सलिल' न आँख मूँद, चुपचाप सहिये.
*
छंद विधान: वर्णिक छंद, आठ चरण,
८-८-८-७ पर यति, चरणान्त लघु-गुरु.
*********
Acharya Sanjiv Salil

http://divyanarmada.blogspot.com/

शनिवार, 28 मई 2011

छंद परिचय: मनहरण घनाक्षरी छंद/ कवित्त -- संजीव 'सलिल'

मनहरण घनाक्षरी छंद/ कवित्त

संजीव 'सलिल'
*
मनहरण घनाक्षरी छंद एक वर्णिक छंद है.
इसमें मात्राओं की नहीं, वर्णों अर्थात अक्षरों की गणना की जाती है. ८-८-८-७ अक्षरों पर यति या विराम रखने का विधान है. चरण (पंक्ति) के अंत में लघु-गुरु हो. इस छंद में भाषा के प्रवाह और गति पर विशेष ध्यान दें. स्व. ॐ प्रकाश आदित्य ने इस छंद में प्रभावी हास्य रचनाएँ की हैं.

इस छंद का नामकरण 'घन' शब्द पर है जिसके हिंदी में ४ अर्थ १. मेघ/बादल, २. सघन/गहन, ३. बड़ा हथौड़ा, तथा ४. किसी संख्या का उसी में ३ बार गुणा (क्यूब) हैं. इस छंद में चारों अर्थ प्रासंगिक हैं. घनाक्षरी में शब्द प्रवाह इस तरह होता है मेघ गर्जन की तरह निरंतरता की प्रतीति हो. घंक्षरी में शब्दों की बुनावट सघन होती है जैसे एक को ठेलकर दूसरा शब्द आने की जल्दी में हो. घनाक्षरी पाठक/श्रोता के मन पर प्रहर सा कर पूर्व के मनोभावों को हटाकर अपना प्रभाव स्थापित कर अपने अनुकूल बना लेनेवाला छंद है.

घनाक्षरी में ८ वर्णों की ३ बार आवृत्ति है. ८-८-८-७ की बंदिश कई बार शब्द संयोजन को कठिन बना देती है. किसी भाव विशेष को अभिव्यक्त करने में कठिनाई होने पर कवि १६-१५ की बंदिश अपनाते रहे हैं. इसमें आधुनिक और प्राचीन जैसा कुछ नहीं है. यह कवि के चयन पर निर्भर है. १६-१५ करने पर ८ अक्षरी चरणांश की ३ आवृत्तियाँ नहीं हो पातीं. 

मेरे मत में इस विषय पर भ्रम या किसी एक को चुनने जैसी कोई स्थिति नहीं है. कवि शिल्पगत शुद्धता को प्राथमिकता देना चाहेगा तो शब्द-चयन की सीमा में भाव की अभिव्यक्ति करनी होगी जो समय और श्रम-साध्य है. कवि अपने भावों को प्रधानता देना चाहे और उसे ८-८-८-७ की शब्द सीमा में न कर सके तो वह १६-१५ की छूट लेता है.

सोचने का बिंदु यह है कि यदि १६-१५ में भी भाव अभिव्यक्ति में बाधा हो तो क्या हर पंक्ति में १६+१५=३१ अक्षर होने और १६ के बाद यति (विराम) न होने पर भी उसे घनाक्षरी कहें? यदि हाँ तो फिर छन्द में बंदिश का अर्थ ही कुछ नहीं होगा. फिर छन्दबद्ध और छन्दमुक्त रचना में क्या अंतर शेष रहेगा. यदि नहीं तो फिर ८-८-८ की त्रिपदी में छूट क्यों?

उदाहरण हर तरह के अनेकों हैं. उदाहरण देने से समस्या नहीं सुलझेगी. हमें नियम को वरीयता देनी चाहिए. इसलिए मैंने प्रचालन के अनुसार कुछ त्रुटि रखते हुए रचना भेजी ताकि पाठक पढ़कर सुधारें और ऐसा न हों पर नवीन जी से अनुरोध किया कि वे सुधारें. पाठक और कवि दोनों रचनाओं को पढ़कर समझ सकते हैं कि बहुधा कवि भाव को प्रमुख मानते हुए और शिल्प को गौड़ मानते हुए या आलस्य या शब्दाभाव या नियम की जानकारी के अभाव में त्रुटिपूर्ण रचना प्रचलित कर देता है जिसे थोडा सा प्रयास करने पर सही शिल्प में ढाला जा सकता है.

अतः, मनहरण घनाक्षरी छंद का शुद्ध रूप तो ८-८-८-७ ही है. ८+८, ८+७ अर्थात १६-१५, या ३१-३१-३१-३१ को शिल्पगत त्रुटियुक्त घनाक्षरी ही माँना जा सकता है. नियम तो नियम होते हैं. नियम-भंग महाकवि करे या नवोदित कवि दोष ही कहलायेगा. किन्हीं महाकवियों के या बहुत लोकप्रिय या बहुत अधिक संख्या में उदाहरण देकर गलत को सही नहीं कहा जा सकता. शेष रचना कर्म में नियम न मानने पर कोई दंड तो होता नहीं है सो हर रचनाकार अपना निर्णय लेने में स्वतंत्र है.

घनाक्षरी रचना विधान :

आठ-आठ-आठ-सात पर यति रखकर,
मनहर घनाक्षरी छन्द कवि रचिए.
लघु-गुरु रखकर चरण के आखिर में,
'सलिल'-प्रवाह-गति, वेग भी परखिये..
अश्व-पदचाप सम, मेघ-जलधार सम,
गति अवरोध न हो, यह भी निरखिए.
करतल ध्वनि कर, प्रमुदित श्रोतागण-
'एक बार और' कहें, सुनिए-हरषिए..
*
वर्षा-वर्णन :
उमड़-घुमड़कर, गरज-बरसकर,
जल-थल समकर, मेघ प्रमुदित है.
मचल-मचलकर, हुलस-हुलसकर,
पुलक-पुलककर, मोर नरतित है..
कलकल,छलछल, उछल-उछलकर,
कूल-तट तोड़ निज, नाद प्रवहित है.
टर-टर, टर-टर, टेर पाठ हेर रहे,
दादुर 'सलिल' संग स्वागतरत है..
*
भारत गान :
भारत के, भारती के, चारण हैं, भाट हम,
नित गीत गा-गाकर आरती उतारेंगे.
श्वास-आस, तन-मन, जान भी निसारकर,
माटी शीश धरकर, जन्म-जन्म वारेंगे..
सुंदर है स्वर्ग से भी, पावन है, भावन है,
शत्रुओं को घेर घाट मौत के उतारेंगे-
कंकर भी शंकर है, दिक्-नभ अम्बर है,
सागर-'सलिल' पग नित्य ही पखारेंगे..
*
हास्य घनाक्षरी
 सत्ता जो मिली है तो जनता को लूट खाओ,
मोह होता है बहुत घूस मिले धन का|

नातों को भुनाओ सदा, वादों को भुलाओ सदा,
चाल चल लूट लेना धन जन-जन का|

घूरना लगे है भला, लुगाई गरीब की को,
फागुन लगे है भला, साली-समधन का|

विजया भवानी भली, साकी रात-रानी भली,
चौर्य कर्म भी भला है आँख-अंजन का||

मंगलवार, 24 मई 2011

छंद परिचय: मनहरण घनाक्षरी छंद/ कवित्त -- संजीव 'सलिल'

छंद परिचय:
मनहरण घनाक्षरी छंद/ कवित्त

संजीव 'सलिल' *
मनहरण घनाक्षरी छंद एक वर्णिक छंद है.
इसमें मात्राओं की नहीं, वर्णों अर्थात अक्षरों की गणना की जाती है. ८-८-८-७ अक्षरों पर यति या विराम रखने का विधान है. चरण (पंक्ति) के अंत में लघु-गुरु हो. इस छंद में भाषा के प्रवाह और गति पर विशेष ध्यान दें. स्व. ॐ प्रकाश आदित्य ने इस छंद में प्रभावी हास्य रचनाएँ की हैं.
इस छंद का नामकरण 'घन' शब्द पर है जिसके हिंदी में ४ अर्थ १. मेघ/बादल, २. सघन/गहन, ३. बड़ा हथौड़ा, तथा ४. किसी संख्या का उसी में ३ बार गुणा (क्यूब) हैं. इस छंद में चारों अर्थ प्रासंगिक हैं. घनाक्षरी में शब्द प्रवाह इस तरह होता है मेघ गर्जन की तरह निरंतरता की प्रतीति हो. घंक्षरी में शब्दों की बुनावट सघन होती है जैसे एक को ठेलकर दूसरा शब्द आने की जल्दी में हो. घनाक्षरी पाठक/श्रोता के मन पर प्रहर सा कर पूर्व के मनोभावों को हटाकर अपना प्रभाव स्थापित कर अपने अनुकूल बना लेनेवाला छंद है. घनाक्षरी में ८ वर्णों की ३ बार आवृत्ति है.
घनाक्षरी रचना विधान :
आठ-आठ-आठ-सात पर यति रखकर,
मनहर घनाक्षरी छन्द कवि रचिए.
लघु-गुरु रखकर चरण के आखिर में,
'सलिल'-प्रवाह-गति, वेग भी परखिये..
अश्व-पदचाप सम, मेघ-जलधर सम,
गति अवरोध न हो, यह भी निरखिए.
करतल ध्वनि कर, प्रमुदित श्रोतागण-
'एक बार और' कहें, सुनिए-हरषिए..
*
वर्षा-वर्णन:
उमड़-घुमड़कर, गरज-बरसकर,
जल-थल समकर, मेघ प्रमुदित है.
मचल-मचलकर, हुलस-हुलसकर,
पुलक-पुलककर, मोर नरतित है..
कलकल,छलछल, उछल-उछलकर,
कूल-तट तोड़ निज, नाद प्रवहित है.
टर-टर, टर-टर, टेर पाठ हेर रहे,
दादुर 'सलिल' संग स्वागतरत है..
*
भारत वंदना:
भारत के, भारती के, चारण हैं, भाट हम,
नित गीत गा-गाकर आरती उतारेंगे.
श्वास-आस, तन-मन, जान भी निसारकर,
माटी शीश धरकर, जन्म-जन्म वारेंगे..
सुंदर है स्वर्ग से भी, पवन है, भवन है,
शत्रुओं को घेर घात मौत के उतारेंगे-
कंकर भी शंका रही, दिक्-नभ अम्बर है,
सागर-'सलिल' पग नित्य ही पखारेंगे..
*
षडऋतु वर्णन : मनहरण घनाक्षरी/कवित्त छंद
संजीव 'सलिल'
*

वर्षा :
गरज-बरस मेघ, धरती का ताप हर, बिजली गिराता जल, देता हरषाता है. 
शरद:
हरी चादर ओढ़ भू, लाज से सँकुचती है, देख रवि किरण से, संदेशा पठाता है.
शिशिर:
प्रीत भीत हो तो शीत, हौसलों पर बर्फ की, चादर बिछाता फिर, ठेंगा दिखलाता है. 
हेमन्त :
प्यार हार नहीं मान, कुछ करने की ठान, दरीचे से झाँक-झाँक, झलक दिखाता है.
वसंत :
रति-रतिनाथ साथ, हाथों में लेकर हाथ, तन-मन में उमंग, नित नव जगाता है.
ग्रीष्म :
देख क्रुद्ध होता सूर्य, खिलते पलाश सम, आसमान से गरम, धूप बरसाता है..
*
टिप्पणी : घनाक्षरी छंद को लय में पढ़ते समय बहुधा शब्दों को तोड़कर पड़ा जाता ताकि आरोह-अवरोह (उतर-चढ़ाव) बना रहे.